Monday, May 13, 2019

डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की पुस्तक एनिहिलेशन ऑफ़ कास्ट और कास्ट्स इन इंडिया को छापने के लिए दान देने की प्रार्थना Donation for Printing Annihilation of Castes and Castes in India




















जय भीम मित्रों,
डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के बहुचर्चित भाषण 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट'
(Annihilation of Caste) का मेरे द्वारा किया गया सरल हिंदी भाषा में अनुवाद
'जाति का संहार' प्रकाशित करना चाहते हैं। इसके लिए आपसे दान देने की अपेक्षा
रखते हुए यह सन्देश आप तक पहुँचाया जा रहा है। नीचे पुस्तक की जानकारी और
बैंक एकाउंट की डिटेल दी है। दान आप किसी एप के द्वारा भी भेज सकते हैं। यदि
आप कुछ सहयोग राशि भेज दें तो आप डॉ. आंबेडकर जी के मिशन को आगे बढ़ाने
में मेरी मदद करेंगे।
पुस्तक के बारे में - 1936 में यह पुस्तक पहली बार प्रकाशित हुई थी। लाहौर के
जात-पात-तोड़क मंडल के लिए तैयार किए गए इस भाषण को आर्य समाजियों के दबाव
में आ कर मंडल ने हूबहू बोलने से माना कर दिया। हालाँकि डॉ. आंबेडकर जी इस
सभा की अध्यक्षता कर रहे थे। बाद में डॉ. आंबेडकर जी ने इसे पुस्तक के रूप में
प्रकाशित किया और द्वितीय संस्करण में मिस्टर गाँधी जी को उनके सवालों के जवाब
भी दिए, जो इस पुस्तक में सम्मिलित हैं। बाबा साहिब डॉ. आंबेडकर जी का हम पर
उपकार है कि जिन्होंने इतनी उत्तम कृति लिख कर भारत के लोगों को यह अनुपम भेंट दी।
पुस्तक के अनुवाद के बारे में - यह अनुवाद इतना सरल है कि किसी भी हिंदी पाठक
की समझ में आसानी से आ जाएगा। कई शब्दों के एक से अधिक अर्थ भी जोड़ दिए हैं।
 कई शब्दों के प्रचलित उर्दू शब्द भी दिए हैं जिस से कि यह विशेषकर उत्तर भारत
के पाठकों को ऐसा ही लगे कि वे आम बोलचाल की भाषा में ही इसे पढ़ रहे हैं।
डॉ. आंबेडकर जी ने इतनी अच्छी तरह से बातों को समझाया है कि पढ़ने वाले को
एक-एक चीज सही से समझ में आ जाएगी। और अनुवाद में भी इस बात का ध्यान
रखा गया है कि डॉ. आंबेडकर जी की लेखनी को भी ज्यों-का-त्यों रखा जाए जिस से
कि पाठक वैसे ही पढ़ें जैसे डॉ. आंबेडकर जी चाहते थे। साथ ही, जैसा कि डॉ. आंबेडकर जी
चाहते थे कि, इस पुस्तक के साथ 1916 में लिखे उनके लेख 'भारत में जातियां - उनकी
क्रियाविधि, उत्पत्ति और विकास' (Castes In India - Their Mechanism, Genesis
and Development) को भी इस पुस्तक में शामिल किया जाएगा। इसका अनुवाद भी
एकदम सरल होगा और यह डॉ. आंबेडकर जी को हमारी एक भेंट होंगी।
मित्रों, ऐसे कार्य करने के लिए शिक्षा, समय, ऊर्जा, लगन और धन की आवश्यकता पड़ती है।
शिक्षा है, लगन है, मेहनत करते हैं, पर धन का अभाव ही रहता है। इस कमी को दूर करने
के लिए आप दान दे सकते हैं। ऐसे आप डॉ. आंबेडकर जी को श्रद्धांजलि देंगे, उनके कार्य
को आगे बढ़ांएगे, समाज को एक नई दिशा देंगे और हमरी भी मदद करेंगे कि हम भी
आपके साथ जुड़ कर डॉ. आंबेडकर जी के विचारों को आगे बढ़ा सकें। आप हम से
डॉ. आंबेडकर जी की फोटो वाली टीशर्ट पर अपने संगठन या गांव का नाम छपवा कर
प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही बाबा साहिब जी से सम्बंधित प्रचार सामग्री जैसे की पैन,
झंडे, लॉकेट आदि भी उपलब्ध हैं। तो डॉ. आंबेडकर जी के मिशन को आगे बढ़ाने में
साथ जुड़ें और अपना सहयोग दें। आपका धन सही जगह लगेगा, इस बात से निश्चिन्त
रहे। पुस्तक 25 मार्च 2019 तक प्रकाशित हो जाएगी।
अनुवादक के बारे में : निखिल सबलानिया पिछले दस वर्षों से डॉ आंबेडकर जी के
विचारों को आगे बढ़ा रहे हैं। इस से पहले वे डॉ. आंबेडकर जी की पुस्तक अछूत
और ईसाई धर्म का अनुवाद, डॉ. आंबेडकर जी के भाषण और बौद्ध धम्म पर पुस्तक -
डॉ. आंबेडकर और बौद्ध धम्म व डॉ. आंबेडकर जी की संक्षिप्त जीवनी - बाबा
साहिब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी अमर कथा, भी लिख व प्रकाशित कर चुके हैं।
जय भीम -
धन्यवाद - आपका सेवक
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Wednesday, May 8, 2019

