Tuesday, January 12, 2016

विपश्यना सीखो

[11/01 20:38] ‪+91 97574 49285‬: 💐आनापान साधना के लाभ💐

1- मन एकाग्र(concentrate) होने लगता है।
2- मन से भय, चिंता, तनाव दूर होने लगते हैं।
3- घबराहट(nervousness) जाती रहती है।
4- पढाई में मन लगता है और इसमे खूब प्रगति होने लगती है।
5- खेल- कूद व विविध कलाओं में कुशलता आती है।
6- कोई भी बात समझने और समझाने की शक्ति बढ़ जाती है।
7- आत्मविश्वास(self confidence) बढ़ता है।
8- सजगता(awareness) 
बढ़ती है।
9- आपसी सदभावना बढ़ती है।
10- मन खूब सबल(powerful) हो जाता है।

🌷 बच्चे ये लाभ पाने के लिए प्रतिदिन 10-15 मिनिट का दो बार नियमित अभ्यास जरूर करें।

सबका मंगल हो !
[11/01 20:38] ‪+91 97574 49285‬: 🌹गुरूजी, मै एक विपश्यी साधक हूँ।मेरी पत्नी आज से दस साल पहले मेरे भाईयो ने उसे जो कटु शब्द कहे थे उसे भूल नही पा रही है।मैंने बहुत समझाया पर वह उस कारण से दुखी ही रहती है।गुरूजी आप मुझे बताएं कि मै क्या करूँ?

उत्तर--दस साल पहले के घाव को याद कर करके उसे ताजा करने जा रही है तो वह अपने दुखो का संवर्धन ही कर रही है।

कोरे उपदेशो से अपने आप को दुखी बनाये रखने का यह स्वभाव बदल नही पायेगा।

🌷 विपश्यना सीखो और विपश्यना करते समय जब जब वह घटना याद आये तो एक अच्छी विपश्यी साधिका की तरह न उसे दबाने का प्रयत्न करें, न दूर करने का प्रयत्न करें।

उसकी सच्चाई को स्वीकार करें। इस समय मेरे मानस में अप्रिय स्मृति(याद) जागी है, इसे स्वीकार करते हुए इस समय शरीर में जो संवेदना है उसे तटस्थ भाव से देखना शुरू कर दें। 

अच्छी तरह विपश्यना करेगी तो खूब समझेगी की यह संवेदना अनित्य है और इस समय चित्त में जो स्मृति जागी है वह इससे जुडी है, इसलिये यह स्मृति भी अनित्य है।
देखते हैं कितनी देर रहती है।

यों साक्षी भाव से, तटस्थ भाव से देखना सीख जायेगी तो इस स्मृति का दमन नही होगा, शमन हो जाएगा।

स्मृति रहेगी तो भी उसके साथ जो दुःख का कांटा लगा हुआ है वह दूर हो जायेगा।

विपश्यना द्वारा इस दुखी होने के स्वभाव से बाहर निकलना चाहिये।

🌹गुरूजी--हमें अपनी जबान पर कंट्रोल रखना बहुत आवश्यक है।
ऐसा नही होता इसलिये एक नासमझ आदमी समय-असमय, उचित-अनुचित, अनुकूल-प्रतिकूल चाहे जैसे शब्दों का प्रयोग कर लेता है और वातावरण में कड़वाहट भर देता है।
तभी कहा-

मत बोलै रै मानखा,
असमय अनुचित बोल।
जब बोलै तब समझ कर,
बोल प्यार का बोल।।

🍁शब्द बड़े अनमोल है।उचित समय पर बोले गए प्रभावशाली उचित शब्द की कोई कीमत नही आंकी जा सकती।

शब्द बराबर धन नही,
जो कोई जाणे बोल।
हीरा तो दामो मिलै,
शब्दै मोल न तोल।।

हीरे की कीमत आंकी जा सकती है, पर धर्ममय सुभाषित बोल की कोई क्या कीमत आंकेगा भला?
इसलिये जब बोले तब सार्थक धर्ममय कल्याणकारी बोल ही बोलें।
तभी भगवान् ने कहा--

