Monday, November 28, 2016

छूने तक का अधिकार देने को तैयार नहीं

*झाँसी: कलराज ने मंच पर की केशव मौर्या की बेइज्जती*

झाँसी में परिवर्तन रैली में भाजपा नेताओं ने परिवर्तन का आह्वान करने के साथ-साथ प्रदेशाध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या की अच्छी-खासी बेइज्जती कर दी। मंच पर जब सारे नेता एकजुटता का संदेश देने के लिए खड़े होकर एक दूसरे का हाथ पकड़कर उठाने लगे तो केंद्रीय लघु उद्योग मंत्री कलराज मिश्रा ने केशव प्रसाद मौर्या का हाथ ही झटक दिया। मंच पर हुई बेइज्जती से अकबकाए केशव मौर्या को जब कारण समझ नहीं आया तो कलराज मिश्रा ने डाँटकर उनसे दूर रहने की हिदायत दे दी।

दरअसल, केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्रा इस बात पर ध्यान लगाए रहे कि पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह उनके ही बगल में रहें। इसमें तो वे कामयाब रहे लेकिन वे यह नहीं देख पाए कि उनकी दूसरी तरफ  कोई राष्ट्रीय या ब्राह्मण नेता नहीं, बल्कि केशव प्रसाद मौर्या ही आ गए हैं।

इसके बाद जब उत्साहित होकर सभी नेता एक दूसरे का हाथ पकड़कर एकजुटता का संदेश देने लगे तो अपने को बड़ा नेता मानने की गफलत में पड़े केशव मौर्या ने बगल में खड़े कलराज मिश्रा का हाथ पकड़कर ऊपर उठाने की कोशिश की। जब कलराज ने देखा कि केशव प्रसाद मौर्या उनका हाथ पकड़कर रहे हैं, तो वे बुरी तरह बिफर गए। उन्होंने गुस्से और हिकारत से केशव का हाथ झटक दिया, और डाँट दिया। 

मजबूर होकर केशव को अपनी झेंप मिटाने की कोशिश करते हुए अपना एक ही हाथ ऊपर करना पड़ा। मंच पर मौजूद नेताओं का तो इस घटना पर उस समय ध्यान नहीं गया, लेकिन नीचे से सब देख रहे लोगों को ये घटना बहुत बुरी लगी।

केशव प्रसाद मौर्या एक ओर जहाँ अपने को प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते मुख्यमंत्री पद का दावेदार बता रहे हैं, और इस बहाने कुशवाहा, मौर्या वोटों को लुभाने में लगे हैं, वहीं ब्राह्मणी संस्कृति में पले-बढ़े कलराज मिश्रा उन्हें छूने तक का अधिकार देने को तैयार नहीं हुए, और मंच पर ही उनकी बेइज्जती कर बैठे।

अगले दिन जब अखबारों में तस्वीर और खबर छपी, तो केशव प्रसाद मौर्या को अपनी बेइज्जती का अहसास हुआ, लेकिन वो अब कुछ करने की स्थिति में नहीं रहे। भाजपा के सवर्ण नेताओं ने भी इसे सामान्य घटना मानकर इसकी अनदेखी कर दी है।

रैली में कुशवाहा और अन्य ओबीसी नेताओं का भी पर्याप्त अपमान हुआ। प्रतिष्ठित नेता हरगोविंद कुशवाहा को कुछ ही दिन पूर्व बहुजन समाज पार्टी छोड़कर भाजपा में आए थे, लेकिन उन्हें भी कोई तवज्जो नहीं दी। खास बात ये है कि बुंदेलखंड में कुशवाहा समाज की संख्या काफी है, और वो जीत में निर्णायक भूमिका निभाते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र नारायण सिंह यादव का कहना है कि स्थानीय कुशवाहा समाज के साथ-साथ प्रदेश स्तर पर भी कुशवाहा और ओबीसी समाज में इस घटना को लेकर काफी नाराजगी और अपमान की भावना देखी जा रही है।  बाबूसिंह कुशवाहा के जनाधिकार मंच के कार्यकर्ता सबसे तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे हैं और कह रहे हैं कि भाजपा में कुशवाहा नेताओं का अपमान हो रहा है।

हालाँकि, खुद केशव प्रसाद मौर्या भी अपनी ही पार्टी के दलित नेताओं का अपमान करते रहे हैं। पिछले दिनों सोनभद्र जिले में वे भाजपा के दलित सांसद छोटेलाल खरवार की अच्छी-खासी बेइज्जती कर चुके हैं। इस खबर के अखबारों में आने के बाद और अपमानित छोटेलाल खरवार की तस्वीरें वायरलहोने के बाद भाजपा की अच्छी-खासी बेइज्जती हुई थी। सोशल मीडिया पर भी भाजपा की अच्छी-खासी फजीहत हुई थी।

पत्रकार महेंद्र नारायण सिंह यादव ने पूरे घटनाक्रम पर व्यंग्य करते हुए फेसबुक  पर लिखा है- "ओबीसी होकर ब्राह्मण को छूते हो? पंडितजी को अपवित्र कर दिया! सर्दी के दिनों में पंडित जी को तुरंत नहाना पड़ गया होगा! "75" साल पारकर चुके पंडित जी ठंड लग जाए तो कौन जिम्मेदार होगा?  बड़े आए मुख्यमंत्री बनने का सपना देखने वाले, दूर हटो

Saturday, November 26, 2016

आरक्षण की समीक्षा

[10/20, 10:51 AM] ‪+91 92001 42243‬: आजकल जहाँ भी दो चार जनरल केटेगरी वाले इक्कठे बैठते हैं वहाँ एक ही चर्चा होती है कि इस आरक्षण ने देश को बर्बाद कर दिया है, अब तो सभी बराबर हो गए हैं कोई जातिवाद नहीं है इसलिए अब इस आरक्षण को खत्म कर देना चाहिए।

अफशोस की बात यह की हमारे कई नेता भी बोलने लगे हैं कि आरक्षण की समीक्षा होती है तो क्या बुरा है।

जिन लोगों को सब कुछ ठीक ठाक लग रहा है और कहीं भी जातिवाद नजर नहीं आता है उनको आह्वान किया जाता है कि आओ मेरे साथ मैं तुम्हें जातिवाद दिखाता हूँ।

आओ चलें ईंट भट्ठों पर और देखो वहाँ जो ईंट पाथ रहें हैं या पक्की हुई ईंटों की निकासी कर रहे हैं जिनमें पुरुषों के साथ साथ उतनी ही संख्या में महिलाएं भी दिखाई दे रही हैं उनमें ब्राह्मण, राजपूत और बणिया कितने हैं ?

इसका जवाब यही होगा कि इनमें तो उन समाजों का एक भी व्यक्ति नहीं है तो फिर यह जातिवाद नहीं है तो फिर क्या है ?

अब आगे चलो मेरे साथ शहरों की गलियों में और ध्यान से देखो जो महिलाएं सड़कों पर झाड़ू लगा रही हैं और गंदी नालियाँ साफ कर रही हैं उनमें कितनी ब्राह्मणी, ठुकराईंन और सेठाणी जी दिखाई दे रही हैं ?

यहाँ भी वही जवाब की इनमे तो ब्राह्मणी, ठुकराएंन और सेठाणी एक भी नहीं है तो यह जातिवाद नहीं है क्या ?

अब आओ चलते हैं रेलवे स्टेशन, हमारे देश में कई हजारों की संख्या में रेलवे स्टेशन बने हुए हैं वहाँ जो रेलवे लाइनो पर शौच के ढेर के ढेर लगे हुए रहते हैं उनको रातों रात साफ करने के लिए पंडित जी आता है या सिंह साहब या फिर शाहूकार जी सेवा देते हैं।

इसका भी वही जवाब मिलेगा की उनमे से तो एक भी नहीं आता है तो फिर क्या यह जातिवाद नहीं है ?

अब रूख करते हैं भवन निर्माण कार्य करने वाले मिस्त्री और मजदूरों की ओर, जो पूरे दिन अपना हाथ चलाते रहते हैं जिन्हें मिस्त्री कहते हैं और जो पूरे दिन सिर पर काठड़ी ढोने में लगे रहते हैं उन्हें मजदूर कहा जाता है वैसे वे मजदूर नहीं बल्कि मजबूर हैं क्योंकि 50 डिग्री तापमान में कोई कूलर की हवा खा रहा होता है तो कोई ऐ सी में मौज कर रहा होता है उस वक्त भी ये लोग तेज गर्मी और लू के थपेड़े खा रहे होते हैं, अब इनमे भी नजर दौड़ाते हैं तो उनकी संख्या नदारद मिलती है तो क्या यह जातिवाद नहीं है क्या ?

अब अपना ध्यान जगह जगह बोरी बिछाकर बैठे हुए उन लोगों की ओर लेकर जाओ जो जूता पॉलिश करते हैं या जूतों की मरमत करते हैं उनमें पंडित जी और उनके साथियों की भागीदारी कितनी है, जवाब मिलेगा बिलकुल शून्य, तो पूरा का पूरा तो जातिवाद भरा पड़ा है ।

अब आजाओ बाजारों की ओर चारों ओर जो बड़े बड़े मॉल और बड़ी बड़ी दुकाने दिखाई दे रही है उनका मालिक कोई एस सी समाज वाला भी है या नहीं ?

यहाँ एकदम से ही पासा पलट गया है अब यहां एस सी का एक भी बन्दा नजर नहीं आएगा और सभी पर ब्राह्मण और बनिया व राजपूत का कब्जा मिलेगा।

अब सभी मिलकर सोचो कि क्या यह जातिवाद नही है ?

बिलकुल यह खुलं खुला जातिवाद हैं।

अब मंदिरों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहना चाहता हूँ कि मंदिरों में कितने पुजारी ब्राह्मण के अलावा देखने को मिलते हैं, शायद एक भी नहीं । क्या इसे आप जातिवाद नहीँ समझते हो।

आज भी हर कदम पर जातिवाद का जहर भरा हुआ है और लोग कहते हैं कि अब कोई जातिवाद नहीं है अब आरक्षण खत्म कर दिया जाना चाहिए।

आरक्षण होते हुए भी उच्च पदों पर हमारे समाज के लोगों को पहुंचने से रोका जाता है यदि जिस दिन आरक्षण खत्म हो जायेगा उस दिन से तो जातिवाद और अधिक पढ़ जायेगा ।
इसलिये जो ऐसी बात करता है उसे कहो कि आओ मेरे साथ तुम्हेँ जातिवाद दिखाता हूँ ।

.....भारत में 3% ब्राह्मण .....
**********************
3% लोगों का हिस्सा देखिये....

लोकसभा में ब्राह्मण : 48 %
राज्यसभा में ब्राह्मण : 36 %
ब्राह्मण राज्यपाल : 50 %
कैबिनेट सचिव : 53 %
मंत्री सचिव में ब्राह्मण : 64%
अतिरिक्त सचिव ब्राह्मण : 62%
पर्सनल सचिव ब्राह्मण : 70%
यूनिवर्सिटी में ब्राह्मण वाईस
चांसलर : 61%
सुप्रीम कोर्ट में ब्राह्मण जज: 85%
हाई कोर्ट में ब्राह्मण जज : 70 %
भारतीय राजदूत ब्राह्मण : 51%
पब्लिक अंडरटेकिंग ब्राह्मण :
केंद्रीय : 67%
राज्य : 82 %

बैंक में ब्राह्मण : 67 %
एयरलाइन्स में ब्राह्मण : 61%
IAS ब्राह्मण : 72%
IPS ब्राह्मण : 61%
टीवी कलाकार एव बॉलीवुड : 83%
CBI Custom ब्राह्मण 72%
यदि हमारा आरक्षण गलत है और उसका सवर्णों के द्वारा विरोध किया जाता है! तो ये क्या है इसका विरोध आज तक किसी ने क्यो नही किया गया ? कहाँ छुपे हैं आरक्षण विरोधी लोग।
एससी-एसटी और ओबीसी को जो आरक्षण मिला है वह जनसंख्या के अनुपातिक आधार पर मिला है जिसके तहत SC & ST को 22.5% नौकरी और राजनीति में मिला है।ओबीसी की जनसंख्या 60%है जबकि आरक्षण केवल 27%मिला है । निम्न सारणी पर ध्यान दें ।
जनसंख्या आरक्षण प्रतिशत
एस सी 15 % 15 %
एस टी 7.5 % 7.5 %
ओबीसी 60 % 27 %
_______________________

योग 85 % 49.5% _______________________
अाज 60% ओबीसी समाज को 69 वर्षों में केवल 5% ही भर सका है।
SC, ST, OBC, MINORITY's जनसंख्या 85% और आरक्षण 49.5%
General castes जनसंख्या
15% और आरक्षण 50.5%
अब इस आंकड़ा को देख कर बताइए की वास्तविक में आरक्षण कौन ले रहा है? कुल मिला कर इस देश में मनुवादी ब्यवस्था आज भी कायम है। इसे कायम रखने वाले यहाँ की मनुवादी सरकारें है। जिन्होंने बारी बारी इस देश में 70 सालों तक राज किया । और अपनी ब्यवस्था को कायम रखने के लिए अपनी कूटनीति के तहत हमें आपस में लडाते रहते हैं और हमारे आरक्षण का विरोध करते हैं ताकि उनको मिल रही आरक्षण की ओर हमारा ध्यान ना जा सके। पर दुःख की बात तो यह है कि हमारे अपने ही लोग ढाल बन कर इनका साथ देते हैं जिसे मै अज्ञानी और मुर्ख के अलावा और कुछ नही कह सकता है।
: 👉 *मायावती ने मात्र 600 करोड़ में भारत के संविधान निर्माता का स्मारक _"अम्बेडकर पार्क"_ क्या बनाया पूरा मीडिया और विरोधी दिन रात  चिल्लाते रहे*।

1.जबकि कारीगर भी भारतीय थे।
2.रोजगार भी भारतीयों को मिला।
3.मैटेरियल भी भारत का ही था।
4.निर्माण शैली भी भारतीय  ही थी।
5.राज्य सरकार को स्मारक से राजस्व भी मिला।

गर्व से हम कह सकते हैं, *भारतीयों द्वारा*, *भारत में    निर्मित*

👉 *जबकि BJP सरकार 2500 करोड़ की सरदार पटेल की मूर्ति लगवा रही है वो भी _"मेड इन चीन"_*

1.जिस चीन ने आतंकवाद पर भारत का विरोध किया।
2.जो चीन आतंकवाद पर पाकिस्तान के साथ खड़ा है।
3.जिस चीन ने भारत के लिए पानी बन्द कर किया
4.जो चीन हमारे देश की जमीन हडपे हुए है।
5.जो चीन बात बात पर भारत को आंखे दिखाता है।

*तो उस चीन को इतना बडा आर्थिक लाभ क्यूँ*?

*लेकिन इस पर सारा मीडिया*, *पूरा देश खामोश है।*

*तो ऐसे में देश की जनता  चीनी सामान के बहिष्कार को कैसे गम्भीरता से लें*?

दीपावली की मीमांसा

🔥दीपावली🔥 मीमांसा

लेखक✍-सुनील

हम बचपन से स्कूली किताबों और अखबारों में पढते आएँ हैं कि दीपावली राम के वन से घर आने की खुशी में मनाई जाती है और विजयादशमी रावण को मारने की खुशी में।
क्या आप भी इसे सच मानते हैं?
यदि हाँ
फिर तो मुझे यह कहते हुए बड़ा दुःख होगा कि आप भेड़ वृति के हैं।
बुरा न माने
अपने ग्रंथों को उठाकर देखें।
पढना बड़ा भारी काम होता है चलो मैं ही बता देता हुँ।
चैत्रः श्रीमानयं मासः पुण्यः पुष्पितः कानन:।
यौवराज्याय रामस्य सर्वमेवोपकल्प्यताम्।।
-वाल्मिकी रामायण अयोध्या काण्ड ३/४
अर्थ-यह चैत्र मास बड़ा सुंदर और पवित्र है इसमें सारे वन उपवन खिल उठे हैं इस समय राम का युवराज पद पर अभिषेक करने के लिए सब सामग्री एकत्र कराईए।

श्व एव पुष्यो भविता श्वोभिषेच्यस्तु मे सुतः।
-अयोध्या कांड ४/२
अर्थ-कल ही पुष्य नक्षत्र होगा अतः मेरे पुत्र का कल ही अभिषेक होगा।

और पाठकों आपको पता है राम अगले दिन १४ वर्ष के वनवास को चले गए थे।
१३ वर्ष तक कुशल रही और १४ वें वर्ष परेशानियाँ आनी शुरू हुई।

सीता हरण के बाद जब हनुमानादि खोज में निकले तब अंगद कहता है-
वयमाश्व युजे मासि काल संख्या व्ययस्थिताः।
प्रस्थिता सोपिचातीतः किमतः कार्यमुत्तरम्।।
-किष्किंधा कांड सर्ग५३/९
अर्थ-सीता की खोज में हम आश्विन मास बीतते बीतते निकले थे किंतु यह तो यहीं निकल गया।अब हमें आगे क्या करना चाहिए।

पाठकों देखिए सीता की खोज में ही आश्विन मास निकल गया और हिंदू आश्विन मास में ही रावण का वध करवा डालते हैं।

सीता सुंदर कांड सर्ग ३७/8 में हनुमान से कहती है-"वानर!यह दसवाँ महीना चल रहा है"
मतलब चौदहवें वर्ष का पौष का महीना।

इसी कांड के ४०/१० में सीता कहती है-"राजकुमार शत्रुसूदन!मैं आपकी प्रतिक्षा में एक मास जीवित न रह सकूँगी।"
अर्थात् अभी फाल्गुन मास चल रहा है।

एक मास निकल जाने के बाद राम रावण युद्ध होता है और युद्ध कांड ९२/६८ में लिखा है-
अभ्युत्थानं त्वमद्यैव कृष्णपक्ष चतुर्दशी।
कृत्वा निर्याह्यमावस्यां विजयाय क्लैर्वृतः।।
अर्थ-आज कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी है आज तैयारी करके कल अमावस्या के दिन युद्ध के लिए प्रस्थान करो।

देखिए मित्रों १४ वाँ वर्ष बीत जाने पर अर्थात् चैत्र मास की अमावस्या को राम रावण युद्ध हुआ फिर हिंदू आश्विन में रावण क्यों जलाते हैं राम का विजया दशमी से क्या संबंध है?

