Thursday, November 5, 2020

बुद्ध वचनों की प्रमाणिकता Authenticity of Buddha's Words

 



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बौद्ध धम्म पर त्रिपिटक व अन्य विशेष पुस्तकों का सैट Complete Tipitak (Tripitak) Set

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M. 8851188170, WA. 8447913116 

सिद्धार्थ गौतम 35 वर्ष की अवस्था में सम्यक-सम्बुद्ध हुए थे और उन्होंने 80 वर्ष की पकी हुयी अवस्था में शरीर छोड़ा था. इस बीच 45 वर्षों में उन्होंने 82000 उपदेश (सुत्त) कहे थे. उनके उस समय के पहुँचे हुए श्रावक अर्हन्तों ने भी 2000 उपदेश दिए थे, जो अत्यंत सारगर्भित थे. समझदार लोगों ने इन 84000 उपदेशों का संग्रह कर इनका तीन पिटकों (धार्मिक वाङमय) मे संपादन किया जो “तिपिटक” कहलाया.


1. विनय पिटक: विनय पिटक में भिक्षुओं एवं भिक्षुणियों के विनय (नियमों) का संग्रह है.

2. सुत्त पिटक: सुत्त पिटक में सामान्य लोगों (गृही-साधकों) को दिए गए उपदेशों का संग्रह है.

3. अभिधम्म पिटक: अभिधम्म पिटक में शरीर और चित्त के परस्पर संयोग व प्रभाव के एवं ध्यान की उच्च अवस्थाओं के वैज्ञानिक विश्लेषण का संग्रह है.


ये तीनों पिटक काल के अनुसार न होकर विषयानुसार संग्रहित हैं. बड़े-बड़े सुत्त ‘दीघ निकाय’ में कुछ छोटे ‘मज्झिम निकाय’ में – कुछ इस तरह संग्रहित है. उन दिनों सभी परम्पराओं के धार्मिक वाङमय श्रुती और स्मृति के आधार पर ही अक्षुण्ण रखे जाते थे. तब यही प्रथा थी. 

सम्यक-सम्बुद्ध ने जब महापरिनिर्वाण प्राप्त किया तब एक विशेष घटना घटी. वृद्धावस्था में प्रव्रजित हुए एक नए भिक्षु सुभद्र ने अपनी बाल-बुद्धि के कारण तथागत के महापरिनिर्वाण की सूचना पाने पर हर्ष प्रगट करते हुए यह घोषणा की कि - ‘हम उस महाश्रमण के आदेशों से मुक्त हो गए है, अब हमारी जो इच्छा होगी वही करेंगे’.

कीचड़ में से कमल की भाँती - कभी-कभी घोर अमंगल में से भी महामंगल का प्रादुर्भाव हो जाता है. यही हुआ. उस समय के समझदार लोगों का माथा ठनका. दूरदर्शी महास्थविर महाकश्यप ने सुभद्र के शब्दों को सुनकर तत्क्षण यह निर्णय किया कि लोक-कल्याणार्थ बुद्ध-वाणी को चिरकाल तक अविकल रूप में सुरक्षित रखने के लिए शीघ्र ही इसके ‘संगायन’ (एक साथ गायन) का आयोजन करना चाहिए. तथागत के महापरिनिर्वाण के तीन माह होते ही पांच सौ अर्हन्तों की एक सभा हुई जिसके सभी सदस्य 45 वर्ष के बुद्ध-शासन में दिए गए उपदेशों के सत्यसाक्षी थे. इन लोगों में भिक्षु आनंद जैसा व्यक्ति भी था जो बचपन से ही उनके साथ रहा था और पिछले 25 वर्षों से तथागत के निकटतम संपर्क में रहा, जिसे तथागत के मुख से नि:सृत वाणी (एक-एक शब्द) कंठस्थ थी. इन 500 अर्हन्तों ने मिलकर राजगृह में बुद्ध-वाणी का ‘संगायन’ किया. जिसमें समस्त बुद्ध-वाणी अपने शुद्ध रूप में सम्पादित एवं संग्रहित की गयी. यह “प्रथम संगीति” कहलायी.

तथागत द्वारा उपदेशित सद्धर्म को शुद्ध रूप में चिरस्थायी रखने के लिए स्वयं तथागत ने यह आदेश दिया था – “... ये वो मया धम्म अभिञ्ञा देसिता, तत्व सब्बेहेव सङ्गम्म समागम्म, अत्थेन अत्थं ब्यञ्ञनेन ब्यञ्ञनं सङ्गायितब्बं, न विवदितब्बं, यथयिदं ब्रह्मचरियं अद्धनियं चिरट्ठितिकं ...।”. – “... जिन धर्मों को मैंने स्वयं अभिज्ञात करके तुम्हें उपदेशित किया है, तुम सब मिल-जुल कर बिना विवाद किये अर्थ और व्यंजन सहित उनका संगायन करो जिससे की यह धर्माचरण चिरस्थायी हो ...।”.

अतः बुद्ध के महापरिनिर्वाण के पश्चात् देर-सवेर बुद्ध-वाणी का संपादन-संगायन तो होता ही, परन्तु उसे इतना शीघ्र (महापरिनिर्वाण के तीन माह होते ही) आयोजित किये जाने के लिए भिक्षु सुभद्र निमित्त बना. हम सुभद्र के आभारी हैं.

“चिरं तिट्ठतु सद्धम्मो” – “सद्धर्म चिरकाल तक स्थाई बना रहे”.


🌷बुद्ध-वाणी को शुद्ध रूप में सुरक्षित रखने की लिए उसका पुनः-पुनः (छः बार) संगायन किया गया. छहों संगीतियों का संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार से है:-


1. पहला संगायन: तथागत के महापरिनिर्वाण के तीन महीने बाद 544 ईसा पूर्व मगध सम्राट अजातशत्रु के संरक्षण में राजगृह की ‘सप्तपर्णी महापाषान गुहा’ में प्रथम संगीति का आयोजन हुआ, संगायन की अध्यक्षता भदंत महाकाश्यप ने की. भदंत उपाली ने विनय-संबंधी एवं आनंद ने अभिधम्म-संबंधी प्रश्नों के उत्तर दिए. सभी 500 अरहंत भिक्षुओं ने समर्थन किया. 500 अर्हन्तों द्वारा गाये जाने के कारण यह ‘पंचसतिका संगीति’ भी कहलायी और यह सात माह तक चली.


2. दूसरा संगायन: प्रथम संगायन के 100 वर्ष बाद द्वितीय धर्म संगीति का आयोजन 444 ईसा पूर्व वैशाली के राजा कालासोक के संरक्षण में संपन्न हुआ. संगायन की अध्यक्षता स्थविर रेवत ने की. इसमें सात-सौ भिक्षुओं के भाग लेने के कारण यह ‘सत्तसती संगायन’ कहलाया.


3. तीसरा संगायन: तृतीय संगीति का आयोजन 326 ईसा पूर्व सम्राट धम्मासोक (सम्राट अशोक) के संरक्षण में पाटलिपुत्र के अशोकाराम में हुआ. स्थविर मोग्गलिपुत्त तिस्स ने इसकी अध्यक्षता की. इसमें एक हजार (1000) अरहंत भिक्षुओं ने नौ महीनों तक संगायन किया. भदंत मोग्गलिपुत्त तिस्स द्वारा ‘मिथ्यामार्गियों को शुद्ध-धर्म की ओर आकर्षित करने के लिए’ लिखा गया ‘कथावत्थु’ नामक बहु-उपयोगी ग्रन्थ का भी संगायन/संकलन किया. इसमें 500 ऐसे प्रश्नोत्तरों का समावेश है जिनसे बुद्ध तथा उनकी शिक्षा के बारे में उत्पन्न भ्रांतियों का निराकरण होता है. संगायन के पश्चात सम्राट अशोक ने धर्मप्रसारण के लिए नौ स्थविर भिक्षुओं को विभिन्न देश-प्रदेशों में भेजा.

पहला, दूसरा और तीसरा संगायन भारत की पावन भूमि पर आयोजित हुआ.


4. चौथा संगायन: चौथा संगायन 29 ईसा पूर्व श्रीलंका में राजा वट्टगामणी अभय के संरक्षण में और महास्थविर रक्खित की अध्यक्षता में पांच सौ (500) तिपिटकधर (जिन्हें त्रिपिटक कंठस्थ है) भिक्षुओं द्वारा सकुशल संपन्न किया गया. इस संगीति का अत्यंत महत्वपूर्ण पक्ष यह रहा कि उन दिनों तक लेखनकला बहुत उन्नत हो चुकी थी, अतः सम्पूर्ण तिपिटक और अट्ठकथाओं के संगायन के साथ-साथ इसे पहली बार ताड़-पत्रों पर लिपिबद्ध भी कर लिया गया और अनेक सेट (समूह) बना कर रखे गए. बुद्धानुयायी देशों में श्रीलंका की यह बहुत महत्वपूर्ण भेंट हुई. इससे बुद्ध-वाणी अपने शुद्धरूप में कायम रही. इस प्रकार चतुर्थ संगीति परम कल्याणकारिणी सिद्ध हुई.


