Wednesday, February 24, 2016

बाबा साहब डाँ. अम्बेडकर का ऐतिहासिक भाषण आगरा, 18 मार्च 1956

समाज के जिम्मेदार लोगों से बाबा साहब की एक अपील

बाबा साहब डाँ. अम्बेडकर का ऐतिहासिक भाषण 
आगरा, 18 मार्च 1956 

जन समूह से -

पिछले तीस वर्षों से तुम लोगों को राजनैतिक अधिकार के लिये मै संघर्ष कर रहा हूँ। मैने तुम्हें संसद और राज्यों की विधान सभाओं में सीटों का आरक्षण दिलवाया। मैंने तुम्हारे बच्चों की शिक्षा के लिये उचित प्रावधान करवाये। आज, हम प्रगित कर सकते है। अब यह तुम्हारा कर्त्तव्य है कि शैक्षणिक, आथिर्क और सामाजिक गैर बराबरी को दूर करने हेतु एक जुट होकर इस संघर्ष को जारी रखें। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये तुम्हें हर प्रकार की कुर्बानियों के लिये तैयार रहना होगा, यहाँ तक कि खून बहाने के लिये भी।

नेताओ से-

यदि कोई तुम्हें अपने महल में बुलाता है तो स्वेच्छा से जाओ। लेकिन अपनी झौपड़ी में आग लगाकर नहीं। यदि वह राजा किसी दिन आपसे झगड़ता है और आपको अपने महल से बाहर धकेल देता है, उस समय तुम कहां जाओगे? यदि तुम अपने आपको बेचना चाहते हो तो बेचो, लेकिन किसी भी हालत में अपने संगठन को बर्वाद होने की कीमत पर नहीं। मुझे दूसरों से कोई खतरा नहीं है, लेकिन मै अपने लोगों से ही खतरा महसूस कर रहा हूँ।

भूमिहीन मजदूरों से -

मै गाँव में रहने वाले भूमिहीन मजदूरों के लिये काफी चिंतित हूँ। मै उनके लिये ज्यादा कुछ नहीं कर पाया हूँ। मै उनकी दुख तकलीफों को नजरन्दाज नहीं कर पा रहा हूँ। उनकी तबाहियों का मुख्य कारण उनका भूमिहीन होना है। इसलिए वे अत्याचार और अपमान के शिकार होते रहते हैं और वे अपना उत्थान नहीं कर पाते। मै इसके लिये संघर्ष करूंगा। यदि सरकार इस कार्य में कोई बाधा उत्पन्न करती है तो मै इन लोगों का नेतृत्व करूंगा और इनकी वैधानिक लड़ाई लडूँगा। लेकिन किसी भी हालात में भूमिहीन लोगों को जमीन दिलवाले का प्रयास करूंगा।

अपने समर्थकों से-

बहुत जल्दी ही मै तथागत बुद्ध के धर्म को अंगीकार कर लूंगा। यह प्रगतिवादी धर्म है। यह समानता, स्वतंत्रता एवं वंधुत्व पर आधारित है। मै इस धर्म को बहुत सालों के प्रयासों के बाद खोज पाया हूँ। अब मै जल्दी ही बुद्धिस्ट बन जाऊंगा। तब एक अछूत के रूप में मै आपके बीच नहीं रह पाऊँगा, लेकिन एक सच्चे बुद्धिस्ट के रूप में तुम लोगों के कल्याण के लिये संघर्ष जारी रखूंगा। मै तुम्हें अपने साथ बुद्धिस्ट बनने के लिये नहीं कहूंगा, क्योंकि मै आपको अंधभक्त नहीं बनाना चाहता परुन्त जिन्हें इस महान धर्म की शरण में आने की तमत्रा है वे बौद्ध धर्म अंगीकार कर सकते है, जिससे वे इस धर्म में द्रण विशवास के साथ रहें और बौद्धाचरण का अनुसरण करें।

बौद्ध भिक्षुओं से-

बौद्ध धम्म महान धर्म है। इस धर्म संस्थापक तथागत बुद्ध ने इस धर्म का प्रसार किया और अपनी अच्छाईयों के कारण यह धर्म भारत में दूर-दूर तक गली-कूचों में पहुंच सका। लेकिन महान उत्कर्ष पर पहुंचने के बाद यह धर्म 1213 ई. में भारत से विलुप्त हो गया जिसके कई कारण हो सकते हैं। एक प्रमुख कारण यह भी है की बौद्ध भिक्षु विलासतापूर्ण एवं आरामतलब जिदंगी जीने के आदी हो गय थे। धर्म प्रचार हेतु स्थान-स्थान पर जाने की बजाय उन्होंने विहारों में आराम करना शुरू कर दिया तथा रजबाड़ो की प्रशंसा में पुस्तकें लिखना शुरू कर दिया। अब इस धर्म की पुनरस्थापना हेतु उन्हें कड़ी मेहनत करनी पडेगी। उन्हें दरवाजे-दरवाजे जाना पडेगा। मुझे समाज में एसे बहुत कम भिक्षु दिखाई देते हैं, इसलिये जन साधारण में से अच्छे लोगों को भी इस धर्म प्रसार हेतु आगे आना चाहिये और इनके संस्कारों को ग्रहण करना चाहिये।

शासकीय कर्मचारियों से -

हमारे समाज की शिक्षा में कुछ प्रगति हुई है। शिक्षा प्राप्त करके कुछ लोग उच्च पदों पर पहूँच गये हैं परन्तु इन पढ़े लिखे लोगों ने मुझे धोखा दिया है। मै आशा कर रहा था कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे समाज की सेवा करेंगे, किन्तु मै देख रहा हूँ कि छोटे और बडे क्लर्कों की एक भीड़ एकत्रित हो गई है, जो अपनी तौदें (पेट) भरने में व्यस्त हैं। मेरा आग्रह है कि जो लोग शासकीय सेवाओं में नियोजित हैं, उनका कर्तव्य है कि वे अपने वेतन का 20वां भाग (5%) स्वेच्छा से समाज सेवा के कार्य हेतु दें। तभी समग्र समाज प्रगति कर सकेगा अन्यथा केवल चन्द लोगों का ही सुधार होता रहेगा। कोई बालक जब गांव में शिक्षा प्राप्त करने जाता है तो संपूर्ण समाज की आशायें उस पर टिक जाती हैं। एक शिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता  समाज के लिये वरदान साबित हो सकता है।

छात्रों एवं युवाओं से-

मेरी छात्रों से अपील है की शिक्षा प्राप्त करने के बाद किसी प्रकार कि क्लर्की करने के बजाय उसे अपने गांव की अथवा आस-पास के लोगों की सेवा करना चाहिये। जिससे अज्ञानता से उत्पत्र शोषण एवं अन्याय को रोका जा सके। आपका उत्थान समाज के उत्थान में ही निहित है।

"आज मेरी स्थिति एक बड़े खंभे की तरह है, जो विशाल टेंटों को संभाल रही है। मै उस समय के लिये चिंतित हूँ कि जब यह खंभा अपनी जगह पर नहीं रहेगा। मेरा स्वास्थ ठीक नहीं रहता है। मै नहीं जानता, कि मै कब आप लोगों के बीच से चला जाऊँ। मै किसी एक ऐसे नवयुवक को नहीं ढूंढ पा रहा हूँ, जो इन करोड़ों असहाय और निराश लोगों के हितों की रक्षा करने की जिम्मेदारी ले सके। यदि कोई नौजवान इस जिम्मेदारी को लेने के लिये आगे आता है, तो मै चैन से मर सकूंगा।"

(संदर्भ- सलेक्टेड आफँ डाँ अम्बेडकर - लेखक डी.सी. अहीर पृष्ठ क्रमांक 110 से 11 तक के भाषण का हिन्दी अनुवाद) 

बुद्धिजीवी साथियों से विनम्र निवेदन है कि इस ऐतिहासिक भाषण की प्रतियाँ छपवाकर समाज में वितरित करें, यह एक सामाजिक जागृति का महान दयित्व है।
(समाज हित में जारी)

☝मंजिल वही सोच नयि🙏

गुरू रैदास की हत्या

आम मान्यता के अनुसार, 
गुरू रैदास 100 वर्षो से भी ज्यादा समय तक जीवित रहे, 
अतः प्रश्न यह उठता है कि उन्होने सम्पूर्ण जीवनकाल में क्या मात्र 41 पद ही रच पायें । यह बात पूर्णत अविश्वसनीय लगता है कि, ऐसा माना जाता है कि गुरू नानक जब गुरू रैदास से मिले तब वे 41 पद को उनकी हत्या से पूर्व ही अपने साथ ले गये जिसका संकलन लगभग 150 वर्षो बाद '' गुरू ग्रन्थ साहिबा '' मे किया गया ।
प्रश्‍न यह उठता है कि शेष बाणियाँ कहा गई । माननीय चन्द्रिका प्रसाद का मानना है की गुरू रैदास की हत्या करके उनकी चिता मे उनकी समस्त बाणीया उनके शरीर के साथ आग की भेंट चढा दी गई । अगर उनकी हत्या नही की गई होती तो उनकी बाणीया अवश्य मिलती ।
प्रश्‍न यह भी है की यह नीच काम किसने किया, सीधा सा उत्तर है ऐसा काम उन्ही लोगों ने किया जिन्होंने उनके शरीर से ''जनेऊ'' निकाले थे । यह ब्राह्मणो व सामंतो ने बड़ी चतुराई से मिलकर एक षडयन्त्र के तहत जनेऊ दिखाने के बहाने उनके शरीर को राणा विक्रम सिंह चितोड़गढ़ के भरे दरबार मे गुरू रैदास का सीना चीर कर उनकी जीवन लीला समाप्त कर दी और उनके पार्थिव शरीर को मेघवालों कि बस्ती मे भिजवा दिया गया, और यह कहलवा कर कि तुम्हारे गुरू ने भीतर का जनेऊ दिखाकर सभी को चकित कर दिया और स्वेच्छा से शरीर छोड़ दिया है ।
Jaago Bahujan Jaago

Monday, February 8, 2016

अर्थव्यवस्था पर भारी आस्था

सभी से नम्र निवेदन, थोडा ध्यान से पढ़े और समझने की कोशिश करें।

  नदी में भी पैसे नहीं डालने चाहिए ।
 इसी लिए लिखा गया ।

"अर्थव्यवस्था पर भारी आस्था" एक लेख !

हमारे देश में रोज न जाने कितनी रेलगाडियां न जाने कितनी नदियों को पार करती हैं और उनके यात्रियों द्वारा हर रोज नदियों में सिक्के फेकने का चलन । अगर रोज के सिक्को के हिसाब से गढ़ना की जाये तो ये रकम कम से कम दहाई के चार अंको को तो पार करती होगी । सोचो अगर इस तरह हर रोज भारतीय मुद्रा ऐसे फेक दी जाती इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुँचता होगा ? ये तो एक अर्थशास्त्री ही बता सकता । लेकिन एक रसायनज्ञ होने के नाते ये जरूर लोगों को सिक्के की धातु के बारे में जागरूक कर सकता हूँ । वर्तमान सिक्के 83% लोहा और 17 % क्रोमियम के बने होते है । आप सबको ये बता हूँ कि क्रोमियम एक भारी जहरीली धातु है । क्रोमियम दो अवस्था में पाया जाता है, एक Cr (III) और दूसरी Cr (IV) । पहली अवस्था जहरीली नही मानी गई बल्कि क्रोमियम (IV) की दूसरी अवस्था 0.05% प्रति लीटर से ज्यादा हमारे लिए जहरीली है । जो सीधे कैंसर जैसी असाध्य बीमारी को जन्म देती है । सोचो एक नदी जो अपने आप में बहुमूल्य खजाना छुपाये हुए है और हमारे एक दो रूपये से कैसे उसका भला हो सकता है ? सिक्के फेकने का चलन तांबे के सिक्के से है । एक समय मुगलकालीन समय में दूषित पानी से बीमारियां फैली थी । तो ,राजा ने प्रजा के लिए ऐलान करवाया कि हर व्यक्ति को अपने आसपास के जल के स्रोत या जलाशयों में तांबे के सिक्के को फेकना अनिवार्य कर दिया । क्योंकि तांबा जल को शुद्ध करने वाली सबसे अच्छी धातु है । आजकल सिक्के नदी में फेकने से उसके ऊपर किसी तरह का उपकार नही बल्कि जल प्रदूषण और बीमारियों को बढ़ावा दे रहे है । इसव्लिए आस्था के नाम पर भारतीय मुद्रा को हो रहे नुकसान को रोकने की जिम्मेदारी हम सब नागरिकों की है ।
अपने नजदीकी और परिचितों को सिक्के के बदले ताम्बे के टुकड़े ,नदी या जलस्रोत में डालने को कहे।

 देशहित में सहयोग करे।जय भारत।

कृपया पुन: आपसे निवेदन कि इसे आप अपने मित्रों, बच्चो' तथा अशिक्षित ब्यक्तियों को विशेष रूप समझाये ताकि अज्ञानता में गलती न हो ।

बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के अंग्रेजी और मराठी में लिखे मूल संकलन के कॉपीराइट्स प्रकाश आंबेडकर के पास हैं


बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर की 125वीं जयंती के मौके पर होने वाले आयोजनों में उनके मूल लेखन कार्यों के संकलन का प्रकाशन करने की केंद्र सरकार की योजना कॉपीराइट के झमेले में फंस गई है। केंद्र सरकार बाबा साहेब के अंग्रेजी वाले लेखन के संकलन की प्रिंटिंग के लिए 14 अप्रैल की डेडलाइन पूरी करने में जुटी हुई है, लेकिन उनके पौत्र प्रकाश आंबेडकर ने प्रकाशन की इजाजत देने से मना कर दिया है। इसी दिन आंबेडकर जयंती के मौके पर होने वाले आयोजनों का समापन होना है।

बाबासाहेब के अंग्रेजी और मराठी में लिखे मूल संकलन के कॉपीराइट्स प्रकाश आंबेडकर के पास हैं। महाराष्ट्र सरकार के साथ कॉपीराइट विवाद बरसों से चल रहा है। राज्य सरकार ने डॉक्टर आंबेडकर के संकलित लेखन कार्यों के प्रकाशन के लिए प्रकाश के साथ करार किया था, जो 1990 के दशक में खत्म हो गया। तब से महाराष्ट्र सरकार प्रकाश आंबेडकर के साथ मतभेद सुलझाने की कोशिश में लगी रही और सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत आंबेडकर फाउंडेशन को 2013 में उनके संकलन की कॉपी के दोबारा प्रकाशन की इजाजत दे दी।

हालांकि केंद्र को महाराष्ट्र सरकार से इजाजत मिलने पर डॉक्टर बाबासाहेब आंबेडकर सोर्स मटीरियल पब्लिकेशन कमिटी ने आपत्ति की तो 2014 में प्रकाशन रोक दिया गया, लेकिन उससे पहले फाउंडेशन लगभग एक हजार कॉपी छाप चुका था। उसके बाद से सेंटर को आंबेडकर के लेखन कार्यों का प्रकाशन करने की इजाजत नहीं है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने जयंती के मौके पर होने वाले आयोजनों के तहत ट्रांसलेशन और प्रिंटिंग की पहल की है। मिनिस्ट्री इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को कम से कम 12 लेटर लिख चुकी है।

प्रकाश आंबेडकर ने कहा, 'कॉपीराइट मेरे पास है, इसलिए उसे देने का फैसला मैं ही करूंगा। मैंने फिलहाल कॉपीराइट किसी को नहीं दिया है।' प्रकाश ने BJP और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की मंशा पर संदेह जताते हुए कहा कि सरकार आंबेडकर विरोध का काम कर रही है। उन्होंने कहा वह उन पुरानी बातों को नहीं भूल सकते, जब आंबेडकरवादियों को BJP और RSS के खिलाफ खड़ा दिखाया गया था। जब शंकरराव चव्हाण के समय आंबेडकर के संपूर्ण लेखन कार्यों का प्रकाश हो रहा था, तब वे हमारे खिलाफ थे। हम उसे नहीं भूलेंगे। BJP और RSS हमारे खिलाफ थे।'

RTI के जरिए हासिल किए गए दस्तावेजों से पता चलता है कि कैसे केंद्र आंबेडकर के संपूर्ण संकलन के प्रकाशन के लिए सितंबर 2014 से महाराष्ट्र सरकार से बार-बार इजाजत मांग रहा है। गौरतलब है कि बाबासाहेब के संकलित कार्यों का कॉपीराइट जनवरी 2017 में खत्म हो रहा है।   http://m.navbharattimes.indiatimes.com/india/125th-birth-anniversary-celebrations-ambedkar-works-reprint-runs-into-copyright-trouble/articleshow/50843983.cms?utm_source=facebook.com&utm_medium=referral&utm_campaign=Copyright040216   प्रकाश सर निर्णय बहुत सटीक हे वो इन लोगों का बारिकी से समझते हें 🙏🌷 जय भीम

वे कौन हैं जो मुस्लिम महिलाओं को लूट व अंधविश्वास के केंद्र- मजार और दरगाह में प्रवेश की लड़ाई को सशक्तिकरण का नाम दे रहे हैं?



वे कौन हैं जो मुस्लिम महिलाओं को लूट व अंधविश्वास के केंद्र- मजार और दरगाह में प्रवेश की लड़ाई को सशक्तिकरण का नाम दे रहे हैं?

सवाल पैदा होता है कि असल समस्याओं से जूझती मुस्लिम महिलाओं को इस नकली समस्या में क्यों घसीटा जा रहा है? वो कौन लोग हैं जिन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, तीन-तलाक, भगोड़े पति, पति की दूसरी शादी से उत्पन्न अभाव, परिवार नियोजन का अभाव, जात-पात, दहेज, दंगों में सामूहिक बलात्कार जैसी भयानक समस्याओं के निराकरण के बजाए हाजी अली दरगाह के गर्भ-गृह में दाखिले को मुस्लिम महिलाओं का राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की सूझी है?


शीबा असलम फ़हमी

February 4, 2016

Comment


Photograph: Andreas Werth/Alamy

भारत की मुस्लिम बेटियां समाज का सबसे अशिक्षित वर्ग हैं, सम्मानित रोजगार में उनकी तादाद सबसे कम है, अपने ही समाज में दहेज के कारण ठुकराई जा रही हैं, गरीबी-बेरोजगारी और असंगठित क्षेत्र की शोषणकारी व्यवस्था की मजदूरी में पिस रही हैं. मुजफ्फरनगर, अहमदाबाद और सूरत दंगों में सामूहिक बलात्कार की शिकार महिलाएं सामाजिक पुनर्वास की बाट जोह रही हैं. तीन तलाक की तलवार उनकी गर्दन पर लटकती रहती है, कश्मीर की एक लाख से ज्यादा बेटियां 'हाफ-विडो' यानी अर्द्ध-विधवा होकर जिंदा लाश बना दी गई हैं. जब पड़ोस में तालिबान अपनी नाफरमान बेटी-बीवी को बीच चौराहे गोली से उड़ा रहा हो, जब आईएसआईएस यौन-गुलामी की पुनर्स्थापना इस्लाम के नाम पर कर रहा हो- ऐसे में वे कौन लोग हैं जो मुस्लिम महिलाओं को पंडावादी लूट, अराजकता, गंदगी और अंधविश्वास के केंद्र- मजार और दरगाह के 'गर्भ-गृह' में प्रवेश की लड़ाई को सशक्तिकरण और नारीवाद का नाम देकर असली लड़ाइयों से ध्यान हटा रहे हैं? 

