Saturday, January 30, 2016

मनुवादियों के अत्याचार से परेशान होकर 80,000धानक मुसलमान बन गये थे

अम्बेडकर जयंति को महत्व दें क्यों ब्राह्मणों का महिमामंडन कर रहे हैं। महायोद्धा झिलकारीबाई कोरी धानक समाज की है मगर गुणगान ब्राह्मणी लक्ष्मीबाई-कुलकर्णी पत्नी गंगाधर-पंत का कर रहे हैं
महाराज शिवाजी शुद्र-समाज के हैं और गुणगान पेशवा ब्राह्मण बाजीराव-मस्तानी का कर रहे हैं
सामाजिक व आर्थिक लाभ अम्बेडकर साहब ने दिलवाए मगर मनुवादी जवाहर को चाचा व गांधी को बापू बना रहें हैं
हाकी खिलाडी ध्यानचन्द , प्रथम ओलम्पिक विजेता पहलवान   केशव-जाधव  व उडनपरी उषा भी शुद्र-समाज के हैं मगर अनेकों भारतरत्न  ब्राह्मणों को व ब्राह्मण  तेंदुलकर को दिया गया  है।
सन १८५७ की क्रांति मतादीन भंगी ने की मगर गुणगान नशेडी  ब्राह्मण मंगलपांडे का हो रहा है।
छूआछूत, भेदभाव, हत्या, अपहरण व बलात्कार मनुवादी कर रहे हैं और बदनाम मुसलमानों को किया जा रहा है
ध्यान रहे मनुवादियों के अत्याचार से परेशान होकर 80,000धानक मुसलमान बन गये थे मगर हमारा समाज मनुवादी व्यवस्था के गुण गाकर उनके बनाए मनघडंत देवी देवताओं के भजन कीर्तन कर रहा है।
कभी मनुवादियों ने हमारे समाज के लिये, मन्दिरों के दरवाजे बन्द थे और आज शासन-प्रशासन व कोर्ट-कचहरी के उच्च दरवाजे भी बन्द कर दिये हैं। और मन्दिरों में घंटे बजाने की छूट दी गयी है मगर मन्दिर के मठाधीश बनने पर आज भी प्रतिबन्ध है
जो मनुवादी ब्राह्मण कभी-भी हमारे समाज के नहीं हैं और ना ही हैं, आज भी उनके चरणों में पडकर शीश झूका रहे हैं

शिव शब्द की शब्दरचना एवं अन्य भावार्थ

शिव शब्द की शब्दरचना एवं अन्य भावार्थ :-
शिव शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है। 
पढें व जानें
"शि" शब्द शिशन के प्रथम शब्द से लिया गया है। शिशन का अर्थ लिंग, penis है
"व" शब्द वर के प्रथम शब्द से लिया है  वर का अर्थ है "सर्वश्रेष्ठ"
शिशन-वर यानी सर्वश्रेष्ठ लिंग को संक्षिप्त में शिव शब्द बना है।
शिव की तस्वीर व मूर्ति के चेहरे  में तीन लिंगो का समावेश है और शरीर मनुष्य का बताया गया है। 
०१. बटुक-लिंग यानि बालक का लिंग
 ०२ राजसी-लिंग यानी युवक का लिंग
०३ तामसिक-लिंग यानी  बुढ्ढे का लिंग
शिव के प्रतीकात्मक नाम, उपाधियां , अलंकार आदि के विभिन्न वर्णन निम्नानुसार है:-
गंगा -मूत्र की धारा, तीसरा नेत्र -लिंग का उपरी छेद, जहां से मूत्र निकलता है।
नाग-लिंग की उपरी झिल्ली, चमडी जो लिंग की गर्दन पर लिपटती है।
चन्द्रमा -लिंग के उपरी चमडी के अन्दर जमा हुआ सफेद मैल
नीलकंठ -लिंग पर उभरी नीली नसें
हलाहल-विष = वीर्य, जो बार-बार हिलाने पर निकलता है
नटराज -लिंग का अप-डाउन करना
तांडव-नृत्य =लिंग का सहवास के समय तांडव करना
प्रलय आना- सहवास के समय  उछल-कूद करना 
तीसरा नेत्र खुलना - लिंग के छेद से वीर्यपात होना
चर्म-आनन्द =वीर्यपात के समय उत्पन्न आनन्द
नंदी -अंडकोश, जिस पर लिंग सवार रहता है।
केलाश -बाल,  शब्द केलाश में केश शब्द है
भगवान -भग(योनि) को वहन करने वाला, लिंग 
त्रिलोकीनाथ -लिंग योनि, गुदा व मुख में प्रवेश करता है
शंकर -लिंग शंकु के आकार का है
शिव-लिंग =युवक का लिंग
शिव-शक्ति =बुढ्ढे का लिंग व लटकी हुई उपरी चमडी (झिल्ली)
बटुक-लिंग =बालक का लिंग
केदारनाथ -दलदल के नाथ
मलेश -मल+ईश यानी मल, गन्दगी के ईश्‍वर
गणेश -गण+ईश यानी गण, नौकर के ईश्वर यानी गण का अंश
पशुपति-नाथ=पशुओं के पति और नाथ  , नारी को पशु के समान माना है।
विभिन्न शब्दों के संक्षिप्त रुप में नाम निम्नलिखित हैं:-
विष्णु =विष्ठा-के-अणु यानी बींठ
व्राह्मण =वराह-मण यानि सूअर
रामन= राक्षसी-मन
कृष्ण- कृषक का अण, किसान 
दुर्गा =दुराचारणी-गणिका यानी वेश्या ,विषकन्या 
अजनी =अविवाहित-जननी, कुवांरी-मां 
स्वर्ग -स्वर गर्त में ,मृत्यु, इन्तकाल यानी स्वर, धडकन बंद होना 
मोक्ष =मोह का क्षय, मौत, देहान्त 
जब्कि आदिवासी गोंड-धर्म में आदि धार्मिक गुरु पहान्दि-कुपार-लिंगो ने कोया-पुनेम समाज   की स्थापना की ,  मगर मनुवादियों ने इनके धर्मस्थलों पर कब्जा कर, शिव का नाम घोषित कर दिया है और आदिवासी धर्मग्रंथों का ब्राह्मणीकरण कर दिया।

आदिवासियों के गोंड-समाज में  ज्योतिर्लिंग जो संख्या में  बारह है  और ,वे कोया पुनेम के बारह धर्मगुरु हैं।  1.पारी कुपार लिंगो , 2.रायलिंगो, 3.महारुलिंगो, 4,भिमाललिंगो , 5.कोलालिंगो , 6.हीरालिंगो , 7.तूर्पोलिंगो , 8.सुंगालिंगो , 9.राहुडलिंगो , 10.रावणलिंगो , 11.मयलिंगो , 12.आलामलिंगो  को गौतम बुद्ध को सांख्यदर्शन के शिक्षक के स्मृति रुप में पूजे जाते है ।.
लिंगो के नाम पर "शिवलिंग" शब्द प्रचलित कर दिया  है। जो उचित नहीं है। .पृथ्वी का मध्यवर्ती स्थान उज्जैन माना गया है और, जहाँ  महाकालेश्वर लिंग स्थापित है ,जबकि कब्जा मनुवादी ब्राह्मणों का है।
सिंधु घाटी की सभ्यता से प्राप्त एक मुहर पर तीन मुखों वाले एक नर - देवता का चित्र अंकित है। जिसके चारों ओर विभिन्न जानवर हैं।

इस मुहर के बारे में आर . सी . मजुमदार , एच. सी.  रायचौधरी एवं के.के.दत्त जैसे चोटी के इतिहासकारों ने लिखा है कि चित्र पर अंकित चारों ओर पशुओं की मूर्तियाँ शिव के पशुपति नाम को सार्थक करती हैं ।

मगर ऐसा है नहीं । क्योंकि  पशु का अर्थ जानवर पहले थोड़े ही न होता था । पशु का संबंध पाश ( बंधन ) से है । पाश ( मोह ) से मनुष्य भी बँधा है और पाश ( रस्सी ) से जानवर भी बँधा हुआ है । इसलिए पशु का वास्तविक अर्थ जीव है । 

मगर इतिहासकार क्या जाने भाषा का मर्म क्या है ? वह तो पशुओं से घिरा मोहर को देखकर पशुपति नाम दे बैठा और एक मनघडंत कहानी बना दी, कि एक भैंसा केदार यानी दलदल में घुस गया था। जिसका मुंह नेपाल में निकाला और भैंसे का पिछवाडा भारत में ही रह गया। इसी कारण दो मन्दिर बना दिये । एक पशुपति-नाथ नेपाल में तो दूसरा भारत में  केदारनाथ । अब भैंसे का धङ ढूंढते रहो! 
 पशुओं ( मनुष्य सहित जीवों ) का अधिपति है पशुपति  यानि पाशपति
साभार मित्र रावणराज श्याम गोंड

हे मानव मनुवादियों के वेदों, पूराणों व शास्त्रों आदि  ग्रंथों के शिव, विष्णु, दुर्गा, राम , हनुमान, गणेश, तुलसी, राधा, सत्यनारायण  आदि के अवतारवादी  नाम के साथ अपने महात्माओं, संत के नाम व अपने देवी देवताओं के नाम के साथ नहीं जोडना चाहिए और अपने  बच्चों के नाम इनके देवी देवताओं के  नाम पर नहीं  रखने चाहिए
क्योंकि इनके मूल भावार्थ घृणित, कलंकित  व अपमानित हैं

बाबा-राजहंस

आरक्षित वर्ग के विरुद्ध लगातार आरक्षण विरोधी लेख लिखना बन्द करो

एक दलित की कलम से:-
मा. गुलाब कोठारी जी,
प्रधान संपादक,
राजस्थान पत्रिका,
जयपुर।

विषय:- आरक्षित वर्ग के विरुद्ध लगातार आरक्षण विरोधी लेख लिखना बन्द करो।

मान्यवर,

            उपर्युक्त विषयांतर्गत सविनय निवेदन है कि राजस्थान पत्रिका आरक्षित वर्ग के विरुद्ध लगातार संपादकीय लेख और समाचार छाप रहा है। आप का अखबार एक मनुवादी सोच को प्रदर्शित कर रहा है और जातिगत भेद-भाव की नीति पर कार्य कर रहा है। इसके अलावा आपका अखबार वक्त-वक्त पर आरक्षण से जुड़ी गलत जानकारियां भी पेश कर रहा है। जिससे लोगों में आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर विरोधाभास की स्थिति पैदा हो जाती है। अगर आप अखबार के एक हिस्से पर आरक्षण की कमियां लिखते हो तो आपका नैतिक कर्तव्य बनता है कि अखबार के दूसरे हिस्से पर आपको आरक्षण के फायदों को भी दर्शाने चाहिए।
                     
हम सबसे पहले आपको आरक्षण के मूल भाव से रूबरू करवाना चाहते है क्योंकि आपके लेखों में आरक्षण के मूल भाव की कमी हमेशा झलकती है।

आरक्षण का मूलभाव:- जो लोग आरक्षण को गरीबी से जोड़कर
देखते हैं, वो लोग दरअसल आरक्षण का मतलब ही नहीं समझते हैं। आरक्षण का अर्थ है "अधिकारों का रक्षण" होता है।

1. अब आप सोच रहें होंगे कि अधिकारों का रक्षण कैसे ? 
जवाब:- जिन लोगो को सदियों तक जातिगत भेदभाव के कारण उनके मानवीय अधिकारों से वंचित रखा गया तो देश आजाद होते समय जब संविधान तैयार हो रहा था तो ये ख्याल रखा गया कि भविष्य में उनके अधिकारों का ऐसी जातिवादी मानसिकता के कारण हनन न हो। अधिकारों के उस हनन को रोकने और अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान में आरक्षण का प्रावधान किया गया है।

2. अब आप सोच रहे होंगे कि किन मानवीय अधिकारों का हनन किया गया ?
जवाब:- इस देश के शोषित वंचित और पिछड़ों को उनके मूलभूत अधिकारों जैसे शिक्षा का अधिकार, संपत्ति का अधिकार, समानता का अधिकार, रोजगार का अधिकार से वंचित रखा गया था। जब किसी समाज को शिक्षा का अधिकार ही नहीं होगा तो वो समाज
आगे कैसे बढेगा ? उस समाज का मानसिक विकास कैसे होगा ? उस समाज में जाग्रति कैसे आएगी ? जब समाज में जाग्रति ही नहीं आएगी तो उसका विकास कैसे हो सकता है ? इस अधिकार की रक्षा के लिए शिक्षा में आरक्षण दिया गया है। शिक्षा में आरक्षण होने के बावजूद आज भी जातिवादी मानसिकता के चलते आरक्षित वर्ग के लोगो को आज भी जानबूझकर फेल कर दिया जाता है। कुछ वर्ग विशेष के लोगों को तो आज भी आरक्षित वर्ग के शिक्षा हासिल करने से बहुत बड़ा सिरदर्द होता है। अनारक्षित वर्ग के लोग तो आज भी नहीं चाहते है कि आरक्षित वर्ग शिक्षा हासिल करके अनारक्षित वर्ग के बराबर में बैठे। भूतकाल में अनारक्षित वर्ग ने आरक्षित वर्ग को संपत्ति के अधिकार से भी वंचित रखा था। आरक्षित वर्ग को संपत्ति अर्जित करने का कोई अधिकार ही नहीं था। अगर आरक्षित वर्ग कोई संपत्ति अर्जित भी कर लेते थे तो उसको ब्राह्मण और राजा कभी भी छीन सकता था। जब आरक्षित वर्ग के पास संपत्ति ही नहीं होगी तो आरक्षित वर्ग की मूलभूत आवश्यकताएं कैसे पूरी होगी ? आरक्षित वर्ग के पास पेट भरने के लिए, तन ढकने के लिए वस्त्र और सिर छुपाने के लिए घर कहाँ से आयेंगे ? ऐसी स्थिति से बचाने के लिए
संविधान में विशेष प्रावधान किये गए लेकिन आज भी अनारक्षित लोग चाहते हैं कि आरक्षित वर्ग उसी मनु काल के दौर में पहुँच जाएँ।

3. अनारक्षित वर्ग के लोगो ने आरक्षित वर्ग के लोगों को रोजगार के अवसर नहीं दिए। जब किसी पूरे समाज के पास रोजगार ही नहीं होगा तो उसका आर्थिक विकास कैसे होगा और बिना अर्थ शक्ति के कोई भी समाज किसी भी तरह की तरक्की कैसे कर सकता है ? रोजगार के अवसर देने के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किये गए है। आरक्षण का वास्तविक अर्थ है प्रतिनिधित्व होता है। सदियों तक आरक्षित वर्ग को शासन-प्रशासन के कार्यो से वंचित रखा गया जबकि जो देश के नागरिक हैं उनका सभी शासनिक और प्रशासनिक अंगों में उनकी संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व होना चाहिए। बिना सामान प्रतिनिधित्व के किसी
भी समाज के लिए न्याय की कल्पना करना बेमानी है। जो भी लोग शासन प्रशासन में बैठेंगे, वो उसी समाज का भला चाहेंगे जिस समाज का वो प्रतिनिधित्व करते हैं, जिस समाज से वो ताल्लुक रखते हैं, बाकि सभी समाज की आवश्यकताओं को वो नजरंदाज कर देंगे। आरक्षित वर्ग के साथ यही होता रहा है। जब
हमारे लोग शासन प्रशासन में ही नहीं थे तो हमको अछूत बनाकर रखा गया था। आरक्षित वर्ग को जानवरों से भी बदतर जीवन
जीने के लिए मजबूर किया गया था। ये सब इसलिए किया गया क्योंकि शासन प्रशासन में आरक्षित वर्ग का कोई प्रतिनिधि मौजूद नहीं था। अगर शासन प्रशासन में आरक्षित वर्ग का कोई प्रतिनिधि होता तो हमारे बारे में कुछ तो सोचता। कुछ तो आरक्षित वर्ग की स्थिति बेहतर होती। ऐसी स्थिति जातिगत मानसिकता के चलते
पैदा ना हो, शासन प्रशासन में सभी का प्रतिनिधित्व हो इसिलए आरक्षण का प्रावधान किया गया है। आज लोग आरक्षण का विरोध इसलिए करते हैं क्योंकि उनको लगता है कि उनके लिए
रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं जबकि वो अपनी आबादी से कई
गुना अधिक पद कब्जाए हुए हैं। आरक्षण सामाजिक न्याय का साधन है ना कि नौकरी का।

उपर्युक्त तीन बिन्दुओं को पढ़ने के बाद हमें लगता है कि आपको आरक्षण की मूलभावना समझ में आ गयी होगी। अब हम उन बिन्दुओं की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहते है जिनके बारें में आपका अख़बार समय-समय पर गलत तथ्य पेश करता है।

आपके अख़बार के तर्क कुछ इस प्रकार होते है:-

1. आरक्षण का आधार गरीबी होना चाहिए

2. आरक्षण से अयोग्य व्यक्ति आगे आते है।

3. आरक्षण से जातिवाद को बढ़ावा मिलता है।

4. आरक्षण ने ही जातिवाद को जिन्दा रखा है।

5. आरक्षण केवल दस वर्षों के लिए था।

6. आरक्षण के माध्यम से सवर्ण समाज की वर्तमान पीढ़ी को दंड दिया जा रहा है।

आपके अखबार में प्रकाशित तर्कों के जवाब प्रो. विवेक कुमार ने इस प्रकार दिए है।

पहले तर्क का जवाब:-

आरक्षण कोई गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम नहीं है, गरीबों की आर्थिक वंचना दूर करने हेतु सरकार अनेक कार्य क्रम चला रही है और अगर चाहे तो सरकार इन निर्धनों के लिए और भी कई कार्यक्रम चला सकती है। परन्तु आरक्षण हजारों साल से सत्ता एवं संसाधनों से वंचित किये गए समाज के स्वप्रतिनिधित्व की प्रक्रिया है। प्रतिनिधित्व प्रदान करने हेतु संविधान की धरा 16 (4) तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330, 332 एवं 335 के तहत कुछ जाति विशेष को दिया गया है।

दूसरे तर्क का जवाब:-

योग्यता कुछ और नहीं परीक्षा के प्राप्त अंक के प्रतिशत को कहते हैं। जहाँ प्राप्तांक के साथ साक्षात्कार होता है, वहां प्राप्तांकों के
साथ आपकी भाषा एवं व्यवहार को भी योग्यता का माप दंड मान लिया जाता है। अर्थात अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के छात्र ने किसी परीक्षा में 60 % अंक प्राप्त किये और सामान्य जाति के किसी छात्र ने 62 % अंक प्राप्त किये तो अनुसूचित जाति का छात्र अयोग्य है और सामान्य जाति का छात्र योग्य है। आप सभी जानते है कि परीक्षा में प्राप्त अंकों का प्रतिशत एवं भाषा, ज्ञान एवं व्यवहार के आधार पर योग्यता की अवधारणा नियमित की गयी है जो की अत्यंत त्रुटिपूर्ण और अतार्किक है। यह स्थापित सत्य है कि किसी भी परीक्षा में अनेक आधारों पर अंक प्राप्त किये जा सकते हैं। परीक्षा के अंक विभिन्न कारणों से भिन्न हो सकते है। जैसे कि किसी छात्र के पास सरकारी स्कूल था और उसके शिक्षक वहां नहीं आते थे और आते भी थे तो सिर्फ एक। सिर्फ एक शिक्षक पूरे विद्यालय के लिए जैसा की प्राथमिक विद्यालयों का हाल है, उसके घर में कोई पढ़ा लिखा नहीं था, उसके पास किताब नहीं थी, उस छात्र के पास न ही इतने पैसे थे कि वह ट्यूशन लगा सके। स्कूल से आने के बाद घर का काम भी करना पड़ता। उसके दोस्तों में भी कोई पढ़ा लिखा नहीं था। अगर वह मास्टर से प्रश्न पूछता तो उत्तर की बजाय उसे डांट मिलती आदि। ऐसी शैक्षणिक परिवेश में अगर उसके परीक्षा के नंबरों की तुलना कान्वेंट में पढने वाले छात्रों से की जायेगी तो क्या यह तार्किक होगा। इस सवर्ण समाज के बच्चे के पास शिक्षा की पीढ़ियों की विरासत है। पूरी की पूरी सांस्कृतिक पूँजी, अच्छा स्कूल, अच्छे मास्टर, अच्छी किताबें, पढ़े-लिखे माँ-बाप, भाई-बहन, रिश्ते-नातेदार, पड़ोसी, दोस्त एवं मुहल्ला। स्कूल जाने के लिए कार या बस, स्कूल के बाद ट्यूशन या माँ-बाप का पढाने में सहयोग। क्या ऐसे दो विपरीत परिवेश वाले छात्रों के मध्य परीक्षा में प्राप्तांक योग्यता का निर्धारण कर सकते हैं? क्या ऐसे दो विपरीत परिवेश वाले छात्रों में भाषा एवं व्यवहार की तुलना की जा सकती है? यह तो लाज़मी है कि स्वर्ण समाज के कान्वेंट में पढने वाले बच्चे की परीक्षा में प्राप्तांक एवं भाषा के आधार पर योग्यता का निर्धारण अतार्किक एवं अवैज्ञानिक नहीं तो और क्या है?