147 ब्राह्मण और 80 ठाकुर एसडीएम कैसे हो गए भर्ती? योगीराज में सवर्णीय जातिवाद चरम पर

लोक सेवा आयोग में डाॅ.अनिल यादव अध्यक्ष थे,तो उनके तीन साल के कार्यकाल में 97 में यादव जाति के कुल 14 पीसीएस सलेक्ट हुए थे, तो भाजपा,आरएसएस,विहिप और विद्यार्थी परिषद की नेकरछाप जमात ने आसमान सिर पर उठा लिया था। इलाहाबाद में लोक सेवा आयोग के दफ्तर पर यादव सेवा आयोग लिख दिया था। तब इस झूठ को मीडिया ने भी खूब बढा-चढा कर दिखाया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने झूठे कुप्रचार के आधार पर फैसला सुना दिया। जबकि आरोपों में न कोई आधार थे और न कोई सबूत। हाई कार्ट को लगा था देश में सिर्फ यादव ही सभी पीसीएस बन जाएंगे। आानन-फानन में सीबीआई को पीसीएस भर्ती में कथित गडबडी की जांच सौंपने का फरमान सुना दिया। जांच प्रभावित न हो,इस आधार पर डाॅ.अनिल यादव से अध्यक्ष पद से हटने को कहा गया। डाॅ.अनिल यादव हट भी गए। अब लाख टके का सवाल, सीबीआई क्यों बताती? उसने पांच साल से हडप्पा की खुदाई की तरह यूपीपीसीएस में जांच में कुछ मिला भी या नहीं। यदि नहीं मिला तो रिपोर्ट हाई कोर्ट में क्यों दाखिल नहीं करती है?यदि इस जांच में कुछ नहीं मिला है, तो झूठे आरोप लगाने वालों को हाई कोर्ट क्या सजा देगा ?

*3 साल में कुल 14 एसडीएम बने थे यादव*

सूबे में ठाकुर अजय कुमार सिंह बिष्ट के मुख्यमंत्री कार्यकाल में लोक सेवा आयोग के पहले साल के जो नतीजे आए हैं, उसमें 147 ब्राह्मण भर्ती हो गए। ये कमाल कैसे हो गया भाई, है कोई बताने वाला ? अब कोई नहीं बोल रहा है जिन्हें 14 यादव अभ्यर्थियों के पीसीएस बनने पर लोक सेवा आयोग यादव सेवा आयोग नजर आर रहा था ।अब उन्हें 147 ब्राह्मणों के सलेक्ट होने पर ब्राह्मण आयोग क्यों नहीं दिखाई देता है? जो विद्यार्थी परिषद इलाहाबाद से लेकर आगरा तक सडक पर उतर आई थी, अब क्यों खामोश है ? कमाल है भाई। यादव तो तब तीन साल 2011, 2012 और 2013 में कुल 14 एसडीएम बने थे। इस बार तो घोर अंधेरगर्दी में भी एक ही साल में 32 बन गए हैं।

*एससी और ओबीसी अपने दम पर बढ रहे हैं आगे*

यादव और दीगर एससी ओबीसी जातियों में उभरती प्रतिभा दबा पाना किसी के हाथ में नहीं हैे। एससी और ओबीसी अब भूखे रहकर इलाहाबाद में रात दिन पढते हैं, जनाब। मैंने खुद देखा है। तीन साल पहले यूपी बोर्ड के 10 में से 8 टापर कुर्मी और यादव थे। ओबीसी तो क्रिकेट की टीम इंडिया में भी अपनी प्रतिभा के बूते धाक जमा रहे हैं। वे तो पूरे भारत में दीगर कौमों से मुकाबला कर रहे हैं। उमेश यादव, जयंत यादव, अक्षर पटेल, भुवनेश्वर कुमार, कुलदीप यादव। जबकि इनका कोई पैरोकार नहीं है। यूपी के ओबीसी के खिलाडियों का कभी कोई पैरोकार नहीं रहा। न कभी ज्योति वाजपेयी, न गोपाल शर्मा और न ही राजीव शुक्ला पैरोकार रहे। मोहम्मद कैफ और प्रवीन कुमार भी अपने दम पर आगे बढ़े।