5. पांचवा संगायन: स्वर्णभूमि (बर्मा, म्यांमार) और तम्बपन्नी (श्रीलंका) का समय-समय पर तिपिटक पर, विशेषतः विनयपिटक पर, परस्पर विचार-विमर्श का आदान-प्रदान होता रहा. पांचवे धर्म संगायन का आयोजन भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 2400 वर्ष बाद सन् 1871 में तत्कालीन बरमी नरेश मिं-डो-मिन के संरक्षण में बर्मा के मांडले नगर में हुआ. अतः इसमें 2400 विशिष्ट विद्वान भिक्षुओं ने भाग लिया, जिन्होंने पांच महीने में बुद्ध-वाणी का संगायन पूरा किया व महास्थविर भदंत ऊ जागराभिवंश, भदंत ऊ नारिंदाभिधज, भदंत ऊ सुमंगल सामी ने बारी-बारी से अध्यक्षता की. 

ताड़-पत्रों की आयु बहुत कम होती है अतः कुछ अनुभवी कलाकारों को साथ लेकर भिक्षुओं ने सारे तिपिटक को 729 संगमरमर की पट्टियों पर कुरेदकर (खुदवाकर) अंकित कर दिया, ताकि तथागत की वाणी चिरस्थायी हो सके. बरमी नरेश मिं-डो-मिन ने मांडले की पहाड़ी के चरणों में इन 729 संगमरमर की पट्टियों पर मुकुटनुमा चैत्य बना कर भव्य और दर्शनीय बना दिया. यह संसार की सबसे बड़ी पुस्तक है.


6. छटा संगायन: छटा संगायन तत्कालीन बर्मी सरकार के प्रधानमंत्री ऊ नू के संरक्षण में 17 मई, सन् 1954 में रंगून के कबाए क्षेत्र में आयोजित हुआ. यहाँ प्रथम संगायन की महापाषाण गुहा के अनुरूप एक विशाल कृत्रिम सभाकक्ष बनाया गया. 

1954 में भगवान बुद्ध के महापरिनिर्वाण के 2500 वर्ष पूरे हो चुके थे. यह प्रथम बुद्धशासन का अंतिम वर्ष था. इसलिए इस संगायन में 2500 प्रबुद्ध भिक्षुओं ने भाग लिया. इसमें बर्मा (म्यांमार) के भिक्षुओं के अतिरिक्त श्रीलंका, कम्बोडिया, भारत, लाओस, नेपाल और वियतनाम सहित अनेक देशों के प्रबुद्ध भिक्षु इस संगायन में सम्मिलित हुए. भारत को छोड़ कर, सभी देशों के भिक्षु “अपनी-अपनी लिपि का तिपिटक” साथ लाये. सभी देशों की वाणी के परस्पर मिलान से यह पाया गया कि भले ही हर देश की अपनी-अपनी लिपि और अपना-अपना उच्चारण है, पर भगवान् की वाणी में कोई अंतर नहीं है. अलग-अलग देशों में सुरक्षित बुद्धवाणी 2000 वर्षों के अंतराल के बाद भी सामान पायी गयी. वह सर्वत्र एक जैसी है. दरअसल बुद्धावाणी के पाठ में परिवर्तन करना बहुत बड़ा अकुशल कर्म समझा जाता था. इस संगायन में भदंत महसी ने धर्म-संबंधी प्रश्न पूछे और भदंत विचित्तसाराभिवंस ने विद्वत्तापूर्ण और संतोषजनक उत्तर दिए. भदंत विचित्तसाराभिवंस स्वतंत्र बर्मा के तिपिटकधर (जिन्हें त्रिपिटक कंठस्थ है) हैं. बरमा में आज भी (2015 में) अनेक तिपिटकधर हैं. 

यह संगायन दो वर्ष तक चला और मई 1956 में पूरा हुआ. 1954-55 प्रथम बुद्धशासन (2500 वर्ष) का अंतिम वर्ष था और 1955-56 द्वितीय बुद्धशासन (2500 वर्ष) का प्रथम वर्ष था. इस संगायन तक मुद्रण कला विकसित हो चुकी थी. अतः समस्त बुद्ध-वाणी (पालि साहित्य) बरमी लिपि में मुद्रित होकर पुस्तकों में प्रकाशित हो गयी. इससे बुद्धवाणी को और अधिक स्थायित्व प्राप्त हो गया. भारत की इगतपुरी नगरी के “विपश्यना विश्व विद्यापीठ” संस्था ने देवनागरी में सम्पूर्ण तिपिटक, अर्थकथाओं, टीकाओं और अनुटीकाओं सहित 140 सुन्दर ग्रंथों (Paper life 400yrs) में प्रकाशित कर बुद्ध साहित्य के पंडितों को नि:शुल्क भेंट दिया. इतना ही नहीं, बल्कि सीडी-रोम में देवनागरी, रोमन, सिंहली, बरमी, थाई, कम्बोडियन (खमेर), मंगोलियन इन सात लिपियों में सारा साहित्य निवेशित किया. अब इसे सर्वसुलभ बनाने के लिए भारत की अन्य भाषाओं यथा – कन्नड़, मलयालम, तेलुगु, गुरुमुखी, गुजराती, बंगला, तिब्बती आदि लिपियों में इंटरनेट पर उपलब्ध करा दिया है. (Entire “Tipitak” can be downloaded FREE from - www.dhamma.org)

बर्मा ने साहित्य ही नहीं बल्कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी गुरु-शिष्य परम्परा से तथागत की साधना (विपश्यना) को भी संभालकर रखा.


इस संगायन के पश्चात द्वितीय बुद्धशासन (>1955-56) आरम्भ होने पर पूज्य भदंत लैडी सयाडो द्वारा प्रशिक्षित प्रथम गृहस्थ धर्माआचार्य सयातैजी द्वारा प्रशिक्षित परम पूज्य ऊ बा खिन विश्व विश्रुत विपश्यनाचार्य हुए. उन्होंने केवल बर्मियों को ही नहीं बल्कि विदेशी गृहस्थों को भी विपश्यना सिखाई. इस विपश्यना विद्या को भारत सदियों पहले खो चुका था. यह विद्या भारत आयी (1969 में) है और यहाँ जड़ें जमाकर विश्व में फैल रही है.

हम आभारी हैं लाओस, कम्बोडिया, थाईलैंड, श्रीलंका, बर्मा एवं अन्य देशों के जिन्होंने पिछले 2200 वर्षों से आज तक बुद्धवाणी को अपने शुद्ध रूप में कायम रखा. अतः जिस बुद्धवाणी पर आज काम किया जा रहा है वह तथागत के मुख से निःसृत वाणी है, और सर्वथा प्रमाणिक है.


(स्त्रोत: पाली वांग्मय त्रिपिटक, वि. वि. वि.)

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🌷" Venerable Bhante  Ānanda."🌷


Ānanda was recommended to him as the 500th member of this gathering. 


Ānanda was born on the same day as Gotama the Buddha, was his cousin and had spent his childhood and youth with him. When the Buddha became enlightened, Ānanda was one of many family members who renounced the householder’s life and joined him. 


As the number of followers, and so the work, grew, the Buddha needed an assistant. Some came, but with various motives. The usual one was the hope for a private viewing of miracles, although in public the Buddha discouraged miracles. Another was to hear the answers to certain philosophical questions which he would never answer in public. Such people could not stay long, and they left.


As the Buddha grew in age to fifty-five, the need for a stable personal assistant was accepted. 


Many senior monks were very eager to serve him so closely, but he was known to prefer Ānanda. Yet Ānanda remained silent. He actually asked the Buddha to agree to some terms. There were seven or eight, very healthy terms, and the Buddha accepted all of them. 


One was that if ever the Buddha gave a discourse at which Ānanda was not present, the Buddha must, on returning, repeat the discourse to him. Thus he heard every discourse for the last twenty-five years of the Buddha’s life. He had also heard them before that time. 


Ānanda had a wonderful faculty of memory due to his practice and past good qualities. If he heard something once, he could repeat it any time, word for word, like a computer or tape recorder today.


Ānanda had served the Buddha for twenty-five years. 


He had been so close to him, was his great personal devotee, yet he was not an arahant, not fully liberated. 


He was only a sotāpanna, having reached the first stage of liberation after the initial experience of Nibbāna. Beyond that is the stage of sakadāgāmī, then anāgāmī, then arahant. 


You should understand from this that a Buddha cannot liberate anyone. 


