Thursday, February 4, 2016

द्रोणचार्यों से बच्चों को बचाओ

अब तक साइंस यानी केमिस्ट्री, फिजिक्स और मेडिसिन के लिए 583 नोबेल पुरस्कार दिए गए हैं. भारत को सिर्फ चार यानी 04 मिले हैं. क्या इसका कोई दायित्व उन सवर्ण पुरुष प्रोफेसरों पर नहीं है, जो भारत के उच्च शिक्षा केंद्रों पर 90 से 95% तक कब्जा जमाए बैठे हैं?
भारत में दुनिया की 17%आबादी रहती है. लेकिन उसके विशाल हिस्से को ज्ञान, विज्ञान के केंद्रों से दूर रखा गया है. ऐसा करने वाले लोग देशद्रोही हैं. ज्ञान, विज्ञान के क्षेत्र में विविधता का विरोध करने वाले द्रोणचार्यों से बच्चों को बचाओ!
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विचारार्थ :
ब्राह्मणवादी मीडिया ने दिल्ली पुलिस के लाठी चार्ज के वीडियो को इतने धुआंधार तरीके से क्यों दिखाया?
क्योंकि...
1. रोहित वेमुला मामले में शुरुआती और जानबूझकर की गई अनदेखी की वजह से ब्राह्मणवादी मीडिया की साख शून्य पर पहुंच चुकी थी. दिल्ली और देश के ज्यादातर शहरों में आंदोलनकारियों ने अपने कार्यक्रमों के मीडिया इनविटेशन तक नहीं दिए. प्रेस रिलीज नहीं दी. खोई साख को फिर से हासिल करने के लिए मीडिया को कुछ तो करना था.
2. पुलिस पिटाई का प्रश्न अगर ज्यादा उभरता है, तो यूनिवर्सिटीज में जाति उत्पीड़न का सवाल पीछे जा सकता है. ऐसा हुआ तो मीडिया को बुरा नहीं लगेगा.
3. मनुस्मृति ईरानी के इस्तीफे की मांग तकलीफ देती है. पुलिस कमिश्नर के इस्तीफे की मांग से किसे दिक्कत है? आखिर में चार कॉन्स्टेबल को लाइन हाजिर ही तो करना पड़ेगा. साथ में थानेदार का निलंबन... हो जाएगा.
4. लेकिन द्रोणाचार्य का क्या होगा? वह तो किसी और रोहित वेमुला का शिकार कर रहा होगा. मूल प्रश्न तो द्रोणाचार्यों से मुक्ति पाने का है. यह आंदोलन तो रोहित वेमुलाओं की जान बचाने का है. यूनिवर्सिटीज में जातिगत भेदभाव खत्म करने का है.
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आज से 30 दिन पहले रोहित वेमुला क्या सोच रहा था?
उस समय जबकि मनुस्मृति ईरानी और बंदारू दत्तात्रेय तथा आलोक पांडे और अप्पा राव के षड्यंत्रों की वजह से उसके यूनिवर्सिटी में सामाजिक बहिष्कार का आदेश हो चुका था, तो उसके मानस में क्या चल रहा था?
3 जनवरी, 2016 को रोहित वेमुला ने अपने फेसबुक प्रोफाइल पर माता सावित्रीबाई फुले की कविता लगाई, जो उसे उसके मित्र मुंसिफ भाई ने दी थी. इसमें लोगों से आह्वान है कि पेशवाई के खात्मे के बाद उनके लिए पढ़ने लिखने के मौके खुल गए हैं, उनका लाभ उठाएं.
रोहित ने सावित्रीबाई फुले की 185 वीं जयंती पर आदिवासी, दलित, ओबीसी, सिख, ईसाई, मुसलमानों के हाशिए पर होने और उनके संघर्षों की बात लिखी. उसने खास तौर पर महिला अधिकारों की बात की.
