Friday, October 21, 2016

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी अपने को 'राष्ट्रवादी' विचारधारा से संचालित संगठन बताते हैं

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी अपने को 'राष्ट्रवादी' विचारधारा से संचालित संगठन बताते हैं.

मेरे विचार से भारत में 'राष्ट्रवाद' की विचारधारा की जनक भाजपा से ज़्यादा कांग्रेस रही है.

वहीं, संघ की विचारधारा एक समुदाय मात्र को मजबूत करने वाली प्रतीत होती है.

भारत जैसी सांस्कृतिक विविधता वाले देश में किसी एक समुदाय के बजाय सभी समुदायों को लेकर चलने वाली विचारधारा ही ज़रूरी प्रतीत होती है.

पढें विकास पाठक का लेख विस्तार से

मैं अपने परिवार को 'राष्ट्रवादी' इसलिए कहता हूँ कि मेरे पिता अर्धसैनिक बल में थे और मैं उसी परिवेश में पला और बड़ा हुआ.

पहले इस बात में यक़ीन करता था कि लोग किसी विचारधारा से सहमत होने के बाद ही उससे जुड़ते हैं.

मैं उत्तर भारत के एक उच्च जाति के हिंदू परिवार से हूँ. मेरी किशोरावस्था के दौरान रामजन्मभूमि आंदोलन और मंडल आंदोलन अपने चरम पर था.

समाज भारतीय जनता पार्टी की ओर झुक रहा था. ख़ासकर वो समाज, जिससे मैं आता हूँ.

'राष्ट्रवाद' मेरे परिवार के अंदर था.

स्नातक की पढ़ाई के दौरान संसद में अटल बिहारी वाजपेयी के भाषणों से मैं काफ़ी प्रभावित रहा. लेकिन, जब मैं एमए करने के लिए जेएनयू पहुँचा तो मुझे बड़ा सांस्कृतिक झटका लगा.

अलगाववादी या राष्ट्रविरोधी

जेएनयू में कश्मीरी अलगाववादियों को भी बुलाया जाता था, जो मेरे लिए झटके जैसा था. मुझे लगता था कि ऐसा करना राष्ट्रविरोधी है.

मुझे यह भी लगने लगा कि साम्यवादी आंदोलन राष्ट्रविरोधी है. इससे मेरा झुकाव अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की ओर होता चला गया.

1998 में ऐसा मौक़ा भी आया जब मैं इसमें पूरी तरह सक्रिय हो गया. धीरे-धीरे मेरी अपनी पहचान विद्यार्थी परिषद के सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में होनी शुरू हो गई.

मैं पाँच-छह साल तक विद्यार्थी परिषद से जुड़ा रहा. इस दौरान मैं विद्यार्थी परिषद के वैचारिक पर्चे लिखा करता था. मेरी सक्रियता वैचारिक ही थी.

परिषद से जुड़े आंदोलनों से मुझे भावनात्मक समर्थन मिल रहा था और मेरी जान-पहचान भी इससे जुड़े लोगों से ही हो रही थी.

शोध और समझ

एमफिल और पीएचडी के दौरान मैंने बीसवीं सदी की शुरुआत में हिंदू राष्ट्रवादी आंदोलनों पर अध्ययन करना शुरू किया.

इस पर गहन अध्ययन के दौरान बौद्धिक स्तर पर मुझे दो चीज़ें समझ में आईं.

पहली ये कि भारतीय राष्ट्रवाद में जनसंघ या भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की कोई भूमिका नहीं थी. हक़ीक़त यह है कि भारतीय राष्ट्रवाद में सबसे अहम भूमिका कांग्रेस की ही थी.

शोध के दौरान मुझे भारत की आज़ादी के आंदोलन में संघ की सक्रिय भूमिका का कोई प्रमाण नहीं मिल पाया. बौद्धिक स्तर पर मेरी राष्ट्रवाद की शुरुआती समझ को उसी समय बड़ा झटका लगा.

शोध के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँचा कि संघ राष्ट्रवाद का एकमात्र प्लेटफॉर्म नहीं है. मगर इसका मतलब क़तई यह नहीं है कि 'राष्ट्रवाद' में संघ की भूमिका का हवाला देकर आज भाजपा पर सवाल उठाए जाएं.

बदलता संदर्भ

शोध के बाद संघ की कमजोरियाँ और ताक़त मेरे सामने खुलकर आने लगीं. मूल रूप से यह आंदोलन हिंदुओं को एकजुट करने का था. हालांकि मैंने संघ से दूरी इस ज्ञान के मिलने के बाद नहीं बनाई.

मैं 2004 में संघ से दूर हुआ. जेएनयू से निकलने के बाद मैंने पत्रकारिता की पढ़ाई शुरू की.

जेएनयू से संपर्क टूटने के बाद मेरी विचारधारा का संदर्भ भी बदलना शुरू हो गया. जब मैं जेएनयू में था तब विद्यार्थी परिषद मेरे लिए सब कुछ थी. लेकिन अब मैं एक पत्रकार बन रहा था.

इससे विद्यार्थी परिषद के साथ जुड़े रहने की मेरी बौद्धिक, वैचारिक और भावनात्मक ज़रूरतें नहीं रहीं. धीरे-धीरे मैं परिषद से दूर होता गया. हालांकि मैं किसी और विपक्षी विचारधारा से भी नहीं जुड़ा.

मतभेद के बिंदु

विकास फिलहाल अध्यापन के पेशे से जुड़े हुए हैं.

मैं गांधी की विचारधारा और सावरकर की विचारधारा के बीच के फ़र्क को समझने लगा था.

एक की विचारधारा मतभेदों को नज़रअंदाज़ करके जोड़ने वाले बिंदु खोजने की है. महात्मा गांधी का एजेंडा मतभेदों को दूर करने का था.

जबकि दूसरे की विचारधारा अपने समुदाय को मजबूत करने की थी.

ये एक समुदाय के विकास का मॉडल है जबकि गांधी की विचारधारा सभी समुदायों को साथ लेकर चलने की लगती है.

मुझे लगता है कि भारत जैसे विविधताओं वाले देश में साथ चलना वक़्त की ज़रूरत है.

मैं गांधीवादी विचारधारा से पूरी तरह प्रभावित हो गया. वक़्त के साथ मेरी रुचि भी बदली और मैं संघ से अलग हो गया.

जब भी कोई RSS वाला देशभक्ति की बात करे, उसे कहिए केस नंबर 176, नागपुर, 2001.

वह शर्म से सिर झुका लेगा. हां, यह तभी होगा अगर उनमें लाज बची हो.

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट और संविधान विशेषज्ञ नितिन मेश्राम की हजारों किताबों की शानदार लाइब्रेरी में इस केस का जजमेंट रखा है.

26 जनवरी, 2001 को तीन युवक नागपुर में संघ हेडक्वार्टर पहुंचे. उनके पास भारत का राष्ट्रीय ध्वज था. वे उस बिल्डिंग पर पहली बार राष्ट्रीय झंडा फहराना चाहते थे. वहां मौजूद संघ के बड़े नेताओं ने ऐसा नहीं करने दिया और पुलिस केस कर दिया. उनकी सरकार थी. पुलिस ने झंडा जब्त कर लिया.

आखिरकार कोर्ट ने तीनों को बरी कर दिया. सबसे बड़ी बात.... आदेश में दर्ज है कि झंडे को पूरी मर्यादा के साथ हिफाजत में रखा जाए.

इस घटना की शर्म की वजह से अब संघ ने कहीं कहीं राष्ट्रीय झंडा फहराना शुरू कर दिया है.

जातिवाद क्या है ?? ” ::– पेरियार इ.वी. रामासामी (कोइन्म्ब्तूर

” जातिवाद क्या है ?? ” ::– पेरियार इ.वी.
रामासामी
(कोइन्म्ब्तूर में सन 1958 को पेरियार दुयारा
दिया गये भाषण के कुछ अंश )
” मैं क्या हूँ ?? ( What I am ??)
” पहला ::– मुझे ईशवर तथा दुसरे देवी-देवताओं में
कोई आस्था नहीं है / ”
“दूसरा ::– दुनियां के सभी संगठित धर्मो से मुझे
सख्त नफरत है /”
“तीसरा ::– शास्त्र, पुराण और उनमे दर्ज देवी-
देव्त्ताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है , क्योंकि
बह सारे के सारे दोषी हैं और उनको जलाने तथा
नष्ट करने के लिए मैं “जनता” से अप्पील करता
हूँ /”मैंने सब कुछ किया और मैंने गणेश आदि सभी
ब्रह्मणि देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तोड़
डाली हैं और राम आदि के चित्र भी जला दिए
हैं / मेरे इन कार्यों के बावजूद भी, मेरी सभायों
में मेरे भाषण सुनने के लिए यदि हजारों की
गिनती में लोग इकट्ठे होते हैं, तो यह बात सपष्ट
है कि, ” स्वाभिमान तथा बुद्धि का अनुभव
होना जनता में , जागृति का सन्देश है /”
‘द्रविड़ कड़गम आन्दोलन’ का क्या मतलब है ??
इसका केवल एक ही निशाना है कि, इस नक्क्मी
आर्य ब्राह्मणवादी और वर्ण व्यवस्था का अंत
कर देना, जिस के कारन समाज उंच और नीच
जातियों में बांटा गया है / इस तरह ‘द्रविड़
कड़गम आन्दोलन’ , ” उन सभी शास्त्रों, पुराणों
और देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखता, जो वर्ण
तथा जाति व्यवस्था को जैसे का तैसा बनाये
रखे हुए हैं /”राजनितिक आज़ादी प्राप्ति के
बाद सन 1958 ( लगभग 10 बर्षों के बाद भी )
तक्क भी वर्ण व्यवस्था और जातिगत भेद-भाव
की निति ने जनता के जीवन के ऊपर अपना
वर्चस्व बनाये रखने के कारन, देश में पिछड़ेपण को
साबित कर दिया है / अर्थात , आर्य ब्रह्मण
सरकार ने, इन 10 बर्षों तक्क भी वर्ण और
जाति व्यवस्था को ख़त्म करने का कोई भी
यत्न नहीं किया है / किसी और मुल्क में इस तरह
के जाति के भेदभाव के कारण बहाँ की जनता
हजारों की संख्या में बांटी हुयी नहीं है /
हैरानी की बात यह है कि, समझदार लोग भी
इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं / अपनी ही
लालसावादी स्वारथ का दौर इस देश के नेताओं
में है / कुछ लोग राष्ट्रीयता तथा राजनितिक
पार्टी के आधार पर ( कांग्रेस की और इशारा
करते हुए ) अपने आपको समाज-सेवी कहलाते हैं, वे
भारत की असली समस्याओं के तरफ थोडा सा
भी ध्यान नहीं देते / जिस करके देशवासी पछडे
हालातों में से गुजर रहे हैं / राजनितिक आज़ादी
प्राप्त करने से बाद दुसरे देशों के लोगों ने ,
राष्ट्रीय विकास और सामाजिक सुधारों में
बड़े पैमाने पर तरक्की की
है // …………………………………… /////आज से
2000 वर्ष पूर्व, तथागत बुद्ध ने हिन्दू धर्म के
जहरीले अंगों से छुटकारा पाने के लिए जनता के
दिलो-दिमाग को आज़ाद करने का यत्न किया
था / बुद्ध ने जनता को , क्यों, कैसे तथा कौन से
प्रशन किये और बस्तु / चीज के यथार्थ गुण तथा
सवभाव के समीक्षा की / उन्होंने ने ब्राह्मणों
के, वेदों को फिजूल बताया , उन्होंने किसी
भी बस्तु से किसी भी ऋषि और महात्मा का
अधिकार सवीकार नहीं किया / उन्होंने लोगों
को अपनी भाषा में आत्म-चिंतन करने का और
जीवन के साधारण सच्च को समझने का उपदेश
दिया / इसका नतीजा क्या निकला ? ऐसे
उपदेशकों को मौत के घाट उतारा गिया / उनके
घर-बार जला दिए गए / उनकी औरतों का
अपमान किया गया / बुद्ध धर्म के भारत में से
अलोप हो जाने के बाद तर्कवाद समापित हो
गया / बुद्ध की जन्म-भूमि से बुद्ध का प्रचार –
प्रसार ना हो सका / बह चीन और जापान में
चला गया / यहाँ उसने इन देशों को दुनियां के
महान देशों की लाइन में खड़ा कर
दिया / राष्रीय चरित्र, अनुशासन, शुद्धता,
ईमानदारी और महिमानवाजी में कौनसा मुल्क
जापान की बराबरी कर सकता है ??
……………………………………………………………
इश्वर कैसे तथा क्यों जन्म-मरन करता है ? सभी
देवी-देवताओं को देखो, राम का जन्म ‘नौवीं
तिथि ‘ को हुआ, सुभ्रामानिया का जन्म
‘छेवीं तिथि’ को हुआ, कृष्ण का जन्म ‘अष्टमी
तिथि’ को हुआ, और पुराणों के अनुसार इन सभी
देवताओं की म्रत्यु भी हुई / क्या इस कथन के
बाद भी हम उनकी पूजा देवते समझ कर करते
रहें ?? ईशवर की पूजा क्यों करनी चाहिए ?
ईशवर को भोग लगाने का क्या मतलव है ?
रोजाना उसको नए कपडे पहना कर हार-शिंगार
किया जाता है, क्यों ? यहाँ तक कि, मनुष्यों
दुयारा ही, देवियों को नंगा करके स्नान
करवाया जाता है ? इस अशलीलताके कारण ना
तो उन देवियों को और ना ही उनके भक्तों को
कभी क्रोध आता है, क्यों ? देवताओं को
स्त्रियों कि क्या जरूरत है ? अक्सर वे एक औरत
से सन्तुष नहीं होते / कभी कभी तो उनको एक
एक रखैल यां वैश्य की जरूरत होती है / तिरुपति
के देवता, मुस्लिम वैश्य के कोठे पर जाने की
इच्छा करते हैं , और क्यों प्रतेक बर्ष यह देवता
विवाह करवाते हैं ?? पिछले बर्ष के विवाह का
क्या नतीजा है ? उसका कब तलाक हुआ ? किस
अदालत ने उनके इस छोड़ने – छुड़ाने की मंजूरी
दी है ? क्या इन सभी देवी-देवताओं के खिलवाड़
ने हमारी जनता को ज्यादा अकल्मन्द
(समझदार), ज्यादा पवित्र और बड़ी सत्र पर
एकता में नहीं बाँधा है ?
ईसाई, मुस्लिम और बुद्ध धर्म के संस्थापक दया
भावना, करुणा, सज्जनता और भला करने वाले
अवतार माने जाते हैं / ईसाई और बुद्ध धर्म के
मूर्ति पूजा इन गुणों को दर्शाती है /
ब्राह्मण देवी-देवताओं को देखो, एक देवता तो
हाथ में ‘भाला’ / त्रिशूल उठाकर खड़ा है , और
दूसरा धनुष वाण , अन्य दुसरे देवी-देवते कोई गुर्ज ,
खंजर और ढाल के साथ सुशोभित हैं, यह सब क्यों
है ? एक देवता तो हमेशा अपनी ऊँगली के ऊपर
चारों तरफ चक्कर चलाता रहता है, यह किस
को मारने के लिए है ?
यदि प्रेम तथा अनुग्रह आदमी के दिलो-दिमाग
के ऊपर विजय प्राप्त कर लें तो, इन हिंसक
अस्त्र -शास्त्र की क्या जरूरत है ? दुनियां के
दुसरे धर्म उपदेशकों के पास कभी भी कोई
हथियार नहीं मिलेगा / क्योंकि वो , शान्ति,
अमन समानता तथा न्याय के पोषक हैं / जबकि
आर्य-ब्राहमण धर्म सीधे तौर पर असमानता, अ-
न्याय तथा हिंसा आदि का प्रवर्तक है / यही
कारण है कि शान्ति, अमन तथा न्याय की बात
करने वाले लोगों को डराने के लिए, आर्यों
ब्राह्मणों ने अपने देवताओं के हाथों में हिंसक
हथियार दिए हुए हैं / सपष्ट तौर पर हमारे ये देवी-
देवता, बुराई करने वालों पर विजय प्राप्त करने
के लिए इनको हिंसक शास्त्रों का इस्तेमाल
करते हैं / क्या इसमें कोई कामयावी मिली है ?
हम आज कल के समय में रह रहे हैं / क्या यह
वर्तमान समय इन देवी-देवताओं के लिए सही नहीं
है ? क्या वे अपने आप को आधुनिक हथियारों से
लैस करने और धनुषवान के स्थान पर , मशीन, यां
बन्दूक धारण क्यों नहीं करते ? रथ को छोड़कर
क्या श्री कृष्ण टैंक के ऊपर सवार नहीं हो
सकते ? मैं पूछता हूँ कि, जनता इस परमाणु युग में
इन देवी-देवताओं के ऊपर विश्वास करते हुए क्यों
नहीं शर्माती ?? …

