Sunday, January 24, 2016

भारत में दलितों को कभी भी न्याय नहीं मिला

इतिहास गवाह है कि भारत में दलितों को कभी भी न्याय नहीं मिला है और नजदीक भविष्य में मिलने की संभावना भी नहीं है।
उदाहरण के लिए बिहार मे हुए जातिये नरसंहार को समझने का प्रयास करें।
बिहार में जातीय हिंसा का इतिहास काफी पुराना है. उच्च न्यायलय के ताज़ा फ़ैसले के बाद चर्चा में आए लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार से पहले और बाद में भी राज्य में जातीय हिंसा का एक लंबा इतिहास रहा है.
साल 1976 में भोजपुर ज़िले के अकोड़ी गांव से शुरू हुई हिंसा करीब 25 सालों तक चलती रही. इस हिंसा में सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं. पढ़िए ऐसी ही प्रमुख घटनाओं के बारे में...
मियांपुर जनसंहार
औरंगाबाद ज़िले के मियांपुर में 16 जून 2000 को 35 दलित लोगों की हत्या कर दी गई थी. इस मामले में जुलाई 2013 में उच्च न्यायलय ने साक्ष्य के अभाव में 10 अभियुक्तों में से नौ को बरी कर दिया। 
 इसी साल इसी ज़िले के शंकरबिघा गांव में 23 और नारायणपुर में 11 दलितों की हत्या की गई.
लक्ष्मणपुर बाथे नरसंहार
बथानी टोला गांव में 22 दलित लोगों की हत्या की गई थी.
एक दिसम्बर 1997 को बिहार के जहानाबाद ज़िले के लक्ष्मणपुर बाथे गांव में कुख्यात रणवीर सेना ने 61 लोगों की हत्या कर दी. मारे गए लोगों में कई बच्चे और गर्भवती महिलाएं भी शामिल थीं. इस मामले के सभी 26 अभियुक्तों को बुधवार को उच्च न्यायलय ने साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया.
बथानी टोला
साल 1996 में भोजपुर ज़िले के बथानी टोला गांव में दलित, मुस्लिम और पिछड़ी जाति के 22 लोगों की हत्या कर दी।. साल 2012 में उच्च न्यायलय ने इस मामले के 23 अभियुक्तों को भी बरी कर दिया था।
तिस्खोरा
साल 1991 में बिहार में दो बड़े नरसंहार हुए. पटना ज़िले के तिस्खोरा में 15 और भोजपुर ज़िले के देव-सहियारा में 15 दलितों की हत्या कर दी गई.
नोंही-नागवान
साल 1989 में ज़हनाबाद ज़िले के नोंही-नागवान ज़िले में 18 पिछड़ी जाति के लोगों और दलितों की हत्या कर दी गई.
देलेलचक-भगौरा
बिहार में उस वक्त तक के सबसे बड़े जातीय नरसंहार में 52 दलित लोगों की मौत हुई थी. औरंगाबाद ज़िले के देलेलचक-भगौरा गांव में 1987 में पिछड़ी जाति के दबंगों ने कमज़ोर तबके के 52 लोगों की हत्या कर दी थी।
भोजपुर ज़िले के दंवार बिहटा गांव में अगड़ी जाति के लोगों ने 22 दलितों की हत्या कर दी थी.
पीपरा
पटना ज़िले के इस गांव में 1980 में पिछड़ी जाति के दबंगों ने 14 दलितों की हत्या कर दी थी.
बेल्ची
साल 1977 देश की राजनीति के लिए एक अहम वर्ष था. इसी साल आपातकाल खत्म होने के बाद केंद्र में पहली बार गैर कांग्रेसी जनता पार्टी की सरकार बनी थी. इसी साल राज़धानी पटना के पास बेल्ची गाँव में कुर्मी समुदाय के लोगों ने 14 दलितों की हत्या कर दी थी.
बिहार के अलावा भी उत्तर प्रदेश, हरियाणा,  मध्य प्रदेश,एवं राजस्थान के कुम्हेर व डांगावास हत्या काण्ड सबके सामने  हैं।
