Saturday, November 26, 2016

गुनाहों पर पर्दे का औजार है राष्ट्रवाद

गुनाहों पर पर्दे का औजार है राष्ट्रवाद



लीजिए भाई। अब राष्ट्रवाद भी बिकाऊ हो गया है। पहली बोली मुम्बई में लगी है। कीमत लगी है 5 करोड़ रुपये। यह एक फ़िल्म को रिलीज करने देने के एवज में लगी है। यह सौदा मुख्यमन्त्री देवेन्द्र फड़नवीस की मध्यस्थता में उनके घर पर हुआ है। इस बैठक में सूबे की मशीनरी को बंधक बनाने वाले राज ठाकरे भी शामिल थे। साथ ही फ़िल्म के निर्माता निर्देशक के साथ बिरादरी के दूसरे वरिष्ठ लोग मौजूद थे। इसमें तय हुआ कि फ़िल्म के निर्माता सेना के कल्याण कोष में 5 करोड़ रुपये जमा करेंगे। साथ ही ठाकरे ने इसकी भी घोषणा कर दी कि आइन्दा कोई 5 करोड़ रुपये देकर पाक कलाकारों को फ़िल्म में रख सकता है। यानी 5 करोड़ में दुश्मन दोस्त में बदल जाएगा। और राष्ट्रवाद की गरिमा भी अक्षुण हो जायेगी। पहली बात तो हमारी सेना और उसका कल्याण इस तरह के किसी सौदे और फिरौती के पैसे के मोहताज नहीं है। और यह खुद उसके सम्मान के साथ खिलवाड़ है । साथ ही एक ऐसे अंदरूनी राजनीतिक मामले में उसको ले आना देश के भविष्य और उसकी राजनीति के लिए बहुत घातक है।

इस मामले में केंद्र सरकार और खासकर गृहमंत्री राजनाथ सिंह की भूमिका भी संदिग्ध रही। फ़िल्म के निर्माता और निर्देशक ने राजनाथ से मुलाकात की थी। उसके बाद देवेन्द्र फडनवीश भी उनसे मिले थे। यानी सब कुछ उनके संज्ञान में हुआ। ऐसे में अगर केंद्र ने इस समस्या का यही समाधान निकाला तो यह बहुत अफसोसनाक है। यह बिल्कुल कानून और व्यवस्था का मामला था। और फ़िल्म को शांतिपूर्ण तरीके से पर्दे पर दिखाये जाने की जिम्मेदारी सरकार की थी। लेकिन अपना यह कर्तव्य निभाने में वह पूरी तरह से नाकाम रही है। उसने एमएनएस के गुंडों के सामने समर्पण किया है। कल एक दूसरा गुंडा अपराधी इसी तरह से किसी मामले में सामने आए तो उसके लिए यह एक नजीर होगा। और हालात जिस तरफ जा रहे हैं कल को यह राष्ट्रवाद अगर चुरमुरे के भाव बिके तो किसी को अचरज नहीं होना चाहिए।

बहरहाल कांधार कांड में आतंकियों के सामने घुटने टेकने वालों से इससे ज्यादा उम्मीद भी नहीं की जा सकती है। बस अंतर यही है कि तब इन लोगों ने समर्पण बाहरी अपराधियों और गुंडों के सामने किया था। इस बार देश के भीतर के गुंडों के सामने किया है।

राष्ट्रवाद भेड़ियों का नया खोल है। यह एक ऐसी गंगा हो गया है। जिसमें चोर, लुटेरे, गिरहकट्ट, भ्रष्ट, दलाल, अपराधी सब डुबकी लगाने के लिए बेताब हैं। यही वजह है कि राष्ट्रवाद का झंडा बुलंद करने में यह तबका सबसे आगे है। आमतौर पर देखा गया है। ज्यादातर लोग गंगा में डुबकी पाप से छुटकारा पाने के लिए लगाते हैं। और इस क्रिया में फल कहिए या फिर नफा नुकसान। उसका हिसाब मौत के बाद होता है। लेकिन राष्ट्रवाद इस मामले में बहुत आगे खड़ा है। इसका लाभ नगद है। कर्म कीजिए और तुरंत फल लीजिए। यह सब कुछ इंसान अपने सामने होते देखता है। यानी जिंदा रहते फायदे का भोग। अनायास नहीं इसमें डुबकी के लिए एक लंबी और न खत्म होने वाली कतार है। कोई दंगाई है। भारत माता की जय बोल दे। उसके सारे खून माफ। उससे बड़ा राष्ट्रवादी कोई नहीं। आप धनपति हों, भ्रष्टाचार में डूबे हों। तिरंगा लेकर कंधे पर दौड़ जाइये। मजाल क्या कि कोई अंगुली उठा दे।

माफिया और डान भी इसका फायदा लेने से नहीं चूके। छोटा राजन का नाम कोई भूला नहीं होगा। एक दूसरा उदाहरण भी है। पूर्वांचल का माफिया मुख्तार अंसारी माफिया है। और उसी इलाके का दूसरा माफिया ब्रिजेश सिंह राष्ट्रवादी। क्योंकि उसने भगवा चोला पहन लिया है। देश में राष्ट्रवाद की गंगा बहाने से पहले ही बीजेपी ने उसके फायदे बता दिए थे। जब उसने राष्ट्रवाद की गंगोत्री में एक तड़ीपार को बैठाया। यह राष्ट्रवाद का सबसे बड़ा और सफल मॉडल था। उसके बाद तो एक-एक कर कतार लग गयी। इनके दौर में भारतीय राजनीति पाताल के किस लोक में जाएगी अंदाजा लगाना मुश्किल है। स्नूपिंग से लेकर एनकाउंटर और सेक्स स्कैंडल से लेकर ब्लैकमेलिंग हर तरह का हुनर इनके पास है। हर प्रयोग के ये महारथी हैं। गुजरात में यह सफल रहा है। अब केंद्र में इसको दोहराया जा रहा है। और इन सबके स्रोत चोटी पर बैठे शीर्ष पुरुष के बारे में क्या बताना। वो तो अब माया का रूप लेते जा रहे हैं। लेकिन सच यही है कि सब कुछ उन्हीं के संरक्षण और निर्देशन में हो रहा है। राष्ट्रवाद की गंगा में डुबकी से सिर्फ पाप नहीं धुलते बल्कि आप बिल्कुल पवित्र होकर निकलते हैं। यह उन्हीं ने सिखाया है। सैमुअल जानसन का यह कथन एक बार फिर जिंदा होता दिख रहा है कि राष्ट्रवाद अपराधियों की आखिरी शरणस्थली होता है।

No comments:

Post a Comment