Thursday, February 4, 2016

सरोज बैरवा का संघर्ष- चाहती है कि घोड़ी पर चढ़ कर निकले भैया की बिन्दोली !

सरोज बैरवा का संघर्ष-

चाहती है कि घोड़ी पर चढ़ कर निकले भैया की बिन्दोली !
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राजस्थान के भीलवाड़ा जिले के गुलाबपुरा थाना क्षेत्र के भादवों की कोटड़ी
गाँव में कल 3 फरवरी की शाम एक दलित दूल्हा चंद्रप्रकाश बैरवा घोड़ी पर चढ़
कर अपनी बारात ले जाना चाहता है ,मगर यह बात गाँव के उन मनुवादी तत्वों
को बर्दाश्त नहीं है ,जो सदियों से इस गाँव के दलितों को परम्पराओं के
नाम पर दबाने का काम करते आ रहे है .जिन्हें दलितों का खाट पर बैठना तक
सहन नहीं है ,वे यह कैसे स्वीकार कर लें कि उनके गाँव के दलित युवा घोड़े
पर सवार हो जाएँ .हालाँकि सामने आकर कोई भी विरोध नहीं कर रहा है ,मगर
चौराहों पर खुलेआम चर्चा की जा रही है कि इन चमारों की यह औकात जो गाँव
में घोड़ी पर बैठ कर बिन्दोली निकालेंगे .अगर हमारे मोहल्ले में घुस भी
गये तो जिंदा नहीं लौटेंगे .इस प्रकार की चर्चाओं और गाँव के माहौल के
मद्देनजर दुल्हे की बहन सरोज बैरवा ने पुलिस अधीक्षक कार्यालय भीलवाड़ा
पंहुच कर लिखित रिपोर्ट पेश की कि उसका भाई घोड़ी पर चढ़ कर गाँव में
निकलना चाहता है ,लेकिन कतिपय जातिवादी तत्व यह नहीं होने देना चाहते है
,इसलिए पुलिस सुरक्षा दी जाये .पच्चीस वर्षीय सरोज बैरवा जो कि राजनीती
विज्ञान में परास्नातक और नर्सिंग की पढाई कर चुकी है ,उसने गुलाबपुरा
थाने में भी इस आशय की रिपोर्ट दर्ज करायी है .
इस गाँव की आबादी तक़रीबन 2 हजार बताई जाती है ,जिसमे सर्वाधिक परिवार जाट
है और दलित समुदाय की बैरवा ,मेघवंशी तथा धोबी और वाल्मीकि उपजातियों के
75 परिवार गाँव में निवास करते है .15 परिवार भील आदिवासी भी है ब्राह्मण
,सुथार ,कुम्हार ,और नाथ जोगी परिवार भी इस गाँव में रहते है .देश के
अन्य गांवों की तरह जाति गत भेदभाव ,बहिष्करण और अन्याय उत्पीडन में यह
गाँव भी उतना ही आदर्श गाँव है ,जिस तरह देश के शेष गाँव होते है .थमे
हुए से गाँव ,अड़ियल से गाँव ,जहाँ बदलाव की कोई बयार नहीं ,बदलने को कोई
भी तैयार नहीं ,दुनिया चाँद पर पंहुच गयी और लोग हवाई जहाज में बैठ कर
सफ़र तय करने लगे है ,मगर गाँवो में आज भी लोगों की मानसिकता वही कबीलाई
है ,जहाँ शोषक और शोषितों के कबीले जस के तस बरकरार है .