भारतीय मुस्लिम समाज में अकीदे यानी आस्था के नाम पर चल रहे गोरखधंधे का सबसे विद्रुप, शोषणकारी रूप हैं दरगाहें, जहां परेशानहाल, गरीब, बीमार, कर्ज में दबे हुए, डरे हुए लाचार मन्नत मांगने आते हैं और अपना पेट काटकर धन चढ़ाते हैं ताकि उनकी मुराद पूरी हो सके. तीसरी दुनिया के देशों में जहां भ्रष्ट सरकारें स्वास्थ्य, शिक्षा, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, सामाजिक सुरक्षा जैसे अपने बुनियादी फर्ज पूरा करने में आपराधिक तौर पर नाकाम रही हैं वहीं परेशान हाल अवाम भाग्यवादी, अंधविश्वासी होकर जादू-टोना-झाड़-फूंक, मन्नतवादी होकर पंडों, ओझा, जादूगर, बाबा-स्वामी, और मजारों के सज्जादानशीं-गद्दीनशीं-खादिम के चक्करों में पड़कर शोषण का शिकार होती है. ऐसे में मनौती का केंद्र ये मजारें और दरगाह के खादिम और सज्जादानशीं मुंहमांगी रकम ऐंठते हैं. अगर कोई श्रद्धालु प्रतिवाद करे तो घेरकर दबाव बनाते हैं, जबरदस्ती करते हैं, वरना बेइज्जत करके चढ़ावा वापस कर देते हैं. जियारत कराने, चादर चढ़ाने और तबर्रुख (प्रसाद) दिलाने की व्यवस्था करवाने वाले को खादिम कहते हैं, जिसका एक रेट या मानदेय होता है. अजमेर जैसी नामी-गिरामी दरगाह में खादिमों के अलग-अलग दर्जे भी हैं, यानी अगर आप उस खादिम की सेवा लेते हैं जो कैटरीना कैफ, सलमान खान जैसे ग्लैमरस सितारों की जियारत करवाते हैं तो आपको मोटी रकम देनी होगी. 

अजमेर दरगाह के आंगन में दर्जनों गद्दीनशीं अपना-अपना 'तकिया' सजाए बैठे हैं जिन पर नाम और पीर के सिलसिले की छोटी-छोटी तख्ती भी लगी हैं. यहां पीर लोग अपने मुरीद बनाते हैं. पीरी-मुरीदी यूं तो गुरु द्वारा सूफीवाद में दीक्षित करना होता है लेकिन असल में ये एक तरह की अंधभक्ति है जिसमे पीर अपने मुरीद का किसी भी तरह का दोहन-शोषण करता है. मुरीद जिस भी शहर या गांव का है वो वहां अपने प्रभाव-क्षेत्र में अपने पीर को स्थापित करने में लग जाता है. उनके लिए चंदा जमा करता है, उनके पधारने पर आलिशान दावतें करता है, तोहफे देता है, खर्च उठाता है.  

मुरीदों की संख्या ही पीर की शान और रुतबा तय करती है. पीर पर मुरीदों द्वारा धन-दौलत लुटाने की तमाम कहानियां किवदंती बन चुकी हैं. जिस पीर के जितने धनी मुरीद उसकी साख और लाइफस्टाइल उतनी ही शानदार. दिल्ली की निजामुद्दीन दरगाह के सज्जादानशीं ख़्वाजा हसन सानी निजामी (उनसे पारिवारिक संबंध रहे हैं) ने यूं ही फरमाया था, 'अगर मैं बता दूं कि मेरे मुरीद कितना रुपया भेजते हैं तो आंखें चुधिया जाएंगी.' मुरीद हाथ का बोसा लेते हैं और हर बोसे पर हथेली में नोटों की तह दबा देते हैं. कहते हैं की ख्वाजा हसन सानी निजामी के पिता अपने शुरुआती दिनों में दरगाह के बाहर सड़क पर कपड़ा बिछाकर मामूली किताबें बेचा करते थे. फिर उन्हें दरगाह के अंदर की व्यवस्था में दाखिला मिल गया, और वो सज्जादानशीं बन गए, कहा जाता है कि जब वे मरे तो 30 से ज्यादा जायदादों की रजिस्ट्री छोड़ गए और निजामुद्दीन औलिया के साथ-साथ उनके भी सालाना दो-दो उर्स होने लगे, जिनमें उनके मुरीद चढ़ावा चढ़ाते हैं. ये सिर्फ एक सज्जादानशीन की मिसाल है. हर दरगाह में दर्जनों सज्जादानशीन होते हैं. आपस में चढ़ावा बांटने के लिए उनके दिन तय होते हैं. ये 'कमाई' सीधे उनकी जेब में जाती है. ये इतना लाभकारी धंधा है कि इसके लिए कत्ल भी हो जाते हैं.

21वीं सदी की दूसरी दहाई में जब मर्दों को भी दरगाहों से बचाना था, ताकि वो भी इस अंधविश्वास, शोषण और अराजकता से बच सकें, तब महिलाओं को शोषण में लपेटने का एजेंडा नारीवाद कैसे हुआ? मर्दों से बराबरी के नाम पर समाज में गैरवैज्ञानिकता, अंधविश्वास और शोषण को विस्तार देना नारी-सशक्तिकरण कैसे हुआ?

मुंबई की हाजी अली दरगाह एक फिल्मी दरगाह है जिसकी ख्याति अमिताभ बच्चन की फिल्म कुली से और भी बढ़ गई थी, यहां फिल्मों की शूटिंग आम बात है. पिछले कुछ सालों से वहां के मुतवल्ली (कर्ता-धर्ता) और सज्जादनशीनों ने महिलाओं को कब्र वाले हुजरे में न आने देने का फैसला किया है. उनका तर्क है, 'कब्र में दफ्न बुजुर्ग को मजार पर आने वाली महिलाएं निर्वस्त्र नजर आती हैं, लिहाजा महिलाएं कब्र की जगह तक नहीं जाएंगी, कमरे के बाहर से ही जाली पर मन्नत का धागा बांध सकती हैं.' जबकि भारत के शहरों में कब्रिस्तान बस्तियों के बीच ही हैं और वहां महिलाओं की आवाजाही आम बात है. अकबर, हुमायूं, जहांगीर, सफदरजंग, लोधी, चिश्ती, और गालिब तक की मजारों/मकबरों में महिलाएं बेरोक-टोक जाती हैं. दिल्ली की निजामुद्दीन औलिया की मजार पर भी जाती हैं और उत्तर भारत में स्थित सैकड़ों दरगाहों पर भी जाती हैं. सिर्फ हाजी अली दरगाह पर इस हालिया पाबंदी को वहां के कर्ता-धर्ता अब व्यवस्था बनाए रखने का मामला भी बता रहे हैं. कुल मिलाकर एक भी ढंग का तर्क सामने नहीं आया है. 

ऐसे में सवाल पैदा होता है कि असल समस्याओं से जूझती मुस्लिम महिलाओं को इस नकली समस्या में क्यों घसीटा जा रहा है? वो कौन लोग हैं जिन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, तीन-तलाक, भगोड़े पति, पति की दूसरी शादी से उत्पन्न अभाव, परिवार नियोजन का अभाव, जात-पात, दहेज, दंगों में सामूहिक बलात्कार जैसी भयानक समस्याओं के निराकरण के बजाए हाजी अली दरगाह के गर्भ-गृह में दाखिले को मुस्लिम महिलाओं का राष्ट्रीय मुद्दा बनाने की सूझी है? इस मुहिम के कानूनी खर्च जो महिला एनजीओ उठा रहे हैं उनकी फंडिंग कहां से होती है? तीसरी दुनिया के देशों में जमीन से जुड़े जन आंदोलनों को एनजीओ द्वारा आर्थिक लाभ देकर भ्रष्ट करने के कई मामले जगजाहिर हैं. क्या अब भारतीय मुसलमान भी इनकी निगाहों में चढ़ चुका है?

कुछ मंदिरों में स्त्री-प्रवेश का संघर्ष हिंदू-महिलाएं कर रही हैं इसलिए नकल करना जरूरी हो गया चाहें ये कितना भी आत्मघाती, पोंगापंथी और वाहियात क्यों न हो? क्या मुस्लिम महिलाएं समाज में मौजूद ऐसी बुराइयों को खत्म करने की लड़ाई लड़ने के बजाय उन्हें बढ़ावा देंगी? बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के जिस संविधान से मुस्लिम महिलाएं बराबरी के हक के नाम पर ये पोंगापंथ को अपनाने का आग्रह कर रही हैं, उन्हीं आंबेडकर ने मंदिर प्रवेश के संघर्ष को बेकार बताते हुए मंदिर-पुजारी व्यवस्था से किनारा करने की बात कही थी और बेहतर शिक्षा और आर्थिक खुशहाली पर बल दिया था 

21वीं सदी की दूसरी दहाई में जब मर्दों को भी दरगाहों से बचाना था, ताकि वो भी इस अंधविश्वास, शोषण और अराजकता से बच सकें, तब महिलाओं को शोषण में लपेटने का एजेंडा नारीवाद कैसे हुआ? मर्दों से बराबरी के नाम पर समाज में गैरवैज्ञानिकता, अंधविश्वास और शोषण को विस्तार देना नारी-सशक्तिकरण कैसे हुआ? दरगाहों पर श्रद्धालु बनकर खुद का शोषण करवाने की होड़ बताती है कि एनजीओ सेक्टर में सक्रिय ये मुस्लिम महिलाएं असली और छद्म मुद्दों में फ‌र्क भी नहीं जानती हैं? क्योंकि कुछ मंदिरों में स्त्री-प्रवेश का संघर्ष हिंदू-महिलाएं कर रही हैं इसलिए नकल करना जरूरी हो गया चाहें ये कितना भी आत्मघाती, पोंगापंथी और वाहियात क्यों न हो? क्या मुस्लिम महिलाएं समाज में मौजूद ऐसी बुराइयों को खत्म करने की लड़ाई लड़ने के बजाय उन्हें बढ़ावा देंगी? बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के जिस संविधान से मुस्लिम महिलाएं बराबरी के हक के नाम पर ये पोंगापंथ को अपनाने का आग्रह कर रही हैं, उन्हीं आंबेडकर ने मंदिर प्रवेश के संघर्ष को बेकार बताते हुए मंदिर-पुजारी व्यवस्था से किनारा करने की बात कही थी और बेहतर शिक्षा और आर्थिक खुशहाली पर बल दिया था जिससे व्यक्ति समाज में सम्मानीय स्थान पाता है..........................by Sheeba Aslam Fehmi

राम राज्य - ओशो

🎯 राम राज्य - ओशो

 राम के समय को तुम
रामराज्य कहते हो।
हालात आज से भी बुरे थे। कभी भूल कर रामराज्य फिर मत ले आना!
एक बार जो भूल हो गई, हो गई।
अब दुबारा मत करना।
राम के राज्य में आदमी बाजारों में गुलाम की तरह बिकते थे। कम से कम आज आदमी बाजार में गुलामों की तरह तो नहीं बिकता!
और जब आदमी गुलामों की तरह बिकते रहे होंगे,
तो दरिद्रता निश्चित रही होगी, नहीं तो कोई बिकेगा कैसे? किसलिए बिकेगा?
दीन और दरिद्र ही बिकते होंगे। कोई अमीर तो बाजारों में बिकने न जाएंगे।
कोई टाटा, बिड़ला, डालमिया तो बाजारों में बिकेंगे नहीं।
स्त्रियां बाजारों में बिकती थीं!
वे स्त्रियां गरीबों की स्त्रियां ही होंगी।
उनकी ही बेटियां होंगी।
कोई सीता तो बाजार में नहीं बिकती थी।
उसका तो स्वयंवर होता था।
तो किनकी बच्चियां बिकती थीं बाजारों में?
और हालात निश्चित ही भयंकर रहे होंगे।
क्योंकि बाजारों में ये बिकती स्त्रियां और लोग--आदमी और औरतें दोनों,
विशेषकर स्त्रियां--राजा तो खरीदते ही खरीदते थे,
धनपति तो खरीदते ही खरीदते थे, जिनको तुम ऋषि-मुनि कहते हो, वे भी खरीदते थे! गजब की दुनिया थी!
ऋषि-मुनि भी बाजारों में बिकती हुई स्त्रियों को खरीदते थे! 
अब तो हम भूल ही गए वधु शब्द का असली अर्थ।
अब तो हम शादी होती है नई-नई, तो वर-वधु को आशीर्वाद देने जाते हैं।
हमको पता ही नहीं कि हम किसको आशीर्वाद दे रहे हैं! राम के समय में--और राम के पहले भी--
वधु का अर्थ होता था,
खरीदी गई स्त्री!
जिसके साथ तुम्हें पत्नी जैसा व्यवहार करने का हक है, लेकिन उसके बच्चों को तुम्हारी संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं होगा!
पत्नी और वधु में यही फर्क था। सभी पत्नियां वधु नहीं थीं, और सभी वधुएं पत्नियां नहीं थीं। वधु नंबर दो की पत्नी थी।
जैसे नंबर दो की
बही होती है न,
जिसमें चोरी-चपाटी का सब लिखते रहते हैं!
ऐसी नंबर दो की पत्नी थी वधु।
ऋषि-मुनि भी वधुएं रखते थे! और तुमको यही भ्रांति है कि ऋषि-मुनि गजब के लोग थे।
इन ऋषि-मुनियों में और तुम्हारे पुराने ऋषि-मुनियों में बहुत फर्क मत पाना तुम। कम से कम इनकी वधुएं तो नहीं हैं! कम से कम ये बाजार से स्त्रियां तो नहीं खरीद ले आते! इतना बुरा आदमी तो आज पाना मुश्किल है जो बाजार से स्त्री खरीद कर लाए। आज यह बात ही अमानवीय मालूम होगी। मगर यह जारी थी!
रामराज्य में शूद्र को हक नहीं था वेद पढ़ने का! यह तो कल्पना के बाहर थी बात कि डाक्टर अंबेडकर जैसे शूद्र और राम के समय में भारत के विधान का रचयिता हो सकता था ! ?????
असंभव।
खुद राम ने एक शूद्र के कानों में सीसा पिघलवा कर भरवा दिया था--गरम सीसा,
उबलता हुआ सीसा!
क्योंकि उसने चोरी से, कहीं वेद के मंत्र पढ़े जा रहे थे, वे छिप कर सुन लिए थे। यह उसका पाप था;
यह उसका अपराध था। और राम तुम्हारे मर्यादा पुरुषोत्तम हैं! राम को तुम अवतार कहते हो! और महात्मा गांधी रामराज्य को फिर से लाना चाहते थे। क्या करना है?
शूद्रों के कानों में फिर से सीसा पिघलवा कर भरवाना है? उसके कान तो फूट ही गए होंगे।
शायद मस्तिष्क भी विकृत हो गया होगा।
उस गरीब पर क्या गुजरी, किसी को क्या लेना-देना! शायद आंखें भी खराब हो गई होंगी। क्योंकि ये सब जुड़े हैं; कान, आंख, नाक, मस्तिष्क, सब जुड़े हैं।
और दोनों कानों में अगर सीसा उबलता हुआ...! 
तुम्हारा खून क्या खाक उबल रहा है !
उबलते हुए शीशे की जरा
कल्पना करो!!!
सोचो!
उबलता हुआ सीसा जब कानों में भर दिया गया होगा,
तो चला गया होगा पर्दों को तोड़ कर,
भीतर मांस-मज्जा तक को प्रवेश कर गया होगा;
मस्तिष्क के स्नायुओं तक को जला गया होगा।
फिर इस गरीब पर क्या गुजरी, किसी को क्या लेना-देना है! धर्म का कार्य पूर्ण हो गया। ब्राह्मणों ने आशीर्वाद दिया कि राम ने धर्म की रक्षा की।
यह धर्म की रक्षा थी!
और तुम कहते हो,
"मौजूदा हालात खराब हैं!'
युधिष्ठिर जुआ खेलते हैं, फिर भी धर्मराज थे!
और तुम कहते हो, मौजूदा हालात खराब हैं!
आज किसी जुआरी को धर्मराज कहने की हिम्मत कर सकोगे?
और जुआरी भी कुछ छोटे-मोटे नहीं,
सब जुए पर लगा दिया।
पत्नी तक को दांव पर लगा दिया!
एक तो यह बात ही अशोभन है, क्योंकि पत्नी कोई संपत्ति नहीं है।
मगर उन दिनों यही धारणा थी, स्त्री-संपत्ति!
उसी धारणा के अनुसार आज भी जब बाप अपनी बेटी का विवाह करता है,
तो उसको कहते हैं कन्यादान! क्या गजब कर रहे हो! गाय-भैंस दान करो तो भी समझ में आता है।
कन्यादान कर रहे हो! यह दान है? स्त्री कोई वस्तु है?
ये असभ्य शब्द, ये असंस्कृत हमारे प्रयोग शब्दों के बंद होने चाहिए। अमानवीय हैं,
अशिष्ट हैं, असंस्कृत हैं। 
मगर युधिष्ठिर धर्मराज थे। और दांव पर लगा दिया अपनी पत्नी को भी! हद्द का दीवानापन रहा होगा।
पहुंचे हुए जुआरी रहे होंगे। इतना भी होश न रहा। और फिर भी धर्मराज धर्मराज ही बने रहे; इससे कुछ अंतर न आया। इससे उनकी प्रतिष्ठा में कोई भेद न पड़ा। इससे उनका समादर जारी रहा।
भीष्म पितामह को ब्रह्मज्ञानी समझा जाता था। मगर ब्रह्मज्ञानी कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे! गुरु द्रोण को ब्रह्मज्ञानी समझा जाता था। मगर गुरु द्रोण भी कौरवों की तरफ से युद्ध लड़ रहे थे! अगर कौरव अधार्मिक थे,
दुष्ट थे, तो कम से कम भीष्म में इतनी हिम्मत तो होनी चाहिए थी!
और बाल-ब्रह्मचारी थे और इतनी भी हिम्मत नहीं?
तो खाक ब्रह्मचर्य था यह!
किस लोलुपता के कारण गलत लोगों का साथ दे रहे थे?
और द्रोण तो गुरु थे अर्जुन के भी, और अर्जुन को बहुत चाहा भी था।
लेकिन धन तो कौरवों के पास था;
पद कौरवों के पास था; प्रतिष्ठा कौरवों के पास थी।
संभावना भी यही थी कि वही जीतेंगे।
राज्य उनका था। पांडव तो भिखारी हो गए थे। इंच भर जमीन भी कौरव देने को राजी नहीं थे।
और कसूर कुछ कौरवों का हो, ऐसा समझ में आता नहीं। जब तुम्हीं दांव पर लगा कर सब हार गए, तो मांगते किस मुंह से थे? मांगने की बात ही गलत थी। जब हार गए तो हार गए। खुद ही हार गए, अब मांगना क्या है? 
लेकिन गुरु द्रोण भी अर्जुन के साथ खड़े न हुए; खड़े हुए उनके साथ जो गलत थे।
यही गुरु द्रोण एकलव्य का अंगूठा कटवा कर आ गए थे अर्जुन के हित में, क्योंकि तब संभावना थी कि अर्जुन सम्राट बनेगा। तब इन्होंने एकलव्य को इनकार कर दिया था शिक्षा देने से। क्यों? क्योंकि शूद्र था।
और तुम कहते हो, "मौजूदा हालात बिलकुल पसंद नहीं!' 
एकलव्य को मौजूदा हालात उस समय के पसंद पड़े होंगे? उस गरीब का कसूर क्या था अगर उसने मांग की थी, प्रार्थना की थी कि मुझे भी स्वीकार कर लो शिष्य की भांति, मुझे भी सीखने का अवसर दे दो? लेकिन नहीं,
शूद्र को कैसे सीखने का अवसर दिया जा सकता है!
मगर एकलव्य अनूठा युवक रहा होगा।
अनूठा इसलिए कहता हूं कि उसका खून नहीं खौला।
खून खौलता तो साधारण युवक, दो कौड़ी का। सभी युवकों का खौलता है,
इसमें कुछ खास बात नहीं। उसका खून नहीं खौला।
शांत मन से उसने इसको स्वीकार कर लिया। एकांत जंगल में जाकर गुरु द्रोण की प्रतिमा बना ली। और उसी प्रतिमा के सामने शर-संधान करता रहा। उसी के सामने धनुर्विद्या का अभ्यास करता रहा। अदभुत युवक था। उस गुरु के सामने धनुर्विद्या का अभ्यास करता रहा जिसने उसे शूद्र के कारण इनकार कर दिया था; अपमान न लिया। अहंकार पर चोट तो लगी होगी, लेकिन शांति से, समता से पी गया।
धीरे-धीरे खबर फैलनी शुरू हो गई कि वह बड़ा निष्णात हो गया है। तो गुरु द्रोण को बेचैनी हुई, क्योंकि बेचैनी यह थी कि खबरें आने लगीं कि अर्जुन उसके मुकाबले कुछ भी नहीं। और अर्जुन पर ही सारा दांव था।
अगर अर्जुन सम्राट बने, और सारे जगत में सबसे बड़ा धनुर्धर बने, तो उसी के साथ गुरु द्रोण की भी प्रतिष्ठा होगी। उनका शिष्य, उनका शागिर्द ऊंचाई पर पहुंच जाए, तो गुरु भी ऊंचाई पर पहुंच जाएगा। उनका सारा का सारा न्यस्त स्वार्थ अर्जुन में था। और एकलव्य अगर आगे निकल जाए, तो बड़ी बेचैनी की बात थी। 
तो यह बेशर्म आदमी, जिसको कि ब्रह्मज्ञानी कहा जाता है, यह गुरु द्रोण, जिसने इनकार कर दिया था एकलव्य को शिक्षा देने से, यह उससे दक्षिणा लेने पहुंच गया! शिक्षा देने से इनकार करने वाला गुरु, जिसने दीक्षा ही न दी, वह दक्षिणा लेने पहुंच गया! हालात बड़े अजीब रहे होंगे! शर्म भी कोई चीज होती है! इज्जत भी कोई बात होती है! आदमी की नाक भी होती है! ये गुरु द्रोण तो बिलकुल नाक-कटे आदमी रहे होंगे! किस मुंह से--जिसको दुत्कार दिया था--उससे जाकर दक्षिणा लेने पहुंच गए! 
और फिर भी मैं कहता हूं, एकलव्य अदभुत युवक था; दक्षिणा देने को राजी हो गया। उस गुरु को, जिसने दीक्षा ही नहीं दी कभी! यह जरा सोचो तो! उस गुरु को, जिसने दुत्कार दिया था और कहा कि तू शूद्र है! हम शूद्र को शिष्य की तरह स्वीकार नहीं कर सकते!
बड़ा मजा है! जिस शूद्र को शिष्य की तरह स्वीकार नहीं कर सकते, उस शूद्र की भी दक्षिणा स्वीकार कर सकते हो! मगर उसमें षडयंत्र था, चालबाजी थी। 
उसने चरणों पर गिर कर कहा, आप जो कहें। मैं तो गरीब हूं, मेरे पास कुछ है नहीं देने को। मगर जो आप कहें, जो मेरे पास हो, तो मैं देने को राजी हूं। यूं प्राण भी देने को राजी हूं।
तो क्या मांगा? मांगा कि अपने दाएं हाथ का अंगूठा काट कर मुझे दे दे!
जालसाजी की भी कोई सीमा होती है! अमानवीयता की भी कोई सीमा होती है! कपट की, कूटनीति की भी कोई सीमा होती है! और यह ब्रह्मज्ञानी! उस गरीब एकलव्य से अंगूठा मांग लिया। और अदभुत युवक रहा होगा,
दे दिया उसने अपना अंगूठा! तत्क्षण काट कर अपना अंगूठा दे दिया! जानते हुए कि दाएं हाथ का अंगूठा कट जाने का अर्थ है कि मेरी धनुर्विद्या समाप्त हो गई। अब मेरा कोई भविष्य नहीं। इस आदमी ने सारा भविष्य ले लिया। शिक्षा दी नहीं, और दक्षिणा में, जो मैंने अपने आप सीखा था, उस सब को विनिष्ट कर दिया।||