रोहित वेमुला के न रहने पर जो चौतरफा शोक है, उसे आप इस तरह से समझ सकते हैं. वह मुकम्मल इंसान और सच्चा नागरिक था.
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रोहित वेमुला मुद्दे पर चल रहे आंदोलन को लगातार 16 दिनों तक टिकाए रखने और शिक्षा केंद्रों के ब्राह्मणीकरण को केंद्रीय सवाल के तौर पर बनाए रखने में बामसेफ, मूलनिवासी संघ और भारतीय विद्यार्थी मोर्चा की बेहतरीन भूमिका रही है.
कस्बों और तहसील तक फैले देशव्यापी संगठन के बूते ये लोग जमीनी स्तर पर RSS जैसे संगठनों को चुनौती पेश कर रहे हैं. ये संगठन हजारों की संख्या में प्रदर्शन कर चुके हैं. इनके बगैर यह मुद्दा राष्ट्रीय न बन पाता.

रोहित वेमुला के फेसबुक प्रोफाइल पर आप पायेंगे कि वह बामसेफ से प्रभावित था और अक्सर उससे संबंधित स्टेटस शेयर करता था.
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एक जाति के पुरुषों के असंतुलित वर्चस्व यानी दबदबे से भारत की उच्च शिक्षा को जहां तक पहुंचना था, वहां तक वह पहुंच चुकी.
जितने कम नोबेल पुरस्कार आप ला पाए, वह हम देख चुके हैं. वर्ल्ड रैंकिंग में हमारी यूनिवर्सिटीज को जितना नीचे जाना था, वे जा चुकी हैं, पेटेंट का जितना अकाल पड़ना था, पड़ चुका....इसलिए अब हटिए.
बाकियों को स्पेस दीजिए. कंपिटीशन का दायरा बढ़ने दीजिए. हर जाति, बिरादरी से टैलेंट को आने दीजिए. एडजस्ट करना सीखिए.
कब तक रोहित वेमुलाओं को मारते रहेंगे. अब चलिए भी. बहुत देख लिया आप लोगाें का टैलेंट.
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IIT के डायरेक्टर्स की कमेटी ने ट्यूशन फीस में 200% बढ़ोतरी की सिफारिश की है. आज के इकोनॉमिक टाइम्स में पहले पन्ने की खबर है... ये सरकार है या जल्लादों का गिरोह? और ये डायरेक्टर हैं या छात्रों के दुश्मन? फेलोशिप देंगे नही, फीस तीन गुना कर देंगे. टॉपर बच्चे का सामाजिक बहिष्कार कर देंगे. लाइब्रेरी नहीं जाने देंगे. ये किस तरह के लोग हैं?

अब जबकि सरकार जबर्दस्ती जाति बता रही है, तो पूछ ही लिया जाए कि ये सारे IIT डायरेक्टर लोग कौन जात हैं? आखिर किस जाति के लोग इस कदर शिक्षा और स्टूडेंट विरोधी होते हैं?
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ध्यान रहे कि मनुस्मृति ईरानी और बंदारू दत्तात्रेय के इस्तीफे और तमाम विश्वविद्यालयों में SC, ST, OBC कोटे के खाली पड़े शिक्षक पदों को भरने तथा कैंपस में जातिवाद खत्म करने का आंदोलन, दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल और थानेदार की बर्खास्तगी का आंदोलन न बन जाए...
ब्राह्मणवादी मीडिया ठीक यही चाहेगा.

यह शिक्षा क्षेत्र के लोकतांत्रिकरण का आंदोलन है. यह यूनिवर्सिटीज में सवर्ण पुरुष वर्चस्व और ब्राह्मणवाद से मुक्ति का आंदोलन है. यह रोहित वेमुलाओं की जान बचाने का आंदोलन है.
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दक्षिण भारत में बहुजन समाज पार्टी, BSP की चल रही न्याय यात्रा के वैन पर आ गया है रोहित वेमुला...और आपको लग रहा था कि बच्चे हैं, मसलकर खत्म कर दोगे... द्रोणाचार्यों को महंगा पड़ेगा.