Ānanda also knew Dhamma so well: thousands taught by him were arahants, yet he was continually serving the Buddha, without the time to progress himself.


So Mahākassapa approached him, saying that now that the Buddha had passed away Ānanda had the time, and as a teacher he himself knew the technique so well. 


He asked him to work to become an arahant and join the gathering since he would be a great asset there. 


Ānanda gladly agreed; he would practise for a few days, become an arahant, and join them.He started working very vigorously, aiming to become an arahant. As a teacher he advised others not to develop ego, as it was a dangerous obstacle. Often the teacher when he practises forgets his own teaching, and this is what happened. His aim was—"I must become an arahant." He made no progress. 


Mahākassapa came and told him that the conference would start the following day, if necessary without him. If he was not an arahant they would take someone else.  


Again he tried the whole night— "I must become an arahant." The night passed away and the sun rose. 


Exhausted from his work, he decided to rest. He didn’t cry, he had that good quality. Now he was not aiming to be an arahant. He just accepted the fact that he was not an arahant, he was only a sotāpanna. Like a good meditator, remaining aware of sensations arising and passing, he took rest. His mind was now no longer in the future, but in the reality of the present moment. 


Before his head reached the pillow, he became an arahant.    


It is a middle path. With too much laxity you achieve nothing. With over-exertion the mind is unbalanced. 


Ānanda joined the conference.


Now Ānanda was asked exactly what the Buddha had said, and all the teachings were compiled. 


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🌷Three divisions were made, called Tipitaka. 


Ti means three, pitaka commonly means basket, though it also refers to scriptures. 


1) Sutta-pitaka, the public discourses.


2) Vinaya-pitaka, the discourses to monks and nuns about discipline and sīla. 


For householders, five precepts, sīlas, are good enough, but for the monks and nuns there were over 200 sīlas, which is why the old monk dissented.


3) Abhidhamma-pitaka, higher Dhamma, deeper truths about the laws of nature not easily understood by an ordinary person. 


It is an analytical study of the entire field of mind and matter with full detail of the reality pertaining to matter (rūpa), mind (citta), and the mental factors, the mental concomitants, the mental contents (cetasika). It fully explains how they interact and influence each other, how matter and mind stimulate the arising of both themselves and each other, and the interconnections, currents, and cross-currents deep inside. 


This all becomes clear not just by reading Abhidhamma, but only by a deep practice of Vipassana. 


Ānanda was asked to recite the Suttas and Abhidhamma, and another arahant, perfect in the discipline, Upāli, was asked to recite the Vinaya.     


Ānanda starts Evamṃ me sutamṃ, "This was heard by me," because he had heard it directly from the Buddha. 


He also gives an explanation of the situation in which the Sutta was given. 


(Vipassana Research Institute - http://www.vridhamma.org/Printversion/Discourses-on-Satipatthana-Sutta)

Saturday, October 17, 2020

डाॅ भीमराव आंबेडकर जी की हस्त पेंटिंग और निखिल सबलानिया का मिशन रिक्रिएटिंग आंबेडकर इन आर्ट

आप में से बहुत से लोगों ने डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की पुरानी फोटों देखी होंगी। बहुत सी तो ऐसी हैं कि उन्हें ध्यान से देखना पड़ता है। पर क्या हमने यह कोशिश की कि डाॅ. आंबेडकर जी के वे सारे फोटों हम रंगीन या आर्ट वर्क में क्यों नहीं करते। इसी बात की शुरुआत दिल्ली के निखिल सबलानिया ने की है। वे एक लेखक, फिल्मकार और प्रकाशक भी हैं। उन्होंने खुद डॉ. आंबेडकर जी की लिखित पुस्तकों का अनुवाद भी किया है। मिशन रिक्रिएटिंग आंबेडकर इन आर्ट के बारे में उनका कहना है :


"64 सालों के बाद भी हमने डॉ. आंबेडकर जी की पुरानी तस्वीरों की न पेंटिंग बनाई और न डिजिटल रिक्रिएशन किया। देखने को डॉ. आंबेडकर जी की दो चार पेंटिंग्स ही नजर आती है। दुनिया के तमाम क्रांतिकारियों को लोगों ने अलग-अगल आर्ट शैली में बनाया पर डॉ. आंबेडकर जी के इतने चित्र होते हुए भी यह नहीं हुआ। हजारों आर्टिस्टों ने आरक्षण से शिक्षा पा कर भी यह नहीं किया। लाखों अफसरों और हजारों नेताओं ने भी आरक्षण से मोटी आमदनी लेकर भी यह नहीं किया। करोड़ों लोगों ने बाबासाहेब जी पर ध्यान ही नहीं दिया। यह काम उन शिक्षित लोगों का था जो आज तक नहीं हुआ। इसलिए न डाॅ. आंबेडकर जी आर्ट की दुनिया के विषय बनें और न ही शोषित वर्गों की कोई आर्ट बन पाई। कला अभिव्यक्ति का एक माध्यम है पर उस ओर भी ध्यान देना पड़ता है और बाबासाहेब जी की तरफ ध्यान नहीं दिया गया। वे राजनैतिक सत्ता और उनके अधिकार केवल सुखी जीवन की कुंजी बन गए। कुछ लोगों ने यह कार्य किया पर बाकि लोगों ने उन्हें सपोर्ट नहीं किया। इसलिए कला से डॉ. भीमराव आंबेडकर जी और शोषित वर्गों की क्रान्ति जुड़ नहीं पाई।"



निखिल सबलानिया ने अब यह शुरुआत की है पर वे इस बात से चिंतित हैं कि क्या यह कार्य वास्तविकता ले पाएगा। निखिल सबलानिया पिछले ग्यारह सालों  से डॉ. आंबेडकर जी के विचारों का प्रचार कर रहें हैं। उनके द्वारा शुरु किए गए कुछ कार्य मिल का पत्थर साबित हुए और लाखों लोगों तक डाॅ. आंबेडकर जी का संदेश पहुंचाया और उन्हें संगठित होने के लिए प्रेरणा दी। निखिल सबलानिया द्वारा शुरू किए गए कुछ कार्य इस प्रकार रहे हैं। वर्ष 2009 में यूटयूब, फेसबुक, आदि माध्यमों से लोगों तक डाॅ. आंबेडकर जी के विचारों को वीडियो और लेखों के माध्यम से पहुंचाना शुरु किया, वर्ष 2011 में डाॅ. आंबेडकर जी की लिखित पुस्तकों, बौद्ध साहित्य और जाति की समस्याओं की पुस्तकों का प्रथम बार आॅनलाईन प्रचार करके उन्हें लोगों तक भेजना शुरू किया, 2013 में शोषित वर्गों में व्यवसाय के प्रति रूचि जगाने के लिए कई लेख लिखें और व्यवसाय सिखाने वाली पुस्तकें लोगों तक पहुंचाई, 2014 में डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की फोटो प्रिंट वाली टिशर्ट को जनमानस में लोकप्रिय बनाने के लिए खूब प्रचार किया, 2012 से 2019 के बीच डॉ भीमराव आंबेडकर जी की संक्षिप्त जीवनी, बौद्ध धम्म पर दो पुस्तकें, लघु उपन्यास लिखे और डाॅ. आंबेडकर जी की लिखित पुस्तकों का अनुवाद किया, और इस वर्ष उन्हें सर्व सुलभ करने के लिए फ्री आनलाईन वितरित भी किया, 2020 में लोगों को फ्री इंग्लिश सीखाने के लिए आॅनलाईन चैनल शुरू किया और अब तक वे डॉ आंबेडकर जी की 12 पेंटिंग्स भी बना चुके हैं जिनमें से एक राजस्थान के मनोज गहलोत जी ने खरीद कर उनका उत्साह वर्धन भी किया है। 

निखिल सबलानिया द्वारा बनाई गई पेंटिंगस डाॅ. आंबेडकर जी के अलग-अगल फोटों पर आधारित हैं। दो पेंटिंगस तो तीन बाई तीन फुट की विशाल पेंटिंगस हैं जो डॉ. आंबेडकर जी के विषेश कार्यों पर आधारित हैं जिनमें वे संविधान बनाने के समय अपने घर पर सुबह अखबार पढ़ रहे हैं और रौशनी की किरणें उनके चेहरे पर पड़ कर उनकी आभा मंडित करती है। एक दूसरी बड़ी पेंटिंग में डाॅ. आंबेडकर जी अपने आॅफिस में फोन पर बात कर रहे हैं और उनका गंभीर चेहरा उनके जीवन की उस तपस्या को बताता है जो उन्होंने करोड़ों शूद्रों के उत्थान के लिए की। 