जेएनयू वीसी को तत्काल पद से हटाया जाए- रिहाई मंच

  #justicefornajeeb  6 दिन से बैठीं नजीब की मां से नहीं मिलने वाले जेएनयू वीसी को तत्काल पद से हटाया जाए- रिहाई मंच
उमर खालिद के भाषण के पीछे हाफिज सईद का हाथ खोज लेने वाली आईबी नजीब के गायब होने की वजह क्यों नहीं खोज पा रही
जेएनयू की फर्जी सीडी को सच साबित करने में दिनरात खटने वाली दिल्ली पुलिस और गृहमंत्रालय इतना सुस्त क्यों

लखनऊ 20 अक्टूबर 2016। रिहाई मंच ने जेएनयू में एबीवीपी के गुण्डों द्वारा छात्र नजीब अहमद के उत्पीड़न के बाद से ही नजीब के गायब होने की घटना के लिए एबीवीपी और एबीवीपी के खिलाफ कार्रवाई न करने वाले जेएनयू प्रशासन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। मंच ने मांग की है कि ऐसे गैरजिम्मेदार वीसी को तत्काल पद से हटा देना चाहिए। मंच ने यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मांग की है कि वो तत्काल बदायूं के रहने वाले नजीब के विषय में जेएनयू प्रशासन व गृहमंत्री से वार्ता करें। रिहाई मंच ने जेएनयू में नजीब के इंसाफ के लिए चल रहे आंदोलन का समर्थन किया है।

रिहाई मंच लखनऊ प्रवक्ता अनिल यादव ने कहा कि 14 अक्टूबर से गायब जेएनयू के छात्र नजीब का पता लगाने पहुंची उनकी मां व बहन से जेएनयू प्रशासन का न मिलना और उनके साथ हिंसा करने वाले एबीवीपी के गुण्डों के खिलाफ एफआईआर दर्ज न करना साफ करता है कि जेएनयू प्रशासन ऐसे तत्वों को न सिर्फ पाल रहा है बल्कि उनके आपराधिक कृत्यों का संरक्षण भी कर रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले 6 दिन से नजीब की मां और बहन जेएनयू के प्रशासनिक भवन के सामने इंसाफ के लिए बैठी हैं लेकिन कुलपति जगदीश कुमार का उनसे न मिलना साफ करता है कि कुलपति नजीब की कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते।

अनिल यादव ने कहा कि जो केंद्रिय गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस जेएनयू के फर्जी वीडियो को सच साबित करने के लिए दिन-रात खट रहा था वो एक छात्र के गायब होने पर क्या सिर्फ इसलिए चुप है कि वह एबीवीपी का विरोधी था? उन्होंने कहा कि उमर खालिद के भाषण देने के पीछे पाकिस्तान में बैठे आतंकी हाफिज सईद का हाथ खोज लेने वाला आईबी, नजीब के गायब होने के पीछे की वजह बता पाने में अक्षम क्यों है?  

रिहाई मंच लखनऊ महासचिव शकील कुरैशी ने कहा कि यूपी के बदायूं के वैदों टोला निवासी जेएनयू छात्र नजीब के बारे में कुछ पता न लगने की स्थिति में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जेएनयू प्रशासन व गृहमंत्री से वार्ता करें। उन्होंने कहा कि जेएनयू जैसे संस्थान में घटित यह घटना साफ करती है कि एबीवीपी जैसे संगठन हिंसात्मक कार्रवाई पर उतारु हैं। पिछले दिनों बीएचयू, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, लखनऊ समेत यूपी के विभिन्न जगहों पर एबीवीपी के गुण्डों की अराजकता सामने आई है और विश्वविद्यालयों के परिसरों में संघ की शाखाएं लगातार लग रही हैं। जब प्रदेश के मुख्यमंत्री इस बात को मानते हैं कि सरस्वती शिशु मंदिर में दंगाई पलते हैं तो फिर सरकार ऐसे संगठनों की अराजक गतिविधियों पर रोक लगाने से क्यों कतरा रही है।

द्वारा जारी-
अनिल यादव
प्रवक्ता रिहाई मंच लखनऊ
9454292339
------------------------------------------------------------------------------------
Office - 110/46, Harinath Banerjee Street, Naya Gaaon (E), Laatouche Road, Lucknow
facebook.com/rihaimanch -  twitter.com/RihaiManch

जेएनयू वीसी को तत्काल पद से हटाया जाए- रिहाई मंच

  #justicefornajeeb  6 दिन से बैठीं नजीब की मां से नहीं मिलने वाले जेएनयू वीसी को तत्काल पद से हटाया जाए- रिहाई मंच
उमर खालिद के भाषण के पीछे हाफिज सईद का हाथ खोज लेने वाली आईबी नजीब के गायब होने की वजह क्यों नहीं खोज पा रही
जेएनयू की फर्जी सीडी को सच साबित करने में दिनरात खटने वाली दिल्ली पुलिस और गृहमंत्रालय इतना सुस्त क्यों

लखनऊ 20 अक्टूबर 2016। रिहाई मंच ने जेएनयू में एबीवीपी के गुण्डों द्वारा छात्र नजीब अहमद के उत्पीड़न के बाद से ही नजीब के गायब होने की घटना के लिए एबीवीपी और एबीवीपी के खिलाफ कार्रवाई न करने वाले जेएनयू प्रशासन को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया है। मंच ने मांग की है कि ऐसे गैरजिम्मेदार वीसी को तत्काल पद से हटा देना चाहिए। मंच ने यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मांग की है कि वो तत्काल बदायूं के रहने वाले नजीब के विषय में जेएनयू प्रशासन व गृहमंत्री से वार्ता करें। रिहाई मंच ने जेएनयू में नजीब के इंसाफ के लिए चल रहे आंदोलन का समर्थन किया है।

रिहाई मंच लखनऊ प्रवक्ता अनिल यादव ने कहा कि 14 अक्टूबर से गायब जेएनयू के छात्र नजीब का पता लगाने पहुंची उनकी मां व बहन से जेएनयू प्रशासन का न मिलना और उनके साथ हिंसा करने वाले एबीवीपी के गुण्डों के खिलाफ एफआईआर दर्ज न करना साफ करता है कि जेएनयू प्रशासन ऐसे तत्वों को न सिर्फ पाल रहा है बल्कि उनके आपराधिक कृत्यों का संरक्षण भी कर रहा है। उन्होंने कहा कि पिछले 6 दिन से नजीब की मां और बहन जेएनयू के प्रशासनिक भवन के सामने इंसाफ के लिए बैठी हैं लेकिन कुलपति जगदीश कुमार का उनसे न मिलना साफ करता है कि कुलपति नजीब की कोई जिम्मेदारी नहीं लेना चाहते।

अनिल यादव ने कहा कि जो केंद्रिय गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस जेएनयू के फर्जी वीडियो को सच साबित करने के लिए दिन-रात खट रहा था वो एक छात्र के गायब होने पर क्या सिर्फ इसलिए चुप है कि वह एबीवीपी का विरोधी था? उन्होंने कहा कि उमर खालिद के भाषण देने के पीछे पाकिस्तान में बैठे आतंकी हाफिज सईद का हाथ खोज लेने वाला आईबी, नजीब के गायब होने के पीछे की वजह बता पाने में अक्षम क्यों है?  

रिहाई मंच लखनऊ महासचिव शकील कुरैशी ने कहा कि यूपी के बदायूं के वैदों टोला निवासी जेएनयू छात्र नजीब के बारे में कुछ पता न लगने की स्थिति में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जेएनयू प्रशासन व गृहमंत्री से वार्ता करें। उन्होंने कहा कि जेएनयू जैसे संस्थान में घटित यह घटना साफ करती है कि एबीवीपी जैसे संगठन हिंसात्मक कार्रवाई पर उतारु हैं। पिछले दिनों बीएचयू, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, लखनऊ समेत यूपी के विभिन्न जगहों पर एबीवीपी के गुण्डों की अराजकता सामने आई है और विश्वविद्यालयों के परिसरों में संघ की शाखाएं लगातार लग रही हैं। जब प्रदेश के मुख्यमंत्री इस बात को मानते हैं कि सरस्वती शिशु मंदिर में दंगाई पलते हैं तो फिर सरकार ऐसे संगठनों की अराजक गतिविधियों पर रोक लगाने से क्यों कतरा रही है।

द्वारा जारी-
अनिल यादव
प्रवक्ता रिहाई मंच लखनऊ
9454292339
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Office - 110/46, Harinath Banerjee Street, Naya Gaaon (E), Laatouche Road, Lucknow
facebook.com/rihaimanch -  twitter.com/RihaiManch

कभी हल न होने वाली पहेली, जिसे बुद्ध ने हल कर दिया

 कभी हल न होने वाली पहेली, जिसे बुद्ध ने हल कर दिया।
एक बार तथागत बुद्ध को एक ब्रा0 ने पूछा
- "आप सब लोगो को ये बताते है के आत्मा
नहीं, स्वर्ग नहीं, पुनर्जन्म नहीं। क्या यह सत्य है?"
बुद्ध- "आपको ये किसने बताया के मैंने ऐसा कहा?"
- "नहीं ऐसा किसी ने बताया नहीं।"
बुद्ध - "फिर मैंने ऐसे कहा ये बताने वाले व्यक्ति
को आप जानते हो??
- "नहीं।"
बुद्ध- "मुझे ऐसा कहते हुए आपने कभी सुना है?"
- "नहीं तथागत, पर लोगो की चर्चा सुनके ऐसा लगा। अगर ऐसा नहीं है तो आप क्या कहते है?"
बुद्ध- "मैं कहता हूँ कि मनुष्य को वास्तविक सत्य स्वीकारना चाहिए।"
- "मैं समझा नहीं तथागत, कृपया सरलता में बताइये।"
बुद्ध- "मनुष्य को पांच बाह्यज्ञानेंद्रिय है। जिसकी मदद से वह सत्य को समाझ सकता है।"
1)आँखे- मनुष्य आँखों से देखता है।
2)कान- मनुष्य कानो से सुनता है।
3)नाक- मनुष्य नाक से श्वास लेताहै।
4)जिह्वा- मनुष्य जिह्वा से स्वाद लेता है।
5)त्वचा- मनुष्य त्वचा से स्पर्श महसूस करता है।
इन पांच ज्ञानेन्द्रियों में से दो या तिन ज्ञानेन्द्रियों की मदद से मनुष्य सत्य जान सकता है।
- "कैसे तथागत?"
बुद्ध- "आँखों से पानी देख सकते है, पर वह ठण्डा है या गर्म है ये जानने के लिए त्वचा की मदत लेनी पड़तीहै, वह मीठा है या नमकीन ये जानने के लिए जिह्वा की मदद लेनी पड़ती है।
- "फिर भगवान है या नहीं इस सत्य को कैसे जानेंगे तथागत?"
बुद्ध- "आप वायु को देख सकते है?"
- "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "इसका मतलब वायु नहीं है ऐसा होता है क्या?"
- "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "वायु दिखती नहीं फिर भी हम उसका अस्तित्व नकार नहीं सकते, क्यू की हम वायु को ही हम साँस के द्वारा अंदर लेते है और बाहर निकलते है। जब वायु का ज़ोक़ा आता है तब
पेड़-पत्ते हिलते है, ये हम देखते है और महसूस करते है।अब आप बताओ भगवान हमें पांच ज्ञानेन्द्रियों से महसूस होता है?
- "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "आपके माता पिता ने देखा है, ऐसे उन्होंने आपको बताया है?"
- "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "फिर परिवार के किसी पुर्वज ने देखा है, ऐसा आपने सुना है?"
- "नहीं तथागत।"
बुद्ध- "मैं यही कहता हूँ कि जिसे आजतक किसी ने देखा नहीं, जिसे हमारी ज्ञानेन्द्रियों से जान नहीं सकते, वह सत्य नहीं है इसलिए उसके बारे में सोचना व्यर्थ है।"
- "वह ठीक है तथागत, पर हम जिन्दा है,इसका मतलब हमारे अंदर आत्मा है, ये आप मानते है या नहीं?"
बुद्ध- "मुझे बताइये, मनुष्य मरता है, मतलब क्या होता है?"
- "आत्मा शारीर के बाहर निकल जाती है, तब मनुष्य मर जाता है।"
बुद्ध- "मतलब आत्मा नहीं मरती है?"
- "नहीं तथागत, आत्मा अमर है।"
बुद्ध- "आप कहते है आत्मा कभी मरती नहीं, आत्मा अमर है। तो ये बताइये आत्मा शारीर छोड़ती है या शारीर आत्मा को??"
- "आत्मा शारीर को छोड़ती है तथागत।"
बुद्ध- "आत्मा शारीर क्यू छोड़ती है?"
- "जीवन ख़त्म होने के बाद छोड़ती है।"
बुद्ध- "अगर ऐसा है तो मनुष्य कभी मरना नहीं चाहिए। दुर्घटना, बीमारी, घाव लगने के बाद भी बिना उपचार के जीना चाहिए। बिना आत्मा के
मर्ज़ी के मनुष्य नहीं मर सकता।"
- "आप सही कह रहे है तथागत। पर मनुष्य में प्राण है, उसे आप क्या कहेंगे?"
बुद्ध- "आप दीपक जलाते है?"
- "हा तथागत।"
बुद्ध- "दीपक याने एक छोटा दिया, उसमे तेल, तेल में बाती और उसे जलाने के लिए अग्नि चाहिए,
बराबर?"
- "हा तथागत।"
बुद्ध- "फिर मुझे बताइये बाती कब बुझती है?"
- "तेल ख़त्म होने के बाद दीपक बुज़ता है तथागत।"
बुद्ध- "और?"
- "तेल है पर बाती ख़त्म हो जाती है तब दीपक बुज़ता है तथागत।"
बुद्ध- "इसके साथ तेज वायु के प्रवाह से, बाती पर पानी डालने से, या दिया टूट जाने पर भी दीपक बुझ सकता है।
अब मनुष्य शारीर भी एक दीपक समझ लेते है, और प्राण मतलब अग्नि यानि ऊर्जा। सजीवों का देह चार तत्वों से बना है।
1) पृथ्वी- घनरूप पदार्थ यानि मिटटी
2) आप- द्रवरूप पदार्थ यानि पानी, स्निग्ध और तेल
3) वायु- अनेक प्रकार की हवा का मिश्रण
4) तेज- ऊर्जा, ताप, उष्णता
इसमें से एक पदार्थ अलग कर देंगे ऊर्जा और
ताप का निर्माण होना रुक जायेगा,
मनुष्य निष्क्रिय हो जायेगा। इसे ही मनुष्य की मृत्यु कहा जाता है।
इसलिये आत्मा भी भगवान की तरह अस्तित्वहीन है।
यह सब चर्चा व्यर्थ है। इससे धम्म का समय व्यर्थ हो जाता है।"
- "जी तथागत, फिर धम्म क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?"
बुद्ध- "धम्म का मतलब अँधेरे से प्रकाश की औरले जाने वाला मार्ग है। धम्म मनुष्यो का उद्देश्य मनुष्य के जन्म के बाद मृत्यु तक कैसे जीवन
जीना है इसका मार्गदर्शन करना है। कौन से कार्य करने से क्या परिणाम होंगे, और मानव जीवन किस तरह से सुखमय और दुःखमुक्त हो सकता है
इसका मार्गदर्शन धम्म मनुष्य करते है।"
- "धन्यवाद् तथागत।"
बुद्ध- "भवतु सब्ब मंगलम्"

OBC को भी जगाना है तो ये बात उन तक पहुचना है शेयर करिये

 OBC को भी जगाना है तो ये बात उन तक पहुचना है
शेयर करिये।

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने कानून मंत्री के पद से इस्तीफा क्यू दिया..???
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मुख्य चार कारण:-
डा० बी.आर. अंबेडकर ने अनुच्छेद 340 में OBC आरक्षण के विषय मे लिखा उसकी सच्चाई और महत्वपूर्ण तथ्य..
(1) अनुच्छेद 341 के अनुसार शेड्यूल कास्ट (SC) को 15% प्रतिनिधित्व दिया....
(2) अनुच्छेद 342 के अनुसार..
शेड्यूल ट्राईब (ST) को 7.5% प्रतिनिधित्व दिया...
और इन वर्गो का विचार करने से पहले डा. अंबेडकर ने सर्वप्रथम OBC अर्थात अन्य पिछड़ी जातियों का विचार किया... इसीलिये डा.अंबेडकर ने अनुच्छेद 340 के अनुसार OBC को सर्वप्रथम प्राथमिकता दी....
3) अनुच्छेद 340 के अनुसार OBC को 52% प्रतिनिधित्व देने का प्रावधान किया, उस समय लौह-पुरूष "सरदार पटेल" इसका विरोध करते हुए बोले....
"ये OBC कोन है"...???
ऐसा प्रश्न सरदार पटेल स्वत: OBC होते हुए भी पूछा... !!!
क्युकि उस समय तक SC और ST मे शामिल जातियों की पहचान हो चुकी थी.... और OBC में शामिल होने वाली जातियों की पहचान....(जो आज 6500 से अधिक है) का कार्य पूर्ण नहीं हुआ था.......
कोई भी "अनुच्छेद" लिखने के बाद.. डा० अंबेडकर को उस "अनुच्छेद" को...प्रथम तीन लोगो को दिखाना पड़ता था.....
1) पंडित नेहरू
2) राजेंद्र प्रसाद
3) सरदार पटेल
..इन तीनों की मंजूरी के बाद... उस अनुच्छेद का विरोध करने की हिम्मत किसी में नहीं थी...
उस समय संविधान सभा में कुल 308 सदस्य होते थे, उसमें से 212 Congress के थे....
अनुच्छेद 340, अनुच्छेद 341 और 342 के पहले है... सभी पिछड़ी जातियों को इस महत्वपूर्ण तथ्य पर ध्यान देना चाहिए..
340 वां अनुच्छेद असल में क्या है... ???
जिस समय बाबासाहब डा० अंबेडकर ने 340 वां अनुच्छेद का प्रावधान किया और सरदार पटेल को दिखाया.. उस पर सरदार पटेल ने बाबासाहेब से प्रश्न किया " ये OBC कौन है".... "हम तो SC और ST को ही backward मानते हैं"... ये OBC आपने कहा से लाये......???
सरदार पटेल भी बॅरिस्टर थे, और वह स्वयं OBC होते हुए भी ...उन्होंने OBC से संबधित अनुच्छेद 340 का विरोध किया...!!!
किंतु इसके पीछे की बुद्धि.. सिर्फ गांधी और नेहरू की थी...
...तब डा. अंबेडकर ने सरदार पटेल से कहा...
"it's all right Mr. Patel " मै आपकी बात संविधान मे डाल देता हूँ

