Friday, October 21, 2016

जातिवाद क्या है ?? ” ::– पेरियार इ.वी. रामासामी (कोइन्म्ब्तूर

” जातिवाद क्या है ?? ” ::– पेरियार इ.वी.
रामासामी
(कोइन्म्ब्तूर में सन 1958 को पेरियार दुयारा
दिया गये भाषण के कुछ अंश )
” मैं क्या हूँ ?? ( What I am ??)
” पहला ::– मुझे ईशवर तथा दुसरे देवी-देवताओं में
कोई आस्था नहीं है / ”
“दूसरा ::– दुनियां के सभी संगठित धर्मो से मुझे
सख्त नफरत है /”
“तीसरा ::– शास्त्र, पुराण और उनमे दर्ज देवी-
देव्त्ताओं में मेरी कोई आस्था नहीं है , क्योंकि
बह सारे के सारे दोषी हैं और उनको जलाने तथा
नष्ट करने के लिए मैं “जनता” से अप्पील करता
हूँ /”मैंने सब कुछ किया और मैंने गणेश आदि सभी
ब्रह्मणि देवी-देवताओं की मूर्तियाँ तोड़
डाली हैं और राम आदि के चित्र भी जला दिए
हैं / मेरे इन कार्यों के बावजूद भी, मेरी सभायों
में मेरे भाषण सुनने के लिए यदि हजारों की
गिनती में लोग इकट्ठे होते हैं, तो यह बात सपष्ट
है कि, ” स्वाभिमान तथा बुद्धि का अनुभव
होना जनता में , जागृति का सन्देश है /”
‘द्रविड़ कड़गम आन्दोलन’ का क्या मतलब है ??
इसका केवल एक ही निशाना है कि, इस नक्क्मी
आर्य ब्राह्मणवादी और वर्ण व्यवस्था का अंत
कर देना, जिस के कारन समाज उंच और नीच
जातियों में बांटा गया है / इस तरह ‘द्रविड़
कड़गम आन्दोलन’ , ” उन सभी शास्त्रों, पुराणों
और देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखता, जो वर्ण
तथा जाति व्यवस्था को जैसे का तैसा बनाये
रखे हुए हैं /”राजनितिक आज़ादी प्राप्ति के
बाद सन 1958 ( लगभग 10 बर्षों के बाद भी )
तक्क भी वर्ण व्यवस्था और जातिगत भेद-भाव
की निति ने जनता के जीवन के ऊपर अपना
वर्चस्व बनाये रखने के कारन, देश में पिछड़ेपण को
साबित कर दिया है / अर्थात , आर्य ब्रह्मण
सरकार ने, इन 10 बर्षों तक्क भी वर्ण और
जाति व्यवस्था को ख़त्म करने का कोई भी
यत्न नहीं किया है / किसी और मुल्क में इस तरह
के जाति के भेदभाव के कारण बहाँ की जनता
हजारों की संख्या में बांटी हुयी नहीं है /
हैरानी की बात यह है कि, समझदार लोग भी
इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहे हैं / अपनी ही
लालसावादी स्वारथ का दौर इस देश के नेताओं
में है / कुछ लोग राष्ट्रीयता तथा राजनितिक
पार्टी के आधार पर ( कांग्रेस की और इशारा
करते हुए ) अपने आपको समाज-सेवी कहलाते हैं, वे
भारत की असली समस्याओं के तरफ थोडा सा
भी ध्यान नहीं देते / जिस करके देशवासी पछडे
हालातों में से गुजर रहे हैं / राजनितिक आज़ादी
प्राप्त करने से बाद दुसरे देशों के लोगों ने ,
राष्ट्रीय विकास और सामाजिक सुधारों में
बड़े पैमाने पर तरक्की की
है // …………………………………… /////आज से
2000 वर्ष पूर्व, तथागत बुद्ध ने हिन्दू धर्म के
जहरीले अंगों से छुटकारा पाने के लिए जनता के
दिलो-दिमाग को आज़ाद करने का यत्न किया
था / बुद्ध ने जनता को , क्यों, कैसे तथा कौन से
प्रशन किये और बस्तु / चीज के यथार्थ गुण तथा
सवभाव के समीक्षा की / उन्होंने ने ब्राह्मणों
के, वेदों को फिजूल बताया , उन्होंने किसी
भी बस्तु से किसी भी ऋषि और महात्मा का
अधिकार सवीकार नहीं किया / उन्होंने लोगों
को अपनी भाषा में आत्म-चिंतन करने का और
जीवन के साधारण सच्च को समझने का उपदेश
दिया / इसका नतीजा क्या निकला ? ऐसे
उपदेशकों को मौत के घाट उतारा गिया / उनके
घर-बार जला दिए गए / उनकी औरतों का
अपमान किया गया / बुद्ध धर्म के भारत में से
अलोप हो जाने के बाद तर्कवाद समापित हो