हांलाकि इन पेंटिंगस के दाम अधिक लगते हैं पर हस्त पेंटिंग और कला की द्रष्टि से उतने नहीं हैं। साथ ही कला जगत में जो काम जितना पुराना हो जाता है उसकी कीमत साल दर साल बढ़ती जाती है। ऐसे लोग न केवल कला और कला के माध्यम से किसी व्यक्ति या सिद्धांत को जीवित ही रखते हैं बल्कि कलाकृतियों का संग्रह करके बाद में उन्हें अच्छे दामों पर भी बेचते हैं। फिलहाल निखिल सबलानिया की पेंटिंगस बारह हजार से एक लाख रुपये के बीच है। साथ ही यदि आप उनसे पेंटिंगस खरीद कर उन्हें निखिल सबलानिया के माध्यम से दुबारा बेचते हैं तो बिकने पर वे उसकी दुगनी कीमत देने का अनुबंधन भी करते हैं। पेंटिंग्स के प्रिंटिंग अधिकार में भी सहभागिता मिलती है जिससे पोस्टर या कैलेंडर बना कर बेचे भी जा सकते हैं। इस प्रकार बेशक कई आर्थिक लाभ भी कलाकृतियों के साथ जुड़ा होता है और साथ ही यह मानव सभ्यता में अपनी छाप भी छोड़ती है। 

भारत में कलाकृतियों के प्रति लोगों में कम रूचि है। बहुत से लोग पेंटिंग्स या कलाकृतियों को फोटो से मिलाते हैं पर पेंटिंग की खासियत यह होती है कि वह न तो फोटो होती है और न ही फोटो की तरह बेजान। पेंटिंग का एक अलत प्रभाव होता है। पेंटिंग कई शैलियों की होती है। पेंटिंग में कलाकार के स्ट्रोक से लेकर रंगों तक का अलग प्रभाव होता है। पेंटिंग अपने विषय और कलाकार दोनों के बारे में बताती है। पर जिस प्रकार लोगों में शिक्षा और आर्थिक तरक्की हो रही है उससे उनमें कला के प्रति रुचि जागना स्वाभाविक है। और एक दिन भारत में भी यूरोप, अमरीका और जापान की तरह कलाकृतियों के प्रति लोगों में रुचि जागेगी। आज हम बेशक उपभोक्तावादी जीवन शैली का हिस्सा हैं पर इसकी शक्ति सीमित है। मनुष्य जल्द ही इससे ऊब जाता है और तब कला की ओर आकर्षित होता है। हजारों वर्षों पहले बनाए गए गुफाओं के चित्र या अशोक कालीन कृतियां हीं तो मानव सभ्यता की बची हुई असली संपत्ति हैं। ऐसे ही निखिल सबलानिया द्वारा बनाई गई डॉ. आंबेडकर जी की पेंटिंगस हर सौ सालों बाद आज के समय को याद दिलाएंगी। चूंकि पेंटिंगस अच्छे मैटिरियल से बने हैं इसलिए सामान्य तापमान में सैकड़ों वर्षों तक सही रह सकती हैं। 

निखिल सबलानिया द्वारा बनाई गई डाॅ. आंबेडकर जी की इन प्रेरणादायी पेंटिंगस को आप आॅनलाईन ऑर्डर कर सकते हैं या फोन से। यदि किसी विशेष पर्व के लिए आॅर्डर करनी है तो दो से तीन महीने या कई मामलों में छः महीने से एक साल पहले आॅर्डर करनी होती है क्योंकि सूखने में समय लगता है। कुछ तैयार भी मिलती है। तो जरा सोचिए कि पांचसौ सालों बाद आपकी बीसवी पीढ़ी के घर में निखिल सबलानिया की बनाई दस फुट की बड़ी डॉ. आंबेडकर जी की पेंटिंग लगी है तो कैसा लगेगा। 

फोन - मो. 8851188170 

WA. 8447913116 

sablanian@gmail.com

पेंटिंगस आॅनलाईन ऑर्डर करने के लिए 

www.nspmart.com/product-category/hp



Friday, October 2, 2020

हाथरस पर ऐडवोकेट उर्वशी सिंह ने क्या कहा?

 


पूरा वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें  

https://www.facebook.com/urvashi.singh.923724/videos/1697041997129969/





आंबेडकर परिवार लड़ेगा उसका केस। राजरत्न आंबेडकर


मनीषा मेरी बहन है, डाॅ. आंबेडकर जी की बेटी है। आंबेडकर परिवार लड़ेगा उसका केस।" राजरत्न आंबेडकर। हाथरस स लौट कर क्या बताया केस के बारे में। 

नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें 

https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=337562230658288&id=612122935574344

(आंबेडकरवादी साहित्य के लिए www.nspmart.com)

Caste In Indian Theaters by Saumyadeb Hui

The following observation is given I. A reply by the writer yo an eminent theater personality in India (addressed here as Dada or Dada) on question of existence of caste discrimination in Indian theatre. 



1. The traditional Indian theatre is based on caste division. "Chakyarkooth", "Nangyarkooth": the art forms bear the name of the castes. 

2. Sorry, if I hurt anyone, but even in modern proscenium theatre, how many dalit director or actors do we see? Do we find any dalit names in the history of modern Indian theatre? Do we find dalit names in contemporary times? Do we find them among the film makers and film actors? Do we have any Dalit hero in Bollywood or Tollywood?

Sorry dada, for saying this. Those names that are there in the history as luminaries they deserve their respective positions but we lost many dalit and other "lower" caste theatre and film luminaries just because there is a huge lack of opportunity.

I am basing my logic like Virginia Woolf in "A Room of One's Own". We don't have a 'Judith Shakespeare', that doesn't mean women can't write. That means if Shakespeare had a sister named "Judith" then she can never be like 'William' in spite of similar talent. Because the society won't let her. Similarly, we we don't have many dalit and other "lower" caste & tribal luminaries in theatre and films because the society didn't allow these "Judith Shakespeare"-s of India to flourish. 

3. Back to my first point. We can also see " Nangyarkooth" "Chakyarkooth", " Therakooth", "Chhau", "Rai Benshe", "Kirtan" (Bengali story telling tradition) in the light of a medium of expression of a particular oppressed caste, tribe and philosophy. Then this process of making these art forms 'museum piece' and removing them from the centre  of our culture and promoting a theatre & film culture devoid of dalits, tribals, and other non prominent classes is also an undercurrent of a dangerous casteism. 

Casteism and caste segregation may not involve violence and crime. It can be cultural as well. However, it is not just prevalent, it is rampant. That is why we can hardly name a Bollywood luminary or a national theatre figure who is a dalit or a tribal. 

If we consider dalit and tribal women in the national arena of theatre and films then the situation is way darker. 

P.S.: Sorry, if I have hurt anyone's feelings. I heartily respect all the past and present theatre and film personalities. I have nothing against anyone. I have a lot against this society, for which we lost many other creative geniuses.

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Thursday, September 17, 2020

डॉ. आंबेडकर जी लिखित और दुर्लभ पुस्तकों के सैट पर 500 रुपयों की छूट Discount on Books of Dr Ambedkar ji

 

*डॉ. आंबेडकर जी लिखित और दुर्लभ पुस्तकों के सैट पर 500 रुपयों की छूट*

_इस सैट में हैं_ :- 

डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की लिखित असली 34 पुस्तकें और साथ में उनकी संक्षिप्त जीवनी, बौद्ध धम्म पर, संविधान, संविधान को समझाने वाली (2 प्रतियों के साथ जिससे कि एक प्रति किसी प्रिय को उपहार करके संविधान के प्रति जागरूकता अभियान के लिए) दुर्लभ स्वतंत्रता आंदोलन काव्य संग्रह, 86 वर्षीय दलित लेखक डॉ सुखलाल धनी जी का दुर्लभ काव्य संग्रह और समाजवाद पर पुस्तकें।

📚 _कुल 48 पुस्तकें_
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💵 मूल्य ₹ 8500.
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🙏🏽 *आपकी यह खरीद डॉ. आंबेडकर जी के विचारों का प्रसार करने में हमारे लिए बहुत मददगार और प्रोत्साहित करने के वाली है।* 

जय भीम - निखिल सबलानिया प्रकाशन (दिल्ली) Nikhil Sablania Publications, Delhi (हमारी कोई अन्य ब्रांच नहीं है और हम केवल कोरियर से ही पुस्तकें भेजते हैं।)



भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवन करने वाले अनागरिक धम्मपाल (धर्मपाल)


अनागरिक धर्मपाल  

*भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवन करने वाले अनागरिक धम्मपाल (धर्मपाल) ( जन्म 17-09-1864 से महाप्रयाण 29-04-1933)

*बचपन का नाम* - डेविड हेवावितरण

*पिता* - डान केरोलिस हेवावितरणे

*माता* - मल्लिका धर्मागुनवर्धने

*जीवन परिचय* - बालक डेविड का जन्म एक धनी व्यापारी परिवार में हुआ था. 