" संविधान के अनुच्छेद 340 में सरदार पटेल के मुख से बोले गये वाक्य के अाधार पर ... 340 वें अनुच्छेद के अनुसार ...इस देश के राष्ट्रपति को OBC कौन है...?? "ये मालूम नहीं है"....और इनकी पहचान करने के लिए एक "आयोग गठित" करने का आदेश दे रहे हैं "......
गांधी..... नेहरू...पटेल....प्रसाद और उनकी Congress की, OBC को प्रतिनिधित्व देने की इच्छा नहीं है... ये बाबासाहेब को दिखा देना था....
परंतु 340 वें अनुच्छेद के अनुसार राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने OBC कौन है..
इन्हें पहचानने के लिए आयोग नहीं बनाया.!! इसलिए दि. 27 Sept 1951 को बाबासाहेब ने केन्द्रीय कानून मंत्री पद से इस्तीफा दिया..
मतलब OBC के कल्याण के लिए केंद्रीय मंत्री पद से इस्तीफा देने वाले पहले और अंतिम व्यक्ति डॉ बाबासाहेब आंबेडकर है...
परंतु आज भी यह घटना अपने OBC जाति के मित्र को शायद मालूम नहीं है इस बात पर बहुत आश्चर्य और दुख होता है.... !!!!

भारत में आरक्षण के औचित्य पर जब बहस होती है तो कुछ मेरे आरक्षण विरोधी मित्र कहते हैं कि आरक्षण के कारण देश में जातिवाद बढ़ रहा है . आजादी के पहले देश में आरक्षण नही था . क्या उस समय जातिगत भेदभाव नही था जिसके शिकार बाबा साहब अंबेडकर जैसे व्यक्ति भी हुए थे ? अब बताईये कि जातिवाद के कारण आरक्षण आया है या आरक्षण के कारण जातिवाद ? हकीकत तो यह है कि देश के १५% लोग शेष ८५% लोगों के उपर शासन करने की मंशा रखते हैं जो आज के जमाने में संभव नही है . आज यदि यह हो रहा है तो इसके पीछे ५५% obc की दोहरी निष्ठा है जो तय नही कर पा रहे हैं कि किसके साथ रहें . अपर कास्ट उन्हे अपने बराबर स्थान नही देगा और sc st को obc अपने बराबर समझता नही . यही पेंच है . इसी पेंच के चलते इस देश पर १५% लोगों का शासन चल रहा है और हम मानने के लिए बाध्य हैं कि देश में बहुमत का शासन होता है .
...

गुजरात के 2002 के दंगो में हिंदुत्व के नाम पर बेवकूफ बनाया

 गुजरात के 2002 के दंगो में अहमदाबाद शहर में 1577 लोग अरेस्ट हुए थे.
जिस मे ब्राह्मण 2, बनिया 2, कणबी पटेल 19 और अन्य उच्चजातिय 9 मिलकर 33, यानि 2.09% थे. ओबीसी 797 यानि 50.54% और एससी 747 यानि 47.37% थे. OBC और SC का टोटल 1544 यानि 97.91% था.
इन दंगों में सरकारी आंकड़ो में कुल मरने वाले 2189 थे जिनका जातिगत आंकड़ा ये है, बनिया मरे 02 राजपूत 01 ब्राह्मण 00 एक भी नहीं।
बाकि 2186 मरने वाले थे SC ST OBC और मुस्लिम.

अब सोचे दंगो में किसने क्या खोया और किसने क्या पाया।

आजादी के बाद से अब तक हुए 65000 । सांप्रदायिक झगड़ो और दंगो का इतिहास भी ये ही।

वर्तमान गुजरात सरकार के 17 मंत्रियो में 7 कणबी पटेल, 3 अन्य उच्चजातिय यानि 58.82% है. OBC 5, SC 1 और ST 1 है.

आप ही तय कीजिये कि कौन हिन्दू और कौन मुर्ख है?

ऐसे ही सबको हिंदुत्व के नाम पर बेवकूफ बनाया जाता है और आपस में लड़ाया जाता है.... बाद में ये पण्डे और उनके अंगरक्षक खिसक लेते है.. और ऊँचे पदों पर बैठ कर मलाई खाते हैं..!

इस लिए सावधान, किसी भी सांप्रदायिक दंगों मे भाग न लें। इससे समाज का राष्ट्र का अहित होता है।

भारत मुक्ति मोर्चा* 6वा राष्ट्रिय अधिवेशन

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*भारत मुक्ति मोर्चा*
6वा राष्ट्रिय अधिवेशन
दिनांक: 15 नवंबर से 16 नवंबर 2016
स्थान: जम्बूरी मैदान,पिपलानी,अवधपुरी रोड,भेल,भोपाल,मध्य प्रदेश

*विषय*--

1) पहले 8 वी कक्षा तक परीक्षा ना लेने का निर्णय किया गया है लेकिन इसमें मेरिट को विकसित ना होने देने का मौलिक मुद्दा बरक़रार है- एक गंभीर विश्लेषण
*अथवा*
भारत में शिक्षा पर खर्च मौजूदा रफ़्तार से ही चलता रहा तो भारत को विकसित बनने में 126 साल लगेंगे।- संयुक्त राष्ट्र संघ की रिपोर्ट

2) IAS की परीक्षा में पास हुए 314 बैकवर्ड कैंडिडेट्स की नियुक्ति ना करना नरेंद्र मोदी सरकार का अक्षम्य अपराध है।
*अथवा*
क्या गुजरात की घटना ओबीसी का ब्रमनवादियो के समर्थन में ध्रुवीकरण करने की योजना का हिस्सा है?- एक बहस
*अथवा*
ओबीसी का प्रधानमंत्री होने के बावजूद भी ओबीसी के साथ लगातार धोखेबाजी चल रही है।- एक विश्लेषण

3) अति पिछड़ी जातियों में नेतृत्व का अभाव ही उनकी सारी समस्याओंका मूल कारण है।- एक आंकलन

4) महिलाओं का राष्ट्रीय स्तर पर स्वायत्त संगठन बनाने में आनेवाली दिक्कते और उसका समाधान-एक मंथन

5) जागतिक स्तर पर महिला आंदोलन का (Feminist Movement) अभ्यास किये बगैर भारत में मूलनिवासी बहुजन महिलाओं के आंदोलन की दिशा निर्धारित करना संभव नहीं होगा।- एक चुनोतिपूर्ण चर्चा

6) असमान लोगो को समान मानना यह असमानता को बरक़रार रखने के बराबर है।- एक विचार

7) कालाधन वापस लाने की बजाय कालेधन को सफ़ेद करवाकर देना राष्ट्रदोह के बराबर है।- एक बहस

8) *डॉ.बाबासाहब आम्बेडकर की महान शख्शियत की वाह वाह करना मगर उन्होंने जिन वंचित लोगो को उद्धार करने के लिए जिंदगी कुर्बान की उनकी तरफ बिलकुल ध्यान नहीं देना--एक षड्यंत्र*

9) नीति आयोग द्वारा मेडिकल छात्राओं का प्रवेश के लिए नीट (NEET) परीक्षा और एक्जिट एग्जाम सख्ती से लागू करना यह मूलनिवासी मेरिटोरियस विद्यार्थियों के साथ धोखाधड़ी है।

10) सभी अनुसूचित जाति/जनजातियों,पिछड़े वर्गों और धर्मपरिवर्तित अल्पसंख्यको के संगठनाओको इकट्ठा किये बगैर आरक्षण को बचाना संभव नहीं है।-- एक आंदोलन की भूमिका

*सभी सत्रों की अध्यक्षता मा।वामन मेश्राम,राष्ट्रिय अध्यक्ष,भारत मुक्ति मोर्चा करेंगे।*
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महेश डाभी
भारत मुक्ति मोर्चा
वड़ोदरा

आरएसएस की स्थापना चितपावन ब्राह्मणों ने की और इसके ज्यादातर सरसंघचलक अर्थात् मुखिया अब तक सिर्फ चितपावन ब्राह्मण होते आए हैं


चितपावन ब्राह्मण

आरएसएस की स्थापना चितपावन ब्राह्मणों ने की और इसके ज्यादातर सरसंघचलक अर्थात् मुखिया अब तक सिर्फ चितपावन ब्राह्मण होते आए हैं. क्या आप जानते हैं ये चितपावन ब्राह्मण कौन होते हैं ?

चितपावन ब्राह्मण भारत के पश्चिमी किनारे स्थित कोंकण के निवासी हैं. 18वीं शताब्दी तक चितपावन ब्राह्मणों को देशस्थ ब्राह्मणों द्वारा निम्न स्तर का समझा जाता था. यहां तक कि देशस्थ ब्राह्मण नासिक और गोदावरी स्थित घाटों को भी पेशवा समेत समस्त चितपावन ब्राह्मणों को उपयोग नहीं करने देते थे.

दरअसल कोंकण वह इलाका है जिसे मध्यकाल में विदशों से आने वाले तमाम समूहों ने अपना निवास बनाया जिनमें पारसी, बेने इज़राइली, कुडालदेशकर गौड़ ब्राह्मण, कोंकणी सारस्वत ब्राह्मण और चितपावन ब्राह्मण, जो सबसे अंत में भारत आए, प्रमुख हैं. आज भी भारत की महानगरी मुंबई के कोलाबा में रहने वाले बेन इज़राइली लोगों की लोककथाओं में इस बात का जिक्र आता है कि चितपावन ब्राह्मण उन्हीं 14 इज़राइली यहूदियों के खानदान से हैं जो किसी समय कोंकण के तट पर आए थे.

चितपावन ब्राह्मणों के बारे में 1707 से पहले बहुत कम जानकारी मिलती है. इसी समय के आसपास चितपावन ब्राह्मणों में से एक बालाजी विश्वनाथ भट्ट रत्नागिरी से चलकर पुणे सतारा क्षेत्र में पहुँचा. उसने किसी तरह छत्रपति शाहूजी का दिल जीत लिया और शाहूजी ने प्रसन्न होकर बालाजी विश्वनाथ भट्ट को अपना पेशवा यानी कि प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिया. यहीं से चितपावन ब्राह्मणों ने सत्ता पर पकड़ बनानी शुरू कर दी क्योंकि वह समझ गए थे कि सत्ता पर पकड़ बनाए रखना बहुत जरुरी है. मराठा साम्राज्य का अंत होने तक पेशवा का पद इसी चितपावन ब्राह्मण बालाजी विश्वनाथ भट्ट के परिवार के पास रहा.

एक चितपावन ब्राह्मण के मराठा साम्राज्य का पेशवा बन जाने का असर यह हुआ कि कोंकण से चितपावन ब्राह्मणों ने बड़ी संख्या में पुणे आना शुरू कर दिया जहाँ उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया जाने लगा. चितपावन ब्राह्मणों को न सिर्फ मुफ़्त में जमीनें आबंटित की गईं बल्कि उन्हें तमाम करों से भी मुक्ति प्राप्त थी. चितपावन ब्राह्मणों ने अपनी जाति को सामाजिक और आर्थिक रूप से ऊपर उठाने के इस अभियान में जबरदस्त भ्रष्टाचार किया. इतिहासकारों के अनुसार 1818 में मराठा साम्राज्य के पतन का यह प्रमुख कारण था. रिचर्ड मैक्सवेल ने लिखा है कि राजनीतिक अवसर मिलने पर सामाजिक स्तर में ऊपर उठने का यह बेजोड़ उदाहरण है.  (Richard Maxwell Eaton. A social history of the Deccan, 1300-1761: eight Indian lives, Volume 1. p. 192)

चितपावन ब्राह्मणों की भाषा भी इस देश के भाषा परिवार से नहीं मिलती थी. 1940 तक ज्यादातर कोंकणी चितपावन ब्राह्मण अपने घरों में चितपावनी कोंकणी बोली बोलते थे जो उस समय तेजी से विलुप्त होती बोलियों में शुमार थी. आश्चर्यजनक रूप से चितपावन ब्राह्मणों ने इस बोली को बचाने का कोई प्रयास नहीं किया. उद्देश्य उनका सिर्फ एक ही था कि खुद को मुख्यधारा में स्थापित कर उच्च स्थान पर काबिज़ हुआ जाए. खुद को बदलने में चितपावन ब्राह्मण कितने माहिर हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने जब देश में इंग्लिश एजुकेशन की शुरुआत की तो इंग्लिश मीडियम स्कूलों में अपने बच्चों का दाखिला कराने वालों में चितपावन ब्राह्मण सबसे आगे थे.

इस तरह अत्यंत कम जनसंख्या वाले चितपावन ब्राह्मणों ने, जो मूलरूप से इज़राइली यहूदी थे, न सिर्फ इस देश में खुद को स्थापित किया बल्कि आरएसएस नाम का संगठन बना कर वर्तमान में देश के नीति नियंत्रण करने की स्थिति तक खुद को पहुँचाया, जो अपने आप में एक मिसाल है.

Friends, you may like to refer to the following link on Hidden Jews in India.
https://wideawakegentile.wordpress.com/2013/12/14/indias-hidden-jews/

मिनहाज अंसारी को न्याय दो

 मिनहाज अंसारी को न्याय दो :-

मतलब कि "धामरखोदी" की हद होती जा रही है इस देश में , पहले फ्रिज में गोमाँस का आरोप लगाकर मंदिर के लाउडस्पीकर से ऐलान करो और फिर "हर हर महादेव" के नारे के साथ "अखलाक" को कूँच दो।

हिमाँचल प्रदेश में ट्रक के क्लीनर नोमान को इस आरोप में मार डालो कि ट्रक में गाय थी , ड्राइवर व अन्य लोग जो मुसलमान नहीं थे उनकी जान बख्श दो।

फिर राजस्थान में मुस्लिम ट्रक ड्राईवर और क्लीनर की नंगा करके पिटाई करो कि वह गाय के तस्कर थे।

फिर झारखंड के लातेहर में मोहम्मद मजलूम और छोटू उर्फ इंतियाज खान को पेड़ पर लटका कर फाँसी दे दो जबकि वह भैंस के खरीद फरोख्त का व्यापार करते थे।

फिर मध्यप्रदेश में मुस्लिम दंपत्तियों का टिफिन चेक करो और पिटाई कर दो कि उनके खाने में गोमाँस था , मुँह खुलवाकर चेक करो।

फिर माँस का व्यापार करती दो मुस्लिम महिलाओं की पुलिस की मौजूदगी में पिटाई कर दो कि वह ट्रेन से "गोमाँस" ले जा रही थीं।

और ऐसी तमाम घटनाओं के होते हुए फिर हुआ "मेवात" जहाँ 3 मुस्लिम बच्चियों और महिला के साथ सामूहिक बलात्कार करो और दो लोगों की हत्या कर दो , इसके लिए झूठा आरोप लगा दो कि बिरयानी में "गोमाँस" है।

यहाँ तक तो साक्षात "बीफ" का आरोप लगाकर "गोगुंडों" ने अत्याचार किया परन्तु अत्याचार की हद देखिए कि अभी कुछ दिन पहले दिघारी गाँव के "मिनहाज अंसारी" ने "ज्योति क्लब जुम्मन मोड़" नामक व्हाट्सएप ग्रुप पर 2 अक्तूबर की देर रात कुछ तस्वीरें पोस्ट की थीं. इनमें वो मांस के टुकड़े के पास बैठा था, और गोगुंडों ने तुरंत पहचान लिया कि यह "गोमाँस" है। और "विश्व हिंदू परिषद" से जुड़े सोनू सिंह ने इसके बीफ़ होने और इससे हिंदुओं की भावनाएं भड़कने की सूचना पुलिस को दी और उसका स्क्रीनशाट पुलिस को दिया।

इस देश में पुलिस की सूचना तकनीक कानून 2000 और सूचना तकनीक (संशोधन) कानून 2008 के अंतर्गत इतनी त्वरित कार्यवाही आपने पहले कभी नहीं देखी होगी। खुद देखिए मिनहाज अंसारी की माँ का बयान

"पुलिस 3 अक्तूबर की आधी रात हमारे घर पहुंची , घर पर पथराव शुरू कर दिये, दरवाजा खुलते ही पुलिसवाले घर में घुस गए, मेरी बेटी और बहू को गंदी-गंदी गालियां दी. फिर पेटी का ताला तोड़कर लैपटाप, सिम कार्ड, बाइक पैसे आदि लेकर चले गए, उन लोगों ने फ़ोन पर मिनहाज से बात करायी, तो वह रो रहा था. उसने बताया कि उसे बुरी तरह पीटा गया है. इसलिए पुलिस को सामान ले जाने से मत रोकें. ''

मोबाइल एसेसरीज की छोटी सी दुकान चला कर अपने माँ बाप और 5 भाई तथा पत्नी और 6 महीने की बेटी का पेट पालने वाले "मिनहाज अंसारी" को पुलिस ने गोगुंडे के साथ मिलकर इतना पीटा कि अस्पताल से अस्पताल होते हुए रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया। यह है इस देश का निष्पक्ष कानून जिसपर हम छाती पीटते हैं ।

अब "गोगुंडे" इतने तकनीकी अपडेटेड हो गये हैं कि चित्र से पहचान लेते हैं कि यह "गोमाँस" है और फिर पुलिस उसको अदालत का बाप बनकर जान से मार देती है। यह है हमारे देश की व्यवस्था , और फिर कहो तो कहा जाएगा कि आप मुसलमानों की ही बात सिर्फ़ क्युँ करते हो ?

