Tuesday, January 5, 2016

ब्रामण की पोल खोल

[09/12/2015 2:35 PM] ‪+91 88698 54399‬: बुद्ध ने वर्णव्यवस्थाSubject:Subject:
[09/12/2015 2:35 PM] ‪+91 88698 54399‬: बुद्ध ने वर्णव्यवस्थाSubject:
[09/12/2015 2:35 PM] ‪+91 88698 54399‬: बुद्ध ने वर्णव्यवस्था
को समाप्त किया।
हमारे गुलामी के
विरोघ में लड़ाने
वाला सबसे पुराना
और बड़ा पूर्वज था।
इसका मतलब ये है कि
वर्णव्यवस्था बुद्ध के
काल में भी थी। यह
बात प्रामाणिक है
कि इस जन आंदोलन में
बुद्ध
को मूलनिवासियों ने
ही सबसे
जयादा जन समर्थन
दिया। जैसे
ही वर्णव्यवस्था ध्वस्त
हुई तो चतुसूत्री पर
आधारित नई समाज
रचना का निर्माण
हुआ। उसमें समता,
स्वतंत्रता, बंधुत्व और
न्याय पर आधारित
समाज
की व्यवस्था की गई।
इस क्रांति के बाद
प्रतिक्रांति हुई,
जो पुष्यमित्र शुंग(राम)
ने बृहदत
की हत्या करके की।
वाल्मीकि शुंग
दरबार का राजकवि
था और उसने
पुष्यमित्र शुंग और बृहदत
को सामने रख कर
ही रामायण लिखी।
इसका सबुत
"वाल्मीकि रामायण"
में है। बृहदत
की हत्या पाटलिपुत्र
में हुई थी, पुष्यमित्र
शुंग की राजधानी
अयोध्या में थी।
रामायण के अनुसार
राम
की राजधानी भी
अयोध्या में थी।
पुरातात्विक प्रमाण
है, कोई
भी राजा अपनी
राजधानी का
निर्माण
करता है तो उस जगह
को युद्ध में जीतता है,
फिर अपनी राजधानी
बनाता है। मगर
अयोध्या युद्ध में जीत
गई
राजधानी नहीं थी।
इसिलए उसका नाम
रखा गया अयोध्या
अर्थात अ+योद्ध्या;
युद्ध में ना जीत गई
राजधानी। पुष्यमित्र
शुंग ने अश्वमेध यज्ञ
किया, रामायण में
राम ने भी अश्वमेध
यज्ञ किया।
पुष्यमित्र ने जो
प्रतिक्रांति की इसके
बाद भारत में
जाति व्यवस्था को
स्थापित
किया गया। पहले
गुलाम बनाने के लिए
वर्णव्यवस्था और
प्रतिक्रांति के बाद
मूलनिवासी हमेशा
गुलाम बने रहे, उसके
लिए जाति व्यवस्था
का निर्माण
किया गया।
मूलनिवासियों का
प्रतिकार हमेशा के
लिए खत्म करने के लिए
विदेशी आर्यों ने
योजना बना कर
सभी मूलनिवासियों
को अलग अलग 6743
जातियों में बाँट
दिया। जिससे
मूलनिवासियों में एक
मानसिक
स्थिति पैदा हो गई
कि हम प्रतिकार
करने योग्य नहीं रह
गये। गुलामों में
ही ऐसी मानसिक
स्थिति होती है।
ब्राह्मणों ने
जातिव्यवस्था को
क्रमिक
असमानता पर खड़ा
किया गया। असमान
लोग एक होने चाहिए
थे लेकिन
ब्राह्मणों ने असमान
लोगों को भी क्रमिक
असमानता में
विभाजित किया।
प्रतिकार अंदर
ही अंदर होता है।
लेकिन जिसने
गुलामी लादी उसका
प्रतिकार करने
का ख्याल भी मन में
नहीं आता क्योकि
ब्राह्मणों ने
मूलनिवासियों में
जाति पर आधारित
लड़ाईयां करवाना शुरू
कर दिया। जिससे
मूलनिवासी आपस में
ही लड़ने लगे और
उन्होंने असली गुलामी