*ओबीसी,एससी रहे खामोश तो मांफ नहीं करेगा इतिहास*

अब कोई चैनल नहीं दिखा रहा है, एक जाति विशेष के 147 एडसीएम ठाकुर,ब्राह्मण कैसे सलेक्ट हो गए ? *सपा सरकार के दौर में तीन साल में महज 14 एसडीएम यादव जाति के सलेक्ट होने पर सपा सरकार व अखिलेश यादव पर यादववाद का आरोप लगा रहे थे।उन्हें अब ब्राह्मणवाद व ठाकुरवाद क्यों नजर नहीं आ रहा है?* कुर्मी, काछी, लोधी, निषाद, जाट, गुर्जर, पाल बघेल, राजभर, सुनार, सविता, प्रजापति, जाटव, कोरी, बाल्मीकि, पासी, खटीक, धोबी, धानुक, भडभूजा, तेली, बढई, कलार,गोंड़,खरवार,कोल,पनिका, नाई,किसान, सपेरा,चौहान, बिन्द, बियार,विश्वकर्मा,बरई,बारी आदि ओबीसी और एससी जातियों के युवाओं अब क्यों खामोश हो ? तुम्हारी, आज खामोशी, तुम्हारी कौम को गर्त में ले जाएगी। इतिहास और तुम्हारी नश्लें इसके लिए तम्हें कभी माफ नहीं करेंगी। *क्या तुम्हारी अब भी आंखें नहीं खुल रही हैं? तुम्हारा ध्यान इस तरफ न जाए, इसलिए मीडिया राफेल, राम मंदिर और कश्मीर, देश की सुरक्षा, पाकिस्तान पोषित आतंकवाद का भय दिखाकर ध्यान भटकाता रहेगा। ताकि नौकरियां लूटने वालों की तरफ तुम्हारा ध्यान ही न जाए। डाॅ.अनिल यादव ने बहादुरी से इसी लूटतंत्र को रोक दिया था। इसलिए उनके खिलाफ साजिश रची गई थी।*
👌👌👌👌👌👌👌👌👌

*ठाकुर कौम भी हुई लाभान्वित*

और हां, लोक सेवा आयोग में ब्राह्मणों के साथ लूट में ठाकुरों ने भी भरपूर हाथ मारा है। ऐसा महज ठाकुर अजय कुमार विष्ट के मुख्यमंत्री होने के कारण ही संभव हो पाया है। कहीं अजय कुमार सिंह विष्ट उँगली न उठा दें। यही कारण है कि जिस ठाकुर जाति के एक बार में कभी 20 अभ्यर्थी चयनित नहीं हुए, इस दफा एक ही बार 80 एसडीएम सलेक्ट हो गए। जबकि किसी जमाने में 40 फीसदी पीसीएस सलेक्ट होने वाली कायस्थ जाति के इस बार महज चार अभ्यर्थी ही चयनित हो पाए।
ठाकुर और ब्राह्मण जाति के अभ्यार्थियों की सरकारी नौकरी में सीधे भर्ती खेल की एक बानगी और देखिए। विधान सभा सचिवालय में करीब ढाई सौ तीसरे ग्रेड के कर्मचारियों की सीधी भर्ती हुई। इसमें से 142 ठाकुर-पंडित भर्ती कर लिए गए। इन भर्तियों में न तो एससी और न ही ओबीसी का रिजर्वेशन कोटा सिस्टम लागू किया गया। अब सब अंधे, गूंगे और बहरे हो गए हैं। कोई चूं तक नहीं बोल रहा है। जिनके हक पर डाका पड़ रहा है,उनके जो रहनुमा सत्ता के साथ हैं, उनमें न स्वामी प्रसाद मौर्य, न केशव प्रसाद मौर्य और न ही एस.पी. सिंह बघेल,धर्मपाल सिंह लोधी,स्वतंत्रदेव सिंह,अनुपम जायसवाल या दीगर ओबीसी और एससी मंत्री या नेता मुंह खोल रहा है।ओम प्रकाश राजभर हो हल्ला जरूर करते हैं,पर उनका चिंतन वर्गीय हित की बजाय सौदेबाज़ी की रहती है।अनुप्रिया अपने पति तो ओमप्रकाश राजभर अपने बेटों की सेटिंग के लिए ही ऐंठन दिखाते हैं।
*ये हैं असल गुनाहगार*

दरअसल ओबीसी व एससी का दुश्मन न आरएसएस है और न बीजेपी। असली दुश्मन उमा भाारती, राजवीर सिंह राजू, पंकज चौधरी, साक्षी महाराज, अनुप्रिया पटेल, विनय कटियार, ओम प्रकाश सिंह, स्वतंत्रदेव सिंह, प्रेमलता कटियार, संतोष गंगवार, स्वामीप्रसाद मौर्य, केशव प्रसाद सिंह और एसपी सिंह बघेल जैसे नेता हैं,जो एससी और ओबीसी के नाम पर सांसद, विधायक और मंत्री तो बन जाते हैं, पर सत्ता में मलाई चाटने के लिए अपने वर्ग के साथ नाइंसाफी पर खामोशी ओढ लेते हैं।
*ओबीसी,एससी के नायक को भाजपा व गोदी मीडिया ने दुष्प्रचार कर बना दिया खलनायक*

असल में ईमानदारी से देखा जाय तो यादव जाति ग़ैरयादव पिछड़ी व दलित जातियों का नायक रहा है।जिसने सामन्तों,शोषकों से पिछड़ों-दलितों के मान-सम्मान,इज्ज़त-आबरू की रक्षा के लिए रक्षा कवच बना,लाठी-डंडा लेकर बीच में खड़ा हुआ।सामंती सवर्णों के अत्याचार व अन्याय का सामना यादवों ने ही किया।पर,कान के कच्चे अतिपिछड़ी जातियों ने भाजपा का दुष्प्रचार व मिथ्यारोप के झांसे में आकर भटक गई।

