Saturday, November 26, 2016

एक क्रांति अब फिर होनी चाहिए

एक  क्रांति अब फिर होनी चाहिए।।।।। सेवक जातियों का उत्थान अब होना चाहिए ।।। क्रांति से हमारा मतलब हैं, आज की शासन व्यवस्था, जिसकी आधारशिला अन्याय हैं, उसे बदलना। उत्पादनकर्ता या मजदूर जो समाज का आवश्यक अंग हैं, शोषक उसका शोषण कर रहे हैं तथा उसके प्राथमिक अधिकारों का हनन कर रहे हैं, दूसरी ओर किसान जो अनाज पैदा करता हैं, वह भी अपने परिवार सहित भूखा मर रहा हैं, बुनकर जो दुनिया की मंडियों को कपड़ा देता हैं उसे अपना तथा अपने बाल-बच्चों का तन ढंकने का कपड़ा नसीब नहीं होता है ।
सेवक जातिया बढई, राज , कहर , भेड़ पालक , पटेल,पासी , प्रजापति , और अन्य कारीगर जो बड़े-बड़े महलों का निर्माण करते हैं, स्वयं गंदी बस्तियों में रहते हैं। वहीं दूसरी ओर स्थिति ऐसी हैं कि पूंजीपति, शोषक तथा समाज के जोंक केवल अपनी सनक पर लाखों बर्बाद कर देते हैं। यह भीषण असमानता और जबरदस्ती निर्माण किया गया असंतुलन समाज में अराजकता का कारण होगा, परंतु यह अवस्था अधिक समय तक नहीं रहेगी।
आज का समाज ज्वालामुखी के मुंह पर आनंद कर रहा हैं और शोषकों के मासूम बच्चे लाखों की संख्या में बड़े खतरनाक कगार पर चल रहे हैं। सभ्यता की इस इमारत को यदि समय पर नहीं बचाया गया तो वह नष्ट- भ्रष्ट हो जायेगी, इसलिए क्रांतिकारी परिवर्तन आवश्वक हैं और जो इसकी आवश्यकता समझते हैं, उन्हें चाहिए की वे ज्योतिबा के समाज व्यवस्था और अहिल्या के शासन व्यवस्था  के आधार पर नए  समाज का निर्माण करे।
जब तक यह नहीं होगा, मनुष्य द्वारा मनुष्य का शोषण, राष्ट्र के द्वारा राष्ट्र का शोषण जिसका कि दूसरा नाम पूंजीवाद हैं, समाप्त नहीं किया जाता तब तक मानवता के भीषण कष्ट और विनाशों को रोका नहीं जा सकता और तब तक युद्ध रोकने की लंबी- चौड़ी बातें करना भी बेकार तथा दंभ मात्र हैं। राष्ट्र के समाज से राष्ट्रिय समाज की और चलो ।।। हर हर महादेव ।।

No comments:

Post a Comment