इनके शुरूआती जीवन में मेडम मेरी ब्लावस्त्सकी और कर्नल हेनरी आलकौट का बहुत बड़ा योगदान है. 

सन् 1875 के दौरान मेडम मेरी ब्लावस्त्सकी और कर्नल हेनरी आलकौट ने अमेरिका के न्यूयार्क में थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना की थी. इन दोनों ने बौद्ध धर्म का काफी अध्ययन किया था मगर 1880 में ये श्रीलंका आये तो इन्होने वहां न सिर्फ स्वयं को बुद्धिष्ट घोषित किया बल्कि भिक्षु का वेश धारण किया. इन्होने श्रीलंका में 300 के ऊपर स्कूल खोले और बौद्ध धर्म की शिक्षा पर भारी काम किया. डेविड इनसे काफी प्रभावित हुए. बालक डेविड को पालि सीखने की प्रेरणा इन्हीं से मिली. यह वह समय था जब डेविड ने अपना नाम बदल कर *"अनागरिक धम्मपाल"* कर दिया था. 

1891 में अनागरिक धम्मपाल ने भारत स्थित बौद्ध गया के महाबोधि महाविहार की यात्रा की.यह वही जगह है जहाँ सिद्धार्थ गोतम को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी.वे देखकर हैरान रह गए की किस प्रकार से पुरोहित वर्ग ने बुद्ध के मुर्तीयों को हिन्दू देवी-देवता में बदल दिया है.  *इन विषमतावादियों ने तब बुद्ध महाविहार में बौद्धो को प्रवेश करने से भी निषेध कर रखा था*

भारत में बौद्ध धम्म और बौद्ध तिर्थ-स्थलों की दुर्दशा देखकर अनागरिक धम्मपाल को बेहद दुख हुआ. *बौद्ध धर्म स्थलों की बेहतरीन के लिए इन्होने विश्व के कई बौद्ध देशों को पत्र लिखा.इन्होने इसके लिए सन् 1891 में महाबोधि सोसायटी की स्थापना की.* तब इसका हेड आफिस कोलंबो था. किंतु शीध्र ही इसे कोलकाता स्थानांतरित किया गया. महाबोधि सोसायटी की ओर से अनागरिक धम्मपाल ने एक सिविल सुट दायर किया जिसमें मांग की गई थी कि महाबोधि विहार और दूसरे तीन प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों को बौद्धो को हस्तांतरित किये जाये. *इसी रिट का ही परिणाम था कि आज महाबोधि विहार में बौद्ध जा सकते हैं.* परंतु तब भी वहां तथाकथित हिन्दुओं का कब्जा आज भी है.. (और तब तक रहेगा जब तक भारतवासी सोते रहेंगे).

*यह अनागरिक धम्मपाल का प्रयास था कि कुशीनगर, जहाँ तथागत का महापरिनिर्वाण हुआ था फिर से बौद्ध जगत में दर्शनीय स्थल बन गया.*

*शिकागो में संपन्न विश्व धर्म संसद जो 18 सितंबर 1893 में संपन्न हुआ था अनागरिक धम्मपाल के द्वारा बौद्ध दर्शन पर दिये भाषण से वहां पर उपस्थित दुनीया के विभिन्न धर्मों के विद्वान भौचक्के रह गए. स्वामी विवेकानन्द जी को अधिकृत निमंत्रण नहीं था। अनागारिक धर्मपाल ने बुद्ध के भूमि से आए मित्र को आयोजकों से निवेदन कर अपने भाषण के समय में से तीन मिनट का समय बोलने के लिए दिया था, धर्म-संसद में हिन्दू दर्शन पर स्वामी विवेकानंद का भाषण हुआ था. 

अनागरिक धम्मपाल ने अपने जीवन के 40 वर्षों में भारत, श्रीलंका और विश्व के कई देशों में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के बहुत से उपाय किये.

इन्होने कई स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण कराया. कई जगह इन्होने बौद्ध विहारों का निर्माण कराया. *सारनाथ का प्रसिद्ध महाविहार आपने ही बनवाया था.*

13 जुलाई 1931 अनागरिक धम्मपाल बाकायदा बौद्ध भिक्षु बन गये इन्होने प्रव्रज्या ली.16 जनवरी 1933 को प्रव्रज्या पूर्ण हुई और इन्होने उपसंपदा ग्रहण की.. और फिर नाम पड़ा भिक्षु देवमित्र धर्मपाल. बौद्ध धर्म के इतने बड़े पुनर्उद्धारक 29 अप्रैल 1933 को 69 वर्ष की अवस्था में इस दुनिया से विदा हो गये..इनका महाप्रयाण हो गया. 

इनकी अस्थियां पत्थर के एक छोटे से स्तूप में मूलगंध कुटी विहार में पार्श्व में रख दी गई. 

अनागरिक धम्मपाल बुद्धिष्ट जगत के एक ख्याती प्राप्त हस्ती..बौद्ध धर्म के पुनर्उद्धारक..भारत में बौद्ध धर्म के पतन के हजारो साल बाद अनागरिक धम्मपाल ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने न सिर्फ इस देश में बौद्ध धर्म का पुन: झंडा फहराया बल्कि एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में इसके प्रचार-प्रसार के लिए भारी काम किया.

Saturday, September 12, 2020

Original Hand Painting of Dr. B. R. Ambedkar ji - Restoring the Young Ambedkar

Hand Painting of Dr. B. R. Ambedkar ji

Based on real Old and Damaged Photos
First Collection of Three Paintings in the series - Restoring the Young Ambedkar
On Canvas Board, Acrylic, 12X16 inches, with frame courier delivery
About the Paintings - For the past sixty six years since Babasaheb Dr. B. R. Ambedkar ji has left us physically, there is nothing done to restore or recreate his old and damaged images. This initiative is the dawn of recreating him in an artistic style. Though, it’s a challenge as people have a fixed perception to see him through a single image, but also it’s a beginning of new visual grammar, which is stronger than the literary word, and has ability to give a new shift to the thinking and passion. These paintings are made in impressionist style, with lots of layers of paint, and have ability to last for centuries. A painting is an artistic work and its real experience can be felt by real view and not photos, so please don’t compare them too much with the real photos or the photo of the paintings. This is an artistic work out of love and respect of Babasaheb ji, so please don’t make any negative or discouraging statements.

About the Artist –
Nikhil Sablania is also a writer and filmmaker. He’s propagating thoughts of Dr. Ambedkar ji for the past eleven years. His written books include Buddha ka path (the path of the Buddha), Dalit ki Gali (Street of a Dalit, Novel), Dr. Ambedkar aur Bauddh Dhamma (Dr. Ambedkar and the Dhamma of the Buddha), translated following books of Dr. Ambedkar ji in Hindi, Achhut aur Isayee Dharma (Untouchables and Christianity), Jaati ka Sanhaar (Annihilation of Caste), Bharat me Jatiya (Castes in India) and Shudra Kaun the (Who Were the Shudras). All his books are available online for free to read on www.ambedkartimes.blogspot.com. To make English available to all and to the rural Indians, he’s giving free English classes online which can be seen on YouTube channel, Angrezi Me Kehte Hai Ki. As a filmmaker he has made documentaries on Buddhism and social issues like problems of water (Thirsty City) and Autism (Challenge), animation film on Buddhism – Enlightened Love and , Checkmate, and short films on social issues. This series of paintings is first of its kind by recreating Dr. Ambedkar ji through colors in 21st century. Nikhil Sablania says, ‘When I make paintings of Dr. Ambedkar ji, I actually wanted to see him in reality. It is like meeting him in real. I change those many times to get the best of the result. And each time I see him like meeting him in person next day. This is a challenging but a spiritual work, as I’m with him through his thinking for the past eleven years and these paintings are perhaps a way to communicate with him.’

M. +91 8851188170, WA. 8447913116 sablanian@gmail.com www.nikhilsablania.com
P

Wednesday, July 15, 2020

विश्व में हर रिकार्ड बाबा साहेब के नाम

विश्व में हर रिकार्ड बाबा साहेब के नाम
इसको इतना SHARE करें ता कि सभी लोगों बाबा साहेब के बारे मे जान सकें....
1. भारत के सबसे पढे व्यक्ति
2. सबसे ज्यादा किताब लिखने वाले
3. सबसे तेज स्पीड से ज्यादा टाईप करने वाले
4. सबसे ज्यादा शब्द टाईप करने वाले
5. सबसे ज्यादा आंदोलन करें
6. महिला अधिकार के लिए संसद में इस्तीफा देने वाले
7. दलित, पिछडो के हको को दिलाने वाले
8. हिन्दू धर्म के ग्रन्थ मनुस्मर्ति को चोराहे पर जलाने वाले
9. जातिवाद को समाप्त करने के लिए पंडतानि से sadi करने वाले
10. गरीब मज़लूमो के हको के लिए 4 बच्चे कुर्बान करने वाले
11. 2 लाख किताबो को पढ़कर याद रखने वाले
12. भारत का सविधान लिखा
13. पूना पैक्ट लिखा
14. मूक नायक पत्रिका निकाली
15. बहिस्किरत समाचार पत्र निकाला
16. सबसे तेज लिखने वाले
17. दोनों हाथो से लिखने वाले
18. ग़ांधी जी को जीवन दान देने वाले
19. सबसे काबिल बैरिस्टर
20. मुम्बई के सेठ के बेटे को फर्जी मुक़दमे से बरी कराने वाले
21. योग करने वाले
22. सबसे ईमानदार
23. 18 से 20 घंटे पढ़ने वाले
24. सरदार पटेल को obc का मतलब समझने वाले
25. स्कूल के बहार बैठकर और अपमान सहकर उच्च शिक्षा पाने वाले
25. हम सबकी भलाई के लिए पत्नी रमाबाई को खोने वाले .........
.
दिल से जय भीम
.

