Thursday, February 7, 2019

राम मंदिर : आस्था या विवाद

सवाल यह नहीं है कि राम मंदिर में लोगों की आस्था है। असली सवाल यह है कि उसे आस्था बना कौन रहा है ? उस से भी मजेदार सवाल यह है कि उसे आस्था बनाने के पीछे क्या उद्देश्य है ? बंगाल का हिन्दू जो कि काली का उपासक है उसकी राम में क्या आस्था है ? तमिलनाडु का हिन्दू जिसकी मुरगन में आस्था है उसकी राम में क्या आस्था है ? राजस्थान का हिन्दू जिसकी रामदेव पीर में आस्था है उसकी राम में क्या आस्था है ? अब सवाल यह उठता है कि क्या हिन्दुओं की किसी एक भगवान में आस्था है ? जवाब है कि नहीं। तो फिर हिन्दुओं की आस्था को मुद्दा बनाना सही नहीं है। और उसे राजनैतिक रूप देना तो पूर्णतः ही धर्म नहीं बल्कि अधर्म है। धर्म लोगों को विवाद में उलझाता नहीं बल्कि उन से बचाता है। महाभारत में कृष्ण कौरवों से सुलह करने को कहते हैं। रामायण में राम भी रावण से सुलह करना चाहते हैं। जब भगवान खुद विवादों से बच कर मानव कल्याण की बात करते हैं तो आखिर खुद को उनका पुजारी कहने वाला कैसे विवादों में लोगों को फंसा सकता है। विवादों को उत्पन्न करना और उनका लाभ उठा कर सत्ता पाना किसी धर्मात्मा का काम नहीं है। यह नीच काम केवल और केवल महापापी का ही हो सकता है।

जय भीम कहने वालों को एक सन्देश

मैंने कितनी मेहनत से बाबा साहिब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के ईसाई धर्म के एक लेख का सरल हिंदी भाषा में अनुवाद किया और धन लगा कर उसे पुस्तक के रूप में छापा। पर अब तक दस लोगों ने भी पुस्तक नहीं खरीदी। क्या यह है जय भीम का अर्थ ? आप जय भीम कहेंगे, 14 अप्रैल मनाएंगे, पर डॉ. आंबेडकर जी के विचारों को नहीं पढ़ेंगे ? यदि यही काम किसी सवर्ण हिन्दू, सिख, जैन या ईसाई ने भी किया होता तो शायद उसे हाथों-हाथ लिया जाता क्योंकि उनका समाज जागा हुआ है और हमारा आज भी सोया हुआ है। पर यहाँ तो यह हाल है कि कोई डॉ. आंबेडकर जी के एक ऐसे लेख की तरफ देखता भी नहीं जिसे केंद्रीय सरकार द्वारा प्रकाशित हिंदी वांग्मय (वॉल्युम) में भी अनुवादित करके नहीं छापा गया। कुछ लोग यह गलतफहमी फैला रहे हैं कि डॉ. आंबेडकर जी ने ऐसी कोई पुस्तक नहीं लिखी। वे समाज को झूठ बोल रहे हैं। डॉ. आंबेडकर जी की ऐसी कई पुस्तकें हैं जो कि पहले उनके भाषण और लेख थे और फिर उन्हें बाद में किसी शीर्षक के साथ उन्हें पुस्तक का रूप देकर छापा गया। शीर्षक देना व्यावहारिक मजबूरी है। इसलिए मैंने भी इसे शीर्षक दिया "अछूत और ईसाई धर्म"। पुस्तक की कीमत भी मात्र ₹ 120 रूपये है और इसे हमारी वेबसाईट पर मात्र ₹ 99 रूपये में भी खरीद सकते हैं। यदि अब भी आप इसे पढ़ना चाहते हैं तो हमारी वेबसाइट से खरीद सकते हैं खरीदने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें https://www.nspmart.com/product/achhut-aur-isayi-dharm/
मुझे पता है कि इस संदेश को पढ़ने के बाद भी पांच पुस्तकें भी बिकना मुश्किल है पर फिर भी यह संदेश केवल पुस्तक बेचने के लिए नहीं बल्कि समाज की सही बौद्धिक रूझान से अवगत कराने के लिए और पुस्तक के बारे में गलतफहमी दूर करने के लिए है।
- निखिल सबलानिया