*योगी ने जातिवाद की हदें पार कर दिया*

*जब से बब्बा योगी सीएम बना है,जातिवाद की हदें लांघ गए हैं।अधिकारियों की पोस्टिंग में सवर्णो विशेषकर योगी व दिनेश शर्मा की ही जाति को प्राथमिकता दी जा रही है।योगी ने 753 विधिक अधिकारियों का मनोनयन उच्च न्यायालय में किया,जिसमे मात्र 57 ही विधिक अधिकारी ओबीसी,एससी, एसटी व अल्पसंख्यक वर्ग के बनाये गए,क्या यह जातिवाद नहीं?उत्तर प्रदेश उच्च न्यायिक सेवा आयोग द्वारा 24 अप्रैल,2017 को घोषित परिणाम में 61 में 52 स्वर्ण जज हुए।गोरखपुर विश्वविद्यालय में 71 में 66 सवर्ण(38 ठाकुर व 24 ब्राह्मण) प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर व एसोसिएट प्रोफेसर बनाये गए,क्या यह जातिवाद नहीं है?मा. उच्चतम न्यायालय में 77 सरकारी वकील बनाये गए,जिसमे मात्र 2 ओबीसी के व अन्य सभी सवर्ण,क्या यह सामाजिक न्याय है?* भाजपा व योगी के जातिवाद को आमजन व अंधभक्त पिछड़े-दलित समझें,अपनी आंखें खोले।अन्यथा ,1980 से पहले की स्थिति में पहुंच जाओगे।खटिया,कुर्सी की बात तो दूर ज़मीन पर भी नहीं बैठ पाओगे।गुमराहियत छोड़ो,सामाजिक न्याय व संविधान के रक्षार्थ भाजपा का साथ छोड़ो,अन्यथा अगली पीढ़ी मांफ नहीं करेगी। 
*चौ.लौटनराम निषाद*
राष्ट्रीय सचिव-राष्ट्रीय निषाद संघ
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Tuesday, May 7, 2019

क्या डॉ. आंबेडकर जी ज़िंदा हैं ?

क्या आपको लगता है कि डॉ. भीमराव आंबेडकर जी अभी भी ज़िंदा है ? क्या आपने कभी यह सुना है ? क्या आपको कभी ऐसा लगा है ? क्या आपको डॉ. आंबेडकर जी की आहट सुनाई दी है ? क्या आपको डॉ. आंबेडकर जी एक मिथक लगते हैं ? क्या डॉ. आंबेडकर जी कल्पनाओं से परे के व्यक्ति लगते हैं?






