तीसरे और चौथे तर्क का जवाब:-

भारतीय समाज एक श्रेणीबद्ध समाज है, जो छः हज़ार जातियों में बंटा है और यह छः हज़ार जातियां लगभग ढाई हज़ार वर्षों से मौजूद है। इस श्रेणीबद्ध सामाजिक व्यवस्था के कारण अनेक समूहों जैसे दलित, आदिवासी एवं पिछड़े समाज को सत्ता एवं संसाधनों से दूर रखा गया और इसको धार्मिक व्यवस्था घोषित कर स्थायित्व प्रदान किया गया। इस हजारों वर्ष पुरानी श्रेणीबद्ध सामाजिक व्यवस्था को तोड़ने के लिए एवं सभी समाजों को बराबर–बराबर का प्रतिनिधित्व प्रदान करने हेतु संविधान में कुछ जाति विशेष को आरक्षण दिया गया है। इस प्रतिनिधित्व से यह सुनिश्चित करने की चेष्टा की गयी है कि वह अपने हक की लड़ाई एवं अपने समाज की भलाई एवं बनने वाली नीतियों को सुनिश्चित कर सके। अतः यह बात साफ़ हो जाति है कि जातियां एवं जातिवाद भारतीय समाज में पहले से ही विद्यमान था। प्रतिनिधित्व ( आरक्षण) इस व्यवस्था को तोड़ने के लिए लाया गया न की इसने जाति और जातिवाद को जन्म दिया है। तो जाति पहले से ही विद्यमान थी और आरक्षण बाद में आया है। अगर आरक्षण जातिवाद को बढ़ावा देता है तो, सवर्णों द्वारा स्थापित समान-जातीय विवाह, समान-जातीय दोस्ती एवं रिश्तेदारी क्या करता है? वैसे भी बीस करोड़ की आबादी में एक समय में केवल तीस लाख लोगों को नौकरियों में आरक्षण मिलने की व्यवस्था है, बाकी 19 करोड़ 70 लाख लोगों से सवर्ण समाज आतंरिक सम्बन्ध क्यों नहीं स्थापित कर पाता है? अतः यह बात फिर से प्रमाणित होती है की आरक्षण जाति और जातिवाद को जन्म नहीं देता बल्कि जाति और जातिवाद लोगों की मानसिकता में पहले से ही विद्यमान है।

पांचवे तर्क का जवाब:-

प्रायः सवर्ण बुद्धिजीवी एवं मीडियाकर्मी फैलाते रहते हैं कि आरक्षण केवल दस वर्षों के लिए है, जब उनसे पूछा जाता है कि आखिर कौन सा आरक्षण दस वर्ष के लिए है तो मुँह से आवाज़ नहीं आती है। इस सन्दर्भ में केवल इतना जानना चाहिए कि अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए राजनैतिक आरक्षण जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 में निहित है, उसकी आयु और उसकी समय-सीमा दस वर्ष निर्धारित की गयी थी। नौकरियों में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए आरक्षण की कोई समय सीमा सुनिश्चित नहीं की गयी थी।

छठे तर्क का जवाब:-

आज की स्वर्ण पीढ़ी अक्सर यह प्रश्न पूछती है कि हमारे पुरखों के अन्याय, अत्याचार, क्रूरता, छल कपटता, धूर्तता आदि की सजा आप वर्तमान पीढ़ी को क्यों दे रहे है? इस सन्दर्भ में दलित युवाओं का मानना है कि आज की सवर्ण समाज की युवा पीढ़ी अपनी ऐतिहासिक, धार्मिक, शैक्षणिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक पूँजी का किसी न किसी के रूप में लाभ उठा रही है। वे अपने पूर्वजों के स्थापित किये गए वर्चस्व एवं ऐश्वर्य का अपनी जाति के उपनाम, अपने कुलीन उच्च वर्णीय सामाजिक तंत्र, अपने सामाजिक मूल्यों, एवं मापदंडो, अपने तीज त्योहारों, नायकों, एवं नायिकाओं, अपनी परम्पराओ एवं भाषा और पूरी की पूरी ऐतिहासिकता का उपभोग कर रहे हैं। क्या सवर्ण समाज की युवा पीढ़ी अपने सामंती सरोकारों और सवर्ण वर्चस्व को त्यागने हेतु कोई पहल कर रही है? कोई आन्दोलन या अनशन कर रही है? कितने धनवान युवाओ ने अपनी पैत्रिक संपत्ति को दलितों के उत्थान के लिए लगा दिया या फिर दलितों के साथ ही सरकारी स्कूल में ही रह कर पढाई करने की पहल की है? जब तक ये युवा स्थापित मूल्यों की संरचना को तोड़कर नवीन संरचना कायम करने की पहल नहीं करते तब तक दलित समाज उनको भी उतना ही दोषी मानता रहेगा जितना की उनके पूर्वजों को।

अंत में हम आप से एक बात कहना चाहते है। हम सब जानते है कि राजस्थान पत्रिका राजस्थान का सबसे ज्यादा बिकने वाला अखबार है। आप भी जानते हो कि लाखों की संख्या में आरक्षति वर्ग के लोग भी आपके अख़बार के पाठक है। अगर आपने जल्दी ही आरक्षित वर्ग से माफ़ी नहीं मांगी तो आपके अखबार को पढ़ने वाले लोगों की संख्या में भारी कमी आ सकती है। अतः आपसे निवेदन है कि आगे से आरक्षण जैसे संवेदनशील मुद्दे पर थोड़ा सोच-समझकर लिखे तो बेहतर होगा।

"दशानन रावण " गोंडी भाषा में रावण यानि राजा को कहा जाता है ..

......" दशानन रावण "......गोंडी भाषा में रावण यानि राजा को कहा जाता है ..
विभिन्न देशों में पूजनीय दस रावण :-
01 . कई रावण ...... लँका
02 .बसेरावण ..... ईराक
03 . तहिरावण .... ईरान 
04 . कहिरावण ....मिश्र इजिप्त 
05 .दहिरावण ... सऊदी अरब
06 . अहिरावण ... अफ्रीका
07. महिरावण ... क्रोएसिया
08 .इसाहिरावण ... इस्राइल
09 .बहिरावण ... भूमध्य सागर
10 . मेरावण ...... आर्मेनिया 
ये सब गौँड़ राजा थे ।
रावण पुतला दहन का विरोध ब्राह्मणोँ ने कभी नहीँ किया जब्कि  रावणपेन को पूजने वाले में मनुवादियों के अतिरिक्त  सारणा, सैंथाल, द्राविङ व गोंड-धर्म के आदिवासी,व कुछ अनुसूचित जातियों के अलावा कुछ ओबीसी के  लोग भी करते हैँ ।...
Courtesy by Tirumal .Narayan Gajoriya Sir ...
...किसी मित्र ने सवाल खडा किया है कि रावण गोंड आदिवासी  है या ब्राम्हण? कई मित्र रावण को ब्राम्हण साबित करने मेँ लगे हुए  हैँ।
अच्छा होता अगर ये सवाल शंकराचार्य जैसे लोगो से पूछा जाये। अगर रावण ब्राम्हण होता तो हिँदू धर्म के पोषक बामन बनिया और एंटिनाधारी तथा राखी सावंत से ज्यादा मेक-अप करने वाले पाखंडी अपने ब्राह्मण  पुर्वज को हर साल नहीँ जलाते। अगर कोई मित्र रावण को ब्राम्हण मानता है तो पंडितों को रावण की औलाद मानना होगा। अगर रावण ब्राम्हण है तो विभीषण भी ब्राम्हण हुआ ! फिर जब विभीषण रावण से लात खाकर राम के पास आया तो विप्र पुजा को मर्यादा और श्रेष्ठ मानने वाला राम को भी विभीषण को दंडवत प्रणाम करना चाहिए था!  जैसे एक ब्राह्मण  दूसरे ब्राम्हणोँ को करता था । परन्तु यहाँ तो विभीषण राम को दंडवत प्रणाम करता है।  क्या राम इतना  मूर्ख था कि जो पंडित को पैर स्पर्श करवाता और मनुस्मृति का पालन नहीं करता! 
रावण को जानने के लिये गोंडवाना लैँड और गोंड-समाज को जानना जरुरी है। गोंडवाना लैँड पाँच खंड धरती को कहा गया है और यहाँ का राजा शंभु शेख को माना गया है।  जैसे गोंडी साहित्य या पेनपाटा मेँ मिलता है। शंभु शेख के शं से शंयुग=पाँच तथा भु=धरती और शेख=राजा यानि शंभु शेख मतलब पाँच खंड धरती(गोंडवाना लैँड) का राजा। गोंडियन शंभु शेख,शंभु गौरा को मानते हैँ और राजा रावण से बडा शंभु भक्त कोई है ही नहीँ ।। इसलिए रावण गोंड आदिवासी  है। रावण शब्द रावेन का बदला रुप है और अई रावेन,मईरावेन रावण(रावेन) के पुर्वज हैँ जो न सिर्फ रामायण बल्कि गोंडी साहित्य मेँ भी मिलता है और इनके नाम के साथ वेन  जुडा है और गोंडियन कुल श्रेष्ठ या जीवित बुजुर्ग को वेन=देव मानता है।  जैसे सगावेन=सगा देवता इसलिए ये तथ्य रावेन को गोंड-समाज साबित करता है। केकशी रावण की माँ द्रविङ सभ्यता की है।  जरा रामायण खोल के देखेँ और गोंड द्रविडियन हैँ। इसलिए रावण गोंड है। राजा रावेन मंडावी गोत्र का था और महारानी दुर्गावती भी मंडावी हैँ।  दोनो ने अपने अपने  शासन काल मेँ 5 तोले के सोने का सिक्का चलाये थे। महारानी दुर्गावती ने अंग्रेजों व मुस्लिम शासकों से युद्ध लडा और १५वर्ष के शासनकाल के बाद वीरगति को प्राप्त हो गयी थी। कृपया गोंड-समाज का इतिहास पढें । ये समानता है। राजा रावेन ने सोने की लंका बनवायी थी और,रानी दुर्गावती के शासन काल मेँ चलाये गये सोने के सिक्के मेँ पुलस्त लिखा है और पुलस्त वंश का रावण है।  इसलिए रावण गोंड है। मंडावी गोत्र के लोग सांप या नाग को आज भी पुजते हैँ । मंडावी गोत्र वाले ये बात जानते ही हैं कि राजा रावण के पुत्र मेघनाथ को नागशक्ति प्राप्त थी।  इसलिए नागबाण का इस्तेमाल करता था और पुजा करता था। ...मगर मनुवादियों ने नागशक्ति के बाण की बजाय शक्तिबाण प्रचारित कर दिया है।
 भारत में भारत महाद्वीप में अधिकांश  श्याम व काले वर्ण के लोग सारणा, सैंधाल, द्राविङ गोंड-समाज के सदस्य हैं
..." दशानन रावण "......गोंडी भाषा में राजा को कहा गया है।
रावण पुतला दहन का विरोध ब्राह्मणोँ ने कभी नहीँ किया है ।  मगर इसे पूजने वाले द्राविङ, सैंधवी, सारणा  गोंड-धर्म के आदिवासी  लोग रावण-दहन का विरोध  करते हैँ ।...स्मरण रहे मनुवादियों के प्रभुत्व वाले नागपुर कार्यालय में, मनुवादियों ने सन १९३२ में पूना-पैक्ट के अंतर्गत ८०% आरक्षण  रद्द होने की खुशी में पहली बार रावण-दहन कर खुशी मनाई थी। मगर हम आज मनुवादियों से ही आरक्षण व नौकरी की गुहार लगा रहे हैं
आज की पीढी नहीं जानती कि वे दशहरे के नाम पर अपने अधिकार व अपने पूर्वजों के हर साल जुलूस निकाल कर सार्वजनिक रुप से अग्नि-संस्कार कर अपमानित कर रहे हैं और मनुवादियों के त्यौहारों को विभिषण की तरहं  अपना समझने की भारी भूल कर रहे हैं। विडंबना यह भी है कि आदिवासी,से अनुसूचित जाति व ओबीसी बनकर, आरक्षण का लाभ लेने वालों की कमी नहीं है। मगर आरक्षित समाज के अधिकांश लोग अपने  रावणपेन, राजापेन. रावण-महाराजा को अपमानित कर, अपनों का शोषण व अत्याचार करने वालों के रंग में रंगे-सियार बन गये हैं। क्योंकि हमारे समाज के अधिकांश  विभिषण अभी भी जिन्दा घूम रहे हैं। 
बाबा-राजहंस
जय-भीम

चक्रव्यूह और मकडजाल

चक्रव्यूह और मकडजाल
महाभारत में चक्रव्यूह में प्रवेश करने व बाहर निकलने का मार्ग नहीं बताया गया है।
मगर चक्रव्यूह है क्या?  इसका भी विस्तृत विवरण महाभारत में  नहीं है। आओ जानें की चक्रव्यूह है क्या और इसमें प्रवेश करने व बाहर निकलने का उपाय क्या है:-
चक्रव्यूह की रचना मकडी द्वारा बनाए मकडजाल से प्रेरित है और संस्कृत भाषा में चक्रव्यूह को मकडजाल बताया गया है।
मकडी की अधिकतम आठ आंखें होती हैं। जब्कि   चक्रव्यूह के आठ सेनापति बताये गये हैं।
मकडी के न्यूनतम आठ घेरे होते हैं और चक्रव्यूह में आठ स्तर के सेना के सुरक्षा घेरे  बताए गये हैं।
मकडी के अधिकतम  आठ पैर होते हैं। जब्कि चक्रव्यूह में आठ सुरक्षा सूचना स्तम्भ बताए गये हैं।
सामान्यत मकडी के मकडजाल के केन्द्र में आठ सुरक्षा स्तम्भ एक केन्द्र में जाकर मिलते हैं। जहां मकडी आठ स्तर की सूचना, आठ आंखें, आठ पैर की सहायता से जीव को मौत के घाट उतारती है। जब्कि चक्रव्यूह के  आठ स्तम्भों के केन्द्र में, आठ सूचना केन्द्र द्वारा  आठ सेनापति मिलकर आठ स्तर पर आक्रमण कर दुश्मन को मौत के घाट उतारते हैं।
चक्रव्यूह में सुरक्षित प्रवेश करने व बाहर निकलने का मार्ग क्या है :-
क्योंकि मकडजाल पर हवा, पानी, बरसात, धूल, तलवार  आदि का कोई असर नहीं होता है। जंगलों में प्रवेश के दौरान व्यक्ति को विभिन्न पेड-पौधों के जाल व जंगली जानवरों  का सामना करना पडता है। पेड-पौधों के जाल को लोहे की खुरकी से हटाया जाता है। इसलिये जंगल में प्रवेश के लिये पेड-पौधों के जाल काटने व जंगली जानवरों से आमना-सामना होने पर, व्यक्ति को समुचित हथियारों से लैस होना जरूरी है। मगर व्यापक मात्रा में  हथियार रखना एक व्यक्ति के लिये असंम्भव है।  जंगल में व्यापक रुप में फैले, मकडी के मकडजाल ,पेड-पौधों के जाल,  विभिन्न  जानवर  व छोटे-मोटे  भयानक जहरीले जानवरों  को हथियारों से हटाना नामुमकिन है।
अत: घने जंगले में व्यापक रुप से फैले, मकडी के जाल, छोटे-मोटे जहरीले जानवर व भयानक जानवरों  को भगाने व खत्म करने के लिये, एक लोहे की खुरकी व जलती मशाल का सहारा लिया जाता है। आग ही एकमात्र उपाय है, जिससे हर प्रकार के दुश्मन को दूर-दूर भगाया व जलाया जा सकता है।
जब व्यक्ति आग की सहायता से जंगल में प्रवेश कर, निवास कर सकता है तो चक्रव्यूह भला क्या चीज है। क्योंकि भडकती दावानल  से हर जीव दूर भागता है और मकडजाल तहस-नहस हो जाता है । फिर द्रोणाचार्य द्वारा बनाए  चक्रव्यूह व  सेनापति, सुरक्षा कवच आपका क्या बिगाड लेंगे । आप एक सामान्य हथियार व अग्निबाण के द्वारा  आसानी से चक्रव्यूह भेदकर, जहां-तहां  आवागमन कर सकते हैं।
ST, SC व OBC के  आर्थिक, सामाजिक, मानसिक , शैक्षणिक, व्यवसाय, शासन-प्रशासन व कोर्ट-कचहरी  पर विजय प्राप्त  करने के लिये, हम और हमारे बच्चों को  , बाबासाहेब अम्बेडकर के संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों से जागरूक व संगठित  होकर,  वोटबाण द्वारा मनुवादियों  के गढ को आसानी से ध्वस्त कर सकते हैं। फिर न चक्रव्यूह रहेगा न मकडजाल 
बाबा-राजहंस
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

धर्मग्रंथों के मंत्रों का आधार व नियम

_________ धर्मग्रंथों के मंत्रों का आधार व नियम(कृपया पढें) 
सम्भोग, मांसाहार , युद्ध, धार्मिक व सामाजिक नियम 
०१ गायत्री मन्त्र सम्भोग मन्त्र है।
भारत में बुद्धिज़्म की पवित्रता की वजह से वैदिक में सात्विकता आई, जैसे शाकाहार,दया,ध्यान,आयर्वेदा।
श्रीयंत्र या गायत्री यंत्र के लिये google पर
विक्किपेडिया पढ़े।
गायत्री यंत्र को 'नव योनि यंत्र' भी कहते है।