मिनहाज अंसारी की विधवा पत्नी मोहिदा के सवालों का जवाब मुसलमानों की औरतों के हक की बात करने वाले भाजपाई देंगे की ''पुलिस ने मेरे पति को पीट-पीट कर मार डाला , पीटने वाले सब इंस्पेक्टर पर हत्या का मुकदमा चलाकर फांसी देनी चाहिए , मेरी आठ महीने की बेटी है, अब मेरा और उसका कौन है , हमारा पेट कैसे पलेगा'' ?

जानते हैं कि यह सब क्युँ हुआ ? क्युँकि थानाध्यक्ष "हरीश पाठक" था जिसे इस घटना के बाद निलंबित कर दिया गया , डीजी बंजारा और हरीश पाठक वाली व्यवस्था में यह ज़ुल्म तो बहुत कम है , आने वाले दिनों में चित्र तो छोड़िए "गाय" का नाम लेंगें तो कूच दिए जाएँगे।

चार दिन की हूकूमत पर इतना नशा ?

........................   ✍  Mohd Zahid

चेन्नई में 47 डाक्टरों ने अपनाया बौद्ध धम्म

 चेन्नई में 47 डाक्टरों ने अपनाया बौद्ध धम्म

Details Published on 18/10/2016 19:18:27 Written by Dalit Dastak

चेन्नई। बाबासाहेब के बौद्ध धम्म ग्रहण करने के 60वें साल में धम्म दीक्षा दिवस 14 अक्टूबर के दिन चेन्नई में खासी हलचल रही. इस दिन कई लोगों ने धम्म की दीक्षा ली, इसमें चेन्नई में प्रैक्टिस करने वाले 47 डॉक्टर भी शामिल थे. धम्म की ओर आकर्षित होने की उनकी एक जायज वजह भी थी. धम्म की शरण लेने वाले इन डाक्टरों का कहना था कि हम सब एक बेहतर डॉक्टर हैं. हममे से कई सरकारी अस्पतालों में हैं लेकिन कई बार मरीज हमसे इलाज करने में संकोच करता है. वजह हमारा दलित जाति से होना है.


डॉक्टर होकर भी हम दलित हैं. धर्मांतरित हुए लोगों का कहना है कि हमें अक्सर जातिवाद का सामना करना पड़ता है. खासकर तामिलनाडु के ग्रामीण इलाकों में, जहां जाति बहुत मजबूत है. यहां नौकरी के दौरान हमें आसानी से किराये पर मकान नहीं मिलता, घर के काम में सहयोग के लिए काम वाले नहीं मिलते, यहां तक की हमें ड्राइवर रखने और संपत्ति खरीदने में भी जातिवाद का सामना करना पड़ता है. तिर्ची के डॉ. जी. गोविंदाराज का कहना है कि मुझे एक जमीन खरीदनी थी और मैं इसके लिए 2.5 करोड़ रुपये देने के लिए तैयार हो गया था. बावजूद इसके जमीन का मालिक मेरी जाति जानना चाहता था. मुझे उस जमीन को खरीदने के लिए अपनी जाति छुपानी पड़ी. लेकिन धम्म की शरण में जाने के बाद अब मैं जी.जी. बुद्धराज हो गया हूं. अब मुझे जाति के सवाल से नहीं जूझना पड़ता है.

फोटोः एक्सप्रेस न्यूज सर्विस
http://www.dalitdastak.com/news/47-doctors-of-chennai-converted-in-budhhism-2418.html

यह है आजाद भारत

यह है हमारे लोगों कि स्थिति

देश में संविधान लागू है

परन्तु
व्यवहार में मनुस्मृति

मतलब
गुलाम





क्रांति और प्रतिक्रांति" - भारत का इतिहास

 *"क्रांति और प्रतिक्रांति"*
--- *भारत का इतिहास*

बाबासहाब डा. भीमराव अम्बेड़करजी ने भारत के इतिहास का जब गहराई से अध्यन किया तो बताया कि *"भारत का इतिहास विदेशी युरेशियन ब्राह्मणों की विसमतावादी और बुद्ध की मानवतावादी विचारधारा के बीच क्रांति और प्रतिक्रांति के संघर्ष का इतिहास रहा है ।"*

*सिंधु सभ्यता, मोहन जोदड़ो, हड़प्पा भारत की फली-फूली सभ्यताएं थी इन सभ्यताओं में रहने वाले लोग दैत्य, अदित्य, सूर, असूर, राक्षस, दानव कहलाते थे । तथा इनमें किसी प्रकार का जाति भेद नहीं था, इनकी संस्कृति मातृसत्तात्मक थी ।*


  करीब चार हजार साल पहले जब खेबर दर्रे से होते हुए मध्य एशिया से 'युरेशियन ब्राह्मण' आये तो यहाँ के मूलनिवासी अनार्य कहलाने लगे । आर्य और अनार्यों में करीब पांचसौ वर्ष तक संघर्ष चला जिसमे अनार्यों का पतन हुआ परिणामस्वरूप आर्यों ने अपनी पितृसत्तात्मक संस्कृति और विसमता वादी वर्ण व्यवस्था अनार्यों पर थोप दी, इस युग को इतिहास में आर्य वैदिक युग कहा गया हैं ।

आर्य लोगो में त्रिवर्णीय व्यवस्था ( ब्राह्मण/क्षत्रिय/वैश्य ) विकसित हो चुकी थी । जिसका विवरण ऋग्यवेद में मिलता हैं जब अनार्यों को हराकर गुलाम बनाया तो इन्हें वर्ण व्यवस्था में रखने के लिए चतुर्थ वर्ण ( शूद्र ) की रचना की गयी जिसका विवरण पुरुषशुक्त में मिलता हैं ।

इस बात को ध्यान में रखते हुए कि मूलनिवासी अनार्य हमेशा आर्यों के गुलाम बने रहे, अनार्यों को आर्यों ने शिक्षा/सत्ता/सम्पत्ति/सम्मान आदि मूल अधिकारों से वंचित किया तथा शूद्र ( सछूत ) और अतिशूद्र ( अछूत ) के तौर पर बांट कर इनमें उंच-नीच की भावना पैदाकर आपस में लड़ाते रहे । धीरे-धीरे आर्य ब्राह्मणों ने इन्हें जाति - उपजाति में बांटकर ऐसे अंधविश्वास के जाल में उलझाया कि मूलनिवासी अनार्य शूद्र ( OBC /SC /ST ) आर्य ब्राह्मणों के षड़यंत्रो को समझ ही नहीं पाये ।

आर्यों की अमानवीय विषमतावादी व्यवस्था को गौतम बुद्ध ने अपनी वैज्ञानिक सोच और तर्कों से ध्वस्त कर दिया तथा समाज में ऐसी चेतना फैलाई कि ब्राह्मण और ब्राह्मणी संस्कारों का लोगो ने बहिष्कार कर दिया ।

बुद्ध को ब्राह्मणों ने शुरुआत से ही नास्तिक माना हैं । ब्राह्मणों के शास्त्रों में लिखा भी गया है कि जो अपने जीवन में तर्क का इस्तेमाल करता हैं वह नास्तिक हैं और जो धर्म और ईश्वर में विश्वास रखे वह आस्तिक । रामायण में बौद्धों की नास्तिक कहकर निंदा की गयी हैं ।


 बुद्ध का धम्म कोई धर्म नहीं बल्कि नैतिक सिद्धांत हैं । संक्षेप में कहे तो 'बुद्ध' का मतलब बुद्धि, 'धम्म' का मतलब 'इंसानियत' और संघ का मतलब 'इस उद्देश्य के लिए संघर्ष कर रहा सक्रीय संगठन' हैं ।

परन्तु बेहद दुःख की बात हैं कि बौद्ध सम्राट अशोक के पौत्र मौर्य सम्राट राजा बृहद्रथ की पुष्यमित्र शुंग द्वारा हत्या कर बौद्धों के शासन को खत्मं किया और बौद्धों पर तरह-तरह के ज़ुल्म ढहाए गए, वर्णव्यवस्था जो बुद्ध की क्रांति की वजह से खत्म हो गयी थी । उसे मनुस्मृति लिखवाकर पुनः ब्राह्मणी शासन द्वारा तलवार के बल पर थोपी गयी, जिन बौद्धों ने इनके अत्याचारों की वजह से ब्राह्मण धर्म ( वर्णव्यस्था ) को स्वीकार कर लिया उन्हें आज हम सछूत शूद्र ( OBC ), जिन बौद्धों ने ब्राह्मण धर्म को स्वीकार नहीं किया उन्हें अछूत अतिशूद्र ( SC ) और जो बौद्ध अत्याचारों की वजह से जंगलो में रहने लगे उन्हें आज हम अवर्ण ( ST ) के रूप में पहचानते हैं ।

ब्राह्मण धर्म में वर्ण, वर्ण में जाति, जाति में उंच - नीच और ब्राह्मण के आगे सारे नीच, यही वजह हैं कि जब मुसलमानों का शासन आया तो बड़े पैमाने sc/st/obc के लोग मुसलमान बन गये, जब अंग्रेजो का राज आया तो क्रिस्चन बन गए ।

 आज भी sc/st/obc के लोगों को प्रांतवाद, जातिवाद, भाषावाद, धर्मवाद के नाम पर 'फूट डालो राज करो नीति' को अपनाकर भय, भक्ति, भाग्य, भगवान, स्वर्ग-नर्क, पाप-पूण्य, हवन, यज्ञ, चमत्कार, पाखण्ड अन्धविश्वास, कपोल काल्पनिक पोंगा पंथी कहानियां आदि अतार्किक, अवैज्ञानिक मकड़जाल को इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंटमीडिया के माध्यम से थोपकर तथा मुसलमानों का डर दिखा कर मानसिक रूप से गुलाम बनाया जा रहा हैं । ऐसे में यदि कोई जागरूक बुद्धिजीवी तर्क करता हैं तो उसे धर्म विरोधी बताकर बहिस्कृत कर दिया जाता हैं ।

आज बाबासाहब डा. भीमराव अम्बेड़करजी के संवैधानिक अधिकारों की वजह से अनार्य शूद्रों ( obc/sc/st ) ने हर क्षेत्र में कुछ तरक्की की है परन्तु आर्य ब्राह्मणों ने कांग्रेस/बीजेपी/AAP के राजनैतिक षडयंत्र में फंसाकर एक तरफ तो हिंदुत्व के नाम पर मुसलमानों से लड़ाने का प्रयास किया जा रहा हैं, दूसरी तरफ प्राईवेटाइजेशन, एसईझेड और भूमि अधिग्रहण के नाप पर आर्थिक रूप से तथा अंधविश्वास फैलाकर मानसिक रूप से गुलाम बनाने का षड्यंत्र किया जा रहा हैं ।
क्या आज अनार्य शूद्रों के पास आने वाली अंतहीन गुलामी से बचने की समझ और प्लान हैं ?



👇 एक मात्र उपाय

शूद्र ( obc ), अतिशूद्र ( sc/st )
जाति तोड़ो समाज जोड़ो...!

बहुजन समाज बनाओ
अल्पसंख्याक को मिलाओ...!!

अपनी ताकत दिखाओ
मनुवाद से मुक्ति पाओ...!!!

धन, धरती और साधन बांटो
बाद में आरक्षण बांटो...!

जिसकी जितनी संख्या भारी
उतनी उसकी हिस्सेदारी...!!

जय मूलनिवासी, बामण विदेशी...!!!!!
मनिष तांबे एक मूलनिवासी

संघ (RSS) परिवार के सभी सदस्यों को जानिये

*संघ (RSS) परिवार के सभी सदस्यों को जानिये:*

*आर.एस.एस.* अपना सांप्रदायिक रूप छिपाने के लिये अपने संगठनों के सामने भारतीय राष्ट्रीय जैसे शब्द लगाता है. देशद्रोही क्रिया-कलापों के लिये उस पर कई बार पाबंदियाँ लगाई गयी.

*1. भारतीय जनता पार्टी (1980) कार्य:* पहले जनसंघ था, अब भाजपा है. राजनैतिक क्षेत्र में ब्राहमणवादियों का वर्चस्व एवं प्रभाव बनाना. बहुजनों को उनके अधिकारों से वंचित रखने के लिये यह क्षेत्र महत्वपूर्ण है. ओबीसी के मंडल आयोग के खिलाफ रामरथ यात्रा निकालकर ओबीसी के खिलाफ होने का प्रमाण दिया. सत्ता की चाबी हाथ में रखकर पूरे देश पर नियंत्रण रखने का मकसद, फिलहाल कुछ राज्यों में भाजपा की सत्ता है, अतः मकसद में कुछ पैमाने पर कामयाब.

*2. विश्व हिन्दू परिषद (1964) कार्य:* जातिवादी ब्राहमण धर्म का प्रचार प्रसार कर वर्णव्यवस्था का समर्थन करना, देश में जातीय दंगे भड़काना, राममंदिर निर्माण का बहाना बनाकर देश में अशांति फैलाना.

*3. भारतीय मजदूर संघ (1955) कार्य:* कामगार क्षेत्र में घुसकर मनुवादी प्रवृत्ति को जागृत करना, बहुजनों को गुमराह करना.

*4. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (1948) कार्य:* स्कूल एवं कालेज के छात्रों में जातिवाद की प्रवृत्ति जागृत कराना, मंडल आयोग एवं आरक्षण का विरोध करना.

*5. भारतीय जनता युवा मोर्चा कार्य:* युवा पीढी को सांप्रदायिकता का प्रशिक्षण देकर बहुजनों के प्रति उनके मन में नफरत निर्माण करते रहना.

*6. दुर्गा वाहिनी कार्य:* कथित हाई कास्ट महिलाओं को हल्दी कुमकुम एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर संगठित कर मनुवाद के प्रचार प्रसार के लिये तैयार करना.

*7. राष्ट्रीय सेविका समिति (1936) कार्य:* सरकारी एवं चैरिटेबिल संस्थाओं का लाभ कथित हाईकास्ट की महिलाओं को पहुंचाना, देश सेवा के नाम पर मेवा खाना.

*8. वनवासी कल्याण संस्था (1972) कार्य:* आदिवासियों को गुमराह करके हिन्दुत्व के प्रभाव में रखना.

*9. राष्ट्रीय सिख संगत (1986) कार्य:* सिख धर्म के लोगों को हिन्दुत्व के प्रभाव में रखना.

*10. सामाजिक समरसता मंच कार्य:* सामाजिक समरसता की नौटंकी रचाकर बहुजनों में गुलामी की प्रवृत्ति को बढ़ाने का प्रयास करना.

*11. भारतीय किसान संघ (1977) कार्य:* किसानों की समस्याओं के लिये लड़ने का नाटक रचाकर उन्हें हिन्दुत्व की राह पर लाना.

*12. अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत कार्य:* संघ ने हर क्षेत्र के लोगों को संगठित किया है, यहां तक कि ग्राहक लोगों का भी संगठन तैयार किया है, अर्थात समस्याओं से उनका लेना देना नहीं. बस जातिवाद की भावना उनमें जागृत करना मुख्य मकसद है.

*13. सहकार भारती (1978) कार्य:* सहकार क्षेत्र में सांप्रदायकता एवं वर्णवाद की भावना प्रबल कर ब्राहमणों का वर्चस्व बनाना और कथित हाईकास्ट के लोगों को आर्थिक रूप से मजबूत बनाना.

*14. विद्या भारती (1977) कार्य:* शैक्षणिक क्षेत्र में ब्राहमणों का वर्चस्व रखना. संशोधन के नाम पर अध्ययन की किताबों में गलत इतिहास लिखना, ब्राहमणों को श्रेष्ठ बनाना, बहुजनों को बदनाम करना.