*बाबा साहब डॉ.भीमराव रामजी अम्बेडकर*
(एक संक्षिप्त परिचय)

🌀डॉ.बाबासाहब अंबेडकर 9 भाषाएँ जानते थे।
1) मराठी (मातृभाषा)
2) हिन्दी
3) संस्कृत
4) गुजराती
5) अंग्रेज़ी
6) पारसी
7) जर्मन
8) फ्रेंच
9) पाली

उन्होंने पाली व्याकरण और शब्दकोष (डिक्शनरी) भी लिखी थी, जो महाराष्ट्र सरकार ने "Dr.Babasaheb Ambedkar Writing and
Speeches Vol.16 "में प्रकाशित की हैं।

🔹 बाबासाहब अंबेडकर जी ने संसद में पेश किए हुए विधेयक

1) महार वेतन बिल
2) हिन्दू कोड बिल
3) जनप्रतिनिधि बिल
4) खोती बिल
5) मंत्रीओं का वेतन बिल
6) मजदूरों के लिए वेतन (सैलरी) बिल
7) रोजगार विनिमय सेवा
8) पेंशन बिल
9) भविष्य निर्वाह निधी (पी.एफ्.)

🔹 बाबासाहब के सत्याग्रह (आंदोलन)

1) महाड आंदोलन 20/3/1927
2) मोहाली (धुले) आंदोलन 12/2/1939
3) अंबादेवी मंदिर आंदोलन 26/7/1927
4) पुणे कौन्सिल आंदोलन 4/6/1946
5) पर्वती आंदोलन 22/9/1929
6) नागपूर आंदोलन 3/9/1946
7) कालाराम मंदिर आंदोलन 2/3/1930
8) लखनौ आंदोलन 2/3/1947
9) मुखेड का आंदोलन 23/9/1931

🔹बाबासाहब अंबेडकर द्वारा स्थापित सामाजिक संघटन

1) बहिष्कृत हितकारिणी सभा - 20 जुलै 1924
2) समता सैनिक दल - 3 मार्च 1927

🔹राजनीतिक संघटन
1) स्वतंत्र मजदूर पार्टी - 16 अगस्त 1936
2) शेड्युल्ड कास्ट फेडरेशन- 19 जुलै 1942
3) रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया- 3 अक्तूबर 1957

🔹धार्मिक संघटन
1) भारतीय बौद्ध महासभा -
4 मई 1955

🔹शैक्षणिक संघटन
1) डिप्रेस क्लास एज्युकेशन सोसायटी- 14 जून 1928
2) पीपल्स एज्युकेशन सोसायटी- 8 जुलै 1945
3) सिद्धार्थ काॅलेज, मुंबई- 20 जून 1946
4) मिलींद काॅलेज, औरंगाबाद- 1 जून 1950

🔹अखबार, पत्रिकाएँ
1) मूकनायक- 31 जनवरी 1920
2) बहिष्कृत भारत- 3 अप्रैल 1927
3) समता- 29 जून 1928
4) जनता- 24 नवंबर 1930
5) प्रबुद्ध भारत- 4 फरवरी 1956

🔹बाबासाहब अंबेडकर जी ने अपने जिवन में विभिन्न विषयों पर 527 से ज्यादा भाषण दिए।

🔹बाबासाहब अंबेडकर को प्राप्त सम्मान

1) भारतरत्न
2) The Greatest Man in the World (Columbia University)
3) The Universe Maker (Oxford University)
4) The Greatest Indian (CNN IBN & History Tv

🔹बाबासाहब अंबेडकर जी इनकी
निजी किताबें (उनके पास थी)
1) अंग्रेजी साहित्य- 1300 किताबें
2) राजनिती- 3,000 किताबें
3) युद्धशास्त्र- 300 किताबें
4) अर्थशास्त्र- 1100 किताबें
5) इतिहास- 2,600 किताबें
6) धर्म- 2000 किताबें
7) कानून- 5,000 किताबें
8) संस्कृत- 200 किताबें
9) मराठी- 800 किताबें
10) हिन्दी- 500 किताबें
11) तत्वज्ञान (फिलाॅसाफी)- 600 किताबें
12) रिपोर्ट- 1,000
13) संदर्भ साहित्य (रेफरेंस बुक्स)- 400 किताबें
14) पत्र और भाषण- 600
15) जिवनीयाँ (बायोग्राफी)- 1200
16) एनसाक्लोपिडिया ऑफ ब्रिटेनिका- 1 से 29 खंड
17) एनसाक्लोपिडिया ऑफ सोशल सायंस- 1 से 15 खंड
18) कैथाॅलिक एनसाक्लोपिडिया- 1 से 12 खंड
19) एनसाक्लोपिडिया ऑफ एज्युकेशन
20) हिस्टोरियन्स् हिस्ट्री ऑफ दि वर्ल्ड- 1 से 25 खंड
21) दिल्ली में रखी गई किताबें-
बुद्ध धम्म,
पालि साहित्य,
मराठी साहित्य- 2000 किताबें
22) बाकी विषयों की 2305 किताबें

🔹बाबासाहब जब अमेरिका से भारत लौट आए तब एक बोट दुर्घटना में उनकी सैंकडो किताबें समंदर मे डूबी।

🔹बाबासाहब अंबेडकर जी
1) महान समाजशास्त्री
2) महान अर्थशास्त्री
3) संविधान शिल्पी
4) आधुनिक भारत के मसिहा
5) इतिहास के ज्ञाता और रचियाता
6) मानवंशशास्त्र के ज्ञाता
7) तत्वज्ञानी (फिलाॅसाॅफर)
8) दलितों के और महिला अधिकारों के मसिहा
9) कानून के ज्ञाता (कानून के विशेषज्ञ)
10) मानवाधिकार के संरक्षक
11) महान लेखक
12) पत्रकार
13) संशोधक
14) पाली साहित्य के महान अभ्यासक (अध्ययनकर्ता)
15) बौध्द साहित्य के अध्ययनकर्ता
16) भारत के पहले कानून मंत्री
17) मजदूरों के मसिहा
18) महान राजनितीज्ञ
19) विज्ञानवादी सोच के समर्थक
20) संस्कृत और हिन्दू साहित्य के गहन अध्ययनकर्ता थे।

🔹बाबासाहब अंबेडकर की कुछ विशेषताएँ

1) पाणी के लिए आंदोलन करनेवाले विश्व के पहल महापुरुष

2) लंदन विश्वविद्यालय के पुरे लाईब्ररी के किताबों की छानबीन कर उसकी
जानकारी रखनेवाले एकमात्र महामानव

3) लंदन विश्वविद्यालय के 200 छात्रों में नंबर 1 का छात्र होने का सम्मान प्राप्त होनेवाले पहले भारतीय

4) विश्व के छह विद्वानों में से एक

5) विश्व में सबसे अधिक पुतले बाबासाहब अंबेडकर जी के हैं।

6) लंदन विश्वविद्यालय मे डी.एस्.सी.
यह उपाधी पानेवाले पहले और आखिरी भारतीय

7) लंदन विश्वविद्यालय का 8 साल का पाठ्यक्रम 3 सालों मे पूरा
करनेवाले महामानव

🔹बाबासाहब अंबेडकर जी के वजह से ही भारत में "रिजर्व बैंक" की स्थापना हुईं।

बाबासाहब डॉ.अंबेडकर जी ने अपने डाॅक्टर ऑफ सायंस के लिए ' दि प्राॅब्लेम ऑफ रूपी' यह शोध प्रबंध भी लिखा था।👑