लादने वाले
का प्रतिकार करना
[09/12/2015 2:35 PM] ‪+91 88698 54399‬: बुद्ध ने वर्णव्यवस्था
को समाप्त किया।
हमारे गुलामी के
विरोघ में लड़ाने
वाला सबसे पुराना
और बड़ा पूर्वज था।
इसका मतलब ये है कि
वर्णव्यवस्था बुद्ध के
काल में भी थी। यह
बात प्रामाणिक है
कि इस जन आंदोलन में
बुद्ध
को मूलनिवासियों ने
ही सबसे
जयादा जन समर्थन
दिया। जैसे
ही वर्णव्यवस्था ध्वस्त
हुई तो चतुसूत्री पर
आधारित नई समाज
रचना का निर्माण
हुआ। उसमें समता,
स्वतंत्रता, बंधुत्व और
न्याय पर आधारित
समाज
की व्यवस्था की गई।
इस क्रांति के बाद
प्रतिक्रांति हुई,
जो पुष्यमित्र शुंग(राम)
ने बृहदत
की हत्या करके की।
वाल्मीकि शुंग
दरबार का राजकवि
था और उसने
पुष्यमित्र शुंग और बृहदत
को सामने रख कर
ही रामायण लिखी।
इसका सबुत
"वाल्मीकि रामायण"
में है। बृहदत
की हत्या पाटलिपुत्र
में हुई थी, पुष्यमित्र
शुंग की राजधानी
अयोध्या में थी।
रामायण के अनुसार
राम
की राजधानी भी
अयोध्या में थी।
पुरातात्विक प्रमाण
है, कोई
भी राजा अपनी
राजधानी का
निर्माण
करता है तो उस जगह
को युद्ध में जीतता है,
फिर अपनी राजधानी
बनाता है। मगर
अयोध्या युद्ध में जीत
गई
राजधानी नहीं थी।
इसिलए उसका नाम
रखा गया अयोध्या
अर्थात अ+योद्ध्या;
युद्ध में ना जीत गई
राजधानी। पुष्यमित्र
शुंग ने अश्वमेध यज्ञ
किया, रामायण में
राम ने भी अश्वमेध
यज्ञ किया।
पुष्यमित्र ने जो
प्रतिक्रांति की इसके
बाद भारत में
जाति व्यवस्था को
स्थापित
किया गया। पहले
गुलाम बनाने के लिए
वर्णव्यवस्था और
प्रतिक्रांति के बाद
मूलनिवासी हमेशा
गुलाम बने रहे, उसके
लिए जाति व्यवस्था
का निर्माण
किया गया।
मूलनिवासियों का
प्रतिकार हमेशा के
लिए खत्म करने के लिए
विदेशी आर्यों ने
योजना बना कर
सभी मूलनिवासियों
को अलग अलग 6743
जातियों में बाँट
दिया। जिससे
मूलनिवासियों में एक
मानसिक
स्थिति पैदा हो गई
कि हम प्रतिकार
करने योग्य नहीं रह
गये। गुलामों में
ही ऐसी मानसिक
स्थिति होती है।
ब्राह्मणों ने
जातिव्यवस्था को
क्रमिक
असमानता पर खड़ा
किया गया। असमान
लोग एक होने चाहिए
थे लेकिन
ब्राह्मणों ने असमान
लोगों को भी क्रमिक
असमानता में
विभाजित किया।
प्रतिकार अंदर
ही अंदर होता है।
लेकिन जिसने
गुलामी लादी उसका
प्रतिकार करने
का ख्याल भी मन में
नहीं आता क्योकि
ब्राह्मणों ने
मूलनिवासियों में
जाति पर आधारित
लड़ाईयां करवाना शुरू
कर दिया। जिससे
मूलनिवासी आपस में
ही लड़ने लगे और
उन्होंने असली गुलामी
लादने वाले
का प्रतिकार करना
बंद कर दिया। DNA
शोध सिद्ध करता है
कि जाति/वर्ण
व्यवस्था का
निर्माणकर्ता
ब्राह्मण है
उसने सभी को
विभाजित किया
लेकिन
खुद को कभी
विभाजित नहीं होने