०२- ऋग्वेद में भाई-बहन यम और यमी के एक संवाद का
जिक्र किया गया है। इसमें यमी अपने भाई यम से
ही यौन संबंध बनाने के लिए ही कहती
है। जब वह
मना कर देता है तो यमी कहती है, 'वह भाई
ही
किस काम का जो अपनी बहन की इच्छा ही
पूरी न कर सके।'
देखें: ऋग्वेद- मंडल 10, सूक्त 10, स्तोत्र 1 से 14

०३------क्या गौ-भक्षण करना ब्राह्मणधर्म में निषिद्ध है ?
क्या ब्राह्मण कभी गौ-भक्षक नहीं रहा है ?
 फिर ग्रन्थ क्या कहते हैं:- 
महाभारत  यह सबसे पवित्र इतिहास ग्रन्थ है !!
उसमें ऐसा क्यों लिखा है "गौ मांस से श्राद्ध करने पर
पितरों को एक वर्ष के लिए तृप्ति मिलती है" (अनुशाशनपर्व 88/5)
महाभारत के वनपर्व के अनुसार "राजा रंतिदेव की रसोई केलिए प्रतिदिन दो हजार गायों को काटा जाता था"
मनुस्मृति के अद्ध्याय 5 श्लोक 35 के अनुसार 
"जो ब्राह्मण श्राद्ध में परोसे गए गौमांस को नहीं खाता वह मर कर 21 जन्मों तक पशु बनता है"

०४-- ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृतिखंड में कृष्ण के विवाह का विवरण है उस विवाह के भोज में "पांच करोड़ गायों का मांस ब्राह्मण हजम कर गए"
रुक्मणी के भाई रुक्मी उस विवाह के प्रसंग में कहता है "एक लाख गौ दो लाख हिरण चार लाख खरगोश चार लाख कछुए दस लाख बकरे तथा उनसे चौगुने भेड़ इन सब का मांस पकवाया जाये"

०५ मनु प्रत्येक वर्ष अपने ब्राह्मण सम्बन्धियों के लिए एक यज्ञ आयोजित करवाता था उस यज्ञ का वर्णन ब्रह्मवैवर्त पुराण
में है जिसके अनुसार 
"मनु के इस यज्ञ में प्रतिवर्ष 3 करोड़
ब्राह्मण की दावत होती थी उनके लिए घी में तला और अच्छी तरह पका पांच लाख गौओं का मांस तथा दूसरे चूसने चाटने तथा पीने योग्य दुर्लभ पदार्थ परोसे जाते थे"

०६--वेदों में तो ब्राह्मण के गौ भक्षण के वृत्रान्त भरे पड़े हैं इन्हें पढ़कर ही स्वामी विवेकानंद ने एक बार कहा था "आप को यह जानकार हैरानी होगी की प्राचीन भारत में उसे अच्छा ब्राह्मण नहीं समझा जाता था जो गौ-भक्षण नहीं करता
था" (देखें -द कम्प्लीट वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानंद भाग-3
पृष्ट-536)

(ब) मनुस्मुर्ति में ऐसा क्या लिखा हुआ है ?
अध्याय-१
[१] पुत्री, पत्नी, माता या कन्या, युवा, व्रुद्धा किसी भी स्वरुप में नारी स्वतंत्र नही होनी चाहिए। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक)

[२] पति पत्नी को छोड सकता हैं, सुद (गिरवी) पर रख सकता हैं, बेच सकता हैं, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नही हैं। किसी भी स्थिती में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती हैं। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४५)

[३] संपति और मिल्कत के अधिकार और दावो के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी 'दास' हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपति का मालिक उसका पति, पूत्र या पिता हैं। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-९ श्लोक-४१६)

[४] ढोर, गंवार, शूद्र और नारी, ये सब ताडन के अधिकारी हैं, यानी नारी को ढोर की तरह मार सकते हैं। तुलसीदास पर भी इसका प्रभाव दिखने को मिलता हैं, वह लिखते हैं। 'ढोर,गवार और नारी, ,,,, ताडन के अधिकारी' (मनुस्मुर्तिःअध्याय-८ श्लोक-२९)

[५] असत्य जिस तरह अपवित्र हैं, उसी भांति स्त्रियां भी अपवित्र हैं, यानी पढने का, पढाने का, वेद-मंत्र बोलने का या उपनयन का स्त्रियो को अधिकार नही हैं। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-२ श्लोक-६६ और अध्याय-९ श्लोक-१८)

[६] स्त्रियां नर्कगामीनी होने के कारण वह यज्ञकार्य या दैनिक अग्निहोत्र भी नही कर सकती.(इसी लिए कहा जाता है-'नारी नर्क का द्वार') (मनुस्मुर्तिःअध्याय-११ श्लोक-३६ और ३७)

[७] यज्ञकार्य करने वाली या वेद मंत्र बोलने वाली स्त्रियों से किसी ब्राह्मण को भोजन नही लेना चाहिए, स्त्रियो द्वारा  किए हुए सभी यज्ञकार्य अशुभ होने से देवों को स्वीकार्य नही हैं। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-४ श्लोक-२०५ और २०६)

[८] मनुस्मुर्ति के मुताबिक तो, स्त्री पुरुष को मोहित करने वाली होती है (अध्याय-२ श्लोक-२१४)

[९] स्त्री पुरुष को दास बनाकर पथभ्रष्ट करने वाली हैं। (अध्याय-२ श्लोक-२१४)

[१०] स्त्री, एकांत का दुरुपयोग करने वाली होती है । (अध्याय-२ श्लोक-२१५)

[११] स्त्री संभोग के लिए किसी की उम्र या कुरुपताको नही देखती। (अध्याय-९ श्लोक-११४)

[१२] स्त्री चंचल और ह्रदयहीन,पति की ओर निष्ठारहित होती हैं। (अध्याय-२ श्लोक-११५)

[१३] स्त्री केवल शैया, आभुषण और वस्त्रो को ही प्रेम करने वाली होती है और वासनायुक्त, बेईमान, ईर्ष्याखोर , दुराचारी हैं। (अध्याय-९ श्लोक-१७)

[१४] सुखी संसार के लिए स्त्रीओ को कैसे रहना चाहिए ? इस प्रश्न के उतर में मनु कहते हैं...
- स्त्रीओ को जीवन भर पति की आज्ञा का पालन करना चाहिए। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-११५)

- पति सदाचारहीन हो, अन्य स्त्रीओ में आसक्त हो, दुर्गुणो से भरा हुआ हो, नंपुसंक हो, जैसा भी हो फ़िर भी स्त्री को पतिव्रता बनकर उसकी  देव की तरहं पूजना चाहिए। (मनुस्मुर्तिःअध्याय-५ श्लोक-१५४)

अध्याय-२
[१] वर्णानुसार करने के कार्य :
- महा तेजस्वी ब्रह्मा ने सृष्टी की रचना के लिए ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को भिन्न-भिन्न कर्म करने को तय किया हैं।

- पढ्ना, पढाना, यज्ञ  करना-कराना, दान लेना यह सब ब्राह्मण का कर्म करना हैं। (अध्यायः१:श्लोक:८७)

- प्रजा रक्षण, दान देना, यज्ञ  कराना, पढ्ना यह सब क्षत्रिय को करने के कर्म हैं। (अध्यायः१:श्लोक:८९)

- पशु-पालन, दान देना, यज्ञ  कराना, पढ्ना, सुद (ब्याज) लेना यह वेश्य को करने के कर्म हैं। (अध्यायः१:श्लोक:९०)

- द्वेष-भावना रहित, आनंदित होकर उपर्युक्त तीनो-वर्गो की नि:स्वार्थ भावना से सेवा करना, यह शूद्र का कर्म हैं। (अध्यायः१:श्लोक:९१)

[२] प्रत्येक वर्ण की व्यक्तिओ के नाम कैसे हो ? :

- ब्राह्मण का नाम मंगलसूचक - उदा. शर्मा या शंकर
- क्षत्रिय का नाम शक्ति सूचक - उदा. सिंह
- वैश्य का नाम धनवाचक पुष्टियुक्त - उदा. शाह
- शूद्र का नाम निंदित या दास शब्द युक्त - उदा. मणिदास,देवीदास। (अध्यायः२:श्लोक:३१-३२)

[३] आचमन के लिए लेनेवाला जल :

- ब्राह्मण को ह्रदय तक पहुचे उतना।
- क्षत्रिय को कंठ तक पहुचे उतना।
- वैश्य को मुहं में फ़ैले उतना।
- शूद्र को होठ भीग जाये उतना, आचमन लेना चाहिए। (अध्यायः२:श्लोक:६२)

[४] व्यक्ति सामने मिले तो क्या पूछे ? :
- ब्राह्मण को कुशल विषयक पूछे।
- क्षत्रिय को स्वाश्थ्य विषयक पूछे।
- वैश्य को क्षेम विषयक पूछे
- शूद्र को आरोग्य विषयक पूछे। (अध्यायः२:श्लोक:१२७)

[५] वर्ण की श्रेष्ठा का अंकन :
- ब्राह्मण को विद्या से।
- क्षत्रिय को बल से।
- वैश्य को धन से।
- शूद्र को जन्म से ही श्रेष्ठ मानना यानी वह जन्म से ही शूद्र हैं। (अध्यायः२:श्लोक:१५५)

[६] विवाह के लिए कन्या का चयन :
- ब्राह्मण सभी चार वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं।
- क्षत्रिय - ब्राह्मण कन्या को छोडकर सभी तीनो वर्ण की कन्याओं को पंसद कर सकता हैं।
- वैश्य - वैश्य की और शूद्र की ऎसे दो वर्ण की कन्याये पंसद कर सकता हैं।
- शूद्र को शूद्र वर्ण की ही कन्याये विवाह के लिए पंसद कर सकता हैं यानी शूद्र को ही वर्ण से बाहर अन्य वर्ण की कन्या से विवाह नही कर सकता। (अध्यायः३:श्लोक:१३)

[७] अतिथि विषयक :
- ब्राह्मण के घर केवल ब्राह्मण ही अतिथि माना  जाता हैं,  दूसरे  वर्ण की व्यक्ति नही
- क्षत्रिय के घर ब्राह्मण और क्षत्रिय ही ऎसे दो ही अतिथि माने  जाते हैं ।
- वैश्य के घर ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य तीनो द्विज अतिथि हो सकते हैं 
- शूद्र के घर केवल शूद्र ही अतिथि कहलवाता हैं और कोई वर्ण का आ ही नही सकता। (अध्यायः३:श्लोक:११०)

[८] पके हुए अन्न का स्वरुप :
- ब्राह्मण के घर का अन्न अम्रुतमय है।
- क्षत्रिय के घर का अन्न पय (दुग्ध) रुप है।
- वैश्य के घर का अन्न जौ है यानी अन्नरुप में।
- शूद्र के घर का अन्न रक्तस्वरुप हैं यानी वह खाने योग्य ही नही हैं।
(अध्यायः४:श्लोक:१४)

[९] शव  को कौन से द्वार से ले जाने चाहिए  ? :
- ब्राह्मण के शव को नगर के पूर्व के द्वार से ले जाना चाहिए 
- क्षत्रिय के शव को नगर के उत्तर के द्वार से ले जाना चाहिए 
- वैश्य के शव को पश्र्चिम के द्वार से ले जाना चाहिए 
- शूद्र के शव को दक्षिण के द्वार से ले जाएं (अध्यायः५:श्लोक:९२)

[१०] किस वर्ण को किसकी सौगंध लेने चाहिए ? :
- ब्राह्मण को सत्य की
- क्षत्रिय को वाहन की।
- वैश्य को गाय, व्यापार या सुवर्ण की।
- शूद्र को अपने पापो की सोगन्ध दिलवानी चाहिए। (अध्यायः८:श्लोक:११३)

[११] महिलाओ के साथ गैरकानूनी संभोग करने हेतू :
- ब्राह्मण अगर अवैधानिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो सिर पे मुंडन करे।
- क्षत्रिय अगर अवैधानिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो १००० कौडे का दंड करे।
- वैश्य अगर अवैधानिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी संपति को छीन ली जाये और १ साल के लिए कैद और बाद में देश निष्कासित।
- शूद्र अगर अवैधानिकक (गैरकानूनी) संभोग करे तो उसकी सभी सम्पत्ति  को छीन ली जाये और उसका लिंग काट लिया जाये।
- शूद्र अगर द्विज-जाति के साथ अवैधानिक (गैरकानूनी) संभोग करे तो उसका एक अंग काट कर उसकी हत्या कर दें। (अध्यायः८:श्लोक:३७४,३७५,३७९)

[१२] हत्या के अपराध में कोन सी कार्यवाही हो ? :
- ब्राह्मण की हत्या यानी ब्रह्महत्या महापाप (ब्रह्महत्या करने वालों को उसके पाप से कभी मुक्ति नही मिलती)
- क्षत्रिय की हत्या करने से ब्रह्महत्या का चौथे हिस्से का पाप लगता हैं।
- वैश्य की हत्या करने से ब्रह्महत्या का आठ्वे हिस्से का पाप लगता हैं।
- शूद्र की हत्या करने से ब्रह्महत्या का सोलह्वे हिस्से का पाप लगता हैं यानी शूद्र की जिन्दगी बहुत सस्ती हैं। (अध्यायः११:श्लोक:१२६)

दलित-समाज वे गणमान्य महानुभाव , जिन्होंने हिन्दू नाम का चौला पहन रखा है, उन्हें उपरोक्त नियमों का पालन करना चाहिए । वरणा उनका धर्मभ्रष्ट हो जावेगा
फेसबुक की वाल से

अंखियों के झरोखे से

अंखियों के झरोखे से
भाभियों के होते हुए भी छटी कक्षा  से ही  एक मोटी रोटी बनाकर व खाकर स्कूल जाने में खुशी होती थी।  पढाई के साथ साथ  अनेक खेलों में भाग लिया, कैप्टन सहित अनेक पदक जीते और जिले का सर्वश्रेष्ठ खिलाडी भी रहा। कुछ प्राईवेट स्कूलों ने फरी भोजन, फीस आदि का प्रलोभन भी दिये । मगर अंतिम उद्देश्य पढाई ही रहा था। तब मार्गदर्शन देने वाला कोई नहीं था। धान-मंडी के कर्ताधर्ता  समाज के चन्द व्यक्तियों को छोडकर अनेक लोगों को नहीं मालूम था कि हंसराज धानमन्डी में काम करने के अलावा  किसी स्कूल में पढता भी है। मगर यह देखकर  अफसोस होता था कि छटी से मैट्रिक कलास में एक भी धानकवीर नजर नहीं आता था- 
समाज के गण्यमान्य लोग अक्सर दारु पीकर, नटराज की मुद्रा में युवक व अधेड  गालीगलौच व आपस में  युद्ध  कर, मुहल्ले का नाम रोशन करते थे और अनेक औरतें तांडव-नृत्य कर मुहल्ले में चार चांद लगाती थी जबकि  अधिकांश परिवार अभावग्रस्त थे। 
उस जमाने में  समाज के किसी भी परिवार में बकरी के अलावा एक भी गाय नहीं थी । फिर भी अपने-अपने  कच्चे घरों की लिपाई करने के लिये समाज के बच्चों व औरतों  को गाय- भैंस. का गोबर, गली-गली में आसानी से मिल जाता था। मगर तब से आज तक  समाज के अधिकांश  बच्चों को गाय का दूध नसीब नहीं होता है। फिर भी हमारे  समाज के अनेक बच्चों से युवक-युवतियों व समाज के बुद्धिजीवियों  ने जान-वर  गाय को माता मानकर, गाय के गोबर व मूत को खाने पीने का हक हासिल कर लिया है। 
 मैंने ऐसे परिवार भी देखें हैं, जिन्होंने जीते जी पिता का पूतला जलाया है और असली माँ बाप को तिलांजलि देकर इधर-उधर  छोड दिया है। मगर आज उन्ही की  धानक-समाज के वंशज  गाय को माता मानकर पूजन कर रहे हैं और सांड को बाप मानने से परहेज कर, सनातन-काल की सहयोगी बकरी से भेदभाव कर रहे हैं। जबकि न जाने कितनी माँ व अनेक बाप बनाकर पूजन कर रहे हैं।
मैंने बचपन में देखा है कि समाज के बुजुर्ग लोग पंडितों को दादा कहकर, ब्राह्मणदेवता के चरण-स्पर्श करने की कोशिश करते थे, जबकि ब्राह्मण दो गज दूर रहकर टालने की कोशिश करते थे। आज उसी पंडितों की औलाद आर्थिक दान के चक्कर में हमारे समाज के रीतिरिवाजों  में ग्रह बनकर गृह प्रवेश कर गये हैं और युवक-युवतियां ऊठबैठ के नाम पर स्वयं को धन्य समझ रही है। जातिवाद की भावना से दूर अनिल-मोहता, रमेश-गर्ग, इन्द्र-अरोडा, सुरेन्द्र-सिन्धी, मुस्ताक-अली व राजकुमार-गुलाटी मेरे बचपन के परममित्र रहे हैं  मगर  यह समीकरण  मेरी बाल बुद्धि की समझ में न तब आया और ना ही अब आया कि दान व वोटबैंक से वशीभूत होकर मनुवादी ब्राह्मण हमारे समाज से  बहुत दूर होकर, वे हमारे  कितने आस-पास मंडरा रहे हैं। 
  आज समाज के बहुत से लोग ब्राह्मण बनने की नौटंकी करते हैं। अक्सर  चटनी से रोटी खाकर और कभी चाव से मीट, मुर्गा खरीदकर तो, कभी कभार बलि के बकरे, मुर्गे व सूअर  की दावत  खाने वाले समाज के लोग, आज मांसाहारी भोजन त्याग कर फिर चटनी-शाकाहारी बनकर, कबीरजी की धुन में, गोखी की गोद में बैठकर  धन-धन सतगुरु करते हुए, सुदर्शन की तलाश में,  आशुतोष महाराज  की राधे-राधे के संग रंग-रसिया की डफली बजाकर,  वैष्णव समाज तो कुछ आर्य-समाज  में घुसपेठ कर गये हैं। मगर समाज आज भी हासिये पर खडा मनुवादियों का वोटबैंक बनकर "राम-मरा की" तपस्या कर, मनुवादी देवी देवताओं के मन्दिर के बाहर  घंटे बजा रहे हैं।