चमत्कार गढ़े जाते हैं, क्योंकि मूढ़ो को प्रभावित करने का और कोई उपाय नहीं

चमत्कार गढ़े जाते हैं, क्योंकि मूढ़ो को प्रभावित करने का और कोई उपाय नहीं। 🎆
बंगाल में एक बंगाली बाबा बहुत प्रसिद्ध थे, क्योंकि की उन्होने एक दफे चमत्कार दिखाया। ऐसे लोगो की भीड़ लग गई होगी। चमत्कार उन्होंने यह दिखायी कि वे ट्रेन में सवार हुए, टिकट कलेक्टर आया, उसने पुछा की टिकट दिखाइए। उन्होंने कहा कि शब्द अपने वापस ले लो। हम फकीरों से कोई टिकट नही मांग सकता। टिकट कलेक्टर भी गुस्से में आ गया। अंग्रेजों के जमाने की बात है। अंग्रेज रहा होगा। उसने कहाः'इस तरह बदतमीजी की बात नहीं चलेगी। बाबा हो अपने घर के। यह सरकारी रेलगाड़ी है। टिकट के बिना अंदर नहीं चलने दूंगा। बाबा भी गुस्से में आ गये। 'बाबा ने कहा देखूं मुझे कौन चलने से रोकता है। बात चड़ गयी। बात मैं बात निकली। उस अंग्रेज कंडेकटर ने उसको धक्का देकर बाहर निकल दिया। बाबा नीचे उतर गए, लेकिन अपना डंडा टेक कर खडे़ हो गए और कहा कि देखो यह गाड़ी कैसे चलती है! इंच भर सरक जाए! अब गार्ड झंडी दिखा रहा है और ड्राइवर सब तरह की कोशिश कर रहा है,सीटी पर सीटी बज रही है, मगर गाड़ी टस से मस नही हो रही। तहलका मच गया। पुरे स्टेशन की भीड़ इकठ्ठी हौ गयी, सारे यात्री इकठ्ठे हो गए। बंगाली बाबा ने गजब कर दिया, गाड़ी रोक दी! ड्राइवर कहे :में चकित हुं, इंजन में कुछ खराबी नहीं है। सब ठीक है चलता नहीं।'स्टेशन मास्टर दौड़ा फिर रहा है, आफिसर भागे फिर रहे हैं, मगर कोई उपाय नहीं। आखिर स्टेशन मास्टर ने कहा टिकट कलेक्टर को की भैया माफी मांग लो और बाबा को कहो कि आप विराजो अंदर और गाड़ी चलने दो। लोगों को हजार कामो पर जाना है। अब लोग मेरी जान खा रे है कोई कहता है अदालत जाना है, कोई कहता है मुझे दफ्तर जाना है और यह गाड़ी तब तक रुकी रहेगी? पहले तो आनाकानी की टिकिट कलेक्टर ने, लेकिन जब देखा कि मारपीट की नौबत खड़ी हो गई है,भीड़ इकठ्ठी हो गयी, भीड़ ने कहा :'पिटाई कर देंगे! हमारे साधु महाराज का तुमने अपमान किया है। माफी मांगो जबरदस्ती माफी मंगवायी। लेकिन बंगाली बाबा ने कहा कि पहले नारियल लाओ। जब तक नारियल नहीं चढ़ेगा, बाबा भी नहीं गाड़ी नहीं चढ़ेगा। जल्दी भागा - भाग की गई, कहीं से नारियल लाया गया। नारियल, मिठाई, फूल चरणों में चढ़ाएं। कहा :' मांगो माफी! पैर छुऔ! और आइंदा ख्याल रखना, कभी किसी फकीर को टिकट मत पूछना। पूछेंगे टिकट, खतरा हो जाएगा 'फिर बाबा गाड़ी में प्रविष्ट हुए और गाड़ी चली। ये बंगाली बाबा ईमानदार आदमी थे। जिन्दगी भर लोग उनसे पूछते रहे की राज क्या था, आपने किस तरकीब से गाड़ी रोक दी? मरते वकत उन्होंने कहा :अब तो मै मर ही रहा हु, अब सच्ची बात बता दूं। सच बात यह है कि टिकिट कलेक्टर, गार्ड और ड्राइवर तीनों को मेने रिश्वत दी थी। ये तीनों मेरे आदमी थे और फिर गाड़ी रुकने में क्या दिक्कत है और एक दफे यह चमत्कार दिखाना था, दिखा दिया कि सारे बंगाल में शौहरत फैल गई, हजारों - हजारों लाखों लोग आते थे बंगाली बाबा के दर्शन करने। तुम जिसको चमत्कार कहते हो वे चमत्कार वगैरह कुछ नहीं होते:उस सब के पीछे हिसाब होते हैं, गणित होते हैं। ओशो

दगडू शिंदे जल विभाग में इंजिनियर बन गए

एक बार दगडू शिंदे जल विभाग में इंजिनियर बन गए | आरक्षण से नौकरी मिल गई तो मंदिर में चढ़ावा चढ़ा आये | थोडा समय हुआ तो प्रोन्नति में आरक्षण से प्रोन्नति भी पा गए | बड़े खुश हुए | अब तो घर में भगवान गणेश आयोजन हुआ, सत्यनारायण कथा का आयोजन हुआ और माता का जागरण कराकर ब्राह्मण  को भोजन करवाया | समय बदला और प्रोन्नति में आरक्षण ख़त्म कर दिया गया और इसके वजह से प्रोन्नति पाए हुए सभी अधिकारी कर्मचारी अवनत हो गए | अब दगडू शिंदे बड़े दुखी हुए | सीधे भगवान की शरण में पहुँच गए | भगवान भी प्रसन्न होकर तुरंत प्रकट हो गए |
भगवान : कहो वत्स ! क्या परेशानी है ?
दगडू शिंदे : हे ! प्रभु मेरा डिमोशन हो गया है | 
भगवान : इसमें मैं क्या कर सकता हूँ ?
दगडू शिंदे : भगवान मैं चाहता हूँ कि मेरा फिर से प्रमोशन हो जाये |
भगवान गणेश : सा** ( लात मारते हुए )मुजे क्या तुमने सेवायोजन मंत्री समझ रखा हे | जो तेरा प्रमोशन करवा दूंगा |
दगडू शिंदे : प्रभु ! सब कुछ आपकी मर्जी से हो होता है | आपकी मर्जी के बिना कुछ नहीं होता है |
भगवान  : अगर सब कुछ मैं ही करता तो फिर संविधान की जरुरत ही क्या थी ? भीमराव आंबेडकर ने संविधान बनाकर हमारा सर्वनाश कर दिया, ३३ करोड देवी देवताओं कि नसबंदी करवा गई और कहते हो कि नौकरी लगवा दो |
दगडू शिंदे : प्रभु आप ये क्या कह रहे हैं ?
भगवान् : हरामखोर हमारा वश चलता तो तुम्हारे जैसे लोगो को पढने ही नहीं देते | इसलिए हजारों साल तुम्हारे बाप दादा को शिक्षा, संपत्ती और शस्त्र रखने से पाबंदी कि थी. तुम्हे हक्क अधिकार से वंचित रखा था. अंग्रेजो का साथ सहयोग लेकर भीमराव आंबेडकर ने हमारा सत्यानाश कर दिया.
दगडू शिंदे : प्रभु मैंने तो आपको नौकरी लगने से लेकर प्रमोशन होने तक हर जगह चढ़ावा चढ़ाया है |
भगवान : अबे हरामखोर जब हमने पढने का ही अधिकार नहीं दिया तो नौकरी और प्रोन्नति कैसे दे सकते हैं ? नौकरी प्रमोशन तुमको संविधान से मिलती है और चढ़ावा यहाँ चढाने आ जाते हो तो क्या हम तुमको बुलाने जाते हैं | अबे तुम पैरो से पैदा हुए हो और तुम्हारा काम निष्काम सेवा करना है | पद से अवनति होना ऊपर से नीचे जाना यानि पैरो में जाना ही है |
दगडू शिंदे : सा** थूकता हूँ तुम पर अब अगर चढ़ावा चढाऊंगा तो समाज को और पूजा करूँगा तो संविधान की और पाठ करवाऊंगा तो संविधान का

भारत के क्रिकेट पर विदेशी ब्राम्हणों का कब्जा!

देखिए, भारत के क्रिकेट पर विदेशी ब्राम्हणों का कब्जा!

1] सचिन तेंडुलकर 
2] राहुल द्रविड़ 
3] V.V.S लक्ष्मण 
4] सौरभ गांगुली          
5] सुनील गावस्कर  
6] रवि शास्त्री  
7] अनिल कुंबले  
8] सुरेश रैना  
9] रोहित शर्मा 
10] दिलीप वेंगसरकर 
11] क्रिस श्रीकांत 
12] चेतन शर्मा 
13] इशांत शर्मा 
14] रविचंद्रन अश्विन 
15] अजीत आगरकर 
16] ऋषिकेश कानिटकर 
17] जवागल श्रीनाथ, 
18] वीनू मांकड़ 
19] अजित वाडेकर, 
20] G.R.विश्वनाथ
 21] EAS प्रसन्ना, 
22] यशपाल शर्मा,,
 23] मनोज प्रभाकर, 
24] बी चंद्रशेखर, 
25] दिलीप दोशी, 
26] सुनील जोशी 
27] वेंकटेश प्रसाद, 
28] 
29] मुरली कार्तिक, 
30] श्रीशांत, 
31] दिलीप सरदेसाई,
 32] संजय मांजरेकर, 
33] M L जैसिम्हा
 34] सुधाकर राव 
35] टीए शेखर 
36] L शिवरामक्रिश्नन
37] विश्वनाथन आनंद 
38] चेटेश्वर पुजारा 
39] प्रज्ञान ओझा 
40]लक्ष्मीपती बालाजी 
41] गुंडप्पा रंगनाथ विश्वनाथ 
42] लाला अमरनाथ 
43] मदनलाल 
44] श्रीनिवास वेंकटराघवन 
45] अशोक मांकड़ 
46] मोहिंदर अमरनाथ 
47] पार्थसारथी शर्मा 
48] सुरिंदर अमरनाथ 
49] कीर्ति आजाद 
50] राजू कुलकर्णी 
51] गोपाल शर्मा 
52] चंद्रकांत पंडित 
53] अजय शर्मा
 54] संजीव शर्मा 
55] V B.चन्द्रशेखर 
56] N वेन्कटरमन
 57] सुब्रतो बनर्जी 
58] राहुल शर्मा 
59] सौरभ तिवारी 
60] नमन ओझा 
61] मुरली विजय 
62] मनोज तिवारी 
63] जोगिंदर शर्मा
 64] रोहन गावस्कर 
65] अमित मिश्रा
 66] विजय भारद्वाज 
67] ज्ञानेंद्र पांडेय 
68] लक्ष्मी रतनशुक्ला
69] जतिन परांजपे 
70] नीलेश कुलकर्णी 
71] सुनील जोशी 
72] उत्पल चटर्जी 
73] प्रशांत वैद्य 
74] दीप दासगुप्ता 
75] सदागोप्पन रमेश 
76] W.V. रमन 
77] B.K.V प्रसाद 
78] लक्ष्मण शिवरामकृष्णन 
79] तिरुमलाई श्रीनिवासन 
80] खांडू रंगनेकर - 
81] अमोल मुज़ुमदार
82] सुरु नायक 
83] अजीत पई 
84] माधव मंत्री
 85] भवराजु वेंकट कृष्णा राव
 86] हेमंत कानिटकर 
87] पोचिह कृष्णमूर्ति 
88] विजय मांजरेकर 
89] नाना जोशी 
90] शुते बनर्जी
 91] मोन्टु बनर्जी
 92] सी आर रंगाचारी..  भक्तो लिखते लिखते मेरा हाथ दुखने लगा।।। पर लिखना भी जरूरी हैं नही तो हमारे कुछ अंधभक्त हैं जो नही मानेगे।।।
और हा_ 
अगर किन्ही महाशय को शंका हो तो BCCI  में RTI की अर्जी लगा कर अपना समाधान कर सकते है।।
 धन्यवाद

बुद्ध बोले- अँगुलीमाल तुम शुद्ध हो गये बुद्ध हो गये, अब तुम अरहंत बन गये हो

कहते है एक अँगुलीमाल नाम का डाकू जिसने 1000 लोगो को मारने की तथा उनकी अँगुली काट कर माला पहेनने की कसम खायी थी।
ये बात उस समय की है, जब उसने 999 लोगो की हत्या कर चूका था। वो जिस जंगल में रहेता था, उसके आतंक के कारण उस जंगल से लोगो ने गुजरना ही बंद कर दिया था।
एक दिन तथागत बुद्ध को किसी अन्य गाँव जाना था, तो वो उस जंगल वाले रास्ते से जाने लगे तो गाँव वालो ने बुद्ध को बहोत समझाया। अँगुलीमाल के बारे में बताया। लेकिन बुद्ध बोले कोई इंसान अपने मार्ग से भटक गया है। उसे सही रास्ते में लाना होगा। इसलिए मैं इसी रास्ते से जाऊंगा। 
जब बुद्ध जंगल के बिच में पहुँचे ही थे की सामने अँगुलीमाल आ गया। और कहने लगा- कौन है तू? इस रास्ते से कई महीनो से कोई मेरे डर के कारण गुजरा नही, तू मुझे जानता नही क्या?
बुद्ध बोले- मुझे पता है! तुम अँगुलीमाल हो और तुमने 999 लोगो की हत्या की है।
अँगुलीमाल- मेरे बारे में सब जानते हुए भी तू चला आया तुझे मौत से डर नही लगता क्या?
बुद्ध- मौत से तो उन्हे डर लगता है, जिनकी चाहते बाकि हो, मेरी तो बस साँसे बाकि है, चाहते तो खत्म हो चुकी है।
अँगुलीमाल ने तलवार निकाली और कहा मरने को तैयार हो जा।
बुद्ध मुस्कुराते हुए खड़े रहे।
अँगुलीमाल बोला- मैंने 999 लोगो को मारा लेकिन तू एक पहला इंसान मिला है, जिसके सामने मौत खड़ी है, फिर भी मुस्कुरा रहा है। मौत को सामने देख लोगो का चेहरा फीका पड़ जाता है। लेकिन तेरे चेहरे की चमक बड़ गयी है। मैंने मरते समय लोगो को डरा सा काँपता हुआ अपनी जान की भीख माँगते हुए ही पाया है। 
तुझमे जरूर कुछ खास है की तुझे मारने में मुझे डर लग रहा है। तू मुझे सीखा कैसे डर से मुक्त हो सकते है।
बुद्ध बोले- बिलकुल सिखाऊंगा तुम मेरे साथ चलो और मेरे बताये हुए मार्ग पर चलने का अभ्यास करना।
कहते है बुद्ध के बताये मार्ग पे चलकर अँगुलीमाल जैसा डाकू संत बन गया।
संत बनने के बाद एक बार वो भिक्षा माँगने गाँव गया तो वहा के कुछ लोगो ने उसे पहेचान लिया तथा कहने लगे ये डाकू अँगुलीमाल है जिसने हमारे बाप दादाओ को मारा है, मारो इसे।
लोगो ने अँगुलीमाल को पत्थर मार मार कर लहूलुहान कर दिए। 
जब अँगुलीमाल अपनी अंतिम साँसे गिन रहा था उतने में बुद्ध उसके पास पहुँचे। तथा अँगुलीमाल से पूछा जब लोग तुम्हे मार रहे थे तो तुम्हे कैसा लग रहा था। 
अँगुलीमाल ने कहा- मैं प्रसन्न था की मुझे मेरे कर्मो की सजा मिल रही है। और जो मुझे मार रहे थे उनके प्रति भी मेरे मन में करुणा जाग रही थी की इन लोगों का भला हो।
बुद्ध बोले- अँगुलीमाल तुम शुद्ध हो गये बुद्ध हो गये, अब तुम अरहंत बन गये हो। । ।
🎋🎋नमो बुद्धाय🎋🎋