दिया।
जाति के साथ
ब्राह्मणों की
को समाप्त किया।
हमारे गुलामी के
विरोघ में लड़ाने
वाला सबसे पुराना
और बड़ा पूर्वज था।
इसका मतलब ये है कि
वर्णव्यवस्था बुद्ध के
काल में भी थी। यह
बात प्रामाणिक है
कि इस जन आंदोलन में
बुद्ध
को मूलनिवासियों ने
ही सबसे
जयादा जन समर्थन
दिया। जैसे
ही वर्णव्यवस्था ध्वस्त
हुई तो चतुसूत्री पर
आधारित नई समाज
रचना का निर्माण
हुआ। उसमें समता,
स्वतंत्रता, बंधुत्व और
न्याय पर आधारित
समाज
की व्यवस्था की गई।
इस क्रांति के बाद
प्रतिक्रांति हुई,
जो पुष्यमित्र शुंग(राम)
ने बृहदत
की हत्या करके की।
वाल्मीकि शुंग
दरबार का राजकवि
था और उसने
पुष्यमित्र शुंग और बृहदत
को सामने रख कर
ही रामायण लिखी।
इसका सबुत
"वाल्मीकि रामायण"
में है। बृहदत
की हत्या पाटलिपुत्र
में हुई थी, पुष्यमित्र
शुंग की राजधानी
अयोध्या में थी।
रामायण के अनुसार
राम
की राजधानी भी
अयोध्या में थी।
पुरातात्विक प्रमाण
है, कोई
भी राजा अपनी
राजधानी का
निर्माण
करता है तो उस जगह
को युद्ध में जीतता है,
फिर अपनी राजधानी
बनाता है। मगर
अयोध्या युद्ध में जीत
गई
राजधानी नहीं थी।
इसिलए उसका नाम
रखा गया अयोध्या
अर्थात अ+योद्ध्या;
युद्ध में ना जीत गई
राजधानी। पुष्यमित्र
शुंग ने अश्वमेध यज्ञ
किया, रामायण में
राम ने भी अश्वमेध
यज्ञ किया।
पुष्यमित्र ने जो
प्रतिक्रांति की इसके
बाद भारत में
जाति व्यवस्था को
स्थापित
किया गया। पहले
गुलाम बनाने के लिए
वर्णव्यवस्था और
प्रतिक्रांति के बाद
मूलनिवासी हमेशा
गुलाम बने रहे, उसके
लिए जाति व्यवस्था
का निर्माण
किया गया।
मूलनिवासियों का
प्रतिकार हमेशा के
लिए खत्म करने के लिए
विदेशी आर्यों ने
योजना बना कर
सभी मूलनिवासियों
को अलग अलग 6743
जातियों में बाँट
दिया। जिससे
मूलनिवासियों में एक
मानसिक
स्थिति पैदा हो गई
कि हम प्रतिकार
करने योग्य नहीं रह
गये। गुलामों में
ही ऐसी मानसिक
स्थिति होती है।
ब्राह्मणों ने
जातिव्यवस्था को
क्रमिक
असमानता पर खड़ा
किया गया। असमान
लोग एक होने चाहिए
थे लेकिन
ब्राह्मणों ने असमान
लोगों को भी क्रमिक
असमानता में
विभाजित किया।
प्रतिकार अंदर
ही अंदर होता है।
लेकिन जिसने
गुलामी लादी उसका
प्रतिकार करने
का ख्याल भी मन में
नहीं आता क्योकि
ब्राह्मणों ने
मूलनिवासियों में
जाति पर आधारित
लड़ाईयां करवाना शुरू
कर दिया। जिससे
मूलनिवासी आपस में
ही लड़ने लगे और
उन्होंने असली गुलामी
लादने वाले
का प्रतिकार करना
बंद कर दिया। DNA
शोध सिद्ध करता है
कि जाति/वर्ण
व्यवस्था का
निर्माणकर्ता
ब्राह्मण है
उसने सभी को
विभाजित किया
लेकिन
खुद को कभी
विभाजित नहीं होने
दिया।
जाति के साथ
ब्राह्मणों की
सर्वोच्चता जुडी हुई