बचपन से ही भ्रमण का चाव रहा है। पढाई व नौकरी दौरान मैने तय कर लिया था कि जहाँ कहीं भी स्थानान्तरण हो जावे, वहाँ भ्रमण समझ कर जाना चाहिए । विभिन्न  जगह-जगहों के दर्शन व विभिन्न समाजों को समझने की कोशिश की। मगर कोटा, अलीगढ, कानपुर, लखनऊ, बडौदा अहमदाबाद, ,मुम्बई, दिल्ली, बीकानेर, जोधपुर आदि की हवेली, छोटे-बड़े मन्दिरों,  बडी-बडी व बहु-मंजिला इमारतों,   में  समाज के लोगों को ढूंढने की कोशिश की, मगर लगता था कि कहीं खो गया है मेरा समाज।
 बनियों व ब्राह्मणों के मुहल्ले से दूर वाल्मिकी-समाज व मुस्लिम-समाज व हमारे समाज के लोग एक-दूसरे के मुहल्ले में निवास करते देखकर, तब खुशी होती थी कि देश में अनेकता में ऐकता की मिसाल है।
 भ्रमण के दौरान  मेरे समाज के अनेक युवक क्षत्रिय वंशधारी के आवरण में लिपटे हुए भी पाये गये  हैं। मैं उन्हें हंसराज-धाणका, धानक परिचय देकर उनकी .मानसिक गुलामीपन की हीनता त्यागने की सलाह देता था। मगर हमारे समाज के अधिकांश शूरवीर झाडू को तलवार व पीपे को ढाल बनाए हुये हैं।
मैने यह भी देखा है कि  विभिन्न सम्प्रदायों के धर्मगुरुओं को गुरुधारण कर  अनुयायी (पिछलग्गू) बनने में, हमारा समाज के अधिकांश लोग  गर्व करते हैं ।  स्कूल व शिक्षक को बीच राह में  तिलांजलि  देकर, दूसरे सम्प्रदाय के धर्माधिकारी को गुरुधारण व गुरुमंत्र लेने में कोई भेदभाव नहीं करता है। हमारे समाज के अधिकांश लोग कितने कृत्घन हैं कि देश के सर्वश्रेष्ठ ,महान कर्ताधर्ता, धर्मगुरु, उद्धारक,   उपदेशक, प्रवचनकर्ता, सामाजिक व आर्थिक विकास के पोषक, संविधान निर्माता भीमराव अम्बेडकर को गुरुधारण व गुरुमंत्र लेने की बजाय, यह कहने में कोई संकोच नहीं करते हैं कि हमारे समाज का कोई धर्मगुरु नहीं है। 
 कभी कभी रिश्तेदारी व अन्य जगहों पर भ्रमण करना  होता है तो यह देखकर खुशी होती है कि समाज के बच्चे व युवक-युवतियों के जीवन स्तर में काफी सुधार आया है। समाज के शूरवीर युवकों की बजाय लडकियां शिक्षण के क्षेत्र में कहीं आगे हैं। मगर सामाजिक ,शैक्षणिक,  मानसिकता व आर्थिक विकास में कोई उल्लेखनीय  परिवर्तन नहीं हुआ है। क्योंकि नशे के कारण अनेक युवा पति अकाल के मुंह में पलायन कर गये हैं। 
आज तीसरी पीढी के कुछ बच्चे शिक्षण व दुकनदारी को महत्व देने लगे हैं और कुछ विदेशों में भी भाग्य आजमा रहे हैं। मगर  एक जगह पडे रहकर भी सामूहिक  भावना का अभी भी इन्तजार है। यह भी सत्य है कि एक ही जगह पर पडे पडे लोहे व लकडियों  में भी जंग व दीमक लगकर नष्ट हो जाते हैं। इसी कारण एक उपदेशक ने बताया है कि अच्छे भले लोगों को उजड जाना चाहिए और बेहतर  कर्म की तलाश में एक जगह से दूसरी जगहों पर भ्रमण व पलायन करना चाहिए । ताकि नई संस्कृति व नये विचारों से रुबरु होकर, हम अपने बच्चों व समाज को एक नयी दिशा दी जा सके।
हमारे समाज के बुद्धजीवियों को चाहिए कि समाज की ऐकता, सामाजिक, शैक्षणिक, मानसिक  व आर्थिक   विकास के लिये अपने-अपने प्रवचनों के पम्पलेट छपवाकर व जागरूक चार पांच किताबें  समाज के सामाजिक कार्यों में बच्चों व युवक-युवतियों के बीच वितरित करने चाहिए । अगर समाज के बच्चे हमारे पास नहीं आ सकते हैं, तो हमें अपने संदेशों के माध्यम से उनके बीच जाना चाहिए ।
मेरा यह मानना है कि समाज के सफल, बुद्धिजीवी  व्यक्तियों के प्रवचन , समाज के बच्चे व युवक-युवतियां बहुत ध्यान से सुनते हैं और पालन करते हैं।

बाबा-राजहंस 
जय-भीम

Friday, January 29, 2016

AIIMS ने अपने इतिहास में पहली बार अपने एक टीचर/प्रोफेसर/डॉक्टर को टर्मिनेट यानी बर्खास्त किया है

AIIMS ने अपने इतिहास में पहली बार अपने एक टीचर/प्रोफेसर/डॉक्टर को टर्मिनेट यानी बर्खास्त किया है. वह भी केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री के सीधे और लिखित हस्तक्षेप के कारण. 

क्या आप उनसे मिलना नहीं चाहेंगे? अगर आप चाहते है कि कोई और रोहित वेमुला न बने, तो आपको उनसे मिलना चाहिए. तमाम बड़े अखबारों में यह तो छप चुका है कि एम्स के प्रोफेसरों ने इस बर्खास्तगी का विरोध कर दिया है. अब आगे पढ़िए. 

पहले यह जानिए कि उन्हें टर्मिनेट किसने किया. यह आदेश इसी साल 6 जनवरी को जारी हुआ है. रोहित के केस की ही तरह यहां सीधे केंद्रीय स्तर से हस्तक्षेप है. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री पंडित जे. पी. नड्डा इन्वॉल्व हैं. पत्र में लिखा है कि स्वास्थ्य मंत्री की सहमति से आदेश जारी किया जा रहा है. पत्र पर डायरेक्टर एमसी मिश्रा और डिप्टी डायरेक्टर एडमिनिस्ट्रेशन वी. श्रीनिवासन के दस्तखत हैं. शिकायत मेडिसिन डिपार्टमेंट के हेड एस. के. शर्मा की है. अब इन बेचारों का क्या दोष, अगर ये सभी एक ही जाति के हैं. पत्र में बर्खास्तगी का कोई कारण नहीं बताया गया है. 

अब मिलिए डॉक्टर और एसिस्टेंट प्रोफेसर कुलदीप से. किंग्स जॉर्ज मेडिकल कॉलेज से MBBS हैं. सर्जरी और ऑर्थोपेडिक्स में स्पेशल ऑनर मिला. 2002 में ऑल इंडिया पीजी एंट्रेंस के भारत में 8th रैंकर हैं. इसलिए अनरिजर्व कैटेगरी से देश के श्रेष्ठ मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में MD में एडमिशन मिला. एम्स में सीनियर रेजिडेंट रहने के दौरान आउटस्टैडिंग सर्विस का सर्टिफिकेट मिला. अभी एम्स में एचआईवी संक्रमण के टॉप डॉक्टर होने के नाते क्लिनिक हेड कर रहे थे. प्रतिभा को देखते हुए, मेडिसिन डिपार्टमेंट का हेड बनना तय था. वे इंडियन मेडिकल प्रोफेशनल्स एसोसिएशन के जनरल सेक्रेटरी भी हैं. 

बस फिर क्या था, ब्राह्मणवादी गिरोह उन्हें निपटाने में जुट गया और जब निकाला तो कारण बताने की औपचारिकता भी नहीं निभाई. क्योंकि कोई कारण है भी नहीं. जो कारण है, वह आप फोटो में देख सकते हैं. 

लेकिन वे डॉक्टर कुलदीप को चुपचाप निगल नहीं पायेंगे. एम्स के प्रोफेसरों की एसोसिएशन ने 11 जनवरी को डॉयरेक्टर मिश्रा का घेराव किया. जनहित अभियान के साथी Raj Narayan भी जुट गए हैं. इस बारे में सारे डॉक्यूमेंट्स वे अपलोड करेंगे.

अगर इन वजहों से डॉक्टर कुलदीप कल को अमेरिका या यूरोप चले जाते हैं तो मरीजों और देश को हुए नुकसान की भरपाई नड्डा करेंगे कि मिश्रा?
~Dilip C Mandal~

जोगेन्द्रनाथ मँडल- एक ऐसा नाम जिनका हम आदिवासी,दलित,पिछड़े लोगों को शुक्रगुजार होना चाहिये

जोगेन्द्रनाथ मँडल- एक ऐसा नाम जिनका हम आदिवासी,दलित,पिछड़े लोगों को शुक्रगुजार होना चाहिये. जिन्होने बाबा साहब डॉ. आंबेडकर जी को संविधान सभा में चुनकर भेजने का काम किया. जब संविधान बनाने वाली कमेटी का चुनाव हो रहा था तो कांग्रेस के नेताओं ने कहा कि हमने बाबा साहब के लिए दरवाजे तो छोड़ो,खिड़कियां भी बंद कर दी हैं. देखते हैं बाबा साहब कहां से चुनकर संविधान सभा में पहुंचता है. जब देश के किसी भी कोने से बाबा साहब का जीतकर जाना नामुमकिन हो गया तो निराश हताश बाबा साहब को उम्मीद की किरण दिखाई महाप्राण जोगेंद्र नाथ मंडल ने. उन्होंने बाबा साहब को बंगाल से चुनाव लड़ने के लिए अपनी सीट को खाली कर दिया. और बाबा साहब को बंगाल के जैसोर खुलना से चंडालों ने जिताकर भेजा. लेकिन बाबा साहब के प्रति और देश के दलितों,आदिवासियों,पिछडों के प्रति पहले से दुर्भावना रखने वाली कांग्रेस ने भारत पाक विभाजन के समय जैसोर खुलना क्षेत्र को पाकिस्तान में शामिल करवा दिया. और बंगाल के चंडालों(नमोशूद्रों) के विस्थापन के समय देश के 18 राज्यों के बीहड़ों में फिंकवा दिया. इनको आज तक भारत का नागरिक का दर्जा नहीं दिया. इनके साथ ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि इन्होने बाबा साहब को जिताने का काम किया. आज महाप्राण जोगेंद्रनाथ मंडल जी की जयंती पर उन्हे शत शत नमन.....!!!

Thursday, January 28, 2016

बुद्ध प्रतिमाएं: बदल डाला तथागत का धर्म

बुद्ध प्रतिमाएं: बदल डाला तथागत का धर्म

15 December, 2012



आम लोगों के धर्म परिवर्तन की खबरें तो अकसर आती रहती हैं, लेकिन बिहार के नालंदा और बोधगया में बुद्ध प्रतिमाओं का ही धर्म परिवर्तन हो रहा है. यहां बौद्ध मूर्तियों को हिंदू मंदिरों में स्थापित कर उनकी हिंदू देवी-देवताओं की तरह पूजा-अर्चना हो रही है. गौतम बुद्ध की मूर्ति को तेलिया मसान की संज्ञा देकर तेल चढ़ाने, गोरैया बाबा के नाम पर बुद्ध की मूर्ति पर बलि देने, दारू चढ़ाने और देवी के नाम पर सिंदूर लगाए जाने जैसी बातें आम हैं. भगवान बुद्ध की मूर्तियों को ब्रह्मड्ढ बाबा, भैरों बाबा, विष्णु भगवान, बजरंग बली समेत कई हिंदू देवी-देवताओं के नाम पर पूजा जा रहा है.

नालंदा के वड़गांव में श्री तेलिया भंडार भैरों मंदिर के एक दृश्य पर गौर फरमाएं. यहां भगवान बुद्ध की विशाल मूर्ति स्थापित है और माना जाता है कि यहां सच्चे दिल से मांगी हर मन्नत पूरी होती है. यहां हर पहर लोगों का आना-जाना लगा रहता है और लोग बुद्ध की विशालकाय मूर्ति पर अपने बच्चों को मोटा होने, उनमें रिकेट्स, एनिमिया, सुखड़ा सहित कई तरह की बीमारियों से निजात दिलाने के लिए सरसों का तेल और सात प्रकार के अनाज चढ़ाते हैं. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है. यहां भगवान बुद्ध की तेलिया बाबा के नाम पर स्थापित मूर्ति की ख्याति स्थानीय स्तर ही नहीं, विदेशों में भी है. बड़ी संख्या में थाई और नेपाली बौद्ध यहां आकर मंत्र जाप करते हैं. बुद्ध की मूर्ति पर तेल चढ़ाते हैं और रूमाल या पेपर से मूर्ति पर लगाए गए तेल को पोंछकर अपने शरीर पर मालिश करते हैं.

वड़गांव के नवीन कुमार बताते हैं, ''श्री तेलिया भंडार भैरों मंदिर की व्यवस्था वड़गांव पंडा कमेटी करती है. मंदिर के चढ़ावे से यहां के विकास और व्यवस्था से जुड़े लोगों की रोजी-रोटी का इंतजाम किया जाता है.''

आस्था के नाम पर क्या हो रहा है, यह किसी से छिपा नहीं है लेकिन महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति, बोधगया के सचिव नंद जी दोरजी इसे लेकर एकदम साफ जवाब देते हैं, ''हम सिर्फ महाबोधि मंदिर की देखभाल करते हैं. बाहर क्या हो रहा है, इससे हमें कोई लेना-देना नहीं.'' समाजशास्त्री प्रभात कुमार शांडिल्य ने तो और भी चौंकाने वाली बात बताई. उनका कहना है, ''बोधगया स्थित महाबोधि प्रांगण में गौतम बुद्ध की पांच मूर्तियों को पांच पांडव के रूप में पूजा जा रहा है.''

गया जिले के नरौनी गांव के महादेव और गोरैया स्थान में बौद्ध स्तूप हैं. शादी या अन्य किसी धार्मिक आयोजन पर यहां के लोग गोरैया स्थान में स्थापित बुद्ध की मूर्ति पर तपावन या चढ़ावा के रूप में बकरा, मुर्गा या कबूतर की बलि देकर दारू चढ़ाना अनिवार्य बताते हैं. गोरैया स्थान के पुजारी राजकिशोर मांझी कहते हैं, ''यह परंपरा पूर्वजों से चली आ रही है.'' गया के ही नसेर गांव के ब्रह्म स्थान में ब्रह्म बाबा की नहीं बल्कि मुकुटधारी बुद्ध की मूर्ति स्थापित है, जिसे गांव के लोग ब्रह्म बाबा के नाम से वर्षों से पूजते आ रहे हैं. माधुरी कुमारी अपनी सास प्यारी देवी के साथ ब्रह्म बाबा (बुद्ध की मूर्ति) की आराधना के लिए आती हैं. माधुरी की 81 वर्षीया सास प्यारी देवी बताती हैं, ''हमारी सास भी ब्रह्म बाबा के नाम से ही पूजा करती थी.''

89 वर्षीय किशुन यादव के मुताबिक, मंदिर में स्थापित मूर्ति बुद्ध भगवान की है. मंदिर के मुख्य दरवाजे पर लगाये गये लोहे के गेट में बुद्ध भगवान ही लिखा हुआ है. लेकिन हम लोग वर्षों से बुद्ध भगवान को ब्रह्म बाबा के नाम पर पूजते आए हैं. आस्था यहीं खत्म नहीं होती. वे बताते हैं, ''ये जागृत ब्रह्म हैं. चोरों ने दो बार इस मूर्ति की चोरी करने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हो सके.'' गांव के ही नंदकिशोर मालाकार बताते हैं, ''लोहे की रॉड को हुक बनाकर बुद्ध की मूर्ति को मंदिर में स्थापित किया गया है, ताकि चोर मूर्ति की चोरी न कर सके.'' यही नहीं, ग्रामीणों के आपसी सहयोग से ब्रह्म बाबा का मंदिर बनाया जा रहा है.

हालांकि बौद्ध मूर्तियों के इस हिंदूकरण को लेकर महाबोधि मंदिर मुक्ति आंदोलन समिति के राष्ट्रीय महासचिव भंते आनंद कहते हैं, ''बुद्ध को लोहे की बेडिय़ों में जकडऩा और हिंदू देवी-देवताओं की तरह पूजा करना बौद्धों का अपमान है.'' बौद्ध मूर्तियों के इस तरह हिंदू देवी-देवताओं के रूप में पूजे जाने की एक वजह उनकी उपेक्षा भी माना जाती है. शांडिल्य कहते हैं, ''जब बौद्ध धर्म का ह्रास हुआ तब जगह-जगह गांव में बिखरी मूर्तियों को अलग-अलग देवी-देवता के नाम से पूजा जाने लगा. कई जगह मंदिर भी बना दिए गए. यह काम लंबे समय से चला आ रहा है. यह सब बौद्ध धर्म को नष्ट करने की साजिश के तहत किया जा रहा है.''

दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ आर्ट्स ऐंड ऐस्टथेटिक्स में असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. वाइ.एस अलोने इसे हिंदू साम्राज्यवाद कहते हैं. वे कहते हैं, ''इस बात का पता लगाया जाना जरूरी है कि कब और कैसे हिंदू बौद्ध मूर्तियों की पूजा करने लगे. यह हिंदुओं की ओर से बहुत ही सोचा-समझा कदम है. यह एक तरह से हिंदू साम्राज्यवाद का प्रतीक है.''

गुरुआ प्रखंड के ही दुब्बा गांव स्थित भगवती स्थान में बुद्ध की कई मूर्तियां और स्तूप हैं और कई यहां-वहां बिखरे पड़े हैं. मंदिर के अहाते में स्थापित बुद्ध की मूर्तियों की यहां के लोग अलग-अलग देवी-देवताओं के रूप में पूजा करते हैं. मंदिर के गर्भगृह में स्थापित आशीर्वाद मुद्रा में लाल कपड़ों से ढके बुद्ध की आदमकद मूर्ति को यहां की महिलाएं देवी मानकर पूजती हैं. मंदिर के बाहर स्थापित बुद्ध की ही मूर्ति को विष्णु भगवान और बजरंग बली के रूप में पूजा जाता है. दुब्बा गांव की उर्मिला देवी ने सपरिवार भगवती स्थान में देवी मां की पूजा की. उन्होंने मंदिर में देवी के रूप में स्थापित बुद्ध की मूर्ति को नाक से लेकर सिर के ऊपरी हिस्से तक सिंदूर लगाया और हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार पूजा-अर्चना की. साथ में आई महिलाओं ने गीत से देवी की महिमा का गुणगान किया. दुब्बा के पूर्व मुखिया सूर्यदेव प्रसाद बताते हैं, ''अगर हम बुद्ध की इन मूर्तियों को हिंदू देवी-देवताओं के रूप में नहीं पूजते तो यह मूर्तियां भी नहीं बचतीं.''

गुरुआ प्रखंड के गुनेरी गांव में स्थित बुद्ध प्रतिमा की ठीक यही हालत है. यहां के लोग बुद्ध को भैरों बाबा के नाम पर पूजते हैं. गांव के ही सहदेव पासवान बताते हैं, ''पहले लोग इस मूर्ति पर दारू चढ़ाते और बलि देते थे. लेकिन जब से पुरातत्व विभाग ने गुनेरी को पर्यटन क्षेत्र घोषित किया है तब से दारू और बलि पर पाबंदी लग गई है. लेकिन आज भी बुद्ध भैरों बाबा के नाम पर ही पूजे जा रहे हैं.''

मगध के धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास पर शोध को अंजाम देने वाले डॉ. राकेश सिन्हा रवि ने बताया कि यहां के कई मंदिरों में हिंदू देवी-देवताओं के साथ स्थापित बुद्ध की मूर्तियों को अलग-अलग नामों से कुल देवता और लोक देवता के रूप में पूजा जा रहा है. दुब्बा, भूरहा, नसेर, गुनेरी, देवकुली, नरौनी, कुर्कीहार, मंडा, तारापुर, पत्थरकट्टी, जेठियन, औंगारी, कौआडोल, बिहटा, उमगा पहाड़, शहर तेलपा, तेलहाड़ा, गेहलौर घाटी में बुद्ध और हिंदू देवी-देवताओं में फर्क मिट गया है.

बौद्ध धर्म के इस हिंदूकरण का एक कारण बौद्ध धरोहर का इधर-उधर छितरा पड़ा होना भी है. संरक्षण की कोई व्यवस्था न होने के कारण लोग इस ऐतिहासिक धरोहर का इस्तेमाल अपने मन-माफिक कर रहे हैं.