*Dr.BHIMRAO AMBEDKAR* (1891-1956)
*B.A., M.A., M.Sc., D.Sc., Ph.D., L.L.D.,*
D.Litt., Barrister-at-La w.
B.A.(Bombay University)
Bachelor of Arts,
MA.(Columbia university) Master
Of Arts,
M.Sc.( London School of
Economics) Master
Of Science,
Ph.D. (Columbia University)
Doctor of
philosophy ,
D.Sc.( London School of
Economics) Doctor
of Science ,
L.L.D.(Columbia University)
Doctor of
Laws ,
D.Litt.( Osmania University)
Doctor of
Literature,
Barrister-at-La w (Gray's Inn,
London) law
qualification for a lawyer in
royal court of
England.
Elementary Education, 1902
Satara,
Maharashtra
Matriculation, 1907,
Elphinstone High
School, Bombay Persian etc.,
Inter 1909,Elphinston e
College,Bombay
Persian and English
B.A, 1912 Jan, Elphinstone
College, Bombay,
University of Bombay,
Economics & Political
Science
M.A 2-6-1915 Faculty of Political
Science,
Columbia University, New York,
Main-
Economics
Ancillaries-Soc iology, History
Philosophy,
Anthropology, Politics
Ph.D 1917 Faculty of Political
Science,
Columbia University, New York,
'The
National Divident of India - A
Historical and
Analytical Study'
M.Sc 1921 June London School
of
Economics, London 'Provincial
Decentralizatio n of Imperial
Finance in
British India'
Barrister-at- Law 30-9-1920
Gray's Inn,
London Law
D.Sc 1923 Nov London School
of
Economics, London 'The
Problem of the
Rupee - Its origin and its
solution' was
accepted for the degree of D.Sc.
(Economics).
L.L.D (Honoris Causa) 5-6-1952
Columbia
University, New York For HIS
achievements,
Leadership and authoring the
constitution of
India
D.Litt (Honoris Causa)
12-1-1953 Osmania
University, Hyderabad For HIS
achievements,
Leadership and writing the
constitution of
India!

@AshaAmbedkar

हिंदु मंदिर में नारियल क्यो फोड़ा जाता है?

हिंदु मंदिर में नारियल क्यो फोड़ा जाता है??इसके बारे में यह ऐतिहासिक जानकारी होना जरूरी है.......

मगध की राजधानी पाटलिपुत्र में चक्रवर्ति सम्राट अशोक के वंशज मोर्य वंश के बौद्ध सम्राट राजा बृहद्रथ मोर्य की हत्या उसी के सेनापति ब्राह्मण पुष्यमित्र शुंग ने धोखे से की थी और खुद को मगध का राजा घोषित कर लिया था ।
उसने राजा बनने पर पाटलिपुत्र से श्यालकोट तक सभी बौद्ध विहारों को ध्वस्त करवा दिया था तथा अनेक बौद्ध भिक्षुओ का कत्लेआम किया था।पुष्यमित्र शुंग, बौद्धों पर बहुत अत्याचार करता था और ताकत के बल पर उनसे ब्राह्मणों द्वारा रचित मनुस्मृति अनुसार वर्ण (हिन्दू) धर्म कबूल करवाता था।
*इसके बाद ब्राह्मण* *पुष्यमित्र शुंग ने अपने समर्थको के साथ मिलकर पाटलिपुत्र और श्यालकोट के मध्य क्षेत्र पर अधिकार किया और अपनी राजधानी साकेत को बनाया।
पुष्यमित्र शुंग ने इसका नाम बदलकर अयोध्या कर दिया। अयोध्या अर्थात-बिना युद्ध के बनायीं गयी राजधानी*…
*राजधानी बनाने के बाद पुष्यमित्र शुंग ने घोषणा की कि जो भी व्यक्ति, भगवाधारी बौद्ध भिक्षु का सर(सिर) काट कर लायेगा, उसे 100 सोने की मुद्राएँ इनाम में दी जायेंगी।

*इस तरह सोने के सिक्कों के लालच में पूरे देश में बौद्ध भिक्षुओ का कत्लेआम हुआ।

राजधानी में बौद्ध भिक्षुओ के सर आने लगे ।

इसके बाद कुछ चालक व्यक्ति अपने लाये सर को चुरा लेते थे और उसी सर को दुबारा राजा को दिखाकर स्वर्ण मुद्राए ले लेते थे। राजा को पता चला कि लोग ऐसा धोखा भी कर रहे है तो राजा ने एक बड़ा पत्थर रखवाया और राजा ,बौद्ध भिक्षु का सर देखकर उस पत्थर पर मरवाकर उसका चेहरा बिगाड़ देता था* । इसके बाद बौद्ध भिक्षु के सर को घाघरा नदी में फेंकवा दता था*।
*राजधानी अयोध्या में बौद्ध भिक्षुओ के इतने सर आ गये कि कटे हुये सरों से युक्त नदी का नाम सरयुक्त अर्थात “सरयू” हो गया*।
*इसी “सरयू” नदी के तट पर पुष्यमित्र शुंग के राजकवि वाल्मीकि ने “रामायण” लिखी थी।* *जिसमें राम के रूप में पुष्यमित्र शुंग और रावण के रूप में मौर्य सम्राट का वर्णन करते हुए उसकी राजधानी अयोध्या का गुणगान किया था और राजा से बहुत अधिक पुरस्कार पाया था।
*इतना ही नहीं, रामायण, महाभारत, स्मृतियां आदि बहुत से काल्पनिक ब्राह्मण धर्मग्रन्थों की रचना भी पुष्यमित्र शुंग की इसी अयोध्या में “सरयू” नदी के किनारे हुई।
*बौद्ध भिक्षुओ के कत्लेआम के कारण सारे बौद्ध विहार खाली हो गए।तब आर्य ब्राह्मणों ने सोचा’ कि इन बौद्ध विहारों का क्या करे की आने वाली पीढ़ियों को कभी पता ही नही लगे कि बीते वर्षो में यह क्या थे* ?*
*तब उन्होंने इन सब बौद्ध विहारों को मन्दिरो में बदल दिया और इसमे अपने पूर्वजो व काल्पनिक पात्रो को भगवान बनाकर स्थापित कर दिया और पूजा के नाम पर यह दुकाने खोल दी*।
*ध्यान रहे उक्त ब्रह्दथ मोर्य की हत्या से पूर्व भारत में मन्दिर शब्द ही नही था ना ही इस तरह की संस्क्रति थी।वर्तमान में ब्राह्मण धर्म में पत्थर पर मारकर नारियल फोड़ने की परंपरा है ये परम्परा पुष्यमित्र शुंग के बौद्ध भिक्षु के सर को पत्थर पर मारने का प्रतीक है*।
*पेरियार रामास्वामी नायकर ने भी ” सच्ची रामायण” पुस्तक लिखी जिसका इलाहबाद हाई कोर्ट केस नम्बर* *412/1970 में वर्ष 1970-1971 व् सुप्रीम कोर्ट 1971 -1976 के बिच में केस अपील नम्बर 291/1971 चला* ।
*जिसमे सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस पी एन भगवती जस्टिस वी आर कृषणा अय्यर, जस्टिस मुतजा फाजिल अली ने दिनाक 16.9.1976 को निर्णय दिया !
की सच्ची रामायण पुस्तक सही है और इसके सारे तथ्य वेध है*।
*सच्ची रामायण पुस्तक यह सिद्ध करती है!
कि ” रामायण नामक देश में जितने भी ग्रन्थ है वे सभी काल्पनिक है और इनका पुरातातविक कोई आधार नही है*।
*अथार्त् फर्जी है*।
[7:37AM, 11/3/2017] Sonic: दुर्गा  से शक्ति मिलती तो दालरोटी खाने की क्या जरूरत।
छठ्ठी माई से बच्चे मिलते तो पति बनाने की क्या जरुरत ।
विश्वकर्मा सब बनाते तो जापान से मेट्रो लाने की क्या जरुरत।
लक्ष्मण रेखा कोई पार नही कर सकता तो सीमा पर सिपाही की क्या जरुरत।
ईन्द्र की कृपा से वर्षा होती तो किसान को आत्महत्या करने की क्या जरुरत।
सभी  कार्य ईश्वर की कृपा से होता तो कार्यालय की क्या जरुरत।
देवी देवता की कृपा से रोग ठीक हो जाता तो औषधालय की क्या जरुरत।
लक्ष्मी ही धन देती तो ATM की क्या जरुरत।
सरस्वती विध्या देती तो विद्यालय की क्या जरुरत।
भगवान न्याय करता तो न्यायलय की क्या जरुरत।
जय प्रकृति
जय ज्ञान
जय विज्ञान
जय संविधान
जय अखण्ड भारत।
इसीलिए.........
*दिखावे पर न जाओ*
*अपने दिमाग की बत्ती जलाओ*

Friday, May 15, 2020

Hailstorm in Delhi दिल्ली में बर्फीला तूफान 14 May 2020 The Wort Storm in Delhi with heavy snowballs