रावण को मारने के बाद नव वर्ष लग गया।
पूर्णे चतुर्दशे वर्षे पंचभ्यां लक्ष्मणाग्रजः।
भरद्वाजाश्रमं प्राप्य ववन्दे नियतो मुनिम्।।
-युद्ध कांड १२४/१
अर्थ-राम ने 14 वर्ष पूर्ण होने पर पंचमी तिथि को भारद्वाज आश्रम में पहुंचकर मन को वश में रखते हुए मुनि को प्रणाम किया।
अर्थात् चैत्र शुक्ल पक्ष पंचमी को।

और इसी कांड के १२५/३ में राम हनुमान को भरत के पास जाकर अगले दिन राम के आने का संदेश देने को कहते हैं।

हनुमान भरत से कहते हैं-"हे भरत!किष्किंधा से गंगा तट पर आकर वे प्रयाग में भारद्वाज मुनि के समीप ठहरे हैं। कल पुष्य नक्षत्र के योग में बिना किसी विघ्न बाधा के आप राम का दर्शन करेंगे।

तो मित्रों इस प्रकार राम अगले दिन यानी चैत्र शुक्ल षष्ठी को अयोध्या लौटते हैं उसी पुष्य नक्षत्र में जिसमें वन को गये थे।
तो फिर हमें क्यों पढाया जाता है कि राम कार्तिक अमावस्या के दिन अयोध्या आये थे जिसकी खुशी में दिपावली मनाई जाती है।

न तो विजयादशमी को रावण मारा गया न कार्तिक अमावस्या को राम घर लौटा।

सच तो यह है विजया दशमी बौद्धों का त्यौहार है और दीपावली बुद्ध काल में भी यक्ष रात्रि के नाम से मनाया जाता था जिसका एक प्रमाण यह है कि इस दिन यक्षराज कुबेर की पूजा होती है।

लक्ष्मी की पूजा करते समय हिंदू यह बात नहीं जानते की लक्ष्मी की मूर्ति का विकास बुद्ध की माता महामाया की मूर्ति से ही हुआ है।

मेरा उद्देश्य तो मात्र हिंदुओं की भूल का प्रतिकार करना है ताकि विजयादशमी और दिपावली जैसे प्राचीन त्यौहारों के मूल का ज्ञान हो और कल्पित रामायण से इनका पीछा छूटे।

लेखक-✍सुनील
📞9166862313

भारत देश के एक मात्र राष्टपिता ,लोकमान्य ओर महात्मा जोतीराव फुले है

महात्मा जोतिराव गोविंदराव फुले  19वीं सदी के एक महान भारतीय विचारक, समाज सेवी, लेखक, दार्शनिक तथा क्रान्तिकारी कार्यकर्ता थे। सितम्बर १८७३ में इन्होने महाराष्ट्र में सत्य शोधक समाज नामक संस्था का गठन किया। महिलाओं व दलितों के उत्थान के लिय इन्होंने अनेक कार्य किए। समाज के सभी वर्गो को शिक्षा प्रदान करने के ये प्रबल समथर्क थे।

ज्योतिबा फुले भारतीय समाज में प्रचलित जाति आधारित विभाजन और भेदभाव के खिलाफ थे।
उन्होंने विधवाओं और महिलाओं के कल्याण के लिए काफी काम किया। उन्होंने इसके साथ ही किसानों की हालत सुधारने और उनके कल्याण के लिए भी काफी प्रयास किये। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1851 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया। उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए।
विद्यालय की स्थापना
ज्योतिबा की संत-महत्माओं की जीवनियाँ पढ़ने में बड़ी रुचि थी। उन्हें ज्ञान हुआ कि जब भगवान के सामने सब नर-नारी समान हैं तो उनमें ऊँच-नीच का भेद क्यों होना चाहिए। स्त्रियों की दशा सुधारने और उनकी शिक्षा के लिए ज्योतिबा ने 1851 में एक स्कूल खोला। यह इस काम के लिए देश में पहला विद्यालय था। लड़कियों को पढ़ाने के लिए अध्यापिका नहीं मिली तो उन्होंने कुछ दिन स्वयं यह काम करके अपनी पत्नी सावित्री को इस योग्य बना दिया। उच्च वर्ग के लोगों ने आरंभ से ही उनके काम में बाधा डालने की चेष्टा की, किंतु जब फुले आगे बढ़ते ही गए तो उनके पिता पर दबाब डालकर पति-पत्नी को घर से निकालवा दिया इससे कुछ समय के लिए उनका काम रुका अवश्य, पर शीघ्र ही उन्होंने एक के बाद एक बालिकाओं के तीन स्कूल खोल दिए।
महात्मा की उपाधि
दलितों और निर्बल वर्ग को न्याय दिलाने के लिए ज्योतिबा ने 'सत्यशोधक समाज' स्थापित किया। उनकी समाजसेवा देखकर 1888 ई. में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें 'महात्मा' की उपाधि दी। ज्योतिबा ने ब्राह्मण-पुरोहित के बिना ही विवाह-संस्कार आरंभ कराया और इसे मुंबई हाईकोर्ट से भी मान्यता मिली। वे बाल-विवाह विरोधी और विधवा-विवाह के समर्थक थे। अपने जीवन काल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं- तृतीय रत्न, छत्रपति शिवाजी, राजा भोसला का पखड़ा, ब्राह्मणों का चातुर्य, किसान का कोड़ा, अछूतों की कैफियत. महात्मा ज्योतिबा व उनके संगठन के संघर्ष के कारण सरकार ने ‘एग्रीकल्चर एक्ट’ पास किया. धर्म, समाज और परम्पराओं के सत्य को सामने लाने हेतु उन्होंने अनेक पुस्तकें भी लिखी

भारत देश के एक मात्र राष्टपिता ,लोकमान्य ओर महात्मा जोतीराव फुले है

जय भारत

क्या था साईमन कमीशन?

क्या था साईमन कमीशन?

जब बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर विदेश से पढकर भारत में बडौदा नरेश के यहां नौकरी करने लगे तो उनके साथ बहुत ज्यादा जातिगत भेदभाव हुआ। इस कारण उन्हें 11 वें दिन ही नौकरी छोड़कर बडौदा से वापस बम्बई जाना पड़ा। उन्होंने अपने समाज को अधिकार दिलाने की बात ठान ली।

उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को बार-बार पत्र लिखकर depressed class की स्थिति से अवगत करवाया और उन्हें अधिकार देने की माँग की।
बाबा साहेब के पत्रों में वर्णित छुआछूत व भेदभाव के बारे में पढकर अंग्रेज़ दंग रह गए कि क्या एक मानव दूसरे मानव के साथ ऐसे भी पेश आ सकता है। बाबा साहेब के तथ्यों से परिपूर्ण तर्कयुक्त पत्रों से अंग्रेज़ी हुकूमत अवाक् रह गई और 1927 में depressed class की स्थिति के अध्ययन के लिए मिस्टर साईमन की अध्यक्षता में एक कमीशन का गठन किया गया।

जब कांग्रेस व मो.दा.क.चं. गांधी को कमीशन के भारत आगमन की सूचना मिली तो उन्हें लगा कि यदि यह कमीशन भारत आकर depressed class की वास्तविक स्थिति का अध्ययन कर लेगा तो उसकी रिपोर्ट के आधार पर अंग्रेजी हुकूमत इस वर्ग के लोगों को अधिकार दे देगी। कांग्रेस व मो.दा.क.चं. गांधी ऐसा होने नहीं देने चाहते थे।
अतः 1927 में जब साईमन कमीशन अविभाजित भारत के लाहौर पहुंचा तो पूरे भारत में कांग्रेस की अगुवाई में जगह-जगह पर विरोध प्रदर्शन हुआ और लाहौर में मिस्टर साईमन को काले झंडे दिखा कर go back के नारे लगाए गए। बाबा साहेब स्वयं मिस्टर साईमन से मिलने लाहौर पहुंचे और उन्हें 400 पन्नों का प्रतिवेदन देकर depressed class की स्थिति से अवगत कराया। कांग्रेस ने मिस्टर साईमन की आँखों में धूल झोंकने के लिए उनके सामने ब्राह्मणों को depressed class के लोगों के साथ बैठ कर भोजन करवाया (बाद में ब्राह्मण अपने घर जाकर गोमूत्र पीकर उससे नहाये)। यह सब पाखण्ड देखकर बाबा साहेब मिस्टर साईमन को गांव के एक तालाब पर ले गये। उनके साथ एक कुत्ता भी था। वह कुत्ता अपने स्वभाव के मुताबिक सबके सामने उस तालाब में डुबकी लगाकर नहा कर बाहर आया। तब बाबा साहेब ने एक depressed class के व्यक्ति को तालाब का पानी पीने के लिए कहा। उस व्यक्ति ने घबराते हुए जैसे ही पानी पीया, आसपास के ब्राह्मणों ने हमला बोल दिया। आखिरकार बाबा साहेब सहित अन्य व्यक्तियों को पास की एक मुस्लिम बस्ती में शरण लेकर अपना बचाव करना पड़ा। मिस्टर साईमन को सब कुछ समझ में आ गया। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को वस्तु स्थिति रिपोर्ट सौंप दी। बाबा साहेब भी बार-बार पत्राचार करते रहे और उन्होंने लंदन जाकर अंग्रेजी हुकूमत के वरिष्ठ अधिकारियों व राजनेताओं को बार-बार भारत की depressed class को अधिकार देने की मांग की।

बाबा साहेब के तर्कों को अंग्रेजी हुकूमत नकार नहीं सकी और उसने भारत की depressed class को अधिकार देने के लिए 1930 में communal award (संप्रदायिक पंचाट) पारित किया।
हमें विद्यालय में यह पढाया गया था कि कांग्रेस ने साईमन कमीशन को काले झंडे दिखा कर go back के नारे लगाए। परंतु उसने वास्तव में ऐसा क्यों किया, यह नहीं पढाया गया।

ऐसा शहर जहां न तो धर्म है, न पैसा है और न ही कोई सरकार

आज हम आपको भारत के एक ऐसे शहर के बारे में बताने जा रहे हैं ना तो यहां ना तो धर्म है, ना पैसा है और ना ही कोई सरकार। आप सभी यह सोच रहे होंगे कि भारत में तो शायद ही कोई ऐसा शहर हो लेकिन यह सत्य है और सबसे बड़ी बात यह है कि यह शहर चेन्नई से केवल 150 किलोमीटर दूर है। इस जगह का नाम ऑरोविले है आपको बता दें कि इस शहर की स्थापना 1968 में मीरा अल्फाजों ने की थी। इस जगह को सिटी ऑफ डॉन भी कहा जाता है यानी भोर का शहर।

आप सभी को जानकर हैरानी होगी कि इस शहर को बसाने के पीछे सिर्फ एक ही मकसद था कि यहां पर लोग जात-पात, ऊंच-नीच और भेदभाव से दूर रहें। यहां कोई भी इंसान आकर रह सकता है लेकिन शर्त सिर्फ इतनी हैं कि उसे एक सेवक के तौर पर रहना होगा। यह एक तरीके की प्रयोगिक टाउनशिप है जो की Viluppuram District तमिलनाडु में स्थित है। अब चलिए जानते हैं कौन है मीरा अल्फाजों। आपको बता दें कि मीरा अल्फाज़ों श्री अरविंदो स्प्रिचुअल रिट्रीट में 29 मार्च 1914 को पॉन्डिचेरी आई थी और वर्ल्ड वार प्रथम विश्वयुद्ध के बाद वह कुछ समय के लिए जापान चली गई थी।

लेकिन 1920 में वह वापस से पोंडीचेरी आ गई थी 1924 मैं श्री अरविंदो स्प्रिचुअल संसथान से जुड़ गयी और जनसेवा के कार्य करने लगी। 1968 आते आते उन्होंने ऑरोविले की स्थापना करदी जिसे यूनिवर्सल सिटी का नाम दिया गया जहा कोई भी कही से भी आकर रह सकता है। 2015 तक इस शहर का आकर बढ़ता चला गया और इसे कई जगह सराहा भी जा रहा है। आप इस शहर में करीबन 50 देशों के लोग रहते हैं।

इस शहर की आबादी करीब 24000 लोगों की है यहां पर एक मंदिर भी है। हालांकि मंदिर में किसी धर्म से जुड़े भगवान की पूजा नहीं होती यहां सिर्फ लोग आते हैं और योगा करते हैं। इस शहर की यूनेस्को ने भी प्रशंसा की है और आपको यह बात शायद नहीं पता होगी कि यह शहर भारतीय सरकार के द्वारा भी समर्थित है। हम आशा करते हैं यह जानकारी आपके लिए ज्ञानवर्धक सिद्ध हुई होगी क्योंकि हममें से शायद ही कोई हो जिसे यह पता हो कि भारत में भी इस प्रकार का कोई शहर है।

नोट बंद करने के लिए तीन तर्क

यह पोस्ट  तर्कहीन और विवेकहीन  भक्तो के  लिए  नहीं है .....


नोट  बंद  करने  के लिए  तीन  तर्क  दिए  जा  रहे  हैं, पहला  अर्थव्यवस्था रेगुलेटेड हो ,  दूसरा काला  धन  बाहर आएगा  और कला धन  वालों  को  पकड़ा  जायेगा और  तीसरा नकली नोट चलन से बाहर किये जांय ! अगर  यह  तीन  बातें  हो  तो  इसको  पूरा  समर्थन  |

 लेकिन ५०० और १००० के  नोट  बंद करने के फैसले  पर  कुछ  ज़रूरी बात  जिनपर  विचार  होना  चाहिए  :-

1.१०० से  कम  बड़े  कॉर्पोरेट घरानों (ख़रब  पतियों ) पर  बैंक का १२ लाख  करोड़ क़र्ज़  है, यह  हम  सब  जानते हैं की यह  पैसा किसी  सरकार , मंत्री या बैंक की  अपनी सम्पति  नहीं है  , यह  आम जानता की  गाढ़ी कमाई का  पैसा है  , जिसका  व्याज एक लाख चौदह हज़ार  करोड़  इस  साल  बजट  में  माफ़    कर  दिया  गया  | अगर सच में मोदी  जी को आम  जनता के  हित  में काले  धन  की  चिंता  है  तो क्यों  यह   व्याज  माफ़  किया जा रहा है क्यों  यह  क़र्ज़  नहीं  वसूला जा  रहा  है ?

2.यह  पूरा  अभियान  विदेशों से  काला धन न  ला  पाने  , सबके खाते  में  १५ लाख  का  वादा  पूरा  न  कर  पाने  की नाकामी को छुपाने  का  प्रयास  है | वे जो  ब्लैकमनी होल्डर हैं (असली / बड़े वाले ) उनपर कार्यवाही तो दूर आप सुप्रीम  कोर्ट तक के पूछने पर  उन लोगों के नाम  उजागर नहीं  करते | येही  है  आपका  साहस  |

3 अब  यहाँ  विचार  कीजिये  की  यह  खेल  आखिर है  क्या ? १२ लाख  करोड़  बैंक   का  corporates  के पास फंसा है, और  उन corporates के हितों की रखवाली  मोदी सरकार  द्वारा  उसका व्याज भी  माफ़ कर दिया  जा  रहा है | अब  पूँजी  के इस बढ़ते  संकट से  निपटने  के लिए बहुत  ज़रूरी  है की किसान ,मजदूर , खोमचे वाले ,  पटरी दुकानदार , तीसरी चौथी श्रेणी का कर्मचारी आम  महिलायों  और मध्यम वर्ग  के  पास रखे  पैसे को  बैंक  में एक झटके  में  जमा  कराया  जाये जिससे बैंक के पास  फिर  से  पूँजी  एकत्र  हो  और  सरकार  फिर  corporates  को  कर्ज  दिलवा सके |

4. सबसे  ख़राब स्थिति  यह  है कि करीब पाँच करोड़  लोग खुद और परिवार की बेहद ज़रूरी ज़रूरतों (दवा सब्ज़ी आटा चाय  दूसरी खुदरा चीज़ों)के लिये बेवजह सताये गय हैं । वे भोर से बैंकों, पोस्ट आफिसों की लाइनों में खड़े  रहे  । अपने ही  कमरतोड़ मेहनत से कमाए अपने पैसे को  अपने ऊपर खर्च करने  के  लिए  भीख  की तरह  लेने के लिए  ! इनमें से शायद ही कोई वो हो जिसको पकड़ने के लिये ये नोटबंदी की स्कीम लाई गई है | कितने  मजदूर , पटरी दुकानदारों  के  यहाँ  चूल्हा  तक  नहीं  जला  उसकी ज़िम्मेदारी  कोन लेगा ?

5. नोट्बंदी के  लिए ज़ारी किये  गए  तुगलकी सरकारी  आदेश में  यह  भी  शर्त लगायी  है  की अगर किसी  के  खाते  में  अगर  आज  से  लेकर  ३० दिसम्बर तक  २.५ लाख  से ज्यादा पैसा  जमा हुआ तो वोह जांच के  घेरे  में  आएगा  और उस पर  दो सौ परसेंट पेनालिटी  लगायी  जाएगी  | अच्छा  मजाक  है  मेहनत  से  इमानदारी  से  सचाई  से  अगर पैसा कमाया  है और उसमे से  अपना पेट काटकर  ( जो  प्राय: आम किसान  और  मजदूर परिवारों और निम्न मध्य वर्ग  में  होता  रहा  है )  पाँच सात , १० लाख जोड़ ले, या पत्नियों  द्वारा  सालों  साल पतियों  से  मिलने  वाले  घर  खर्च में  से  बचा कर  जो  पूँजी आज   एकत्र की  हो वोह काला धन  हो  जाएगी ? सबको  पता  है  काला धन  कोई नकद  में  नहीं  रखता होगा |

ऊपर लिखी  सारी मुसीबत  अगर  आम  जानता झेल  भी लेती  है  तब भी  सवाल  वोही  रहेगा  की  क्यों ? और  किसलिए ? इससे आम जनता  को  क्या  मिलेगा ? महगाईं  कम  होगी  ? आमदनी  बढ़ेगी  ? खाते  में  १५ लाख  आएगा  ? शिक्षा , खेती  , चिकित्षा में  सब्सिडी मिलेगी या  मुफ्त  हो  जायेगा  ?
या  आम  जनता को  भूखा मार  कर , परेशान  करके  बड़े कॉर्पोरेट घरानों  के   हितों  की रक्षा  की जाएगी जिनके  टुकड़े  खाकर  यह  सरकार  बनी  है  तो  अब नमक  का  हक़  तो  अदा करना  ही  है ।

