Friday, January 8, 2016

चल कबीरा तेरा भवसागर डेरा

चल कबीरा तेरा भवसागर डेरा
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 5 दिसम्बर 1956 को रात्रि 8 बजे बाबासाहेब ने जैन प्रतिनिधिमंडल से बौद्ध धर्म व जैन धर्म पर चर्चा की। रात नानकचन्द रत्तू ने बाबासाहेब के पाँव दबाये व सिर पर तेल की मालिस की। कुछ आराम मिलने पर वे भगवान बुद्ध की प्रार्थना गुनगुनाने लगे।आँखें मूँदकर हाथों से ताल देकर बुद्ध बन्दना गा रहे थे।उन्होंने बुद्धम् शरणम् गच्छामि गीत तन्मय होकर सुना।रात में भोजन कक्ष में कुछ गुमसुम थे। उन्होंने बहुत कम खाना खाया।रत्तू ने फिर उनकर सिर की मालिस की।कुछ देर बाद अपनी लाठी लेकर उठ खड़े हुए और कबीर का पद गुनगुनाने लगे," चल कबीरा तेरा भव सागर डेरा"।रात 11 बजे तक रत्तू उनके पाँव दबाते रहे। फिर अपने घर के लिए निकल गए।
 रत्तू, रसोइया सुदामा ने सोचा भी नहीं था कि बाबासाहेब बार-बार कबीर के उस दोहे को गुनगुनाकर क्या सूचित करना चाहते हैं।भवसागर को पार कर लेने के बाद मनुष्य अपना गंतव्य स्थान प्राप्त करता है।बाबासाहेब भी शायद यही कहना चाहते थे की अब मेरा डेरे में दाखिल होने का समय आ गया है।
 6 दिसम्बर 1956 बहुजनों के लिए काला दिन बनकर आया था। बाबासाहेब का परिनिर्वाण हो गया था।हजारों लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए 26 अलीपुर रोड (दिल्ली) पर उमड़ पड़े। प्रधानमंत्री नेहरू, गृहमंत्री जी वी पंत, संचार मंत्री जगजीवनराम, राजकुमारी अमृतकौर, कई सांसद अंतिम दर्शन के लिए आये। शव उनकी कर्मभूमि बम्बई लाया गया। बाबासाहेब के लाखों अनुयायी अपने मसीहा की शवयात्रा में शोकाकुल थे।लाखों लोगो ने बाबासाहेब की मृत देह को साक्षी रखकर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली।बाबासाहेब के पुत्र यशवंत राव ने 7 दिसम्बर को सायं 7.30 बजे चिता को अग्नि दी।एक और महासागर था तो दूसरी और जनसागर।दोनों रो रहे थे।
आचार्य अत्रे ने शोक सभा में कहा था-बाबासाहेब हिमालय के सामान उत्तुंग थे।उनके जैसा बुद्धिमान व कर्तव्यपरायण पुरुस आज तक न तो पैदा हुआ और न ही पैदा होगा।
 बाबासाहेब केवल 66 वर्ष की आयु में परिनिर्वाण पद को प्राप्त  हुए।उनके समय कालीन नेताओं ने उनसे ज्यादा जीवन पाया किन्तु बाबासाहेब ने जो ऊँचाई हासिल की, जो मानव अधिकारों की सिंह गर्जना की, जो मानवीय मूल्यों की नवरचना की उनकी बराबरी कोई नहीं कर सका। वे सोये नहीं है, वे अपने ग्रथों, अपने भाषणों, अपने विचारों के रूप में हमसे सदैव बातें करते हैं।प्रसिद्ध शायर इकवाल ने ठीक ही कहा है- 
"हर दर्दमंद दिल को रोना मेरा रुला दे,
बेहोश जो पड़े हैं, शायद उन्हें जगा दे।"
चहुँ और सम्मान और भावभीनी 
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श्रद्धांजलि-
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 भारतीय संसद अर्थात लोकसभा और राज्य सभा के सदस्यों , महामहिम राष्ट्रपति जी, भारतीय गणतंत्र के प्रधानमंत्री, राज्यपालों, मुख्यमंत्रियों उच्चतम व उच्च न्यायालयों ने भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।देश विदेश के शोध छात्रों, लेखको ,लार्ड माउंट बेटन व कई देश के प्रधानमंत्रियों व अन्य प्रतिष्ठित लोगो ने श्रद्धांजलियों की बौछार सी लगा दी।
 प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू:-
 " वह भारत के सताए गए, दबे- कुचलों के प्रमुख पक्षधर थे।मुख्यतया हिन्दू समाज में पददलित कहलाने वाले दुर्गुणों के खिलाफ विद्रोह के प्रतीक के रूप में याद किये जायेंगे।---संविधान निर्माण में जितना ध्यान उन्होंने दिया और परेशानियां उठाई , उतना किसी अन्य ने नहीं। हिन्दू विधि के सुधार के सवाल पर उन्होंने जितनी गहरी रूचि ली और कष्ट उठाया उसके लिये भी वह याद किये जायेंगे।--सबसे अधिक तो उन्हें हिन्दू समाज में दमनकारी रीति रिवाजो के विद्रोह के प्रतीक के रूप में याद किया जायेगा।--मुख्य बात तो यह है कि उन्होंने हर उस चीज़ से विद्रोह किया, जिससे हम सबको विद्रोह करना चाहिए।--मुझे खेद है कि हिन्दू समाज की कुरीतियां देश के तमाम हिस्सों में चल रही हैं।हालांकि कानूनी तौर पर वे अवैध हैं।---बहुत से विषयों से हम उनसे सहमत हों या न हों, पर इसमें कोई संदेह नहीं कि उनका अध्यवसाय, उनकी दृढ़ता और यदि मैं कह सकूँ तो कड़वाहट, जो इन मुद्दों पर थी, ने लोगो के मस्तिष्क को जाग्रत रखा और उन्हें संतुष्ट होकर बैठने नहीं दिया।इसलिए यह बहुत दुःखद है कि भारत के दबे- कुचलों का प्रमुख नायक और हमारी गतिविधियों में प्रमुख भागीदार अब नहीं रहा ।"
सर वाल्टर एडम्स (निदेशक लन्दन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स एंड पोलिटिकल साइंस,लन्दन विश्वविद्यालय)--
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 " डॉ बी आर आंबेडकर1916-17 और फिर 1920-23 में इस स्कूल के छात्र रहे। स्कूल को इस प्रमुख भारतीय नेता से जुड़े होने पर गर्व है।उन्होंने एक शिक्षक विद्वान, राजनीतिक नेता के रूप में अपने देश की ऐतिहासिक सेवा की।भारतीय गणतंत्र के संविधान निर्माण में तथा सामाजिक सेवा के क्षेत्र में उनका योगदान अप्रतिम है।----- अपने कार्य और विद्वत्ता से उन्होंने इस शती में भारत की निर्माण प्रक्रिया पर अमिट छाप छोड़ी।"
 ऐसे महापुरुष, हमारे उद्धारक, पथप्रदर्शक के परिनिर्वाण दिवस पर इस संकल्प के साथ कि उनके बताये मार्ग का अनुसरण करेंगे, मैं बाबासाहेब को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि /श्रद्धासुमन अर्पित करता हूँ।

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