*15. भारतीय अध्यापक परिषद कार्य:* अध्यापक लोगों को मनुवादी संस्कार छात्रों पर डालने के लिये तैयार करना, शिक्षण क्षेत्र में ऐसे अध्यापक बहुजन छात्रों को जानबूझकर फेल करते हैं और उन्हें पिछड़ा रखते हैं.

*16. हिन्दू सेवक संघ कार्य:* हिन्दुत्व रक्षा के लिये कार्यकर्ताओं का दल तैयार करना.

*17. भारतीय सेवक संघ कार्य:* देशभक्ति के नाम पर सांप्रदायिकता का प्रचार प्रसार करना.

*18. सेवा समर्पण संस्था कार्य:* विविध बैरायटी संस्था रजिस्टर कर ग्रान्ट का मलिन्दा खाना.

*19. संस्कार भारती (1981) कार्य:* संघ शाखा शिविर द्वारा बच्चों के कच्चे मन पर वर्गवाद के संस्कार डालना. उनके मन में धार्मिक अल्पसंख्यकों तथा आरक्षण के खिलाफ नफरत के बीज बोना.

*20. भारत भारती कार्य:* देश सेवा के नाम पर संघ की प्रसिद्धि करना, इमेज बनाना, फोटोग्राफर एवं वार्ताकार लेकर भूकम्प, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में जाना और थोड़ा काम करके ज्यादा पब्लिसिटी करना.

*21. भारतीय विकास परिषद कार्य:* समाजसेवा के नाम पर शासकीय योजनाओं का लाभ उठाना.

*22. इतिहास संकलन समिति कार्य:* इतिहास संशोधव के नाम पर गलत इतिहास लिखाना, ब्राहमणों के अपराध छुपाकर उनका गुणगौरव करना.

*23. राष्ट्रीय लेखक मंच कार्य:* ब्राहमणवादी लेखकों को संगठित कर ब्राहमणों के पक्ष में साहित्य निर्मित करना.

*24. विश्व संवाद केन्द्र कार्य:* विश्व के विविध देशों में रहने वाले हिन्दुओं को संगठित कर हिन्दुत्व को बढ़ावा देना.

*25. विश्व संस्कृत प्रतिष्ठान कार्य:* संस्कृत को देववाणी का दर्जा देकर उसका प्रचार प्रसार करना.

*26. भारतीय सैनिक परिषद (1992) कार्य:* फौज में ब्राहमणवाद को बढ़ावा देना जो देश की एकता के लिये महा खतरा है.

*27 भारतीय अधिवक्ता संघ*
वकीलों को संगठित कर हाईकास्ट के लोगों को बड़े-बड़े अपराधों से बचाना. दलित बहुजनों को छोटे-छोटे गुनाहों पर कड़ी सजा दिलवाना.

*28. राष्ट्रीय वैद्यकीय संघ कार्य:* कथित हाईकास्ट के डाक्टरों को संगठित कर संघ की विचारधारा का प्रचार प्रसार करना.

*29. भारतीय कुष्ठ रोग निवारण संघ कार्य:* भाजपा की वोट बैंक मजबूत करने के लिये कुष्ठ रोगियों तक को संगठित करना.

*30. दीन दयाल शोध संस्थान कार्य:* सामाजिक एवं आर्थिक नीतियों पर रिसर्च करने हेतु आने वाले शोधकर्ताओं में ब्राहमणवादी व्यवस्था का ध्यान रखना.

*31. स्वामी विवेकानन्द मिशन कार्य:* अध्यापन के क्षेत्र में भी हिन्दुत्व प्रणाली को मजबूत करने हेतु कार्यरत संस्था.

*32. महामना मालवीय मिशन कार्य:* सामाजिक कार्य के नाम पर सांप्रदायिकता के बीज बोना.

*33. बाबासाहेब आमटे स्मारक कार्य:* स्मारक के बैनर तले संघ की गतिविधियों को संचालित एवं मजबूत करना.

*34. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग परिषद कार्य:* अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर संघ की प्रतिभा उज्जवल करना.

*35. भारती अपना संघ कार्य:* संघ की गतिविधियों को संचालित करने हेतु रिसर्च करना.

*36. मीडिया कन्ट्रोल सेन्टर कार्य:* गोबेल्स प्रचार तंत्र से पेपर मीडिया एवं इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर कार्य करना, कथित हाईकास्ट की प्रतिभा उज्जवल करना, Sc, st,ओबीसी तथा अल्पसंख्यक समाज के बारे में गलतफहमियों का निर्माण करना, उन्हें नालायक, हीन, नाकाबिल एवं गुणवत्ताहीन बताना.

Monday, October 17, 2016

सरकारी नौकरियों में आरक्षण हमेशा के लिये है

26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ, जिसे 65 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और इस दौरान विधिक शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। इसके बावजूद भी सभी दलों की सरकारों और सभी राजनेताओं द्वारा लगातार यह झूठ बेचा जाता रहा कि अजा एवं अजजा वर्गों को सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मिला आरक्षण शुरू में मात्र 10 वर्ष के लिये था, जिसे हर दस वर्ष बाद बढाया जाता रहा है। इस झूठ को अजा एवं अजजा के राजनेताओं द्वारा भी जमकर प्रचारित किया गया। जिसके पीछे अजा एवं अजजा को डराकर उनके वोट हासिल करने की घृणित और निन्दनीय राजनीति मुख्य वजह रही है। लेकिन इसके कारण अनारक्षित वर्ग के युवाओं के दिलोदिमांग में अजा एवं अजजा वर्ग के युवाओं के प्रति नफरत की भावना पैदा होती रही। उनके दिमांग में बिठा दिया गया कि जो आरक्षण केवल 10 वर्ष के लिये था, वह हर दस वर्ष बाद वोट के कारण बढाया जाता रहा है और इस कारण अजा एवं अजजा के लोग सवर्णों के हक का खा रहे हैं। इस वजह से सवर्ण और आरक्षित वर्गों के बीच मित्रता के बजाय शत्रुता का माहौल पनता रहा।
मुझे इस विषय में इस कारण से लिखने को मजबूर होना पड़ा है, क्योंकि अजा एवं अजजा वर्गों को अभी से डराया जाना शुरू किया जा चुका है कि 2020 में सरकारी नौकरियों और सरकारी शिक्षण संस्थानों में मिला आरक्षण अगले दस वर्ष के लिये बढाया नहीं गया तो अजा एवं अजजा के युवाओं का भविष्य बर्बाद हो जाने वाला है।
जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत है। संविधान में आरक्षण की जो व्यवस्था की गयी है, उसके अनुसार सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में अजा एवं अजजा वर्गों का आरक्षण स्थायी संवैधानिक व्यवस्था है। जिसे न तो कभी बढ़ाया गया और न ही कभी बढ़ाये जाने की जरूरत है, क्योंकि सरकारी नौकरी एवं सरकारी शिक्षण संस्थानों में मिला हुआ आरक्षण अजा एवं अजजा वर्गों को मूल अधिकार के रूप में प्रदान किया गया है। मूल अधिकार संविधान के स्थायी एवं अभिन्न अंग होते हैं, न कि कुछ समय के लिये।
इस विषय से अनभिज्ञ पाठकों की जानकारी हेतु स्पष्ट किया जाना जरूरी है कि भारतीय संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकार वर्णित हैं। मूल अधिकार संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा होते हैं, जिन्हें किसी भी संविधान की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है, जिनके बिना संविधान खड़ा नहीं रह सकता है। इन्हीं मूल अधिकारों में अनुच्छेद 15 (4) में सरकारी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिये अजा एवं अजजा वर्गों के विद्यार्थियों के लिये आरक्षण की स्थायी व्यवस्था की गयी है और अनुच्छेद 16 (4) (4-क) एवं (4-ख) में सरकारी नौकरियों में नियुक्ति एवं पदोन्नति के आरक्षण की स्थायी व्यवस्था की गयी है, जिसे न तो कभी बढ़ाया गया और न ही 2020 में यह समाप्त होने वाला है।

यह महत्वपूर्ण तथ्य बताना भी जरूरी है कि संविधान में मूल अधिकार के रूप में जो प्रावधान किये गये हैं, उसके पीछे संविधान निर्माताओं की देश के नागरिकों में समानता की व्यवस्था स्थापित करना मूल मकसद था, जबकि इसके विपरीत लोगों में लगातार यह भ्रम फैलाया जाता रहा है कि आरक्षण लोगों के बीच असमानता का असली कारण है।

सुप्रीम कोर्ट का साफ शब्दों में कहना है कि संविधान की मूल भावना यही है कि देश के सभी लोगों को कानून के समक्ष समान समझा जाये और सभी को कानून का समान संरक्षण प्रदान किया जाये, लेकिन समानता का अर्थ आँख बन्द करके सभी के साथ समान व्यवहार करना नहीं है, बल्कि समानता का मतलब है- एक समान लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये संविधान में वंचित वर्गों को वर्गीकृत करके उनके साथ एक समान व्यवहार किये जाने की पुख्ता व्यवस्था की गयी है। जिसके लिये समाज के वंचित लोगों को अजा, अजजा एवं अपिवर्ग के रूप में वर्गीकृत करके, उनके साथ समानता का व्यवहार किया जाना संविधान की भावना के अनुकूल एवं संविधान सम्मत है। इसी में सामाजिक न्याय की मूल भावना निहित है। आरक्षण को कुछ दुराग्रही लोग समानता के अधिकार का हनन बतलाकर समाज के मध्य अकारण ही वैमनस्यता का वातावरण निर्मित करते रहते हैं। वास्तव में ऐसे लोगों की सही जगह सभ्य समाज नहीं, बल्कि जेल की काल कोठरी और मानसिक चिकित्सालय हैं।
अब सवाल उठता है कि यदि अजा एवं अजजा के लिये सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की स्थायी व्यवस्था है तो संसद द्वारा हर 10 वर्ष बाद जो आरक्षण बढ़ाया जाता रहा है, वह क्या है?
इस सवाल के उत्तर में ही देश के राजनेताओं एवं राजनीति का कुरूप चेहरा छुपा हुआ है।
संविधान के अनुच्छेद 334 में यह व्यवस्था की गयी थी कि लोक सभा और विधानसभाओं में अजा एवं अजजा के प्रतिनिधियों को मिला आरक्षण 10 वर्ष बाद समाप्त हो जायेगा। इसलिये इसी आरक्षण को हर दस वर्ष बाद बढाया जाता रहा है, जिसका अजा एवं अजजा के लिये सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थाओं में प्रदान किये गये आरक्षण से कोई दूर का भी वास्ता नहीं है। अजा एवं अजजा के कथित जनप्रतिनिधि इसी आरक्षण को बढाने को अजा एवं अजजा के नौकरियों और शिक्षण संस्थानों के आरक्षण से जोड़कर अपने वर्गों के लोगों का मूर्ख बनाते रहे हैं और इसी वजह से अनारक्षित वर्ग के लोगों में अजा एवं अजजा वर्ग के लोगों के प्रति हर दस वर्ष बाद नफरत का उफान देखा जाता रहा है। लेकिन इस सच को राजनेता उजागर नहीं करते।

हाँ, ये बात अलग है कि करीब-करीब हर विभाग, संस्थान, उपक्रम आदि में कई वर्षों से निजीकरण की प्रक्रिया को अंजाम देकर अजा एवं अजजा के आरक्षण को रोकने की सफल कोशिश की जा रही है ।

अतः जरूरत है कि हम सभी इस जानकारी को अपने सभी लोगो तक पहुंचाने की कोशिश करे।

सवाल : आप अम्बेदकरवादी हैं ?

एक नकली ेडकरवादी व्यक्ति से सवाल
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सवाल : आप अम्बेदकरवादी हैं ?
जवाब : हाँ, एकदम कट्टर अम्बेदकरवादी
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सवाल : अम्बेदकरवादी होने के क्या प्रमाण हैं आपके पास?
जवाब : मेरे घर में बाबासाहब अंबेडकर जी की तस्वीरें हैं, उनकी किताबें हैं, मैं बाबासाहब अंबेडकर जी पर गाए हुए गाने सुनता हूँ, मेरे मोबाईल में सिर्फ़ और सिर्फ़ बाबासाहब अंबेडकर जी के जिवन पर गाए हुए गाने हैं, वाॅलपेपर हैं इतना ही नहीं मेरे मोबाईल का रिंगटोन भी बाबासाहब अंबेडकर जी पर गाया हुआ एक सुंदर सा गाना हैं।
***
सवाल : आप बाबासाहब अंबेडकर जी की जयंती मनाते हैं?
जवाब : यह भी कोई सवाल हुआ। अरे ...बाबासाहब अंबेडकर जी की जयंती तो हमारे लिए दिवाली और होली हैं। उस दिन गली गली में हम प्रोग्राम करते हैं, डिजे के साथ रैलियाँ निकालते हैं इतना ही नहीं उस दिन तो हम हमारी बस्तियों में खाना भी बाटते हैं।
***
सवाल : आप विहारों में जाते हैं?
जवाब : हाँ, रोज जाते हैं। आप कहें तो मैं आपको पुरी बुद्ध वंदना भी बता सकता हूँ।
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आखिरी सवाल : चुनाव के वक्त मतदान किसे करते हैं।
जवाब : ???
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सवाल : महाराष्ट्र में इतने कट्टर अंबेडकरवादी और बौद्ध होने के बावजूद भी महाराष्ट्र की सत्ता अंबेडकरवादी लोगों के हाथों में क्यों नहीं?
जवाब : ???
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सवाल : नागपूर में इतने चिंतक, लेखक, वक्ता, बुद्धिजीवी, कट्टर अंबेडकरवादी, बौद्ध होने के बावजूद भी वहाँ से आपका एक भी विधायक या सांसद क्यों नहीं चुना जाता?
जवाब : ???
***
सवाल : आपके यहाँ कट्टर अंबेडकरवादी होते हुए भी आरएसएस का मुख्यालय वहाँ से खत्म क्यों नहीं हुआ?
जवाब : ????
***
सवाल : क्या आज भी आपके यहाँ नोट से वोट खरिदा जा सकता हैं?
जवाब : ????
**
🤔🤔🤔
....
आंसर जरूर दीजियेगा???
बस बहोत हो गया अब एक हो जाओ...अपनी ताकत दिखाओ...अपनी सत्ता लाओ...

🙏🏻जय भीम 🙏🏻                                🦁जय मूलनिवासी🦁                         🌿☝🏻नमो बुद्धाय☝🏻

नास्तिक सम्मेलन पर हिन्दुत्ववादीयों ने हमला किया

नास्तिक सम्मेलन पर हिन्दुत्ववादीयों ने हमला किया ၊

महिलाओं तक की पिटाई करी गई और उनके कपड़े फाड़ दिये गये ၊

हमला करने का कोई कारण नहीं था ၊

भारत के संविधान में हर नागरिक को अपनी आस्था की आज़ादी है ၊

किसी को हिन्दु विचार मे आस्था हो सकती है ,

किसी को मुस्लिम विचार मे आस्था हो सकती है ,

किसी को नास्तिक विचार पर आस्था हो सकती है ၊

किसी की आस्था के आधार पर भारत के नागरिक पर हमला नहीं किया जा सकता ၊

लेकिन हिंदुत्ववादियों ने हमला किया ၊

हिंदुत्ववादियों के हमले का मनोविज्ञान डरावना है ,

वे मानते हैं कि हम जो लोग नास्तिक बने हैं उनके नाम हिन्दुओं जैसे हैं ,

इसका अर्थ है हिन्दु लोग हिन्दु धर्म छोड़ रहे हैं ၊

यानी अगर कोई हिन्दु अगर नास्तिक बनता है तो यह हिन्दु धर्म का अपमान है ၊

दो दिन से हिन्दुत्ववादी हमें यही गालियां दे रहे हैं ,

और हम से कह रहे हैं कि दम है तो मुसलमानों को नास्तिक बना कर दिखाओ ,

इसका अर्थ साफ है ,

हिन्दुत्ववादी लोग हिन्दुओं के नास्तिक बनने को अपने धर्म का अपमान और हिन्दु धर्म के लिये चुनौती मान रहे हैं ၊

लेकिन उससे भी ज्यादा बड़ा खतरा सरकार का इस मामले में बदमाशी पूर्ण रवैय्या है ,

प्रशासन के एक बड़े अधिकारी ने नास्तिक सम्मेलन के कार्यकताओं से पूछा कि आप ये राष्ट्रविरोधी गतिविधियां क्यों कर रहे हैं ?

कार्यक्रम के कार्यकर्ता भौंचक रह गये ,

नास्तिक होना देशद्रोह कैसे हो गया ?

भगत सिंह नास्तिक थे , तो क्या भगत सिंह राष्ट्रद्रोही थे ?

क्या हिन्दुत्व ही राष्ट्रवाद है ?