14 मई 2020 को दिल्ली में ऐसा बर्फीला
तूफान आया जो शायद ही कभी पहले
आया हो। कोरोनावायरस के लाॅकडाउन
के बीच दिल्ली में दो बार भूकंप भी आ
चुका है। क्या होगा जब आपदाएं किसी
महाविनाश का रुप ले लेंगी? आखिर वह
कौनसी सबसे बड़ी आपदा है जो हमारे
सिर पर मंडरा रही है। बर्फीले तूफ़ान के
बीच जूझते हुए निखिल सबलानिया द्वारा
बनाया गया यह वीडियो आपको सोचने
पर मजबूर कर देगा कि हम किस दिशा
में जा रहे हैं।


On 14th May 2020 Delhi saw the
worst hailstorm as perhaps never
ever seen before. But this is not
just one calamity people of Delhi
are facing amidst Coronavirus
Lockdown. There had been two
earthquakes between the first fifty
days of lockdown and another mild
storm just a week before this calamity
of a hailstorm. What will happen
when these calamities will become
the greatest threat to our survival?
What is the real danger looming over
us? Whole struggling with this
hailstorm, filmmaker Nikhil Sablania
has made this video which will insist
you to think over the direction in
which mankind is moving.

www.nikhilsablania.com
sablanian@gmail.com

वीडियो देखने के लिए यहां क्लिक करें
Click here to view

https://youtu.be/z689y9fCEdg

Wednesday, May 13, 2020

20 Lakh Corore me Kya Milega Part 1, 20 लाख करोड़ का सच - समीक्षा किसको क्या मिलेगा भाग 1

















क्या सच में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का 
20 लाख करोड़ रूपये का रहत पैकेज 
कोरोना वायरस, कोविड-19, से उतपन्न 
हुई  बेरोजगारी और गरीबी को खत्म कर
देगा? 
क्या यह एक सही पैकेज है ?
क्या सही व्यक्ति तक इस राहत का कोई
असर होगा ? देखिए इस वीडियो में और
चैनल को सब्स्क्राइब करें। 
निर्माण: निखिल सबलानिया 


वीडियो देखने के लिए यहाँ क्लिक करें  https://youtu.be/z3KxE1i0HDQ

Monday, May 11, 2020

डाॅ. भीमराव आंबेडकर जी की पुस्तक अछूत और ईसाई धर्म फ्री में पढ़ें Dr. B. R. Ambedkar's Book on Christanity Download For Free













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NSPMART पर ऑर्डर करने का लिंक https://www.nspmart.com/product/achutaid/

डाॅ. आंबेडकर जी के इस लेख का हिंदी में अनुवाद पहली बार किया गया है। अनुवादक हैं निखिल सबलानिया जो दस वर्षों से डाॅ. आंबेडकर जी के विचारों को जनमानस तक पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं।

यह एक सरल भाषा का अनुवाद है जो निखिल सबलानिया द्वारा किया गया है। पुस्तकों के अनुवाद को करके आप तक लाने के लिए दान अवश्य दें।
State Bank of India (SBI)
Saving Account Number -10344174766,
Holder: Nikhil Sablania.
Branch code: 01275, 
IFSC Code: SBIN0001275
Branch: PADAM SINGH ROAD, 
Karol Bagh, Delhi-110005.
फोन पे नंबर PhonePe या Google Pay - 8851188170, या Paytm - 8527533051 पर भेज सकते हैं।
आपका यह दान अनुवादक के बौद्धिक और अन्य मिशनरी कार्यों को करने में सहायक होगा।
ऐस कार्यों के लिए प्रोत्साहित करने हेतू और इस पुस्तक को छापने के लिए दान देना है तो आप फोन पर बात कर सकते हैं 8851188170.

मित्रों, ऐसे कार्य करने के लिए शिक्षा, समय, ऊर्जा, लगन और धन की आवश्यकता पड़ती है। शिक्षा है, लगन है, मेहनत करते हैं, पर धन का अभाव ही रहता है। इस कमी को दूर करने के लिए आप दान दे सकते हैं। ऐसे आप डॉ. आंबेडकर जी को श्रद्धांजलि देंगे, उनके कार्य को आगे बढ़ांएगे, समाज को एक नई दिशा देंगे और हमरी भी मदद करेंगे कि हम भी आपके साथ जुड़ कर डॉ. आंबेडकर जी के विचारों को आगे बढ़ा सकें। 

पुस्तक के बारे में -














इस पुस्तक में भारत में ईसाई धर्म के प्रचार से लेकर भारत के ईसाईयों की समस्याओं पर जो बातें लिखी हैं वह न   केवल एक ऐतिहासिक तथ्य ही है बल्कि वर्तमान का सत्य भी है। आज भी भारत में ईसाईयों को और विशेषकर अंग्रेजों को बुरी दृष्टि से देखा जाता है। पर यह इतिहास नहीं बताया जाता  कि ईसाई मिशनरियों ने भारत के लोगों को कितना फायदा पहुँचाया है। यह लेख केवल भारत के संदर्भ में ही नहीं है बल्कि विश्व इतिहास का भी एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है। इस पुस्तक में सरल शब्दों के साथ-साथ शब्दों के एक से अधिक अर्थों   को ब्रैकेट में लिखा है जिससे कि पाठक को यह पुस्तक समझ में आ जाए। एक और बात जो   कि पाठकों को ध्यान में रखनी है वह यह है कि इस पुस्तक का अनुवाद करते समय डॉ. आंबेडकर जी के वाक्यों को ज्यों-का-त्यों अनुवाद करने का पूर्ण प्रयत्न्न किया है। हालाँकि इससे कुछ जटिलता आती है पर इससे असली  लेख के रूप में बदलाव नहीं आता।  


अनुवादक का परिचय
निखिल सबलानिया का जन्म दिल्ली में हुआ। उन्होंने मनोविज्ञान में स्नातक, सिनेमा में डिप्लोमा व एल. एल. बी. किया है। 2009 से वह डॉ. आंबेडकर जी के मिशन से जुड़ गए और बौद्ध धम्म पर अनेक लेख लिखे। उन्होंने बौद्ध शास्त्रों का भी अध्ययन किया और बौद्ध धम्म के विषयों पर कई वीडियो भी बनाएं। वह फिल्म निर्देशक और लेखक भी हैं और फिल्मों के लिए भी लिखते हैं। विगत वर्षों में उन्होंने पुस्तकों, वीडियों और लेखों के माध्यम से डॉ. आंबेडकर जी के विचार और साहित्य को जनमानस तक पहुंचाया। वह कम आयु में ही बाबा साहिब जी के सपने को साकार करने के लिए लग पड़े और डॉ. आंबेडकर जी के मिशन को आगे बढ़ाने में लग गए।


लेखक के रूप में रचनाएं :
(1) बाबा साहिब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की अमर कथा (डॉ. आंबेडकर जी की संक्षिप्त जीवनी) ; www.nspmart.com पर उपलब्ध है, लॉकडाउन के बादऑर्डर कर सकते हैं।
(2) डॉ. आंबेडकर और बौद्ध धम्म (डॉ. आंबेडकर जी का धम्म दीक्षा समारोह में दिया 1956 का भाषण, बौद्ध संस्कार व पूजा पद्धतियां और बौद्ध धम्म के महत्त्व पर अनेक लेखों  के साथ रंगीन चित्रों में पुस्तक); www.nspmart.com पर उपलब्ध है, लॉकडाउन के बादऑर्डर कर सकते हैं।
(3) दलित की गली - लघु उपन्यास (अप्रकाशित) पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें
(4 ) बुद्ध का पथ - आधुनिक काल में बौद्ध दर्शन (अप्रकाशित) पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

उन्होंने डॉ. आंबेडकर जी की तीन पुस्तकों का अनुवाद भी किया है : 

(1) शूद्र कौन थे ? और वे भारतीय वर्ण व्यवस्था का चौथा वर्ण कैसे बने ?(अप्रकाशित)
(2) अछूत और ईसाई धर्म (Amazon पर उपलब्ध है।) www.nspmart.com पर उपलब्ध है, लॉकडाउन के बादऑर्डर कर सकते हैं।

(3) जाति का संहार (एनिहिलेशन ऑफ कास्ट् और कास्ट्स इन इंडिया ) (अप्रकाशित)

नोट : Pdf डाऊनलोड करने के बाद मोबाईल व्यू में पढ़े 
👉🏼यदि डाउनलोड न हो तो इस नंबर पर pdf के लिए वटसएप करें 8847913116.
👉🏼लेखक निखिल सबलानिया को फेसबुक पर फाॅलो करें https://www.facebook.com/nikhil.sablania
नोट: यह अप्रकाशित प्रति है जिसमें स्पेलिंग मिस्टेक हो सकती है। बाद में उन्हें सुधार कर पुस्तक प्रकाशित की जाएगी।

*जय भीम नमो बुद्धाय*