धरती पर गिरा यह खून बहने की जगह जम गया है. पता नहीं कि यह कितने रूप में कहां कहां नजर आएगा.
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नरेंद्र मोदी के रोहित वेमुला के लिए बहाए आंसुओं पर जब संघी भक्तों ने भरोसा नहीं किया और मां भारती के लाल को लेकर तमाम तरह के अपशब्द, गाली गलौज करते रहे, तो हम कैसे मान लें कि मोदी के आंसू असली थे.
मोदी के आंसू पर न तो सुषमा स्वराज ने भरोसा किया और न ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल ने. ये सब मां भारती के लाल की जाति खोज रहे हैं.

मोदी के आंसू नकली हैं! यकीन न हो तो जाकर किसी भी संघी से पूछ लीजिए.
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नागपुर में "रोहित वेमुला फाइट्स बैक" रैली करने वालों ने तय किया कि मीडिया को कोई प्रेस रिलीज नहीं दी जायेगी. अगले दिन अखबारों ने लिखा - साढ़े तीन किलोमीटर लंबी रैली... मीडिया ने मजबूर होकर कवरेज दिया. शहर के सारे अखबारों को बड़ी खबर छापनी पड़ी.
इस आंदोलन को न तो मीडिया ने शुरू किया है और न ही चैनलों और अखबारों की अनदेखी या साजिशों से यह थमेगा. भारत में सोशल मीडिया युग का यह पहला राष्ट्रीय आंदोलन है. ब्राह्मणवादी मीडिया अब अपनी साख की चिंता करे.

आप सभी हैं पत्रकार!
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रोहित वेमुला को लेकर इतने दिनों से इतना बड़ा देशव्यापी आंदोलन चला कौन रहा है? इसके पीछे कौन है?
इस सवाल का पूरा नहीं, लेकिन थोड़ा सा जवाब मेरे पास है. आज रात आपमें से ज्यादातर लोग जब अपनी डायनिंग टेबल पर डिनर कर रहे होंगे, तो लगभग 30 भीमसैनिक दिल्ली की ठंड में एक बस्ती में जुलूस निकालकर लोगों को रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के बारे में बता रहे थे. इनमें सभी PhD और MPhil स्टूडेंट्स हैं. इनमें कई आगे चलकर प्रोफेसर और ब्यूरोक्रेट बनेंगे. लेकिन आज वे पढ़ाई के साथ अपनी सामाजिक जिम्मेदारी निभा रहे हैं. आंदोलन में इनका भी दम लगा है. हजारों लोग, जो तमाम विचारधारा के हैं, उनके दम से चल रहा है आंदोलन.
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श्री अजित डोवाल,
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, 
भारत सरकार.
प्रिय मिस्टर डोवाल,
मुझे मालूम है कि आप इन दिनों काफी व्यस्त हैं. आपके कार्यालय में कास्ट सर्टिफिकेट जांचने का जो स्पेशल सेल खुला है, वह काफी तत्परता से काम कर रहा है. बधाई.
लेकिन आप शायद भूले नहीं होंगे कि आपका मुख्य काम देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा सुनिश्चित करना है. मैं आशा करता हूं कि आप सांप्रदायिक शक्तियों पर खास नजर रख रहे होंगे, जिनसे राष्ट्रीय एकता को सबसे बड़ा खतरा है. पश्चिम उत्तर प्रदेश, मालदा और मध्य प्रदेश के धार पर स्वाभाविक रूप से आपकी पैनी नजर होगी क्योंकि ये इलाके लगातार गलत कारणों से चर्चा में हैं. उम्मीद है कि आप राष्ट्र की उम्मीदों पर खरे उतरेंगे ताकि देश में अमन चैन बना रहे.