माता रमाई का जन्म महाराष्ट्र के दापोली के निकट वानाड गावं में ७ फरवरी 1898 में हुआ

📝📝📝📝📝📝📝📝📝📝


 माता रमाई का जन्म महाराष्ट्र के दापोली के निकट
वानाड गावं में ७ फरवरी 1898 में हुआ था. पिता
का नाम भीकू वालंगकर था. रमाई के बचपन का नाम
रामी था. रामी के माता-पिता का देहांत बचपन में ही
हो गया था. रामी की दो बहने और एक भाई था.
भाई का नाम शंकर था. बचपन में ही माता-पिता की
मृत्यु हो जाने के कारण रामी और उसके भाई-बहन
अपने मामा और चाचा के साथ मुंबई में रहने लगे थे.
रामी का विवाह 9 वर्ष की उम्र में सुभेदार रामजी
सकपाल के सुपुत्र भीमराव आंबेडकर से सन 1906
में हुआ था. भीमराव की उम्र उस समय 14 वर्ष
थी. तब, वह 5 वी कक्षा में पढ़ रहे थे.शादी के
बाद रामी का नाम रमाबाई हो गया था.  भले ही डॉ.
बाबासाहब आंबेडकर को पर्याप्त अच्छा वेतन
मिलता था परंतु फिर भी वह कठीण संकोच के साथ
व्यय किया करते थे. वहर परेल (मुंबई) में
इम्प्रूवमेन्ट ट्रस्ट की चाल में एक मजदूर-मुहल्ले में,
दो कमरो में, जो एक दुसरे के सामने थे रहते थे. वह
वेतन का एक निश्चित भाग घर के खर्चे के लिए
अपनी पत्नी रमाई को देते थे. माता रमाई जो एक
कर्तव्यपरायण, स्वाभिमानी, गंभीर और बुद्धिजीवी
महिला थी, घर की बहुत ही सुनियोजित ढंग से
देखभाल करती थी. माता रमाईने प्रत्येक कठिनाई का
सामना किया. उसने निर्धनता और अभावग्रस्त दिन
भी बहुत साहस के साथ व्यत्तित किये. माता रमाई
ने कठिनाईयां और संकट हंसते हंसते सहन किये.
परंतु जीवन संघर्ष में साहस कभी नहीं हारा. माता
रमाई अपने परिवार के अतिरिक्त अपने जेठ के
परिवार की भी देखभाल किया करती थी. रमाताई
संतोष,सहयोग और सहनशीलता की मूर्ति थी.डा.
आंबेडकर प्राय: घर से बाहर रहते थे.वे जो कुछ
कमाते थे,उसे वे रमा को सौप देते और जब
आवश्यकता होती, उतना मांग लेते थे.रमाताई घर
खर्च चलाने में बहुत ही किफ़ायत बरतती और कुछ
पैसा जमा भी करती थी. क्योंकि, उसे मालूम था कि
डा. आंबेडकर को उच्च शिक्षा के लिए पैसे की
जरुरत होगी. रमाताई सदाचारी और धार्मिक प्रवृति
की गृहणी थी. उसे पंढरपुर जाने की बहुत इच्छा
रही.महाराष्ट्र के पंढरपुर में विठ्ठल-रुक्मनी का
प्रसिध्द मंदिर है.मगर,तब,हिन्दू-मंदिरों में अछूतों के
प्रवेश की मनाही थी.आंबेडकर, रमा को समझाते थे
कि ऐसे मन्दिरों में जाने से उनका उध्दार नहीं हो
सकता जहाँ, उन्हें अन्दर जाने की मनाही हो. कभी-
कभार माता रमाई धार्मिक रीतीयों को संपन्न करने
पर हठ कर बैठती थी, जैसे कि आज भी बहुत सी
महिलाए धार्मिक मामलों के संबंध में बड़ा कठौर
रवैया अपना लेती है. उनके लिये कोई चांद पर
पहुंचता है तो भले ही पहुंचे, परंतु उन्होंने उसी सदियों
पुरानी लकीरों को ही पीटते जाना है. भारत में महिलाएं
मानसिक दासता की श्रृंखलाओं में जकडी हुई है.
पुरोहितवाद-बादरी, मौलाना, ब्राम्हण इन श्रृंखलाओं
को टूटने ही नहीं देना चाहते क्योंकि उनका हलवा
माण्डा तभी गर्म रह सकता है यदि महिलाए अनपढ
और रुढ़िवाद से ग्रस्त रहे. पुरोहितवाद की शृंखलाओं
को छिन्न भिन्न करने वाले बाबासाहब डॉ. आंबेडकर
ने पुरोहितवाद का अस्तित्त्व मिटाने के लिए आगे
चलकर बहुत ही मौलिक काम किया.
बाबासाहब डॉ. आंबेडकर जब अमेरिका में थे, उस
समय रमाबाई ने बहुत कठिण दिन व्यतीत किये.
पति विदेश में हो और खर्च भी सीमित हों, ऐसी
स्थिती में कठिनाईयां पेश आनी एक साधारण सी बात
थी. रमाबाई ने यह कठिण समय भी बिना किसी
शिकवा-शिकायत के बड़ी वीरता से हंसते हंसते काट
लिया. बाबासाहब प्रेम से रमाबाई को "रमो" कहकर
पुकारा करते थे. दिसंबर १९४० में डाक्टर बाबासाहब
बडेकर ने जो पुस्तक "थॉट्स ऑफ पाकिस्तान" लिखी
व पुस्तक उन्होंने अपनी पत्नी "रमो" को ही भेंट की.
भेंट के शब्द इस प्रकार थे. ( मै यह पुस्तक) "रमो
को उसके मन की सात्विकता, मानसिक सदवृत्ति,
सदाचार की पवित्रता और मेरे साथ दुःख झेलने में,
अभाव व परेशानी के दिनों में जब कि हमारा कोई
सहायक न था, अतीव सहनशीलता और सहमति
दिखाने की प्रशंसा स्वरुप भेंट करता हूं.."उपरोक्त
शब्दों से स्पष्ट है कि माता रमाई ने बाबासाहब डॉ.
आंबेडकर का किस प्रकार संकटों के दिनों में साथ
दिया और बाबासाहब के दिल में उनके लिए कितना
सत्कार और प्रेम था.
बाबासाहब डॉ. आंबडेकर जब अमेरिका गए तो माता
रमाई गर्भवती थी. उसने एक लड़के (रमेश) को जन्म
दिया. परंतु वह बाल्यावस्था में ही चल बसा.
बाबासाहब के लौटने के बाद एक अन्य लड़का गंगाधर
उत्पन्न हुआ.. परंतु उसका भी बाल्यकाल में
देहावसान हो गया. उनका इकलौता बेटा (यशवंत) ही
था. परंतु उसका भी स्वास्थ्य खराब रहता था.
माता रमाई यशवंत की बीमारी के कारण पर्याप्त
चिंतातूर रहती थी, परंतु फिर भी वह इस बात का
पुरा विचार रखती थी, कि बाबासाहब डॉ. आंबेडकर
के कामों में कोई विघ्न न आए औरउनकी पढ़ाई खराब
न हो. माता रमाई अपने पति के प्रयत्न से कुछ
लिखना पढ़ना भी सीख गई थी. साधारणतः महापुरुषों
के जीवन में यह एक सुखद बात होती रही है कि उन्हें
जीवन साथी बहुत ही साधारण और अच्छे मिलते रहे.
बाबासाहब भी ऐसे ही भाग्यसाली महापुरुषों में से एक
थे, जिन्हें रमाबाई जैसी बहुत ही नेक और
आज्ञाकारी जीवन साथी मिली.
इस मध्य बाबासाहब आंबेडकर के सबसे छोटे बच्चे
ने जन्म लिया. उसका नाम राजरत्न रखा गया. वह
अपने इस पुत्र से बहुत लाड-प्यार करते थे.
राजरत्न के पहले माता रमाई ने एक कन्या को जन्म
दिया, जो बाल्य काल में ही चल बसी थी. मात रमाई
का स्वास्थ्य खराब रहने लगा. इसलिए उन्हें दोनों
लड़कों यशव्त और राजरत्न सहीत वायु परिवर्तन के
लिए धारवाड भेज दिया गया. बाबासाहब की ओर से
अपने मित्र श्री दत्तोबा पवार को १६ अगस्त १९२६
को लिए एक पत्र से पता लगता है कि राजरत्न भी
शीघ्र ही चल बसा. श्री दत्तोबा पवार को लिखा
पत्र बहुत दर्द भरा है. उसमें एक पिता का अपनी
संतान के वियोग का दुःख स्पष्ट दिखाई देता है.
पत्र में डाक्टर बाबासाहब आँबेडकर लिखते है -
"हम चार सुन्दर रुपवान और शुभ बच्चे दफन कर
चुके हैं. इन में से तीन पुत्र थे और एक पुत्री. यदि
वे जीवित रहते तो भविष्य उन का होता. उन की
मृत्यू का विचार करके हृदय बैठ जाता है. हम बस
अब जीवन ही व्यतित कर रहे है. जिस प्रकार सिर
से बादल निकल जाता है, उसी प्रकार हमारे दिन
झटपट बीतते जा रहे हैं. बच्चों के निधन से हमारे
जीवन का आनंद ही जाता रहा और जिस प्रकार
बाईबल में लिखा है, "तुम धरती का आनंद हो. यदि
वह धरती कोत्याग जाय तो फिर धरती आनंदपूर्ण
कैसे रहेगी?" मैं अपने परिक्त जीवन में बार-बार
अनुभव करता हूं. पुत्र की मृत्यू से मेरा जीवन बस
ऐसे ही रह गया है, जैसे तृणकांटों से भरा हुआ कोई
उपपन. बस अब मेरा मन इतना भर आया है की और
अधिक नहीं लिख सकता..."
बाबासाहब का पारिवारिक जीवन उत्तरोत्तर
दुःखपूर्ण होता जा रहा था. उनकी पत्नी रमाबाई
प्रायः बीमार रहती थी. वायु-परिवर्तन के लिए वह
उसे धारवाड भी ले गये. परंतु कोई अन्तर न पड़ा.
बाबासाहब के तीन पुत्र और एक पुत्री देह त्याग
चुके थे. बाबासाहब बहुत उदास रहते थे. २७ मई
१९३५ को तो उन पर शोक और दुःख का पर्वत ही
टुट पड़ा. उस दिन नृशंस मृत्यु ने उन से उन की पत्नी
रमाबाई को छीन लिया. दस हजार से अधिक लोग
रमाबाई की अर्थी के साथ गए. डॉ. बाबासाहब
आंबेडकर की उस समय की मानसिक अवस्था
अवर्णनीय थी. बाबासाहब का अपनी पत्नी के साथ
अगाध प्रेम था. बाबसाहब को विश्वविख्यात
महापुरुष बनाने में रमाबाई का ही साथ था. रमाबाई
ने अतीव निर्धनता में भी बड़े संतोष और धैर्य से
घर का निर्वाह किया और प्रत्येक कठिणाई के समय
बाबासाहब का साहस बढ़ाया. उन्हें रमाबाई के निधन
का इतना धक्का पहुंचा कि उन्होंने अपने बाल मुंडवा
लिये, उन्होंने भगवे वस्त्र धारण कर लिये और वह
गृह त्याग के लिए साधुओं का सा व्यवहार अपनाने
लगे थे. वह बहुत उदास, दुःखी और परेशान रहते थे.
वह जीवन साथी जो गरीबी और दुःखों के समय में
उनके साथ मिलकर संकटों से जूझता रहा था और अब
जब की कुछ सुख पाने का समय आया तो वह सदा
के लिए बिछुड़ गया.


📝📝📝📝📝📝📝📝📝📝

हिन्दू-धर्म के धर्माधिकारी के कर्ताधर्ता सामाजिक, मानसिक व आर्थिक तौर पर भ्रष्ट, अत्याचारी व अन्यायी थे।

समाज के अधिकांश परिवारों को हिन्दू व हिन्दू-धर्म होने  पर बहुत गर्व है और उन्हें चाहिए कि  मनुवादी हिन्दू-धर्म के मनुवादी धर्मग्रंथों व मनुस्मृति के नियमों को आस्था में लोटपोट होकर कडाई से पालन करना चाहिए । वरणा आपका धर्मभ्रष्ट हो जावेगा । आप हिन्दू हैं, इसलिए हिन्दू-लॅा आप पर लागू है, ना की अन्य धर्म के लोगों पर
पढें व पालन करें 
उदाहरण के लिए-
०१ ऐतरेय ब्राह्मण (3/24/27) ;- वही नारी उत्तम है जो पुत्र को जन्म दे। (35/5/2/47) पत्नी एक से अधिक पति ग्रहण नहीं कर सकती, लेकिन पति चाहे कितनी भी पत्नियां रखे।
** बच्चे पैदा करते रहें, पुत्र को जन्म जरूर देगी और
** पतियों को अनेक पत्नी हासिल करने के लिये एडवांस बुकिंग करवाएं और छूट में  पडौसन व प्रेमिका पर डोरे डालें  ।
०२ आपस्तब (1/10/51/52), बोधयान धर्म सूत्र (2/4/6) व शतपथ ब्राह्मण (5/2/3/14) जो नारी अपुत्रा है उसे त्याग देना चाहिए। 
** गाय, भैंस व बकरी से व्रत व प्रार्थना कर औलाद  पैदा करने गुजारिश करें 
०३ तैत्तिरीय संहिता (6/6/4/3):- पत्नी आजादी की हकदार नहीं है। 
**माँ, पत्नी, वधु व पुत्री को चारदीवारी में बंद कर दें। और प्रेमिका के लिये दरवाजा खुला रखें 
०४ शतपथ ब्राह्मण (9/6):- केवल सुन्दर पत्नी ही अपने पति का प्रेम पाने की अधिकारिणी है।
**पति बलात्कारी, हत्यारा, नपुंसक, कुबडा, अंधा, लूला-लंगडा, जाहिलगंवार, पागल, नशेडी  जैसी सुविधा सम्पन्न हो सकता है
 ०५ बृहदारण्यक उपनिषद् (6/4/7):- यदि पत्नी सम्भोग के लिए तैयार न हो तो उसे खुश करने का प्रयास करो। यदि फिर भी न माने तो उसे पीट-पीट कर वश में करो।
**पति को सिरहाने हथौडा, तलवार व स्टेनगन रखनी चाहिए 
०६ मैत्रायणी संहिता (3/8/3) :- प्रत्येक  नारी अशुभ है। यज्ञ के समय नारी, कुत्ते व शुद्र को नहीं देखना चाहिए। अर्थात् नारी और शुद्र कुत्ते के समान हैं। (1/10/11) नारी तो एक पात्र (बरतन) समान है। 
**आपको बहरा, गूंगा व अंधा होकर माँ पत्नी, पुत्री को तिलांजलि दे देनी चाहिए ।
** अंग्रेजों ने अपने कल्बों पर साफ लिखा था कि Indian & Dog not allowed 
०७ महाभारत (12/40/1) :- नारी से बढ़कर अशुभ कुछ नहीं है। इनके प्रति मन में कोई ममता नहीं होनी चाहिए। (6/33/32) पिछले जन्मों के पाप से नारी का जन्म होता है ।
**कृपया ऋषि भारद्वाज की तरहं अपने  बच्चों को परखनली में पैदा करें और घर की प्रत्येक नारी का परित्याग करें 
०८ मनुस्मृति (100) :- पृथ्वी पर जो भी कुछ है, वह  ब्राह्मण का है। 
**आप झोपडपट्टी, घर आदि त्याग कर मन्दिर के बाहर बैठकर घंटा बजाएं 
०९ मनुस्मृति (101):- दूसरे लोग ब्राह्मणों की दया के कारण सब पदार्थों का भोग करते हैं।
** अन्न-जल, कपडे त्याग कर श्मशानघाट में बैठकर जागरण व कीर्तन करें ।
१० मनुस्मृति (11-11-127):-  मनु ने ब्राह्मण को संपत्ति प्राप्त करने के लिए विशेष अधिकार दिये हैं। वह तीनों वर्णों से बलपूर्वक धन छीन सकता है अथवा चोरी कर सकता है।
** आप अपने घर की चोरी करवाना सीखें और सआदर सहित ब्राह्मण पर घर, धन, पत्नी पुत्री, पुत्र आदि  सबकुछ न्यौछावर कर दें 
११  मनुस्मृति (4/165 - 4/166):- जान बूझकर क्रोध से जो ब्राह्मण को तिनके से भी मारता है वह इक्कीस जन्मों तक बिल्ली योनि में पैदा होता है।
**आप सांड की योनि से पैदा होने की प्रार्थना व कोशिश करें और ब्राह्मण पर धनदौलत की बरसात करें ।
 १२ मनुस्मृति (5/35):- जो मांस नहीं खाएगा वह इक्कीस बार पशु योनि में पैदा होगा । 
**आप घास-फूस खाकर चूहे की योनि में प्रवेश कर फिर हाथी के मुंह से बाहर निकलें 
१३ मनुस्मृति (64 श्लोक) अछूत जातियों के छूने पर स्नान करना चाहिए। 
**आपका स्नान करना धर्म-विरुद्ध है। अत: गाय का गोबर तन-बदन पर लगाकर गाय का मूत पीयें
१४ गौतम धर्म सूत्र (2-3-4):- यदि शुद्र किसी वेद को पढ़ते सुन ले तो उसके कानों में पिंघला हुआ शीशा या लाख डाल देनी चाहिए।
** आप ग्रन्थ सूंघ लें और आंखें बन्द कर जीभ से चाटकर कानों से खुशबू  बाहर निकालें 
१५ मनुस्मृति (8/21-22):- ब्राह्मण चाहे अयोग्य हो उसे न्यायाधीश बनाया जाए नहीं तो राज मुसीबत में फंस जाएगा।
**आप सनातन-काल की तरहं बेवकूफ बने रहें 
यदि कोई ब्राह्मण को दुर्वचन कहेगा तो वे मृत्युदण्ड के अधिकारी हैं।
आपके बोलने मात्र से ही ब्राह्मणदेवता को भारी दुर्घटना व क्षति पहुंच सकती है। अत: गूंगे-बहरे बनने के लिये हमेशा  मौनव्रत धारण करें 
१६ मनुस्मृति (8/270):- यदि कोई ब्राह्मण पर आक्षपे करे तो उसकी जीभ काट कर दण्ड दें।
**आप जीभ को हरीसन ताले से पिरोकर ताला लगा दें और चाबी ब्राह्मणदेवता के हवाले कर दें
 १७ मनुस्मृति (5/157):- विधवा का विवाह करना घोर पाप है।
**आप मरना कैंसिल करें और विधवा को विधवावन में भेज दें।
 विष्णुस्मृति में स्त्री को सती होने के लिए उकसाया गया है तो, 'शंख स्मृति' में दहेज देने के लिए प्रेरित किया गया है।
**विधवा-मां, विधवा-पत्नि, विधवा-वधु  विधवा-कन्या व सुकन्या  को ब्राह्मणदेवता के हवाले कर दें । क्योंकि ना रहेगा बांस और ना बजेगी बांसुरी 
१८ 'देवल स्मृति' में किसी को भी बाहर देश जाने की मनाही है। 
**आप चौबीस घंटे मन्दिर के बाहर पडे रहें 
१९ 'बृहदहरित स्मृति' में बौद्ध भिक्षु तथा मुण्डे हुए सिर वालों को देखने की मनाही है।
**आप नाई के पास बाल कटवाने की बजाय मन्दिरों में बाल उखडवा सकते हैं।
 '२० गरुड़ पुराण' में ब्राह्मण को गाय दान, कन्यादान, पुत्रदान, पत्निदान,  स्वर्णदान, भूमिदान, अस्थिदान, वस्त्रदान, अन्नदान, फलदान, मेवादान, मिठाईदान, केशदान आदि करने से आपके व आपके खानदान का विश्व में जोर-जोर से नगाडा व घंटे बजेंगे । 
गरुड-पूराण में  केवल ब्राह्मण के हाथ से आपके परिवार के मृतकों का गंगा में पिण्डदान(आत्मा का दान) करने के लिए कहा गया है। वरणा आपके परिवार के सदस्य की आत्मा जहां-तहां भारत में भटकती फिरेगी   
 हालाँकि  एक अंग्रेज इतिहासकार एडमंड बर्क लिखते हैं, तथाकथितों के 'हिन्दू-धर्म के धर्माधिकारी के कर्ताधर्ता सामाजिक, मानसिक व  आर्थिक तौर पर भ्रष्ट, अत्याचारी  व अन्यायी थे। अतः मनुवादियों ने आपको व आपके   देश को स्वतन्त्र नहीं रखने दिया और ' इस सम्बन्ध में भारतवर्ष के महान् विचारक तथा विद्वान् ज्योति-बा-फुले,  स्वामी विवेकानन्द, पेरियार  बाबासाहेबजी अम्बेडकर आदि   ने कहा था कि 'एक देश जहां लाखों लोगों को खाने, पहनने व रहने  को कुछ नहीं है, जहां कुछ हजार मनुवादी  ब्राह्मण वर्ग के लोग गरीबों का खून चूसकर रक्तदान, अंगदान, बीफ, हड्डी, बाल-खाल आदि  का व्यापार करते  हैं। 
**हमें यह सब नजर-अंदाज कर देते हैं और करना चाहिए!  क्योंकि यह हमारी अंधभक्ति की अंधीधारणा व अंध-आस्था का सवाल  है।
२१' स्कन्द पुराण ने नारी जाति पर चार चांद लटका दिये हैं कि नारी के विधवा होने पर उसके दराती से बाल काट दें, जीते जी  सफेद कफन के कपड़े में लपेट दें और विधवा को रूखा-सूखा  खाना दें और अल्पमात्रा में  इतना ही खाना दें कि वह जीवित रहे और मरे भी नहीं । क्योंकि  विधवा का पुनः विवाह करना घोरपाप है। ..अत: आप घर को ही  विधवा आश्रम .बना लें और इनके बीच बैठकर बंसी बजाएं 
हमारे समाज के हिन्दू धर्म के आस्थावान व मनुवादी  प्रेमियों को मनुस्मृति के अनुसार स्कूल कालेज में नहीं जाकर मनुवादी ब्राह्मण व बनियों के चरण-कमल में ओंधेमुंह गिरकर उनके चरण-कमल में माथा रगडकर, जीभ से चरण-स्पर्श कर चरणों को शुद्ध वाटर में धोकर चरणामृत के गिलास भर भरकर पीना चाहिए और ब्राह्मणदेवता के चरण-कमल से सिर पर आशीर्वाद लेना चाहिए । 
माना जाता है कि उपरोक्त नियमों का आस्था व विश्वास के साथ अनुगमन व पालन करने से आपका व आपके परिवार को स्वर्गलोक की स्वर्गनगरी में स्वर्गीय होने पर स्वर्गवासी होने की प्रबल सम्भावना बनी रहेगी
हमें दिनरात कर्तव्यनिष्ठ होकर  ज्यौतिषी व राशिफल में अपने-अपने  बच्चों का नसीब ढूंढना चाहिए। 
बाबासाहेबजी अम्बेडकर ने हमें आरक्षण, सामाजिक, शैक्षणिक आदि  दिलवाये हैं। मगर  जब सभी भौतिक सुख-सुविधाएं  ब्राह्मणदेवता के द्वारा देय है तो हमें मनुवादी ब्राह्मण व बनियों को अपना वोटबैंक देकर गर्व व उनके पीछे-पीछे भागने में आनन्द आता है। । क्योंकि हम अपने ही देश में बहुसंख्यक  मनुष्य से आरक्षित जीव की श्रेणी पाकर हम मनुवादियों से आरक्षण मांगकर स्वयं को धन्य समझते हैं। 
ध्यान रहे मनुस्मृति में वेश्य, वेश्या,ओबीसी, SC व  ST को शुद्र माना गया है और मुसलमान, ईसाई आदि अन्य धर्म के लोगों को " मलेच्छ बताया गया है!
तथा-अररस्तु तु 
व्यंग्य
बाबा-राजहंस
जय-भीम जय-मीम जय-जयस

