Monday, January 11, 2016

मुसलमानों का पुरजोर समर्थन करना चाहिए

आरएसएस और उसके सहयोगी संगठनों ने मुसलमानों के खिलाफ जिस तरह प्रचार आरंभ किया है उसे देखते हुए सामयिक तौर पर मुसलमानों की इमेज की रक्षा के लिए सभी भारतवासियों को सामने आना चाहिए।

मुसलमानों को देशद्रोही और आतंकी करार देने में इन दिनों मीडिया का एक वर्ग भी सक्रिय हो उठा है,ऐसे में मुसलमानों की भूमिका को जोरदार ढ़ंग से सामने लाने की जरुरत है। सबसे पहली बात यह कि भारत के अधिकांश मुसलमान लोकतांत्रिक हैं और देशभक्त हैं।

वे किसी भी किस्म की साम्प्रदायिक राजनीति का अंग नहीं रहे हैं। चाहे वह मुस्लिम साम्प्रदायिकता ही क्यों न हो। भारत के मुसलमानों ने आजादी के पहले और बाद में मिलकर देश के निर्माण में बड़ी भूमिका निभायी है और उनके योगदान की अनदेखी नहीं होनी चाहिए।

भारतीय मुसलमानों के बारे में जिस तरह का स्टीरियोटाइप प्रचार अभियान मीडिया ने आरंभ किया है कि मुसलमान कट्टरपंथी होते हैं,अनुदार होते हैं,नवाजी होते हैं,गऊ का मांस खाते हैं,हिन्दुओं से नफरत करते हैं,चार शादी करते हैं,आतंकी या माफिया गतिविधियां करते हैं।इस तरह के स्टीरियोटाइप प्रचार जरिए मुसलमान को भारत मुख्यधारा से भिन्न दर्शाने की कोशिशें की जाती हैं। जबकि सच यह है मुसलमानों या हिन्दुओं को स्टीरियोटाइप के आधार पर समझ ही नहीं सकते। हिन्दू का मतलब संघी नहीं होता। संघ की हिन्दुत्व की अवधारणा अधिकांश हिन्दू नहीं मानते।

भारत के अधिकांश हिन्दू- मुसलमान कुल मिलाकर भारत के संविधान के द्वारा परिभाषित संस्कृति और सभ्यता के दायरे में रहते हैं और उसके आधार पर दैनंदिन आचरण करते हैं।अधिकांश मुसलमानों की सबसे बड़ी किताब भारत का संविधान है और उस संविधान में जो हक उनके लिए तय किए गए हैं उनका वे उपयोग करते हैं। हमारा संविधान किसी भी समुदाय को कट्टरपंथी होने की अनुमति नहीं देता। भारत का संविधान मानने के कारण सभी भारतवासियों को उदारतावादी मूल्यों, संस्कारों और आदतों का विकास करना पड़ता है।

समाज में हिन्दू का संसार गीता या मनुस्मृति से संचालित नहीं होता बल्कि भारत के संविधान से संचालित होता है। उसी तरह मुसलमानों के जीवन के निर्धारक तत्व के रूप में भारत के संविधान की निर्णायक भूमिका। भारत में किसी भी विचारधारा की सरकार आए या जाए उससे भारत की प्रकृति तय नहीं होती, भारत की प्रकृति तो संविधान तय करता है।

यह धर्मनिरपेक्ष-लोकतांत्रिक देश है और इसके सभी बाशिंदे धर्मनिरपेक्ष-लोकतांत्रिक हैं। संविधान में धार्मिक पहचान गौण है, नागरिक की पहचान प्रमुख है। इस नजरिए से मुसलमान नागरिक पहले हैं, धार्मिक बाद में। आरएसएस देश का ऐसा एकमात्र बड़ा संगठन है जिसकी स्वाधीनता संग्राम में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रही , यह अकेला ऐसा संगठन है जिसके किसी बड़े नेता को साम्प्रदायिक-आतंकी-पृथकतावादी हमले का शिकार नहीं होना पड़ा। उलटे इसकी विचारधारा के भारत की धर्मनिरपेक्ष-लोकतांत्रिक संस्कृति और सभ्यता विमर्श पर गहरे नकारात्मक असर देखे गए हैं। इसके विपरीत भारत के मुसलमानों ने अनेक विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी भारत के स्वाधीनता संग्राम में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। अनेक मुसलिम नेताओं ने कम्युनिस्ट आंदोलन और क्रांतिकारी आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।

ब्रिटिश शासन के खिलाफ मुसलमानों की देशभक्तिपूर्ण भूमिका को हमें हमेशा याद रखना चाहिए। मसलन्, रौलट एक्ट विरोधी आंदोलन और जलियांवालाबाग कांड में 70 से अधिक देशभक्त मुसलमान शहीद हुए। इनकी शहादत को हम कैसे भूल सकते हैं। आरएसएस के प्रचार अभियान में मुसलमानों को जब भी निशाना बनाया जाता है तो उनकी देशभक्ति और कुर्बानी की बातें नहीं बतायी जाती हैं। हमारे अनेक सुधीजन फेसबुक पर उनके प्रचार के रोज शिकार हो रहे हैं। ऐसे लोगों को हम यही कहना चाहेंगे कि मुसलमानों के खिलाफ फेसबुक पर लिखने से पहले थोड़ा लाइब्रेरी जाकर इतिहास का ज्ञान भी प्राप्त कर लें तो शायद मुसलमानों के प्रति फैलायी जा रही नफरत से इस देश को बचा सकेंगे।

आरएसएस के लोगों से सवाल किया जाना चाहिए कि उनको देश के लिए कुर्बानी देने से किसने रोका था ? स्वाधीनता संग्राम में उनके कितने सदस्य शहीद हुए ? इसकी तुलना में यह भी देखें कितने मुसलमान नेता-कार्यकर्ता शहीद हुए ? देश प्रेम का मतलब हिन्दू-हिन्दू करना नहीं है । हिन्दू इस देश में रहते हैं तो उनकी रक्षा और विकास के लिए अंग्रेजों से मुक्ति और उसके लिए कुर्बानी की भावना आरएसएस के लोगों में क्यों नहीं थी ? जबकि अन्य उदार-क्रांतिकारी लोग जो हिन्दू परिवारों से आते थे, बढ़-चढ़कर कुर्बानियां दे रहे थे, शहीद हो रहे थे। संघ उस दौर में क्या कर रहा था ? यही कहना चाहते हैं संघ कम से कम कुर्बानी नहीं दे रहा था। दूसरी ओर सन् 1930-32 के नागरिक अवज्ञा आंदोलन में कम से कम 43 मुसलमान नेता-कार्यकर्ता घायल होने के बाद शहीद हो गये थे तब ये संघ कहाँ था । इसलिए इन संघीय ब्राह्मणों को छोङ कर मुसलमानों का पुरजोर समर्थन करना चाहिए ।
🌷जय भीम  जय मूलनिवासी🌷

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