सोचियेगा अवश्य l

मोदी के नोट बदलने के तुगलकी फरमान के खिलाफ थे रघुराम राजन

मोदी के नोट बदलने के तुगलकी फरमान के खिलाफ थे रघुराम राजन

जैसे जैसे वक़्त बीत रहा है और नये आर्थिक फ़ैसले आ रहे वैसे वैसे राजनीति के गलियारों में सामने आ रही है रघुराम राजन के छोड़ने की वजह| मोदी सरकार के आने के बाद ही काला धन चर्चा का विषय था, देश को उससे कैसे निजातदिलाई जाए| रघुराम राजन चाहते थे देश के धन्ना सेठो के खिलाफ जाना, लेकिन मोदी चाहते थे ग़रीब, किसानो औरमध्यवर्ग के खिलाफ जाना|सूत्रो के माने तो रघुराम राजन ने प्रधानमंत्री मोदी और उनके सहयोगी को अपने रहते 500/1000 रुपये के नोटो को बैन करने से रोक दिया था|
रघुराम राजन ने अपने मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री से बाते की, उन्होने इसके खिलाफ तीन बाते बातये- 20,000 करोड़ नये नोटो की छापने की कीमत कौन देगा| भारत मे सिर्फ़ 28-32% लोगो वित्य संस्थान से जुड़े है| पूरी बैंकिंग व्यवस्था के 138,626 मे 33% ब्रांच सिर्फ़ 60 बड़े शहरों और छोटे शहरों मे है| उत्तर पूर्व के 38 ज़िलो मे सिर्फ़10 बैंक ब्रांच है| इस से भी बड़ी बात ये है की हर 10 हज़ार व्यक्ति पर सिर्फ़ एक बैंक है भारत में|
दूसरा कारण जो राजन ने प्रधानमंत्री को बताया था वो था की कोई भी काला धन जमा करके नही रखता उसे सोने, चाँदी,ज़मीन, फ्लैट, हीरा, डॉलर या विदेशो के बैंक मे रखता है| इसलिए नोटो के बदलने से सिर्फ़ आम आदमी को दिक्कत का सामना करना पड़ेगा| उन्होने बताया की भारत मे 60 फीसदी लोग किसान है, जिनको इनकम टैक्स नहीं देना होता है| ये लोग रुपयों मे कारोबार करते हैं| 500 और 1000 का नोट बदलने से इनपर बुरा असर पड़ेगा| ये बताना ज़रूरी हैभारत मे 97% कारोबार रुपयो मे होता है|
तीसरा और सबसे बड़ा कारण- राजन कॉर्पोरेट इंडिया के पीछे जाना चाहते थे| जो सरकार को अरबो का चूना लगा रहे थे| सरकार से अरबो का लोन लेकर बैठे थे| इस मुहिम से कॉर्पोरेट इंडिया मे खलबली मच गयी| माल्या जैसे उद्योगपति सरकार को चूना लगाकर देश छोड़कर भाग गये| इसके अलावा राजन के उन 56 धन्नासेठो पर भी नज़र थी जो सरकार का 85000 करोड़ पिछले सालों मे लेकर बैठ गये| कोई भी बजट उठाकर देख लीजिए तकरीबन 8 लाख करोड़ का कॉर्पोरेट इंडिया का टैक्स सरकार माफ़ कर देती| राजन का तर्क था, देश की अर्थ व्यवस्था सुधारने के लिए इनसे टैक्स वसूला जाए

इस खबर के लिए लिंक पर क्लिक करे।
|http://upkhabar.in/2016/11/12/raghuram-rajan-was-against-note-ban/

आँख खोल देने वाला सच

*आँख फाड देने वाला सच, पढ कर आप भी आश्चर्य चकित रह जायेगे ?*  😳😳😳😳
                                   भारत में कुल 4120 MLA और 462 MLC हैं अर्थात कुल 4,582 विधायक। प्रति विधायक वेतन भत्ता मिला कर प्रति माह 2 लाख का खर्च होता है। अर्थात श91 करोड़ 64 लाख रुपया प्रति माह। इस हिसाब से प्रति वर्ष लगभ 1100 करोड़ रूपये।
भारत में लोकसभा और राज्यसभा को मिलाकर कुल 776 सांसद हैं। इन सांसदों को वेतन भत्ता मिला कर प्रति माह 5 लाख दिया जाता है। अर्थात कुल सांसदों का वेतन प्रति माह 38 करोड़ 80 लाख है। और हर वर्ष इन सांसदों को 465 करोड़ 60 लाख रुपया वेतन भत्ता में दिया जाता है।
अर्थात भारत के विधायकों और सांसदों के पीछे भारत का प्रति वर्ष 15 अरब 65 करोड़ 60 लाख रूपये खर्च होता है।

ये तो सिर्फ इनके मूल वेतन भत्ते की बात हुई। इनके आवास,  रहने, खाने, यात्रा भत्ता, इलाज, विदेशी सैर सपाटा आदि का का खर्च भी लगभग इतना ही है। अर्थात लगभग 30 अरब रूपये खर्च होता है इन विधायकों और सांसदों पर।

अब गौर कीजिए इनके सुरक्षा में तैनात सुरक्षाकर्मियों के वेतन पर। एक विधायक  को दो बॉडीगार्ड और एक सेक्शन हाउस गार्ड यानी कम से कम 5 पुलिसकर्मी और यानी कुल 7 पुलिसकर्मी की सुरक्षा मिलती है। 7 पुलिस का वेतन लगभग (25,000 रूपये प्रति माह की दर से) 1 लाख 75 हजार रूपये होता है। इस हिसाब से 4582 विधायकों की सुरक्षा का सालाना खर्च 9 अरब 62 करोड़ 22 लाख प्रति वर्ष है।
 इसी प्रकार सांसदों के सुरक्षा पर प्रति वर्ष 164 करोड़ रूपये खर्च होते हैं। Z श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त नेता, मंत्रियों,  मुख्यमंत्रियों, प्रधानमंत्री की सुरक्षा के लिए लगभग 16000 जवान अलग से तैनात हैं। जिनपर सालाना कुल खर्च लगभग 776 करोड़ रुपया बैठता है। इस प्रकार सत्ताधीन नेताओं की सुरक्षा पर हर वर्ष लगभग 20 अरब रूपये खर्च होते हैं।
अर्थात हर वर्ष  *नेताओं पर कम से कम 50 अरब रूपये खर्च होते हैं। इन खर्चों में राज्यपाल, भूतपूर्व नेताओं के पेंशन, पार्टी के नेता, पार्टी अध्यक्ष , उनकी सुरक्षा आदि का खर्च शामिल नहीं है। यदि उसे भी जोड़ा जाए तो कुल खर्च लगभग 100 अरब रुपया हो जायेगा।*
अब सोचिये हम प्रति वर्ष नेताओं पर 100 अरब रूपये से भी अधिक खर्च करते हैं, बदले में गरीब लोगों को क्या मिलता है ?
*क्या यही है लोकतंत्र ?* प्रत्येक भारतवासी को जागरूक होना ही पड़ेगा और इस फिजूल खर्ची के खिलाफ बोलना पड़ेगा ? *इस मेसेज़ को जितना हो सके दूसरे ग्रुप में फॉरवर्ड कर अपनी देश भक्ति का परिचय दें।*
                                                      🙏सादर निवेदन 🙏
                                                    दशरथ प्रसाद धनुषधारी

BJP से कुछ सवाल

*🎯हक और हिंम्मत से पुछो..❗*
             *" ऐसा क्यों "❓*
*_____________________________*

*१ ~ आपकी पार्टी २३ जनवरी २०१४ को करेंसी बदलने का विरोध करते हैं औरआप ८ नवम्बर २०१६ को खुद करेंसी बदल डालते हैं...*

*२~ आपकी पार्टी २०१३ में ४५ रु किलो तूर दाल बिकने पर पूरे देश में मंहगाई का विरोध करती है और आपके शासन में तूर दाल १८० से २०० रु किलो बिकती है.*

*३~ आपकी पार्टी गोवंश हत्या का विरोध करती है और आपने सत्ता में आते ही भारत बीफ एक्सपोर्ट में दुनियां का नं-१ देश बन जाता है.*

*४~ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जब विदेश में नवाज़ शरीफ से हाथ मिलाते थे तो आप उन्हें गंवार महिला कहते थे और आप खुद बिना बुलाये नवाजशरीफ के जन्म दिन पर केक और बिरयानी खाने पाकिस्तान पहुँच जाते हो.*

*५~ २००४ से २०१४ के बीच आपकी पार्टी रेल किराये में १ रु भी बढाने पर उसका विरोध में रेल का चक्का जाम करती थी और आपने सत्ता में आते ही दो साल में रेल किराया लगभग ७०% बढ़ा दिया....*

*६~ आपकी पार्टी ने २००४ से २०१४ के बीच FDI, GST,* *AADHAR, MNREGA, कोयला खान नीलामी आदि का विरोध किया और सत्ता पाते ही आप उन्ही सारी योजनाओं का का गुणगान कर रहे हो.*

*७~ निर्भया के समय एक बलात्कार के लिए आपकी पार्टी ३ महीने आन्दोलन करती है और बीजेपी शासन में मध्य प्रदेश में प्रतिदिन १२और दिल्ली में प्रतिदिन औसतन ९ बलात्कार होने पर आपके कान में जूतक नहीं रेंगती....!*

*८~ पहले १२५ से १४० डालर प्रति बैरल में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार से कच्चा तेल खरीद के ७० से ७५ रु लीटर पेट्रोल बेचा तब बीजेपी उसके विरोध में बैलगाड़ी मोर्चा निकलती थी और अब आपके शासन में ४० से ५० डालर प्रति बैरल में कच्चा तेल खरीद कर आप ७० रु में पेट्रोल बेच रहे हो.इसका क्या ?*

*९~ आपकी पार्टी के राष्ट्रिय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण भ्रष्टाचार का रु लेते नंगे हाथ पकडे जाते हैं फिर भी आपकी पार्टी ईमानदार है....*


*१०~ आपके मुख्यमंत्री शिवराज* *सिंह के राज़ में व्यापम एवं खान*
*घोटाला, वसुंधरा राजे का ललित मोदी* *घोटाला, रमण सिंह का ३५,०००*
*करोड़ का अन्न वितरण घोटाला होता है और आप अपने मुख्यमंत्री का इस्तीफ़ा नहीं मांगते और पहले तो आप शासन हर दुसरे दिन किसी न किसी का ईस्तीफा माँगने खड़े हो जाते थे.*

*११~ भक्त कहते हैं आप प्रतिदिन १६ घंटे काम करते हैं और ढाई साल में आपने देश का क्या विकास किया यह कहीं नज़र नहीं आता.*

*१२~ आपने १०० दिन में सारा काला धन विदेश से लाने का वादा किया था और ९०० दिन में कोई काला धन विदेश से नहीं ला पाये .*

*१३~ आपने किसानो को उनके उत्पादन खर्च पर ५०% लाभ देने का वचन दिया था और पिछले ढाई साल में किसानों के उत्पाद का सरकारी खरीद रेट १ रु नहीं बढाया.*

*१४~ आपकी पार्टी भारतीय संस्कृति और संस्कार की बात करती है और आपकी पार्टी के कार्यकर्ता, मंत्री और भक्त माँ -बहन की गालियों के बिना अपना एक वाक्य पूरा नहीं करते.*

*१५~जब चने का बेसन ७० रु किलो था तब बीजेपी कार्यकर्ता थाली बजाओ आन्दोलन करते थेऔर अब हम चने का बेसन २०० रु किलो खरीद रहे हैं.और आप चुप..!*

*१६~ आपकी पार्टी सर्विस टैक्स लगाने का विरोध करती थी औरआपने कुर्सी पर बैठते ही सर्विस टैक्स २.५% बढादिया.*

*क्यों भक्तो क्या राय है?...*

*🐘कृपया राष्ट्रभक्ती से राष्ट्रहितकारी चिंतन हो....!!*


*" 💥अब दलिल नहीं हल चाहीये"..!*

*"देशहित में सच्चाई की पहल चाहीये..!!*

मोदी राज और महंगाई

नरेंद्र मोदी:- *मित्रो,आज मेरी सरकार को 700 दिन पूरे हो गये है*

*यह है मेरी उपलब्धिया*

🔹 रेल किराया लखनऊ से कानपुर 45 रूपये था आज बढोतरी के.... बाद 78 रूपये है।

🔹 प्लेटफार्म टिकट 3 रूपये था और आज 10 रूपये है।

🔹 जब कच्चा तेल 119 डॉलर बैरल था और पैट्रोल 67 रूपये लीटर था आज कच्चा तेल 30 डॉलर बैरल तो भी मै पैट्रोल 68 रूपये लीटर मे दे रहा हू।

🔹 पहले दाल 70 रूपये थी और आज 150 मे ।

🔹 सर्विस टैक्स 12.36% था आज 14.5% है।

🔹 एक्साइज ड्यूटी 10% थी आज 12.36% है ।

🔹 सभी उधोगपतियो की बैलेंस शीट चैक कर लें।

🔹 डॉलर का रेट 58.50 था आज 68.50।

🔹 100 करोड रुपये की गैस सब्सिडी खत्म करवाने के लिए मुझे 250 करोड के विज्ञापन देना पड़ा।

🔹 स्वच्छता अभियान का विज्ञापन 250 करोड का दिया लेकिन सफाई कर्मियों की तनख्वाह के लिए मेरे पास 35 करोड नहीं है ।

🔹 किसान टीवी पर सालाना 100 करोड का खर्चा दे रहा हू क्योंकि इस चैनल के सलाहकार आधे कर्मचारी आरएसएस के किसी संगठन से है।

🔹 किसानों की सब्सिडी छीनना मेरी मजबूरी है।

🔹 योगा डे के लिए 500 करोड है, रामदेव को हरियाणा स्कूलो मे योगा सिखाने के लिए सालाना 700 करोड है।

🔹 स्कूलो के लिए मेरे पास पैसे नहीं हैं इसलिये मजबूरन प्राथमिक शिक्षा के बजट में 20% की कटौती करनी पड़ी।

🔹 मेरे पास कॉरपोरेट को 64000 करोड टैक्स छूट देने के लिए तो है मगर आत्महत्या कर रहे किसानों का ऋण चुकाने को 15000 करोड नहीं है।

🔹 स्किल इंडिया के लिए 200 करोड का विज्ञापन बजट है मगर युवाओं की छात्रवृति मे 500 करोड की कटौती कर दी क्योंकि वे भारत माता की जय नही बोल रहे थे।

🔹 सरकार घाटे में हैं, रेलवे की जमीनें बेचने का टेंडर पास कर दिया है क्योंकि अडानी को 22000 करोड देने है

🔹 माल्या को 9000 करोड़ लोन दिये ले के भाग गया कोई बात नहीं देश के हर किसी का केवल 75 रुपया ही तो गया ।

🔹 अच्छे दिन का सपना सच हो रहा है ।। ((मेरा मेरी सरकार का और पूँजीपतियों का ।।)) आप को और सही जानकारी हो तो कृपया मेरी सरकार के  कामों को जनता तक पहुंचाएं।

Forwarded as received

पदोन्नति में आरक्षण

पदोन्नति में आरक्षण : भाजपा देश को जातीय संघर्ष में झोंक रही है- राकेश सिंह राना

सिकन्दराराऊ (हाथरस)। समाजवादी पार्टी के पूर्व विधान परिषद सदस्य डॉ. राकेश सिंह राना ने पदोन्नति में आरक्षण के सम्बन्ध में 117 वां संविधान संशोधन बिल पर भारतीय जनता पार्टी की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि सवर्ण और अन्य पिछड़ा वर्ग की गर्दन पर भाजपा ने छुरी चला दी है।

बता दें मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक संसदीय पैनल ने पदोन्नति में आरक्षण संबंधी 117वें संविधान संशोधन बिल पर अपनी रिपोर्ट विगत 11 अगस्त2016 को केंद्र सरकार को भेज दी है।

समझा जा रहा है कि केंद्र सरकार इस बिल को मौजूदा शीतकालीन सत्र में पारितकराने जा रही है।

लोकसभा में यह बिल भाजपा के समर्थन से 2012 में पारित कराया जा चुका है। इस बिल के विरोध में कर्मचारियों ने बीती 11 नवंबर को विरोध प्रदर्शन भी आयोजित किए थे।

उन्होंने सवाल किया कि भाजपा बताए वह माननीय सर्वोच्च न्यायालय के प्रति सम्मान का भाव रखती है अथवा नहीं। उन्होंने माँग की कि भाजपा यह भी स्पष्ट करें कि भविष्य में इस मामले में और कितनी बार संविधान संशोधित किया जायेगा? उन्होंने इस बिल का विरोध कर रहे शासकीय कर्मचारियों को अपना समर्थन देने की घोषणा की।

संसद का शीतकालीन सत्र प्रारम्भ होने पर पदोन्नति में आरक्षण के सम्बन्ध में भाजपा की नीयत पर सवार उठाते हुए डॉ. राकेश सिंह राना ने कहा-

मा. सर्वोच्च न्यायालय का फैसला लागू किया जाना एक सामान्य प्रशासनिक प्रक्रिया है किन्तु केन्द्र सरकार इस पर घटिया राजनीति कर रही है। भाजपा ने दिसंबर 2012 में राज्यसभा में 117 वां संविधान संशोधन बिल पारित कर सवर्ण और अन्य पिछड़ा वर्ग के कर्मचारियों के साथ घोर अन्याय किया।

उन्होंने माँग की कि भाजपा स्पष्ट घोषणा करे कि केन्द्र सरकार लोकसभा में 117वें संविधान संषोधन बिल को नहीं रखेगी और पदोन्नति में आरक्षण अवैधानिक करार देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूरे देश में लागू करेगी।

डॉ. राकेश सिंह राना ने कहा कि भाजपा ने सामाजिक न्याय के नाम पर पदोन्नति में आरक्षण बिल का राज्यसभा में 2012 में समर्थन किया था।

उन्होंने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण देकर अनुसूचित जाति/जनजाति के अति कनिष्ठ कार्मिकों को उनसे 20-25 साल वरिष्ठ सामान्य व अन्य पिछड़े वर्ग के कार्मिकों का बॉस व सुपरबॉस बनाना कौन सा सामाजिक न्याय है?

समाजवादी नेता ने प्रश्न किया कि भाजपा के सामाजिक न्याय की परिभाषा में  सामान्य व अन्य पिछड़े वर्ग के 78 प्रतिशत कर्मचारियों के लिये कोई स्थान है या नहीं?

उन्होंने कहा एक बार नौकरी पाने बाद सभी कर्मचारियों के वेतन, भत्ते, सुविधायें और अधिकार समान हो जाते हैं फिर जातिगत आधार पर अनुसूचित जाति/जनजाति के कर्मचारियों को अलग से पदोन्नति में आरक्षण देना क्या संविधान की धारा 14, 15 व 16 में प्रदत्त समता के अधिकार का स्पष्ट उल्लंघन नहीं है? जहाँ तक दलितों के उत्थान की बात है तो नौकरी पाते वक्त उन्हें आरक्षण के बल पर नौकरी मिल ही जाती है। उन्होंने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण के लिए संविधान संशोधन लाना क्या माननीय सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का अपमान नहीं है ?

डॉ. राकेश राना ने भाजपा से कहा कि वह पदोन्नति में आरक्षण के लिए संविधान संशोधन लाने का अपने चुनाव घोषणापत्र में उल्लेख करे और यह बताए कि उसने 2014 के अपने लोकसभा चुनाव घोषणा पत्र में यह उल्लेख क्यों नहीं किया कि सरकार बनने पर वह अनुसूचित जाति/जनजातिके कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण प्रदान कर सामान्य व पिछड़े वर्ग के कर्मचारियों का गला घोंटेगी।

उन्होंने सवाल किया कि चुनाव घोषणा पत्र में उल्लेख किये बिना पदोन्नति में आरक्षण बिल लाना क्या अपने मतदाताओं की पीठ में छुरा भोंकना नहीं है?

