Tuesday, January 26, 2016

डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर जिस महापुरूष ने अपनी पुरी जिन्दगी, अपना परिवार, बच्चे आन्दोलन की भेँट चढा दिये

विश्व विख्यात महामानव डॉ भीमराव रामजी अम्बेडकर
जिस महापुरूष ने अपनी पुरी जिन्दगी, अपना परिवार, बच्चे आन्दोलन की भेँट चढा दिये, 

बाबासाहेब अम्बेडकर को जब काका कालेलकर कमीशन 1953 मेँ मिलने के लिऐ गया, तब कमीशन का सवाल था कि, आपने सारी जिन्दगी पिछङे वर्ग के ऊत्थान के लिऐ लगा दी। आपकी राय मेँ उनके लिऐ क्या किया जाना चाहिए?

बाबासाहब ने जवाब दिया कि, अगर पिछङे वर्ग का ऊत्थान करना है तो इनके अन्दर बडे लोग पैदा करो।

काका कालेलकर यह बात समझ नहीँ पाये। ऊन्होने फिर सवाल किया " 

बङे लोगोँ से आपका क्या तात्पर्य है?" बाबासाहब ने जवाब दिया कि,

अगर किसी समाज मेँ 10 डॉक्टर, 20 वकील और 30 इंजीनियर पैदा हो जाऐ, तो उस समाज की तरफ कोई आंख ऊठाकर भी देख नहीँ सकता।

इस वाकये के ठीक 3 वर्ष बाद 18 मार्च 1956 मेँ आगरा के रामलीला मैदान मेँ बोलते हुऐ बाबासाहेब ने कहा "मुझे पढे लिखे लोगोँ ने धोखा दिया। मैँ समझता था कि ये लोग पढ लिखकर अपने समाज का नेतृत्व करेगेँ, मगर मैँ देख रहा हुँ कि, मेरे आस-पास बाबुओँ की भीङ खङी हो रही हैँ, जो अपना ही पेट पालने मेँ लगी हैँ।"

यही नहीँ, बाबासाहब अपने अन्तिम दिनोँ मेँ अकेले रोते हुऐ पाये गये। जब वे सोने कोशिश करते थे, तो उन्हें नीँद नहीँ आती थी। अत्यधिक परेशान रहते थे। 

परेशान होकर उनके स्टेनो नानकचंद रत्तु ने बाबासाहब से सवाल पुछा कि, आप ईतना परेशान क्योँ रहते है? ऊनका जवाब था

 , "नानकचंद, ये जो तुम दिल्ली देख रहो हो,इस अकेली दिल्ली मेँ 10,000 कर्मचारी, अधिकारी यह केवल अनुसूचित जाति के है, जो कुछ साल पहले शून्य थे। मैँने अपनी जिन्दगी का सब कुछ दांव पर लगा दिया , अपने लोगोँ मेँ पढे लिखे लोग पैदा करने के लिए।क्योँकि, मैँ समझता था कि, मैँ अकेला पढकर इतना काम कर सकता हुँ, अगर हमारे हजारो लोग पढ लिख जायेगेँ, तो इस समाज मेँ कितना बङा परिवर्तन आयेगा ।

 मगर नानकचंद, मैँ जब पुरे देश की तरफ निगाह डालता हुँ, तो मुझे कोई ऐसा नौजवान नजर नहीँ आता है, जो मेरे कारवाँ को आगे ले जा सके।
नानकचंद, मेरा शरीर मेरा साथ नहीँ दे रहा हैँ। जब मैँ मेरे मिशन के बारे मेँ सोचता हुँ, तो मेरा सीना दर्द से फटने लगता है।"

जिस महापुरूष ने अपनी पुरी जिन्दगी, अपना परिवार, बच्चे आन्दोलन की भेँट चढा दिये, जिसने पुरी जिन्दगी यह विश्वास किया कि, पढा लिखा वर्ग ही अपने शोषित वंचित भाईयोँ को आजाद करवा सकता हैँ, जिसने अपने लोगों को आजाद करवाने का मकसद अपना मकसद बनाया था।

ये तथाकथित पढे लिखे लोग आजकल क्या कर रहे हैँ?

1. ये लोग अपनी टीवी और बीवी-बच्चो मेँ व्यस्त है। इसके कई उदाहरण मैँ प्रत्यक्ष देखता हुँ। कई बार मैँ प्रचार करने के लिऐ उनके घर जाता हुँ, तो मुझे वे कहते है, "यार सॉरी, अभी समय नहीँ है।जिम्मेवारी बहूत है, कुछ समय तो बीवी बच्चो को भी देना पङता हैँ
 
2. अच्छी टेबल या पद लेने की लिए अपने अधिकारियोँ की चापलूसी करने मेँ यह लोग व्यस्त हैँ।

3. ट्रांसफर के डर से किसी राजनीतिक या सामाजिक आन्दोलन मै सहयोग के नाम से इनको डर लगने लगता हैँ।
 
4. कुछ जिनको राजनीतिक खुजली होती है, वे अपनी जाति का संगठन बनाकर उन पर रौब झाड़ने व संघठन के  मालिक बने रहने मेँ व्यस्त है, 

5. कुछ लोग अति आत्म केन्द्रित है, जिनका स्पष्ट मत है कि, उनके समाज का कुछ नहीँ हो सकता।

6. कूछ लोग शोषण के इतने आदि हो गये है की तीन बंदरों की तरह आँख, कान और जुबान 🙈🙉🙊 बँद कर गुलामी को ज्यादा पसंद करते है l 

अधिकतर लोग 🙇सामाजिक ईमानदार है, पर साहस और समझ के अभाव मेँ परिवर्तन के आन्दोलन से नहीँ जुङ पाते है। और दूसरे लोगो के संघठनो या बाबा लोगो के चक्करों मै पड़ जाते है, व समाज को भी गुमराह करने लग जाते है l 

 7. कुछ लोग अपनी पोस्ट के गुरूर मेँ चूर है। उनको लगता है कि उनकी दुनिया वहीँ शुरू वहीँ खत्म है।जब उनका शोषण होता है तब उनको समाज की ज़रूरत पड़ती है l 

8. और कुछ लोग, जो ब्राह्मण बनियोँ के ज्यादा संपर्क मेँ है, वे खुद बाबासाहेब के विरोधी है व खुद को सबसे समझदार समझते है l 

बाबासाहब के जाने के 60 साल बाद, हजारो वकील, ईँजी., डॉक्टर समाज में बने  फिर भी पढे लिखे वर्ग मेँ सुधार होने की बजाय हालात और ज्यादा गँभीर हो गये है। इसलिए, बहुजन समाज का विकास होने के बजाय पतन हो रहा है।

इसलिये मेरी सभी बहुजनो से विनती है की समय रहते आज के हालात को देखते हुए  समझ जाओ वरना अपनी बारी का इंतजार करो l
🙏🙏🙏🙏जय भीम साहेब।।

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