कुछ दिनों पहले किसी से मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि मानो डॉ. आंबेडकर जी कोई कल्पनाओं से परे के है क्योंकि उन में आज भी जातिवाद से लड़ने का वो साहस नहीं है जो डॉ. आंबेडकर जी में आज से सौ वर्षों पहले था। उनकी यह बात मेरी संवेदनाओं को छू गई। मुझे नज़र आने लगे डॉ. आंबेडकर जी के वह पुतले जो जगह-जगह खड़े हैं, डॉ. आंबेडकर जी के वह चित्र जो हर जगह लगे हैं। पर फिर भी वे उस व्यक्ति को डॉ. आंबेडकर जी का बोध नहीं करा पाए। फिर भी वे मूर्तियां और वे चित्र उस व्यक्ति तक डॉ. आंबेडकर जी की वह चेतना नहीं पहुंचा पाए। या मैं कहूंगा कि वे डॉ. आंबेडकर जी को पूरी तरह से ज़िंदा नहीं रख पाए। मूर्तियां और चित्र इस बात का एहसास कराते हैं कि डॉ. आंबेडकर जी जैसे कोई व्यक्ति थे। पर वे उन से परिचय नहीं करवाते। वे रूप को तो जीवित रखते हैं पर चेतना को नहीं। तो बात आती है कि क्या डॉ. आंबेडकर जी ज़िंदा है ?
दो दिन पहले मैं बहुत दुखी था। पिछले कुछ वर्षों से मैंने कुछ पुस्तकें लिखी हैं और डॉ. आंबेडकर जी की कुछ पुस्तकों का सरल हिंदी में अनुवाद किया है। पैसों के आभाव के कारण मैं उन्हें प्रकाशित नहीं कर पा रहा। इस पर लोग कहते हैं कि डॉ. आंबेडकर जी को बेचते हो और लोगों को लूटते तो। मेरे मुंह पर कहे तो पूछूं कि बताओ कितना लूटा और कितनी हवेलियां खड़ी की ? पर डॉ. आंबेडकर जी की दो बातें मेरा हाल बयां करती है। एक तो उन्होंने कहा था कि समाज सुधारक का जीवन नर्क बन जाता है। और दूसरा उन्होंने कहा था कि मेरे अपनों ने ही धोखा दिया। मैं इन दोनों बातों का ही साक्षी हूँ। यह भगवान बुद्ध की शिक्षा है जिसकी वजह से मैं बचा हुआ हूँ और अपने प्रेरणा स्रोत डॉ. आंबेडकर जी से प्रेरणा पा कर खड़ा हूँ। इन वर्षों में मुझे एक-दो सवर्णों से ही बुरा सुनने को मिला जबकि ज्यादातर कोई दलित ही मेरे बारे में उटपटांग लिख या बोल रहा होता है। इस से मुझे बहुत दुख होता है। कुछ लोग इन कार्यों को समझते हैं तो वह एक बुझते दिये में तेल के समान होते हैं।
मैं यह सब अपनी आपबीती बताने के लिए नहीं लिख रहा हूँ। मैं यह इसलिए बता रहा हूँ कि आज जब मेरा यह हाल है तो सोचिए कि डॉ. आंबेडकर जी ने किन हालातों में हमारे लिए संघर्ष किया होगा। एक तरफ उनके पुत्र मर रहे थे और दूसरी तरफ वे विदेश में अपनी करोड़ों अछूत संतानों के लिए पुस्तकें पढ़ रहे थे। तब ज़रूर आज के जैसे दलित रहे होंगे, और यक़ीनन तब वे बहुत मात्रा में होंगे, जो यह सोचते या ताना देते होंगे कि 'अरे आंबेडकर यहाँ तुम्हारे बच्चे मर रहे हैं और तुम लन्दन में बैठ कर किताबे पढ़ रहे हो।" कुछ होंगे कि कहेंगे कि अरे किताबों से क्या मिलता है ? क्या ऐसी सोच से मनुष्य का कल्याण होता है ?
तो मैं दुखी मन से यह सोच रहा था कि मेरा लघु उपन्यास 'दलित की गली' मेरा जीवन है, मेरे अनुभव हैं, जो आने वाले समय में जाने चाहिए और आने वाली पीढ़ियों को हमारे साथ किए अत्याचारों और षडयंत्रों का पता चलना चाहिए। फिर मुझे याद आए डॉ. आंबेडकर जी। शायद वह भी अपनी पुस्तकें लिखते समय यही सोचते होंगे कि मेरी आने वाली पीढ़ी को यह सब पता चलना चाहिए। पर क्या आज उस पीढ़ी को उनके विचारों की कद्र है ? क्या आज वह पीढ़ी जो किसी सुविधा वाली जगह पर आरक्षण का कॉलम भरना नहीं भूलती, उसे डॉ. आंबेडकर जी की कद्र है ? वे करोड़ों जो किसी अनजान देवता को पूजते हैं उन्होंने कभी उस डॉ. आंबेडकर जी को महसूस करना चाहा जिनकी वजह से आज उनकी ज़िन्दगी संवरी है ? क्या यह पीढ़ी डॉ. आंबेडकर जी को जानती है ? क्या यह पीढ़ी डॉ. आंबेडकर जी से मिली है ? क्या यह पीढ़ी डॉ. आंबेडकर जी की चेतना से अवगत है ?
मुझे लगा था कि मेरी पुस्तक मेरा जीवन है। ऐसे ही डॉ. आंबेडकर जी की पुस्तकें उनका जीवन है। किसी व्यक्ति को हम केवल शरीर से ही नहीं जानते। शरीर एक जरिया होता है उसके मन और विचारों जो जानने का। पर उस व्यक्ति की असली चेतना उसके विचारों में ही होती है। किसी की अनुपस्थिति में भी हम उसके विचारों से वशीभूत हो जाते हैं। सात समंदर पार किसी व्यक्ति से हम ऐसे प्रेरित हो जाते हैं कि हमारा पूरा जीवन ही बदल जाता है। एकलव्य को द्रोणाचार्य का शरीर नहीं मिला पर वह उनकी चेतना से ही प्रयास करके धनुर्धर बन गया।
एकलव्य की कहानी तो बहुत लोगों ने सुनी होगी और बहुत से लोग द्रोणाचर्य को कोसते भी होंगे। पर ऐसे लोगों ने कभी यह सोचा है कि उनके लिए डॉ. आंबेडकर जो अपनी शिक्षा अपनी पुस्तकों, लेखों और भाषणों के रूप में छोड़ कर चले गए, क्या उन्होंने वह अब तक ग्रहण किए। ऐसे लोग द्रोणाचार्य को कोसेंगे, वे मुझे भी कोसेंगे, क्योंकि कोसना ही उनका स्वभाव बन गया है, और मैंने ऐसे भी दलित देखे हैं जो डॉ. आंबेडकर जी की वजह से शिक्षा, नौकरियां और समानता के अधिकार पाने के बाद इतने प्रबुद्ध हो जाते हैं कि डॉ. आंबेडकर जी को भी कोसते हैं। क्योंकि उन्हें जो सहूलियतें मिल रही हैं वे किसी और के परिश्रम और संघर्ष का परिणाम है। यदि ऐसे लोगों ने परिश्रम और संघर्ष किया होता तो उन्हें पता चलता कि समाज को बुद्धिजीवी बनाने और उनके लिए कार्य करना क्या होता है और किन कठनाइयों से भरा होता है। ऐसे लोग यह तो कहेंगे कि समाज के काम में पैसे क्यों चाहिए पर इनमें यह कहने का साहस नहीं है कि समाज के काम करनेवाले के पास ही अधिक धन होना चाहिए जिस से कि वह समाज के काम और अच्छे से कर पाए। ऐसे लोग किसी मुर्दे के सामान हैं, जिस में न चेतना है और न चेतना पाने का साहस।