डॉ. राना ने पदोन्नति में आरक्षण बिल का विरोध कर रहे कर्मचारियों का समर्थन करते हुए कहा कि पदोन्नति में आरक्षण देने से सामाजिक संतुलन बिगड़ रहा है और संविधान संशोधन बिल 17जून‘95 से लागू होने से 21  वर्ष पूर्व से ज्येष्ठता सूचियाँ बदली जायेंगी जिससे प्रशासनिक अराजकता उत्पन्न हो जायेगी। ऐसे में 117वें संविधान संशोधन बिल को लोक सभा में रखने की कोशिश सामाजिक विघटन व प्रशासनिक अराजकता को बढ़ावा देगा और देश के सामाजिक ढांचे में जहर घोलने व जातिगत संघर्ष को बढ़ावा देने का काम करेगा।

करेंसी बदलने के फैसले से तो गरीब तबाह हो जाएंगे - BJP

*जो छद्म राष्ट्रवादी आज 1000 और 500 के नोट बदलने को क्रांतिकारी कदम बता रहे हैं उन्होंने जनवरी 2014 में 2005 से पहले की मुद्रा को बदलने के यूपीए सरकार के फैसले का कैसे विरोध किया था! उनके तर्क भी ठीक वही थे जो आज विपक्ष के हैं!*

"करेंसी बदलने के फैसले से तो गरीब तबाह हो जाएंगे"

नई दिल्ली : भाजपा ने आरोप लगाया कि सरकार ने कालेधन पर काबू पाने के नाम पर वर्ष 2005 से पहले के सभी करेंसी नोट वापस लेने का जो निर्णय किया है वह आम आदमी को परेशान करने और उन ‘चहेतों’ को बचाने के लिए है जिनका भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद के बराबर का कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है।
पार्टी ने कहा कि यह निर्णय बैंक सुविधाओं से वंचित दूर दूराज के इलाकों में रहने वाले उन गरीब लोगों की खून पसीने की गाढ़ी कमाई को मुश्किल में डाल देगा जिसे उन्होंने वक्त जरूरत के लिए जमा किया है।
भाजपा प्रवक्ता मीनाक्षी लेखी ने यहां कहा, अवसरों को गंवाने वाले संप्रग के 10 साल के शासन में पी चिदंबरम 7 साल वित्त मंत्री रहे हैं और अब सरकारी की चली चलाई की बेला में वह लोगों द्वारा पूछे जा रहे सवालों से भागने के लिए कालेधन के विषय से जनता के असली मु्द्दों को भ्रमित करना चाहते हैं।
उन्होंने कहा, ‘लेकिन सरकार का यह फैसला विदेशी बैंकों में अमेरिकी डालर, जर्मन ड्यूश मार्क और फ्रांसिसी फ्रांक आदि करेंसियों के रूप में जमा भारतीयों के कालेधन में से एक पाई भी वापस नहीं ला सकेगा। इससे साफ है कि सरकार का विदेशों में जमा भारतीयों के कालेधन को वापस लाने का कोई इरादा नहीं है और वह केवल चुनावी स्टंट कर रही है।’ लेखी के अनुसार दूसरी ओर इस निर्णय से दूर दराज के इलाकों के गरीबों की मेहनत की कमाई पर पानी फिर जाने का पूरा खतरा पैदा हो गया है, क्योंकि देश की 65 प्रतिशत आबादी के पास बैंक खातों की सुविधाएं नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि गरीब और आदिवासी लोग पाई पाई करके अपनी बेटियों की शादी ब्याह और अन्य वक्त जरूरत के लिए घर के आटे-दाल के डिब्बों आदि में धन छिपा कर रखते हैं। उन्होंने कहा कि ऐसे इलाकों में बैंकों की सुविधा नहीं होने के कारण अधिकतर लोग अपना धन 2005 के बाद की करेंसी से नहीं बदल पाएंगे या बिचौलियों के भारी शोषण का शिकार होंगे।
भाजपा नेता ने कहा कि देश की बहुत बड़ी आबादी ऐसी होगी जिसे इस खबर का पता भी नहीं होगा और वक्त जरूरत के लिए जब वे अपना यह कीमती धन खर्च करने के लिए निकालेंगे तब उन्हें एहसास होगा कि उनकी कड़ी मेहनत की कमाई कागज का टुकड़ा भर रह गई है। सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए उन्होंने कहा कि यह निर्णय आम आदमी और आम औरत को परेशान करने तथा उन ‘चहेतों’ को बचाने के लिए है जिनका भारत के कुल सकल घरेलू उत्पाद के बराबर का कालाधन विदेशी बैंकों में जमा है।
उल्लेखनीय है कि कालेधन और नकली नोटों की समस्या से निपटने के लिये भारतीय रिजर्व बैंक ने 2005 से पहले जारी सभी करेंसी नोट वापस लेने का फैसला किया है। इसके तहत 500 रुपये व 1000 रुपये सहित सभी मूल्य के नोट वापस लिए जाएंगे और यह काम एक अप्रैल से शुरू हो जायेगा। रिजर्व बैंक ने एक बयान में कहा है, कि एक अप्रैल 2014 से लोगों को इस तरह के अपने नोट बदलने के लिए बैंकों से संपर्क करना होगा। (एजेंसी)

खबर का लिंक:

http://zeenews.india.com/hindi/news/india/decided-to-change-the-currency-is-going-to-destroy-poor/200664

प्रधानमंत्री का फैसला अच्छा हैं लेकिन

फैसला अच्छा हैं लेकिन
जन उदय : प्रधानमंत्री नरेंदर मोदी ने कहा आज से ५०० और हजार के नोट आठ नंवबर २०१६ से बंद कर दिए है , मोदी ने कहा की ये देश में फैला काला धन , नकली नोट एकदम बंद क्र दिया जाएगा और यह देश के विकास के लिए एक यग्य है . मोदी ने कहा यह फैसला एक गोपनीय फैसला है और अचानक लिया गया है

मोदी ने कहा की लोग अपने असली नोट जल्द ही ३० दिसबर तक बदल सकेंगे और इसमें लोगो को घबराने की जरूरत नहीं .

मोदी के इस फैसले से पुरे देश में हडकम्प मच गया है यानी जैसी योजना थी वैसा ही हो गया लोगो का ध्यान दलितों की हत्या से हट गया है , कश्मीर समस्या भूल गए है गरीबी महंगाई , बरोजगारी से भी हट गया है , छज्जू चाय वाला परेशान घूम रहा है की उसके महीनो से जोड़े रूपये अब मिटटी हो जाएंगे क्या ?

खैर इस नोट को बंद करने के पीछे के षड्यंत्र को भी समझ ले तो जयादा अच्छा होगा इसमें सबसे पहले उन ने रूप से अमीर लोग या छोटे मोटे रिश्वत खोर अफसर या दुकानदार उस पर इसका फर्क पढ़ेगा लेकिन ख़ास नहीं

लेकिन इन नोट में सबसे खतरनाक बात यह की गई है की इसमें से देश के गौरव और लोकतंत्र को दिखाने वाले शेर के निशाँ और अशोक चक्र को हटा दिया गया है , यह अशोक चक्र और सारनाथ का चिन्ह दरसल ब्राह्मणों के आँखों की किरिकिरी हमेशा से रहा है , यही नहीं बल्कि सविंधान को भी ऐसे ही खत्म कर दिया जाएगा न्याय और शान्ति और देश के विकास के नाम पर

अशोक चक हमारे स्वर्णिम अतीत और बौध धर्म को दर्शाता है इनको खत्म करने के लिए ब्राह्मणवादी लोग रास्ते ढून्ढ रहे थे गांधी की हत्या करने वाले संघ ने गांधी को नोट पर इसलिए बनाए रखा है क्योकि गांधी ब्राह्मणवाद जातिवाद वर्णवाद , और सामन्ती परम्पराओं की रक्षा करने वाला था इसलिए जब तक गांधी रहेगा तब तक यह जातिवाद रहेगा इसलिए इसको हटाया नहीं गया .

किसी देश की मुद्रा बंद होना कमजोरियां की निशानी है ?

मोदीजी ने पांच सौ ओर एक हजार के नोट देश में बंद करने का ऐलान किया!
👉🏻क्या ये फैसला देशवासियों के हित में है?
👉🏻क्या ये भारतवासियों के स्वाभिमान का अपमान नहीं?

नोट बंद करने का ये फैसला  सिर्फ ओर सिर्फ इसलिये लिया गया की कालेधन पर लगाम लगाने के लिए?  लेकिन मेरा प्रश्न है मोदीजी से इस देश  में कितने कालाबाजारी है ओर कोन है  पहले ये तो बताये
चलो हम ही बता देते है
👉🏻कालाबाजारी इनमें से ही एक होते है
या तो बडे नेताजी
या बडे अफसर
या बडे उधोगपती
ओर पुरे देश  में इनकी संख्या छोटे मोटे नये पुराने आधे अधुरे पुरे कालाबाजारीयो की  जोडे तो एक हजार
चलो पांच हजार
चलो ओर बडा दिये
पचास हजार
चलो ओर बडा दिया जनसंख्या भी तो बहुत बड़ी है एक लाख
चलो ओर फाइनल संख्या बता देते है इसके बाद तो काली भीत है
पांच लाख कालाबाजारी ओर कालधन रखने वाले
👉🏻पांच लाख कालाबाजारी ओर इनके कालधन का पता सरकार नहीं लगा सकती तो सरकार ने एक सौ तीस करोड़ भारतीयों को ही कालाबाजारी समझकर पांच सौ/एक हजार के नोट पर रोक लगाने का ऐलान किया
क्या ये मास्टर स्टोक है
क्याआप भी कलाधन रखते है  या कालाबाजारी है?
नहीं  तो फिर आप इसके शिकार  क्यों
एक सौ तीस करोड़ भारतीय पर ये तुगलकी फरमान क्यों?
क्या इस देश का आम नागरिक  बेईमान कालाबाजारी है/कालधन रखता है

आप पांच लाख पर अंकुश नहीं कर सके तो एक सौ तीस करोड़ लोगों पर फैसला थोप देते है?
क्या इस देश का मध्यम परिवार कालाबाजारी है?
क्या इस देश का गरीब परिवार कालाबाजारी है?

पांच सौ ओर एक हजार के नोट बंद करने का सबसे बडा असर इस देश के  छोटे व्यापारी ओर किसानों पर पडेगा

किसान माल बेचकर आयेगा तो पहले पचास हजार जेब या अंटीजेब में डालकर सुरक्षित घर आ जाता था
ओर अब पचास हजार लाते समय उसे एक थैला हर समय साथ रखना पडेगा ओर उसे हर समय थैला चोरी ना हो जाये का भय रहेगा
चोरी का डर
थैला गुम हो जाने का डर
ओर न जाने क्या क्या डर

दुसरी तरफ छोटे दुकानदार माल खरिदने जाते समय छोटी मोटी पचास हजार से एक लाख की रकम जेब ओर अंटीजेब में ही बस या ट्रेन में ले जाते
लेकिन अब एक बडा सुटकेश साथ में  रखना पडेगा ओर वहीं डर ओर चिंता "चोरी ओर लुट की "
ऐसे कई उदाहरण है कल जब atm  जाये तो हर भारतीय बीस हजार से ज्यादा रूपये लेने हो तो सुटकेश साथ ले जाये
कुल मिलाकर हर भारतीय को हमाल /कुली बना दिया?


पांच सो ओर एक हजार के नोट बंद करने से पहले कम से कम एक बार इस देश के  मध्यम ओर गरीब परिवार को तो पुछ लेते
या फिर एक दिन का ट्रायल रखते फिर दूसरे दिन इस देश की आवाज सुनकर सरकार इतना बडाकदम उठाती?

किसी देश की मुद्रा बंद होना कमजोरियां की निशानी है ?

सरकार  कालाबाजारी ओर कालधन पर अंकुश लगाना चाहती  है या हर भारतीय को परेशान करना चाहती  है?
सरकार  कालधन लाने या कालाबाजारी व कालाधन रोकने में नाकाम रही  तो तुगलकी फरमान पुरे देशवासियों पर थोप देना क्या उचित है?
हर नागरिक कालाबाजारी नहीं  है वो एक स्वाभिमानी भारतीय है

👉🏻ये मेरे पांच सो ओर एक हजार के नोट बंद करने पर मेरे निजी विचार है  क्योंकि में कालाबाजारी नहीं हूं नहीं  मेरे पास कोई कालधन है

में एक भारतीय हूँ ओर मुझे भारतीय होने पर गर्व है ओर इस देश की मुद्रा मेरा गौरव है ना की श्राप
-सुरेश खटनावलिया

कालाधन- विचारार्थ कुछ पहलू

आरएसएस विचारक श्री गोविंदाचार्य की कलम से.....

कालाधन- विचारार्थ कुछ पहलू

500 और 1000 के नोट समाप्त करने से केवल 3% काला धन आ सकता है बाहर !!

प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा 500 और 1000 के नोट समाप्त करने के फैसले से पहले मैं भी अचंभित हुआ और आनंदित भी। पर कुछ समय तक गहराई से सोचने के बाद सारा उत्साह समाप्त हो गया। नोट समाप्त करने और फिर बाजार में नए बड़े नोट लाने से अधिकतम 3% काला धन ही बाहर आ पायेगा, और मोदी जी का दोनों कामों का निर्णय कोई दूरगामी परिणाम नहीं ला पायेगा, केवल एक और चुनावी जुमला बन कर रह जाएगा। नोटों को इसप्रकार समाप्त करना- 'खोदा पहाड़ ,निकली चुहिया " सिद्ध होगा। समझने की कोशिश करते हैं।

अर्थशास्त्रियों के अनुसार भारत में 2015 में सकल घरेलू उत्पाद(GDP) के लगभग 20% अर्थव्यवस्था काले बाजार के रूप में विद्यमान थी। वहीँ 2000 के समय वह 40% तक थी, अर्थात धीरे धीरे घटते हुए 20% तक पहुंची है। 2015 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद लगभग 150 लाख करोड़ था, अर्थात उसी वर्ष देश में 30 लाख करोड़ रूपये काला धन बना। इस प्रकार अनुमान लगाएं तो 2000 से 2015 के बीच न्यूनतम 400 लाख करोड़ रुपये काला धन बना है।

रिजर्व बैंक के अनुसार मार्च 2016 में 500 और 1000 रुपये के कुल नोटों का कुल मूल्य 12 लाख करोड़ था जो देश में उपलब्ध 1 रूपये से लेकर 1000 तक के नोटों का 86% था। अर्थात अगर मान भी लें कि देश में उपलब्ध सारे 500 और 1000 रुपये के नोट काले धन के रूप में जमा हो चुके थे, जो कि असंभव है, तो भी केवल गत 15 वर्षों में जमा हुए 400 लाख करोड़ रुपये काले धन का वह मात्र 3% होता है!

प्रश्न उठता है कि फिर बाकी काला धन कहाँ है? अर्थशास्त्रियों के अनुसार अधिकांश काले धन से सोना-चांदी, हीरे-जेवरात, जमीन- जायदाद, बेशकीमती पुराण वस्तु ( अंटिक्स)- पेंटिंग्स आदि खरीद कर रखा जाता है, जो नोटों से अधिक सुरक्षित हैं। इसके आलावा काले धन से विदेशों में जमीन-जायदाद खरीदी जाती है और उसे विदेशी बैंकों में जमा किया जाता है। जो काला धन उपरोक्त बातों में बदला जा चूका है, उन पर 500 और 1000 के नोटों को समाप्त करने से कोई फरक नहीं पड़ेगा।

अधिकांश काला धन घूस लेने वाले राजनेताओं-नौकरशाहों, टैक्स चोरी करने बड़े व्यापारियों और अवैध धंधा करने माफियाओं के पास जमा होता है। इनमें से कोई भी वर्षों की काली कमाई को नोटों के रूप में नहीं रखता है, इन्हें काला धन को उपरोक्त वस्तुओं में सुरक्षित रखना आता है या उन्हें सीखाने वाले मिल जाते हैं। इसीप्रकार जो कुछ नोटों के रूप में उन बड़े लोगों के पास होगा भी, उसमें से अधिकांश को ये रसूखदार लोग  इधर-उधर करने में सफल हो जाएंगे।  2000 से 2015 में उपजे कुल काले धन 400 लाख करोड़  का केवल 3% है सरकार द्वारा जारी सभी 500 और 1000 के नोटों का मूल्य । अतः मेरा मानना है कि देश में जमा कुल काले धन का अधिकतम 3% ही बाहर आ पायेगा और 1% से भी कम काला धन सरकार के ख़जाने में आ पायेगा वह भी तब जब मान लें कि देश में जारी सभी 500 और 1000 के नोट काले धन के रूप में बदल चुके हैं।
केवल 500 और 1000 के नोटों को समाप्त करने से देश में जमा सारा धन बाहर आ जाएगा ऐसा कहना या दावा करना, लोगों की आँख में धूल झोंकना है। उलटे सरकार के इस निर्णय से सामान्य लोगों को बहुत असुविधा होगी और देश को 500 और 1000 के नोटों को छापने में लगे धन का भी भारी नुकसान होगा वह अलग ।

रोहित वेमुला मिशन का प्रतिक्रांति है JNU प्रकरण

🔥प्रतिक्रांति 🔥प्रतिक्रांति 🔥प्रतिक्रांति 🔥

रोहित वेमुला मिशन का प्रतिक्रांति है JNU प्रकरण-एक चर्चा।

🌟JNU में कन्हैया कुमार प्रकरण एक preplanned षड्यंत्र:🌟

🌹मै फिर से बाबा साहेब का धन्यवाद देना चाहूँगा कि आपने वह सब सारी जानकारी दी है जो हमें सही और गलत में अंतर बड़ी आसानी से बता देते है। उनमे से एक है बाबा साहेब द्वारा लिखा साहित्य "भारत में क्रांति और प्रतिक्रांति".

👉अब हम 'JNU कन्हैया कुमार प्रकरण' को और ' university of hyderabad के रोहित वेमुला प्रकरण' को एक साथ study करे।

✒बाबा साहेब हमेशा कहते थे कि भारत में अगर 2 क्रान्तिया एक साथ होती है जिसमे एक क्रांति अगर कोई बहुजन करता है और यह समझ जाना चाहिए कि दूसरी क्रांति brahminical system जनित होती है जो हमारी क्रान्ति का प्रतिक्रांति होती है और हमारे द्वारा चलाया जाने वाला आन्दोलन स्वतः समाप्त हो जाता है।

👉इसी दृष्टि से हम देखते है कि रोहित वेमुला प्रकरण में आरएसएस बीजेपी और बड़े बड़े हिंदुत्ववादी नेताओ के फंस जाने पर जब इनके पास इस क्रान्ति को रोकने का कोई तरीका नहीं मिला तो इन्होने JNU प्रकरण को हवा दी और आज वह सभी स्टूडेंट जो कि अभी तक रोहित वेमुला की लड़ाई लड़ रहे थे अब वे अचानक देशभक्त के झांसे में फंस गए। अब सभी लोग रोहित वेमुला के मिशन को भूलकर हिन्दू मुश्लिम प्रकरण को हवा देंगे। जिससे बाबा साहेब और रोहित वेमुला का सपना अधुरा रह जाएगा और मनुवादों का सपना हम स्वतः पूरा कर देंगे।

😳आप सोच रहे होंगे कि ये सब मनगणंत बाते है तो आईये दोनों केस का पोस्टमार्टम करे। आईये करके सीखे---

🌟रोहित वेमुला का आन्दोलन से SC/ST/OBC/MINORITY सभी लोगो में एकजुटता आ गई थी चाहे किसी भी धर्म का बहुजन उर्फ़ मूलनिवासी हो सभी रोहित के अम्बेडकरी मिशन के साथ आ गए थे। अलग अलग संगठनो के के लोग इस संगठन की तरफ आकर्षित हुए और सरकार के कान हिला दिये। आरएसएस का मिशन जो कि बहुजनो को एक नहीं होने देना चाहता वह fail हुआ और रोहित जीता। और यह क्रान्ति अभी चल ही रही थी कि बहुजनो को बिखरने वाला षड्यंत्र नागपुर की आरएसएस शाखा में रचा गया और जिसे JNU में कन्हैया कुमार द्वारा उद्धृत किया गया।

👉अब JNU वाले प्रकरण को देखे......

