Monday, February 1, 2016

भीमराव का बहुजन नहीं यह गांधी का हरिजन है।

😳 हरिजन 😳

रोज़ सवेरे मंदिर जाता 
रखता है मंगल उपवास 
शनिदेव की करे अर्चना 
बेटा इसका रामनिवास
जय जगदीश हरे आँगन में
घर में इसके कीर्तन है
     भीमराव का बहुजन नहीं यह।
      गांधी का हरिजन है।।
धर्म दूसरों का ढोता है
नंगें पाँव भगा -फिरता
चुल्लू भर पानी की खातिर 
यहाँ वहां गिरता -पड़ता 
कावंडिया बन कर करे गुलामी
अकल से भी यह निर्धन है
    भीमराव का बहुजन नहीं यह।
     गांधी का हरिजन है ।।
मीटर लंबा तिलक भाल पर
सुतली डोर गले डाले
हाथ कलावा बांधे फिरता
मटरू का पोता काले
इसके आगे शर्माता अब
पंडित रामचरण है
   भीमराव का बहुजन नहीं यह।
    गांधी का हरिजन है ।।
इसको तो कुछ पता नहीं है
स्कूल,कॉलेज  क्या होता
देसी-थैली डाल हलक में
दिन भर गफलत में रहता
बालक इसके अनपढ़ रह गए 
ज्ञान का खाली बर्तन है
    भीमराव का बहुजन नहीं यह
      गांधी का हरिजन है।।
अम्मा इसकी अमरनाथ में
मर गयी पत्थर के नीचे
बर्फ में दबकर बाप मरा है
मानसरोवर के बीचे
वैष्णो देवी भइया खोया
आया इस पर दुर्दिन है
     भीमराव का बहुजन नहीं यह
      गांधी का हरिजन है।।
पढ़ -लिखकर धोखा देता है
धूर्त बना मक्कार है
आरक्षण लेता बढ़ -बढ़कर
कोठी,बंगला,कार है
अपनी जाति छिपाकर रहता
बेटा इसका सर्जन है
      भीमराव का बहुजन नहीं यह।
       गांधी का हरिजन है।।
सच्ची बात बताता इसको
उसी को आँख दिखाता है
भगवा-रंग में सराबोर यह
गीत राम के गाता है
हिन्दू-मुस्लिम के झगडे में
सबसे आगे यही जन है
    भीमराव का बहुजन नहीं यह।
     गांधी का हरिजन है।।
दलित-साहित्य तनिक न भाता
मौलिक चिंतन से ना प्यार
वर्ण-व्यवस्था ये ना जाने
लिख-लिख करके गया मैं हार
पोंगा-पंडित को पढता है
जिसका झूठा दर्शन है
    भीमराव का बहुजन नहीं यह।
     गांधी का हरिजन है।।

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