Thursday, September 17, 2020

डॉ. आंबेडकर जी लिखित और दुर्लभ पुस्तकों के सैट पर 500 रुपयों की छूट Discount on Books of Dr Ambedkar ji

 

*डॉ. आंबेडकर जी लिखित और दुर्लभ पुस्तकों के सैट पर 500 रुपयों की छूट*

_इस सैट में हैं_ :- 

डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की लिखित असली 34 पुस्तकें और साथ में उनकी संक्षिप्त जीवनी, बौद्ध धम्म पर, संविधान, संविधान को समझाने वाली (2 प्रतियों के साथ जिससे कि एक प्रति किसी प्रिय को उपहार करके संविधान के प्रति जागरूकता अभियान के लिए) दुर्लभ स्वतंत्रता आंदोलन काव्य संग्रह, 86 वर्षीय दलित लेखक डॉ सुखलाल धनी जी का दुर्लभ काव्य संग्रह और समाजवाद पर पुस्तकें।

📚 _कुल 48 पुस्तकें_
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💵 मूल्य ₹ 8500.
🎁 छूट के बाद ₹ 8000.

🙏🏽 *आपकी यह खरीद डॉ. आंबेडकर जी के विचारों का प्रसार करने में हमारे लिए बहुत मददगार और प्रोत्साहित करने के वाली है।* 

जय भीम - निखिल सबलानिया प्रकाशन (दिल्ली) Nikhil Sablania Publications, Delhi (हमारी कोई अन्य ब्रांच नहीं है और हम केवल कोरियर से ही पुस्तकें भेजते हैं।)



भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवन करने वाले अनागरिक धम्मपाल (धर्मपाल)


अनागरिक धर्मपाल  

*भारत में बौद्ध धर्म को पुनर्जीवन करने वाले अनागरिक धम्मपाल (धर्मपाल) ( जन्म 17-09-1864 से महाप्रयाण 29-04-1933)

*बचपन का नाम* - डेविड हेवावितरण

*पिता* - डान केरोलिस हेवावितरणे

*माता* - मल्लिका धर्मागुनवर्धने

*जीवन परिचय* - बालक डेविड का जन्म एक धनी व्यापारी परिवार में हुआ था. 

इनके शुरूआती जीवन में मेडम मेरी ब्लावस्त्सकी और कर्नल हेनरी आलकौट का बहुत बड़ा योगदान है. 

सन् 1875 के दौरान मेडम मेरी ब्लावस्त्सकी और कर्नल हेनरी आलकौट ने अमेरिका के न्यूयार्क में थियोसोफिकल सोसायटी की स्थापना की थी. इन दोनों ने बौद्ध धर्म का काफी अध्ययन किया था मगर 1880 में ये श्रीलंका आये तो इन्होने वहां न सिर्फ स्वयं को बुद्धिष्ट घोषित किया बल्कि भिक्षु का वेश धारण किया. इन्होने श्रीलंका में 300 के ऊपर स्कूल खोले और बौद्ध धर्म की शिक्षा पर भारी काम किया. डेविड इनसे काफी प्रभावित हुए. बालक डेविड को पालि सीखने की प्रेरणा इन्हीं से मिली. यह वह समय था जब डेविड ने अपना नाम बदल कर *"अनागरिक धम्मपाल"* कर दिया था. 

1891 में अनागरिक धम्मपाल ने भारत स्थित बौद्ध गया के महाबोधि महाविहार की यात्रा की.यह वही जगह है जहाँ सिद्धार्थ गोतम को बुद्धत्व की प्राप्ति हुई थी.वे देखकर हैरान रह गए की किस प्रकार से पुरोहित वर्ग ने बुद्ध के मुर्तीयों को हिन्दू देवी-देवता में बदल दिया है.  *इन विषमतावादियों ने तब बुद्ध महाविहार में बौद्धो को प्रवेश करने से भी निषेध कर रखा था*

भारत में बौद्ध धम्म और बौद्ध तिर्थ-स्थलों की दुर्दशा देखकर अनागरिक धम्मपाल को बेहद दुख हुआ. *बौद्ध धर्म स्थलों की बेहतरीन के लिए इन्होने विश्व के कई बौद्ध देशों को पत्र लिखा.इन्होने इसके लिए सन् 1891 में महाबोधि सोसायटी की स्थापना की.* तब इसका हेड आफिस कोलंबो था. किंतु शीध्र ही इसे कोलकाता स्थानांतरित किया गया. महाबोधि सोसायटी की ओर से अनागरिक धम्मपाल ने एक सिविल सुट दायर किया जिसमें मांग की गई थी कि महाबोधि विहार और दूसरे तीन प्रसिद्ध बौद्ध स्थलों को बौद्धो को हस्तांतरित किये जाये. *इसी रिट का ही परिणाम था कि आज महाबोधि विहार में बौद्ध जा सकते हैं.* परंतु तब भी वहां तथाकथित हिन्दुओं का कब्जा आज भी है.. (और तब तक रहेगा जब तक भारतवासी सोते रहेंगे).