खैर, तो बात डॉ. आंबेडकर जी के ज़िंदा रहने की थी। मेरे पास यदि उनके विचार नहीं होते तो वह एक मिथक बन जाते।आज उनके विचार ऐसे हैं मानों मैं साक्षात डॉ. आंबेडकर जी से मिल रहा हूँ। हाँ डॉ. आंबेडकर जी ज़िंदा हैं। और मैं उनसे मिलता हूँ जब मैं उन्हें पढ़ता हूँ। उनके विचार ही मुझे मेरे बाबा साहिब डॉ. आंबेडकर जी के साक्षात्कार करवाते हैं। वो मेरे लिए कल्पना, मिथक, किवदंती नहीं हैं। वो मेरे मेरी चेतना में हैं जो मुझे उनके विचारों से मिली है। 


तो आप भी यदि उनकी पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं तो हम से संपर्क करें। यह लेख डॉ. आंबेडकर जी की चेतना जगाने और उनकी पुस्तकें बेचने के लिए है। केवल बेचना ही ध्येय नहीं है। बेचने के लिए तो कई चीज़ें हैं या पैसे कमाने के लिए नौकरी भी है। अपने दिमाग से संकुचित विचार निकालिए। डॉ. आंबेडकर जी को पढ़िए, पढ़िए और बस पढ़िए। उनके लेख आपके लिए हैं। आपकी पीढ़ियों के लिए हैं। अपने पिता के श्राद्ध पर तो आपने हज़ारों खर्च किए होंगे या कर भी सकते हैं। पर डॉ. आंबेडकर जी ने तो आपको सब कुछ दिया है। फिर उनसे क्यों नहीं मिलते ? उन्हें क्यों नहीं पढ़ते ? क्यों उनकी चेतना तक नहीं पहुँचते ? उनसे मिलिए। उनकी चेतना से मिलिए। उनको पढ़िए। तब ही आप एक सच्चे भीम सैनिक बन पाएंगे। 
जय भीम
निखिल सबलानिया






















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बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर जीवन और चिंतन - भाग 1 से 9.
भाग - 1: डॉ. आंबेडकर जी के परिवार, बचपन और शिक्षा के बारे में।
भाग - 2: डॉ. आंबेडकर जी के द्वारा शुरू किए गए अख़बारों और संस्थाओं के बारे में।
भाग - 3: डॉ. आंबेडकर जी के द्वारा किए गए सत्याग्रहों के बारे में।
भाग - 4: डॉ. आंबेडकर जी के गोलमेज परिषद में उपस्थित होने और उनके परिषद में कहे कथनों के बारे में।
भाग - 5: पूना पैक्ट, डॉ. आंबेडकर जी के संयुक्त संसदीय कमेटी और सामाजिक सुधार के कार्य।
भाग - 6: डॉ. आंबेडकर जी के धर्मांतरण संबंधी व अन्य आंदोलनों के बारे में।
भाग - 7: डॉ. आंबेडकर जी के मज़दूर वर्गों के और रेलवे कर्मचारियों के लिए किए गए कार्यों के बारे में।
भाग - 8: डॉ. आंबेडकर जी के राजनैतिक जीवन और राजनैतिक पदों, दक्षिण भारत के दौरों की जानकारी, अस्पृश्यों की सेना में भागीदारी और गाँधी-जिन्ना टकराव के बारे में।
भाग - 9: डॉ. आंबेडकर जी के कांग्रेस केविरोध, स्वतंत्रता पश्चात् एवं संविधान निर्माण में किए गए कार्यों के बारे में।
बाबा साहेब जी के जीवन काल में ही प्रकाशित। हिंदी पाठकों के लिए विशेष रूप से मराठी से हिंदी में अनुवादित किया गया। लेखक चांगदेव भवानराव खैरमोड़े जी की डॉ. आंबेडकर जी पर अनुपम कृतियां। डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के जीवन और विचारों का सबसे विस्तृत और विश्वसनीय संकलन नौ खण्डों में। साथ में : डॉ आंबेडकर जी की विस्तृत जीवनी - युग पुरुष बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर, उनकी पुस्तक अछूत और ईसाई धर्म, दीक्षा समारोह में दिया उनका भाषण, उनकी संक्षिप्त जीवनी बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की अमर कथा और पुस्तक भारत में बौद्ध धम्म का पतन क्यों और कैसे भी हैं। यदि केवल नौ खंड लेते हैं तो डाक सहित मूल्य ₹ रु 3000. अतिरिक्त पांच पुस्तकों के साथ डाक सहित मूल्य ₹ 3500.