मनुवादी शोच पर अम्बेडकरवाद हावी

"मनुवादी शोच पर अम्बेडकरवाद हावी"
आज मेरे स्कूल GSSS धोलू (फतेहाबाद) मे गणतंत्र दिवस को सविधान दिवस का रुप देकर इस दिन को पूर्ण रुप से बाबा साहेब को समर्पित कर दिया l हम चाहते थे कि सरस्वती की जगह बाबा साहेब की फोटो पर पुष्प अर्पित कर कार्यक्रम शुरू हो लेकिन मनुवादी अध्यापकों और प्राध्यापकों ने ऐसा नही होने दिया जिसका हमने करारा जबाव दिया हंगामा हुआ और इस दौरान हमने उपस्थित ग्राम पंचायत जिसमे कुछ SC के पंच और BC के सरपंच को विश्वास मे लेकर आज के दिन की वास्तविकता और बाबा साहेब के योगदान बारे विस्तार से समझाया और बताया कि बाबा साहेब के सविधान कि बदोलत आज गणतंत्र दिवस मनाया जा रहा है और ये मनुवादी लोग उनकी फोटो तक नही लगवाना चाह्ते जिससे प्रभावित होकर सरपंच महोदय ने पूरी पंचायत को विश्वास मे लेकर हजारों लोगों की उपस्थिति मे मंच पर जाकर ये घोषना कर दी कि ग्राम पंचायत अपने खर्चे पर इस स्कूल के प्रागण मे बाबा साहेब की प्रतिमा की स्थापना करवायेगी l बाबा साहेब और समाज की ताकत ने हमे होंसला दिया और आने वाले कुछ दिनो मे मेरे (Govt.School) मे बाबा साहेब की बहुत बड़ी प्रतिमा होगी 
🙏🏻जय भीम 🙏🏻
सुखदेव भुक्कल

नैकडोर के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती का हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का दौरा

नैकडोर के राष्ट्रीय अध्यक्ष अशोक भारती का हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का दौरा ।
28 जनवरी को नैकडोर के राष्ट्रीय अध्यक्ष मान्यवर अशोक भारती ने रोहित वेमुला की मौत पर चल रहे आंदोलन को समर्थन और आंदोलन की भावी रणनीति बनाने के लिए हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय का दौर किया। इस दौरे के दौरान उन्होंने विश्वविद्यालय के अनुसूचित जाति, जनजाति कर्मचारियों की असोसीएशन, टीचिंग स्टाफ़ की असोसीएशन व छात्र आंदोलन में शामिल विभिन्न विद्यार्थी संगठनों के प्रतिनिधियों के साथ मुलाक़ात की। 
उन्होंने विश्वविद्यालय में आंदोलनकारियों को सम्बोधित किया और अनेकों TV चैनलों को सम्बोधित किया।
उन्होंने आंदोलनकारी विद्यार्थियों, अध्यापकों और कर्मचारियों को सम्बोधित करते हुए विद्यार्थियों और अध्यापकों की माँग का पूरा समर्थन करते हुए निम्नलिखित माँगे कीं:
1. द्रोणाचार्य पुरस्कार का नाम बदलकर रोहित वेमुला पुरस्कार किया जाए। 
2. सरकारी कोष से चलने वाले प्रत्येक कॉलेज या विश्वविद्यालय को मिलने वाले वित्तीय संसाधनों पर तब तक रोकें जाए जब तक वह टीचिंग और नान-टीचिंग पदों में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्गों का कोटा पूरा ना कर दें।
3. उच्च शिक्षा की व्यवस्था का पूर्ण ओवरहॉल हो और इसे अनुसूचित जातियों, जनजातियों और ग्रामीण विद्यार्थियों की आवश्यकता के अनुरूप ढाला जाए।
4. नैकडोर के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने रोहित वेमुला
के नाम पर विद्यार्थी नेताओं के लिए एक सालाना पुरस्कार की स्थापना की घोषणा की जिसके नगद राशि, एक सम्बोधन और एक स्मृति चिन्ह देने की घोषणा की। प
उन्होंने हैदराबाद में दलितों के विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधियों से भी मुलाक़ात की। और एक प्रेस कॉन्फ़्रेन्स को भी सम्बोधित किया।
इस अवसर के कुछ फ़ोटो आपके साथ साझा कर रहे हैं।"""""""

Thursday, February 4, 2016

पत्रकारिता के बड़े संस्थान IIMC में भी सुरक्षित नहीं हैं दलित !

पत्रकारिता के बड़े संस्थान IIMC में भी सुरक्षित नहीं हैं दलित !



नई दिल्ली. नई दिल्ली स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्युनिकेशन (IIMC) में जातीय भेदभाव से जुड़ा चौंकाने वाला मामला सामने आया है. दलित-आदिवासी कम्युनिटी से संबंध रखने वाले कुछ स्टूडेंट्स की शिकायत के बाद IIMC प्रशासन ने मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं.
 
अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक IIMC के ही कुछ सवर्ण छात्रों पर आरोप है कि उन्होंने संस्थान में मौजूद SC/ST कम्युनिटी के छात्रों के साथ भेदभावपूर्ण बर्ताव किया. पूरा मामला हैदराबाद यूनिवर्सिटी के दलित स्कॉलर रोहित वेमुला की आत्महत्या से शुरू हुआ. 
 
रोहित वेमुला आंदोलन को सपोर्ट करने की वजह से शुरू हुई छींटाकशी
 
पूरे देश में रोहित के पक्ष में जारी आन्दोलन को IIMC के भी SC/ST छात्रों ने सपोर्ट करना शुरू किया जो संस्थान के ही कुछ सवर्ण छात्रों को बुरा लगा. दलित स्टूडेंट्स का आरोप है कि उनके ही कुछ सवर्ण साथियों ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिये उन पर अभद्र कमेन्ट किये.
 
छात्रों का आरोप है कि मामला सिर्फ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स तक ही नहीं रहा. इन सवर्ण स्टूडेंट्स ने कैंपस के अंदर भी अभद्र और जातिवादी कमेंट्स शुरू कर दिए. इसी ग्रुप के एक लड़के ने रिजर्वेशन को लेकर फेसबुक पर एक आपत्तिजनक पोस्ट लिख दी जिससे मामले ने तूल पकड़ लिया.
 
एससी-एसटी आयोग ने मामले पर आईआईएमसी से जवाब मांगा
 
इसके बाद दलित समुदाय के स्टूडेंट्स ने SC/ST कमीशन से इसकी लिखित शिकायत कर दी. कमीशन ने इस बाबत जब IIMC से जवाब मांगा तो पता चला कि संस्थान में अभी तक कोई SC/ST सेल भी नहीं है. 
 
फिलहाल आयोग की दखलंदाजी के बाद IIMC ने मामले की जांच के लिए 5 सदस्यीय कमेटी का गठन किया है. जिस छात्र पर आरोप लगा है उसने IIMC प्रशासन से लिखित में माफ़ी मांग ली है. हालांकि SC/ST छात्रों की मांग है कि दोषी लड़के और उसके साथियों को संस्थान से रेस्टिकेट कर उचित कार्रवाई की जाए.

🙏🌷 विचार करीये व जान कर मान लिजीए ।देश के लोकतांत्रिक ढांचे का चौथा खम्भा जहाँ से प्रक्षिक्षण लेकर आरहा हे वहाँ सारे द्रोणाचार्य बैठे हें ।यह लोग वहाँ से तैयार होकर आरहे हें कभी हमारे हकों के लिए नहीं लड सकते कभी हमाी बात दिल से नहीं रख सकते यह हे असलियत ।हमें इनकी हर खबर पर शंका होनी चाहिए ।🙏🌷 जय मुलनिवासी

सरोज बैरवा का संघर्ष- चाहती है कि घोड़ी पर चढ़ कर निकले भैया की बिन्दोली !

सरोज बैरवा का संघर्ष-

चाहती है कि घोड़ी पर चढ़ कर निकले भैया की बिन्दोली !
........................................
राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के गुलाबपुरा थाना क्षेत्र के भादवों की कोटड़ी
गाँव में कल 3 फरवरी की शाम एक दलित दूल्हा चंद्रप्रकाश बैरवा घोड़ी पर चढ़
कर अपनी बारात ले जाना चाहता है ,मगर यह बात गाँव के उन मनुवादी तत्वों
को बर्दाश्त नहीं है ,जो सदियों से इस गाँव के दलितों को परम्पराओं के
नाम पर दबाने का काम करते आ रहे है .जिन्हें दलितों का खाट पर बैठना तक
सहन नहीं है ,वे यह कैसे स्वीकार कर लें कि उनके गाँव के दलित युवा घोड़े
पर सवार हो जाएँ .हालाँकि सामने आकर कोई भी विरोध नहीं कर रहा है ,मगर
चौराहों पर खुलेआम चर्चा की जा रही है कि इन चमारों की यह औकात जो गाँव
में घोड़ी पर बैठ कर बिन्दोली निकालेंगे .अगर हमारे मोहल्ले में घुस भी
गये तो जिंदा नहीं लौटेंगे .इस प्रकार की चर्चाओं और गाँव के माहौल के
मद्देनजर दुल्हे की बहन सरोज बैरवा ने पुलिस अधीक्षक कार्यालय भीलवाड़ा
पंहुच कर लिखित रिपोर्ट पेश की कि उसका भाई घोड़ी पर चढ़ कर गाँव में
निकलना चाहता है ,लेकिन कतिपय जातिवादी तत्व यह नहीं होने देना चाहते है
,इसलिए पुलिस सुरक्षा दी जाये .पच्चीस वर्षीय सरोज बैरवा जो कि राजनीती
विज्ञान में परास्नातक और नर्सिंग की पढाई कर चुकी है ,उसने गुलाबपुरा
थाने में भी इस आशय की रिपोर्ट दर्ज करायी है .
इस गाँव की आबादी तक़रीबन 2 हजार बताई जाती है ,जिसमे सर्वाधिक परिवार जाट
है और दलित समुदाय की बैरवा ,मेघवंशी तथा धोबी और वाल्मीकि उपजातियों के
75 परिवार गाँव में निवास करते है .15 परिवार भील आदिवासी भी है ब्राह्मण
,सुथार ,कुम्हार ,और नाथ जोगी परिवार भी इस गाँव में रहते है .देश के
अन्य गांवों की तरह जाति गत भेदभाव ,बहिष्करण और अन्याय उत्पीडन में यह
गाँव भी उतना ही आदर्श गाँव है ,जिस तरह देश के शेष गाँव होते है .थमे
हुए से गाँव ,अड़ियल से गाँव ,जहाँ बदलाव की कोई बयार नहीं ,बदलने को कोई
भी तैयार नहीं ,दुनिया चाँद पर पंहुच गयी और लोग हवाई जहाज में बैठ कर
सफ़र तय करने लगे है ,मगर गाँवो में आज भी लोगों की मानसिकता वही कबीलाई
है ,जहाँ शोषक और शोषितों के कबीले जस के तस बरकरार है .
इस गाँव में भी दलित बैरवा परिवारों का उत्पीड़न का लम्बा इतिहास मौजूद है
,1985 में चर्मकार्य छोड़ने की वजह से यहाँ के निवासी उगमलाल बैरवा को
गाँव छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया था ,उनके रोजमर्रा के कामकाज करने पर भी
रोक लगा दी गयी थी और जब उनके परिवार में किसी की मौत हुई तो मुर्दे का
अंतिम संस्कार तक नहीं होने दिया गया ,थक हार कर उगम लाल बैरवा ने गाँव
छोड़ दिया ,मगर वह झुका नहीं .अब उसी गाँव का रामसुख बैरवा का परिवार
बरसों बाद फिर से उन्हीं लोगों से लौहा ले रहा है ,जिनसे कभी उगमलाल ने
लिया था .सरोज बैरवा के मुताबिक हमारे गाँव में दलित समुदाय के अन्य लोग
जो दबंग लोगों के सामने सिर झुका देते है ,उनको कोई परेशानी नहीं है ,पर
हमने संघर्ष करने की ठान रखी है .इस गाँव में हम लोगों की हालत बेहद ख़राब
है ,जहाँ पूरा गाँव निवृत होने जाता है ,वहां से हमें पेयजल लेना होता है
,मंदिर में घुसने की तो हम सोच भी नहीं सकते है .आज तक कोई भी दलित
दूल्हा या दुल्हन घोड़ी पर सवार नहीं हो पाया .गाँव जातिवादी रुढिवादिता
में बुरी तरह जकड़ा हुआ है ,हमें स्कूल में सदैव ही चमारी या चमारटे जैसे
जातिगत संबोधन ही सुनने को मिले है ,यहाँ पर पग पग पर अपमान होता है .
अपनी पढाई पूरी करने के बाद सरोज और उसकी छोटी बहन निरमा ने एक निजी
विद्यालय आर जी पब्लिक स्कूल में पढाना शुरू कर दिया था ,जो कि गाँव के
बहुसंख्या वाले समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोगों से सहन नहीं हो पाया
,तो उन्होंने अभी पिछले वर्ष मार्च में सरोज की विद्यालय में पंहुच कर
बच्चों के सामने ही सरेआम पिटाई की और कहा कि चमारन तू ही है हमारे
बच्चों को पढ़ाने वाली ,और कोई अध्यापिकाएं नहीं बची है क्या ? अंततः उस
स्कूल को ही बंद हो जाना पड़ा .सरोज ने इस अपमान को सहने के बजाय दलित
अत्याचार निवारण कानून के तहत मुकदमा दर्ज करवाया और जमकर आततायियों का
मुकाबला किया ,उसे सफलता भी मिली ,मुकदमे में चालान हुआ और अनुसूचित जाति
न्यायालय में प्रकरण अभी भी चल रहा है ,ग्रामीणों ने गाँव की एकता और
भाईचारे का वास्ता दे कर उससे समझौता कर लेने के लिए कहा ,मगर सरोज और
उसका परिवार बिल्कुल भी झुके नहीं .
इसके बाद से ही यह हिम्मतवर दलित युवती गाँव के जातिवादी तत्वों की
किरकिरी बनी हुई है ,अब जबकि उसकी और उसके भाई की शादी होने जा रही है तो
जिन लोगों ने सरोज को पीटा और अपमानित किया था ,उन्होंने इस मौके पर इस
दलित परिवार का मान मर्दन करने की ठान रखी है ,बैरवा परिवार को सन्देश
भेजा गया है कि वह अपनी औकात में ही रहे वरना गंभीर नतीजा भुगतना पड़ेगा
.पुलिस सुरक्षा की मांग करने पंहुची सरोज को थाने में कहा गया कि आज तक
किसी दलित ने घोड़ी पर बिन्दोली नहीं निकाली तो तुम क्यों निकालना चाहते
हो ?सरोज ने जब उन्हें कहा कि यह हमारा हक़ है तब पुलिस ने कहा कि हम
सुरक्षा दे देंगे . बाद में जब यह बात मीडिया में आई तब सरपंच ने सरोज के
पिता रामसुख बैरवा को बुला कर कहा कि तुझे कोई दिक्कत थी तो तू पुलिस में
जाता ,तेरी बेटी से केस क्यों करवाया ? एक अन्य लम्बरदार ने कहा कि न्यूज़
का खंडन करो ,इससे हमारे गाँव की बदनामी हो रही है .सरोज ने साफ कह दिया
कि वह ना तो न्यूज़ का खंडन करेगी और ना ही रिपोर्ट वापस लेगी ,मेरा भाई
हर हाल में घोड़ी पर बैठ कर बारात ले जायेगा ,चाहे उसकी जो भी कीमत चुकानी
पड़े .जब हमने पूंछा कि अगर इसकी कीमत जान हो तो ? इस बहादुर बैरवा परिवार
की बहादुर बेटी सरोज का जवाब था कि चाहे जान भी देनी पड़े तो स्वाभिमान की
खातिर वह भी देने को हम तैयार है .
पूरा परिवार एक स्वर में इसके लिए राज़ी है ,सरोज की निरक्षर माँ सीतादेवी
से जब पूंछा गया कि क्या वाकई वो चाहती है कि उसके बेटे बेटी घोड़ी पर चढ़
कर बारात निकाले तो उस माँ का जवाब भी काबिलेगौर था ,उसने कहा –इन बच्चों
को इतना बड़ा इसीलिए किया कि ये घोड़ी पर बैठ कर घर से जाये .जब उनसे यह
जानने की कोशिस की गयी कि क्या उन्हें डर नहीं लग रहा है कि कल कुछ भी हो
सकता है तो वह बोली अगर हमारी मौत इसी बात के लिए होनी है तो हो जाये मगर
हम झुकनेवाले नहीं है .
बेहद विडम्बना की बात यह है कि सरोज जैसी बहादुर दलित युवती इस व्यवस्था
को बदलने के लिए अकेले संघर्ष कर रही है .गाँव के अन्य बैरवा परिवार उनका
बहिष्कार किये हुए है ,शेष दलित जातियां मुर्दों की तरह ख़ामोश है .आज जब
इस बहादुर परिवार के संघर्ष की जानकारी मुझे मिली तो मैं अपने साथियों
डाल चंद रेगर ,देबीलाल मेघवंशी ,अमित कुमार त्यागी ,बालुराम गुर्जर
,महावीर रेगर ,हीरा लाल बलाई ,बालुराम मेघवंशी और ओमप्रकाश जैलिया के साथ
इस परिवार से मिलने पंहुचा .हम उन्हें हौंसला देने गए मगर उनके विचार और
संघर्ष को देख सुनकर हम प्रेरित हो कर वापस लौटे है .
यह कहानी इसलिए साझा कर रहा हूँ क्योंकि हाल ही में राजस्थान में एक दलित
दूल्हा दुल्हन को अम्बेडकर मिशन के कार्यकर्ताओं और प्रशासन ने घोड़ी पर
बिठाने के लाख जतन किये ,फिर भी वो नहीं बैठ पाए और एक तरफ सरोज जैसी
बहादुर दलित युवती और उसका परिवार है जो किसी का सहयोग नहीं मिलने और
रोकने के लाख जतन के बावजूद भी घोड़ी पर बैठ कर ही बारात निकालने के लिए
प्रतिबद्द है ,इस परिवार के जज्बे को सलाम .सरोज की हिम्मत को लाखों लाख
सलाम .जिस दिन सरोज जैसी और बहुत सारी बाबा साहब की बेटियां उठ खड़ी होगी
,ये कायर मनुवादी भागते नजर आयेंगे .3फरवरी को सरोज के भाई
चन्द्रप्रकाश बैरवा की बिन्दोली है और 22 फरवरी को सरोज और उसकी बहन
निरमा बैरवा की शादी है ,तीनों को घोड़ी पर चढ़ना है ,उस गाँव के दलितों की
ख़ामोशी से तो कोई उम्मीद नहीं है ,आप हम जैसे साथियों से सरोज और उसके
परिजनों को बहुत आशा है .अगर हो सके तो सरोज के संघर्ष के सहभागी बनिये
.सरोज के परिवार से 09414925124 तथा 09929169757 पर संपर्क किया जा सकता
है .
- भंवर मेघवंशी [ स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता ]