मध्य विद्यालय दुब्बा परिसर में रखी गई बौद्ध काल की अर्द्धवृत्तिका पर महिलाएं मसाला पीसती हैं. विद्यालय परिसर में नीम के नीचे और इमामबाड़ा के पास रखे गए बौद्ध स्तूप का उपयोग यहां के लोग बैठने के लिए करते हैं. लोगों ने कई बौद्ध स्तूपों को अपने दरवाजे की शोभा के लिए स्थापित कर रखा है. अब्बास मियां ने अपनी नाली के पास बौद्ध स्तूप को इसलिए रख दिया है कि मिट्टी का कटान न हो. मोहम्मद मुस्तफा ने दरवाजे पर बैठने के लिए बौद्धकालीन अर्द्धवृत्तिका स्थापित कर रखी है. रामचंद्र शर्मा ने अनाज पीसने वाले मीलों में दो किलो से 20 किलो का बाट बौद्धकालीन पत्थर तोड़कर बनाया है. मध्य विद्यालय दुब्बा सहित गांव में निवास करने वाले हिंदू-मुसलमानों, दलितों और बडज़नों के घर-आंगनों में बौद्धकालीन कलाकृतियां, मूर्ति, स्तूप और अर्द्धवृत्तिका बहुतायत में बिखरे पड़े हैं.

भंते आनंद केंद्र सरकार पर बौद्ध स्थलों और बौद्धों की ओर ध्यान न देने का आरोप लगाते हैं. वे कहते हैं, ''भारतीय पुरातत्व विभाग को ऐसे स्थलों का सर्वेक्षण करवाकर विकास और बुद्ध से जुड़े अवशेषों को संरक्षित करना चाहिए. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बुद्ध के नाम पर कारोबार करना चाहते हैं. उन्हें बौद्धों की आस्था से कोई लेना-देना नहीं है. पटना में करोड़ों की लागत से बुद्ध स्मृति पार्क का निर्माण किया गया है, लेकिन जहां बुद्ध के अवशेष बिखरे हुए हैं, उसका संरक्षण भी नहीं हो रहा है.''

समाजसेवी रामचरित्र प्रसाद उर्फ विनोवा ने महाबोधि मंदिर प्रबंधकारिणी समिति, बोधगया और यहां के विदेशी महाविहारों पर टिप्पणी करते हुए कहा, ''बोधगया में जितने भी बौद्ध विहार हैं, वे बौद्ध धर्म के प्रति समर्पित नहीं हैं बल्कि इसे कारोबार बनाकर बैठे हैं.'' सबके अपने तर्क-वितर्क हो सकते हैं लेकिन यह बात हकीकत है कि विरासत का धर्म बदल रहा है

अमेरिका में संघ को आतंकी संगठन घोषित करने की मांग

अमेरिका में संघ को आतंकी संगठन घोषित करने की मांग

एजेंसी / न्यूयॉर्कUpdated @ 8:54 PM IST



एक सिख अधिकार संगठन ने अमेरिका की एक अदालत में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित करने के लिए याचिका दायर की है। दक्षिणी न्यूयॉर्क जिले में स्थित संघीय अदालत ने इस याचिका पर अमेरिकी विदेश मंत्री जॉन कैरी को नोटिस जारी कर 60 दिनों के भीतर जवाब मांगा है।

सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) नामक संगठन ने अपनी अर्जी में अदालत से संघ को विदेशी आतंकी संगठन घोषित करने की मांग की। संगठन ने अपनी याचिका में आरोप लगाया है, 'आरएसएस फासीवादी विचारधारा में विश्वास करता है तथा भारत को एक ही प्रकार की धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान वाला हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए आवेशपूर्ण, विद्वेषपूर्ण तथा हिंसक अभियान चला रहा है।'

सिख संगठन ने कहा, 'आरएसएस ईसाइयों और मुसलमानों को जबरन हिंदू बनाने के लिए अपने 'घर वापसी' अभियान के कारण सुर्खियों में बना हुआ है। अदालत से आग्रह किया गया है कि आरएसएस, इससे संबद्ध संस्थाओं और इसके सहयोगी संगठनों को विदेशी आतंकवादी संगठन के रूप में घोषित किया जाना चाहिए।

आरएसएस पर निशाना साधते हुए कहा गया कि बाबरी मस्जिद विध्वंस, स्वर्ण मंदिर में सेना के अभियान के लिए उकसाने, 2008 में गिरजाघरों को जलाने तथा ईसाई ननों से बलात्कार और 2002 में गुजरात दंगों में आरएसएस की संलिप्तता रही है।

66 साल बाद ही सही संविधान खरीदकर

66 साल बाद ही सही संविधान खरीदकर

गणतंत्र मनाने की शुरूआत करें।


लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'

26 जनवरी, 2016 को हम गण्तंत्र दिवस मनाने जा रहे हैं। गण्तंत्र को समझने से पहले हमें आजादी को समझना जरूरी है। 'स्वतंत्रता दिवस' जिसे हमें 'भारत की आजादी' बताया और पढ़ाया जाता रहा है। करोड़ों रुपया खर्च करके जिसका हर साल हम जश्न मनाते रहे हैं। दरअसल यह आजादी है ही नहीं। अर्थात् 15 अगस्त, 1947 को घटित आजादी की घटना एक ऐसी घटना थी, जो भारत के इतिहास में पहले भी अनेकों बार घटित होती रही। अर्थात् भारत की प्रजा, विभिन्न राजाओं और बादशाहों की गुलाम रहते हुए एक शासक से आजाद होकर दूसरे शासक की गुलाम बनती रही। शासक अर्थात् राजा और बादशाह बदलते रहते थे, लेकिन प्रजा गुलाम की गुलाम ही बनी रहती थी।


15 अगस्त, 1947 को भी इससे अधिक कुछ नहीं हुआ था। भारत की सत्ता गोरे अंग्रेजों से काले अंग्रेजों को स्थानान्तरित कर दी गयी गयी। आम लोग 15 अगस्त, 1947 से पहले जैसे थे, वे वैसे के वैसे ही रहे। उनकी स्थिति और जीवन में कोई मौलिक या प्रत्यक्ष बदलाव नहीं आया। यद्यपित भारत के आदिवा​सी कबीलों में गण और गणतंत्रात्मक शासन व्यवस्था का स्पष्ट उल्लेख मिलता है। फिर भी भारत के इतिहास में 26 जनवरी, 1950 के दिन बड़ी घटना घटी। सम्पूर्ण भारत पहली बार, एक दिन में, एकसाथ गणतन्त्र बना। यह भारत के इतिहास में अनौखी और सबसे बड़ी घटना मानी जा सकती है। हालांकि अनेक विधि-विशेषज्ञ संविधान सभा के गठन की उसकी वैधानिकता और उसकी प्राधिकारिता पर लगातार सवाल खड़े करते रहे हैं।


भारत के गणतंत्र बनते ही भारत के इतिहास में पहली बार समपूर्ण भारतीय जनता को विचार, मत और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता और आजादी के उपयोग की उम्मीद की जगी। मगर बहुत कम समय में सब कुछ निरर्थक सिद्ध हो गया। संविधान को धता बताकर बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Va-वैश्य+Sसंघी) वर्ग के शोषक मनुवादी, काले अंग्रेज और पूँजीपति मिल गए और भारत की सम्पूर्ण व्यवस्था को अपने शिकंजे में ले लिया।


1925 में जन्मा और गांधी के हत्यारे का मानसपिता (वैचारिक जन्मदाता) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) यकायक जवान हो गया। जिसका मूल मकसद सम्पूर्ण संवैधानिक व्यवस्था पर वकवास वर्ग के आर्यश्रेृष्ठ ब्राह्मणों का वर्चस्व स्थापित बनाये रखना था। संघ ने देशहित, राष्ट्रहित, जनहित, समाजहित जैसे आदर्शवादी जुमलों को लोगों की संवेदनशील भावनाओं की चाशनी में लपेटकर सारी बातों को राष्ट्रभक्ति और हिन्दू धर्म से जोड़ दिया। साथ ही भारत की संवैधानिक व्यवस्था पर कब्जा करके, समाज में अमानवीय मनुवादी मानसिकता के नये बीज बोना ​शुरू कर दिया।


केवल इतना ही नहीं संघ की कथित राष्ट्रभक्ति और हिन्दू धर्म से ओतप्रोत कट्टर विचारधारा ने हिन्दू और मुसलमान को आमने-सामने खड़ा करने की नींव रख दी। संघ द्वारा देश को हिन्दू-मुस्लिम में बांटने का अक्षम्य अपराध भी लगातार किया जाता रहा। जिसके चलते भारत का मुसलमान अपने देश में भी खुद को असुरक्षित अनुभव करने लगा। मुसलमान से देशभक्ति के सबूत मांगे जाने लगे। यह सिलसिला आज तक जारी है। मुसलमान को आतंक के पर्याय के रूप में प्रचारित किया जाने लगा। जबकि सारा संसार जानता है कि 15 अगस्त, 1947 के बाद भारत में पहली अमानवीय आतंकी घटना का जिम्मेदार कोई मुसलमान नहीं, बल्कि संघ का सदस्य रहा-'नाथूराम गोडसे' था। इतिहास गवाह है कि मोहनदास कर्मचंद गांधी, इंदिरा गांधी और राजीव गांघी तीनों की हत्याओं से मुसलमानों का कोई सरोकार नहीं रहा।


इस्लामिक आतंक का दुष्प्रचार करने वाले यहूदी, ईसाई और आर्यों को इस बात का जवाब देना चाहिये कि संसार में पहला बम किसने बनाया? क्या पहला अणु या परमाणु बम बनाने वाला कोई मुसलमान था? पहला बम जापान पर अमेरिका ने गिराया, क्या मुसलमान का इससे कोई वास्ता था? सर्वाधिक विचारणीय तथ्य यह है कि आतंक और मानवविनाश के हथियारों के निर्माण की शुरूआत किसने की? मुसलमान को आतंक का पर्याय बनाने के पीछे वही शातिर मानसिकता है जो आदिवासी को नक्सलवादी बनाने के पीछे संचालित है। कार्पोरेट घरानों का प्राकृतिक संसाधनों पर बलात् कब्जा करवाने के लिये आदिवासियों को नक्सलवादी बना कर उनको, उनकी प्राकृतिक सम्पदा जल, जमीन और जंगलों से खदेड़ कर, उन्हें उनके पूर्वजों की भू​मि, कुलदेवों, कुलदेवियों, अराध्यदेवों से बेदखल कर दिया गया। जिसके चलते प्रकृति प्रेमी आदिवासी बन्दूक उठाने का विवश हो गया। इसी प्रकार से खाड़ी देशों के तेल कुओं पर कब्जा करने के लिये पश्चिमी देशों की ओर से इस्लामिक आतंक का झूठ प्रचारित किया गया, जो अब एके-47 और एके-56 के साथ हमारे सामने पैशाचिक रूप में खड़ा हो चुका है।


कड़वा सच तो यह है कि बेशक भारत आज सैद्धांतिक रूप से आजाद और लोकतांत्रिक गणराज्य है, जो संसार के सबसे बड़े संविधान से संचालित है। मगर असल में यहां का आम व्यक्ति वकवास—वर्गी विदेशी आर्य-ब्राह्मण का गुलाम ही बना हुआ है। आज भी भारत की 90 फीसदी वंचित (MOST=Minority+OBC+SC+Tribals) आबादी के मौलिक हक 10 फीसदी बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Va-वैश्य+S-संघी) वर्ग ने बलात् बंधक बना रखे हैं। राजनैतिक दलों पर बकवास वर्ग का प्रत्यक्ष और परोक्ष कब्जा है। जिसके चलते विधायिका और कार्यपालिका इनके इशारे पर चलती है। न्यायपालिका और प्रेसपालिका (मीडिया) पर बकवास वर्ग का एकाधिकार है। प्रशासन के निर्णायक और नीति-नियन्ता पदों पर बकवास वर्ग का एकछत्र कब्जा है। 90 फीसदी वंचित (MOST=Minority+OBC+SC+Tribals) आबादी की मुश्किल से 10 फीसदी हिस्सेदारी है, जबकि 10 फीसदी बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Va-वैश्य+S-संघी) वर्ग का 90 फीसदी से अधिक संसाधनों, सत्ता और प्रशासन पर कब्जा है। इससे भी दुःखद तथ्य यह कि 10 फीसदी के हिस्सेदार 90 फीसदी वंचित मोस्ट वर्ग, शोषक बकवास वर्ग को बेदखल करने के बजाय बकवास (BKVaS=B-ब्राह्मण+K-क्षत्रिय+Va-वैश्य+S-संघी) वर्ग की अंधभक्ति करने और उनकी गुलामी करने में गौरव का अनुभव करते हैं या फिर आपस में लड़कर एक-दूसरे को नेस्तनाबूद करने में लिप्त देखे जा सकते हैं।


वंचित मोस्ट वर्ग में शामिल अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की संख्याबल की दृष्टि से ताकतवर जातियां जैसे-जाट, यादव, गूजर, कुर्मी आदि अपने आप को राजनैतिक रूप से ताकतवर समझने की गलतफहमी की शिकार हैं। परिणामस्वरूप ओबीसी जो देश की आधी से अधिक आबादी है, उसे संवैधानिक संरक्षण तथा विधायिका और प्रशासन में उचित प्रतिनिधित्व तक प्राप्त नहीं है। शोषक बकवास वर्ग ने षड्यंत्र पूर्वक न्यायपालिका के सहयोग से समस्त ओबीसी को मात्र 27 फीसदी आरक्षण में समेटकर पंगु बना दिया है। यही नहीं ओबीसी में शामिल जातियों के सामाजिक, शैक्षिणिक और आर्थिक स्तर में अत्यधिक विसंगतियाँ है। फिर भी इनको दुराशयपूर्वक एक ही वर्ग में शामिल किया गया है। जो संविधान के अनुच्छेद 14 के समानता स्थापित करने के लिये जरूरी वर्गीकरण के सिद्धान्त का सराकर उल्लंघन है। इस कारण ओबीसी जातियां आपस में लड़ने-झगड़ने में अपनी ऊर्जा और संसाधन व्यर्थ कर रही हैं। इसी का परिणाम है कि वंचित वर्ग की जाट जाति को एक झटके में ओबीसी से बाहर किया जा चुका है। भविष्य में अन्य किसी भी सशक्त दिखने वाली और बकवास वर्ग को चुनौती देने वाली किसी भी जाति को, कभी भी ओबीसी से बाहर किया जा सकता है!


अफ्रीका मूल की (जबकि डॉ. अम्बेडकर के मतानुसार आर्य) बताई जाने वाली और बकवासवर्गीय लोगों द्वारा निर्मित हालातों के कारण अस्पृश्य तथा अछूत बना दी गयी, अनेक दलित जातियों को गणतांत्रित व्यवस्था में केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। विशेषकर मेहतर जाति की बदतर स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। सुधारात्मक हालातों ने उनको मेहतर और भँगी से वाल्मीकि बेशक बना दिया हो, लेकिन आज भी सबसे हीनतर, घृणित, अभावमय और अमानवीय जीवन उनकी नियति बना हुआ है। उनके उत्थान और मुक्ति के लिए सरकार और दलित नेतृत्व ने कोई पुख्ता संवैधानिक योजना बनाकर लागू करना तो दूर, विचारार्थ प्रस्तुत तक नहीं की, न ही इस बारे में बिना पूर्वाग्रह के मंथन किया जाता है। अनुसूचित जाति वर्ग में मेहतरों को शामिल करके बेशक उनको संवैधानिक आरक्षण जरूर प्रदान कर दिया गया है, लेकिन यह भी उनके साथ धोखा ही सिद्ध हुआ है। अजा वर्ग में मेहतर जाति उसी तरह से उपेक्षित है, जैसे अजजा और ओबीसी में अनेक दुर्बल और अति पिछड़ी जातियां एवं जनजातियां लगातार उपेक्षा की शिकार होती रही हैं।


आदिवासी जो इस देश का वास्तविक आदिनिवासी है तथा भारत का असली स्वामी/मालिक है, उसे गणतंत्र भारत में इंसान तक नहीं समझा जाता है। आदिवासी मूलभूत जीवनरक्षक जरूरतों तक से महरूम है। जिसके लिये आदिवासियों के जनप्रतिनिधि और प्रशासनिक प्रतिनिधि भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। दूसरी ओर भारत की सेना द्वारा आदिवासियों को आतंकी सदृश्य नक्सली घोषित करके बेरोकटोक मारा जा रहा है। आदिवासी की मूल आदिवासी पहचान को समाप्त करने का सुनियोजित षड्यंत्र लगातार जारी है। मनुवादी मानसिकता के बकवासवर्गीय संविधान निर्माताओं ने आदिवासी को, आदिवासी से जनजाति बना दिया। संघ ने आदिवासी को वनवासी, गिरवासी और जंगली बना दिया। अब आर्य-शूद्रों (डॉ. अम्बेडकर के मतानुसार शूद्र आर्यवंशी हैं) के नेतृत्व में संचालित बामसेफ आदिवासी को मूलनिवासी जैसा बेतुका तमगा थमाना चाहता है और खुद को भारत का 'मूलनिवासी' घोषित करके भारत पर शासन करने का सपना देख रहे हैं।


जबकि भारत की नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली मनुवादी सरकार आदिवासी शब्द को ही प्रतिबंधित और निसिद्ध घोषित करके जनजातियों की सूची में गैर-आदिवासियों को शामिल करने की षड्यंत्रपूर्ण योजना पर काम कर रही है। जिस पर मूलनिवासी, वनवासी, गिरवासी आदि की एकता का राग अलापने वाले आदिवासियों के कथित शुभचिन्तक, आदिवासी जनप्रतिनिधि, प्रशासनिक प्रतिनिधि और मीडिया आश्चर्यजनक रूप से मौन धारण किये हुए हैं! आखिर क्यों? इस सवाल के जवाब में ही ही साजिश के मूल-सूत्र निहित हैं।


इन सब दुश्चक्रों और षड़यंत्रों के कारण 10 फीसदी बकवासवर्गीय मनुवादी लगातार ताकतवर होता जा रहा है। कट्टरपंथी और मनुवादी आतंक के समर्थक संघ का सीधे-सीधे भारत की सत्ता पर कब्जा हो चुका है। हम वंचितवर्गीय 90 फीसदी होकर भी बकवासवर्गीय शोषके लोगों से मुक्ति के लिए कुछ भी सार्थक नहीं कर रहे हैं। राम, रहीम, कृष्ण, विष्णू, महादेव, हनुमान, दुर्गा, भैंरूं, वाल्मीकि, बुद्ध, कबीर, रविदास, फ़ूले, गांधी, आंबेडकर, बिरसा, जयपाल मुंडा, एकलव्य, कृष्ण आदि को अपना तारणहार मानकर, अपने-अपने भगवानों और महापुरुषों के ज्ञान और विचारों को सर्वश्रेष्ठ मानकर दूसरों पर थोपने में मशगूल हैं। हम सब संवैधानिक बराबरी और अपने हकों की ढपली तो खूब बजाते हैं, लेकिन वास्तव में कोई भी किसी को हिस्सेदार नहीं बनाना चाहता। सत्य को मानना तो दूर कोई सुनना और पढ़ना तक नहीं चाहता।


जब तक किसी बात को जाना नहीं जाएगा, मानने का सवाल ही नहीं उठता। अधिकारों की बात सभी करते हैं, लेकिन कर्त्तव्यों का निर्वाह कोई नहीं करना चाहता। संविधान और संविधान निर्माता का गुणगान तो हम खूब करते हैं, लेकिन बहुत कम लोगों द्वारा संविधान को खरीदा जाता है। खरीद भी लिया तो पढा नहीं जाता। पढ लिया तो समझा नहीं जाता और समझ में भी आ गया तो अमल में नहीं लाना चाहते। जबकि इसके विपरीत हम वेद, उपनिषद, पुराण, रामायण, कुरआन, बाईबल, गीता खरीदने और पढ़ने में ही नहीं, बल्कि इनको कंठस्थ करने में गौरव तथा गरिमा का अनुभव करते हैं। आखिर-धर्म के ठेकेदारों ने हमारे दिलोदिमांग में स्वर्ग का प्रलोभन और नर्क का भय जो बिठा रखा है। बेशक आध्यात्मिक लोगों के जीवन में धर्म महत्वपूर्ण है, लेकिन भौतिक जीवन कानून और संविधान से संचालित होता है। अत: जिस दिन हमारे बच्चों के मनोमस्तिष्क में देश का संविधान होगा और लोकतंत्र की ताकत संख्याबल का अहसास होगा, उस दिन धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, गौत्र आदि के विभेद और मनुवादियों के शोषण से मुक्ति की स्थायी शुरूआत हो जायेगी और भारत में सच्चे अर्थों में गणतंत्र लागू हो जायेगा। क्या इसके लिये तैयार हैं? यदि हां तो विलम्ब किस बात का, बेशक 66 साल बाद ही सही, भारत की 90 फीसदी वंचित (MOST=Minority+OBC+SC+Tribals) आबादी के लोग 26 जनवरी, 2016 को भारत का संविधान खरीदकर गणतंत्र मनाने की शुरूआत करे! 