Thursday, March 7, 2019

डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की पुस्तक एनिहिलेशन ऑफ कास्ट का सरल हिंदी में अनुवाद Hindi Translation of Dr. B. R. Ambedkar's Annihilation of Caste and Castes in India






















































डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के बहुचर्चित भाषण 'एनिहिलेशन ऑफ कास्ट'
(Annihilation of Caste) का मेरे द्वारा किया गया सरल हिंदी भाषा में अनुवाद 'जाति का संहार' इस वर्ष हमारे प्रकाशन 'निखिल सबलानिया पब्लिकेशन्स' से प्रकाशित कर रहे हैं। आप यदि यह वितरण करना चाहते हैं तो हमसे संपर्क करें। इसे आप हमारी वेबसाइट पर भी खरीद पाएंगे। पुस्तक के बारे में - 1936 में यह पुस्तक पहली बार प्रकाशित हुई थी। लाहौर के जात-पात-तोड़क मंडल के लिए तैयार किए गए इस भाषण को आर्य समाजियों के दबाव में आ कर मंडल ने हूबहू बोलने से माना कर दिया। हालाँकि डॉ. आंबेडकर जी इस सभा की अध्यक्षता कर रहे थे। बाद में डॉ. आंबेडकर जी ने इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया और द्वितीय संस्करण में मिस्टर गाँधी जी को उनके सवालों के जवाब भी दिए, जो इस पुस्तक में सम्मिलित हैं। बाबा साहिब डॉ. आंबेडकर जी का हम पर उपकार है कि जिन्होंने इतनी उत्तम कृति लिख कर भारत के लोगों को यह अनुपम भेंट दी। यह अनुवाद इतना सरल है कि किसी भी हिंदी पाठक की समझ में आसानी से आ जाएगा। कई शब्दों के एक से अधिक अर्थ भी जोड़ दिए हैं। कई शब्दों के प्रचलित उर्दू शब्द भी दिए हैं जिस से कि यह विशेषकर उत्तर भारत के पाठकों को ऐसा ही लगे कि वे आम बोलचाल की भाषा में ही इसे पढ़ रहे हैं। डॉ. आंबेडकर जी ने इतनी अच्छी तरह से बातों को समझाया है कि पढ़ने वाले को एक-एक चीज सही से समझ में आ जाएगी। और अनुवाद में भी इस बात का ध्यान रखा गया है कि डॉ. आंबेडकर जी की लेखनी को भी ज्यों-का-त्यों रखा जाए जिस से कि पाठक वैसे ही पढ़ें जैसे डॉ. आंबेडकर जी चाहते थे। साथ ही, जैसा कि डॉ. आंबेडकर जी चाहते थे कि, इस पुस्तक के साथ 1916 में लिखे उनके लेख 'भारत में जातियां - उनकी क्रियाविधि, उत्पत्ति और विकास' (Castes In India - Their Mechanism, Genesis and Development) को भी इस पुस्तक में शामिल किया जाएगा। इसका अनुवाद भी एकदम सरल होगा और यह डॉ. आंबेडकर जी को हमारी एक भेंट होंगी। मित्रों, ऐसे कार्य करने के लिए शिक्षा, समय, ऊर्जा, लगन और धन की आवश्यकता पड़ती है। शिक्षा है, लगन है, मेहनत करते हैं, पर धन का अभाव ही रहता है। इस कमी को दूर करने के लिए आप चाहें तो दान दे सकते हैं अथवा इस पुस्तक की कम-से-कम सौ प्रतियां खरीद कर उनका वितरण कर सकते हैं। ऐसे आप डॉ. आंबेडकर जी को श्रद्धांजलि देंगे, उनके कार्य को आगे बढ़ांएगे, समाज को एक नई दिशा देंगे और हमरी भी मदद करेंगे कि हम भी आपके साथ जुड़ कर डॉ. आंबेडकर जी के विचारों को आगे बढ़ा सकें। आप हमसे डॉ. आंबेडकर जी की फोटो वाली टीशर्ट पर अपने संगठन या गांव का नाम छपवा कर प्राप्त कर सकते हैं। साथ ही बाबा साहिब जी से सम्बंधित प्रचार सामग्री जैसे की पैन, झंडे, लॉकेट आदि भी उपलब्ध हैं। तो डॉ. आंबेडकर जी के मिशन को आगे बढ़ाने में साथ जुड़ें और अपना सहयोग दें। आपका धन सही जगह लगेगा, इस बात से निश्चिन्त रहे। पुस्तक 25 मार्च 2019 तक प्रकाशित हो जाएगी। जय भीम - धन्यवाद - आपका सेवक निखिल सबलानिया प्रकाशन से - निखिल सबलानिया, नई दिल्ली संपर्क : M. 8851188170, WA. 8447913116. वेबसइट www.nspmart.com












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Wednesday, March 6, 2019

डॉ. अम्बेडकर जी के जन्मदिन 14 अप्रैल का दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को सन्देश






