क्या सरस्वती ज्ञान की देवी है ?

 क्या सरस्वती ज्ञान की देवी है ? अगर है तो इन शंकाओँ का समाधान करेँ :

1. इसके बिना इसाई, मुसलमान, प्रकृतिपूजक, नास्तिक आदि कैसे ज्ञान प्राप्त कर पा रहे हैँ ?
2. सरस्वती कितनी भाषाएँ जानती हैँ ?
3. हड़प्पा सभ्यता की लिपि अब तक नहीँ पढ़ी गई। इस संबंध मेँ सरस्वती का क्या प्लान है ?
4. सरस्वती के होते हुए स्कूलोँ मेँ शिक्षकोँ की जरूरत क्योँ पड़ती है ?
5. अंग्रेजोँ के पहले भारत मेँ अंग्रेजी क्योँ नहीँ थी। क्या सरस्वती पहले अंग्रेजी नहीँ जानती थी ?
6. कई देश शत-प्रतिशत साक्षर हो गए, जबकि भारत सरस्वती के होते हुए भी साक्षरता मेँ पीछे है। क्योँ ?
7. मनु ने मनुस्मृति मेँ शूद्रोँ का पढ़ना दंडनीय माना है। आज तक इस मामले मेँ सरस्वती ने कोई एक्शन क्योँ नहीँ लिया ? क्या सरस्वती भी इस षडयंत्र मेँ शामिल थी ? ज्ञान तो सरस्वती देती है। क्या यह ज्ञान मनु को सरस्वती ने ही दिया था ?
8. कई भाषाएँ लुप्त हो गई और कई लुप्त हो रही हैँ। सरस्वती उन्हेँ क्योँ नहीँ बचा पा रही हैँ ? क्या इतनी सारी भाषाओँ को याद रखना उनके लिए मुश्किल हैँ ?
9. कुछ बच्चे मेहनत करने पर भी पढ़ाई मेँ कमजोर होते हैँ. क्योँ ? क्या वह भेदभाव करती हैँ ?
10. सरस्वती के होते हुए मटरगस्ती करने वाले, भ्रष्ट लोग शिक्षक कैसे बन जाते है ?
11. वसंत पंचमी पर ब्राह्मण ही सरस्वती की पूजा संपन्न करवाते हैँ तथा सरस्वती की मूर्ति स्थापना भी पंडित ही करते हैँ। सरस्वती दूसरी जातियोँ से पूजा क्योँ नहीँ करवाती हैँ ? क्या सरस्वती भेदभाव करती हैँ ? या सरस्वती ब्राह्मण जाति की हैँ ?
12. हिंदुओँ के अलावा बाकी धर्म के लोग सरस्वती को क्योँ नहीँ पूजते ? क्या यह हिंदुओँ के द्वारा कल्पित की गई हिंदुओँ की ऐसी देवी है, जो हिंदू हितोँ का ध्यान रखने के साथ हिंदू धर्म का प्रचार करती हैँ ?
१३. कहीं इसके पीछे मुसलमानों को पिछड़ा बनाये रखने की चाल तो नहीं है कि सरस्वती के कारण मुसलमान अपने बच्चों को स्कूलों में भेजने से कतराएंगे ।
१४. सरस्वती महिला है, फिर भी महिलाओं की साक्षरता दर जबरदस्त कम है, क्यों ?
15. सरस्वती के होते हुए आम बच्चों के लिए खस्ताहाल स्कूल और अमीरजादों के लिए डी.पी.एस. जैसे कॉन्वेन्ट स्कूल क्यों हैं ? इस मामले में सरस्वती जी ने आज तक कोई निर्णय क्यों नहीं लिया ?
[04/02 15:33] ‪+91 98264 75841‬: "क्रांति और प्रतिक्रांति"
---भारत का इतिहास

डा बाबा सहाब अम्बेडकर ने भारत के इतिहास का जब गहराई से अध्यन किया तो बताया कि "भारत का इतिहास आर्य ब्राह्मणों की विसमतावादी और बुद्ध की मानवतावादी विचारधारा के बीच क्रांति और प्रतिक्रांति के संघर्ष का इतिहास रहा है।"

सिंधु सभ्यता, मोहन जोदड़ो, हड़प्पा भारत की फली-फूली सभ्यताएं थी इन सभ्यताओ में रहने वाले लोग दैत्य, अदित्य, सूर,असूर, राक्षस, दानव कहलाते थे। तथा इनमे किसी प्रकार का जाति भेद नहीं था, इनकी संस्कॄति मातृसत्तात्म थी ।

  करीब चार हजार साल पहले जब खेबर दर्रे से होते हुए मध्य एशिया से 'आर्य' आये तो यहॉं के मूलनिवासी अनार्य कहलाने लगे। आर्य और अनार्यों में करीब पांचसौ वर्ष तक संघर्ष चला जिसमे अनार्यों का पतन हुआ परिणामस्वरूप आर्यों ने अपनी पितृसत्तात्मक संस्कॄति और विसमता वादी वर्ण व्यवस्था अनार्यो पर थोप दी, इस युग को इतिहास में आर्य वेदिक युग कहा गया है ।

आर्य लोगो में त्रिवर्णीय व्यवस्था (ब्राह्मण/क्षत्रिय/वेश्य) विकसित हो चुकी थी। जिसका विवरण ऋग्यवेद में मिलता है जब अनार्यो को हराकर गुलाम बनया तो इन्हे वर्ण व्यवस्था में रखने के लिए चतुर्थ वर्ण(शूद्र) की रचना की गयी जिसका विवरण पुरुषशुक्त में मिलता है। 

इस बात को ध्यान में रखते हुए कि मूलनिवासी अनार्य हमेशा आर्यो के गुलाम बने रहे, अनार्यों को आर्यों ने शिक्षा/सत्ता/सम्पत्ति/सम्मान आदि मूल अधिकारों से वंचित किया तथा शूद्र(सछूत) और अतिशूद्र(अछूत) के तौर पर बांट कर इनमे उंच-नीच की भावना पैदाकर आपस में लड़ाते रहे । धीरे-धीरे आर्य ब्राह्मणो ने इन्हे जाति- उपजाति में बांटकर ऐसे अंधविस्वास के जाल में उलझाया कि मूलनिवासी अनार्य शूद्र(obc/sc/st) आर्य ब्राह्मणों के सड़यंत्रो को समझ ही नही पाये।

आर्यों की अमानवीय विसमतावादी व्यवस्था को गौतम बुद्ध ने अपनी वैज्ञानिक सोच और तर्कों से ध्वस्त कर दिया तथा समाज में ऐसी चेतना फैलाई कि ब्राह्मण और ब्राह्मणी संस्कारो का लोगो ने बहिस्कार कर दिया।

बुद्ध को ब्राह्मणों ने शुरुआत से ही नास्तिक माना है। ब्राह्मणों के शास्त्रों में लिखा भी गया है कि जो अपने जीवन में तर्क का इस्तेमाल करता है वह नास्तिक है और जो धर्म और ईश्वर में विश्वास रखे वह आस्तिक । रामायण में बौद्धों की नास्तिक कहकर निंदा की गयी है ।

 बुद्ध का धम्म कोई धर्म नहीं बल्कि नैतिक सिद्धांत है । संक्षेप में कहे तो 'बुद्ध' का मतलब बुद्धि, 'धम्म' का मतलब 'इंसानियत' और संघ का मतलब 'इस उद्देश्य के लिए संघर्ष कर रहा सक्रीय संगठन' है।

परन्तु बेहद दुःख की बात है कि बौद्ध सम्राट अशोक के पौत्र वृहदरथ की पुष्यमित्र शुंग द्वारा हत्या कर बौद्धों के शासन को खत्म किया और बौद्धों पर तरह-तरह के ज़ुल्म ढहाए गए, वर्ण व्यवस्था जो बुद्ध की क्रांति की वजह से खत्म हो गयी थी । उसे मनुस्मृति लिखवाकर पुनः ब्राह्मणी शासन द्वारा तलवार के बल पर थोपी गयी, जिन बौद्धों ने इनके अत्याचारों की वजह से ब्राह्मण धर्म(वर्ण व्यस्था) को स्वीकार कर लिया उन्हें आज हम सछूतशूद्र(obc), जिन बौद्धों ने ब्राह्मण धर्म को स्वीकार नही किया उन्हें अछूतशूद्र (sc) और जो बौद्ध अत्याचारों की वजह से जंगलो में रहने लगे उन्हें आज हम अवर्ण(st) के रूप में पहचानते हैं ।

ब्राह्मण धर्म में वर्ण, वर्ण में जाति, जाति में उंच- नीच और ब्राह्मण के आगे सारे नीच, यही वजह है कि जब मुसलमानों का शासन आया तो बड़े पैमाने sc/st/obc के लोग मुसलमान बन गये, जब अंग्रेजो का राज आया तो क्रिस्चन बन गए ।

 आज भी sc/st/obc के लोगों को प्रांतवाद,जातिवाद,भाषावाद,धर्मवाद के नाम पर 'फूट डालो राज करो नीति' को अपनाकर भय,भक्ति, भाग्य, भगवान, स्वर्ग-नर्क, पाप-पूण्य, हवन, यज्ञ,चमत्कार,पाखण्ड अन्धविश्वास,कपोल काल्पनिक पोंगा पंथी कहानिया आदि अतार्किक, अवैज्ञानिक मकड़जाल को इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंटमीडिया के माध्यम से थोपकर तथा मुसलमानों का डर दिखा कर मानसिक रूप से गुलाम बनाया जा रहा है। ऐसे में यदि कोई जागरूक बुद्धिजीवी तर्क करता है तो उसे धर्म विरोधी बताकर बहिस्कृत कर दिया जाता है ।
 
आज बाबा सहाब अम्बेडकर के संवैधानिक अधिकारों की वजह से अनार्य शूद्रों(obc/sc/st) ने हर क्षेत्र में कुछ तरक्की की है परन्तु आर्य ब्राह्मणों ने कांग्रेस/बीजेपी/AAP के राजनैतिक सडयंत्र में फंसाकर एक तरफ तो हिंदुत्व के नाम पर मुसलमानो से लड़ाने का प्रयास किया जा रहा है दूसरी तरफ प्राईवेटाइजेशन,ऐसीजेड और भूमि अधिग्रहण के नाप पर आर्थिक रूप से तथा अंधविस्वास फैलाकर मानसिक रूप से गुलाम बनाने का षड्यंत्र किया जा रहा है ।
 
क्या आज अनार्य शूद्रों के पास आने वाली अंतहीन गुलामी से बचने की समझ और प्लान है ?


👇एक मात्र उपाय

शूद्र(obc), अतिशूद्र(sc/st)
जाति तोड़ो समाज जोड़ो

बहुजन समाज बनाओ
अल्पसंख्यक को मिलाओ
अपनी ताकत दिखाओ
मनुवाद से मुक्ति पाओ

धन, धरती और साधन बांटो
बाद में आरक्षण बांटो !

जिसकी जितनी संख्या भारी
उतनी उसकी हिस्सेदारी !

द्रोणचार्यों से बच्चों को बचाओ

अब तक साइंस यानी केमिस्ट्री, फिजिक्स और मेडिसिन के लिए 583 नोबेल पुरस्कार दिए गए हैं. भारत को सिर्फ चार यानी 04 मिले हैं. क्या इसका कोई दायित्व उन सवर्ण पुरुष प्रोफेसरों पर नहीं है, जो भारत के उच्च शिक्षा केंद्रों पर 90 से 95% तक कब्जा जमाए बैठे हैं?
भारत में दुनिया की 17%आबादी रहती है. लेकिन उसके विशाल हिस्से को ज्ञान, विज्ञान के केंद्रों से दूर रखा गया है. ऐसा करने वाले लोग देशद्रोही हैं. ज्ञान, विज्ञान के क्षेत्र में विविधता का विरोध करने वाले द्रोणचार्यों से बच्चों को बचाओ!
++++++++
विचारार्थ :
ब्राह्मणवादी मीडिया ने दिल्ली पुलिस के लाठी चार्ज के वीडियो को इतने धुआंधार तरीके से क्यों दिखाया?
क्योंकि...
1. रोहित वेमुला मामले में शुरुआती और जानबूझकर की गई अनदेखी की वजह से ब्राह्मणवादी मीडिया की साख शून्य पर पहुंच चुकी थी. दिल्ली और देश के ज्यादातर शहरों में आंदोलनकारियों ने अपने कार्यक्रमों के मीडिया इनविटेशन तक नहीं दिए. प्रेस रिलीज नहीं दी. खोई साख को फिर से हासिल करने के लिए मीडिया को कुछ तो करना था.
2. पुलिस पिटाई का प्रश्न अगर ज्यादा उभरता है, तो यूनिवर्सिटीज में जाति उत्पीड़न का सवाल पीछे जा सकता है. ऐसा हुआ तो मीडिया को बुरा नहीं लगेगा.
3. मनुस्मृति ईरानी के इस्तीफे की मांग तकलीफ देती है. पुलिस कमिश्नर के इस्तीफे की मांग से किसे दिक्कत है? आखिर में चार कॉन्स्टेबल को लाइन हाजिर ही तो करना पड़ेगा. साथ में थानेदार का निलंबन... हो जाएगा.
4. लेकिन द्रोणाचार्य का क्या होगा? वह तो किसी और रोहित वेमुला का शिकार कर रहा होगा. मूल प्रश्न तो द्रोणाचार्यों से मुक्ति पाने का है. यह आंदोलन तो रोहित वेमुलाओं की जान बचाने का है. यूनिवर्सिटीज में जातिगत भेदभाव खत्म करने का है.
+++++++++++
आज से 30 दिन पहले रोहित वेमुला क्या सोच रहा था?
उस समय जबकि मनुस्मृति ईरानी और बंदारू दत्तात्रेय तथा आलोक पांडे और अप्पा राव के षड्यंत्रों की वजह से उसके यूनिवर्सिटी में सामाजिक बहिष्कार का आदेश हो चुका था, तो उसके मानस में क्या चल रहा था?
3 जनवरी, 2016 को रोहित वेमुला ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर माता सावित्रीबाई फुले की कविता लगाई, जो उसे उसके मित्र मुंसिफ भाई ने दी थी. इसमें लोगों से आह्वान है कि पेशवाई के खात्मे के बाद उनके लिए पढ़ने लिखने के मौके खुल गए हैं, उनका लाभ उठाएं.
रोहित ने सावित्रीबाई फुले की 185 वीं जयंती पर आदिवासी, दलित, ओबीसी, सिख, ईसाई, मुसलमानों के हाशिए पर होने और उनके संघर्षों की बात लिखी. उसने खास तौर पर महिला अधिकारों की बात की.
रोहित वेमुला के न रहने पर जो चौतरफा शोक है, उसे आप इस तरह से समझ सकते हैं. वह मुकम्मल इंसान और सच्चा नागरिक था.
+++++++++++
रोहित वेमुला मुद्दे पर चल रहे आंदोलन को लगातार 16 दिनों तक टिकाए रखने और शिक्षा केंद्रों के ब्राह्मणीकरण को केंद्रीय सवाल के तौर पर बनाए रखने में बामसेफ, मूलनिवासी संघ और भारतीय विद्यार्थी मोर्चा की बेहतरीन भूमिका रही है.
कस्बों और तहसील तक फैले देशव्यापी संगठन के बूते ये लोग जमीनी स्तर पर RSS जैसे संगठनों को चुनौती पेश कर रहे हैं. ये संगठन हजारों की संख्या में प्रदर्शन कर चुके हैं. इनके बगैर यह मुद्दा राष्ट्रीय न बन पाता.