वैसे, आपके दफ्तर से जिस तरह रोहित वेमुला की जाति की खबर लीक होकर मीडिया में आई, उससे मैं चिंतित हूं. देश की सुरक्षा जिस दफ्तर के जिम्मे हो, वहां से सूचनाओं का लीक होना अच्छी बात नहीं है.
आपका,
एक आम भारतीय नागरिक
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क्यों सुषमा जी,
कोई आदमी प्रधानमंत्री की जाति का हुआ तो सरकार मार डालेगी?

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के दफ्तर में कास्ट सर्टिफिकेट जांचने का स्पेशल सेल बना है. उनसे कहकर नरेंद्र मोदी जी के कास्ट सर्टिफिकेट की भी जांच करवा दीजिए. 2002 में ओबीसी लिस्ट में जो बदलाव हुए थे, उसकी भी जांच हो जाए?
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 बुद्ध और अशोक शाक्यवंशीय, कबीर जुलाहा, फुले माली, शाहूजी महाराज कुनबी मराठा, पेरियार ओबीसी, संतराम कुम्हार, नारायणा गुरु इझावा, कयूम अंसारी पसमांदा, ललई सिह यादव, कर्पूरी ठाकुर अति पिछड़े, रामस्वरूप वर्मा कुर्मी, जगदेव प्रसाद कुशवाहा, सोनेलाल पटेल कुर्मी... ये सब और ऐसे सैकड़ों लोग बहुजन नायक हैं. बाबा साहेब की परंपरा इन सबसे जुड़ती है, इसलिए उनका नाम मैं सबसे पहले लेता हूं.
संघी लोग हिसाब लगाते रहें कि कौन दलित है और कौन ओबीसी. बहुजन तो सवर्ण वीपी सिंह को भी आदर से याद करता है. ये झगड़ा इस बार लग नहीं पा रहा है. क्यों संघियों, दिक्कत हो रही है?
ब्राह्मणवादियों ने जाति न बनाई होती, तो ये सारे महापुरुष इंसान पैदा हुए थे. ये महापुरुष इसलिए हैं क्योंकि इन्होंने तुम्हारी बनाई जाति व्यवस्था को चुनौती दी. रोहित वेमुला इसी परंपरा का इंसान था.
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मुस्लिम औरतें हाजी अली दरगाह में प्रवेश के अधिकार के लिए सड़कों पर उतरीं। भक्तों को हार्ट अटैक वाच पर रख देना चाहिए। 
Muslim women protests against Haji Ali Dargah ban on women devotees. Bhakts must be put on Heart Attack Watch.
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शनि शिंगणापुर मंदिर में प्रवेश पर अड़ी महिला साथियों को पुलिस ने रोका। आइये, इस्लाम में स्त्रियों पर होने वाले अत्याचारों की कड़ी निंदा करते हैं। :)
Women attempting to enter ShaniShingnapur temple stopped by the Police. Time to condemn the way women are treated in Islam.
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पद्मविभूषण 10 को , जिसमें सवर्ण 10, पिछड़ा 0, दलित 0, अल्पसंख्यक 0
पद्मभूषण 19 को जिसमें सवर्ण 17, पिछड़ा 0, दलित 0, अल्पसंख्यक 2
पद्मश्री 83 को जिसमें सवर्ण 79, पिछड़ा 1, दलित 0, अल्पसंख्यक 3
क्या यही है, सबका साथ- सबका विकास?
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बंदारू दत्तात्रेय की जाति के बारे में सरकार राष्ट्र को बता चुकी है. इसलिए, रहा सहा पर्दा भी अब सरकार को उठा ही देना चाहिए.
इन दिनों कास्ट सर्टिफिकेट जांचने की जिम्मेदारी संभाल रहे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल की भी एक जाति होगी. किस जाति के हैं वे? चीफ प्रॉक्टर प्रोफेसर आलोक पांडे की भी तो कोई जाति है. वह क्या है? कुलपति अप्पा राव की भी तो कोई जाति होगी? सामाजिक बहिष्कार का आदेश लिखने वाले विपिन श्रीवास्तव? मनुस्मृति ईरानी? यूजीसी के चेयरमैन वेदप्रकाश? केंद्रीय शिक्षा सचिव? इन सबकी भी तो कोई जाति है..... रोहित की जाति है, तो ये सब कौन जात हैं?