🌟अचानक से बामपंथियो का जागरूक हो जाना जो कि इतने समय से निष्क्रिय अवस्था में पड़े थे।

🌟अचानक से बाबा साहेब के मिशन की बात करना जबकि बामपंथी हमेशा बाबा साहेब के विचारों के विरोध में काम करती है मतलब जातीय व्यवस्था को कभी मुद्दा नहीं बनाती और रोहित वेमुला केस को कभी highlight नहीं किये।

🌟JNU में सिर्फ हल्ला किया गया न कि कोई action plan की बात हुई। और नारेबाजी भीड़ में छिपे ABVP के एजेंट किये गए। उनकी पहचान होनी चाहिए।

🌟बाबा साहेब हमेशा राष्ट्रहित में काम किये और कोई भी ambedkarites राष्ट्रविरोधी काम नहीं कर सकता वो भी जब बाबा साहेब का नाम जुडा हो। मगर JNU में ऐसा नहीं दिखा।

🌟रोहित का आन्दोलन अभी तक चल रहा करीब करीब उसकी लड़ाई पिछले 8 महीनो से संघर्शील रही जो अभी आन्दोलन के रूप में राष्ट्रव्यापी फ़ैल रहा। मगर मीडिया ने कभी भी उसको front page का कवरेज नहीं दिया। मगर JNU वाले केस को 1ही दिन में front पेज और सभी मीडिया पर viral होना यह काम ब्रह्मिनिकल विचारधार से ही सपन्न हो सकती है।

👉अब इसका result क्या होगा--
💀ABVP के प्रति लोगो का नजरिया बदलेगा क्योंकि अब ये लोग जगह जगह राष्ट्रहित में पुतला फूकेंगे और लोग राष्ट्रवादी समझेंगे। और रोहित case के लगे दाग abvp पर से धुल जायेंगे।
💀SC ST OBC MINORITY का ध्रुवीकरण हो जाएगा और इनका जो unity बनी थी रोहित प्रकरण को लेकर, अब वह बिखर जायेगी।
💀अब बहुजन लोगो का बिखराव हिन्दू-मुश्लिम के रूप में होगा।
💀ऐसा होने से अब रोहित प्रकरण में जो लोग unite हुए थे  अब वे लोग divide हो जायेंगे और रोहित वेमुला का आन्दोलन ख़त्म हो जाएगा क्योंकि अब वंहा के बिखरे लोग नासमझी मे abvp के झांसे में फंस जायेंगे।

🌟तो अब करना क्या है?नीचे पड़े👇

🔥किसी भी हालत में हमें बटना नहीं है और रोहित वेमुला का मिशन चलाते रहना है ।
🔥कोई भी बहुजन event celebrate करे तो हमलोग रोहित प्रकरण की चर्चा जरूर करे।
🔥बाबा साहेब द्वारा लिखित book "भारत में क्रान्ति और प्रतिक्रांति" का अध्ययन जरूर करे।
🔥किसी भी घटना का जब तक मकसद न पता चल जाए तब तक उसके झांसे में न फंसे।



जय भीम जय। जय भारत।।
Plz Be aware &
Be Ambedkrite

हिंदू धर्म के 5 खूंटे

💥 *यादव शक्ति पत्रिका ने हिंदू धर्म में कुल 5 खूंटों का जिक्र किया है। आप लोग भी पढ़िए क्या हैं हिंदू धर्म के 5 खूंटे*.

👭 *जिनसे ब्राह्मणों ने सभी दलितों और पिछड़ों को बांध रखा है.*.

👥 *हिन्दू धर्म(ब्राह्मण धर्म) का खूँटा*----*

(१) 😡 *पहला खूंटा-ब्राह्मण:-*-
   हिन्दू धर्म में ब्राह्मम जन्मजात श्रेष्ठ है चाहे चरित्रसे वह कितना भी खराब क्यों न हो।
हिन्दू धर्म में उसके बिना कोई भी मांगलिक कार्य हो ही नहींसकता।
किसी का विवाह करना हो तो दिन तारीख बताएगा ब्राह्मण।
किसी को नया घर बनाना हो तो भूमिपूजन करायेगा ब्राह्मण।
किसी के घर बच्चा पैदा हो तो नाम- राशि बतायेगा ब्राह्मण।
किसी की मृत्यु हो जाय तो क्रियाकर्म करायेगा, भोज खायेगा ब्राह्मण।
बिना ब्राह्मण से पूछे
 हिन्दू हिलने की स्थिति में नहीं है।
इतनी मानसिक गुलामी में जी रहे हिन्दू से विवेक की कोई बात करने पर वह सुनने को भी तैयार नहीं होता।
पिछडों /एससीके आरक्षण का विरोध करता है ब्राह्मण।
पिछड़ों /एससी की शिक्षा,रोजगार,सम्मान का विरोध करता है ब्राह्मण।
इतना के बावजूद भी वह पिछड़ों /एससी का प्रिय और अनिवार्य बना हुआ है क्यों? घोर आश्चर्य।
हिन्दू  ब्राह्मण रूपी खूँटा से बॅधा हुआ है।

(२)😡 *दूसरा खूँटा -ब्राह्मण शास्त्र:-*

 यह जहरीले साँप की तरह हिन्दू समाज के लिए जानलेवा है।
मनुस्मृति जहरीली पुस्तक है।
वेद ,पुराण ,रामायण आदि में भेद-भाव ,ऊॅच-नीच, छूत- अछूत का वर्णन मनुष्य- मनुष्य में किया गया है।
ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण,
भुजा से क्षत्रिय,
जंघा से वैश्य ,
पैर से शूद्र  की उत्पत्ति बताकर शोषण -दमन की व्यवस्था शास्त्रों में की गयी है।
हिन्दू-शास्त्रों मे स्त्री को गिरवी रखा जा सकता है,
बेचा जा सकता है,
उधार भी दिया जा सकता है।
हिन्दू समाज इन
शास्त्रों से संचालित होता रहा है।

(३) 😡 *तीसरा खूँटा--हिन्दू धर्म के पर्व/त्योहार:-*

इसका मतलब आर्यों द्वारा इस देश के एससी/पिछड़ों (मूलवासियों) की की गयी निर्मम हत्या पर मनाया गया जश्न।
आर्यों ने जब भी और जहाँ भी मूलवासियों पर विजय हासिल की ,विजय की खुशी में यज्ञ किया।
यही पर्व कहा गया।
पर्व ब्राह्मणों की विजय और त्योहार मूलवासियों के हार की पहचान है।
त्योहार का मतलब होता है-तुम्हारी हार यानी मूलवासियों की हार।
इस देश के मूलवासी अनभिज्ञता की वजह से
पर्व-त्योहार मनाते हैं।
न किसी को अपने इतिहास का ज्ञान है और न अपमान का बोध।
सबके सब ब्राह्मणवाद के खूॅटे से बॅधे हैं।
अपना मान -सम्मान और इतिहास सब कुछ खो दिया है।
अपने ही अपमान और विनाश का उत्सव मनाते हैं और शत्रुओं को सम्मान और धन देते हैं।
यह चिन्तन का विषय है।
होली , होलिका की हत्या और बलात्कार का त्योहार।
दशहरा - दीपावली-रावण वधका त्योहार।
नवरात्र-महिषासुर वध का त्योहार।
किसी धर्म में त्योहार पर शराब पीना और जुआ खेलना वर्जित है ।
पर हिन्दू धर्म में होली में शराबऔर दीपावली पर जुआ खेलना  धर्म है।
हिन्दू समाज इस खूॅटे से पुरी तरह बॅधा है।

(४) 😡 *चौथा खूँटा- देवी -देवता-*
-हिन्दू धर्म में तैंतीस करोड़ देवी-देवता बताये गये हैं।
पाप-पुण्य ,जन्म-मरण,
स्वर्ग -नरक, पुनर्जन्म,प्रारब्ध का भय बताकर
 काल्पनिक देवी-देवताओं की पूजा -आराधना का विधान किया गयाहै।
मन्दिर -मूर्ति ,पूजा,
दान- दक्षिणा देना अनिवार्य बताया गया है।
हिन्दू समाज  इस खूँटे से बॅधा हुआ है और पाखण,अंधविश्वास,अंधश्रद्धा से जकड़ा है।

(५) 😡 *पाँचवां खूँटा-तीर्थस्थान:*-

-ब्राह्मणों ने देश के चारों ओर  तीर्थस्थान के हजारों खूँटे गाड़ रखे हैं।
इन तीर्थस्थानों के खूँटे से टकराकर मरना पुण्य और स्वर्ग प्राप्ति का सोपान बताया गया है।
हिन्दू समाज  के इन
खूटों से टकराकर मरने की घटनायें प्रायः होती रहती हैं और जान माल का नुकसान होता है।
 ब्राह्मणवाद के इन खूँटो को उखाड़ने के लिए
 चिन्तन- मनन, विचार-विमर्श  करना होगा।
किसी भी मांगलिक कार्य में ब्राह्मण को न बुलाने से,
ब्राह्मणशास्त्रों को न पढ़ने,
न मानने से,
हिन्दू (ब्राह्मण)त्योहारों को
 न मनानेसे,
काल्पनिक हिन्दू देवी-देवताओं को न मानने,
न पूजने से,
तीर्थस्थानों में न जाने,
दान -दक्षिणा न देने से ब्राह्मणवाद के सभी खूँटे  उखड़ सकते हैं।
ब्राह्मणवाद से समाज
मुक्त हो सकता है और मानववाद विकसित हो सकता है।
इस पर चिन्तन-मनन करने की आवश्यकता है।
  आइए  ब्राह्मणवाद से मुक्ति और मानववाद को विकसित करने का सकल्प लें।
 साभार

गुरु घासीदास जी का अपमान

*डाँ. अभिराम शर्मा द्वारा बाबा गुरु घासीदास जी का अपमान कर धार्मिक,समाजिक उन्माद को बढ़ा कर पूरे अनुसूचित जाति वर्ग को नीचा दिखाया गया*

डाँ. अभिराम शर्मा द्वारा ढ़ेका स्थित(मस्तूरी-बिलासपुर मुख्य मार्ग)अपने फार्म हाऊस के शौचालय एवं गंदा पानी निकासी के लिए बनाये गये नाली के पास करोड़ों लोगों के आस्था के प्रतीक एवं मार्गदर्शक बाबा गुरूघासीदास जी का तस्वीर(वाल पेंटिंग)बना कर बाबा गुरूघासी दास जी को अपमानित करने का घिनौना मामला उजागर हुआ है।
                            इस अमानवीय घटना को डाँ.अभिराम शर्मा द्वारा सोची समझी रणनीति के तहत बाबा गुरु घासीदास एवं संपूर्ण अनुसूचित जाति वर्ग को अपमानित करने के लिए अंजाम दिया गया है।
                              इनके इस कृत्य से उनके अनुसूचित जाति वर्ग के खिलाफ घृणित एवं समाज विरोधी मानसिकता का पता चलता है।
                      उक्त घटना के प्रकाश में आने के बाद बाबा गुरुघासीदास जी के अनुयायियों द्वारा थाना तोरवा (बिलासपुर) में एफ.आई.आर. दर्ज कराई गई है।
जिसमें मुख्य अभियुक्त डाँ. अभिराम शर्मा कोे धार्मिक एवं समाजिक भातृत्व की भावना मे जहर घोल कर बाबा गुरु घासीदास जी को अपमानित करने के जुर्म मे कड़ी से कड़ी सजा दिलाने की मांग की गई है।
इस प्रकरण में तोरवा थाना प्रभारी परवेश तिवारी की भूमिका भी संदेह के दायरे में है क्योंकि इनके द्वारा घटना की सूचना मिलते ही संबंधित बाबा जी के तस्वीर (वाल पेंटिंग) को तत्काल मिटवा दिया गया है, ताकि अपने स्वजातीय डाँ. अभिराम शर्मा के उक्त असंवैधानिक एवं समाज विरोधी कुकृत्य पर पर्दा डालकर उसे जेल जाने से बचाया जा सके।
इसलिए हम सम्मानीय पुलिस अधीक्षक एवं कलेक्टर बिलासपुर के साथ ही उच्चस्थ प्रशासन से मांग करते हैं कि तोरवा थाना प्रभारी परवेश तिवारी पर भी घटना से संबंधित साक्ष्य मिटवाने के आरोप में इन्हे सह अभियुक्त बनाकर तत्काल निलंबित किया जाये ताकि उनके तोरवा थाना मे रहते जाँच पर कोई विपरीत प्रभाव ना पड़े।
उक्त घटना के तारतम्य में संबंधित डाँ. अभिराम शर्मा एवं तोरवा थाना प्रभारी परवेश तिवारी के खिलाफ कठोर कार्यवाही किया जाना अति आवश्यक है ताकि इस प्रकार धार्मिक एवं सामाजिक भाईचारा को बिगाड़ने वालों को सबक सिखाया जा सके,जो कि उच्च शिक्षित होने का चोला ओढ़कर अपने कपट मन में अनुसूचित जाति वर्ग के खिलाफ असमाजिकता के जहर को भरे फिरते हैं।

इस मामले मे एक और अजीब वाकया जुड़ गया है,जब,आज प्रकरण दर्ज कराने के समय दोपहर 02.35 के एक घंटे के भीतर ही थाना प्रभारी परवेश तिवारी द्वारा पुलिस प्रशासन को अपने हाथ का कठपुतली बनाकर अपने सजातीय अभिराम शर्मा को जेल जाने से बचाने के लिये फौरन विवेचना करवा कोर्ट अविलंब चालान पेश कर दिया गया।
जिस पर त्वरित कार्यवाही करते हुये आज शाम को ही आरोपी ड़ाँ.अभिराम शर्मा को माननीय स्पेशल कोर्ट पंकज चंद्रा द्वारा जमानत दे दिया गया है,इस बीच समाज प्रमुखों द्वारा आरोपी अभिराम शर्मा के जमानत पर समाजिक संघर्ष की संभावना के मद्देनजर आपत्ति किया गया।इसके बावजूद आरोपी डाँ.अभिराम शर्मा को छोड़ा गया जबकि इन्ही धाराओं के तहत विकास खाण्डेकर(मुंगेली)को विगत एक माह से बगैर जमानत दिये जेल मे सड़ाया जा रहा है।
इस प्रकार के परिस्थिति एवं फैसले से पूरा अनुसूचित जाति वर्ग मे रोष व्याप्त है।

                 इसलिए संपूर्ण अनुसूचित जाति वर्ग द्वारा प्रशासन एवं माननीय न्यायालय से यह मांग है कि आरोपी डाँ.अभिराम शर्मा,तोरवा थाना प्रभारी परवेश तिवारी एवं इस के घटना मे शामिल अन्य आरोपियों के खिलाफ कड़ी से कड़ी सजा की कार्यवाही की जाऐ,ताकि पूरे मानव समाज मे सामाजिक एवं धार्मिक बंधुत्व पर कोई आंच ना आये।

धर्मेन्द्र कौशले
अध्यक्ष
मिनीमाता गुरूद्वारा प्रबंधन समिति पचपेड़ी जिला बिलासपुर
संपर्क सूत्र 9424147726

NDTV के खिलाफ कार्रवाई एमरजेंसी के दिनों जैसी

NDTV के खिलाफ कार्रवाई पर एडिटर्स गिल्ड ने कहा, सेंसरशिप एमरजेंसी के दिनों जैसी

अंतिम अपडेट: November 04, 2016 11:

NDTV इंडिया को एक दिन के लिए ब्लैकआउट कर देने के सरकारी पैनल के निर्णय की एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया कड़ी निंदा करता है. यह है एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का पूरा बयान.

द एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की अंतर-मंत्रालयी समिति द्वारा NDTV इंडिया को एक दिन के लिए ऑफएयर (बंद कर देने) करने तथा उसके आदेश का तुरंत पालन किए जाने के अभूतपूर्व फैसले की एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया कड़ी निंदा करता है.

इस आदेश के पीछे का प्रत्यक्ष कारण चैनल की 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट आतंकवादी हमले की कवरेज को बताया गया है, और सरकार का दावा है कि उस कवरेज से आतंकवादियों के हैंडलरों को संवेदनशील जानकारी मिली. सरकार द्वारा दिए गए कारण बताओ नोटिस के जवाब में NDTV ने कहा कि उसकी कवरेज संतुलित थी, और उसमें ऐसी कोई सूचना नहीं दी गई, जो शेष मीडिया ने कवर नहीं की, या जो सार्वजनिक नहीं थी.

चैनल को एक दिन के लिए ऑफएयर कर देने का निर्णय मीडिया की स्वतंत्रता, और इस तरह से भारतीय नागरिकों की स्वतंत्रता का सीधा उल्लंघन है, जिसके ज़रिये सरकार कड़ी सेंसरशिप थोप रही है, और जो एमरजेंसी के दिनों की याद दिलाता है. ब्लैकआउट के अपनी तरह के इस पहले आदेश से पता चलता है कि केंद्र सरकार समझती है कि उसे मीडिया के कामकाज में दखल देने और जब भी सरकार किसी कवरेज से सहमत न हो, उसे अपनी मर्ज़ी से किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई करने का अधिकार है. किसी भी गैरज़िम्मेदाराना मीडिया कवरेज के खिलाफ कोई कार्रवाई करने के लिए किसी भी नागरिक या सरकार के सामने बहुत-से कानूनी मार्ग उपलब्ध हैं. न्यायिक हस्तक्षेप या निगरानी के बिना प्रतिबंध लागू कर देना न्याय तथा स्वतंत्रता के मौलिक सिद्धांतों का उल्लंघन है. एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया प्रतिबंध के इस आदेश को तुरंत वापस लिए जाने की मांग करता है.