इसका अर्थ है अब सरकार वैसा ही सोचती है जैसा संघ चाहता है ,

नास्तिक सम्मेलन पर आज का हमला संघ और सरकार ने मिल कर किया है ၊

यह हमला भगत सिंह पर संघ का हमला है ၊

आजादी से पहले भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के नेताओं नें भगत सिंह की फांसी का मजाक बनाया था,

और भगत सिंह का अपमान किया था ၊

यह हमला देश के संविधान और लोकतन्त्र पर हमला है ၊

मतलब अब देश मे आपको वही सोचना पड़ेगा जो गुन्डा अमित शाह चाहता है ၊

अगर आप उस गुन्डे के अनुसार नहीं सोचेंगे ,

तो उसके गुन्डे आप पर , माहिलाओं पर , आपकी सभा पर, नाटक पर , फिल्म शो पर, हमला कर देंगे ၊

इस देश के लोगों को अब सोचना ही होगा ,

कि भारत के नागरिकों की स्वतन्त्रता और लोकतन्त्र को चन्द गुंडों द्वारा नष्ट करने को बर्दाश्त किया जा सकता है क्या ?

कबीर की अन्धविश्वास, पाखंड, भेदभाव, जातिप्रथा, हिन्दू, मुस्लिम पर करारी चोट

कबीर की अन्धविश्वास, पाखंड, भेदभाव, जातिप्रथा, हिन्दू, मुस्लिम पर करारी चोट !!©

” जो तूं ब्रह्मण , ब्राह्मणी का जाया !
आन बाट काहे नहीं आया !! ”
– कबीर
(अर्थ- अपने आप को ब्राह्मण होने पर गर्व करने वाले ज़रा यह तो बताओ की जो तुम अपने आप की महान कहते तो फिर तुम किसी अन्य रास्ते से जाँ तरीके से पैदा क्यों नहीं हुआ ? जिस रास्ते से हम सब पैदा हुए हैं, तुम भी उसी रास्ते से ही क्यों पैदा हुए है ?)
कोई आज यही बात बोलने की ‘हिम्मंत’ भी नहीं करता ओर कबीर सदियों पहले कह गए ।। हमे गर्व हैं की हम उस महान संत के अनुयाई हैं । ऐसे महान क्रांतिकारी संत को कोटी कोटि नमन !!!

 “लाडू लावन लापसी ,पूजा चढ़े अपार
पूजी पुजारी ले गया,मूरत के मुह छार !!”
– कबीर
(अर्थ – आप जो भगवान् के नाम पर मंदिरों में दूध, दही, मख्कन, घी, तेल, सोना, चाँदी, हीरे, मोती, कपडे, वेज़- नॉनवेज़ , दारू-शारू, भाँग, मेकअप सामान, चिल्लर, चेक, केश इत्यादि माल जो चढाते हो, क्या वह बरोबर आपके भगवान् तक जा रहा है क्या ?? आपका यह माल कितना % भगवान् तक जाता है ? ओर कितना % बीच में ही गोल हो रहा है ? या फिर आपके भगवान तक आपके चड़ाए गए माल का कुछ भी नही पहुँचता ! अगर कुछ भी नही पहुँच रहा तो फिर घोटाला कहा हो रहा है ? ओर घोटाला कौन कर रहा है ? सदियों पहले दुनिया के इस सबसे बड़े घोटाले पर कबीर की नज़र पड़ी | कबीर ने बताया आप यह सारा माल ब्राह्मण पुजारी ले जाता है ,और भगवान् को कुछ नहीं मिलता, इसलिए मंदिरों में ब्राह्मणों को दान करना बंद करो )

#‎अन्धविश्वास_पर_कबीर_की_चोट‬ !!
‪#‎हिन्दुओ_पर‬
”पाथर पूजे हरी मिले,
तो मै पूजू पहाड़ !
घर की चक्की कोई न पूजे,
जाको पीस खाए संसार !!”
– कबीर
”मुंड मुड़या हरि मिलें ,सब कोई लेई मुड़ाय |
बार -बार के मुड़ते ,भेंड़ा न बैकुण्ठ जाय ||”
– कबीर
”माटी का एक नाग बनाके,
पुजे लोग लुगाया !
जिंदा नाग जब घर मे निकले,
ले लाठी धमकाया !!”
– कबीर
” जिंदा बाप कोई न पुजे, मरे बाद पुजवाये !
मुठ्ठी भर चावल लेके, कौवे को बाप बनाय !!
– कबीर
”हमने देखा एक अजूबा ,मुर्दा रोटी खाए ,
समझाने से समझत नहीं ,लात पड़े चिल्लाये !!”
– कबीर
‪#‎मुसलमानों_पर‬
”कांकर पाथर जोरि के ,मस्जिद लई चुनाय |
ता उपर मुल्ला बांग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय ||”
– कबीर
‪#‎हिन्दू_मुस्लिम_दोनों_पर‬
”हिन्दू कहें मोहि राम पियारा, तुर्क कहें रहमाना,
आपस में दोउ लड़ी-लड़ी मुए, मरम न कोउ जाना।”
– कबीर
(अर्थ : कबीर कहते हैं कि हिन्दू राम के भक्त हैं और तुर्क (मुस्लिम) को रहमान प्यारा है. इसी बात पर दोनों लड़-लड़ कर मौत के मुंह में जा पहुंचे, तब भी दोनों में से कोई सच को न जान पाया।)

‪#‎हिन्दुओ_की_जाति_पर_कबीर_की_चोट‬
”जाति ना पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान !
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान !!
– कबीर
”काहे को कीजै पांडे छूत विचार।
छूत ही ते उपजा सब संसार ।।
हमरे कैसे लोहू तुम्हारे कैसे दूध।
तुम कैसे बाह्मन पांडे, हम कैसे सूद।।”
– कबीर
”कबीरा कुंआ एक हैं,
पानी भरैं अनेक ।
बर्तन में ही भेद है,
पानी सबमें एक ॥”
– कबीर
”एक क्ष ,एकै मल मुतर,
एक चाम ,एक गुदा ।
एक जोती से सब उतपना,
कौन बामन कौन शूद ”
– कबीर

‪#‎कबीर_की_सबको_सीख‬ ‪#‎बाकि_समझ_अपनी_अपनी‬

”जैसे तिल में तेल है,
ज्यों चकमक में आग I
तेरा साईं तुझमें है ,
तू जाग सके तो जाग II ”
– कबीर
मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे ,
मैं तो तेरे पास में।
ना मैं तीरथ में, ना मैं मुरत में,
ना एकांत निवास में ।
ना मंदिर में , ना मस्जिद में,
ना काबे , ना कैलाश में।।
ना मैं जप में, ना मैं तप में,
ना बरत ना उपवास में ।।।
ना मैं क्रिया करम में,
ना मैं जोग सन्यास में।।
खोजी हो तो तुरंत मिल जाऊ,
इक पल की तलाश में ।।
कहत कबीर सुनो भई साधू,
मैं तो तेरे पास में बन्दे…
मैं तो तेरे पास में…..
– कबीर

भूत वर्तमान भविष्य

भूत वर्तमान भविष्य (भाग -1)

Manusmriti के मुताबिक मानव जाति को उनके काम के हिसाब से 4 वर्णों में बांटा गया है। ये चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र हैं। मनुस्मृति में ब्राह्मण को अवध्य बताया गया है यानी कितना भी बड़ा पाप किए जाने पर उसकी हत्या नहीं की जा सकती, जबकि शूद्र के लिए छोटे अपराधों पर भी मौत की सजा देने जैसे प्रावधान हैं।
मनुस्मृति में कितना भारी षड्यन्त्र है उसकी जानकारी श्लोकों में और पढ़ लीजिए।
यो लोभात् अधमो जात्या जीवेत् उत्कृष्ट कर्मभिः। तें राजा निर्धनं कृत्वा क्षिप्रमेव विवासयेत्॥ 10/96॥
अर्थात् जो शूद्र, अछूत या शिल्पी जीविका के लोभ से अच्छे कर्मों द्वारा अपने जीवन को बिताने लगे तो राजा इन सबका धन छीन ले और तुरन्त देश से निकाल देवें।
विप्रसेवैव शूद्रस्य विशिष्टं कर्म कीर्त्यते। यदतोऽन्यत् हि कुरुते तद् भवत्यस्य निष्फलम्॥10/123॥
यदि कुछ वेतन लेने की इच्छा हो तो क्षत्रिय या वैश्य की सेवा करके जीवन बिताले।
स्वगार्थं उभयार्थं वा विप्रान् आराधयेत्तु सः।  जात ब्राह्मण शब्दस्य सा ह्यहस्य कृतकृत्यता॥10/122॥
यदि स्वर्ग जाने की इच्छा हो तब तो बिना कुछ लिए ही ब्राह्मण की सेवा करे। यदि ‘ब्राह्मण के बन गए’ तो सारा जीवन ही सफल समझो।
उच्छिष्ट मन्नं दातव्यं जीर्णानि वसनानि च। पुलाकाश्चैव धान्यानां जीर्णाश्चैव परिच्छदाः॥10/125॥
शूद्र को झूठा अन्न, फटे कपड़े और बिछौने देना चाहिए; क्योंकि शूद्र को कोई पाप नहीं होता है।
न शूद्रे पातकं किंचित् न सः संस्कारमर्हति। नास्याधिकारो धर्मेऽस्ति-न धर्मात् प्रतिषेधनम्॥10/126॥
शूद्र के लिए कोई संस्कार नहीं है और उनको धर्म में कोई अधिकार नहीं है। हाँ! स्वधर्म अर्थात् सेवा करने का सर्वाधिकार प्राप्त है।
एक जातिः द्विजातींस्तु वाचा दारुणयाक्षिपन्। जिह्वाया प्राप्नुयात् छेदं जघन्य प्रभवोहिसः॥8/270॥
यदि शूद्र द्विजों को गाली देवे तो उसकी जीभ काट ली जाए, क्योंकि वह पैदायशी नीच है।
नामजातिग्रहं त्वेषां अभिद्रोहेण कुर्वतः।  निक्षेप्यो ऽयोमयः शंकुः ज्वलन्नास्ये दशांगुलः॥8/271॥
यदि द्विजों का नाम लेकर शूद्र यह कह बैठे कि ‘ब्राह्मण’ बना है तो उसके मुख में दस अंगुल की लोहे की शलाका जलती-जलती घुसेड़ देवे।
धर्मोपदेशं दर्पेण विप्राणा मस्य कुर्वतः। तप्त मासेचयेत् तैलं वक्त्रे श्रोत्रेच पार्थिवः॥8/272॥
यदि शूद्र ब्राह्मण को कोई धर्म की बात कह दे तो उसके मुख और कान में राजा खौलता हुवा गरम तेल डलवा दे। परमात्मा बचावे! हिन्दुओं के रामराज्य और स्वराज्य से। नहीं तो ये लोग अपनी मनुस्मृति के आधार पर सब कुछ करेंगे। इन्होंने क्या नहीं किया। सबसे बढ़िया कहे जाने वाले रामराज्य में शम्बूक नामक शूद्र का सिर सिर्फ़ इसलिए स्वयं आदर्श राजा राम ने काट दिया कि वह तप करता था, मुनि बनता था। यही है पुराना मनुस्मृति विधान ।

श्रुतं देशं च जातिं च कर्म शरीर मेव च। वितथेन ब्रुबन् दर्पात् दाप्यः स्यात् द्विशतं दमम्॥8/273॥
यदि कोई अपनी जात छिपावे, तो उससे दो सौ पण जुर्माना लिया जावे।
येन केन चित् अंगेन हिंस्यात् श्रेष्ठमन्त्यजः। छेत्तव्यं तत्तदेवास्य तन्मनो रनुशासनम्॥8/279॥
अन्त्यज (शूद्र और अछूत) जिस किसी अंग से द्विजों को मारे उसका वहीं अंग काट लिया जावे।
सहासनममि प्रेप्सुः उत्कृष्टस्यावकृष्टजः।  कट्या कृताङ्को निर्वास्यः स्फिचं वास्यावकर्त्तयेत्॥8/281॥
यदि अछूत द्विज के बराबर दूरी आदि पर बैठ जावे तो उसके चूतड़ पर गरम लोहे से दाग दे अथवा थोड़े चूतड़ ही कटवा दे।
अब्राह्मणः संग्रहणे प्राणान्तं दंडमर्हति। चतुर्णामपि वर्णानां दारा रचयतमा सदा॥8/359॥
यदि शूद्र किसी की स्त्री को भगा ले तो उसको फाँसी का दंड दिया जावे; क्योंकि चारों वर्णों की स्त्रियों की रक्षा कोशिश के साथ करनी चाहिए
कन्यां भजन्तीं उत्कृष्टां न किंचिदपि दापयेत्’॥8/365॥
परन्तु ब्राह्मण यदि किसी की स्त्री को भगाले तो जुर्माना तक न करे।
उत्तमांगोद्भवात् ज्यैष्ठयात् ब्रह्मणश्चैव धारणात्। सर्वस्यैवास्य सर्गस्य धर्मतो ब्राह्मणः प्रभुः॥1/93॥
मुख से पैदा होने के कारण ब्राह्मण सबसे बड़े हैं और सृष्टि के मालिक हैं।
यस्यास्येन सदाश्नन्ति हव्यानि त्रिदिवौकसः। कव्यानि चैव पितरः किं भूतमधिकं ततः॥1/95॥
देवता लोग ब्राह्मणों के मुख द्वारा ही भोजन करते हैं इस लिए संसार में ब्राह्मण से बढ़कर कोई प्राणी नहीं है।
सर्वस्वं ब्राह्मणस्येदं यत् किंचित् जगती गतम्। श्रेष्ठयेनाभिजने नेदं सर्वं वै ब्राह्मणोर्हति॥1/100॥
संसार में जो कुछ है सब ब्राह्मण का है, क्योंकि जन्म से ही वह सबसे श्रेष्ठ है।
स्वमेव ब्राह्मणो भुंक्तो स्वं वस्ते स्वं ददाति च। आनृशंस्यात् ब्राह्मणस्य भुंजते हीतरे जनाः॥1/101॥
ब्राह्मण जो कुछ भी खाता है, पहिनता और देता है सब अपना ही है। संसार के सब लोग ब्राह्मण की कृपा से ही खाते-पीते और लेते देते हैं।
बिदुषा ब्राह्मणोनेदं अध्येतव्यं प्रयत्नतः। शिष्येभ्यश्च प्रवक्तव्यं सम्यङ् नान्येन केनचित्॥1/103॥
विद्वान् ब्राह्मण को चाहिए कि इस मनुस्मृति शास्त्र को खूब प्रयत्न से पढ़े और ब्राह्मण को ही पढ़ावे।
अधीयीरन् त्रयो वर्णाः स्वकर्मस्था द्विजातयः। प्रब्रू यादू ब्राह्मणात्वेषां नेतराविति निश्चयः॥10/1॥
द्विजाति लोग विद्या पढ़ें। परन्तु पढ़ाने का काम ब्राह्मण ही करें। शूद्र पढ़ने न पावें।
एतान् द्विजातयो देशान् संश्रयेरन् प्रयत्नतः।  शूद्रस्तु यस्मिन् फस्मिन् वा निवसेत् वृत्तिकर्शितः॥2/24॥
इन ब्रह्मर्षि, आर्यावर्त्त आदि देशों पर द्विजाति लोग कोशिश करके अपना कब्जा करलें और शूद्र तो मुसीबत का मारा किसी कोने में पड़ा रहे।
ब्राह्मणो बैल्व पालशौ क्षत्रियो बाट खादिरौ। पैप्पलो दुम्बरौ वैश्यो दण्डान् अर्हन्ति धर्मतः॥2/45॥
द्विजाति लोग दण्ड धारण करें। शूद्र के लिए कोई आज्ञा नहीं। यह संस्कार विधि में भी है।
अब्रोह्मणादध्ययनं आपत्काले विधीयते।  नाब्राह्मणो गुरौ शिष्यो वासमात्यन्तिकं वसेत्॥2/242॥
क्षत्रिय आदि पढ़ाने की योग्यता भी रखते हों तो भी इनको पढ़ाने का काम न दे। इसके अनुसार आजकल स्कूलों में जितने गुप्ता, ठाकुर मास्टर या हेडमास्टर हैं, सब के सब बायकाट के योग्य हैं।

भूत वर्तमान भविष्य (भाग -2)