इस गाँव में भी दलित बैरवा परिवारों का उत्पीड़न का लम्बा इतिहास मौजूद है
,1985 में चर्मकार्य छोड़ने की वजह से यहाँ के निवासी उगमलाल बैरवा को
गाँव छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया था ,उनके रोजमर्रा के कामकाज करने पर भी
रोक लगा दी गयी थी और जब उनके परिवार में किसी की मौत हुई तो मुर्दे का
अंतिम संस्कार तक नहीं होने दिया गया ,थक हार कर उगम लाल बैरवा ने गाँव
छोड़ दिया ,मगर वह झुका नहीं .अब उसी गाँव का रामसुख बैरवा का परिवार
बरसों बाद फिर से उन्हीं लोगों से लौहा ले रहा है ,जिनसे कभी उगमलाल ने
लिया था .सरोज बैरवा के मुताबिक हमारे गाँव में दलित समुदाय के अन्य लोग
जो दबंग लोगों के सामने सिर झुका देते है ,उनको कोई परेशानी नहीं है ,पर
हमने संघर्ष करने की ठान रखी है .इस गाँव में हम लोगों की हालत बेहद ख़राब
है ,जहाँ पूरा गाँव निवृत होने जाता है ,वहां से हमें पेयजल लेना होता है
,मंदिर में घुसने की तो हम सोच भी नहीं सकते है .आज तक कोई भी दलित
दूल्हा या दुल्हन घोड़ी पर सवार नहीं हो पाया .गाँव जातिवादी रुढिवादिता
में बुरी तरह जकड़ा हुआ है ,हमें स्कूल में सदैव ही चमारी या चमारटे जैसे
जातिगत संबोधन ही सुनने को मिले है ,यहाँ पर पग पग पर अपमान होता है .
अपनी पढाई पूरी करने के बाद सरोज और उसकी छोटी बहन निरमा ने एक निजी
विद्यालय आर जी पब्लिक स्कूल में पढाना शुरू कर दिया था ,जो कि गाँव के
बहुसंख्या वाले समुदाय से ताल्लुक रखने वाले लोगों से सहन नहीं हो पाया
,तो उन्होंने अभी पिछले वर्ष मार्च में सरोज की विद्यालय में पंहुच कर
बच्चों के सामने ही सरेआम पिटाई की और कहा कि चमारन तू ही है हमारे
बच्चों को पढ़ाने वाली ,और कोई अध्यापिकाएं नहीं बची है क्या ? अंततः उस
स्कूल को ही बंद हो जाना पड़ा .सरोज ने इस अपमान को सहने के बजाय दलित
अत्याचार निवारण कानून के तहत मुकदमा दर्ज करवाया और जमकर आततायियों का
मुकाबला किया ,उसे सफलता भी मिली ,मुकदमे में चालान हुआ और अनुसूचित जाति
न्यायालय में प्रकरण अभी भी चल रहा है ,ग्रामीणों ने गाँव की एकता और
भाईचारे का वास्ता दे कर उससे समझौता कर लेने के लिए कहा ,मगर सरोज और
उसका परिवार बिल्कुल भी झुके नहीं .
इसके बाद से ही यह हिम्मतवर दलित युवती गाँव के जातिवादी तत्वों की
किरकिरी बनी हुई है ,अब जबकि उसकी और उसके भाई की शादी होने जा रही है तो
जिन लोगों ने सरोज को पीटा और अपमानित किया था ,उन्होंने इस मौके पर इस
दलित परिवार का मान मर्दन करने की ठान रखी है ,बैरवा परिवार को सन्देश
भेजा गया है कि वह अपनी औकात में ही रहे वरना गंभीर नतीजा भुगतना पड़ेगा
.पुलिस सुरक्षा की मांग करने पंहुची सरोज को थाने में कहा गया कि आज तक
किसी दलित ने घोड़ी पर बिन्दोली नहीं निकाली तो तुम क्यों निकालना चाहते
हो ?सरोज ने जब उन्हें कहा कि यह हमारा हक़ है तब पुलिस ने कहा कि हम
सुरक्षा दे देंगे . बाद में जब यह बात मीडिया में आई तब सरपंच ने सरोज के
पिता रामसुख बैरवा को बुला कर कहा कि तुझे कोई दिक्कत थी तो तू पुलिस में
जाता ,तेरी बेटी से केस क्यों करवाया ? एक अन्य लम्बरदार ने कहा कि न्यूज़
का खंडन करो ,इससे हमारे गाँव की बदनामी हो रही है .सरोज ने साफ कह दिया
कि वह ना तो न्यूज़ का खंडन करेगी और ना ही रिपोर्ट वापस लेगी ,मेरा भाई
हर हाल में घोड़ी पर बैठ कर बारात ले जायेगा ,चाहे उसकी जो भी कीमत चुकानी
पड़े .जब हमने पूंछा कि अगर इसकी कीमत जान हो तो ? इस बहादुर बैरवा परिवार
की बहादुर बेटी सरोज का जवाब था कि चाहे जान भी देनी पड़े तो स्वाभिमान की
खातिर वह भी देने को हम तैयार है .
