Monday, February 1, 2016

क्या अब दलित पिछडो की सत्ता वाले राज्यो में सुप्रीमकोर्ट ही नियुक्ति देगा?

शकुनि सडयंत्र सच और सफल साबित हो रहा है।
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क्या अब दलित पिछडो की सत्ता वाले राज्यो में सुप्रीमकोर्ट ही नियुक्ति देगा?? क्या सुप्रीमकोर्ट को कार्यपालिका में सीधे नियुक्ति प्रतिनियुक्ति का अधिकार है??

संसद की सर्वोच्चता को परे धकेल न्यायिक बेलगामी की एक और दुस्साहसी क्या ये लोकतंत्र के लिए खतरे की घण्टी नहीं है?? संसद के NJAC बिल को ठोकर मारकर कॉलेजियम(न्यायपालिका पर ब्राह्मणों के एक तरफा कब्जे) को पुनः लागू कर दिया।
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खबर के अनुसार उत्तरप्रदेश में सुप्रीमकोर्ट ने अपनी मनमर्जी से लोकायुक्त की खुद ही नियुक्ति कर दी है और तैनात किया हे इलाहाबाद के एक सेवानिव्रत ब्राह्मण जज संजय मिश्रा को। क्योंकि मनुवाद से ग्रस्त लोगो को योग्यता अपने ही सहोदरों में नजर आती है। बाकी सब बेकार और अयोग्य है?

खबर का मजुमन देखिये यूपी की निर्वाचित सरकार ने लोकायुक्त पद के लिए हाईकोर्ट के ही रिटायर्ड जस्टिस वीरेंद्र सिंह का नाम प्रस्तावित किया लेकिन उसपर इलाहाबाद के चीफ जस्टिस सहमत नही हुए।

आखिरकार क्यों??

क्या सन्देह था उनपर पता नहीं?
पहला प्रश्न ये है कि

राज्य के निर्वाचित मुख्यमंत्री द्वारा प्रस्तावित नाम पर असहमति क्यों?
करोड़ों लोगो द्वारा निर्वाचित मुख्यमंत्री पर  हाईकोर्ट के 01 जज को वरीयता क्यों??

दूसरा प्रश्न ये हे कि

जस्टिस वीरेंद्रसिंह की नियुक्ति की शिफारिश भी तो कभी इन्ही मनुवादी सत्ताधारियो और जजो ने ही मिलकर की होगी। या फिर जस्टिस वीरेन्द्रसिंह मनुवादिओ की गुलामी पसन्द व्यक्तित्व नहीं है?? या फिर वे इतर जाति से सम्बन्ध रखते है इसलिए अयोग्य है?? 
क्यूंकि देश की न्यायपालिका पर काबिज काकस न्यायपालिका को प्रतियोगी न बनाकर शिफारिशि ही बनाये रखने में अपना वजूद बचाये रखना चाहता है। क्यूंकि  उनकी नजर में अयोग्य देश की 97% जनसंख्या वालो ने उनके द्वारा स्थापित योग्यता के मापदण्डों को ध्वस्त कर हिमालय पर पताका जा फहरायी है। 

अतः उसके पास अपने वर्ग को बचाने की अब न्यायपालिका के अलावा और कोई दवाई नहीं है।

तीसरा प्रश्न ये है कि

आखिरकार देश के जितने भी जज रिटायर हो रहे है 100% पुनः उनको हो विभिन्न आयोगों और पदो पर तैनात किया जा रहा हे। 
इससे स्पस्ट रूप में ये साबित होता है की उच्च न्यायपलिका में 100% एक ही जाति ब्राह्मण का कब्जा है।

इसके आलावा वे रिटायरमेंट के बाद भी इन्हें ही पुनः काबिज करते हुए कार्यपालिका(नोकरशाही) और व्यवस्थापिका में प्रमुख पदों पर काबिज अपने ही मनुवादी भाइयो को बचाने उनके काले कारनामो को वैधानिक संरक्षण देंने ।
या फिर देश के बहुसंख्यको के हितों के लिए कभी कबार बनाये जाने वाले जाँच पड़ताल आयोगों के परिणामो को पलीता लगाने के लिये जानबूझकर इन रिटायर बुद्धिमानो 😢 को तैनात कर रहा है।

चौथा और महत्वपूर्ण प्रश्न ये भी है कि

आखिरकार सुप्रीमकोर्ट किन कारणों से ये सारे प्रयोग दलित पिछडो द्वारा शासित राज्यो में ही कर रहा है। क्या उसके कई आदेशो की धज्जिया उनके ही मनुवादी भाइयो द्वारा शासित और सहभागी राज्यो में नही उड़ाई जा रही😢😢 तो फिर इनका चाबुक वहाँ क्यों नही चल रहा???😊

आज वो शकुनि सच और सडयंत्र सही साबित हो रहा हे ।

जब 2014 के लोकसभा परिणामो की घोसणा (सरकार के वैधानिक गठन से पहले ही) RSSS के ब्राह्मणी नेतृत्व ने कहा था की हिन्दुस्तान आज 800 साल बाद  वास्तविक गुलामी से मुक्त हुआ हे। आखिकार इसके क्या मायने थे।

मोदी को अपने मोहरे के रूप में बिठाने के तुरन्त बाद ही संसद में बैठने से पूर्व ही

1. कश्मीरी विस्थापितों के नाम पर बिना योजना के 5 अरब रूपये जारी कर दिए जो पता नही किसमें खर्च हुए कौन जाने?
2. केंद्र में कार्यरत सचिवो की अपेक्षा रिटायर्ड ब्राह्मण नरेंद्र मिश्र को देश का मुख्य सचिव बनाने के लिए नियमो को बदल दिया जबकि अभी ये संसद में बेठे भी नहीं थे।
3. संदिग्ध योग्यता वाली और लोकसभा चुनावो में बुरी तरह से परास्त स्म्रति ईरानी(पंजाबी ब्राह्मण) को देश का सबसे महत्वपूर्ण मंत्रालय सौंपा। ताकि वे उनकी अयोग्यता और अकुशलता का लाभ उठाकर देश में मनुसमृति का संविधान स्थापित कर सके और कर भी रहे है।
पोस्ट लम्बी न हो इसलिए अभी यही इतिश्री जरूरी हे।
मित्रो आपका क्या कहना है। पोस्ट की सार्थक विवेचना अवश्य करे। आपका क्या मत हे अवश्य लिखे।
Pardeep Kumar Karayala

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