राज चेंगप्पा, अध्यक्ष
प्रकाश दुबे, महासचिव
सीमा मुस्तफा, कोषाध्यक्ष

मैं तो पूरी जिंदगी झाड़ू लगाती रही मगर मैंने अपने तीनों बेटों को साहब बना दिया

#Inspiration

*झारखंड के रामगढ़ जिले के रजरप्पा टाउनशिप में पिछले 30 सालों से झाड़ू लगाने वाली सुमित्रा देवी की आज बड़ी चर्चा है। सोशल मीडिया पर भी उनके चर्चे हैं। इसकी वजह है उनका रिटायरमेंट और उस दिन विदाई समारोह में उनके बेटों का शामिल होना।*
*दरअसल, जैसे ही रिटायरमेंट फंक्शन शुरू हुआ, वहां तीन बड़े अफसर पहुंचे। एक अफसर नीली बत्ती लगी गाड़ी में पहुंचे तो दो अफसर अलग-अलग बड़ी-बड़ी गाड़ियों में पहुंचे। उनमें एक थे बिहार के सिवान जिले के कलक्टर महेन्द्र कुमार,दूसरे रेलवे के चीफ इंजीनियर वीरेन्द्र कुमार और तीसरे थे मेडिकल अफसर धीरेन्द्र कुमार। ये तीनों सुमित्रा देवी के बेटे हैं जिन्हें उन्होंने बड़ी मेहनत से न केवल पाला-पोषा बल्कि उन्हें बड़ा अधिकारी बनाया। जब तीनों बेटे वहां पहुंचे तो सुमित्रा देवी की आंखें भर आईं। उन्होंने अपने तीनों बेटों का वहां मौजूद अपने अधिकारियों से परिचय कराया तो सबके सब दंग रह गए। सुमित्रा देवी के दूसरे सहयोगी सफाईकर्मियों को उन पर गर्व महसूस हो रहा था।बेटों को अपने आला अफसरों से मिलवाते हुए सुमित्रा देवी बोलीं, “साहब, मैं तो पूरी जिंदगी झाड़ू लगाती रही मगर मैंने अपने तीनों बेटों को साहब बना दिया। यह मिलिए मेरे छोटे बेटे महेंद्र से जो सिवान का कलेक्टर है और यह मेरा बेटा वीरेंद्र इंजीनियर है तोधीरेंद्र डॉक्टर।” कलक्टर, डॉक्टर और इंजीनियर बेटों ने भी विदाई समारोह में अपनी सफाईकर्मी मां सुमित्रा देवी की मेहनत और संघर्ष की कहानी से सभी को रू-ब-रू कराया। उन्होंने कहा कि मां ने झाड़ू लगाकर भी उन्हें अच्छी शिक्षा दिलाई। जिसकी वजह से आज वे अधिकारी बनकर जिंदगी में सफल रहे। उन्हें बहुत खुशी है कि जिस नौकरी के दम पर उनकी मां ने उन्हें पढ़ाया-लिखाया, आज सब अपनी मां की विदाई समारोह में साथ-साथ हैं। सीवान के कलेक्टर महेन्द्र कुमार ने बड़े ही भावुक अंदाज में कहा कि कभी भी विपरीत हालात से हार नहीं मानना चाहिए। सोचिए मेरी मां ने झाडू लगा-लगाकर हम तीनों भाइयों को पढ़ाकर आज इस मुकाम तक पहुंचा दिया।*
*सुमित्रा देवी भी तीस साल की नौकरी को याद करते हुए भावुक हो गईं। उन्होंने कहा कि झाड़ू लगाने का पेशा होने के बाद भी उन्होंने अपने बेटों को साहब बनाने का सपना आंखों में संजोया था। आखिरकार भगवान की कृपा और बेटों की मेहनत से वह सपना सच हो गया। भले ही बेटे अधिकारी हो गए मगर उन्होंने अपनी झाड़ू लगाने की नौकरी इसलिए नहीं छोड़ी कि इसी छोटी नौकरी की कमाई से उनके बेटे पढ़-लिखकर आगे बढ़ सके। आज उनके बेटे उन्हें गर्व का अहसास करा रहे हैं।*

NDTV इंडिया पर बैन स्थगित

*सूचना प्रसारण मंत्रालय ने NDTV इंडिया पर एक दिन के बैन के अपने आदेश को स्थगित किया*

NDTV की रिपोर्ट, विवेक रस्तोगी द्वारा अनूदित, अंतिम अपडेट: November 07, 2016 20:33

NDTV इंडिया पर एक दिन के बैन की चौतरफा आलोचना हुई थी
खास बातें
केंद्र ने 9 नवंबर को चैनल को ऑफएयर रखने का आदेश दिया था
सरकार का आरोप, पठानकोट हमले के दौरान संवेदनशील जानकारी प्रसारित हुई
प्रतिबंध के आदेश की संपादकों और पत्रकारों ने की थी कड़ी आलोचना
नई दिल्ली: सूचना प्रसारण मंत्रालय ने NDTV इंडिया पर एक दिन के बैन लगाने के अपने आदेश को स्थगित कर दिया है. अपने हिन्दी चैनल NDTV इंडिया पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए गए एक दिन के प्रतिबंध को NDTV ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कल यानी मंगलवार को इस याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति दी थी.

सरकार ने NDTV इंडिया पर इसी साल जनवरी में पठानकोट एयरफोर्स बेस पर हुए आतंकवादी हमले के दौरान संवेदनशील जानकारी का प्रसारण करने का आरोप लगाते हुए बुधवार, 9 नवंबर को उसे एक दिन के लिए ऑफएयर रखे जाने का आदेश दिया था.

NDTV ने इन आरोपों का खंडन किया और कहा था कि अन्य चैनलों तथा समाचारपत्रों ने भी वही जानकारी दिखाई या रिपोर्ट की थी.

इस प्रतिबंध की पत्रकारों और संपादकों ने चौतरफा आलोचना की . सभी प्रेस काउंसिलों ने इसे '70 के दशक में देश में लागू की गई एमरजेंसी के समान बताया, जब प्रेस की आज़ादी सहित सभी मूल संवैधानिक अधिकारों का खुलेआम उल्लंघन किया गया था.

एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा था कि अपनी तरह के इस पहले आदेश से पता चलता है कि केंद्र सरकार समझती है कि "उसे मीडिया के कामकाज में दखल देने और जब भी सरकार किसी कवरेज से सहमत न हो, उसे अपनी मर्ज़ी से किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई करने का अधिकार है..." देश के सभी बड़े समाचारपत्रों तथा पत्रिकाओं के संपादकों के समूह ने कहा था कि अगर सरकार को किसी मीडिया कवरेज में कुछ आपत्तिजनक लगता है, तो वह कोर्ट जा सकती है.

उधर, इस प्रतिबंध का बचाव करते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री वेंकैया नायडू ने कहा था कि यह प्रतिबंध 'देश की सुरक्षा के हित में है'।
बहरहाल बुद्धिजिवी, प्रगतिशील एवं आम जनता का विरोध काम आया। एेसा माना जा रहा है कि शायद उत्तरप्रदेश के चुनाव से घबराकर सरकार ने ये क्षणिक निर्णय लिया है।

http://khabar.ndtv.com/news/india/one-day-ban-on-ndtv-india-by-information-and-broadcasting-ministry-put-on-hold-1622223

काले धन पर लगाम के नाम पर मुद्रा परिवर्तन- कितना सही

*काले धन पर लगाम के नाम पर मुद्रा परिवर्तन- कितना सही कितना गलत एक विश्लेषण*
✍संजीव खुदशाह
आज सुबह घरों में काम करने वाली एक महिला ने बताया की  500 और 1000 रूपए के नोट बंद हो गये है। वो काफी परेशान लग रही थी, उसने आगे बताया की इस रविवार उसकी बी सी खुली थी जिसके 12000 रूपए(500 और 1000 नोट में) उसे मिले है। लेकिन आज ही मुहल्‍ले के किराना दुकान वाले ने 500 नोट के बदले किराना देने से इनकार कर दिया, वो बच्‍चे के दूध के लिए भटक रही थी। मै इस खबर से हतप्रद हो गया सहसा मुझे यकीन नही हुआ लेकिन न्यूज़पेपर की हेड लाईन से उसके बातों पर यकीन होगया।
मैने कहा की तुम बैंक में पैसे बदल सकती हो बहुत आसान है। तो उसने बताया की उसका बैंक में एकाउंट ही नही है। दर असल यह समस्‍या लगभग हर मध्‍यम, निम्‍न मध्‍यम परिवार की है।
मैं बताना चाहूँगा की 500 एवं 1000 रूपये के नोट आज 9 नवंबर 2016 की बीती रात से अवैध(बंद) कर दिये गये है। उनकी जगह 500 तथा 2000 के  नये नोट जारी किये गये है। इसके पीछे आर बी आई का तर्क है जो आज के अधिकृत विज्ञापन में विस्‍तृत रूप से सामने आया है। वे इस प्रकार है
*1 काले धन पर लगाम, 2 भ्रष्‍टाचार पर लगाम 3 जाली नोट पर रोक 4 आतंकवाद का वित्‍तपोषण पर नकेल आदि*
सरकार के इस फैसले पर चारों ओर से प्रतिक्रिया आ रही है कुछ इसे साहसी कदम बता रहे है तो कूछ लोग केवल सनसनी पैदा करने वाला कदम बता रहे है। *कुछ लोग ड़ॉ अंबेडकर के हवाले से भी इस तर्क का समर्थन कर रहे है।*

❌ *डॉं अंबेडकर ने नही कहा की 10 वर्ष में नोट बदलने से भ्रष्‍टाचार में कमी आयेगी*
हालांकि प्रख्‍यात अ‍र्थशास्‍त्री एवं *आर बी आई के जनक डॉं अंबेडकर के हवाले से ये खबर फैलाई जा रही है की वे प्रति 10 वर्ष में नोट बदले जाने के पक्ष में है।* उनके निम्‍न उद्हरण जो उनकी प्रसिध्‍द किताब  (रूपए की समस्‍या) Problem of Rupee से लिया गया है
‘And as the Government chose to have legal-tender notes, the Legislature in its turn insisted on their being of higher denomination. At first it adhered to notes of Rs. 20 as the lowest denomination/n, though it later on yielded to bring it down to 10, which was the lowest limit it could tolerate in 1861. Not till ten years after that, did the legislature consent to the issue of Rs. 5 notes, and that, too, only when the Government had promised to give extra legal facilities for their encashment. [f1][f20] ‘यह उध्‍दहरण इस किताब में सर रिचर्ड टेम्‍पल के हवाले से लिया गया है इसका हिन्‍दी अनुवाद इस प्रकार है।
*‘’सर्व प्रथम विधान मण्‍डल ने कम से कम मूल्‍य वर्ग के रूपए में 20 रूपए के नोट को जारी करने का बल दिया। परंतु बाद में वह इस मूल्‍य वर्ग को घटाकर दस रूपय के नोटो पर सहमत हो गई और यह बाद तक विघानमण्‍डल ने 5 रूपय के नोटो के जारी किये जाने की अनुमति नही दी और यह अनुमति तभी दी गई जब सरकार ने उनके भुनाने के लिए अतिरिक्‍त सुविधाएँ देने का वचन दिया’’*
@वाल्‍यूम 12 पृष्‍ठ 57 रूपये की समस्‍या उद्धव और समाधान
द्वारा बाबासाहेब डां अंबेडकर सम्‍पूर्ण वाडमय

गौर तलब है कि इस संदर्भ को डॉं अंबेडकर के नाम पर समाचार पत्र पत्रिकाओं सोशल मीडिया में प्रसारित किया जा रहा है। ऐसा करने के पीछे क्‍या मकसद है ये एक षड्यंत्र है या अज्ञानता यह एक जांच का विषय है। जबकि उक्‍त उदाहरण को ध्‍यान से पढेगे तो आप पायेंगे की इसमें कुछ और बात लिखी गई, 10 वर्ष में मुद्रा बदले जाने संबंध में यहां कोई बात नही की गई है।
यहां यह बताना जरूरी है की सरकार ने एक अच्‍छे मकसद से मुद्रा परिवर्तन का कदम उठाया है लेकिन नाम न बताने की शर्त पर एक व्‍यवसायी बताते हे कि विगत 5-6 दिनों से भारी मात्रा में कुछ धनिको द्वारा बैंक में धन जमा कराया जा रहा था। आशंका है की सरकार के इस निर्णय की भनक कुछ धनकुबेरो को लग गई थी।
क्‍या काले धन पर लगाम लगेगा?
जैसा की आर बी आई ने कालाधन, जाली नोट, आतंकवाद पर रोक लगाने की बात कही है। चूकि बड़े नोट बंद नही हुये है इसलिए इन समस्‍याओं पर क्षणिक असर तो पड़ेगा लेकिन बाद में समस्‍या जस की तस रहेगी। क्‍योकि काले धन का कैश ट्रांजेक्‍सन आसान होता है।
आईये जाने की काला धन कहां जमा है किन पर कार्यवाही की जरूरत है
*1) भूमि पति-* कालाधन का सबसे आसान निवेश है ज़मीन खरिदी। भारत में भूमि सीलिगं एक्‍ट लागू है यानि कोई भी व्‍यकित 10 एकड़ से ज्‍यादा सिंचित भूमि नही रख सकता। लेकिन इस नियम को या तो सीथील कर दिया गया या इसकी धज्‍जीयां उड़ा दी गई । आज एक ओर एक व्‍यक्ति के पास सर छिपा ने को न छत है न जमीन, तो दूसरी एक एक व्‍यक्ति के पास 100 से 1000 एकड़ भूमि के मालिकों की संख्‍या लगातार बढती जा रही है। आजादी के बाद काले धन का सबसे ज्‍यादा निवेश भूमि में हुआ है। अत: सीलिंग अधिनियम को और मजबूत बनाने की जरूरत है साथ ही जरूरत है उसे कड़ाई से लागू करवाने की।
*2) स्‍वर्ण खरीदी-* डॉं अंबेडकर अपनी किताब रूपये की समस्‍या में बताते है की सोवियत रूस समेत कुछ विकसित देश में स्‍वर्ण की खरीदी की सीमा बांधी गई है। भारत में काला धन निवेश की दूसरी सबसे पसंदीदा जगह स्‍वर्ण खरिदी है। अत: स्‍वर्ण खरीदी पर अंकुश लगाया जाना चाहिए तथा पूर्व में घरो में जमा सोना का घोषणा पत्र लिया जाना चाहिए।
*3) राजनीतिक पार्टियो को चंदा-* चूकि राजनीति पार्टी को दिया जाने वाला चंदा आर टी आई के अंतर्गत नही आता इसलिए यहां निवेश अत्‍यंत अच्‍छा माना जाता है बडे अद्यौगिक घराने वे इसके सहारे संविधान में संशोधन अपने व्‍यसायीक लाभ को बढाने के लिए करते रहे है।
*4) धार्मिक स्‍थल को दिया जाने वाला धन-* भारत एक धार्मिक देश है लोग अपनी आत्‍म संतुष्टि के लिए चंदा देते है ते वहीं गुप्‍त धन के रूप में काला धन भी खूब दिया जाता है। उसी प्रकार काला धन को सफेद बानने का गोरख धधा भी किया जाता है। पिछले दिनो ऐसा ही मामलो सामने आया एक संत काला धन को सफेद करने का समाचार मीडिया मे सुर्खियों में था।
*5)शेयर एवं महंगी चल संपत्ति-* इसके बाद कालाधन का निवेश शेयर बाजार तथा महँगी चल सम्‍पत्ति में किया जा रहा है।
यदि वास्‍तव में कालेधन/ आतंकवाद/ जाली नोट में अंकुश लगाना है तो इन 5 बिन्‍दुओ पर गौर करना आवश्‍यक है। *क्‍याकि काला धन की खपत की गुन्‍जाईश जिस देश में ज्‍यादा होगी वहां भ्रष्‍टाचार/ आतंकवाद/ जाली नोट का बजार फलेगा फूलेगा।*
अत: सबसे पहले आज़ादी के बाद काला धन जमा कररने वाले लागो पर कड्री कार्यवाही किया जाना चाहिए तभी भविष्‍य में लोग इससे बाज आयेगे। मुद्रा बदलने की प्रक्रिया को काला धन पर प्रहार के रूप में देखा जाना उचित नही है *क्‍योकि 1946 और 1978 में भी इस प्रकार मुद्रा की वापसी या परिवर्तन हुआ था किन्‍तु काला धन पर कितना अं‍कुश लगा ये बात किसी से छि‍पी नही है।*
बहर हाल सरकार के फैसले का स्‍वागत है देखना है कि इन पांच बिन्‍दुओ पर कठोर कदम कब उठाया जायेगा या मुद्रा (वापसी) परिवर्तन ग़रीबों की परेशानी का सबब बनकर रह जायेगा।
 [f1]For such extra facilities, and measures adopted to materialise them, Cf. the interesting speech of the Hon. Sir Richard Temple on the Paper Currency Bill dated January 13, 1871, S.L.C.P., Vol. X, pp. 22-25

मोदी भक्तों के शुरुआत के 50 दिन

[11/14, 12:35 PM] Sanjeev Sehara: #500_1000_नोट

मोदी: भक्तों, शुरुआत के 50 दिन कष्ट में गुजरेंगे।

भक्त: और 50 दिनों बाद।

मोदी: भक्तों, 50 दिन के बाद का समय ठीक गुजरेगा।
भक्त: कैसे?

मोदी: भक्तों, 50 दिनों के बाद तुम्हे कष्ट सहने की आदत पड़ जाएगी।
आदत नहीं पड़ी तो भी चिंता की कोई बात नहीं है। तब तक कोई नया शिगूफा छोड़ देंगे। कोई नया झुनझुना थमा देंगे, बैठकर बजाते रहना, लॉलीपॉप दे देंगे, पकड़कर चूसते रहना। शिगूफों, झुनझुनों और लॉलीपॉप की कोई कमी थोड़ी है हमारे पास!

**जय मूलनिवासी**
   😜😜😡😃😳
[11/14, 12:51 PM] Sanjeev Sehara: मोदी के नोट बदलने के तुगलकी फरमान के खिलाफ थे रघुराम राजन

जैसे जैसे वक़्त बीत रहा है और नये आर्थिक फ़ैसले आ रहे वैसे वैसे राजनीति के गलियारों में सामने आ रही है रघुराम राजन के छोड़ने की वजह| मोदी सरकार के आने के बाद ही काला धन चर्चा का विषय था, देश को उससे कैसे निजातदिलाई जाए| रघुराम राजन चाहते थे देश के धन्ना सेठो के खिलाफ जाना, लेकिन मोदी चाहते थे ग़रीब, किसानो औरमध्यवर्ग के खिलाफ जाना|सूत्रो के माने तो रघुराम राजन ने प्रधानमंत्री मोदी और उनके सहयोगी को अपने रहते 500/1000 रुपये के नोटो को बैन करने से रोक दिया था|
रघुराम राजन ने अपने मुलाकात के दौरान प्रधानमंत्री से बाते की, उन्होने इसके खिलाफ तीन बाते बातये- 20,000 करोड़ नये नोटो की छापने की कीमत कौन देगा| भारत मे सिर्फ़ 28-32% लोगो वित्य संस्थान से जुड़े है| पूरी बैंकिंग व्यवस्था के 138,626 मे 33% ब्रांच सिर्फ़ 60 बड़े शहरों और छोटे शहरों मे है| उत्तर पूर्व के 38 ज़िलो मे सिर्फ़10 बैंक ब्रांच है| इस से भी बड़ी बात ये है की हर 10 हज़ार व्यक्ति पर सिर्फ़ एक बैंक है भारत में|
दूसरा कारण जो राजन ने प्रधानमंत्री को बताया था वो था की कोई भी काला धन जमा करके नही रखता उसे सोने, चाँदी,ज़मीन, फ्लैट, हीरा, डॉलर या विदेशो के बैंक मे रखता है| इसलिए नोटो के बदलने से सिर्फ़ आम आदमी को दिक्कत का सामना करना पड़ेगा| उन्होने बताया की भारत मे 60 फीसदी लोग किसान है, जिनको इनकम टैक्स नहीं देना होता है| ये लोग रुपयों मे कारोबार करते हैं| 500 और 1000 का नोट बदलने से इनपर बुरा असर पड़ेगा| ये बताना ज़रूरी हैभारत मे 97% कारोबार रुपयो मे होता है|
तीसरा और सबसे बड़ा कारण- राजन कॉर्पोरेट इंडिया के पीछे जाना चाहते थे| जो सरकार को अरबो का चूना लगा रहे थे| सरकार से अरबो का लोन लेकर बैठे थे| इस मुहिम से कॉर्पोरेट इंडिया मे खलबली मच गयी| माल्या जैसे उद्योगपति सरकार को चूना लगाकर देश छोड़कर भाग गये| इसके अलावा राजन के उन 56 धन्नासेठो पर भी नज़र थी जो सरकार का 85000 करोड़ पिछले सालों मे लेकर बैठ गये| कोई भी बजट उठाकर देख लीजिए तकरीबन 8 लाख करोड़ का कॉर्पोरेट इंडिया का टैक्स सरकार माफ़ कर देती| राजन का तर्क था, देश की अर्थ व्यवस्था सुधारने के लिए इनसे टैक्स वसूला जाए

इस खबर के लिए लिंक पर क्लिक करे।
|http://upkhabar.in/2016/11/12/raghuram-rajan-was-against-note-ban/
[11/14, 12:53 PM] Sanjeev Sehara: जब *डॉक्टर* or *नर्सिंग ऑफिसर एव स्टाफ* लगातार 72 घंटे नॉन स्टॉप ड्यूटी कर सकते हैं और सदियों से करते आये हैं , तो क्या *बैंक* वाले एक हफ्ता *कैसुअल्टी* की तरह ड्यूटी नहीं कर सकते *?*

*किसने कहा कि बैंक रात को बंद करना जरूरी है !*

चलने दो *हॉस्पिटल की इमरजेंसी* की तरह ।

भीड़ अपने आप ही खत्म हो जायेगी ।😎
जनहित मे जारी 🙏🏻
जय भारत 🇮🇳
जय हिन्द  🇮🇳
[11/14, 12:54 PM] Sanjeev Sehara: 2 मिनट के लिए खुद के दिमाग से मोदी भक्त/विरोधी, वामपंथी/दक्षिणपंथी, हिन्दू-मुस्लिम का तमगा हटा के सोचिए इन 5 दिनों में क्या क्या हुआ?