पूरा परिवार एक स्वर में इसके लिए राज़ी है ,सरोज की निरक्षर माँ सीतादेवी
से जब पूंछा गया कि क्या वाकई वो चाहती है कि उसके बेटे बेटी घोड़ी पर चढ़
कर बारात निकाले तो उस माँ का जवाब भी काबिलेगौर था ,उसने कहा –इन बच्चों
को इतना बड़ा इसीलिए किया कि ये घोड़ी पर बैठ कर घर से जाये .जब उनसे यह
जानने की कोशिस की गयी कि क्या उन्हें डर नहीं लग रहा है कि कल कुछ भी हो
सकता है तो वह बोली अगर हमारी मौत इसी बात के लिए होनी है तो हो जाये मगर
हम झुकनेवाले नहीं है .
बेहद विडम्बना की बात यह है कि सरोज जैसी बहादुर दलित युवती इस व्यवस्था
को बदलने के लिए अकेले संघर्ष कर रही है .गाँव के अन्य बैरवा परिवार उनका
बहिष्कार किये हुए है ,शेष दलित जातियां मुर्दों की तरह ख़ामोश है .आज जब
इस बहादुर परिवार के संघर्ष की जानकारी मुझे मिली तो मैं अपने साथियों
डाल चंद रेगर ,देबीलाल मेघवंशी ,अमित कुमार त्यागी ,बालुराम गुर्जर
,महावीर रेगर ,हीरा लाल बलाई ,बालुराम मेघवंशी और ओमप्रकाश जैलिया के साथ
इस परिवार से मिलने पंहुचा .हम उन्हें हौंसला देने गए मगर उनके विचार और
संघर्ष को देख सुनकर हम प्रेरित हो कर वापस लौटे है .
यह कहानी इसलिए साझा कर रहा हूँ क्योंकि हाल ही में राजस्थान में एक दलित
दूल्हा दुल्हन को अम्बेडकर मिशन के कार्यकर्ताओं और प्रशासन ने घोड़ी पर
बिठाने के लाख जतन किये ,फिर भी वो नहीं बैठ पाए और एक तरफ सरोज जैसी
बहादुर दलित युवती और उसका परिवार है जो किसी का सहयोग नहीं मिलने और
रोकने के लाख जतन के बावजूद भी घोड़ी पर बैठ कर ही बारात निकालने के लिए
प्रतिबद्द है ,इस परिवार के जज्बे को सलाम .सरोज की हिम्मत को लाखों लाख
सलाम .जिस दिन सरोज जैसी और बहुत सारी बाबा साहब की बेटियां उठ खड़ी होगी
,ये कायर मनुवादी भागते नजर आयेंगे .3फरवरी को सरोज के भाई
चन्द्रप्रकाश बैरवा की बिन्दोली है और 22 फरवरी को सरोज और उसकी बहन
निरमा बैरवा की शादी है ,तीनों को घोड़ी पर चढ़ना है ,उस गाँव के दलितों की
ख़ामोशी से तो कोई उम्मीद नहीं है ,आप हम जैसे साथियों से सरोज और उसके
परिजनों को बहुत आशा है .अगर हो सके तो सरोज के संघर्ष के सहभागी बनिये
.सरोज के परिवार से 09414925124 तथा 09929169757 पर संपर्क किया जा सकता
है .
- भंवर मेघवंशी [ स्वतंत्र पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता ]

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