Saturday, November 26, 2016

दीपावली की मीमांसा

🔥दीपावली🔥 मीमांसा

लेखक✍-सुनील

हम बचपन से स्कूली किताबों और अखबारों में पढते आएँ हैं कि दीपावली राम के वन से घर आने की खुशी में मनाई जाती है और विजयादशमी रावण को मारने की खुशी में।
क्या आप भी इसे सच मानते हैं?
यदि हाँ
फिर तो मुझे यह कहते हुए बड़ा दुःख होगा कि आप भेड़ वृति के हैं।
बुरा न माने
अपने ग्रंथों को उठाकर देखें।
पढना बड़ा भारी काम होता है चलो मैं ही बता देता हुँ।
चैत्रः श्रीमानयं मासः पुण्यः पुष्पितः कानन:।
यौवराज्याय रामस्य सर्वमेवोपकल्प्यताम्।।
-वाल्मिकी रामायण अयोध्या काण्ड ३/४
अर्थ-यह चैत्र मास बड़ा सुंदर और पवित्र है इसमें सारे वन उपवन खिल उठे हैं इस समय राम का युवराज पद पर अभिषेक करने के लिए सब सामग्री एकत्र कराईए।

श्व एव पुष्यो भविता श्वोभिषेच्यस्तु मे सुतः।
-अयोध्या कांड ४/२
अर्थ-कल ही पुष्य नक्षत्र होगा अतः मेरे पुत्र का कल ही अभिषेक होगा।

और पाठकों आपको पता है राम अगले दिन १४ वर्ष के वनवास को चले गए थे।
१३ वर्ष तक कुशल रही और १४ वें वर्ष परेशानियाँ आनी शुरू हुई।

सीता हरण के बाद जब हनुमानादि खोज में निकले तब अंगद कहता है-
वयमाश्व युजे मासि काल संख्या व्ययस्थिताः।
प्रस्थिता सोपिचातीतः किमतः कार्यमुत्तरम्।।
-किष्किंधा कांड सर्ग५३/९
अर्थ-सीता की खोज में हम आश्विन मास बीतते बीतते निकले थे किंतु यह तो यहीं निकल गया।अब हमें आगे क्या करना चाहिए।

पाठकों देखिए सीता की खोज में ही आश्विन मास निकल गया और हिंदू आश्विन मास में ही रावण का वध करवा डालते हैं।

सीता सुंदर कांड सर्ग ३७/8 में हनुमान से कहती है-"वानर!यह दसवाँ महीना चल रहा है"
मतलब चौदहवें वर्ष का पौष का महीना।

इसी कांड के ४०/१० में सीता कहती है-"राजकुमार शत्रुसूदन!मैं आपकी प्रतिक्षा में एक मास जीवित न रह सकूँगी।"
अर्थात् अभी फाल्गुन मास चल रहा है।

एक मास निकल जाने के बाद राम रावण युद्ध होता है और युद्ध कांड ९२/६८ में लिखा है-
अभ्युत्थानं त्वमद्यैव कृष्णपक्ष चतुर्दशी।
कृत्वा निर्याह्यमावस्यां विजयाय क्लैर्वृतः।।
अर्थ-आज कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी है आज तैयारी करके कल अमावस्या के दिन युद्ध के लिए प्रस्थान करो।

देखिए मित्रों १४ वाँ वर्ष बीत जाने पर अर्थात् चैत्र मास की अमावस्या को राम रावण युद्ध हुआ फिर हिंदू आश्विन में रावण क्यों जलाते हैं राम का विजया दशमी से क्या संबंध है?

रावण को मारने के बाद नव वर्ष लग गया।
पूर्णे चतुर्दशे वर्षे पंचभ्यां लक्ष्मणाग्रजः।
भरद्वाजाश्रमं प्राप्य ववन्दे नियतो मुनिम्।।
-युद्ध कांड १२४/१
अर्थ-राम ने 14 वर्ष पूर्ण होने पर पंचमी तिथि को भारद्वाज आश्रम में पहुंचकर मन को वश में रखते हुए मुनि को प्रणाम किया।
अर्थात् चैत्र शुक्ल पक्ष पंचमी को।

और इसी कांड के १२५/३ में राम हनुमान को भरत के पास जाकर अगले दिन राम के आने का संदेश देने को कहते हैं।

हनुमान भरत से कहते हैं-"हे भरत!किष्किंधा से गंगा तट पर आकर वे प्रयाग में भारद्वाज मुनि के समीप ठहरे हैं। कल पुष्य नक्षत्र के योग में बिना किसी विघ्न बाधा के आप राम का दर्शन करेंगे।

तो मित्रों इस प्रकार राम अगले दिन यानी चैत्र शुक्ल षष्ठी को अयोध्या लौटते हैं उसी पुष्य नक्षत्र में जिसमें वन को गये थे।
तो फिर हमें क्यों पढाया जाता है कि राम कार्तिक अमावस्या के दिन अयोध्या आये थे जिसकी खुशी में दिपावली मनाई जाती है।

न तो विजयादशमी को रावण मारा गया न कार्तिक अमावस्या को राम घर लौटा।

सच तो यह है विजया दशमी बौद्धों का त्यौहार है और दीपावली बुद्ध काल में भी यक्ष रात्रि के नाम से मनाया जाता था जिसका एक प्रमाण यह है कि इस दिन यक्षराज कुबेर की पूजा होती है।

लक्ष्मी की पूजा करते समय हिंदू यह बात नहीं जानते की लक्ष्मी की मूर्ति का विकास बुद्ध की माता महामाया की मूर्ति से ही हुआ है।

मेरा उद्देश्य तो मात्र हिंदुओं की भूल का प्रतिकार करना है ताकि विजयादशमी और दिपावली जैसे प्राचीन त्यौहारों के मूल का ज्ञान हो और कल्पित रामायण से इनका पीछा छूटे।

लेखक-✍सुनील
📞9166862313

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