 बाबा साहब भीमराव अंबेडकर ने बड़े जतन से अमेरिका इंग्लैंड और जर्मनी में पढ़ कर खुद के परिवार की आहुति दे कर sc st obc और अल्पसंख्यकों को संवैधानिक अधिकार दिलाये। परंतु उन्होंने अपने छोटे छोटे स्वार्थों में फसकर अपने अधिकारों को बर्बाद कर दिया ।
सविधान संसोधन के लिए एक जरूरी शर्त है, लोकसभा और राज्यसभा में 2/3 बहुमत से किसी बिल का पास होना। साम दाम दंड RSS/BJP/MODI ने गुजरात का झूठा माँडल पैश कर लोकसभा में 2/3 से अधिक बहुमत प्राप्त कर लिया है, जबकि गुजरात सामाजिक विकास में देश का सबसे पिछड़ा राज्य है। अब RSS/BJP का पूरा ध्यान राज्यसभा में 2/3 बहुमत प्राप्त करने पर लगा हुआ है।
कुछ समय पूर्व RSS/BJP मनूस्मृति स्वर्ण अक्षरों में लिखवाने के लिए एक समीति को कार्य सोंप चुके है। जो दो वर्षों में पूरी तैयार होने का लक्ष्य रख्खा है। मंशा साफ है। समझने की जरूरत है। और अबतक कुछ कार्यों पर वो प्रयोग भी कर चुके है।
कल रात मुझे सपना आया कि 2017 में उत्तर प्रदेश में rss वाली bjp सरकार बन गई है। सरकार बनते ही सबसे पहले बीजेपी ने हमारे देश को हिंदू राष्ट्र घोषित कर दिया है RSS/BJP लोकसभा में पहले ही 2/3 से अधिक बहुमत प्राप्त कर चुके हैं । 70 साल से RSS/BJP यही सपना देख रही थी कि कैसे साम दाम दंड भेद डां अम्बेडकर के बनाए चक्रव्यूह को तोड़ा जाए, जिसके लिए लोकसभा और राज्यसभा में 2/3 बहुमत प्राप्त करना जरूरी था।
लोकसभा और राज्यसभा में 2/3 बहुमत प्राप्त करते ही सबसे पहले RSS/BJP ने धर्म निरपेक्ष राष्ट्र भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करने का बिल संसद से पास करवा दिया है।
उसके कुछ समय पश्चात ही उन्होंने सभी अल्पसंख्यको विशेष कर मुस्लिमों के सारे अधिकार राशन कार्ड नौकरी शादी के पास करवा कर समाप्त कर दिए हैं । उससे अगले दिन पुलिस की मनूवादी सगंठनों द्वारा बनाये गये मानसिक गुलामों की मदद से मुस्लिमों पर अत्याचार शुरु कर दिए हैं। उन्हें देश छोड़कर जाने के लिए विवश कर दिया है, कितने मुस्लिम अपने बीवी बच्चों सहित मार डाले गए हैं जो बचे हैं उन्हें गुलाम बनाकर मजदूरी करने के लिए विवश कर दिया है। गोधराकांड पूरे देश में दोहराया जा रहे हैं जगह-जगह आगजनी और बलात्कार बढ़ गए हैं हिंदू राष्ट्र घोषित होने के बाद मुस्लिमों के नागरिक अधिकार समाप्त होने से उनकी सुनने वाला कोई नहीं रहा है।
कुछ समय पश्चात ही मनुस्मृति को संविधान के रूप में मान्यता दिलाने का बिल संसद में पास करवा दिया गया है। मनुस्मृति को संविधान की मान्यता मिलते ही पूरे देश भर में आरक्षण से नौकरी पाए सभी ( Sc,St,Obc & minority) लोगों को बेइज्जत कर नौकरी से बाहर निकाल दिया है। बाबासाहेब के दिलाये अधिकारों से नौकरी पाने के बाद शूद्रों (sc st obc और मलेच्छों) ने जो धन-संपत्ति इकट्ठा की थी उसे छीन लिया गया है। उन्हें उनके  मकानों से बाहर निकाल दिया है ।
उससे अगले ही दिन शूद्रों(sc,st,obc) को मनु विधान के अनुसार कार्यों का निर्धारण कर दिया गया है ।
जाटव/चमार को मरे जानवरों की खाल निकालने का काम दे दिया गया है। वो लोग उन जानवरों की खाल निकालकर और मांस काटकर अपने बीवी बच्चों और मां बाप के लिए अपने कपड़े में बांधकर ला रहे हैं।
दिवाकर/धोबी ब्राह्मण, क्षत्रियों और वैश्य व्यक्तियों के कपड़े धोने के लिए इकट्ठा कर रहे हैं, और अपने बीवी बच्चों सहित सभी मिलकर कपड़े धुलकर प्रेस करके घर घर पहुंचा रहे हैं । और बदले में उन्हें जो रूखी सूखी रोटी मिल रही है उसी से काम चला रहे हैं
प्रजापति/कुम्हार समुदाय सुबह सुबह अपने गधों को लेकर मिट्टी लेने जा रहे हैं और दिन में पानी  डाल कर मकर कुल्हड़ सुराही आदि बनाने की तैयारी कर रहे हैं।
यादव/अहीर समाज के लोग अब मनुस्मृति के अनुसार पूर्व मै किये कार्यो अर्थार्त भेस और गाय चराने को सुबह ही निकल जाते है उनकी धर की महिलाये पशुओं के गोवर के उपले बनाकर और अन्य साफ सफाई करके अपना और आपने बच्चों के पेट भर रहे हैं उनके पशुओ का धी दूध सुबह शाम क्षत्रिय समुदाय के लठेत आकर मुफ्त ही ले जाते हैं।
शाक्य/काँछी मनूवादी स्वर्ण समुदाय के लिए साग सब्जी उगाने में लगे हुए हैं। और सुबह शाम ताजा सब्जी उनके घर पहुचा रहे हैं।
कठेरिया समाज और अन्य समाज के सभी लोग उनको बांटे गये अपने-अपने कामों में व्यस्त हैं इसी तरह 6743  जातियों में बटी शूद्र (sc st obc) जातियां मनुस्मृति अनुसार मिले कामों में व्यस्त हैं।
और मुख्य बात यह है कि अब कोई कृष्ण, राम, देवी आदि 33 करोड़ देवी देवताओं मे से एक भी उनकी मद्द को नहीं आ रहा है। वो दिन रात एक ही चिथड़े में गुजार देते है। उनके बीबी बच्चे फ़टी पुरानी साड़ी से बने कपड़ो में जीवन गुजार रहे है ।

यह सब उनकी उस धूर्त्ता का परिणाम है उन्हें जो आरक्षण नोकरी शिक्षा और समान नागरिक अधिकारों को दिलाने वाले बाबा साहब अम्बेडकर को भुला देने के कारण हुआ, परन्तु अब क्या हो सकता हैं। सब कुछ समाप्त हो चुका है। आज बैठ कर यह सोचने से क्या होगा, क़ि कभी अपने निजी स्वार्थ से ऊपर उठकर    (मायावती जी) ने बाबा साहब का झड़ा बुलद करने बीडा उठाया था। लेकिन शूद्र समाज (sc;st;obc) और मुस्लिमो ने अपने छोटे छोटे स्वार्थों की वजह से अन्य पार्टीयो के भिन्न भिन्न प्रकार से लालच में फसकर बाबा साहब द्वारा दिलाऐ अपने वोट रूपी हथियार को व्यर्थ ही गवां दिया।
परन्तु अब बैठकर रोने से क्या हो सकता हैं। तभी मेरे कानो में जय भीम के नारों की आवाज सुनाई देती है और मैं नींद से जाग उठता हूँ देखता हूँ कि कुछ नौजवान भीम दूत तेजी से आगे बढे चाले आ रहे हैं  मैने आँख खोली ओह मैं स्वप्न देख रहा था कितना भयानक स्वप्न था। अभी समय है चुनाव होने में, मैं लोगों को आज से ही समझाने का कार्य दिन रात शुरु करता हूं  और अपने मुस्लिम और अन्य शूद्र(SC ST OBC) भाईयो को बाबा साहब और उनके विचारों पर चल रही एक मात्र पार्टी बहुजन समाज के अस्तित्व व संविधान की रक्षक , सर्वसमाज में भाई चारा पैदा करने वाली वन मैन  वन वोट वन वैल्यू के सिसिद्धांत को वास्तविक रूप में परिणित करने वाली बहुजन समाज पार्टी को वोट देने की अपील करूंगा

         जय भीम \ जय भारत

संविधान दिवस चिरायु हो

संविधान दिवस चिरायु हो
🗣🗣चिरायु हो   🗣🗣 चिरायु हो

🌀🌀🌀🌀🌀🌀🌀🌀🌀🌀🌀🌀
🇮🇳 भारतीय संविधान📓 के निर्माण 📝के 6⃣7⃣वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में  सीतापुर में  संविधान दिवस का आयोजन होने जा रहा है |

📓📓📕📗📘📙📔📓📓📓


🎯🎯 संविधान दिवस समारोह🎯🎯



🔷जिसमें अनेक विद्वान वक्ताओं द्वारा संविधान पर विशेष वक्तव्य दिये जायेंगें |
जिसमें संविधान के अनेकों भागों के विषय में व्याख्यान व भागों का वर्णन किया जायेगा |🔷

🔵 अलग -अलग वक्ताओं द्वारा संविधान के अलग -विषयों पर वक्तव्य दिये जायेंगें |🔵
           🏠🏠 स्थान 🏠🏠
 
   ⛲     डॉ० अम्बेडकर पार्क⛲
 🚦🚦 नियर लाल बाग चौराहा🚦🚦
        कचहरी के सामने
             सीतापुर
          (  उ०प्र०  )
     
🗓🗓 दिनाँक 🗓🗓
2⃣7⃣ नवम्बर  2⃣0⃣1⃣6⃣

🗓🗓 दिन  🗓🗓
          रविवार

🕙🕙 समय🕙🕙
प्रात:-1⃣0⃣:0⃣0⃣बजे


   🎙🎙 वक्तागण 🎙🎙
🔹श्रद्धेय डॉ०अवधेश कुमार सिंह
🔹 श्रद्धेय राजेश कुमार अहिरवार
🔹 श्रद्धेय धर्मेन्द्र सिंह राना
🔹 श्रद्धेया मुन्नी बौद्ध
🔹 श्रद्धेया त्रिरत्न शीला
एवं अन्य वक़्तागण

🎤🎤  मंचसंचालक🎤🎤

      🔵 संघप्रिय गौतम🔵


🙏🏻🙏🏻🙏🏻 निवेदक 🙏🏻🙏🏻🙏🏻

🔵संघप्रिय गौतम
📞8090468577 ,9455752577

🔵बी०आर० कुरील
📞9455112379

🔵यू० के० बौद्ध
📞9838680791

🔵धर्मेन्द्र सिंह राना
📞9258414243

एवं सीतापुर के अन्य साथी|

कृपया अधिकाधिक  संख्या में पहुंचकर कार्यक्रम की शोभा  बढायें 

एक किसान की मन की बात

एक किसान की मन की बात:-
😞😞😞😞😞😞😞😞😞
कहते हैं..

इन्सान सपना देखता है
तो वो ज़रूर पूरा होता है.
मगर
किसान के सपने
कभी पूरे नहीं होते
बड़े अरमान और कड़ी मेहनत से फसल तैयार करता है और जब तैयार हुई फसल को बेचने मंडी जाता है.

बड़ा खुश होते हुए जाता है.

बच्चों से कहता है
आज तुम्हारे लिये नये कपड़े लाऊंगा फल और मिठाई भी लाऊंगा,

पत्नी से कहता है..
तुम्हारी साड़ी भी कितनी पुरानी हो गई है फटने भी लगी है आज एक साड़ी नई लेता आऊंगा.
😞😞😞😞😞
पत्नी:–”अरे नही जी..!”
“ये तो अभी ठीक है..!”
“आप तो अपने लिये
जूते ही लेते आना कितने पुराने हो गये हैं और फट भी तो गये हैं..!”

जब
किसान मंडी पहुँचता है .

ये उसकी मजबूरी है
वो अपने माल की कीमत खुद नहीं लगा पाता.

व्यापारी
उसके माल की कीमत
अपने हिसाब से तय करते हैं.

एक
साबुन की टिकिया पर भी उसकी कीमत लिखी होती है.

एक
माचिस की डिब्बी पर भी उसकी कीमत लिखी होती है.

लेकिन किसान
अपने माल की कीमत खु़द नहीं कर पाता .

खैर..
माल बिक जाता है,
लेकिन कीमत
उसकी सोच अनुरूप नहीं मिल पाती.

माल तौलाई के बाद
जब पेमेन्ट मिलता है.

वो सोचता है
इसमें से दवाई वाले को देना है, खाद वाले को देना है, मज़दूर को देना है ,

अरे हाँ,
बिजली का बिल
भी तो जमा करना है.

सारा हिसाब
लगाने के बाद कुछ बचता ही नहीं.

वो मायूस हो
घर लौट आता है
बच्चे उसे बाहर ही इन्तज़ार करते हुए मिल जाते हैं.

“पिताजी..! पिताजी..!” कहते हुये उससे लिपट जाते हैं और पूछते हैं:-
“हमारे नये कपडे़ नहीं ला़ये..?”

पिता:–”वो क्या है बेटा..,
कि बाजार में अच्छे कपडे़ मिले ही नहीं,
दुकानदार कह रहा था
इस बार दिवाली पर अच्छे कपडे़ आयेंगे तब ले लेंगे..!”

पत्नी समझ जाती है, फसल
कम भाव में बिकी है,
वो बच्चों को समझा कर बाहर भेज देती है.

पति:–”अरे हाँ..!”
“तुम्हारी साड़ी भी नहीं ला पाया..!”

पत्नी:–”कोई बात नहीं जी, हम बाद में ले लेंगे लेकिन आप अपने जूते तो ले आते..!”

पति:– “अरे वो तो मैं भूल ही गया..!”

पत्नी भी पति के साथ सालों से है पति का मायूस चेहरा और बात करने के तरीके से ही उसकी परेशानी समझ जाती है
लेकिन फिर भी पति को दिलासा देती है .

और अपनी नम आँखों को साड़ी के पल्लू से छिपाती रसोई की ओर चली जाती है.

फिर अगले दिन
सुबह पूरा परिवार एक नयी उम्मीद ,
एक नई आशा एक नये सपने के साथ नई फसल की तैयारी के लिये जुट जाता है.
….

ये कहानी
हर छोटे और मध्यम किसान की ज़िन्दगी में हर साल दोहराई जाती है
…..

हम ये नहीं कहते
कि हर बार फसल के
सही दाम नहीं मिलते,

लेकिन
जब भी कभी दाम बढ़ें, मीडिया वाले कैमरा ले के मंडी पहुच जाते हैं और खबर को दिन में दस दस बार दिखाते हैं.

कैमरे के सामने शहरी महिलायें हाथ में बास्केट ले कर अपना मेकअप ठीक करती मुस्कराती हुई कहती हैं..
सब्जी के दाम बहुत बढ़ गये हैं हमारी रसोई का बजट ही बिगड़ गया.
………

कभी अपने बास्केट को कोने में रख कर किसी खेत में जा कर किसान की हालत तो देखिये.

वो किस तरह
फसल को पानी देता है.

१५ लीटर दवाई से भरी हुई टंकी पीठ पर लाद कर छिङ़काव करता है,

२० किलो खाद की
तगाड़ी उठा कर खेतों में घूम-घूम कर फसल को खाद देता है.

अघोषित बिजली कटौती के चलते रात-रात भर बिजली चालू होने के इन्तज़ार में जागता है.

चिलचिलाती धूप में
सिर का पसीना पैर तक बहाता है.