 सहस्समपि चे गाथा,
अनत्थपदसंहिता।
एकम धम्मपदम् सेय्यो,
यम सुतवा उपसम्मति।।

एक हज़ार निरर्थक पदों के बोलने के स्थान पर भले एक ही धर्मपद बोले, जिसे सुनकर चित्त शांत हो जाए।
जब बोले तो होश के साथ ही बोले।

💐आनापान साधना के लाभ💐

1- मन एकाग्र(concentrate) होने लगता है।
2- मन से भय, चिंता, तनाव दूर होने लगते हैं।
3- घबराहट(nervousness) जाती रहती है।
4- पढाई में मन लगता है और इसमे खूब प्रगति होने लगती है।
5- खेल- कूद व विविध कलाओं में कुशलता आती है।
6- कोई भी बात समझने और समझाने की शक्ति बढ़ जाती है।
7- आत्मविश्वास(self confidence) बढ़ता है।
8- सजगता(awareness) 
बढ़ती है।
9- आपसी सदभावना बढ़ती है।
10- मन खूब सबल(powerful) हो जाता है।

🌷 बच्चे ये लाभ पाने के लिए प्रतिदिन 10-15 मिनिट का दो बार नियमित अभ्यास जरूर करें।

सबका मंगल हो !

🌹गुरूजी--पुतदारस्स सङ्गहो- यह बारहवा मंगल धर्म है।इसका अर्थ है पत्नी और पुत्र(संतान) को प्रसन्न रखना ।

🍁एक गृहस्थ अपनी पत्नी को कैसे जोड़कर रखता है? यह तभी होगा जबकि पति अपनी पत्नी को सदा संतुष्ट प्रसन्न रखने के लिये उसका सम्मान करेगा।

उसे कभी अपमानित नही करेगा। कभी व्यभिचार नही करेगा।पत्नी गृहस्वामिनी है अतः उसे सारी धन संपत्ति की अधिकारिणी बनाएगा।

यों संतुष्ट प्रसन्न रहती हुई पत्नी भी आदर्श जीवनसंगिनी का धर्म निभाएगी।वह घर के सभी कामो का कुशलपूर्वक संचालन करेगी।अपने तथा पति के सभी स्वजनों , सगे संबंधियो का आदर सत्कार करेगी।
व्यभिचारिणी नही होगी।पति ने उसे जो धन सम्पदा सोंपी है, उसकी पूर्णतया रक्षा करेगी।अपनी जिम्मेदारियों के सभी कामो में दक्ष रहेगी, ततपर रहेगी, निरालस रहेगी।यानी आलस और प्रमाद में पड़कर अपने कर्तव्यों से विमुख नही हो जायेगी।

इस प्रकार दोनों धर्ममय दाम्पत्यमय जीवन का संग्रह करेंगे।

सम्बन्ध विच्छेद से यानी डाइवोर्स से जीवन में जो दुःख आता है उससे बचे रहेंगे।

🌷 इसी प्रकार दोनों अपनी संतान को भी जोड़े रखेंगे।

सात वर्ष की उम्र तक उन्हें लाड-प्यार से अच्छा जीवन जीना सिखाएंगे।

आठ से सोलह वर्ष की उम्र तक उन्हें संयमित और अनुशासित जीवन जीने की शिक्षा देते हुए लाड-प्यार के साथ साथ जहाँ आवश्यक होगा वहां सख्ती बरतेंगे, प्रशासित करेंगे।

इस प्रकार अच्छा जीवन जीना सिखाएंगे।

सोलह वर्ष की उम्र के बाद उन्हें एक मित्र की भाँति अच्छी सलाह-मशविरा देकर समझायेंगे।

यों एक आदर्श माता-पिता का कर्तव्य निभाएंगे।

यदि माता पिता अपने बच्चों को सही रास्ते पर चलने की शिक्षा देने के लिये समय नही निकालते तो बच्चे गलत रास्ते पड़ जायेंगे।आवारा होकर अच्छे जीवन पथ से भटक जाएंगे।

🌷गुरूजी धर्मसेवा क्या है?

उत्तर- हमारी वह सेवा जो किसी भी व्यक्ति में धर्म जगाने में सहायक होती है, उसको धर्मसेवा कहते हैं।



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