जय भारत। जय संविधान।

नर-नारी सब एक समान।।

@—लेखक : डॉ. पुरुषोत्तम मीणा, राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान (BAAS), नेशनल चैयरमैन-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एन्ड रॉयटर्स वेलफेयर एसोशिएशन (JMWA), पूर्व संपादक-प्रेसपालिका (हिंदी पाक्षिक), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा एवं अजजा संगठनों का अखिल भारतीय परिसंघ, दाम्पत्य विवाद सलाहकार तथा लेखन और पत्रकारिता के क्षेत्र में एकाधिक प्रतिष्ठित सम्मानों से विभूषित। वाट्स एप एवं मो. नं. 9875066111, 25.01.2016 (17.39 PM)

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भारत में जातियां हैं, जातियां राष्ट्रविरोधी हैं

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भारत में जातियां हैं, जातियां राष्ट्रविरोधी हैं
January 26, 2016, 1:00 AM IST NBT एडिट पेज in नज़रिया | अन्य
संविधान सभा में बाबा साहेब के अंतिम वक्तव्य (25 नवंबर 1949) का एक अंश

लेखक: डॉ. भीमराव आंबेडकर।।
हमें सिर्फ राजनीतिक लोकतंत्र से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। हमें अपने राजनीतिक लोकतंत्र को सामाजिक लोकतंत्र भी बनाना चाहिए। राजनीतिक लोकतंत्र तब तक स्थायी नहीं हो सकता, जब तक इसकी बुनियाद में सामाजिक लोकतंत्र न हो। सामाजिक लोकतंत्र का अर्थ क्या है? इसका अर्थ है एक ऐसी जीवन शैली, जो स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व को जीवन का मूल सिद्धांत मानती हो। इसकी शुरुआत इस तथ्य को मान्यता देकर ही की जा सकती है कि भारतीय समाज में दो चीजें सिरे से अनुपस्थित हैं। इनमें एक है समानता। सामाजिक धरातल पर, भारत में एक ऐसा समाज है जो श्रेणीबद्ध असमानता पर आधारित है। और आर्थिक धरातल पर हमारे समाज की हकीकत यह है कि इसमें एक तरफ कुछ लोगों के पास अकूत संपदा है, दूसरी तरफ बहुतेरे लोग निपट भुखमरी में जी रहे हैं।
अंतर्विरोधों भरा जीवन
26 जनवरी 1950 को हम एक अंतर्विरोध पूर्ण जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं। राजनीति में हमारे पास समानता होगी, जबकि सामाजिक और आर्थिक जीवन में हम असमानता से ग्रस्त होंगे। राजनीति में हम 'एक मनुष्य, एक वोट' और 'एक वोट, एक मूल्य' वाले सिद्धांत को मान्यता दे चुके होंगे। सामाजिक और आर्थिक जीवन में तथा अपने सामाजिक-आर्थिक ढांचे का अनुसरण करते हुए हम 'एक मनुष्य, एक मूल्य' वाले सिद्धांत का निषेध कर रहे होंगे। ऐसा अंतर्विरोधों भरा जीवन हम कब तक जीते रहेंगे? सामाजिक-आर्थिक जीवन में समानता का निषेध कब तक करते रहेंगे? अगर हम ज्यादा दिनों तक इसे नकारते रहे तो इसका कुल नतीजा यह होगा कि हमारा राजनीतिक जनतंत्र ही संकट में पड़ जाएगा। इस अंतर्विरोध को हम जितनी जल्दी खत्म कर सकें उतना अच्छा, वर्ना असमानता के शिकार लोग राजनीतिक लोकतंत्र के ढांचे को उड़ा देंगे, जिसे इस सभा ने इतनी मुश्किल से खड़ा किया है।
जिस दूसरी चीज का हमारे यहां सर्वथा अभाव है, वह है भ्रातृत्व के सिद्धांत की मान्यता। भ्रातृत्व का अर्थ क्या है? इसका अर्थ है सभी भारतीयों के बीच भाईचारे की भावना- बशर्ते भारतीयों को हम एक जनसमुदाय मानते हों। यह ऐसा सिद्धांत है जो सामाजिक जीवन को एकता और एकजुटता प्रदान करता है, लेकिन इसे हासिल करना कठिन है। कितना कठिन है, इसका अंदाजा यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ अमेरिका के संदर्भ में जेम्स ब्राइस द्वारा लिखे गए ग्रंथ अमेरिकन कॉमनवेल्थ को पढ़कर लगाया जा सकता है।
ब्राइस के ही शब्दों में- 'कुछ साल पहले अमेरिकन प्रोटेस्टेंट एपीस्कोपल चर्च के त्रिवार्षिक सम्मेलन में पूजा पद्धति के बदलाव को लेकर चर्चा चल रही थी। इस दौरान यह जरूरी पाया गया कि छोटे वाक्यों वाली प्रार्थनाओं में ऐसी एक प्रार्थना भी शामिल की जानी चाहिए, जो समूची जनता के लिए हो। न्यू इंग्लैंड के एक प्रतिष्ठित धर्माचार्य ने इसके लिए इन शब्दों का प्रस्ताव रखा- 'ओ लॉर्ड, ब्लेस अवर नेशन' (हे प्रभु, हमारे राष्ट्र पर कृपा करो)। उस शाम तो झटके में इसे स्वीकार कर लिया गया, लेकिन अगले दिन जब इसको पुनर्विचार के लिए लाया गया तो गृहस्थ ईसाइयों ने 'राष्ट्र' शब्द पर कई तरह की आपत्तियां उठा दीं। उनका कहना था कि इस शब्द के जरिए राष्ट्रीय एकता को कुछ ज्यादा ही ठोस रूप दे दिया गया है। नतीजा यह हुआ कि प्रार्थना से इस शब्द को हटा दिया गया। पुराने वाक्य की जगह जो नया वाक्य आया, वह था- 'हे प्रभु, इन संयुक्त राज्यों पर कृपा करो।'
जब यह घटना घटित हुई, उस समय तक संयुक्त राज्य अमेरिका के लोगों में एकजुटता का तत्व इतना कम था कि वे स्वयं को एक राष्ट्र नहीं महसूस कर पाते थे। अगर संयुक्त राज्य अमेरिका के लोग खुद को एक राष्ट्र नहीं मान पाते थे तो भारतीयों के लिए ऐसा मान पाना कितना मुश्किल होगा, यह बात आसानी से समझी जा सकती है। मुझे वे दिन याद हैं जब राजनीतिक मिजाज वाले भारतीय भी 'भारत के लोग' जैसी अभिव्यक्ति पर नाराजगी जताते थे। इसकी जगह 'भारतीय राष्ट्र' उन्हें कहीं बेहतर जान पड़ता था। मेरी राय है कि स्वयं को एक राष्ट्र मान कर हम बहुत बड़ी गलतफहमी पाल रहे हैं। कई हजार जातियों में बंटे हुए लोग भला एक राष्ट्र कैसे हो सकते हैं?
बंधुत्व ही आधार
जितनी जल्दी हम यह मान लें कि सामाजिक और मनोवैज्ञानिक अर्थों में हम अभी तक एक राष्ट्र नहीं बन पाए हैं, हमारे लिए उतना ही अच्छा होगा। क्योंकि इस सचाई को स्वीकार कर लेने के बाद हमें एक राष्ट्र बनने की जरूरत महसूस होगी और उसके बाद ही हम इस लक्ष्य को हासिल करने के रास्तों और तौर-तरीकों पर विचार कर पाएंगे। casteइस लक्ष्य को हासिल करना बहुत मुश्किल साबित होने वाला है- अमेरिका में यह जितना मुश्किल साबित हुआ, उससे कहीं ज्यादा। अमेरिका में जाति कोई समस्या नहीं है। भारत में जातियां हैं और जातियां राष्ट्रविरोधी हैं। सबसे पहले तो इसलिए क्योंकि ये सामाजिक जीवन में अलगाव लाती हैं। वे इसलिए भी राष्ट्रविरोधी हैं क्योंकि वे विभिन्न जातियों के बीच ईर्ष्या और द्वेष की भावना पैदा करती हैं। लेकिन अगर हम वास्तव में एक राष्ट्र बनना चाहते हैं तो हमें हर हाल में इन कठिनाइयों पर विजय पानी होगी। वह इसलिए, क्योंकि बंधुत्व तभी संभव है जब हम एक राष्ट्र हों, और बंधुत्व न हो तो समानता और स्वतंत्रता की औकात मुलम्मे से ज्यादा नहीं होगी।

द ग्रेट डॉ बाबासाहेबअंबेडकर

☝☝द ग्रेट डॉ बाबासाहेबअंबेडकर ☝☝

वर्ष 2016 डॉ बाबासाहेब  अंबेडकर की 125 जन्म वर्ष का जश्न 
गणतंत्र दिवस की अवसर पर एक तथ्य जानकारी

इंसानों को गुलाम बनाकर हज़ारों बादशाह बने हैं, लेकिन जो गुलामों को इंसान बनाए वो हैं मेरे #बाबा_साहब

डॉ बाबासाहेबअम्बेडकर विदेशों में डाक्टरेट की डिग्री पूरा करने वाले पहले भारतीय थे

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड के अनुसार डॉ बाबासाहेबअंबेडकर 64 से अधिक विषयों में महारत रखते थे जो आज तक विशव रिकॉर्ड है ,और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय, इंग्लैंड ने सन् 2011 में उन्हें विशव का सबसे प्रतिभाशाली व्यकति घोषित किया

डॉ बाबासाहब अंबेडकर 9 भाषाएँ जानते थे, मराठी (मातृभाषा),हिन्दी, संस्कृत, गुजराती, अंग्रेज़ी,पारसी,जर्मन, फ्रेंच, पाली उन्होंने पाली व्याकरण और शब्दकोष (डिक्शनरी) भी लिखी थी, जो महाराष्ट्र सरकार ने " डॉ   बाबासाहेब    अंबेडकर    राइटिंग एंड स्पीचेस वॉल्यूम .16 "में प्रकाशित की हैं। 

डॉ बाबासाहेबअंबेडकर दक्षिण एशिया में अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले पहले व्यकति थे और साथ ही दक्षिण एशिया अर्थशास्त्र में डबल डॉक्टरेट करने वाले भी वह पहले व्यकति थे

एक मात्र भारतीय जिनका फोटो ब्रिटेन स्थित लंदन संग्रहालय में कार्ल मार्क्स के साथ लगा है

डॉ बाबासाहेबअंबेडकर अर्थशास्त्र में डॉक्ट्रेट ऑफ़ साइंस करने वाले पहले भारतीय थे

यूनाइटेड नेशन ने डॉ बाबासाहेबअंबेडकर के जन्म दिन को विशव ज्ञान दिवस के रूप में मानाने का निर्णय लिया है

डॉ बाबासाहेबअंबेडकर के पास 21 विषयों में डिग्री थी जो आज तक रिकॉर्ड है,जिस में उन्होंने 9 डिग्री विदेश में और 12 डिग्री भारत में प्राप्त की है 

डॉ बाबासाहेब अंबेडकर ने वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम सदस्य रहते हुए डॉ. अंबेडकर ने पहली बार महिलाओं के लिए प्रसूति अवकाश (मैटरनल लिव) की व्यवस्था की थी उन्होंने महिलाओ को तलाक का अधिकार भी दिलवाया

:भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना सन् 1925 में डा अम्बेडकर द्वारा "हिल्टन –यंग कमीशन" को प्रस्तुत दिशा निर्देशों के आधार पर की गयी थी ,इस कमीशन का आधार डॉ बाबासाहेब अंबेडकर की किताब "रूपये की समस्या- उस का उदगम और निदान " को आधार बना के ब्रिटिश सरकार द्वारा की गयी थी ,जो उस समय पहले विशव युद्ध के बाद आर्थिक परेशानियों का सामना कर रही थी

प्रोफेसर अमर्त्य सेन, 6 भारतीय अर्थशास्त्री जिन्हे नोबल पुरुस्कार मिला उन्होंने कहा "डॉ बी आर अम्बेडकर अर्थशास्त्र में मेरे पिता है।"

13 वे वित्त आयोग की सभी रिपोर्ट के संदर्भ के मूल स्रोत,1923 में लिखित डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर पीएचडी थीसिस,"ब्रिटिश भारत में प्रांतीय वित्त विकास" पर आधारित थे

यह डॉ  बाबासाहेबअंबेडकर ही थे जिन्होंने 7 वें भारतीय श्रम सम्मेलन में यह कानून लागु करवाया की भारत में मजदूर 14 घंटे की बजाये केवल 8 घंटे काम करेंगे

दामोदर घाटी परियोजना और हीराकुंड परियोजना और सोन नदी परियोजना के निर्माता :- डॉ बाबासाहेब अंबेडकर ने ही अमेरिका के टेनेसी वैली परियोजना की तर्ज पर दामोदर घाटी परियोजना की शुरवाती रुपरेखा तैयार की ,केवल दामोदर घाटी परियोजना ही नहीं लेकिन हीराकुंड परियोजना इतना ही नहीं, सोन नदी घाटी परियोजना भी उनके द्वारा तैयार की गयी। 1945 में, डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर की अध्यक्षता में,श्रम के सदस्याें, द्वारा महानदी के प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए एक बहुउद्देशीय परियोजना में निवेश का निर्णय लिया गया था

डॉ बाबा साहब अंबेडकर की मूर्ति जापान के कोयासन यूनिवर्सिटी में , कोलंबिया यूनिवर्सिटी अमेरिका में भी लगाई गयी है

डॉ बाबासाहबअंबेडकर यह चाहते थे की भारत की नदियों को एक साथ जोड़ दिया जाये ,जिस की वजह थी की बाढ़-और सूखे की समस्या ने निबटा जा सके उन्होंने जल नीति के बारे में अनुछेद 239और 242को समझते हुए कहा था की अन्तर्राज्यीय नदी को जोड़ना और नदी घाटी को विकसित करना जनहित में अनिवार्य है जिस का दायित्व शासन का है

डॉ बाबासाहब अंबेडकर ने महिलाओं के लिए एक विवाह अधिनियम , गोद लेने,का अधिकार तलाक, शिक्षा का अधिकार आदि बनाया जिस का रूढ़िवादी समाज द्वारा विरोध किया गया लिकेन बाद में अलग अलग हिस्सों में अंबेडकर ने बनाये कानूनो को पास किया गया और लागु किया गया ,यह अम्बेडकर का भारत की महिलो के लिए योगदान था 

डॉ बाबासाहेबअम्बेडकर ने राज्यों के बेहतर विकास के लिए मध्यप्रदेश को उत्तरी और दक्षिणी भाग में बाटने का और बिहार को भी दो हिस्सों में बटाने का सुझाव सन 1955 में दिया था ,जिस पर लगभग 45सालो बाद आमाल किया गया और मध्यप्रदेश को छत्तीसगढ़ में ,और बिहार को झारखंड में बाटा गया यह थी बाबा साहब अंबेडकर की दूरदर्शिता

संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रतिष्ठित कोलंबिया विश्वविद्यालय से 2004 में अपनी स्थापना के 250 वर्ष पूरे कर लिए,और इस बात के जशन ने कोलंबिया विश्वविद्यालय ने अपने 100अग्रणी छात्रों की सूची जारी की जिस में डॉ बीअबीअसहेबआंबेडकर का नाम भी है इस के साथ ही साथ इस सूची में 6 अलग अलग देशों के पूर्व राष्ट्पति ,3 पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपतियों और कुछ नोबेल पुरस्कार विजेताओं का नाम भी है

बेल्जियम के सबसे प्रतिष्ठित और सबसे पुराने विश्वविद्यालय में से एक के यू लिउवेन ने भी भारत के संविधान दिवस के दिन 2015 में डॉ बी आर  अंबेडकर का सम्मान किया डॉ बाबासाहेब की मूर्ति यॉर्क यूनिवर्सिटी , कनाडा में भी लगाई गई है

डॉ बाबासाहेबअम्बेडकर को भारत का प्रथम कानून मंत्री होने का श्रेय भी प्रपात है

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के द्वारा ही सरकारी क्षेत्र में कौशल विकास पहल शुरू की गयी

कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई):ईएसआई श्रमिकों को चिकित्सा देखभाल,मेडिकल लीव ( बीमार हो जाने पर मिलने वाली छुट्टी ),काम के दौरान शारीरिक रूप से अक्षम हो जाने पर विभिन्न सुविधाएं प्रदान करने के लिए क्षतिपूर्ति बीमा प्रदान करता है। डॉ बाबासाहेबअम्बेडकर ने ही इस अधिनियम को बनाया था और लागु करवाया ,औरपूर्व एशियाई देशों में मजदूरो के लिए 'बीमा अधिनियम' लागु करने वाला भारत पहला देेश बना।यह डॉ बाबासाहेब आंबेडकरजी को ही संभव हो सका

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ने श्रम विभाग में रहते हुए भारत में " ग्रिड सिस्टम" के महत्व और आवश्यकता पर बल दिया,जो आज भी सफलतापूर्वक काम कर रहा है,

कर्मचारी राज्य बीमा (ईएसआई):ईएसआई श्रमिकों को चिकित्सा देखभाल,मेडिकल लीव ( बीमार हो जाने पर मिलने वाली छुट्टी ),काम के दौरान शारीरिक रूप से अक्षम हो जाने पर विभिन्न सुविधाएं प्रदान करने के लिए क्षतिपूर्ति बीमा प्रदान करता है। डॉ बाबासाहेबअम्बेडकर ने ही इस अधिनियम को बनाया था और लागु करवाया ,औरपूर्व एशियाई देशों में मजदूरो के लिए 'बीमा अधिनियम' लागु करने वाला भारत पहला देेश बना यह डॉ बाबासाहेब आंबेडकर ही संभव हो सका