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दिल्ली मैट्रो की सच्ची घटना
जय यौद्धेय . मेरे एक दोस्त राकेश नाहर , जाति जाटव(चमार) ने मुझे दिनांक 27 जनवरी की अपनी आपबीती सुनाई , जब वह दिल्ली मेट्रो में इंदरलोक से पीरागढ़ी जाने के लिए मेट्रो में घुसा ही था तो उसे कुछ अरोड़ा / खत्रिओं (लाहौरी हिंदू ) के लड़के एक 80 वर्षिये बजुर्ग जाट के साथ बदतमीजी करते और उसे जोर जोर से धमकाते नजर आये तो मेरे इस दोस्त से नहीं रहा गया , इसने इन लाहौरी हिंदुओं से पूछा कि ये इस बज़ुर्ग को क्यूँ परेशान कर रहे हैँ तो इन्होंने कहा कि यह बुड्ढा लाइन में खड़ा ना होकर सबसे आगे खड़ा हो गया था तो इस पर मेरे इस दोस्त ने कहा कि तो इसमें इस बज़ुर्ग ने क्या गुनाह कर दिया ,उल्टा तुमको ही इस बज़ुर्ग की उमर का लिहाज करके इसको जगह देनी चाहिये थी .
इस बात पर ये लाहौरी हिंदू मेरे दोस्त से उलझने लगे ,जिस पर मैट्रो में खड़े कुछ और हरयाणा के जाटोँ ने मेरे इस दोस्त का पक्ष लेते हुए इन लाहौरी रिफ्यूजी हिंदूज को धमका कर शांत करवाया .
कुछ देर के बाद शांति होने पर ये रिफ्यूजी आपस में बात करने लगे और कहने लगे कि हरयाणा का आदमी बदमाश होता है ,जिस पर नजदीक खड़े एक उड़ीसा के व्यक्ति ने कहा कि ऎसा नहि है क्योँकि हमने उड़ीसा में हरयाणा के आर्मी के जवानों के साथ काम किया है ,उलटा हरयाणा का आदमी तो बदमाशों की बदमाशी खतम करने वाला होता है . इस दौरान मेरे इस दोस्त ने इन रिफ्यूजी अरोरा /खात्रीओं से पुछा की ये कहाँ उतरेंगे और ये कहाँ से हैँ , तो इन लाहौरी हिंदूज़ ने बताया कि ये पीरागढ़ी में उतरेंगे और वहां से हरयाणा जायेंगे और ये हरयाणा से ही हैँ. इस पर वहाँ मैट्रो में खड़े सभी लोग हंसने लगे .
इसके बाद यह जाट बज़ुर्ग जिसको मुंडका उतरना था मेरे दोस्त को धन्यवाद देने लगा जिस पर मेरे इस चमार मित्तर ने कहा कि यह तो हमारा फ़र्ज़ है .
इस पर इस बुजुर्ग ने बहुत काम की बात कही कि बेटा हमारे जवान तो बस में , मैट्रो में किसी भी अरोड़ा /खत्री बज़ुर्ग को अपनी सीट दे देते हैँ , जबकि मैंने आज तक किसी भी अरोड़ा / खत्री के लड़के को किसी गाँव के बज़ुर्ग आदमी को अपनी सीट देते नहीं देखा और ये लोग जिस हरयाणा का खा रहे हैँ ,उसी को गालियां देते हैँ. यह नमकहरामी की हद्द है .
