Tuesday, January 12, 2016

उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र पार्ट-3 & 4

एक तो उर्दू सारे मुस्लिमो की ज़ुबान नहीं है। ये सिर्फ upper cast मुस्लिमो की strategy है कि उर्दू को मुस्लिमो की ज़ुबान बता कर इसको एक जज़्बाती मुद्दा बना कर अपना उल्लू सीधा किया जाये

दूसरी बात ये कि जनाब अल्पसंख्यक के नाम पे सारा मलाई आक्रमणकारी विदेशी मुस्लिम(सैयद शैख़ मुग़ल तुर्क पठान) खा रहा है और पसमांदा को "all is well" के धोखे में रखे हुए हैं। AMU में सारा खेल इन्ही का है और इंटरनल एक्सटर्नल आरक्षण का सारा खेल का मज़ा यही लोग उठा रहे हैं। पसमांदा सिर्फ बेवक़ूफ़ बन रहा है। obc और s.t. के आरक्षण से पसमांदा मुस्लिमो की भागेदारी बढ़ेगी जो अपने आबादी( कुक मुस्लिम आबादी के 90%) के ratio के हिसाब से AMU में 15% भी नहीं हैं वही upper cast मुस्लिम की भागेदारी 85% से भी ज़्यादा है।

उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र पार्ट-3

"अब ना हिल मिल है ना वो पनिया का माहोल है
एक ननदिया थी सो वो भी अब दाखिले स्कूल है"
             अकबर इलाहाबादी

पश-ए-मंज़र(पृष्टभूमि)-:

उस ज़माने में एक बहुत ही मशहूर पुर्बी(भोजपुरी) के  लोकगीत का मुखड़ा था-

"हिलमिल पनिया को जाये रे ननदिया"
उस दौर में पसमांदा की औरते खुद के लिए भी और तथाकथित अशराफ(मुस्लिम विदेशी आक्रमणकारी) के घरो के लिए भी कुआँ और तालाबो से पानी भर के लाया करती थी। पनघट के रास्ते में ये लोग(सैयद शैख़ मुग़ल तुर्क पठान आदि) पानी भरने जाने वाली पसमांदा औरतो का हिलमिल देख के लुत्फ़ अन्दोज़(प्रसन्नचित) हुआ करते थे। ज़ाहिर सी बात है इनके ज़िम्मे कोई काम तो था नहीं, सारा महनत मशक़्क़त का काम तो रैय्यतों(सेवको) के सुपुर्द हुआ करता था।बहरहाल जब सामाजिक बदलाव हुए और पसमांदा मुस्लिमो में भी शिक्षा और धन आने लगा और उन्होंने अपनी औरते को भी तालीम के लिए स्कूल भेजने लगे तो पनघट सुना हो गया। इस बदलाव से दुखी अकबर इलाहाबादी ने अपनी व्यथा को कुछ यूँ वर्णन किया।

अर्थात-:
इस नए बदलाव की वजह से हमारे मनोरंजन का अब ये साधन भी खत्म होने लगा। अब पहले की तरह वो हिलमिल देखने को नहीं मिल रहा है और एक ननदिया भी थी तो वो भी अब स्कूल में चली गयी।
नोट:- मालूम हो कि अकबर इलाहाबादी ने एक ननदिया(पसमांदा मुस्लिम औरत) को अपने घर में डाल रखा था।
और चीज़ों पे तो उन्होंने अशआर कहे और इसे कर के दिखया।

            फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी

उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र पार्ट-4

 "बेपर्दा  नज़र  आयीं  जो कल  चन्द  बीबियां
  अकबर ज़मीं में ग़ैरत-ए-क़व्मी से गड़ गया
  पूछा  जो  आप  का  पर्दा  वह  क्या  हुआ
  कहने  लगीं के अक़्ल  के  मर्दों पे पड़  गया"
                                 अकबर इलाहाबादी

बीबी= उच्च वर्ग के मुस्लिम औरतो को ही बीबी कहा जाता है। 
क़व्म = उच्च वर्ग के मुस्लिम समाज के लिए बोला जाने वाला शब्द, उस लफ्ज़ का इस्तेमाल कभी भी इस्लाम और आम मुस्लिमो के लिए नहीं होता था।

पश-ए-मन्ज़र(पृष्टभूमि):-

जब नई तहज़ीब के अण्डों(सामाजिक सुधार) के फलस्वरूप् तथाकथित अशराफ(मुस्लिम उच्च वर्ग) की बीबियाँ घरो से बाहेर निकल के शिक्षा हासिल करने लगीं तब इस बात से अकबर इलाहाबादी को बहोत कष्ट हुआ और वो अपने क़व्म को शर्म दिलाते हुए इसका  विरोध अपने व्यंगात्मक  अंदाज़ में कुछ यूँ किया।
अब आप के दिल में ये ख्याल आ रहा होगा कि अकबर इलाहाबादी को सारे मुस्लिमो की औरतो को बे पर्दा होने का मलाल था। तो जनाब आप ये जान ले कि उस वक़्त पसमांदा(पिछड़े और दलित) मुस्लिमो की औरते तो पहले से ही बेपर्दा थी और अपने रोज़ी रोटी के लिए गली मोहल्लों और बाज़ारो में आया जाया करती थी। हज़रत को तो सिर्फ बीबियों के बेपर्दा होने की फ़िक़्र थी।
                फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी


पसमांदा मुस्लिमो के लिये अच्छी खबर:
"केंद्र सरकार ने AMU को अल्पसंख्यक संस्था मानने से इंकार किया"

इंक़लाब उर्दू डेली,न्यू डेल्ही(वाराणसी),12 जनवरी2016, vol no.3, issue no.356.

ज्ञात रहे की AMU में obc, s.c. और s.t. आरक्षण नहीं है। अगर इसका अल्पसंख्यक दर्जा खत्म हुआ तो वहा भारत सरकार का आरक्षण नियम लागु हो जायेगा और इस तरह पसमांदा मुस्लिमो का ज़्यादा से ज़्यादा प्रतिनिधित्व मिलने लगेगा, जो पहले से ही obc और s.t. आरक्षण में आते हैं।
          फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी

............."ज़रूरी नहीं कि हमेशा अक़्लमंद और उमरा(अमीरो) की बात और तहरीक सही और मुल्क व मिल्लत(देश और समाज) के लिए मुफीद(लाभकारी) हो, कभी कभी गरीबो और पसमांदा क़व्मो और जातियो ने दुनिया में ऐसी ऐसी तहरीके भी चलायी हैं कि उनके एहसानात के बोझ से इंसानी दुनिया क़यामत तक सर नहीं उठा सकती।"
मौलाना अली हुसैन आसिम बिहारी
7 जून 1935, बारह गावाँ की एक सभा में।

Shameem ansari says...
योगंडा मे ईसाई अधिक है एक बार ईदी अमीन मुस्लिम की हुकूमत आईं अमीन ने फरमान जारी किया कि सभी विदेशी योगंडा छोडकर चले जाएँ अमीन से मुसलमान मिले कि हमें तो रहने दो हम तो मुसलमान है अफ्रीका के लोगों का रंग तो पक्का होता ही है।अमीन ने कहा कि अगर तुम हमें मुसलमान समझते हो तो हमारी लड़कियों से शादी तुम करो और अपनी लड़कियों से हमारे लडको की करो ये बात चिकने मुसलमानों ने ना मंजूर कर दी - तब अमीन ने कहा कि फिर कैसे मुसलमान हो बाहर जाओ

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