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के मार्गदर्शन में श्रम विभाग ही था जिसने "केंद्रीय तकनीकी विद्युत बोर्ड" (CTPB) की स्थापना करने का निर्णय लिया बिजली प्रणाली के विकास, जल विद्युत स्टेशन साइटों, हाइड्रो-इलेक्ट्रिक सर्वेक्षण ,बिजली उत्पादन और थर्मल पावर स्टेशन की जांच पड़ताल की समस्याओं का विश्लेषण इस का प्रमुख काम थे ,

बिजली इंजीनियरों जो प्रशिक्षण के लिए विदेश जा रहे हैं,इसका श्रेय भी डॉ बाबासाहेब अम्बेडकर को जाता है जिन्होंने श्रम विभाग के एक नेता के रूप में अच्छे सबसे अच्छा इंजीनियराें को विदेश में प्रशिक्षण देने की नीति तैयार की

1942 में, डॉ बाबासाहेब आंबेडकर भारतीय सांख्यिकी अधिनियम पारित करवाया । जिस के बाद डीके पैसेंड्री ((पूर्व उप प्रधान, सूचना अधिकारी, भारत सरकार) ने अपनी किताब में लिखा की डा अम्बेडकर के भारतीय सांख्यिकी अधिनियम के बिना मैं देश में मजदूरो की स्तिथि, उनके श्रम की स्थिति,उनकी मजदूरी दर, अन्य आय, मुद्रास्फीति, ऋण, आवास, रोजगार, जमा और अन्य धन, श्रम विवाद का आकलन नहीं कर पाता।

भारतीय श्रम अधिनियम 1926 में अधिनियमित किया गया था। यह केवल ट्रेड यूनियनों रजिस्टर करने के लिए मदद करता था , लेकिन यह सरकार द्वारा अनुमोदित नहीं किया गया था, 8 नवंबर 1943 को डॉ भीमराव अम्बेडकर ट्रेड यूनियनों की अनिवार्य मान्यता के लिए इंडियन ट्रेड यूनियन (संशोधन) विधेयक लाया।

डॉ बाबासाहेबआंबेडकर ने देश में महिलाओ की स्थिति सुधरने के लिए सन् 1951 में उन्होंने 'हिंदू कोड बिल' संसद में पेश किया डॉ.बाबासाहेब आंबेडकर प्राय: कहा करते थे कि मैं हिंदू कोड बिल पास कराकर भारत की समस्त नारी जाति का कल्याण करना चाहता हूं। मैंने हिंदू कोड पर विचार होने वाले दिनों में पतियों द्वारा छोड़ दी गई अनेक युवतियों और प्रौढ़ महिलाओं को देखा। उनके पतियों ने उनके जीवन-निर्वाह के लिए नाममात्र का चार-पांच रुपये मासिक गुजारा बांधा हुआ था। वे औरतें ऐसी दयनीय दशा के दिन अपने माता-पिता, या भाई-बंधुओं के साथ रो-रोकर व्यतीत कर रही थीं।उनके अभिभावकों के हृदय भी अपनी ऐसी बहनों तथा पुत्रियों को देख-देख कर शोकसंतप्त रहते थे।

 विश्व में सबसे अधिक पुतले बाबासाहब अंबेडकर जी के हैं।

लंदन विश्वविद्यालय मे डी.एस्.सी.यह उपाधी पानेवाले पहले और आखिरी भारतीय

लंदन विश्वविद्यालय का 8 साल का पाठ्यक्रम 3 सालों मे पूरा
करनेवाले महामानव

डॉ बाबा साहेब द्वारा स्थापित शैक्षणिक संघटन, डिप्रेस क्लास एज्युकेशन सोसायटी- 14 जून 1928,
, पीपल्स एज्युकेशन सोसायटी- 8 जुलै 1945,सिद्धार्थ काॅलेज, मुंबई- 20 जून 1946,मिलींद काॅलेज, औरंगाबाद- 1 जून 1950

 डॉ बाबासाहब अंबेडकर जी ने संसद में पेश किए हुए विधेयक,महार वेतन बिल,हिन्दू कोड बिल,जनप्रतिनिधि बिल, खोती बिल, मंत्रीओं का वेतन बिल, मजदूरों के लिए वेतन (सैलरी) बिल, रोजगार विनिमय सेवा, पेंशन बिल,भविष्य निर्वाह निधी (पी.एफ्.)

तीनो गोल मेज़ परिषद में भाग लेने वाले एक मात्र नेता 

डॉ बी आर अंबेडकर ने वायसराय की कार्यकारी परिषद में श्रम सदस्य रहते हुए डॉ. अंबेडकर ने पहली बार महिलाओं के लिए प्रसूति अवकाश (मैटरनल लिव) की व्यवस्था की थी उन्होंने महिलाओ को तलाक का अधिकार भी दिलवाया

लंदन विश्वविद्यालय के पुरे लाईब्ररी के किताबों की छानबीन कर उसकी
जानकारी रखनेवाले एकमात्र आदमी 

डॉ बाबासाहब अंबेडकर को प्राप्त सम्मान,भारत रत्न, कोलंबिया यूनिवर्सिटी की और से उन्हें द ग्रेटेस्ट मैन  इन द  वर्ल्ड कहा गया ,ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा उन्हें द  यूनिवर्स मेकर कहा गया ,
सीएनएन आईबीएन, आउटलुक मैगज़ीन और हिस्ट्री (टीवी चैनल)द्वारा कराये गए एक सर्व में  आज़ादी के बाद   डॉ बी आर अंबेडकर को  बाद देश का सबसे महान व्यकति चुना गया,

डॉ बाबासाहेबआंबेडकर ने  14 अक्टूबर  1956 को नागपुर की दीक्षाभूमि अपने 600,000 अनुयायियों के साथ हिन्दू धर्म की जाति प्रथा से  तंग आकर बौद्ध धर्म अपनाया जो विशव इतिहास में आज तक का स्वय इच्छा से किया गया सबसे बड़ा धर्म परिवर्तन है 

डॉ बाबासाहब अंबेडकर जी इनकी निजी किताबो के कलेक्शन में अंग्रेजी साहित्य की  1300 किताबें,राजनितीकी  3,000 किताबें, युद्धशास्त्र की 300 किताबें, अर्थशास्त्र की 1100 किताबें,इतिहास की  2,600 किताबें, धर्म की  2000 किताबें,कानून की 5,000 किताबें ,संस्कृत की  200 किताबें,मराठी की 800 किताबें , हिन्दी की  500 किताबें,तत्वज्ञान (फिलाॅसाफी) की  600 किताबें,रिपोर्ट की  1,000, संदर्भ साहित्य (रेफरेंस बुक्स) की 400 किताबें, पत्र और भाषण की  600,जिवनीयाँ (बायोग्राफी) की  1200, एनसाक्लोपिडिया ऑफ ब्रिटेनिका- 1 से 29 खंड,एनसाक्लोपिडिया ऑफ सोशल सायंस- 1 से 15 खंड,कैथाॅलिक एनसाक्लोपिडिया- 1 से 12 खंड,एनसाक्लोपिडिया ऑफ एज्युकेशन,हिस्टोरियन्स् हिस्ट्री ऑफ दि वर्ल्ड- 1 से 25 खंड,दिल्ली में रखी गई किताबें-बुद्ध धम्म, पालि साहित्य, मराठी साहित्य की  2000 किताबें और  बाकी विषयों की 2305 किताबें थी डॉ बाबासाहब अम्बेडकरजी जब अमेरिका से भारत लौट आए तब एक बोट दुर्घटना में उनकी 32  बक्से किताबें समंदर मे डूबी।

☝☝बाबा लोग दिल में बसा के रखते है तुझे,
तेरी शोहरत किसी मीडिया की मोहताज नहीं..।।☝☝
 

..जय भीम साहब..

आरक्षण की शुरुआत 1902 में कोल्हापुर के राजा छत्रपति साहू जी महाराज ने की

तथ्यः पहली बार आरक्षण की शुरुआत 1902 में कोल्हापुर के राजा छत्रपति साहू जी महाराज ने की थी। फिर 1921 में मैसूर के महाराजा ने आरक्षण लागू किया था। 1921 में ही मद्रास प्रेसिडेंसी (वर्तमान तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल का उत्तरी हिस्सा और कर्नाटक का कुछ हिस्सा आता है।) में जस्टिस पार्टी ने आरक्षण की शुरुआत की थी। यहां गौरतलब है कि ब्राह्मण एकाधिकार को चुनौती देते हुए और उसका दमन करने के वादे के आधार पर ही जस्टिस पार्टी सत्ता में आई थी। इस तरह आरक्षण की शुरुआत राजाओं और भारतीय राजनीतिज्ञों द्वारा की गई थी।
भ्रमः 1950 में भारत के संविधान के बाद आरक्षण की शुरुआत हुई थी।
तथ्यः राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण को डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की पहल पर 1943 में ही लागू किया गया था। उन्होंने यह समझ लिया था कि अंग्रेजों के बाद जिनके हाथों में भारत की बागडोर होगी, वे अनुसूचित जातियों को आरक्षण व अन्य सहूलियत देने में हिचकिचाएंगे। यही कारण था कि वह वायसरॉय के कार्यकारी परिषद में बतौर सदस्य शामिल हुए थे।
तथ्यः आरक्षण की तीन श्रेणियां हैः
राज्यों के पदों और सेवाओं में आरक्षण (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों, यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थाओं सहित सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 12 की व्याख्यानुसार स्टेट का दर्जा प्राप्त संस्थाएं।)
शिक्षण संस्थानों की सीटों में आरक्षण।
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों में सीटों का आरक्षण। आमतौर पर जिसे राजनीतिक आरक्षण के रूप में संबोधित किया जाता है।
इनमें से केवल तीसरी श्रेणी के आरक्षण के लिए शुरू में 10 वर्षों का प्रावधान था। जबकि एक और दो श्रेणी के आरक्षण के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं थी। बहुत सारे विद्वान और ऐंकर तीसरी श्रेणी की 10 साल की समयसीमा को पहले और दूसरे श्रेणी के लिए भी बताते हैं जबकि उनके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं थी।
भ्रमः आरक्षण का उद्देश्य गरीबी खत्म करना या कम करना है।
तथ्यः संविधान के अनुसार आरक्षण का उद्देश्य गरीबी कम करना या खत्म करना कभी नहीं रहा। बेरोजगारी के समाधान हेतु आरक्षण को एक युक्ति के तौर पर कभी नहीं लिया गया। आरक्षण का उद्देश्य शासन और प्रशासन के ढांचे में असंतुलन को ठीक करना था। इसका उद्देश्य शिक्षा और चुनावी सीटों की उस संरचना को मजबूती प्रदान करना था जो भारतीय जाति व्यवस्था द्वारा निर्मित असंतुलन और असमानता के कारण बना था।
साफ शब्दों में कहा जाए तो शासन व प्रशासन में से उच्च जातियों के एकाधिकार को खत्म करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों/जनजातियों को समान अवसर उपलब्ध करवाने के लिए ही इस आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।
हालांकि इस संबंध में कई लोगों का कहना है कि आरक्षण को आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर लागू करना चाहिए, लेकिन संविधान में नहीं निर्देशित होने के कारण आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं होती है।
यह कॉन्टेंट अंग्रेजी की मास मीडिया मैगजीन के अंक 45 से लिया गया है और यहां उसका संक्षिप्त हिंदी अनुवाद पेश किया जा रहा है। मूल लेखक पी. एस. कृष्णन समाज कल्याण मंत्रालय में पूर्व सचिव रहे हैं और आरक्षण को लेकर इन्होंने बहुत काम किया है। वर्तमान में यह तेलंगाना सरकार में कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त सलाहकार हैं।

आरएसएस की सोची समझी चाल

साथियो, कल टी वी न्यूज़ पर बताया गया कि 9 अप्रैल से 19 अप्रैल तक नौ दुर्गा की तर्ज पर इस वर्ष राम का जन्म (राम नवमीं) मनाया जायेगा। यह आरएसएस की सोची समझी चाल है। ऐसा करके वे एक तीर से दो शिकार करना चाह रहे हैं. एक तरफ मंदिर बनाने की ओर एक कदम बढाएंगे वहीँ दूसरी तरफ जगह जगह राम के पंडाल लगाकर अप्रैल माह में बाबासाहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर की मनाई जाने वाली जयंती से लोगों का ध्यान हटाकर उसमें खलल डालने की कोशिश करेंगे।इसी के साथ राम के नाम पर धर्मान्ध लोगों से पैसा इकट्ठा करेंगे।
अत: आप सभी अपने-अपने जानने वालों से अनुरोध करें कि वे लोग आरएसएस के बहकावे में न आवें, अपनी कमाई एवं अमूल्य समय को राम के पंडालों में जाकर बर्बाद न करें। उन्हें यह भी बतायें कि आज जो भी हमारी स्थिति में सुधार हुआ है, वह केवल बाबा साहेब डॉ भीमराव अम्बेडकर के कारण हुआ है, किसी राम या कृष्ण के कारण नहीं हुआ है.
अतः सभी लोग इन तथाकथित भगवानों को भूलकर अपने मसीहा की जयंती को धूमधाम से मनायें तथा बाबासाहेब के दिखाए मार्ग पर चलें, उसी से हमारा भविष्य सुधरेगा।
जय भीम जय बुद्ध

ब्राह्मणों का कट्टर जातिवाद ही वर्तमान भारत का सब से बड़ा भ्रष्टाचार है..?

"ब्राह्मणों का कट्टर जातिवाद ही वर्तमान भारत का सब से बड़ा भ्रष्टाचार है..?!!"
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वर्तमान भारत में ज्यादातर लोगो की ज्यादातर समस्याओ का मुख्य कारण 'ब्राह्मणों का चालाकीपूर्ण षड्यंत्रकारी कट्टर जातिवाद' है..

यूरेशियन आर्य ब्राह्मणों ने करीब 3500 साल से भारत के बहुसंख्यक गैरब्राह्मण समुदाय के सदस्यों को क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र जैसे मुख्य तीन विभागों में ऊंच नीच के मिथ्या ख्यालो के आधार पर धर्म व भगवान के नाम चालाकीपूर्ण तरीके   से बांटा हुवा है..

वर्तमान समय में चालाक ब्राह्मणों ने जनसमर्थन पाने के लिए खुद(ब्राह्मणों) को तथा गैरब्राह्मणों को षड्यंत्रपूर्वक 'हिंदू' घोषित कर रखा है.. जानकारों को तो पता ही है कि, 'हिंदू' शब्द तो मुस्लिमो-मोगलो द्वारा पराजित भारतीयों को   गाली के रूप में दिया हुवा फारसी(पर्सियन) भाषा का अपमानजनक अर्थवाला विदेशी शब्द है, जिसका अर्थ होता है, गुलाम, लुटेरा, चोर, काला.. क्या यह कोई गर्व लेने लायक शब्दार्थ है..?!!

गैरब्राह्मणों  को 'हिंदू' शब्द से भ्रमित करके उनका जनसमर्थन प्राप्त करने के बाद जब राजतंत्र के मुख्य चार आधारस्तंभों के विविध महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्ति की बात आती है, तब ब्राह्मण जाति के लोग आपस में चालाकीपूर्ण तरीके से अधिकांश ब्राह्मणजाति के लोगो को ही नियुक्त कर लेते है..!! वर्तमान आधुनिक भारत में भी चालाक ब्राह्मणों का जातिवादी व्यवहार का यह सिलसिला लगातार ई.स.1947 से लेकर आज तक बेरोकटोक जारी है..!! 

भारतीय लोकतंत्र के शासन, प्रशासन, न्यायतंत्र व प्रचार-प्रसार तंत्र के मुख्य चाबीरूप पदों के ऊपर ब्राह्मणजाति के लोगो का और उनके प्रखर समर्थकों का वर्चस्व व नियंत्रण रहता आया है.. इसलिए वर्तमान भारत की ज्यादातर समस्याओ   के लिए ब्राह्मणों का जातिवाद जवाबदार है.. 

स्वतंत्र भारत के अबतक के प्रधानमंत्रीयों, सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों,  राष्ट्र  के तथा राज्यों के मुख्य सचिवों, राष्ट्रप्रमुखों, राज्यपालों,   देश की सुप्रीमकोर्ट से लेकर सभी छोटी बड़ी कोर्टो के न्यायधीशों, लश्कर के तीनों दलों के मुख्य अधिकारियो के लिस्ट तलास ने से ही ब्राह्मणों के कट्टर जातिवाद का पता आसानी से लग सकता है.. 

ब्राह्मणजाति के लोगो द्वारा वर्षों से खुल्लेआम चालाकीपूर्ण तरीके से चलाया जा रहा   'जातिवादी भ्रष्टाचार' अन्ना हजारे जी, बाबा रामदेव जी, केजरीवाल जी तथा अन्य गैरब्राह्मणों को क्यों नजर नहीं आता..?!! क्या ये लोग   'गैरब्राह्मणों' को बेवकूफ बना रहे है..?!! या  अपने आप को ब्राह्मणजाति द्वारा बेवकूफ बना रहे है..?!! 

करीब 97% आबादीवाले गैरब्राह्मण समुदाय के लोग पीढियों से चली आ रही ब्राह्मणों की 'जातिवादी भ्रमजाल' से जब मानसिक रूप से मुक्त होंगे, तब ही भारत में क्रांति होंगी, और भारत वास्तविक रूप से समस्याओ से मुक्त  होंगा..  भारत में ब्राह्मणों का कट्टर जातिवाद ही वर्तमान भारत का सब से  बड़ा  भ्रष्टाचार है.. 

भारत  में 'मेरिट' या 'गुणवत्ता' की आड़ में कब तक चलेगा ये 'ब्राह्मणों का कट्टर जातिवाद'..?!!

जय भारत.. जागो भारत..