रोहित वेमुला के फेसबुक प्रोफाइल पर आप पायेंगे कि वह बामसेफ से प्रभावित था और अक्सर उससे संबंधित स्टेटस शेयर करता था.
+++++++++++

एक जाति के पुरुषों के असंतुलित वर्चस्व यानी दबदबे से भारत की उच्च शिक्षा को जहां तक पहुंचना था, वहां तक वह पहुंच चुकी.
जितने कम नोबेल पुरस्कार आप ला पाए, वह हम देख चुके हैं. वर्ल्ड रैंकिंग में हमारी यूनिवर्सिटीज को जितना नीचे जाना था, वे जा चुकी हैं, पेटेंट का जितना अकाल पड़ना था, पड़ चुका....इसलिए अब हटिए.
बाकियों को स्पेस दीजिए. कंपिटीशन का दायरा बढ़ने दीजिए. हर जाति, बिरादरी से टैलेंट को आने दीजिए. एडजस्ट करना सीखिए.
कब तक रोहित वेमुलाओं को मारते रहेंगे. अब चलिए भी. बहुत देख लिया आप लोगाें का टैलेंट.
++++++++++
IIT के डायरेक्टर्स की कमेटी ने ट्यूशन फीस में 200% बढ़ोतरी की सिफारिश की है. आज के इकोनॉमिक टाइम्स में पहले पन्ने की खबर है... ये सरकार है या जल्लादों का गिरोह? और ये डायरेक्टर हैं या छात्रों के दुश्मन? फेलोशिप देंगे नही, फीस तीन गुना कर देंगे. टॉपर बच्चे का सामाजिक बहिष्कार कर देंगे. लाइब्रेरी नहीं जाने देंगे. ये किस तरह के लोग हैं?

अब जबकि सरकार जबर्दस्ती जाति बता रही है, तो पूछ ही लिया जाए कि ये सारे IIT डायरेक्टर लोग कौन जात हैं? आखिर किस जाति के लोग इस कदर शिक्षा और स्टूडेंट विरोधी होते हैं?
++++++++++
ध्यान रहे कि मनुस्मृति ईरानी और बंदारू दत्तात्रेय के इस्तीफे और तमाम विश्वविद्यालयों में SC, ST, OBC कोटे के खाली पड़े शिक्षक पदों को भरने तथा कैंपस में जातिवाद खत्म करने का आंदोलन, दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल और थानेदार की बर्खास्तगी का आंदोलन न बन जाए...
ब्राह्मणवादी मीडिया ठीक यही चाहेगा.

यह शिक्षा क्षेत्र के लोकतांत्रिकरण का आंदोलन है. यह यूनिवर्सिटीज में सवर्ण पुरुष वर्चस्व और ब्राह्मणवाद से मुक्ति का आंदोलन है. यह रोहित वेमुलाओं की जान बचाने का आंदोलन है.
+++++++++
दक्षिण भारत में बहुजन समाज पार्टी, BSP की चल रही न्याय यात्रा के वैन पर आ गया है रोहित वेमुला...और आपको लग रहा था कि बच्चे हैं, मसलकर खत्म कर दोगे... द्रोणाचार्यों को महंगा पड़ेगा.

धरती पर गिरा यह खून बहने की जगह जम गया है. पता नहीं कि यह कितने रूप में कहां कहां नजर आएगा.
++++++++++++
नरेंद्र मोदी के रोहित वेमुला के लिए बहाए आंसुओं पर जब संघी भक्तों ने भरोसा नहीं किया और मां भारती के लाल को लेकर तमाम तरह के अपशब्द, गाली गलौज करते रहे, तो हम कैसे मान लें कि मोदी के आंसू असली थे.
मोदी के आंसू पर न तो सुषमा स्वराज ने भरोसा किया और न ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने. ये सब मां भारती के लाल की जाति खोज रहे हैं.

मोदी के आंसू नकली हैं! यकीन न हो तो जाकर किसी भी संघी से पूछ लीजिए.
++++++++
नागपुर में "रोहित वेमुला फाइट्स बैक" रैली करने वालों ने तय किया कि मीडिया को कोई प्रेस रिलीज नहीं दी जायेगी. अगले दिन अखबारों ने लिखा - साढ़े तीन किलोमीटर लंबी रैली... मीडिया ने मजबूर होकर कवरेज दिया. शहर के सारे अखबारों को बड़ी खबर छापनी पड़ी.
इस आंदोलन को न तो मीडिया ने शुरू किया है और न ही चैनलों और अखबारों की अनदेखी या साजिशों से यह थमेगा. भारत में सोशल मीडिया युग का यह पहला राष्ट्रीय आंदोलन है. ब्राह्मणवादी मीडिया अब अपनी साख की चिंता करे.

आप सभी हैं पत्रकार!
++++++++++
रोहित वेमुला को लेकर इतने दिनों से इतना बड़ा देशव्यापी आंदोलन चला कौन रहा है? इसके पीछे कौन है?
इस सवाल का पूरा नहीं, लेकिन थोड़ा सा जवाब मेरे पास है. आज रात आपमें से ज्यादातर लोग जब अपनी डायनिंग टेबल पर डिनर कर रहे होंगे, तो लगभग 30 भीमसैनिक दिल्ली की ठंड में एक बस्ती में जुलूस निकालकर लोगों को रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के बारे में बता रहे थे. इनमें सभी PhD और MPhil स्टूडेंट्स हैं. इनमें कई आगे चलकर प्रोफेसर और ब्यूरोक्रेट बनेंगे. लेकिन आज वे पढ़ाई के साथ अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभा रहे हैं. आंदोलन में इनका भी दम लगा है. हजारों लोग, जो तमाम विचारधारा के हैं, उनके दम से चल रहा है आंदोलन.
++++++++++
श्री अजित डोवाल,
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, 
भारत सरकार.
प्रिय मिस्टर डोवाल,
मुझे मालूम है कि आप इन दिनों काफी व्यस्त हैं. आपके कार्यालय में कास्ट सर्टिफिकेट जांचने का जो स्पेशल सेल खुला है, वह काफी तत्परता से काम कर रहा है. बधाई.
लेकिन आप शायद भूले नहीं होंगे कि आपका मुख्य काम देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा सुनिश्चित करना है. मैं आशा करता हूं कि आप सांप्रदायिक शक्तियों पर खास नजर रख रहे होंगे, जिनसे राष्ट्रीय एकता को सबसे बड़ा खतरा है. पश्चिम उत्तर प्रदेश, मालदा और मध्य प्रदेश के धार पर स्वाभाविक रूप से आपकी पैनी नजर होगी क्योंकि ये इलाके लगातार गलत कारणों से चर्चा में हैं. उम्मीद है कि आप राष्ट्र की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे ताकि देश में अमन चैन बना रहे.
वैसे, आपके दफ्तर से जिस तरह रोहित वेमुला की जाति की खबर लीक होकर मीडिया में आई, उससे मैं चिंतित हूं. देश की सुरक्षा जिस दफ्तर के जिम्मे हो, वहां से सूचनाओं का लीक होना अच्छी बात नहीं है.
आपका,
एक आम भारतीय नागरिक
++++++++++
क्यों सुषमा जी,
कोई आदमी प्रधानमंत्री की जाति का हुआ तो सरकार मार डालेगी?

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के दफ्तर में कास्ट सर्टिफिकेट जांचने का स्पेशल सेल बना है. उनसे कहकर नरेंद्र मोदी जी के कास्ट सर्टिफिकेट की भी जांच करवा दीजिए. 2002 में ओबीसी लिस्ट में जो बदलाव हुए थे, उसकी भी जांच हो जाए?
++++++++

 बुद्ध और अशोक शाक्यवंशीय, कबीर जुलाहा, फुले माली, शाहूजी महाराज कुनबी मराठा, पेरियार ओबीसी, संतराम कुम्हार, नारायणा गुरु इझावा, कयूम अंसारी पसमांदा, ललई सिह यादव, कर्पूरी ठाकुर अति पिछड़े, रामस्वरूप वर्मा कुर्मी, जगदेव प्रसाद कुशवाहा, सोनेलाल पटेल कुर्मी... ये सब और ऐसे सैकड़ों लोग बहुजन नायक हैं. बाबा साहेब की परंपरा इन सबसे जुड़ती है, इसलिए उनका नाम मैं सबसे पहले लेता हूं.
संघी लोग हिसाब लगाते रहें कि कौन दलित है और कौन ओबीसी. बहुजन तो सवर्ण वीपी सिंह को भी आदर से याद करता है. ये झगड़ा इस बार लग नहीं पा रहा है. क्यों संघियों, दिक्कत हो रही है?
ब्राह्मणवादियों ने जाति न बनाई होती, तो ये सारे महापुरुष इंसान पैदा हुए थे. ये महापुरुष इसलिए हैं क्योंकि इन्होंने तुम्हारी बनाई जाति व्यवस्था को चुनौती दी. रोहित वेमुला इसी परंपरा का इंसान था.
++++++++++++++
मुस्लिम औरतें हाजी अली दरगाह में प्रवेश के अधिकार के लिए सड़कों पर उतरीं। भक्तों को हार्ट अटैक वाच पर रख देना चाहिए। 
Muslim women protests against Haji Ali Dargah ban on women devotees. Bhakts must be put on Heart Attack Watch.
+++++++++++++
शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश पर अड़ी महिला साथियों को पुलिस ने रोका। आइये, इस्लाम में स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों की कड़ी निंदा करते हैं। :)
Women attempting to enter ShaniShingnapur temple stopped by the Police. Time to condemn the way women are treated in Islam.
++++++++
पद्मविभूषण 10 को , जिसमें सवर्ण 10, पिछड़ा 0, दलित 0, अल्पसंख्यक 0
पद्मभूषण 19 को जिसमें सवर्ण 17, पिछड़ा 0, दलित 0, अल्पसंख्यक 2
पद्मश्री 83 को जिसमें सवर्ण 79, पिछड़ा 1, दलित 0, अल्पसंख्यक 3
क्या यही है, सबका साथ- सबका विकास?
++++++++++
बंदारू दत्तात्रेय की जाति के बारे में सरकार राष्ट्र को बता चुकी है. इसलिए, रहा सहा पर्दा भी अब सरकार को उठा ही देना चाहिए.
इन दिनों कास्ट सर्टिफिकेट जांचने की जिम्मेदारी संभाल रहे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की भी एक जाति होगी. किस जाति के हैं वे? चीफ प्रॉक्टर प्रोफेसर आलोक पांडे की भी तो कोई जाति है. वह क्या है? कुलपति अप्पा राव की भी तो कोई जाति होगी? सामाजिक बहिष्कार का आदेश लिखने वाले विपिन श्रीवास्तव? मनुस्मृति ईरानी? यूजीसी के चेयरमैन वेदप्रकाश? केंद्रीय शिक्षा सचिव? इन सबकी भी तो कोई जाति है..... रोहित की जाति है, तो ये सब कौन जात हैं?
+++++++++++
दिल्ली मैट्रो की सच्ची घटना
जय यौद्धेय . मेरे एक दोस्त राकेश नाहर , जाति जाटव(चमार) ने मुझे दिनांक 27 जनवरी की अपनी आपबीती सुनाई , जब वह दिल्ली मेट्रो में इंदरलोक से पीरागढ़ी जाने के लिए मेट्रो में घुसा ही था तो उसे कुछ अरोड़ा / खत्रिओं (लाहौरी हिंदू ) के लड़के एक 80 वर्षिये बजुर्ग जाट के साथ बदतमीजी करते और उसे जोर जोर से धमकाते नजर आये तो मेरे इस दोस्त से नहीं रहा गया , इसने इन लाहौरी हिंदुओं से पूछा कि ये इस बज़ुर्ग को क्यूँ परेशान कर रहे हैँ तो इन्होंने कहा कि यह बुड्ढा लाइन में खड़ा ना होकर सबसे आगे खड़ा हो गया था तो इस पर मेरे इस दोस्त ने कहा कि तो इसमें इस बज़ुर्ग ने क्या गुनाह कर दिया ,उल्टा तुमको ही इस बज़ुर्ग की उमर का लिहाज करके इसको जगह देनी चाहिये थी .
इस बात पर ये लाहौरी हिंदू मेरे दोस्त से उलझने लगे ,जिस पर मैट्रो में खड़े कुछ और हरयाणा के जाटोँ ने मेरे इस दोस्त का पक्ष लेते हुए इन लाहौरी रिफ्यूजी हिंदूज को धमका कर शांत करवाया .
कुछ देर के बाद शांति होने पर ये रिफ्यूजी आपस में बात करने लगे और कहने लगे कि हरयाणा का आदमी बदमाश होता है ,जिस पर नजदीक खड़े एक उड़ीसा के व्यक्ति ने कहा कि ऎसा नहि है क्योँकि हमने उड़ीसा में हरयाणा के आर्मी के जवानों के साथ काम किया है ,उलटा हरयाणा का आदमी तो बदमाशों की बदमाशी खतम करने वाला होता है . इस दौरान मेरे इस दोस्त ने इन रिफ्यूजी अरोरा /खात्रीओं से पुछा की ये कहाँ उतरेंगे और ये कहाँ से हैँ , तो इन लाहौरी हिंदूज़ ने बताया कि ये पीरागढ़ी में उतरेंगे और वहां से हरयाणा जायेंगे और ये हरयाणा से ही हैँ. इस पर वहाँ मैट्रो में खड़े सभी लोग हंसने लगे .
इसके बाद यह जाट बज़ुर्ग जिसको मुंडका उतरना था मेरे दोस्त को धन्यवाद देने लगा जिस पर मेरे इस चमार मित्तर ने कहा कि यह तो हमारा फ़र्ज़ है .
इस पर इस बुजुर्ग ने बहुत काम की बात कही कि बेटा हमारे जवान तो बस में , मैट्रो में किसी भी अरोड़ा /खत्री बज़ुर्ग को अपनी सीट दे देते हैँ , जबकि मैंने आज तक किसी भी अरोड़ा / खत्री के लड़के को किसी गाँव के बज़ुर्ग आदमी को अपनी सीट देते नहीं देखा और ये लोग जिस हरयाणा का खा रहे हैँ ,उसी को गालियां देते हैँ. यह नमकहरामी की हद्द है .
मेरे दोस्त को पीरागढ़ी उतरना था ,वह उतर गया . साथिओं जिस दिन जाट और चमार में एक दुसरे के लिए यह आपसदारी की भावना पैदा हो
यूनियनिस्ट मिशन इसी हमारे पुराने भाईचारे को फिर से एक करने में लगा हुआ है .
आपसे निवेदन है की इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें .
_मनोज दूहन , व्हाट्सएप्प @ 9728888931
++++++++++
हालात ऐसे हैं कि नाम में मिश्रा, तिवारी,पांडे,द्विवेदी,त्रिवेदी, चतुर्वेदी, वाजपेई,शुक्ला, दीक्षित, ओझा,पाठक,
लगा हो तो आप यूपी में लोकायुक्त बन सकते है
और अगर आप अहीर , कुर्मी,काछी,लोधी,नाई,बढ़ई,लोहार,कुम्हार ,सुनार,कलार,कलवार,चमार,पासी,तेली,भंगी हैं तो आप कभी भी यूपी का लोकायुक्त नहीं बन सकते।।
जनेऊधारी यूपी में मनुस्मृति का शासन लाने की योजना पर काम कर रहे हैं।।लोकायुक्त की नियुक्त इसकी शुरूआत है।।
++++++++++
डर तो लग रहा है सरकार को भी और सरकार के बाप आरएसएस को भी। तभी तो ढेर सारे मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तक रोहित वेमुला की जाति बताने में लगे हैं। पुलिस के साथ घुसकर आरएसएस के गुंडे प्रदर्शन कर रहे निहत्थे एससी एसटी ओबीसी बच्चे-बच्चियों को पीट रहे हैं। कुछ बड़ी उथल पुथल होने की आशंका इनको हो रही है तो बेवजह नहीं। जाति से काम नहीं चला तो मामला पुलिस ज्यादती का बनाने की कोशिश एक और पैंतरा है। पर, कुछ भी कर लो, कुछ बड़ा तो होने वाला है।
+++++++++
मोदी सरकार का क्रांतिकारी फ़ैसला।
डीज़ल चार पैसे और पेट्रोल पाँच पैसे सस्ता।
इस तरह से हर महीने अपनी कार में डीज़ल डलवाने के बाद मुझे पूरे पचास रूपए सोलह पैसे की बचत हो जाएगी। 
इन पैसों को मैं जनधन योजना वाले बैंक अकाउंट में डाल कर उसका ब्याज खाऊँगा। पार्टी करूँगा। मूवी देखूँगा। जो बच जाएगा उससे भाजपाईयों के लिए पटरी वाली निक्कर ख़रीदूँगा।
फिर भी कुछ पैसे बचते हैं तो स्टार्टअप इंडिया के तहत मुर्ग़ी पालन करूँगा। गाय भैंस तो पाल नहीं सकता।
फिर कुछ पैसा बचेगा तो गैस सब्सिडी छोड़ने का विचार करूँगा। इसके बाद भी कुछ बच जाता है तो अच्छे दिनों का वादा करने वालों की *#%# में डाल दूँगा।
+++++++++++
हैदराबाद से दिल्ली। दिल्ली से बंबई, नागपुर, बनारस, इलाहाबाद, पटना, जयपुर...यह आग नहीं थमने वाली साहेब। चलाओ लाठी। मारो गोली। लगाओ आग। फैलाओ अफवाह। अंबेडकरवादी, मानवतावादी, संविधान वादी, मार्क्सवादी, उदारवादी, नारीवादी....और सबसे अधिक देश से प्यार करने वाला आम नागरिक अब विपक्ष है। इसे मैनेज करना संभव नहीं आपके लिए।
कैंपसों को नहीं छेड़ा है तुमने संघियों अपनी क़ब्र खोदी है। विद्रोही छात्रों पर पड़ी एक एक लाठी तुम्हारी ताबूत का आख़िरी कील साबित होगी। ये डरने वाले बंदे/बंदियाँ नहीं हैं।
जय भीम 
इंकलाब ज़िंदाबाद 
हमारी जान - भारतीय संविधान

