Thursday, January 28, 2016

आरक्षण की शुरुआत 1902 में कोल्हापुर के राजा छत्रपति साहू जी महाराज ने की

तथ्यः पहली बार आरक्षण की शुरुआत 1902 में कोल्हापुर के राजा छत्रपति साहू जी महाराज ने की थी। फिर 1921 में मैसूर के महाराजा ने आरक्षण लागू किया था। 1921 में ही मद्रास प्रेसिडेंसी (वर्तमान तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, केरल का उत्तरी हिस्सा और कर्नाटक का कुछ हिस्सा आता है।) में जस्टिस पार्टी ने आरक्षण की शुरुआत की थी। यहां गौरतलब है कि ब्राह्मण एकाधिकार को चुनौती देते हुए और उसका दमन करने के वादे के आधार पर ही जस्टिस पार्टी सत्ता में आई थी। इस तरह आरक्षण की शुरुआत राजाओं और भारतीय राजनीतिज्ञों द्वारा की गई थी।
भ्रमः 1950 में भारत के संविधान के बाद आरक्षण की शुरुआत हुई थी।
तथ्यः राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण को डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर की पहल पर 1943 में ही लागू किया गया था। उन्होंने यह समझ लिया था कि अंग्रेजों के बाद जिनके हाथों में भारत की बागडोर होगी, वे अनुसूचित जातियों को आरक्षण व अन्य सहूलियत देने में हिचकिचाएंगे। यही कारण था कि वह वायसरॉय के कार्यकारी परिषद में बतौर सदस्य शामिल हुए थे।
तथ्यः आरक्षण की तीन श्रेणियां हैः
राज्यों के पदों और सेवाओं में आरक्षण (सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों, यूनिवर्सिटी और अन्य संस्थाओं सहित सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 12 की व्याख्यानुसार स्टेट का दर्जा प्राप्त संस्थाएं।)
शिक्षण संस्थानों की सीटों में आरक्षण।
लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों में सीटों का आरक्षण। आमतौर पर जिसे राजनीतिक आरक्षण के रूप में संबोधित किया जाता है।
इनमें से केवल तीसरी श्रेणी के आरक्षण के लिए शुरू में 10 वर्षों का प्रावधान था। जबकि एक और दो श्रेणी के आरक्षण के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं थी। बहुत सारे विद्वान और ऐंकर तीसरी श्रेणी की 10 साल की समयसीमा को पहले और दूसरे श्रेणी के लिए भी बताते हैं जबकि उनके लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं थी।
भ्रमः आरक्षण का उद्देश्य गरीबी खत्म करना या कम करना है।
तथ्यः संविधान के अनुसार आरक्षण का उद्देश्य गरीबी कम करना या खत्म करना कभी नहीं रहा। बेरोजगारी के समाधान हेतु आरक्षण को एक युक्ति के तौर पर कभी नहीं लिया गया। आरक्षण का उद्देश्य शासन और प्रशासन के ढांचे में असंतुलन को ठीक करना था। इसका उद्देश्य शिक्षा और चुनावी सीटों की उस संरचना को मजबूती प्रदान करना था जो भारतीय जाति व्यवस्था द्वारा निर्मित असंतुलन और असमानता के कारण बना था।
साफ शब्दों में कहा जाए तो शासन व प्रशासन में से उच्च जातियों के एकाधिकार को खत्म करते हुए सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ी जातियों/जनजातियों को समान अवसर उपलब्ध करवाने के लिए ही इस आरक्षण की व्यवस्था की गई थी।
हालांकि इस संबंध में कई लोगों का कहना है कि आरक्षण को आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर लागू करना चाहिए, लेकिन संविधान में नहीं निर्देशित होने के कारण आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था नहीं होती है।
यह कॉन्टेंट अंग्रेजी की मास मीडिया मैगजीन के अंक 45 से लिया गया है और यहां उसका संक्षिप्त हिंदी अनुवाद पेश किया जा रहा है। मूल लेखक पी. एस. कृष्णन समाज कल्याण मंत्रालय में पूर्व सचिव रहे हैं और आरक्षण को लेकर इन्होंने बहुत काम किया है। वर्तमान में यह तेलंगाना सरकार में कैबिनेट मंत्री दर्जा प्राप्त सलाहकार हैं।

1 comment:

  1. परंतु आज के समय मे आरक्षण के नाम पर तो बेतहाशा राजनीत हो रहा हैं

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