मेरे दोस्त को पीरागढ़ी उतरना था ,वह उतर गया . साथिओं जिस दिन जाट और चमार में एक दुसरे के लिए यह आपसदारी की भावना पैदा हो
यूनियनिस्ट मिशन इसी हमारे पुराने भाईचारे को फिर से एक करने में लगा हुआ है .
आपसे निवेदन है की इस मैसेज को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें .
_मनोज दूहन , व्हाट्सएप्प @ 9728888931
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हालात ऐसे हैं कि नाम में मिश्रा, तिवारी,पांडे,द्विवेदी,त्रिवेदी, चतुर्वेदी, वाजपेई,शुक्ला, दीक्षित, ओझा,पाठक,
लगा हो तो आप यूपी में लोकायुक्त बन सकते है
और अगर आप अहीर , कुर्मी,काछी,लोधी,नाई,बढ़ई,लोहार,कुम्हार ,सुनार,कलार,कलवार,चमार,पासी,तेली,भंगी हैं तो आप कभी भी यूपी का लोकायुक्त नहीं बन सकते।।
जनेऊधारी यूपी में मनुस्मृति का शासन लाने की योजना पर काम कर रहे हैं।।लोकायुक्त की नियुक्त इसकी शुरूआत है।।
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डर तो लग रहा है सरकार को भी और सरकार के बाप आरएसएस को भी। तभी तो ढेर सारे मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तक रोहित वेमुला की जाति बताने में लगे हैं। पुलिस के साथ घुसकर आरएसएस के गुंडे प्रदर्शन कर रहे निहत्थे एससी एसटी ओबीसी बच्चे-बच्चियों को पीट रहे हैं। कुछ बड़ी उथल पुथल होने की आशंका इनको हो रही है तो बेवजह नहीं। जाति से काम नहीं चला तो मामला पुलिस ज्यादती का बनाने की कोशिश एक और पैंतरा है। पर, कुछ भी कर लो, कुछ बड़ा तो होने वाला है।
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मोदी सरकार का क्रांतिकारी फ़ैसला।
डीज़ल चार पैसे और पेट्रोल पाँच पैसे सस्ता।
इस तरह से हर महीने अपनी कार में डीज़ल डलवाने के बाद मुझे पूरे पचास रूपए सोलह पैसे की बचत हो जाएगी। 
इन पैसों को मैं जनधन योजना वाले बैंक अकाउंट में डाल कर उसका ब्याज खाऊँगा। पार्टी करूँगा। मूवी देखूँगा। जो बच जाएगा उससे भाजपाईयों के लिए पटरी वाली निक्कर ख़रीदूँगा।
फिर भी कुछ पैसे बचते हैं तो स्टार्टअप इंडिया के तहत मुर्ग़ी पालन करूँगा। गाय भैंस तो पाल नहीं सकता।
फिर कुछ पैसा बचेगा तो गैस सब्सिडी छोड़ने का विचार करूँगा। इसके बाद भी कुछ बच जाता है तो अच्छे दिनों का वादा करने वालों की *#%# में डाल दूँगा।
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हैदराबाद से दिल्ली। दिल्ली से बंबई, नागपुर, बनारस, इलाहाबाद, पटना, जयपुर...यह आग नहीं थमने वाली साहेब। चलाओ लाठी। मारो गोली। लगाओ आग। फैलाओ अफवाह। अंबेडकरवादी, मानवतावादी, संविधान वादी, मार्क्सवादी, उदारवादी, नारीवादी....और सबसे अधिक देश से प्यार करने वाला आम नागरिक अब विपक्ष है। इसे मैनेज करना संभव नहीं आपके लिए।
कैंपसों को नहीं छेड़ा है तुमने संघियों अपनी क़ब्र खोदी है। विद्रोही छात्रों पर पड़ी एक एक लाठी तुम्हारी ताबूत का आख़िरी कील साबित होगी। ये डरने वाले बंदे/बंदियाँ नहीं हैं।
जय भीम 
इंकलाब ज़िंदाबाद 
हमारी जान - भारतीय संविधान

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