*यह अनागरिक धम्मपाल का प्रयास था कि कुशीनगर, जहाँ तथागत का महापरिनिर्वाण हुआ था फिर से बौद्ध जगत में दर्शनीय स्थल बन गया.*

*शिकागो में संपन्न विश्व धर्म संसद जो 18 सितंबर 1893 में संपन्न हुआ था अनागरिक धम्मपाल के द्वारा बौद्ध दर्शन पर दिये भाषण से वहां पर उपस्थित दुनीया के विभिन्न धर्मों के विद्वान भौचक्के रह गए. स्वामी विवेकानन्द जी को अधिकृत निमंत्रण नहीं था। अनागारिक धर्मपाल ने बुद्ध के भूमि से आए मित्र को आयोजकों से निवेदन कर अपने भाषण के समय में से तीन मिनट का समय बोलने के लिए दिया था, धर्म-संसद में हिन्दू दर्शन पर स्वामी विवेकानंद का भाषण हुआ था. 

अनागरिक धम्मपाल ने अपने जीवन के 40 वर्षों में भारत, श्रीलंका और विश्व के कई देशों में बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के बहुत से उपाय किये.

इन्होने कई स्कूलों और अस्पतालों का निर्माण कराया. कई जगह इन्होने बौद्ध विहारों का निर्माण कराया. *सारनाथ का प्रसिद्ध महाविहार आपने ही बनवाया था.*

13 जुलाई 1931 अनागरिक धम्मपाल बाकायदा बौद्ध भिक्षु बन गये इन्होने प्रव्रज्या ली.16 जनवरी 1933 को प्रव्रज्या पूर्ण हुई और इन्होने उपसंपदा ग्रहण की.. और फिर नाम पड़ा भिक्षु देवमित्र धर्मपाल. बौद्ध धर्म के इतने बड़े पुनर्उद्धारक 29 अप्रैल 1933 को 69 वर्ष की अवस्था में इस दुनिया से विदा हो गये..इनका महाप्रयाण हो गया. 

इनकी अस्थियां पत्थर के एक छोटे से स्तूप में मूलगंध कुटी विहार में पार्श्व में रख दी गई. 

अनागरिक धम्मपाल बुद्धिष्ट जगत के एक ख्याती प्राप्त हस्ती..बौद्ध धर्म के पुनर्उद्धारक..भारत में बौद्ध धर्म के पतन के हजारो साल बाद अनागरिक धम्मपाल ही वह व्यक्ति थे जिन्होंने न सिर्फ इस देश में बौद्ध धर्म का पुन: झंडा फहराया बल्कि एशिया, यूरोप और उत्तरी अमेरिका में इसके प्रचार-प्रसार के लिए भारी काम किया.

Saturday, September 12, 2020

Original Hand Painting of Dr. B. R. Ambedkar ji - Restoring the Young Ambedkar

Hand Painting of Dr. B. R. Ambedkar ji

Based on real Old and Damaged Photos
First Collection of Three Paintings in the series - Restoring the Young Ambedkar
On Canvas Board, Acrylic, 12X16 inches, with frame courier delivery
About the Paintings - For the past sixty six years since Babasaheb Dr. B. R. Ambedkar ji has left us physically, there is nothing done to restore or recreate his old and damaged images. This initiative is the dawn of recreating him in an artistic style. Though, it’s a challenge as people have a fixed perception to see him through a single image, but also it’s a beginning of new visual grammar, which is stronger than the literary word, and has ability to give a new shift to the thinking and passion. These paintings are made in impressionist style, with lots of layers of paint, and have ability to last for centuries. A painting is an artistic work and its real experience can be felt by real view and not photos, so please don’t compare them too much with the real photos or the photo of the paintings. This is an artistic work out of love and respect of Babasaheb ji, so please don’t make any negative or discouraging statements.

About the Artist –
Nikhil Sablania is also a writer and filmmaker. He’s propagating thoughts of Dr. Ambedkar ji for the past eleven years. His written books include Buddha ka path (the path of the Buddha), Dalit ki Gali (Street of a Dalit, Novel), Dr. Ambedkar aur Bauddh Dhamma (Dr. Ambedkar and the Dhamma of the Buddha), translated following books of Dr. Ambedkar ji in Hindi, Achhut aur Isayee Dharma (Untouchables and Christianity), Jaati ka Sanhaar (Annihilation of Caste), Bharat me Jatiya (Castes in India) and Shudra Kaun the (Who Were the Shudras). All his books are available online for free to read on www.ambedkartimes.blogspot.com. To make English available to all and to the rural Indians, he’s giving free English classes online which can be seen on YouTube channel, Angrezi Me Kehte Hai Ki. As a filmmaker he has made documentaries on Buddhism and social issues like problems of water (Thirsty City) and Autism (Challenge), animation film on Buddhism – Enlightened Love and , Checkmate, and short films on social issues. This series of paintings is first of its kind by recreating Dr. Ambedkar ji through colors in 21st century. Nikhil Sablania says, ‘When I make paintings of Dr. Ambedkar ji, I actually wanted to see him in reality. It is like meeting him in real. I change those many times to get the best of the result. And each time I see him like meeting him in person next day. This is a challenging but a spiritual work, as I’m with him through his thinking for the past eleven years and these paintings are perhaps a way to communicate with him.’

M. +91 8851188170, WA. 8447913116 sablanian@gmail.com www.nikhilsablania.com
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