है।
इसलिए ब्राह्मणों के
सामने हमेशा संकट
खड़ा रहा कि इस
व्यवस्था को कैसे
कायम
रखा जाये। जाति
प्रथा को बनाये रखने
के लिए ब्राह्मणों ने
निम्न परम्पराओं और
प्रथाओं का विकास
किया;
कन्यादान परम्परा –
कन्या कोई वस्तु
नहीं है जिसका दान
किया जाये। लेकिन
ब्राह्मणों ने बड़ी
चालाकी के साथ धर्म
का प्रयोग करते हुए,
ऐसी व्यवस्था बनाई
कि जब कन्या शादी
योग्य हो जाये
तो उसकी शादी की
जिमेवारी माँ-
बाप की होगी। माँ-
बाप
कन्या की शादी
ब्राह्मणों द्वारा
स्थापित
"ब्राह्मण सामाजिक
व्यवस्था" के
अनुसार ही करेंगे। अगर
लडकी जाति से
बाहर अपनी पसंद से
शादी करेगी तो
जाति व्यवस्था
समाप्त
हो जायेगी और
ब्राह्मणों की
सर्वोच्चता समाप्त
हो जायेगी। ऐसे
तो मूलनिवासियों
की गुलामी समाप्त
हो जायेगी, ये नहीं
होना चाहिए
इसीलिए "ब्राह्मण
सामाजिक
व्यवस्था" स्थापित
करके कन्यादान
की प्रणाली विकसित
की गई।
बाल विवाह प्रथा –
लडकी विवाह
योग्य होने पर अपनी
पसंद से शादी कर
सकती है और उस से
जातिव्यवस्था समाप्त
हो सकती है तो उसके
लिए बालविवाह
व्यवस्था को स्थापित
किया गया।
ताकि बचपन में ही
लडकी की शादी कर
दी जाये। क्योकि
माँ-बाप
तो अपनी ही जाति
में
लडकी की शादी
करवाएंगे और
मूलनिवासी गुलाम के
गुलाम ही बने रहेंगे।
ज्यादा जानकारी के
लिए CAST IN
INDIA और
ANHILATION OF
CASTE
किताबे पढ़े, जो डॉ.
भीम राव अम्बेडकर ने
लिखी है।
विधवा विवाह प्रथा
– विधवा विवाह
निषेध कर दिया गया।
अगर कोई
विधवा किसी विवाह
योग्य लडके से
शादी कर लेती है तो
समाज में एक
लड़का कम हो
जायेगा, और जिस
लडकी के
लिए लड़का कम
होगा वो लडकी
जाति से बाहर जा कर
शादी कर सकती है।
इससे
भी जाति प्रथा को
खतरा था तो विधवा
विवाह
भी निषेध कर दिया
गया था।
जाति अंतर्गत विवाह
जाति बनाये रखने
का सूत्र है और जाति
व्यवस्था वनाये रखने
के लिए महिलाओं का
इस्तेमाल
किया जाता है। इस
व्यवस्था को बनाये
रखने के लिए विधवाओं
पर मन मने
अत्याचार होते थे।
ब्राह्मणों ने
देखा कि विधवा को
टिकाये रखना संभव
नहीं है तो विधवाओं
के लिए नए क़ानून
बनाये गये। विधवा
सुन्दर
नहीं दिखनी चाहिए
इसलिए उनके बाल
काट दिए जाते थे।
कोई उनकी ओर
आकर्षित ना हो जाये
इसलिए
उनको साफ़ सफाई से
रहने का अधिकार
नहीं था। ताकि कोई
उनके साथ
शादी करने को तैयार
ना हो जाये।
यानी किसी भी
स्थिति में
जातिव्यवस्था बनी
रहनी चाहिए।
सतीप्रथा – ब्राह्मणों
ने
विधवा औरतों से
निपटने और
जाति व्यवस्था को
बनाये रखने के लिए
दूसरा रास्ता सती
प्रथा निकला। धर्म
के नाम पर औरतों में
गौरव भाव
का निर्माण किया।
जैसे कि मरने
वाली स्त्री सचे
चरित्र, पतिव्रता और
पवित्र है इसीलिए
सती है।