देश का दुश्मन सबका दुश्मन ब्राह्मण

गुलामीचे मुळ कारण :ब्राम्हण

गुलामीचे  मुळ कारण :ब्राम्हण

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भारतात लोकशाही उदयास आली आणि तेव्हापासुन. ते आजपर्यंत लोकशाहीचे चारही स्तंभावर ब्राम्हणी व्यवस्थेचा अविरत कब्जा आहे.
१)संसद
           -संसदेत आज राष्ट्रीय पातळीवर काम करणारे चारही पक्ष ब्राम्हणांचे
१)काँग्रेस २)भाजपा ३)त्रुनमुल काँग्रेस ४)कम्युनिस्ट

आजसुद्धा बहुजनांचा एक हि पक्ष राष्ट्रीय नाहि.पण क्षेञिय पक्ष लोकसभा, विधानसभा निवडनुकित चारही ब्राम्हणी पक्षांशी साटेलोटे करतात.आणि बहुजनाशी धोकेबाजी
कारण निवडून जाताना खासदार आमचा असतो पण निवडून गेल्यानंतर तो पक्षाचा होतो
खासदार हा कायदा पारित करण्यासाठी जातो पण आमचा खासदार जांभई द्यायलाच तोंड उघडतो.
अर्थात आमचे खासदार आणि आमदार समाजापेक्षा पक्षाचे गुणगान गातात.कारण पक्षाने निवडून जातानाच त्याना ठेचून घालवलेले असतात.
(जे काम करतात त्यांना सलाम)

२)न्यायपालिका
      
     कार्मिक मंञालयाच्या रिपोर्ट नुसार न्यायव्यवस्थेत काम करणारे ३१च्या ३१उच्च सर न्यायाधीश ब्राम्हण.
अाज एखादी केस घातली तर माणूस मेल्यावर किंवा दुसर्या तिसर्या पिेढीला निकाल मिळतो.
म्हणूनच एक म्हण प्रचलित आहे 
"शहाण्या माणसाने कोर्टाची पायरी चढु नये"
याचा अर्थ कायद्याबद्दल आमच्या मनात भीती निर्माण करण्याचं काम ब्राम्हणी व्यवस्थेने केलं आहे.(अशा खूप गोष्टी आहेत)

३)प्रशासन
   
    आज भारतात आय ए एस अधिकारी ३६०० आहेत
आरक्षणानुसार
मराठा ओबीसी
 पाहिजेत१८७२ 
आहेत.      ५०
मुस्लिम व इतर
पाहिजेत.  ३७८. 
आहेत.       ००
अनुसूचीत जाति व जामाती पाहिजेत ८१०
आहेत.   ६००
आणि सर्वात भयानक
ब्राम्हण
 पाहिजेत ५४०
आहेत. २९५०

याचा अर्थ आमच्या मराठा बांधवांना आजपर्यंत सांगितले कि तुमच्या नोकर्या म्हारामांगानी पळवल्या पण म्हारामांगाच्याहि जागा पळवून नेण्याचं काम ब्राम्हणानी केलं आहे
आता राहिला शेवटचा मुद्दा
४)मिडिया

-     आज भारतात असणारे सर्व चॅनल वर ब्राम्हणी व्यवस्थेचा कब्जा आहे.
न्यूज, चिंञपट,मालिका ,क्रिकेट यामधून ब्राम्हणवाद मोठ्या प्रमाणात पसरवण्याचे काम मिडिया करताना दिसतो आहे.
ग्लोबेलचा एक नियम आहे एखादी असत्य गोष्ट वारंवार सांगितल्या ने ती सत्य वाटते म्हणून मिडिया खोटं मोठं करुन सांगत असतो.
त्यासाठी काहि उदाहरणे देतो.
आज टीव्ही चॅनल वर सात ते दहा या वेळेत ज्या मालिका दाखविल्या जातात त्यातुन सररास व्यभिचार शिकवला जातो.ज्या घरातील स्ञि गुलाम ते कुटुंब गुलाम होत
बहुजन संमाजातिल स्ञियाना व्यभिचारी बनवि्याचं षड् यं ञ मालिकांच्य माध्यमातुन होत आहे.
एका. एका बाईचे चार चार नवरे
चार चार बायका
काय घ्यायचा आदर्श ?

आमच्या स्ञियानी,मुलिंनी?

विदेशात करमणुकीचे चार टक्के दाखविले जाते आणि भारतात ९४%
कसा सुधारणार समाज?

आज अन्याय,अत्यचार, बलात्कार याला जबाबदार ब्राम्हण आहे.
पण आम्ही षंड् झालो आहोत.
आमच्या भावना बोथट झाल्या आहेत.आपल्या पोराबाळांना सोबत घेऊन उघड्या नागड्या ब्राम्हण पोरिंचा अश्लील  नाच बघणार्या बापाला अाज आम्ही समजावून सांगतो तेव्हा आमचं बोलणं जहाल वाटतं  
.गुळगुळीत आणि बुळबुळीत बोलून लोकं जागी होणार नाहीत तर जहाल बोलून जा्ग्रुत करणार्यांना आम्हि नालायक ठरवतो.

ज्या संविधानात बहुजन समाजाचं ,आमचं भविष्य लपलं आहे.ते डोळ्यासमोर संपत आहे.
तरीही आम्हि थंड.
कलम क्रम ४५नुसार आम्हाला प्राथमिक शिक्षण सक्तीचं आणि मोफत केलं त्याचं खाजगीकरण केलं
पहिली ते आठवी परिक्षा बंद केल्या
आमच्या पोरास्नि आय आय टी, आय आय एम, इस्ञो, माहितच करु दिलं नाहि आमची पोरं आय टी आय करुन कामगार होण्याचं स्वप्न बघतात
पण कलेक्टर बनण्याचं त्याचं स्वप्न ब्राम्हणी व्यवस्थेनं हिसकावून घेतल आहे.खाजगीकरण जागतिकिकरण, उधारिकरण करुन आम्हाला मातीमोल केलं आणि उद्योगपतिना मालामाल.
येणार्या काळात आपल्या डोळ्यासमोर आमची पोरं टाचा घासुन मरतील आणि आम्ही फक्त आसुसल्या नजरेनं पाहत राहू.
आज सरकारी, निमसरकारी नोकरदारानी सुद्धा आविर्भावात राहण्याची गरज नाहि कारण त्यांचे तर खुप हाल होणार आहेत

म्हणून आज लोकांना आम्ही खर्या गोष्टी सोशल मिडियाच्य माध्यमातून सांगत असतो कारण ब्राम्हण सोशल मिडियावर बंदि घालु शकत नाहि .
पण. आज आमची पोर सोशल मिडिया फक्त गुळगुळित बोलण्यासाठि,गप्पा मारण्यासाठी वापरतात, ग्रुपवर जेवलास का ?
जोक्स, टाकून चैनी, गम्मतीचं जीवन जगू इच्छितात.
पण. हि वेळ गम्मत करण्याची नाहि तर स्वताच्या डोक्यावर स्वताचा मेंदू ठेऊन विचार करण्याची आहे.
नाहीतर काळ आपल्याला माफ करणार नाहि.
कारण आमचा शञु कोणी मुस्लिम,जैन,लिंगायत,बौद्ध, ख्रिश्चन बहुजन नाहीत तर
आमचा एकच शञु ब्राम्हण 

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कदाचित आपल्याला माझी भाषा पचेल न पचेल पण तर्काची भाकरी  विचारांच्या चटणीसोबत एकदा खाऊन बघा. नाहीच पचली तर उलटी करुन थुकुन टाका.

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विद्रोहि दिपक

गलत बोल रही हैं स्‍मृति ईरानी, मैंने सजा का समर्थन नहीं किया : प्रोफेसर प्रकाश बाबू

गलत बोल रही हैं स्‍मृति ईरानी, मैंने सजा का समर्थन नहीं किया : प्रोफेसर प्रकाश बाबू

Reported by Uma Sudhir | Updated: Jan 22, 2016 00:58 IST

हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी में छात्र कल्‍याण के डीन प्रोफेसर प्रकाश बाबू
हैदराबाद: हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के एक वरिष्‍ठ प्रोफेसर प्रकाश बाबू ने मानव संसाधन विकास मंत्री स्‍मृति ईरानी के उस दावे को पूरी तरह से खारिज कर दिया है जिसमें मंत्री ने दलित छात्र रोहित वेमुला के निलंबन के फैसले में प्रोफेसर का भी हाथ होने की बात कही थी। गौरतलब है कि रोहित वेमुला ने रविवार को खुदकुशी कर ली थी।

छात्र कल्‍याण के डीन प्रोफेसर प्रकाश बाबू ने एनडीटीवी को बताया कि ईरानी ने ये गलत कहा है कि मैंने एस कमेटी की अध्‍यक्षता की थी जिसने बीजेपी के युवा संगठन एबीवीपी के एक छात्र नेता को पीटने के आरोप में रोहित वेमुला और 4 अन्‍य दलित छात्रों को सजा देने का निर्णय लिया था। प्रोफेसर बाबू ने यहां तक कहा कि उन्‍हें आखिरी वक्‍त में कमेटी का हिस्‍सा बनाया गया था। मैंने कमेटी की चर्चा में हिस्‍सा लिया था और मैंने यह कहकर निलंबन का विरोध भी किया था कि इससे छात्रों के विकास पर असर पड़ेगा।

गौरतलब है कि केन्द्रीय विश्वविद्यालय के परिसर में स्थित छात्रावास कक्ष में 17 जनवरी को पीएचडी के दलित छात्र रोहित वेमुला ने फांसी लगाकर आत्‍महत्‍या कर ली थी।

4 छात्रों का निलंबन वापस
हैदराबाद विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने गुरुवार को चार दलित शोध छात्रों का निलंबन रद्द कर दिया। उधर, दलित छात्र रोहित वेमुला की खुदकुशी के मामले में छात्रों का प्रदर्शन गुरुवार को पांचवें दिन भी जारी रहा। रोहित को भी चार छात्रों के साथ निलंबित किया गया था और छात्रावास से निष्कासित किया गया था।

परिसर में छात्रों को संबोधित करते हुए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की कि रोहित की आत्महत्या के मामले में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी और केंद्रीय श्रम राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) बंडारू दत्तात्रेय को मंत्री पद से हटाया जाए।

उधर, विश्वविद्यालय के अनुसूचित जाति-जनजाति से ताल्लुक रखने वाले 10 शिक्षकों ने स्मृति पर गुमराह करने वाला बयान देने का आरोप लगाते हुए अपने प्रशासनिक पदों को त्याग दिया। दबाव के बीच विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद ने चार छात्रों के निलंबन को रद्द कर दिया।

कौन था मुसलमान???

कौन था मुसलमान???

बाबासाहेब ने जब चवदार तालाब का आंदोलन चलाया और सभा भरने के लिये बाबासाहेब को कोई हिन्दु जगह नहीं दे रहा था
तब ऐक मुसलमान ने आगे आकर अपनी जगह दी और कहा बाबासाहेब आप मेरी जगह मे अपनी सभा भर सकते हो!!!

गोलमेजी परिषद मे जब गांधी ने बाबासाहेब का विरोध किया और रात के बारा बजे गांधी ने मुसलमानो को बुलाकर कहा कि आप बाबासाहेब का विरोध करो तो मैं आपकी सभी मांगे पूरी करुंगा!!!
तब मुसलमानो ने मना कर दिया और कहा कि हम बाबासाहेब का विरोध किसी भी हाल मे नहीं करेंगे और ये बात मुसलमानो ने आकर बाबासाहेब को कह दी कि गांधी हमे आपका विरोध करने के लिये कह रहे है!!!

संविधान सभा मे जब सारे हिन्दु (गांधी, नेहरू और सरदार पटेल)ने मिलकर बाबासाहेब के लिये संविधान सभा के सारे दरवाजे और खिड़कीया भी बंध करदी थी तब पच्छिम बंगाल के मुसलमानो ने बाबासाहेब को वोट देकर चुनवाया और बाबासाहेब को संविधान सभा मे मुसलमानो ने भेजा!!!
अगर बाबासाहेब को मुसलमान वोट नहीं देते और बाबासाहेब संविधान सभा मे नहीं जाते तो आज हम कहां होते ज़रा सोचिये???

आप सभी से मेरी बिनती है कि कोई भी पोस्ट बिना पढ़े कॉपी पेस्ट ना करे 
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

Can PM Narendra Modi really do the following for fulfilling Dr Ambedkar's wishes?

Ambedkarite Party of India - API
Can PM Narendra Modi really do the following for fulfilling Dr Ambedkar's wishes?
1.Enact an ANTI CASTE DISCRIMINATION LAW making "caste discrimination" a violation of Human Rights both in public and private institutions.
2.Amend SC/ST(POA)Act1989 to incorporate new type of caste atrocities in public and private institutions.
3. Affirmative Action Policy of Reservation in Private Sector, Judiciary, Armed forces and Scientific and Technical Posts. 4.Reservation in Promotion.
5.Land redistribution to the landless.
6.Equality Opportunity Measures in land, labour and capital markets .
7.Nationalisation of Temple property and allocating the same for education, health, housing, employment, social security and wealth to the deprived.
8.Ending the 50%black economy by redistributive taxation and expenditure.
Let the PM stop paying lip service and fooling the Bahujans. They don't wear black cap unlike him.

Vijay Mankar
National President,API

Wednesday, January 27, 2016

सरकारी नौकरियों में आरक्षण हमेशा के लिये है

सरकारी नौकरियों में आरक्षण हमेशा के लिये है। 
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳

26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ, जिसे 65 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं और इस दौरान विधिक शिक्षा के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है। 

इसके बावजूद भी सभी दलों की सरकारों और सभी राजनेताओं द्वारा लगातार यह 

👉झूठ बेचा जाता रहा कि अजा एवं अजजा वर्गों को सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मिला आरक्षण शुरू में मात्र 10 वर्ष के लिये था, 

जिसे हर दस वर्ष बाद बढाया जाता रहा है।

 इस झूठ को अजा एवं अजजा के राजनेताओं द्वारा भी जमकर प्रचारित किया गया। जिसके पीछे अजा एवं अजजा को डराकर उनके वोट हासिल करने की घृणित और निन्दनीय राजनीति मुख्य वजह रही है।
 लेकिन इसके कारण अनारक्षित वर्ग के युवाओं के दिलोदिमांग में अजा एवं अजजा वर्ग के युवाओं के प्रति नफरत की भावना पैदा होती रही। उनके दिमांग में बिठा दिया गया कि जो आरक्षण केवल 10 वर्ष के लिये था, वह हर दस वर्ष बाद वोट के कारण बढाया जाता रहा है और इस कारण अजा एवं अजजा के लोग सवर्णों के हक का खा रहे हैं। इस वजह से सवर्ण और आरक्षित वर्गों के बीच मित्रता के बजाय शत्रुता का माहौल पनता रहा। 


मुझे इस विषय में इस कारण से लिखने को मजबूर होना पड़ा है, क्योंकि अजा एवं अजजा वर्गों को अभी से डराया जाना शुरू किया जा चुका है कि 2020 में सरकारी नौकरियों और सरकारी शिक्षण संस्थानों में मिला आरक्षण अगले दस वर्ष के लिये बढाया नहीं गया तो अजा एवं अजजा के युवाओं का भविष्य बर्बाद हो जाने वाला है। 
जबकि सच्चाई इसके ठीक विपरीत है। 

संविधान में आरक्षण की जो व्यवस्था की गयी है, उसके अनुसार सरकारी शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में अजा एवं अजजा वर्गों का आरक्षण स्थायी संवैधानिक व्यवस्था है।

 👉जिसे न तो कभी बढ़ाया गया और न ही कभी बढ़ाये जाने की जरूरत है, 

क्योंकि सरकारी नौकरी एवं सरकारी शिक्षण संस्थानों में मिला हुआ 

👉आरक्षण अजा एवं अजजा वर्गों को 

👉मूल अधिकार 

के रूप में प्रदान किया गया है। 

मूल अधिकार संविधान के स्थायी एवं अभिन्न अंग होते हैं, न कि कुछ समय के लिये। 


इस विषय से अनभिज्ञ पाठकों की जानकारी हेतु स्पष्ट किया जाना जरूरी है कि 

👉भारतीय संविधान के भाग-3 के अनुच्छेद 12 से 35 तक मूल अधिकार वर्णित हैं। 

मूल अधिकार संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा होते हैं, जिन्हें किसी भी संविधान की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है, जिनके बिना संविधान खड़ा नहीं रह सकता है। 

इन्हीं मूल अधिकारों में 
👉अनुच्छेद 15 (4) में

 सरकारी शिक्षण संस्थाओं में प्रवेश के लिये अजा एवं अजजा वर्गों के विद्यार्थियों के लिये आरक्षण की स्थायी व्यवस्था की गयी है और

👉 अनुच्छेद 16 (4) (4-क) एवं (4-ख) 

में सरकारी नौकरियों में नियुक्ति एवं

 पदोन्नति के आरक्षण 

की स्थायी व्यवस्था की गयी है,

 जिसे न तो कभी बढ़ाया गया और न ही 2020 में यह समाप्त होने वाला है। 

यह महत्वपूर्ण तथ्य बताना भी जरूरी है कि संविधान में मूल अधिकार के रूप में जो प्रावधान किये गये हैं, उसके पीछे संविधान निर्माताओं की देश के नागरिकों में समानता की व्यवस्था स्थापित करना मूल मकसद था, जबकि इसके विपरीत लोगों में लगातार यह भ्रम फैलाया जाता रहा है कि आरक्षण लोगों के बीच असमानता का असली कारण है। 

सुप्रीम कोर्ट का साफ शब्दों में कहना है कि संविधान की मूल भावना यही है कि देश के सभी लोगों को कानून के समक्ष समान समझा जाये और सभी को कानून का समान संरक्षण प्रदान किया जाये, लेकिन समानता का अर्थ आँख बन्द करके सभी के साथ समान व्यवहार करना नहीं है, बल्कि समानता का मतलब है- एक समान लोगों के साथ एक जैसा व्यवहार। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिये संविधान में वंचित वर्गों को वर्गीकृत करके उनके साथ एक समान व्यवहार किये जाने की पुख्ता व्यवस्था की गयी है। जिसके लिये समाज के वंचित लोगों को अजा, अजजा एवं अपिवर्ग के रूप में वर्गीकृत करके, उनके साथ समानता का व्यवहार किया जाना संविधान की भावना के अनुकूल एवं संविधान सम्मत है। इसी में सामाजिक न्याय की मूल भावना निहित है। आरक्षण को कुछ दुराग्रही लोग समानता के अधिकार का हनन बतलाकर समाज के मध्य अकारण ही वैमनस्यता का वातावरण निर्मित करते रहते हैं। वास्तव में ऐसे लोगों की सही जगह सभ्य समाज नहीं, बल्कि जेल की काल कोठरी और मानसिक चिकित्सालय हैं। 
अब सवाल उठता है कि यदि अजा एवं अजजा के लिये सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थानों में आरक्षण की स्थायी व्यवस्था है तो 

👉संसद द्वारा हर 10 वर्ष बाद जो आरक्षण बढ़ाया जाता रहा है, वह क्या है? 
इस सवाल के उत्तर में ही देश के राजनेताओं एवं राजनीति का कुरूप चेहरा छुपा हुआ है। 
संविधान के

👉 अनुच्छेद 334 

में यह व्यवस्था की गयी थी कि लोक सभा और विधानसभाओं में अजा एवं अजजा के प्रतिनिधियों को मिला आरक्षण 10 वर्ष बाद समाप्त हो जायेगा। इसलिये इसी आरक्षण को हर दस वर्ष बाद बढाया जाता रहा है, 

जिसका अजा एवं अजजा के लिये सरकारी सेवाओं और सरकारी शिक्षण संस्थाओं में प्रदान किये गये आरक्षण से कोई दूर का भी वास्ता नहीं है। अजा एवं अजजा के कथित जनप्रतिनिधि इसी आरक्षण को बढाने को अजा एवं अजजा के नौकरियों और शिक्षण संस्थानों के आरक्षण से जोड़कर अपने वर्गों के लोगों का मूर्ख बनाते रहे हैं और इसी वजह से अनारक्षित वर्ग के लोगों में अजा एवं अजजा वर्ग के लोगों के प्रति हर दस वर्ष बाद नफरत का उफान देखा जाता रहा है। लेकिन इस सच को राजनेता उजागर नहीं करते। 

हाँ, ये बात अलग है कि करीब-करीब हर विभाग, संस्थान, उपक्रम आदि में कई वर्षों से निजीकरण की प्रक्रिया को अंजाम देकर अजा एवं अजजा के आरक्षण को रोकने की सफल कोशिश की जा रही है । 

अतः जरूरत है कि हम सभी इस जानकारी को अपने सभी लोगो तक पहुंचाने की कोशिश करे।


🇮🇳जय भीम 🇮🇳