Monday, February 1, 2016

बाबा साहब ने तुमको अपना खुद का अपना धर्म बौद्ध धम्म में लौटा दिया तो फिर क्यों खुद को हिन्दू दलित समझते हो ?

दलित अपनी बेइज़्ज़ती करने खुद जाते हैं,जब ब्राह्मण नहीं चाहते की ये लोग मंदिर जाएँ तो जाते क्यों हो? जब बाबा साहब ने तुमको अपना खुद का अपना धर्म बौद्ध धम्म में लौटा दिया तो फिर क्यों खुद को हिन्दू दलित समझते हो क्या तुम भूल गए मनुविधान की सजाएँ, मंदिर प्रवेश पर मार दिया जाना, शास्त्र सुन लेने पर कान में पिग्ला शीशा डलवाना आदि आदि…. ब्राह्मणों ने तुमको मंदिर से दूर रखने की हर संभव कोशिश की पर तुम ही नहीं मानोगे तो गलती किसकी है
हम तो ये मान लेते हैं कि हमारे छूने से ये भगवान अपवित्र और गंदे हो जाते हैं । इसका मतलब क्या है ? इसका सीधा सा मतलब है कि ये भगवान हमसे कमजोर हैं, जो हमसे खुद अपनी रक्षा नहीं कर सकते हैं और हम इनसे ताकतवर हैं । इनको जब पता है कि इनके छूने से हम गंदे हो जायेंगे तो इनको हमसे बचना चाहिए और दूरी बना लेनी चाहिए लेकिन ये हमसे दूर जाने में भी सक्षम नही हैं । इससे पता चलता है कि ये चलने फिरने में भी अक्षम हैं । ये खुद अपनी मदद भी नही कर सकते हैं । अपवित्र होने के बाद भी इनको साफ करने के लिए किसी धूर्त इन्सान की ही जरुरत पड़ती है । ये नही कि खुद गंगा जाये और नहाकर वापिस अपनी जगह आ जाये लेकिन ये खुद नहा धोकर साफ भी नही हो सकते । नहाने धोने के लिए भी इंसानों पर ही निर्भर हैं । अगर ये इनको नहीं नहलाएं तो यूँ ही गंदे अपवित्र पड़े रह जायेंगे । सोचिये जो भगवान खुद ना तो हमसे खुद को अपवित्र होने से बचा सकता है और ना ही हमसे बचने के अपनी जगह बदल सकता है और जो ना खुद नहा धो सकता है, वो ऐसा भगवान आपकी क्या मदद कर सकता है ? निस्संदेह ही वो भगवान हमसे कमजोर है और जो भगवान हमसे कमजोर है वो हमारी क्या मदद कर सकता है ? कोई भी अगर सिर झुकाता है तो अपने से बड़े और शक्तिशाली के आगे झुकाता है और एक हम मूर्ख हैं जो अपने से कमजोर और अशक्त के सामने झुके मरे जा रहे हैं । कभी भी माँगा उससे जाता है जो देने में सक्षम हो और हम उससे माँगते हैं जो खुद दूसरों पर आश्रित है । अपनी मानसिकता बदलिए और छोड़ दीजिये ऐसे भगवानों को जो ना खुद की मदद कर सकता है और जो ना कहीं चल फिर सकता है । जय भीम जय भारत नमो बुद्धाय

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