• देश भर में फैले जाली नोट जलाए/फेंके जा रहे।
• काला धन रखने वालो के यहां छापे पड़ रहे।
• पैसे बांटकर चुनाव जीतने वाले नेता बौखलाए हुए है।
• बेईमानो के यहां दबे पैसे रद्दी बनते जा रहे।

नहीं सोचना.....चलिये ये सोचिये क्या नहीं हुआ...

• झारखण्ड-छत्तीसगढ़ में एक भी नक्सल हिंसा नहीं हुई।
• कश्मीर अलगाववादियों ने पत्थर नहीं बरसाए।
• UP में समाजवादी व महाराष्ट्र में ठाकरे गुंडों ने हिंसा नहीं की।
• पाकिस्तान ने सीजफायर का उल्लंघन नहीं किया।
• बिना पक्का बिल व बिना टेक्स दिए खरीददारी नहीं हो रही।
[11/14, 1:11 PM] Sanjeev Sehara: अपने किए पर भरोसा क्यों नहीं हो रहा है सर?
2G घोटाले वाला तो 4000 रूपये कि लिए
ATM पहुँच गया पर बीजेपी से एक भी नेता ATM नहीं गया बैंक में नहीं दिखा!!!???
व्यापम वाले नोट पहले ही बदल दिए गए थे क्या सर!!!???
कोई कारण तो होगा न सर क्योंकि जीने के लिए पैसों की ज़रूरत तो आपको भी होगी, आपके तमाम सहयोगियों को भी होगी।
या घोषणा से पहले ही..........😂😂😂😂😂
[11/14, 1:14 PM] Sanjeev Sehara: नोट  बंद  करने  के लिए  तीन  तर्क  दिए  जा  रहे  हैं, पहला  अर्थव्यवस्था रेगुलेटेड हो ,  दूसरा काला  धन  बाहर आएगा  और कला धन  वालों  को  पकड़ा  जायेगा और  तीसरा नकली नोट चलन से बाहर किये जांय ! अगर  यह  तीन  बातें  हो  तो  इसको  पूरा  समर्थन  |
 लेकिन ५०० और १००० के  नोट  बंद करने के फैसले  पर  कुछ  ज़रूरी बात  जिनपर  विचार  होना  चाहिए  ;;;;;
1.१०० से  कम  बड़े  कॉर्पोरेट घरानों (ख़रब  पतियों ) पर  बैंक का १२ लाख  करोड़ क़र्ज़  है, यह  हम  सब  जानते हैं की यह  पैसा किसी  सरकार , मंत्री या बैंक की  अपनी सम्पति  नहीं है  , यह  आम जानता की  गाढ़ी कमाई का  पैसा है  , जिसका  व्याज एक लाख चौदह हज़ार  करोड़  इस  साल  बजट  में  माफ़    कर  दिया  गया  | अगर सच में मोदी  को आम  जनता के  हित  में काले  धन  की  चिंता  है  तो क्यों  यह   व्याज  माफ़  किया जा रहा है क्यों  यह  क़र्ज़  नहीं  वसूला जा  रहा  है ?

2.यह  पूरा  अभियान  विदेशों से  काला धन न  ला  पाने  , सबके खाते  में  १५ लाख  का  वादा  पूरा  न  कर  पाने  की नाकामी को छुपाने  का  प्रयास  है | वे जो  ब्लैकमनी होल्डर हैं (असली / बड़े वाले ) उनपर कार्यवाही तो दूर आप सुप्रीम  कोर्ट तक के पूछने पर  उन लोगों के नाम  उजागर नहीं  करते | येही  है  आपका  साहस  |

3 अब  यहाँ  विचार  कीजिये  की  यह  खेल  आखिर है  क्या ? १२ लाख  करोड़  बैंक   का  corporates  के पास फंसा है, और  उन corporates के हितों की रखवाली  मोदी सरकार  द्वारा  उसका व्याज भी  माफ़ कर दिया  जा  रहा है | अब  पूँजी  के इस बढ़ते  संकट से  निपटने  के लिए बहुत  ज़रूरी  है की किसान ,मजदूर , खोमचे वाले ,  पटरी दुकानदार , तीसरी चौथी श्रेणी का कर्मचारी आम  महिलायों  और मध्यम वर्ग  के  पास रखे  पैसे को  बैंक  में एक झटके  में  जमा  कराया  जाये जिससे बैंक के पास  फिर  से  पूँजी  एकत्र  हो  और  सरकार  फिर  corporates  को  कर्ज  दिलवा सके |

4. सबसे  ख़राब स्थिति  यह  है कि करीब पाँच करोड़  लोग खुद और परिवार की बेहद ज़रूरी ज़रूरतों (दवा सब्ज़ी आटा चाय  दूसरी खुदरा चीज़ों)के लिये बेवजह सताये गय हैं । वे भोर से बैंकों, पोस्ट आफिसों की लाइनों में खड़े  रहे  । अपने ही  कमरतोड़ मेहनत से कमाए अपने पैसे को  अपने ऊपर खर्च करने  के  लिए  भीख  की तरह  लेने के लिए  ! इनमें से शायद ही कोई वो हो जिसको पकड़ने के लिये ये नोटबंदी की स्कीम लाई गई है | कितने  मजदूर , पटरी दुकानदारों  के  यहाँ  चूल्हा  तक  नहीं  जला  उसकी ज़िम्मेदारी  कोन लेगा ?
5. नोट्बंदी के  लिए ज़ारी किये  गए  तुगलकी सरकारी  आदेश में  यह  भी  शर्त लगायी  है  की अगर किसी  के  खाते  में  अगर  आज  से  लेकर  ३० दिसम्बर तक  २.५ लाख  से ज्यादा पैसा  जमा हुआ तो वोह जांच के  घेरे  में  आएगा  और उस पर  दो सौ परसेंट पेनालिटी  लगायी  जाएगी  | अच्छा  मजाक  है  मेहनत  से  इमानदारी  से  सचाई  से  अगर पैसा कमाया  है और उसमे से  अपना पेट काटकर  ( जो  प्राय: आम किसान  और  मजदूर परिवारों और निम्न मध्य वर्ग  में  होता  रहा  है )  पाँच सात , १० लाख जोड़ ले, या पत्नियों  द्वारा  सालों  साल पतियों  से  मिलने  वाले  घर  खर्च में  से  बचा कर  जो  पूँजी आज   एकत्र की  हो वोह काला धन  हो  जाएगी ? सबको  पता  है  काला धन  कोई नकद  में  नहीं  रखता होगा |

ऊपर लिखी  सारी मुसीबत  अगर  आम  जानता झेल  भी लेती  है  तब भी  सवाल  वोही  रहेगा  की  क्यों ? और  किसलिए ? इससे आम जनता  को  क्या  मिलेगा ? महगाईं  कम  होगी  ? आमदनी  बढ़ेगी  ? खाते  में  १५ लाख  आएगा  ? शिक्षा , खेती  , चिकित्षा में  सब्सिडी मिलेगी या  मुफ्त  हो  जायेगा  ?
या  आम  जनता को  भूखा मार  कर , परेशान  करके  बड़े कॉर्पोरेट घरानों  के   हितों  की रक्षा  की जाएगी जिनके  टुकड़े  खाकर  यह  सरकार  बनी  है  तो  अब नमक  का  हक़  तो  अदा करना  ही  है ।
[11/14, 1:15 PM] Sanjeev Sehara: *मंदिर मे काले धन का गोरखधंधा*

*क्या भारत के सभी मंदिर पर काले धन को लेकर छापा लगना चाहिए ???*

जैसे ही 500 ओर 1000 रूपेय की नोट पर बेंड लगा तो कुछ मंदिरों में भगवान की आड में काले धन को वाइट करने का धंधा शुरू कर दिया

*वो भी 20% की कमीशन पर*

भोले भाले भक्तों की कठीन महेनत ओर श्रद्धा विश्वास से दिये गये हुये चडावा का हुआ दुरुपयोग साथ मे विश्वासघात

मथुरा में आये हुये काफी विख्यात गोवर्धन मंदिर के पुजारी पावनबाबा रंगे हाथों  ABP News चेनल के सर्च ओपरेशन मे कालेधन को 20% कमीशन लेकर वाइट मे बदले हुये केमेरे में केद हो गये

पुजारी पावनबाबा के विडयो ने एक बड़ा प्रश्र पुरे भारत को सोचने पर मजबूर कर दिया साथे में सरकार को मुश्किल मे डाल दिया है

पावपबाबा विडयो में बोल रहे है की -
में 1 करोड़ रुपये की 100 की नोट खड़े खड़े 10मीनट में दे सकता हु आपको

अब सरकार के सामने एक बड़ा प्रश्न है की एक सामान्य मंदिर का पुजारी 1करोड़ रुपये का वाइट खड़े खड़े कर सकता है तो पुरे भारत के मंदिर में कितना काला धन बदल सकते है??