जो स्त्री सची है उसे
अपने
पति की चिता में
जिन्दा जल
जाना चाहिए।
स्त्रियों में गौरव
की भावना का
निर्माण करने के लिए
बडसावित्री नाम की
प्रथा को जन्म
दिया गया। ब्राह्मणों
ने जितने
भी घटिया काम किये
उन पर गर्व किया।
और महिलाये बिना
सच को जाने
अपनी जान देती रही।
बडसावित्री संस्कार
भी बहुत योजनाबढ
तरीके से बनाया गया
है। इस में औरत हाथ
में धागा लेकर चक्कर
कटती है और कहती है
"यही पति मुझे अगले
सात जन्मों तक
मिलाना चाहिए, यह
शराबी है, मुझे
मारता पिटता है, मेरे
पर अत्याचार
करता है, फिर भी मुझे
यही पति मिलाना
चाहिए।" यह
ब्राह्मणों का एक बहुत
गहरा षड्यंत्र है, यह
त्यौहार हर साल आता
है। हर साल
स्त्रियों के मन में यह
संस्कार
डाला जाता है। यही
पति तुम
को मिलाने वाला है
और कोई
नहीं मिलेगा और अगर
तुम
जिन्दा रहती हो तो
जब तक
जिन्दा रहोगी तब तक
तुम्हारे पुनर्मिलन में
बहुत देरी हो जायेगी।
अगर तुम अपने पति के
साथ चिता पर मर
जोगी तो एक
ही तारीख में, एक ही
समय में, एक साथ
पैदा हो जाओगी,
पुनर्जन्म हो जायेगा।
फिर दोनों का मिलन
भी हो जायेगा।
ब्राह्मणों ने यह
योजना जाति
व्यवस्था को बनाये
रखने
के लिए बनाई। जैसे
कोई चोर यह
नहीं कहता कि में चोर
हूँ; यही हाल
ब्राह्मणों का है। जन्म
जन्म
का काल्पनिक
सिद्धांत बना कर
स्त्रियों पर मन चाहे
अत्याचार किये गये
ताकि जातिव्यवस्था
बनी रहे।
क्रमिक असमानता –
जाति बंधन डालने के
बाद उसे बनाये रखना
संभव नहीं था।
गुलाम को गुलाम
बनाये रखने के लिए हर
किसी के ऊपर किसी
को रखना ही इस
समस्या का समाधान
था। सारे
मूलनिवासी आपस में
लड़ते रहे,
मूलनिवासी कभी
ब्राह्मणों के खिलाफ
खड़े ना हो जाये।
इसीलिए ब्राह्मणों ने
मूलनिवासियों को
ऊँची और
नीची जातियों में
बाँट दिया। उंच नीच
की भावना मानवता
की भावना को खत्म
कर देती है। इसीलिए
ब्राह्मणों ने क्रमिक
असमानता के साथ
जाति व्यवस्था का
निर्माण किया है।
और आज भी हर
मूलनिवासी जाति
और
धर्म के नाम पर लड़ता
रहता है और ब्राह्मण
मज़े से तमाशा देख कर
हँसता है।
अस्पृश्यता –
जातिव्यवस्था बुद्ध
पूर्व
काल में नहीं थी
इसीलिए उस समय के
साहित्य में जाति या
वर्ण
व्यवस्था का वर्णन
नहीं आता। इसीलिए
यह भ्रान्ति फैली हुई है
जिन बौद्धों ने
ब्राह्मण धर्म का
अनुसरण किया, और
ब्राह्मणों ने जिन
बौद्धों को अपना
लिया वो आज के समय
में ओबीसी में आते है।
उन पर आज
भी ब्राह्मणों का
प्रभाव है जिसके
कारण
ओबीसी में आने वाले
लोग दूसरे
मूलनिवासियों से अपने
आप को उच्च समझते
है। ओबीसी भी
पुष्यमित्र शुंग
की प्रतिक्रांति के
बाद
बनाया गया
मूलनिवासी लोगों
का समूह
है।
सिंधु घाटी की
सभ्यता पैदा करने वाले
भारतीय लोगो से