इन सभी दलित हत्या कांड में बिहार के जहांनाबाद के लक्षमणपुर अन्तर्गत बाथे गांव का हत्या कांड सबसे अधिक दुखी करने वाला है कि इसमें 61 दलितों की हत्या हुई जिसमें एक भी हत्यारे को सजा नहीं हुई बल्कि कोर्ट ने सभी गुनहगारों को साक्ष्यों के अभाव में बाइज्ज्त बरी कर दिया।
हमारे समाज  में जब भी कोई हत्या कांड कर दिया जाता है तो हमारे लोग या तो उसका  विरोध ही नहीं करते हैं और करते भी हैं तो वह केवल हत्यारों को गिरफ्तार करवाने का करते हैं या फिर सी बी आई  जांच   कराने तक ही सीमित रहते हैं एवं उसके उसके बारे में शांत हो कर बैठ जाते हैं और उस हत्या कांड को ही भुला दिया जाता है। उसके बाद  गुनहगारों को पूरा पूरा मोका मिल जाता है और वे पुलिस,प्रशासन,राजनीतिक शक्ति का लाभ उठा कर न्यायधीशों तक को अपने पक्ष में करके बाइज्जत बरी हो जाते हैं और हम लोग अफसोस करने एवं दुखी होने के अलावा कुछ भी नहीं कर पाते हैं।
ताजा घटना हैदराबाद सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी के शोधार्थी रोहित वेमुला की मौत की सबके सामने है,पूरे देश में हाहाकार मचा हुआ है एवं सबके सामने सच्चाई आ चुकी है कि उस छात्र को मरवाने में वाईस चांसलर से लेकर सांसद एवं मंत्री इस्मृति ईरानी तक सब मिले हुए थे,लेकिन किसी को कुछ भी विरोध प्रदर्शनों का असर नहीं हो रहा है एक वाईस चांसलर तक को हटाने के लिए वे तैयार नहीं हैं तो इसमें न्याय मिलने की उम्मीद करना एक प्रकार से मुंगेरीलाल के सपने देखने के समान है।
इसलिए हमारे समाज को बहुत बड़ी क्रांति की शुरुआत करने की आवश्यकता है जो एक प्रकार से हमारे लिए आजादी की जंग लड़ने के समान है।
राोहित वेमुला मामले में जितना अधिक विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है उतना आज तक के इतिहास में कभी देखने को नहीं मिला है इसलिए भारत सरकार इससे बचने के नये नये तरीके खोज ररही है,उसी के तहत अब एक अफवाह फैलाने का काम किया जा रहा है कि वह तो दलित था ही नहीं,जबकि सबको मालूम है कि रोहित वेमुला एक सच्चा अम्बेडकरवादी था,हम एक अम्बेडकरवादी के लिए लड़ रहे हैं वह अम्बेडकरवादी चाहे दलित हो या पीछड़ा उससे क्या फर्क पड़ता है आखिर पीछड़े और दलित दोनों ही भारत के मूल निवासी भाई भाई हैं अब हम मिलकर हर लड़ाई लड़ेंगे।
एक ब्राह्मण की बेटी निर्भया के साथ बबलात्कार हो जाता है तो यह मनुवादी लोग पूरे देश को विरोध प्रदर्शन में शामिल कर लेते हैं लेकिन आज एक सच्चे अम्बेडकरवादी की मौत पर इन लोगों ने जाति प्रमाण पत्र देखना शुरू कर दिया,लेकिन हम खूली चेतावनी देते है कि हमें बरगलाने की कोशिश बिलकुल नही करें, हम  लोगों ने रोहित वेमुला के हाथ में बाबा साहब अम्बेडकर की तस्वीर और उसके मुंह से जय भीम सुना है,, हमारे लिए इससे  ज्यादा बढकर किसी सबूत की जरूरत नहीं है चाहे उसे आप किसी भी जाति का बताओ,हमें उसे कोई लेना देना नहीं है।
अब तो हम रोहित वेमुला के गुनहगारों को सजा दिलाकर ही दम लेंगे। 
जय भीम।  जय भारत। नमो बुद्धाय।
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बी एल बौद्ध

समता सैनिक दल
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