*क्या भारत के सभी मंदिर पर काले धन को लेकर छापा लगना चाहिए????*

**जय मूलनिवासी**

वास्तु शास्त्र भ्रामक शास्त्र

*वास्तु शास्त्र भ्रामक शास्त्र*
🏡 – लगभग पिछले 20-25 सालों से अपने यहाँ के सुशिक्षित लोगों को प्राचिन भारत के वास्तुशास्त्र के प्रति रूचि पैदा हो चुकी है। सैंकडों सालों से इतिहास बना हुआ यह शास्त्र 80 वें दशक में अपना अस्तित्व फिर से जताने लगा है। वास्तुशास्त्र जब पर्दे के पीछे था तब भी बिल्डींगे बनाते समय इस देश में वास्तुशास्त्र का आधार लिया जाता छा। अब तो वास्तुशास्त्र बहुत लोकप्रिय हो चुका है। जो कोई इस शास्त्र के अनुसार वास्तु का निर्माण करता है, और इस शास्त्र के अनुसार बनी हुई वास्तु में रहता है उसे यश, आरोग्य, सुख, समृध्दि सबकुछ निश्चित प्राप्त होता है ऐसा प्रचार किया जा रहा है।
यह शास्त्र पूरी तरह से विज्ञाननिष्ठ है सा इस शास्त्र का दावा है जिने हमें जाँचकर देखना। विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोन का एक महत्वपूर्ण तत्व  है। सही ज्ञान हमें ज्ञानेंद्रिय के द्वारा प्राप्त हो सकता है। इसी तत्व के अनुसार धीरे-धीरे वैज्ञानिक पध्दति निरीक्षण, अन्वेषण, प्रयोग अनुमान – निष्कर्ष जैसी सीढ़ीयों को पार करके सिध्द हो सकती है। ज्ञानप्राप्ती की यह सर्वाधिक विश्वसनीय पध्दति है।
इस पध्दति से पूरा ज्ञान परखा जाता है। उसकी सत्यता और असत्यता तय की जाती है। इसके पश्चात वह विज्ञान बनता है। वास्तुशास्त्र को भी विज्ञान बनने के लिये इस कसौटी को पार करना पड़ता है। इसके बिना वास्तुशास्त्र को विज्ञान मानना गलत है। वैज्ञानिक प्रगति के कारण सब चीजों का लाभ उठाना मगर विज्ञान और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को नकारना, हमारा प्राचीन शास्त्र है ऐसा कहकर विज्ञान की कसौटी को न मानते हुए वास्तुशास्त्र को अपनाना यह दोहरापन छोड़ना चाहिए। वास्तुशास्त्र पर भरोसा करना यह व्यक्तिगत बात हो सकती है मगर उसे विज्ञान कहना याने अपने आपको और अन्यों को भी ठगाने जैसी बात है।
आधुनिक जगत मे किसी को भी विज्ञान, उससे प्राप्त सुखसुविधाएँ, उसकी विश्वसनीयता को नकारना असंभव है। वैज्ञानिक होना बहुत सम्मान और प्रतिष्ठा दैनेवाली बात है।  अत: कुछ भी करके वास्तुशास्त्र को वैज्ञानिक धरातल पर सही साबित करने की कोशिश जारी रहती है। यह शास्त्र विज्ञाननिष्ठ नहीं है इतना कह देना पर्याप्त नहीं।  कौनसी परिस्थिति में इसका निर्माण हुआ, उसकी वृध्दि कैसै हुई, उस वक्त का समाज, लोगों के व्यवहार, खान-पान आदि सारी बातों की चर्चा होनी चाहिए। मकान की जरुरत तोउसे शुरु से ही रही है। आदमी को ही नहीं, पंछी, जानवर, कीटक, चींटी सभी सजीवों को रहने के लिए स्थान लगताही है। अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार हर कोई मकान ढूँढता है या स्वयं उसका निर्माण करता है। यह सबकुछ अन्य प्राणी अपनी आवश्यकता के अनुसार सैंकडों सालों से अपना मकान बनाते आये हैं।  मनुष्यने अपनी बुध्दि का इस्तेमाल करके अपना मकान बनाने की कला में अपनी जरुरतों के अनुसार समय समय पर सुधार किये हैं।
प्रांरभ से ही मकान बनाते वक्त सुधार क्ये जाने लगे मकान बनाने का वास्तुशास्त्र केवलमात्र भारत में ही बनाया गया ऐसी बात नहीं। इस प्रकार का शास्त्र बनाना और स्थल-काल, भौगोलिक परिस्थिति, उस इलाके की हवा, वहाँ की संस्कृति, वहाँ पैदा होनोवाली मुसीबतें आदी के कारण महसूस होनेवाली अलग-अलग आवश्यकताओं के अनुसार मकान बनाने में निरंतर सुधार होते रहे। संसार भर में यह सब चलते ही रहता है।   यहाँपर ध्यान में रखने जैसी बात यह है कि आर्य लोगों की टोलियों ने आक्रमण करके वहाँ की संस्कृति को समाप्त करने के बाद भारतीय वास्तुशास्त्र वास्तुशास्त्र का निर्माण किया। वहाँ की संधोक संस्कृति की भाँति अन्य अनेक प्रगतीशील संस्कृतियों का ऐसी टोलियों ने विध्वंस किया है। ऐसे आक्रमणों से कुछ इनी-गिनी संस्कृतियों ने स्वयं को बचाया है।
*ऐतिहासिक पहलु –*
इस शास्त्र को विज्ञान कहें या नहीं इस बात को तय करने से पहले यह जब निर्माण हुआ उस काल की घटनाएँ और उसके परिणामों की जाँच करनी होगी। वास्तुशास्त्र के प्रवक्ता लोग कहते हैं कि इस शास्त्र का जनम वैदिक काल में हुआ है। ऋगवेद  में इसके  बारे में कुछ सबूत भी मिलते हैं। आर्य लोग भारत में आने से पहले सिंधू नदी के आसपास मूल रहिवासी बढ़िया ढंग से मकान बनाते थे। इन लोगों पर कब्जा करके अपनी सत्ता स्थापित करने हेतु आर्य लोगों को कई पापड बेलने पडे थे। वास्तुशास्त्र उन्हीं कोशिशों में से एक है। इसका मूल है यज्ञवेदी के निर्माण में यज्ञीय परंपरा और यज्ञीय विधि ज्यों ज्यों विस्तृत होते गये त्यों त्यों चातुवर्ण पध्दति मजबूत बनती गयी और  मकान बंधने के कार्य को करते समय गूढ शक्तियों को शांत करना, तृप्त करना और इसके लिए कर्मकान्ड करना शूरु हुआ। ये महाशक्तियाँ गण, गुरु, स्थपति, पुरुष आदि नामों से पहचानी जाती हैं। इसमें वास्तुपुरुष मंडल और वास्तोस्पती इन कल्पनाओं का सृजन हुआ। शुभ-अशुभ, पितर, वास्तुशास्त्र, ब्रम्ह, ईश्वर, स्वर्ग, मोक्ष, आत्मा जैसी कल्पनाओं का निर्माण इसीमें से हुआ। आर्य लोग आने से पहले सिंधू नदी के इर्दगिर्द बहुत बारीकी से नियोजन करके कुछ महानगर बस गये थे। खोदकाम के बाद इन बातों का पता चला है। वास्तुशास्त्र की वजह से चार वर्णोवली समाज रचना को बनाया गया। आजकाल जो वर्ण और जाति की व्यवस्था को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है कि यह दुष्ट व्यवस्था इतनी टिककर रहने के पीछे वास्तुशास्त्र का बहुत बड़ा हाथ है। निष्कर्ष के तौर पर यही कहा जा सकता है।
*वैदिक ज्ञान –*
वास्तुशास्त्र को मानने वाले कुछ लोग भृगु ऋषि के कुछ श्लोकों का आधार लेकर कहते रहते हैं कि वेदकाल में बहुत प्रगत वास्तुशास्त्र व्यवहार में था। बड़ी बड़ी बिल्डिंगे थी और हवाई जहाज भी थे। किसी अनुसंधान कर्ता ने उनसे एक महत्वपूर्ण सवाल पूछा था। उसका जिक्र यहाँ करनाही होगा। वास्तव में अपने यहाँ प्राचीन काल से ही हवाई जहाज और आज बननेवाले शस्त्रास्त्र थे। जिन बातों को आज खोजा जा रहा है उन सबके भारत के लोगों ने वेदकाल में ही खोज लिया था आजकल जो अनुसंधान हो रहें हैं वह सब पुरातन वैदिक ज्ञान ही तो है। फिर आप मुझे बताइए कि उन्होंनं दो पहियोंवाले वाहनों को भी संशोधन किया था क्या और वे उनका इस्तेमाव करते थे क्या? यहाँपर सवाल यह खड़ा होता है कि मोहेन्जोदारो, हरप्पा आदि स्थानों पर जो उत्खनन हुआ उसमें वेदकाल से पहले भी यहाँपर जो कुछ इस्तेमाल होता था, उनका पता चलता है। वेदकालीन लोग भी विज्ञान और तंत्रज्ञान के क्षेत्र में काफी माहिर थे इस बात का एक भी सबूत क्यों नहीं मिलता? वास्तुशास्त्र में जिन आठ दिशाओं को महत्व पूर्ण समझा जाता है उनसे हवा की दिशा, सौरउर्जा, गुरुत्वाकर्षण  जैसी बातों से मेल खानेवाले कुछ लोगों का गुट बनता है। इनके आधार पर शुभ-अशुभ को जानना, पैसा और सुखशांति मिलेगी या तकलिफें सहनी पड़ेगी, यश पल्ले पडेगा या अपयशयह सबकुछ तय किया जाता है।   मगर इस बारे में कोई भी वैज्ञानिक निष्कर्ष या सबूत प्राप्त करने की कोशिश वास्तुशास्त्र विशारदों को मंजूर नहीं है।
उपरोक्त सभी कल्पनाएँ ईश्वर, स्वर्ग, नरक, मुक्ति के साथ जोड़ने के कारण लोग उसपर भरोसा करते हैं। उन्हें वैज्ञानिक कसौटियों पर कसने की आवश्यकता नहीं होते। अपनी प्राचीन संस्कृति का गुणगान करते वक्त हमें दुसरी बातों का ध्यान ही नहीं रहता। विज्ञान की कई श्रेणियाँ हैं – आयुर्वेद, गणित, चरकसंहिता, सुश्रुतसेहिंता और वास्तुशास्त्र  ये सभी शाखाएँ प्राचीन काल में ही प्रगतिपथपर थी वे निरर्थक साबित होती गयी। आयुर्वेद की जैसी शाखाएँ केवल जिंदा ही नहीं रही तो अब तक वो तरक्की कर रही है। उसमें अब भी संशोधन जारी है। वास्तुशास्त्र तो 20 साल तक लोगों को मालूम ही नहीं था। इसका कारण स्पष्ट है। कालनाम में लोगों को इस बात का पता चल गया कि शास्त्र का आधार वैज्ञानिक नहीं है। इसलिए यह पुराना सायन्स कालबाह्य हो गया। उसके बाद पिछले कुछ दशकों में इस पुराने सायन्स के लोगों को दुबारा खोजबीन करनी पड़ी और आधुनिक विज्ञान की चौखट में उसे फिट करना पड़ा।
*दिशाओं का प्रभाव –*
वास्तुशास्त्र में दिशाओं का प्रभाव काबहुत महत्व होता है। अत:  हवामान के परिणामों का अदांजा ले सकते है। फिर उसका ठीक से इस्तेमाल कर सकते है। मगर आज हम जिस वास्तुशास्त्र के बारे में बेहस करते हैं, उसमें व्यावहारिक उपयोग का विचार न करते हुए लोगों के मन पर जबाव महसूस हो ऐसी गूढ कल्पना और उसका यदि अनादर करें तो जो कुछ भोगना पड़ता है उसके भयानक परिणामों का भी विचार किया जाता है। वास्तुशास्त्र का मुल ग्रंथ यदि पढ़े तो इस बात की सत्यता महसूस होगी। धरती के चुबंक क्षेत्र का और आदमी के भविष्य पर होनेवाले उसके परिणाम का जिक्र चक उसमें नहीं करते। वैसे आम तौर पर वास्तुशास्त्र के नियमों का उल्लंघन करने से कौनसे बुरे परिणाम होंगे यह बात सीधे सादे शब्दों में बतलाई जाती है। आये दिन वास्तुशास्त्र में बच्चों की मौत, दरीद्रता, पूर्ण विनाश जैसी भयानक बातें दर्शायी जाती है। विज्ञान में आदमी की वर्ण या जाति को बिलकुल भी महत्व नहीं होता। वास्तुशास्त्र में तो तत्वों को न मामनेवाले को उसकी जाति या वर्ण के अनुसार भिन्न-भिन्न परिणाम बतलाये गये हैं। ऐसे सायंस को  विज्ञान कैसे कह सकते है ?
वास्तुशास्त्र की भाँति अन्य कई शास्त्र अपनी सच्चाई को साबित करने हेतु वैज्ञानिक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं और लोगों के मन में कई गलतफ़हमियाँ पैदा करते हैं। पढ़ेलिखे बुध्दिमान लोग भी ऐसी वैज्ञानिक संज्ञाओं के शिकार हो जाते हैं। मूल में जिनकी नीवं हो दोषयुक्त और वैज्ञानिक हो उस वास्तुशास्त्र की खामियों की और वे ध्यान नहीं देते। इस भ्रामक शास्त्रों का आधार है आठ दिशाएँ। ये आठ दिशाएँ नॅचरल नहीं होती। उन्हें अपनी सुविधानुसार लोग ही तय करते हैं। हमारा पूर्व दिशा का प्रदेश ब्रम्हदेश के पश्चिम में होता है। ऐसी अनिश्चित दिशाएँ शुभ या अशुभ, अच्छा या बुरा परिणाम कैसे दिखला सकती है ? पृथ्वी तो हमेशा अपने ही इर्दगिर्द पश्चिम से पूर्व की ओर घूमते रहती है। किसी प्रचंड पहिए पर बैठकर हम लोग घूमते हैं वैसे। वह पहिया घूमते रहने पर हमें अपने आसपास की सभी वस्तुएँ घूमती हुई नजर आती है। प्रत्यक्ष में हम ही घूम रहे होते हैं और आसपास की सभी चीजें स्थिर होती है। ऐसे ही सूर्य  भी हमें पूर्व दिशा की ओर उगा हुआ दिखता है और दिनभर का सफर करके शाम को पश्चिम में अस्त होता हुआ दिखता है। ऐसी स्थिति में दिशाओं को शुभाशुभ, लाभदायक या धोकादायक जैसे विश्लेषण लगाने में कहाँ की समझदारी है? इससे भी मजेदार स्थिति आर्क्टिक एवं अटांर्टिक प्रदेशों में पायी जाती है। इन प्रदेशों में 6 महिने का दिन और 6 महिने की रात होती है। 21 मार्च से 23 सितंबर की कालावधि में आधी रात में आसमान में सूरज दिखाई देता है। फिर यहाँपर आप वास्तुशास्त्र के महान तत्व कैसे लगा पायेंगे?
*वास्तु का रहस्य –*
वास्तु याने क्या ? इसका सही अर्थ क्या है? संस्कृत भाषा में इस शब्द का अर्थ है – हम रहते हैं वह स्थान याने वास्तू! वास्तुशास्त्र का जब जन्म हुआ था तब नगर-पालिकाएँ नही थी। शहर विकास अधिकारी भी नहीं थे और मकान बनाने का कानून भी नहीं थे। वास्तुशास्त्र के अनुसार रसोईघर वातविमुख दिशामें होना चाहिए और यह बात ठिक भी है क्योंकि रसोईघर में पैदा होनेवाला धुंआ घर में फैलने के स्थानपर हवा के साथ बाहर फेंका जाय। पहले घर में हवा को बाहर फेंकने वाले पंखे नहीं थे। मगर आये दिन ये सुविधाएँ होने के कारण वास्तुपंडित प्राचीन बातों का मजाक उडाते हैं। कारखानों में बॉयलर रुम कहाँ होनी चाहिए इसके बारे में वे सलाह देते हैं क्योंकि रसोईघर में जैसे अग्नि होता है वैसे ही  बॉयलर रुम भी होता है। भारत फोर्ज कंपनी ने बहुत सी पूंजी खर्च करके अपने फ्लॅट की रचना वास्तुशास्त्र के कथनानुसार बदली। ऐसे कई उदाहरण दिये जा सकते हैं। मगर वास्तुशास्त्र में एकाध श्लोक में भी बॉयलर और फॅक्टरी का विवेचन नहीं मिलता। तब उनका अस्तित्व था ही नहीं। अब स्थिति बदल चुकी हैं। धुआं नहीं होगा ऐसी चीजों का इस्तेमाल किया जाता है। फिर हम वास्तुशास्त्र के इन तत्वोंपर कब सक काम करेंगे?
वास्तुशास्त्र के अनुसार किसी भी बिल्डिंग का प्रवेशद्वार दक्षिण की ओर होना अशुभ माना जाता है और ऐसा होगा तो विनाश अटला है। किसी बाजारपेठ में रास्ते को दोनों ओर जहाँ दुकान लगे होते हैं वहाँपर आधी दुकानों का प्रवेश दक्षिण दिशा से ही होगा। वे सबके सब दुकानदार असफल होते हैं क्या? वॉशिंग्टन, डी.सी. के व्हाईट हाऊस का प्रवेशद्वार दक्षिण दिशा की ओर है।  वास्तुनियमों से बिलकुल विरोध में। पर वहाँ रहते है अमेरिका के राष्ट्राध्यक्ष संसार की प्रबल महासत्ता के प्रमुख।
वास्तुशास्त्र के काल में घर के दरवाजे और खिडकियाँ हवा खेलने के लिए सीधी लकीर में होना जरुरी समझा जाता था एक किताब में कहा गया था कि पश्चिम दिशा की तरफ छाया दनेवाले बड़ेबड़े पेड़ होने चाहिए। उस विभाग की कड़ी धूप को रोकने के लिए इनकी आवश्यकता है। पर उत्तर भारत में इसकी जरुरत नहीं होती। द। भारत में सूरज की रोशनी उत्तर की तरफ से आती है। इसलिएँ यहाँ पर यह नियम लागू होता है। वास्तुशास्त्र के सभी ग्रंथ उस इलाके की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर लिखे गए है। मगर आये दिन उन को दिल्ली से कन्याकुमारी तक भी स्थानों पर लागू किया जाता है। एक वास्तुशास्त्र में तो ऐसा कहा गया है कि ब्राम्हणों को घर होने ही नहीं चाहिए। उस काल के हिसाब मे यह बात ठीक होगी भी। पर अब भी हम अंधे बनकर उसे अपनाए क्या ?
आजकल वास्तुशास्त्र के द्वारा जो बात स्पष्ट नहीं की जाती क्योंकि सेंकड़ों साल पहले वास्तुशास्त्र के कई वास्तुशास्त्र रुप थे। उनके लेखक भी कई थे – वराहमिहीर, भृमु,मनुसार, मयमत वगैरा। हर एक का अलग ग्रंथ, स्वतंत्र स्पष्टिकरण और खुद के प्रांत की आबोहवा, सामाजिक नियम, उपलब्ध साहित्य इन सबका विचार करके बनाये गए मकान एक जैसे होना असंभव है। हर एक ने अपने सुविधा के अनुसार नियम बनाये थे।
पानी पश्चिम दिशा की ओर रखा हो तो  वास्तुशास्त्र के अनुसार दुर्भाग्य का कारण होता है। मुबंई में तो अरबी समुद्र पश्चिम दिशा की ओर है और मुबंई तो हमारे देश का प्रमुख व्यापारी शहर है। वहाँ कितनी बड़ी आर्थिक बातें दिनरात चलते रहती है। फिर कैसा आया दुर्भाग्य ? आजकल के वास्तुपंडित कहते हैं कि  मुबंई में शहर को समुद्र में मिट्टी भरकर बनायी गयी जमीन पर बसाया गया है इसलिए वास्तुशास्त्र के नियम वहाँ पर लागू नहीं होते। मगर पूरा मुबंई शहर ऐसी जमीन पर नहीं बसा है। फिर इस सवाल का क्या जवाब होगा ?
अपने यहाँ का इतिहास देखना होगा। हमारे मराठी शासक पेशवेजी ने सुखसमृध्दि प्राप्त हो इसके लिए उत्तर दिशा की ओर मुख हो ऐसे दरवाजे बनवाए। पुना का शनिवारवाडा लिजिए। उसका बड़ा सा प्रवेशद्वार उत्तर दिशा की ओर है। फिर भी वे मुसीबतों से हैरान हो गए थे। कर्ज के बोझ से लद गए थे।
वास्तुशास्त्र की एक किताब में लिखा है कि पूर्व दिशा की ओर से बहनेवाली नदियाँ ही उस प्रदेश को सुजलां सुफलां बना सकती है। उस जमानें में कुछ खास इलाकों में ऐसा हो गया होगा मगर यह संसारभर का नियम नहीं हो सकता। भारत में गुजरात, महाराष्ट्र, पंजाब, केरल इन राज्यों में पूर्व दिशा की ओर बहनेवाली नदियाँ है ही नहीं। परंतु इन राज्यो में समुध्दि नहीं है ऐसा नहीं कह सकते। तिरूपति का मंदिर वहाँ की वास्तू के कारण बहुत धनवान है। अन्य मंदिर उनकी वास्तु की वजह से गरीब हैं। भगवान भी इस वास्तू के लफड़े से छूट नहीं पाते।
और एक सवाल पैदा होता है। वास्तु के प्रति इतना प्यार अभी क्यो उमड़कर आया है। यह सवाल सांस्कृतिक और सामाजिक स्वरुप का है। उसके चार कारण हो सकते हैं।  वे हैं – अपनी असफलताओं का कारण वास्तू को बताना। कई लोग रातभर में अमीर हो जाते हैं। फिर वे किसी वास्तुपंडित को पापविमोचन करने हेतु, प्राप्त धन से भगवान को भी हिस्सा लेने के लिए बुला लेते हैं। भगवान भी बहुत जल्द उनकी पुकार सुन लेते हैं। ऐसी अंधश्रध्दाएँ कभी  कभी बीमारियों की तरह फैल जाती हैं।एखाद मंत्री ऐसी ही कुछ बातों के लिए वास्तुशास्त्रज्ञ से मिलता है और फिर उसके पीछे अन्य लोग भी उसी राह से लगते हैं।
इन सारी बातों का दुष्परिणाम मकान बनाने वाले बेपारियों को भुगतने पड़ते हैं।  आधुनिक वास्तुतज्ञ अलग-अलग 50 विषयों का पांच साल तक भरसक अध्ययन करते हैं इतना परिश्रम करने के बाद प्राप्त ज्ञान को कुछ लोग क्षणभर में फालतू करार देते हैं। उसमें से कई लोगों को कॉलम, लिटेंल, बीम इनके बीच का फर्क भी मालूम नहीं होता। फिर भी पूरा निर्माण कार्य और पूरे शहर की रचना के बारे में वे सलाह देते रहते हैं। लोग भी उनकी बातें मानते हैं। मेरे यहाँ कई आर्किटेक्ट विद्यार्थी निराश होकर आते हैं और अपने वास्तुशास्त्री के बारें में शिकायत करते हैं। मकान का निर्माण का परफेक्ट नक्शा बनाने के बाद हमारे ग्राहक किसी वास्तुविद को ले आते हैं। यह ज्ञानी हमें कई सुधार सुझाता है जो मकान को विद्रूप बना दैते है और ऐसे सुधार करना उस ग्राहक के हित में नहीं होते।
किसी वास्तुविद ने देवेगौडाजी से कहा “आपके घर में प्रवेश करने हेतु दो सीढियाँ है इसलिए आप पूरे पाँच साल तक शासन नहीं कर पायेंगे।  आर्किटेक्ट ने एक आयडिया की।  प्रवेशद्वार के पास एक गढ्ढा खोदा और वहाँ एक फर्श बिठाकर नाममात्र की क सिढी बनायी। तीन सिढ़ीयाँ हो जाने से अब सभी खुश हो गए। मगर इस तिसरी सीढ़ी को भी देवेगौड़ाजी को पाँच साल तक टिका पाना संभव नहीं रहा।
एन. टी. रामारावजी को सलाह दी गई थी कि उनके सेक्रेटरिएट की उत्तर दिशा में कुछ मीटर का एक खुला पॅसेज होना चाहिए। वहाँ पर बहुत सा धन खर्च करके वहाँ की  झोपडियाँ हटाई गई और रामारावजी के लिए उत्तर दिशा में बड़ासा प्रवेशद्वार बना। गया। मगर दुर्भाग्य से जल्द ही उन्हें मुख्यमंत्री के पद से हटाया गया और साक महीनों के बाद ही वे स्वर्गवासी हो गए। वास्तुशास्त्र के अनुसार परिर्वतन करने के लिए जनता के करोड़ो रुपये मंत्री गण अपनी इच्छाके अनुसार खर्च करते रहते है। उनके विरोध में न्यायलय में जनहितयाचिका पेश करनी चाहिए।दुःख की बात यह है कि इन वास्तुशास्त्र विदों पर किसी तरह की बंदी नहीं और कोई भी कानून उनपर लागू नहीं होता। उनके ये सभी कार्य ग्राहक सुरक्षा कानू  के अंतर्गत लाने चाहिए। समाचारपत्र, टिव्ही और अन्य मिडियावालों को सजग रहकर उनकी प्रशंसा करना बंद करना चाहिए। वास्तुशास्त्र के मूल ग्रंथ में कहा गया है कि भोंदू लोगों के द्वारा ऐसा व्यवसाय किया जाय तो उन्हें कड़ी सजा देनी चाहिए। इस मामलें में व्स्तुपंडितों का क्या कहना है ?
ख्रिस्टोफर रेन ने एक चर्च बनवाया। उसके भीतर एक भी खंबा नहीं था। वह चर्च ढह जाएगा ऐसा भय सबको हो रहा था मगर ख्रिस्टोफर ने दावे के साथ कहा कि वह एकदम पक्का बना है और सौ साल तक जरुर टिकेगा। लोगों का भय खत्म करने हेतु अंत में उसने एक खंबा भीतार खड़ा किया। मगर यह खंबा छत तक पहुँच ही नहीं सका छह इंच जानबूझकर छत के नीचे रखा था। इस खंबे से छत को नहीं मगर लोगों की मानसिकता को सहार मिल रहा था।
“और एक दुर्भाग्य की बात यह है कि आये दिन ख्रिश्चन और मुस्लीम लोग भी वास्तुशास्त्र के भंवरे में फंस चुके है।  इस लहर के विरोध में लड़ रहा हूँ।  मुझे अब स्वयं-सेवकों की मदद चाहिए।  इस संदर्भ में मेडिकल रेमेडीज एक्ट 1910  वास्तुशास्त्र के व्यवसाय लिए बन जाना चाहिए। वास्तुशास्त्र के जानकार लोगों ने अपना मत लिखित रूप में सूचित करना चाहिए।  इस विषय की अंधश्रध्दाओं पर रोकथाम लगाने के लिए महाराष्ट्र अंधश्रध्दा निर्मूलन समिति के जैसी समितियाँ बननी चाहिए ”
*आर. व्ही. कोल्हटकर*
डेक्कन हेरॉल्ड से साभार