इतनी बड़ी महान
सभ्यता कैसे नष्ट
हुई,जो 4500-5000
ईसा पूर्व से स्थापित
थी?ये इंग्रेजो ने
पूछा था, एक अंग्रेज
अफसर को इस
का शोध करने के लिए
भी बोला गया था।
बाद में इसके शोध
को राघवन और एक
संशोधक ने शुरू किया।
पत्थर और ईंटों के
परिक्षण में
पता चला कि ये
संस्कृति अपने आप
नहीं मिटी थी।
बल्कि सिंधु
घटी की सभ्यता को
मिटाया गया था।
दक्षिण राज्य केरल में
हडप्पा और
मोहनजोदड़ों 429
अवशेष मिले। ब्राम्हण
भारत में ईसा पूर्व
1600-1500 शताब्दी
पूर्व
आया।
ऋग्वेद में इंद्र के संदर्भ में
250 श्लोक आतें हैं।
ब्राह्मणों के नायक
इन्द्र पर लिखे
सभी श्लोकों में यह
बार बार आता है
कि "हे इंद्र उन असुरों के
दुर्ग को गिराओं"
"उन असुरों(बहुजनों)
की सभ्यता को नष्ट
करो"। ये धर्मशास्त्र
नहीं बल्कि ब्रहामणों
के अपराधों से
भरेदस्तावेज हैं।
भाषाशास्त्र के आधार
पर ग्रिअरसन ने
भी ये सिद्ध किया
की अलग-अलग
राज्यों में
जो भाषा बोली
जाती हैं,वो सारी
भाषाओँ
का स्त्रोतपाली है।
DNA के परिक्षण से
प्राप्त हुआ
सबूतनिर्विवाद और
निर्णायक है।
क्योकि वो किसी
तर्क या दलील पर
खड़ा नहीं किया गया
है। इस शोध
को विज्ञान के
द्वारा कभी भी
प्रमाणित
किया जा सकता है।
विज्ञान कोई
जाति या धर्म नहीं है।
इस शोध को करने
वाले पूरी दुनिया से
265 लोग थे।
बामशाद का यह शोध
21 मई 2001 के
TIMES OF INDIA में
NATURE नामक पेज पर
छपा, जो दुनिया का
सबसे
ज्यादा वैज्ञानिक
मान्यता प्राप्त अंक
है।
बाबासाहब आंबेडकर
की उम्र सिर्फ 22
साल थी जब उन्होंने
विश्व
का जाति का
मूलक्या है, इसकी
खोज
की थी। और 2001 में
जो DNA
परिक्षणहुआ था,
बाबासाहब का और
माइकल बामशाद का
मत एक
ही निकला था।
ब्राम्हण सारी दुनिया
के सामने पुरे
बेनकाबहो चुके थे। फिर
भी ब्राह्मणों ने
अपनी असलियत को
छुपाने के लिए
अपनी ब्रह्माणी
सिद्धांत
को अपनाया और ऐसा
प्रचारित
किया कि भारत में
दक्षिणी ब्राह्मण
दो नस्लों के होते है।
ब्राह्मणों ने DNA के
परिक्षण को पूरी तरह
ख़ारिज
नहीं किया और एक
और झूठ
मीडिया द्वारा
प्रचारित करना शुरू कर
दिया कि अब कोई
मूलनिवासी नहीं है
सभी लोग संमिश्र हो
चुके है। उन्होंने
कहा मापदंड ढूंढा?
ब्राह्मणों ने दलील
देकर
कहा कि अन्डोमान
और निकोबार द्वीप
समूह की जो
आदिवासी जनजाति
है
वो अफ्रीकन के वंशज
है, वो उधर से
आया था, और
यूरेशियन देशों में
चला गया है, इस पर भी
शोध
होना चाहिए।
बामशाद के द्वारा
किये
गये शोध को नकारने के
लिए ब्राह्मणों ने
सिर्फ विज्ञान शब्द
का प्रयोग
किया और उसे झूठा
प्रचारित किया।
ब्राह्मण अगर यह झूठी
कहानी सुनाये
तो उस से पूछो कि
दोनों ब्राह्मण
नस्लों में से विदेश से
कौन आया है?