ज़हरीले जन्तुओं
का डर होते भी
खेतों में नंगे पैर घूमता है.
……

जिस दिन
ये वास्तविकता
आप अपनी आँखों से
देख लेंगे, उस दिन आपके
किचन में रखी हुई सब्ज़ी, प्याज़, गेहूँ, चावल, दाल, फल, मसाले, दूध
सब सस्ते लगने लगेंगे.
Please Send to your all groups
तभी तो आप भी एक मज़दूर और किसान का दर्द समझ सकेंगे।

आगे सैंड ज़रूर करो
आपसे अनुरोध है
"जय जवान जय किसान"

करवाचौथ: एक अन्धविश्वास

करवाचौथ व्रत या पत्नी को गुलामी का अहसास दिलाने का एक और दिन?
'श्रद्धा या अंधविश्वास'
दोस्तों क्या महिला के उपवास रखने से पुरुष की उम्र बढ़ सकती है?
क्या धर्म का कोई ठेकेदार इस बात की गारंटी लेने को तैयार होगा कि करवाचौथ जैसा व्रत करके पति की लंबी उम्र हो जाएगी? मुस्लिम नहीं मनाते, ईसाई नहीं मनाते, दूसरे देश नहीं मनाते और तो और भारत में ही दक्षिण, या पूर्व में नहीं मनाते लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि इन तमाम जगहों पर पति की उम्र कम होती हो और मनाने वालों के पति की ज्यादा,
क्यों इसका किसी के पास जवाब नही है?
यह व्रत ज्यादातर उत्तर भारत में प्रचलित हैं, दक्षिण भारत में इसका महत्व ना के बराबर हैं, क्या उत्तर भारत के महिलाओं के पति की उम्र दक्षिण भारत के महिलाओं के पति से कम हैं ?
क्या इस व्रत को रखने से उनके पतियों की उम्र अधिक हो जाएगी?
क्या यह व्रत उनकी परपरागत मजबूरी हैं या यह एक दिन का दिखावा हैं?
दोस्तों इसे अंधविश्वास कहें या आस्था की पराकाष्ठा?
पर सच यह हैं करवाचौथ जैसा व्रत महिलाओं की एक मजबूरी के साथ उनको अंधविश्वास के घेरे में रखे हुए हैं।
कुछ महिलाएँ इसे आपसी प्यार का ठप्पा भी कहेँगी और साथ में यह भी बोलेंगी कि हमारे साथ पति भी यह व्रत रखते हैं। परन्तु अधिकतर महिलाओं ने इस व्रत को मजबूरी बताया हैं।
एक आम वार्तालाप में मैंने खुद कुछ महिलाओं से इस व्रत के बारे में पूछा उनका मानना हैं कि यह पारंपरिक और रूढ़िवादी व्रत है जिसे घर के बड़ो के कहने पर रखना पड़ता हैं क्योंकि कल को यदि उनके पति के साथ संयोग से कुछ हो गया तो उसे हर बात का शिकार बनाया जायेगा,
इसी डर से वह इस व्रत को रखती हैं।
क्या पत्नी के भूखे-प्यासे रहने से पति दीर्घायु स्वस्थ हो सकता है?
इस व्रत की कहानी अंधविश्वासपूर्ण भय उत्पन्न करती है कि करवाचौथ का व्रत न रखने अथवा अज्ञानवश व्रत के खंडित होने से पति के प्राण खतरे में पड़ सकते हैं, यह महिलाओं को अंधविश्वास और आत्मपीड़न की बेड़ियों में जकड़ने को प्रेरित करता है।
कुछ लोग मेरे इस स्टेटस पर इतनी लंबी-चौड़ी बहस करेगे लेकिन एक बार भी नहीं बतायेगे कि, ऐसा क्यों है कि, सारे व्रत-उपवास पत्नी, बहन और माँ के लिए ही क्यों हैं? पति, भाई और पिता के लिए क्यों नहीं.?
क्योंकि धर्म की नज़र मे महिलाओं की जिंदगी की कोई कीमत तो है पत्नी मर जाए तो पुरुष दूसरी शादी कर लेगा, क्योंकि सारी संपत्ति पर तो व्यावहारिक अधिकार उसी को प्राप्त है। बहन, बेटी मर गयी तो दहेज बच जाएगा। बेटी को तो कुल को तारना नहीं है, फिर उसकी चिंता कौन करे?
अगर महिलाओं को आपने सदियों से घरों में क़ैद करके रख के आपने उनकी चिंतन शक्ति को कुंद कर दिया हैं तो क्या अब आपका यह दायित्व नहीं बनता कि, आप पहल करके उन्हें इस मानसिक कुन्दता से आज़ाद करायें?
मैंने कुछ शादीशुदा लोगों से पूछना चाहता हूँ की क्या आज के युग में सब पति पत्निव्रता हैं?
आज की अधिकतर महिलाओं की जिन्दगी घरेलू हिंसा के साथ चल रही हैं जिसमें उनके पतियों का हाथ है।
ऐसी महिलाओं को करवाचौथ का व्रत रखना कैसा रहेगा?
भारत का पुरुष प्रधान समाज केवल नारी से ही सब कुछ उम्मीद करता हैं परन्तु नारी का सम्मान करना कब सोचेगा?
इस व्रत की शैली को बदलना चाहिए जिससे महिलाएँ दिन भर भूखी-प्यासी ना रहे,
एक बात और
मैंने अपनी आँखो से अनेक महिलाओ को करवा चौथ के दिन भी विधवा होते देखा है जबकि वह दिन भर करवा चौथ का उपवास भी किये थी,
दो वर्ष पहले मेरा मित्र जिसकी नई शादी हुई और पहली करवाचौथ के दिन ही घर जाने की जल्दी मे एक सड़क हादसे में उसकी मृत्यु हो गई, उसकी पत्नी अपने पति की दीर्घायु के लिए करवाचौथ का व्रत किए हुए थी, तो क्यों ऐसा हुआ?
करवा चौथ के आधार पर जो समाज मे अंध विश्वास, कुरीति, पाखंड फैला हुआ है, उसको दूर करने के लिए पुरुषों के साथ खासतौर से महिलाए अपनी उर्जा लगाये तो वह ज्यादा बेहतर रहेगा।
मुझे पता है मेरे इस लेख पर कुछ लोग मुझपर ही उँगली उठाएंगे, धर्म विरोधी भी कहेंगे लेकिन मुझे कोई फर्क नही पड़ता,
क्योंकि मैंने सच लिखने की कोशिश की है, मैं हमेशा पाखंड पर चोट करता रहा हूँ और कारता रहूँगा ।
मैं वही लिखता हूँ जो मैं महसूस करता हूँ।
इस सम्बन्ध मे आपसे अनुरोध है की इस पाखंड को खत्म करने मे पुरजोर समर्थन दे।

एक अम्बेडकरवादी व्यपारी ने रोड के किनारे एक भिखारी से पूछा.. "तुम भीख क्यूँ मांग रहे हो जबकि तुम तन्दुरुस्त हो...??"

जरूर पढ़े..........

एक अम्बेडकरवादी व्यपारी ने रोड के किनारे एक भिखारी से पूछा.. "तुम भीख क्यूँ मांग रहे हो जबकि तुम तन्दुरुस्त  हो...??"

भिखारी ने जवाब दिया... "मेरे पास महीनों से कोई काम नहीं है...
अगर आप मुझे कोई नौकरी दें तो मैं अभी  से भीख मांगना छोड़ दूँ"

अम्बेडकर वादी  मुस्कुराया और कहा.. "मैं तुम्हें कोई नौकरी तो नहीं दे सकता ..
लेकिन मेरे पास इससे भी अच्छा कुछ है...
क्यूँ नहीं तुम मेरे बिज़नस पार्टनर बन जाओ..."

भिखारी को उसके  कहे पर यकीन नहीं हुआ...
"ये आप क्या कह रहे हैं क्या ऐसा मुमकिन है...?"

"हाँ मेरे पास एक पानी का प्लांट है.. तुम पानी बाज़ार में सप्लाई करो और जो भी मुनाफ़ा होगा उसे हम महीने के अंत में आपस में बाँट लेंगे.."

भिखारी के आँखों से ख़ुशी के आंसू निकल पड़े...
" आप मेरे लिए जन्नत के फ़रिश्ते बन कर आये हैं मैं किस कदर आपका शुक्रिया अदा करूँ.."

फिर अचानक वो चुप हुआ और कहा.. "हम मुनाफे को कैसे बांटेंगे..?
क्या मैं 20% और आप 80% लेंगे ..या मैं 10% और आप 90% लेंगे..
जो भी हो ...मैं तैयार हूँ और बहुत खुश हूँ..."

अम्बेडकर वादी ने बड़े प्यार से उसके सर पर हाथ रखा ..
"मुझे मुनाफे का केवल 10% चाहिए बाकी 90% तुम्हारा ..ताकि तुम तरक्की कर सको.."

भिखारी अपने घुटने के बल  गिर पड़ा.. और रोते हुए बोला...
"आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगा... मैं आपका बहुत शुक्रगुजार हूँ ...।

और अगले दिन से भिखारी ने काम शुरू कर दिया ..और
बाज़ार से सस्ते... और दिन रात की मेहनत से..बहुत जल्द ही उसकी बिक्री
काफी बढ़ गई... रोज ब रोज तरक्की होने लगी....

और फिर वो दिन भी आया जब मुनाफा बांटना था.

और वो 10% भी अब उसे बहुत ज्यादा लग रहा  था... उतना उस भिखारी ने कभी सोचा भी नहीं था... अचानक मनुवादी शैतानी ख्याल उसके दिमाग में आया...

"दिन रात मेहनत मैंने की है...और उस अम्बेडकर वादी ने कोई भी काम नहीं किया.. सिवाय मुझे अवसर देने की..मैं उसे ये 10% क्यूँ दूँ ...वो इसका
हकदार बिलकुल भी नहीं है..।

और फिर वो अम्बेडकर वादी इंसान अपने नियत समय पर मुनाफे में अपना हिस्सा 10% वसूलने आया और भिखारी ने जवाब दिया
" अभी कुछ हिसाब बाक़ी है, मुझे यहाँ नुकसान हुआ है, लोगों से कर्ज की अदायगी बाक़ी है, ऐसे शक्लें बनाकर उस अम्बेडकर वादी आदमी को हिस्सा देने को टालने लगा."

अम्बेडकर वादी आदमी ने कहा कि मुझे पता है तुम्हे कितना मुनाफा हुआ है फिर कयुं तुम मेरा हिस्सा देने से टाल रहे हो ?"

उस भिखारी ने तुरंत जवाब दिया "तुम इस मुनाफे के हकदार नहीं हो ..क्योंकि सारी मेहनत मैंने की है..."
*~~
????
#$#%*!

अब सोचिये...
अगर वो अम्बेडकर वादी हम होते और भिखारी से ऐसा जवाब सुनते ..
तो ...हम क्या करते ?


ठीक इसी तरह.........
बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी  ने भी हमें एक एज्यूकेटिड जिंदगी दी...  अधिकार दिए ....लड़ने की लिए कानून दिया...बोलने को जुबान दी.. मान, सम्मान, स्वाभिमान दिया..."

हमें याद रखना चाहिए कि दिन के 24 घंटों में  कम से कम 10% अम्बेडकर मिशन  के कामो में लगाना चाहिए ....

हमारी जिन्दगी भी कभी उस भिखारी की ही तरह थी लेकिन बाबा साहेब डॉ अम्बेडकर जी ने हमको वो मान,सम्मान,शौहरत और रूतबा दिया है जिसके बारे मे शायद हमने सपने मे भी नहीं सोचा था।

इसलिए हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कहीं हम भी उस भिखारी की तरह एहसान फरामोश,लालची और नाशुक्रगुजार ना बन जाएं और बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी के एहसानों को ना भूल जाएँ।

हमें बाबा साहब डॉ अम्बेडकर जी का शुक्रिया अदा करना चाहिए और बाबा साहब के कारवां को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा सहयोग करना चाहिए

जय  भीम  जय भारत
सबका मंगल हो..!

हरियाणा में जातिवाद के खिलाफ महाक्रांति की आवाज़ हुई मुखर

⁠⁠⁠⁠YESTERDAY⁠⁠⁠⁠⁠

⁠⁠⁠⁠+91 99111 89986Nawab Satpal Tanwar⁠⁠⁠⁠⁠

⁠⁠[23:10, 10/17/2016] +91 99111 89986: ⁠⁠⁠मनुवाद को अम्बेडकरवाद पर हावी होने से बचाओ। इस रविवार को भाई सतपाल तँवर के गांव खांड़सा में चले आओ। 🏃🏃🏃🏃🏃🚶🚶🚶🚶🚶 चलो खांड़सा चलो गुड़गांव चलो हरियाणा (THIS FIGHT FOR ALL BAHUJANS OF ALL INDIA AGAINST SC-ST ATROCITIES, CASTE ABUSE WORDS, AGAINST CASTEISM, BHIM BAHUJAN MAHAKRANTI, BHIM BAHUJAN MAHA AANDOLAN. मान और सम्मान की लड़ाई में हरियाणा की 360 गांवों की अनुसूचित जाति महापंचायत ने बहुजन समाज के बेटे नवाब सतपाल तँवर को अपना समर्थन दे दिया है। हरियाणा के 360 गांवों की अनुसूचित जाति महापंचायत इस रविवार को गांव खांड़सा में जमा होगी। हरियाणा सहित देश के कोने-कोने से भीम सैनिक क्रांति की हुंकार भरेंगे। मिशनरी गायकों का रैला गुडगाँव के खांड़सा में पहुंचेगा। दिनांक 4 सितंबर 2016, रविवार के ही दिन बहुजन समाज ने गुड़गांव के अम्बेडकर भवन से जिस महाआंदोलन की शुरुआत की थी वह महाआंदोलन अब समाज के बुजुर्ग पंचों के आशीर्वाद से जवां हो चला है। भारत में और हरियाणा में बहुजन समाज पर सदियों से हो रहे अत्याचारों की अब अति हो चुकी है। जातिसूचक शब्दों से समाज को अपमानित करने और मनुवादी लोगों के कानून के फंदे में फंसने के बाद समझौते करने के दवाब डालने का मनुवादियों का ढर्रा अब सहा नहीं जा सकता। जान से मारने की धमकियाँ और हमला करके जान लेने की कोशिशें अब समाज सहन नहीं करेगा। गिरफ्तार होने से बचने के लिए वीर बहादुर बहुजन समाज को बदनाम करके माननीय अदालत में झूठे कागजात पेश करके फायदा उठाना अब बर्दाश्त नहीं होगा। बहुत हुआ अत्याचार, बहुजन समाज के बेटों को जिन्दा जलाना अब महंगा पड़ेगा। बारात चढ़ने से रोकना और घोड़ी पर ना चढ़ने देना पुराना हो चुका मनुवादी लोगों का ढर्रा। युवा क्रांतिकारी भीम सैनिक अब बर्दाश्त नहीं करेंगे। हरियाणा में बहुजन महाक्रांति की आग 4 सितंबर को लग चुकी थी। अब आने वाले रविवार की 23 अक्तूबर को इस आजादी की आग में भीम शक्ति का पैट्रोल डालना बाकी है। साथियों आपको आना है। बाबा साहब के कारवां को मंजिल तक ले जाना है। 🏃🏃🏃🏃🏃🚶🚶🚶🚶🚶 दिनांक 23 अक्तूबर 2016, रविवार, प्रात: 9 बजे। स्थान: जनता माडल स्कूल, बालाजी मन्दिर के सामने वाली गली, गांव खांड़सा, गुडगाँव (हरियाणा) फोन: 9310003886, 9911189986 👊शेयर👊 👍फारवार्ड👍 *👊शेयर👊*PLEASE JOIN FROM ALL STATES.
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⁠⁠⁠⁠+30 694 766 9903Ranjit virdi⁠⁠⁠⁠⁠

⁠⁠[01:13, 10/18/2016] +30 694 766 9903: ⁠⁠⁠https://youtu.be/d6gcesgf8vM
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⁠⁠⁠⁠+44 7961 432771GS👑⁠⁠⁠⁠⁠



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⁠⁠⁠⁠+91 99111 89986Nawab Satpal Tanwar⁠⁠⁠⁠⁠

⁠⁠[01:34, 10/18/2016] +91 99111 89986: ⁠⁠⁠हरियाणा में जातिवाद के खिलाफ महाक्रांति की आवाज़ हुई मुखर। 4 सितंबर को शुरू हुए महाआंदोलन को मिला 360 महापंचायत का समर्थन। रविवार को गुड़गांव के गाँव खांडसा में बहुजन महासम्मेलन में जातिवाद के खिलाफ देश के कोने-कोने से शिरकत कर हज़ारों भीम सैनिक और बुजुर्ग भरेंगे भीम क्रांति की हुंकार। गुड़गांव से बड़ी खबर। ENN MEDIA हरियाणा में पिछले महीने जातिवाद के खिलाफ शुरू किये गए महाआंदोलन को हरियाणा की 360 अनुसूचित महापंचायत का समर्थन मिल गया है। हरियाणा में बहुजन समाज के उभरते हुए क्रन्तिकारी युवा नवाब सतपाल तंवर के गाँव खांडसा में रविवार 23 अक्टूबर को बहुजन महासम्मेलन होने जा रहा है। जिसमें देश के अनेकों राज्यों से लोगों के पहुँचने की उम्मीद है। हरियाणा सहित पूरे भारत में अनुसूचितं जातियों पर हो रहे अत्याचारों को मुहतोड़ जवाब देने के लिए इस महासम्मेलन में पूरे भारत से बहुजन समाज का आह्वान किया गया है। पिछले दिनों गाँव खांडसा की पंचायत ने नवाब सतपाल तंवर को अपना समर्थन दिया था। यह बात यहीं नहीं थमी, अब क्रांति की मुखर होती इस भीम ज्वाला को हरियाणा की 360 महापंचायत झाड़सा का भी सहयोग मिल गया है। आज तक के इतिहास में पहली बार है कि अनुसूचित जाति की महापंचायत ने अनुसूचित जातियों पर हो रहे अत्याचारों और सरेआम जातिसूचक शब्दों से अपमानित किये जाने के खिलाफ अपना सहयोग दिया है। अन्यथा समाज की पंचायतें सिर्फ मृतक बुजुर्गों के काज आदि तक ही सिमित रहती थी। आज सतपाल तंवर के सहयोग में हरियाणा की 360 पंचायत ने नयी मिसाल पेश करने की ठानी है। अनुसूचित जाति 360 पंचायत के चौधरी ओमप्रकाश झाड़सा ने बताया कि समाज में अत्याचारों की अति हो चुकी है। अब इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। उन्होंने बताया की सितंबर में देश के कोने-कोने से गुड़गांव पहुंचे आंबेडकर के युवा बच्चों ने पूरे हरियाणा के जातिवादी सिस्टम को हिलाकर रख दिया था। चौ० ओमप्रकाश ने बताया कि जिस क्रांति की शुरुआत नवाब सतपाल तंवर ने समाज के साथ मिलकर की उसको आगे बढ़ाने का वक्त आ गया है। बताया जा रहा है कि सितंबर शुरू की गयी इस बहुजन महाक्रांति की आग पूरे देश में फ़ैल रही है। उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में अनुसूचित जाति के दो युवा लड़कों को जिन्दा जलाये जाने का मामला भी इस महाआंदोलन में गरमाएगा। बहरहाल देश के सैंकड़ों भीम सैनिक गुड़गांव पहुँचने के लिए कमर कस चुके हैं।
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