Saturday, January 30, 2016

शिव शब्द की शब्दरचना एवं अन्य भावार्थ

शिव शब्द की शब्दरचना एवं अन्य भावार्थ :-
शिव शब्द संस्कृत भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना है। 
पढें व जानें
"शि" शब्द शिशन के प्रथम शब्द से लिया गया है। शिशन का अर्थ लिंग, penis है
"व" शब्द वर के प्रथम शब्द से लिया है  वर का अर्थ है "सर्वश्रेष्ठ"
शिशन-वर यानी सर्वश्रेष्ठ लिंग को संक्षिप्त में शिव शब्द बना है।
शिव की तस्वीर व मूर्ति के चेहरे  में तीन लिंगो का समावेश है और शरीर मनुष्य का बताया गया है। 
०१. बटुक-लिंग यानि बालक का लिंग
 ०२ राजसी-लिंग यानी युवक का लिंग
०३ तामसिक-लिंग यानी  बुढ्ढे का लिंग
शिव के प्रतीकात्मक नाम, उपाधियां , अलंकार आदि के विभिन्न वर्णन निम्नानुसार है:-
गंगा -मूत्र की धारा, तीसरा नेत्र -लिंग का उपरी छेद, जहां से मूत्र निकलता है।
नाग-लिंग की उपरी झिल्ली, चमडी जो लिंग की गर्दन पर लिपटती है।
चन्द्रमा -लिंग के उपरी चमडी के अन्दर जमा हुआ सफेद मैल
नीलकंठ -लिंग पर उभरी नीली नसें
हलाहल-विष = वीर्य, जो बार-बार हिलाने पर निकलता है
नटराज -लिंग का अप-डाउन करना
तांडव-नृत्य =लिंग का सहवास के समय तांडव करना
प्रलय आना- सहवास के समय  उछल-कूद करना 
तीसरा नेत्र खुलना - लिंग के छेद से वीर्यपात होना
चर्म-आनन्द =वीर्यपात के समय उत्पन्न आनन्द
नंदी -अंडकोश, जिस पर लिंग सवार रहता है।
केलाश -बाल,  शब्द केलाश में केश शब्द है
भगवान -भग(योनि) को वहन करने वाला, लिंग 
त्रिलोकीनाथ -लिंग योनि, गुदा व मुख में प्रवेश करता है
शंकर -लिंग शंकु के आकार का है
शिव-लिंग =युवक का लिंग
शिव-शक्ति =बुढ्ढे का लिंग व लटकी हुई उपरी चमडी (झिल्ली)
बटुक-लिंग =बालक का लिंग
केदारनाथ -दलदल के नाथ
मलेश -मल+ईश यानी मल, गन्दगी के ईश्‍वर
गणेश -गण+ईश यानी गण, नौकर के ईश्वर यानी गण का अंश
पशुपति-नाथ=पशुओं के पति और नाथ  , नारी को पशु के समान माना है।
विभिन्न शब्दों के संक्षिप्त रुप में नाम निम्नलिखित हैं:-
विष्णु =विष्ठा-के-अणु यानी बींठ
व्राह्मण =वराह-मण यानि सूअर
रामन= राक्षसी-मन
कृष्ण- कृषक का अण, किसान 
दुर्गा =दुराचारणी-गणिका यानी वेश्या ,विषकन्या 
अजनी =अविवाहित-जननी, कुवांरी-मां 
स्वर्ग -स्वर गर्त में ,मृत्यु, इन्तकाल यानी स्वर, धडकन बंद होना 
मोक्ष =मोह का क्षय, मौत, देहान्त 
जब्कि आदिवासी गोंड-धर्म में आदि धार्मिक गुरु पहान्दि-कुपार-लिंगो ने कोया-पुनेम समाज   की स्थापना की ,  मगर मनुवादियों ने इनके धर्मस्थलों पर कब्जा कर, शिव का नाम घोषित कर दिया है और आदिवासी धर्मग्रंथों का ब्राह्मणीकरण कर दिया।

आदिवासियों के गोंड-समाज में  ज्योतिर्लिंग जो संख्या में  बारह है  और ,वे कोया पुनेम के बारह धर्मगुरु हैं।  1.पारी कुपार लिंगो , 2.रायलिंगो, 3.महारुलिंगो, 4,भिमाललिंगो , 5.कोलालिंगो , 6.हीरालिंगो , 7.तूर्पोलिंगो , 8.सुंगालिंगो , 9.राहुडलिंगो , 10.रावणलिंगो , 11.मयलिंगो , 12.आलामलिंगो  को गौतम बुद्ध को सांख्यदर्शन के शिक्षक के स्मृति रुप में पूजे जाते है ।.
लिंगो के नाम पर "शिवलिंग" शब्द प्रचलित कर दिया  है। जो उचित नहीं है। .पृथ्वी का मध्यवर्ती स्थान उज्जैन माना गया है और, जहाँ  महाकालेश्वर लिंग स्थापित है ,जबकि कब्जा मनुवादी ब्राह्मणों का है।
सिंधु घाटी की सभ्यता से प्राप्त एक मुहर पर तीन मुखों वाले एक नर - देवता का चित्र अंकित है। जिसके चारों ओर विभिन्न जानवर हैं।

इस मुहर के बारे में आर . सी . मजुमदार , एच. सी.  रायचौधरी एवं के.के.दत्त जैसे चोटी के इतिहासकारों ने लिखा है कि चित्र पर अंकित चारों ओर पशुओं की मूर्तियाँ शिव के पशुपति नाम को सार्थक करती हैं ।

मगर ऐसा है नहीं । क्योंकि  पशु का अर्थ जानवर पहले थोड़े ही न होता था । पशु का संबंध पाश ( बंधन ) से है । पाश ( मोह ) से मनुष्य भी बँधा है और पाश ( रस्सी ) से जानवर भी बँधा हुआ है । इसलिए पशु का वास्तविक अर्थ जीव है । 

मगर इतिहासकार क्या जाने भाषा का मर्म क्या है ? वह तो पशुओं से घिरा मोहर को देखकर पशुपति नाम दे बैठा और एक मनघडंत कहानी बना दी, कि एक भैंसा केदार यानी दलदल में घुस गया था। जिसका मुंह नेपाल में निकाला और भैंसे का पिछवाडा भारत में ही रह गया। इसी कारण दो मन्दिर बना दिये । एक पशुपति-नाथ नेपाल में तो दूसरा भारत में  केदारनाथ । अब भैंसे का धङ ढूंढते रहो! 
 पशुओं ( मनुष्य सहित जीवों ) का अधिपति है पशुपति  यानि पाशपति
साभार मित्र रावणराज श्याम गोंड

हे मानव मनुवादियों के वेदों, पूराणों व शास्त्रों आदि  ग्रंथों के शिव, विष्णु, दुर्गा, राम , हनुमान, गणेश, तुलसी, राधा, सत्यनारायण  आदि के अवतारवादी  नाम के साथ अपने महात्माओं, संत के नाम व अपने देवी देवताओं के नाम के साथ नहीं जोडना चाहिए और अपने  बच्चों के नाम इनके देवी देवताओं के  नाम पर नहीं  रखने चाहिए
क्योंकि इनके मूल भावार्थ घृणित, कलंकित  व अपमानित हैं

बाबा-राजहंस

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