ब्राह्मण शाकाहारी क्यों बने? 13

अध्याय १३ : ब्राह्मण शाकाहारी क्यों बने?
TODAY · PUBLIC
 एक समय था जब ब्राह्मण सब से अधिक गोमांसाहारी थे। कर्मकाण्ड के उस युग में शायद ही कोई दिन ऐसा होता हो जब किसी यज्ञ के निमित्त गो वध न होता हो, और जिसमें कोई अब्राह्मण किसी ब्राह्मण को न बुलाता हो। ब्राह्मण के लिए हर दिन गोमांसाहार का दिन था। अपनी गोमांसा लालसा को छिपाने के लिए उसे गूढ़ बनाने का प्रयतन किया जाता था। इस रहस्यमय ठाठ बाट की कुछ जानकारी ऐतरेय ब्राह्मण में देखी जा सकती है। इस प्रकार के यज्ञ में भाग लेने वाले पुरोहितों की संख्या कुल सत्रह होती, और वे स्वाभाविक तौर पर मृत पशु की पूरी की पूरी लाश अपने लिए ही ले लेना चाहते। तो यजमान के घर के सभी सदस्यों से अपेक्षित होता कि वे यज्ञ की एक विधि के अन्तर्गत पशु के मांस पर से अपना अधिकार छोड़ दें।
ऐतरेय ब्राह्मण में जो कुछ कहा गया है उस से दो बातें असंदिग्ध तौर पर स्पष्ट होती हैं। एक तो यह कि बलि के पशु के सारा मांस ब्राह्मण ही ले लेते थे। और दूसरी यह कि पशुओं का वध करने के लिये ब्राह्मण स्वयं कसाई का काम करते थे।
तब फिर इस प्रकार के कसाई, गोमांसाहारियों ने पैंतरा क्यों बदला?
पहले बताया जा चुका है कि अशोक ने कभी गोहत्या के खिलाफ़ कोई का़नून नहीं बनाया। और यदि बनाया भी होता तो ब्राह्मण समुदाय एक बौद्ध सम्राट के का़नून को क्यों मानते? तो क्या मनु ने गोहत्या का निषेध किया था? तो क्या मनु ने कोई का़नून बनाया? मनुस्मृति के अध्याय ५ में खान पान के विषय में श्लोक मिलते हैं;
"बिना जीव को कष्ट पहुँचाये मांस प्राप्त नहीं किया जा सकता और प्राणियों के वध करने से स्वर्ग नहीं मिलता तो मनुष्य को चाहिये कि मांसाहार छोड़ दे।" (५.४८)
तो क्या इसी को मांसाहार के विरुद्ध निषेधाज्ञा माना जाय? मुझे ऐसा मानने में परेशानी है और मैं समझता हूँ कि ये श्लोक ब्राह्मणों के शाकाहारी बन जाने के बाद में जोड़े गये अंश हैं। क्योंकि मनुस्मृति के उसी अध्याय ५ के इस श्लोक के पहले करीब बीस पच्चीस श्लोक में विवरण है कि मांसाहार कैसे किया जाय, उदाहरण स्वरूप;
प्रजापति ने इस जगत को इस प्राण के अन्न रूप में बनाया है, सभी चराचर (जड़ व जीव) इस प्राण का भोजन हैं। (५.२८)
मांस खाने, मद्यपान तथा मैथुन में कोई दोष नहीं। यह प्राणियों का स्वभाव है पर उस से परहेज़ में महाफल है।(५.५६)
ब्राह्मणों द्वारा मंत्रो से पवित्र किया हुआ मांस खाना चाहिये और प्राणों का संकत होने पर अवश्य खाना चाहिये। (५.२७)
ब्रह्मा ने पशुओं को यज्ञो में बलि के लिये रचा है इसलिये यज्ञो में पशु वध को वध नहीं कहा जाता। (५.३९)
एक बार तय हो जाने पर जो मनुष्य (श्राद्ध आदि अवसर पर) मांसाहार नहीं करता वह इक्कीस जन्मो तक पशु योनि में जाता है। (५.३५)
स्पष्ट है कि मनु न मांसाहार का निषेध नहीं किया और गोहत्या का भी कहीं निषेध नहीं किया।मनु के विधान में पाप कर्म दो प्रकार के हैं;१) महापातक: ब्रह्म हत्या, मद्यपान, चोरी, गुरुपत्नीगमन ये चार अपराध महापातक हैं।और २) उपपातक: परस्त्रीगमन, स्वयं को बेचना, गुरु, माँ, बाप की उपेक्षा, पवित्र अग्नि का त्याग, पुत्र के पोषण से इंकार, दूषित मनुष्य से यज्ञ कराना और गोवध।
स्पष्ट है कि मनु की दृष्टि में गोवध मामूली अपराध था। और तभी निन्दनीय था जब गोवध बिना उचित और पर्याप्त कारण के हो। याज्ञवल्क्य ने भी ऐसा ही कहा है।
तो फिर आज के जैसी स्थिति कैसे पैदा हुई? कुछ लोग कहेंगे कि ये गो पूजा उसी अद्वैत दर्शन का परिणाम है जिसकी शिक्षा है कि समस्त विश्व में ब्रह्म व्याप्त है। मगर यह संतोषजनक नहीं है जो वेदांतसूत्र ब्रह्म के एकत्व की बात करते हैं वे यज्ञ के लिये पशु हत्या को वर्जित नहीं करते (२.१.२८)। और अगर ऐसा है भी तो यह आचरण सिर्फ़ गो तक सीमित क्यों सभी पशुओं पर क्यों नहीं लागू होता?
मेरे विचार से ये ब्राह्मणों के चातुर्य का एक अंग है कि वे गोमांसाहारी न रहकर गो पूजक बन गए। इस रहस्य का मूल बौद्ध-ब्राह्मण संघर्ष में छिपा है। उन के बीच तू डाल डाल मैं पात पात की होड़ भारतीय इतिहास की निर्णायक घटना है। दुर्भाग्य से इतिहासकारों ने इसे ज़्यादा महत्व नहीं दिया है। वे आम तौर पर इस तथ्य से अपरिचित होते हैं कि लगभग ४०० साल तक बौद्ध और ब्राह्मण एक दूसरे से बाजी मार ले जाने के लिए संघर्ष करते रहे।
एक समय था जब अधिकांश भारतवासी बौद्ध थे। और बौद्ध धर्म ने ब्राह्मणवाद पर ऐसे आक्रमण किए जो पहले किसी ने नहीं किए। बौद्ध धर्म के विस्तार के कारण ब्राह्मणों का प्रभुत्व न दरबार में रहा न जनता में। वे इस पराजय से पीड़ित थे और अपनी प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त करने के प्रयत्नशील थे। इसका एक ही उपाय था कि वे बौद्धों के जीवनदर्शन को अपनायें और उनसे भी चार कदम आगे बढ़ जायें। बुद्ध के परिनिर्वाण के बाद बौद्धों ने बुद्ध की मूर्तियां और स्तूप बनाने शुरु किये। ब्राह्मणों ने उनका अनुकरण किया। उन्होने शिव, विष्णु, राम, कृष्ण आदि की मूर्तियां स्थापित करके उनके मंदिर बनाए। मकसद इतना ही था कि बुद्ध मूर्ति पूजा से प्रभावित जनता को अपनी ओर आकर्षित करें। जिन मंदिरों और मूर्तियों का हिन्दू धर्म में कोई स्थान न था उनके लिए स्थान बना।
गोवध के बारे में बौद्धों की आपत्ति का जनता पर प्रभाव पड़ने के दो कारण थे कि एक तो वे लोग कृषि प्रधान थे और दूसरे गो बहुत उपयोगी थे। और उसी वजह से ब्राह्मण गोघातक समझे जाकर घृणा के पात्र बन गए थे।
गोमांसाहार छोड़ कर ब्राह्मणों का उद्देश्य बौद्ध भिक्षुओं से उनकी श्रेष्ठता छीन लेना ही था। और बिना शाकाहारी बने वह पुनः उस स्थान को प्राप्त नहीं पर सकता था जो बौद्धों के आने के बाद उसके पैर के नीचे से खिसक गया था। इसीलिए ब्राह्मण बौद्ध भिक्षुओं से भी एक कदम आगे जा कर शाकाहारी बन गए। यह एक कुटिल चाल थी क्योंकि बौद्ध शाकाहारी नहीं थे। हो सकता है कि ये जानकर कुछ लोग आश्चर्य करें पर यह सच है। बौद्ध त्रिकोटी परिशुद्ध मांस खा सकते थे।यानी ऐसे पशु को जिसे उनके लिए मारा गया ऐसा देखा न हो, सुना न हो और न ही कोई अन्य संदेह हो। इसके अलावा वे दो अन्य प्रकार का मांस और खा सकते थे- ऐसे पशु का जिसकी स्वाभाविक मृत्यु हुई हो या जिसे किसी अन्य वन्य पशु पक्षी ने मार दिया हो।
तो इस प्रकार के शुद्ध किए हुए मांस खाने वाले बौद्धों से मुकाबले के लिए मांसाहारी ब्राह्मणों को मांस छोड़ने की क्या आवश्यक्ता थी। थी, क्योंकि वे जनता की दृष्टि में बौद्धों के साथ एक समान तल पर खड़े नहीं होना चाहते थे। यह अति को प्रचण्ड से पराजित करने की नीति है। यह वह युद्ध नीति है जिसका उपयोग वामपंथियों को हटाने के लिए सभी दक्षिणपंथी करते हैं।
एक और प्रमाण है कि उन्होने ऐसा बौद्धों को परास्त करने के लिए ही किया। यह वह स्थिति बनी जब गोवध महापातक बन गया। भण्डारकर जी लिखते हैं कि, "हमारे पास एक ताम्र पत्र है जो कि गुप्त राजवंश के स्कंदगुप्त के राज्यकाल का है। यह एक दान पात्र है जिसके अंतिम श्लोक में लिखा है : जो भी इस प्रदत्तदान में हस्तक्षेप करेगा वह गो हत्या, गुरुहत्या, या ब्राह्मण हत्या जैसे पाप का भागी होगा।" हमने ऊपर देखा है कि मनु ने गोवध को उपपातक माना है। मगर स्कन्द गुप्त के काल (४१२ ईसवी) तक आते आते महापातक बन गया।
हमारा विश्लेषण है कि बौद्ध भिक्षुओ पर अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए ब्राह्मणों के लिए यह अनिवार्य हो गया था कि वे वैदिक धर्म के एक अंश से अपना पीछा छुड़ा लें। यह एक साधन था जिसे ब्राह्मणों ने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पाने के लिए उपयोग किया।

मोदी सरकार का ``420" वा दिन

आज मोदी सरकार का ``420" वा दिन है !

जब 420 सरकार ने शपथ ली थी......

तब रेल किराया अमृतसर से जालंधर का 45 रूपये था आज 14% बढोतरी के बाद 60 रूपये है !

प्लेटफार्म टिकट 3 रूपये था और आज 10 रूपये है।

98 रूपये मे 2G नेट पैक अनलिमिटेड आता था  आज 2G 246 रूपये मे आता है अनलिमिटेड तब काल रेट 30 पैसे मिनट था आज 1 रूपये मिनट ।

तब कच्चा तेल 138 डॉलर बैरल था और पैट्रोल दिल्ली में 71 रूपये लीटर था आज कच्चा तेल 40 डॉलर बैरल है और पैट्रोल 60 रूपये लीटर दिल्ली मे और पंजाब मे 68.32 पैसे लीटर।

और दाल तुवर की 70 रूपये थी और आज 140 रूपये है 10 रूपये किलो वाला प्याज 80 रूपये किलो हो गया है ।

सर्विस टैक्स 12.36% था आज 14% है एक्साइज ड्यूटी 10% थी आज 12.36% है और सभी उधोगपति दोस्त बैलेंस शीट चैक कर लें साथ ही चार्टड अकाउंटेंट साहब अपने ग्राहकों और ग्राहक स्वंय बैलेंस शीट जेब देख ले सारा माजरा समझ आ जाएगा ।

                 अच्छे दिन !
आज मोदी सरकार का 420" दिन है।
ये वो सरकार है जो आपसे 100 करोड रुपये की गैस सब्सिडी खत्म करवाने के लिए 250 करोड के विज्ञापन दे चुकी है । आज विशव में कच्चे तेल एवं गैस के भाव के मधेनज़र गैस का भाव वैसे भी ₹400 होना चाहिए

स्वच्छता अभियान का विज्ञापन भी 250 करोड का था लेकिन दिल्ली के सफाई कर्मियों की तनख्वाह के लिए जरूरी 35 करोड इनके पास नहीं है ।

 किसान ``टीवी" पर  सालाना 100 करोड का खर्चा दे सकते हैं क्योंकि इस चैनल के  सलाहकार समेत आधे कर्मचारी आर एस एस के किसी अनुशागिक संगठन से है.........
मगर किसानों की खुद सब्सिडी छीन ली।

इनके पास योगा डे के लिए 500 करोड है, रामदेव के पतंजलि को हरियाणा स्कूलो मे योगा सिखाने के लिए सालाना 700 करोड है...
मगर इन्होनें प्राथमिक शिक्षा के बजट में 20% की कटौती की स्कूलो के लिए इनके पास पैसे नहीं हैं।

इस सरकार के पास कॉरपोरेट को 64 हजार करोड है टैक्स छूट देने के लिए मगर आत्महत्या कर रहे किसानों का करजा चुकाने को 15000 करोड नहीं है ।

स्किल इंडिया के लिए 200 करोड का विज्ञापन बजट है मगर युवाओं की छात्रवृति मे 500 करोड की कटौती कर दी है।

सरकार घाटे में हैं । ओ एन जी सी , स्टेट बैंक बेचने की तैयारी है । रेलवे की जमीनें बेचने का टेंडर पास कर दिया है । मगर अडानी के लिए 22000 करोड देने को है ।

भारत की जनता यह सरकस देख रही है ।

आप से विनती है........
अपनी नैतिक जिम्मेदारी समझकर हर एक देशवासी तक यह संदेश पहुंचाए ।

Monday, February 1, 2016

संविधान सभा में बाबा साहेब के अंतिम वक्तव्य (25 नवंबर 1949) का एक अंश

संविधान सभा में बाबा साहेब के अंतिम वक्तव्य (25 नवंबर 1949) का एक अंश

लेखक: डॉ. भीमराव आंबेडकर।।
हमें सिर्फ राजनीतिक लोकतंत्र से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। हमें अपने राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र भी बनाना चाहिए। राजनीतिक लोकतंत्र तब तक स्थायी नहीं हो सकता, जब तक इसकी बुनियाद में सामाजिक लोकतंत्र न हो। सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ क्या है? इसका अर्थ है एक ऐसी जीवन शैली, जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को जीवन का मूल सिद्धांत मानती हो। इसकी शुरुआत इस तथ्य को मान्यता देकर ही की जा सकती है कि भारतीय समाज में दो चीजें सिरे से अनुपस्थित हैं। इनमें एक है समानता। सामाजिक धरातल पर, भारत में एक ऐसा समाज है जो श्रेणीबद्ध असमानता पर आधारित है। और आर्थिक धरातल पर हमारे समाज की हकीकत यह है कि इसमें एक तरफ कुछ लोगों के पास अकूत संपदा है, दूसरी तरफ बहुतेरे लोग निपट भुखमरी में जी रहे हैं।
अंतर्विरोधों भरा जीवन
26 जनवरी 1950 को हम एक अंतर्विरोध पूर्ण जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में हमारे पास समानता होगी, जबकि सामाजिक और आर्थिक जीवन में हम असमानता से ग्रस्त होंगे। राजनीति में हम 'एक मनुष्य, एक वोट' और 'एक वोट, एक मूल्य' वाले सिद्धांत को मान्यता दे चुके होंगे। सामाजिक और आर्थिक जीवन में तथा अपने सामाजिक-आर्थिक ढांचे का अनुसरण करते हुए हम 'एक मनुष्य, एक मूल्य' वाले सिद्धांत का निषेध कर रहे होंगे। ऐसा अंतर्विरोधों भरा जीवन हम कब तक जीते रहेंगे? सामाजिक-आर्थिक जीवन में समानता का निषेध कब तक करते रहेंगे? अगर हम ज्यादा दिनों तक इसे नकारते रहे तो इसका कुल नतीजा यह होगा कि हमारा राजनीतिक जनतंत्र ही संकट में पड़ जाएगा। इस अंतर्विरोध को हम जितनी जल्दी खत्म कर सकें उतना अच्छा, वर्ना असमानता के शिकार लोग राजनीतिक लोकतंत्र के ढांचे को उड़ा देंगे, जिसे इस सभा ने इतनी मुश्किल से खड़ा किया है।
जिस दूसरी चीज का हमारे यहां सर्वथा अभाव है, वह है भ्रातृत्व के सिद्धांत की मान्यता। भ्रातृत्व का अर्थ क्या है? इसका अर्थ है सभी भारतीयों के बीच भाईचारे की भावना- बशर्ते भारतीयों को हम एक जनसमुदाय मानते हों। यह ऐसा सिद्धांत है जो सामाजिक जीवन को एकता और एकजुटता प्रदान करता है, लेकिन इसे हासिल करना कठिन है। कितना कठिन है, इसका अंदाजा यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के संदर्भ में जेम्स ब्राइस द्वारा लिखे गए ग्रंथ अमेरिकन कॉमनवेल्थ को पढ़कर लगाया जा सकता है।
ब्राइस के ही शब्दों में- 'कुछ साल पहले अमेरिकन प्रोटेस्टेंट एपीस्कोपल चर्च के त्रिवार्षिक सम्मेलन में पूजा पद्धति के बदलाव को लेकर चर्चा चल रही थी। इस दौरान यह जरूरी पाया गया कि छोटे वाक्यों वाली प्रार्थनाओं में ऐसी एक प्रार्थना भी शामिल की जानी चाहिए, जो समूची जनता के लिए हो। न्यू इंग्लैंड के एक प्रतिष्ठित धर्माचार्य ने इसके लिए इन शब्दों का प्रस्ताव रखा- 'ओ लॉर्ड, ब्लेस अवर नेशन' (हे प्रभु, हमारे राष्ट्र पर कृपा करो)। उस शाम तो झटके में इसे स्वीकार कर लिया गया, लेकिन अगले दिन जब इसको पुनर्विचार के लिए लाया गया तो गृहस्थ ईसाइयों ने 'राष्ट्र' शब्द पर कई तरह की आपत्तियां उठा दीं। उनका कहना था कि इस शब्द के जरिए राष्ट्रीय एकता को कुछ ज्यादा ही ठोस रूप दे दिया गया है। नतीजा यह हुआ कि प्रार्थना से इस शब्द को हटा दिया गया। पुराने वाक्य की जगह जो नया वाक्य आया, वह था- 'हे प्रभु, इन संयुक्त राज्यों पर कृपा करो।'
जब यह घटना घटित हुई, उस समय तक संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों में एकजुटता का तत्व इतना कम था कि वे स्वयं को एक राष्ट्र नहीं महसूस कर पाते थे। अगर संयुक्त राज्य अमेरिका के लोग खुद को एक राष्ट्र नहीं मान पाते थे तो भारतीयों के लिए ऐसा मान पाना कितना मुश्किल होगा, यह बात आसानी से समझी जा सकती है। मुझे वे दिन याद हैं जब राजनीतिक मिजाज वाले भारतीय भी 'भारत के लोग' जैसी अभिव्यक्ति पर नाराजगी जताते थे। इसकी जगह 'भारतीय राष्ट्र' उन्हें कहीं बेहतर जान पड़ता था। मेरी राय है कि स्वयं को एक राष्ट्र मान कर हम बहुत बड़ी गलतफहमी पाल रहे हैं। कई हजार जातियों में बंटे हुए लोग भला एक राष्ट्र कैसे हो सकते हैं?
बंधुत्व ही आधार
जितनी जल्दी हम यह मान लें कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक अर्थों में हम अभी तक एक राष्ट्र नहीं बन पाए हैं, हमारे लिए उतना ही अच्छा होगा। क्योंकि इस सचाई को स्वीकार कर लेने के बाद हमें एक राष्ट्र बनने की जरूरत महसूस होगी और उसके बाद ही हम इस लक्ष्य को हासिल करने के रास्तों और तौर-तरीकों पर विचार कर पाएंगे। casteइस लक्ष्य को हासिल करना बहुत मुश्किल साबित होने वाला है- अमेरिका में यह जितना मुश्किल साबित हुआ, उससे कहीं ज्यादा। अमेरिका में जाति कोई समस्या नहीं है। भारत में जातियां हैं और जातियां राष्ट्रविरोधी हैं। सबसे पहले तो इसलिए क्योंकि ये सामाजिक जीवन में अलगाव लाती हैं। वे इसलिए भी राष्ट्रविरोधी हैं क्योंकि वे विभिन्न जातियों के बीच ईर्ष्या और द्वेष की भावना पैदा करती हैं। लेकिन अगर हम वास्तव में एक राष्ट्र बनना चाहते हैं तो हमें हर हाल में इन कठिनाइयों पर विजय पानी होगी। वह इसलिए, क्योंकि बंधुत्व तभी संभव है जब हम एक राष्ट्र हों, और बंधुत्व न हो तो समानता और स्वतंत्रता की औकात मुलम्मे से ज्यादा नहीं होगी।