आज मैं आपसे जो बात कह रहा हूँ उसे थोड़ा समझिए।आप सभी जानते हैं कि 14 अप्रैल को हमारे लोग बाबा साहिब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का जन्मदिन (जयंती) मानते हैं। पिछले कुछ वर्षों में हमारे जागृत युवकों ने बाबा साहिब जी की जयंती अपने-अपने क्षेत्रों, शहरों, गाँवों व महानगरों में मानना शुरू किया है। विदेशों में भी हमारे लोग कई कार्यक्रम आयोजित करते हैं। पर मैं जब किसी सवर्ण हिन्दू (ब्राह्मण, बनिया या क्षत्रिय) या जैनी के यहाँ फैक्ट्रियों और दुकानों में देखता हूँ तो यह पाता हूँ कि जो श्रमिक (कारीगरी या मज़दूरी) करने वाले लोग गाँवों से आ कर उनके यहाँ काम करते हैं, ये लोग अधिकतर दलित, आदिवासी और पिछड़ा वर्गों से होते हैं। इस लोगों में बाबा साहिब जी के मिशन की जागरूकता बहुत कम या न के समान है। ये लोग होली या दिवाली मानाने तो छुट्टी लेकर घर जाते हैं पर बाबा साहिब जी की जयंती पर फैक्ट्रियों या दुकानों में ही काम करते हैं। मेरा आपसे यह यह अनुरोध है कि आप अपने गाँवों या अन्य क्षेत्रों के लोगों पर ज़ोर डालें कि वे 14 अप्रैल पर भी छुट्टी लेकर अपने घर आएं और बाबा साहिब जी का जन्म दिन मनाए। वैसे 14 अप्रैल की सरकारी छुट्टी तो होती है पर निजी कम्पनियां, कारखाने या दुकानें खुली रहते हैं। क्या मुसलमान ईद पर काम करता है? क्या ईसाई क्रिसमस पर काम करता है ? क्या सिख गुरुपूर्व पर या जैन महावीर जयंती पर काम करता है ? तो आप क्यों 14 अप्रैल, बुद्ध पूर्णिमा और बाबा साहिब जी के परिनिर्वाण दिन 6 दिसंबर पर काम करते हो ? यह आपकी संस्कृति है जिसे आपको बचाना और मजबूत करना है। जिस दिन देश के सभी दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज के लोग और मुझे यकीन है कि इसमें मुस्लिम, सिख और ईसाई भी उनका साथ देंगे, 14 अप्रैल पर काम नहीं करेंगे और अपने घर जा कर बाबा साहिब जी का जन्मदिन मनाएंगे, अपने घरों को दीपक से रात्रि में प्रकाशित करेंगे, तो मुझे यकीन है कि भारत में ही नहीं बल्कि विश्व में भी हमारी आवाज़ गूंजेगी। हम पर अत्यचार करने वालों और हम से अमीर बनने वालों को हमारी शक्ति का पता तो चलेगा। आपको अपनी शक्ति दिखानी है तो एकजुटता दिखानी होगी। आपको अपना इतिहास बनाना है तो अपनी संस्कृति का विकास करना होगा। आपको अगर राज करना है तो आपको संगठित होना होगा। इसलिए आपसे अनुरोध है कि आनेवाली 14 अप्रैल को काम न करें और अपने घर जा कर जयंती बड़े-से-बड़े पैमाने पर मनाएं।
हम बाबा साहिब जी की जयंती पर फोटो वाली टीशर्ट जिन पर आपके गाँव या संगठन का नाम भी छपा हो, उनकी पुस्तकें, संक्षिप जीवनी, झंडे, पटके, लॉकेट, व अन्य प्रचार सामग्री आदि बेचते हैं। आप हमसे खरीद सकते है और हमारी वेबसाइट पर भी ऑर्डर कर सकते हैं। इस से ऐसा नहीं समझिएगा कि यह लेख (सन्देश) मात्र बेचने या व्यापार करने के लिए है। यदि हमें सिर्फ व्यापार ही करना होता तो होली-दीवाली पर ही कर लेते और ऐसे सवर्णों को खुली चुनैती न देते। पर हमारा मकसद अपनी कौम को मजबूत बनाना है और कौम को हमें मजबूत बनाना है जिससे कि हम बाबा साहिब जी का कारवां वैसे ही आगे बढ़ा सकें जैसे पिछले दस वर्षों से बढ़ा रहे हैं। हमसे सामान खरीद कर आप पैसा सही जगह और बाबा साहिब जी की मूवमेंट में ही लगाएंगे। हमारे समाज के लोग यदि किसी व्यवसाय को करना चाहते हैं तो (14 अप्रैल के बाद ) हम उन्हें सलाह भी दे सकते हैं और सस्ते सामान का स्रोत भी बता सकते हैं। व्यापार में जब तक नहीं उतरेंगे और आर्थिक रूप से जब तक मजबूत नहीं होंगे तब तक दूसरे पर आश्रित और कमजोर ही बने रहेंगे। तो इन अंतिम शब्दों के साथ मैं अपनी बात पूरी करता हूँ कि आप 14 अप्रैल पर भारत को बता देंगे कि आपकी संख्या और बल क्या है।
धन्यवाद हमारा संपर्क : M. 8851188170, WA - 8447913116. ऑर्डर करने के लिए हमारी वेबसाइट : www.nspmart.com












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