गया / बुद्ध की जन्म-भूमि से बुद्ध का प्रचार –
प्रसार ना हो सका / बह चीन और जापान में
चला गया / यहाँ उसने इन देशों को दुनियां के
महान देशों की लाइन में खड़ा कर
दिया / राष्रीय चरित्र, अनुशासन, शुद्धता,
ईमानदारी और महिमानवाजी में कौनसा मुल्क
जापान की बराबरी कर सकता है ??
……………………………………………………………
इश्वर कैसे तथा क्यों जन्म-मरन करता है ? सभी
देवी-देवताओं को देखो, राम का जन्म ‘नौवीं
तिथि ‘ को हुआ, सुभ्रामानिया का जन्म
‘छेवीं तिथि’ को हुआ, कृष्ण का जन्म ‘अष्टमी
तिथि’ को हुआ, और पुराणों के अनुसार इन सभी
देवताओं की म्रत्यु भी हुई / क्या इस कथन के
बाद भी हम उनकी पूजा देवते समझ कर करते
रहें ?? ईशवर की पूजा क्यों करनी चाहिए ?
ईशवर को भोग लगाने का क्या मतलव है ?
रोजाना उसको नए कपडे पहना कर हार-शिंगार
किया जाता है, क्यों ? यहाँ तक कि, मनुष्यों
दुयारा ही, देवियों को नंगा करके स्नान
करवाया जाता है ? इस अशलीलताके कारण ना
तो उन देवियों को और ना ही उनके भक्तों को
कभी क्रोध आता है, क्यों ? देवताओं को
स्त्रियों कि क्या जरूरत है ? अक्सर वे एक औरत
से सन्तुष नहीं होते / कभी कभी तो उनको एक
एक रखैल यां वैश्य की जरूरत होती है / तिरुपति
के देवता, मुस्लिम वैश्य के कोठे पर जाने की
इच्छा करते हैं , और क्यों प्रतेक बर्ष यह देवता
विवाह करवाते हैं ?? पिछले बर्ष के विवाह का
क्या नतीजा है ? उसका कब तलाक हुआ ? किस
अदालत ने उनके इस छोड़ने – छुड़ाने की मंजूरी
दी है ? क्या इन सभी देवी-देवताओं के खिलवाड़
ने हमारी जनता को ज्यादा अकल्मन्द
(समझदार), ज्यादा पवित्र और बड़ी सत्र पर
एकता में नहीं बाँधा है ?
ईसाई, मुस्लिम और बुद्ध धर्म के संस्थापक दया
भावना, करुणा, सज्जनता और भला करने वाले
अवतार माने जाते हैं / ईसाई और बुद्ध धर्म के
मूर्ति पूजा इन गुणों को दर्शाती है /
ब्राह्मण देवी-देवताओं को देखो, एक देवता तो
हाथ में ‘भाला’ / त्रिशूल उठाकर खड़ा है , और
दूसरा धनुष वाण , अन्य दुसरे देवी-देवते कोई गुर्ज ,
खंजर और ढाल के साथ सुशोभित हैं, यह सब क्यों
है ? एक देवता तो हमेशा अपनी ऊँगली के ऊपर
चारों तरफ चक्कर चलाता रहता है, यह किस
को मारने के लिए है ?
यदि प्रेम तथा अनुग्रह आदमी के दिलो-दिमाग
के ऊपर विजय प्राप्त कर लें तो, इन हिंसक
अस्त्र -शास्त्र की क्या जरूरत है ? दुनियां के
दुसरे धर्म उपदेशकों के पास कभी भी कोई
हथियार नहीं मिलेगा / क्योंकि वो , शान्ति,
अमन समानता तथा न्याय के पोषक हैं / जबकि
आर्य-ब्राहमण धर्म सीधे तौर पर असमानता, अ-
न्याय तथा हिंसा आदि का प्रवर्तक है / यही
कारण है कि शान्ति, अमन तथा न्याय की बात
करने वाले लोगों को डराने के लिए, आर्यों
ब्राह्मणों ने अपने देवताओं के हाथों में हिंसक
हथियार दिए हुए हैं / सपष्ट तौर पर हमारे ये देवी-
देवता, बुराई करने वालों पर विजय प्राप्त करने
के लिए इनको हिंसक शास्त्रों का इस्तेमाल
करते हैं / क्या इसमें कोई कामयावी मिली है ?
हम आज कल के समय में रह रहे हैं / क्या यह
वर्तमान समय इन देवी-देवताओं के लिए सही नहीं
है ? क्या वे अपने आप को आधुनिक हथियारों से
लैस करने और धनुषवान के स्थान पर , मशीन, यां
बन्दूक धारण क्यों नहीं करते ? रथ को छोड़कर
क्या श्री कृष्ण टैंक के ऊपर सवार नहीं हो
सकते ? मैं पूछता हूँ कि, जनता इस परमाणु युग में
इन देवी-देवताओं के ऊपर विश्वास करते हुए क्यों
नहीं शर्माती ?? …

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