विदेशी का DNA
बताओ? DNA के आधार
पर ब्राह्मण अपनी
बातों को सिद्ध
नहीं कर सकता।
ब्राह्मण मुसलमान
विरोधी घृणा
आंदोलन
क्यों चलता है?
क्योकि ब्राह्मणवाद
और बुद्धिज्म के
टकराव के समय बहुत से
बौद्धिष्ट मुसलमान
बन गये थे उन्होंने
ब्राह्मण धर्म
को नहीं अपनाया
था। ब्राह्मण जनता है
कि आज भारत में
जितने भी मुसलमान है
वो सब मूलनिवासी है
इसीलिए ब्राह्मण
मुसलमानों के खिलाफ
घृणा का आंदोलन
चलता रहता है ताकि
ब्राह्मण
किसी भी तरह
मूलनिवासियों की
एक
शाखा को पूरी तरह
खत्म कर सके।
अंग्रेजों के गुलाम
ब्राह्मण था और उनके
गुलाम मूलनिवासी थे।
आज़ादी की जंग में
आज़ादी के लिए
आंदोलन करने वाले
लोगों के सामने यह
सबसे
बड़ी समस्या थी।
इसीलिए डॉ. भीम
राव अम्बेडकर ने
अंग्रेजों को कहा कि
ब्राह्मणों को आज़ाद
करने से पहले
मूलनिवासी बहुजनों
को जरुर
आज़ाद कर देना
चाहिए। अगर ब्राह्मण
मूलनिवासियों से पहले
आज़ाद
हो गया तो ब्राह्मण
मूलनिवासियों को
कभी आज़ाद
नहीं करेगा। ये आशंका
सिर्फ डॉ. भीम
राव अम्बेडकर के मन में
ही नहीं थी बल्कि
मुसलमान नेताओं के मन
में भी थी। इसीलिए
14 अगस्त
को पाकिस्तान बना।
मुसलमानों ने
अंग्रेजों को कहा कि
गाँधी से एक दिन
पहले हमे आज़ादी देना
और हमारे बाद
गाँधी को देना। अगर
तुमने पहले
गाँधी को आज़ादी दे
दी तो गाँधी बनिया
है हमको कुछ
नहीं देगा। ब्राह्मणों ने
अपनी आज़ादी की
लड़ाई
मूलनिवासियों को
सीडी बनाकर
लड़ी और वो अंग्रेजों
को भगा कर आज़ाद
हो गये।
DNA संशोधन से सामने
आया कि ब्राह्मण,
राजपूत और वैश्य भारत
के
मूलनिवासी नहीं है।
व्यवहारिक रूप से
भी देखा जाये तो
ब्राह्मणों ने
कभी भारत को अपना
देश
माना भी नहीं है।
ब्राह्मण
हमेशा राष्ट्रवाद का
सिद्धांत
बताता आया है लेकिन
खुद कितना देशभक्त
है ये बात किसी को
नहीं बताता।
इसका मतलब एक
विदेशी गया और
दूसरा विदेशी मालिक
हो गया, DNA ने
सिद्ध कर दिया। दूसरे
विदेशी ब्राह्मणों ने ये
प्रचार
किया कि भारत
आज़ाद हो गया।
लेकिन आज भी भारत
पर आज
भी ब्राह्मणों का
राज है। इससे यह
साबित होता है
कि मूलनिवासियों
को भविष्य में
आज़ादी हासिल करने
का कार्यक्रम
चलाना ही पड़ेगा।
DNA परिक्षण के
आधार पर यह भी कहा
जा सकता है
कि आज भी देश के
130 करोड में से 32
करोड
लोग बाकि 98 करोड़
लोगों पर राज कर
रहा है। कल्पना करो
कितना मुलभुत और
महत्वपूर्ण संशोधन है।
Reply ↓
[17/12/2015 6:19 AM] ‪+91 99367 65066‬: 🎈ब्रामण की पोल खोल ⛳

  जब मै 10वीं कक्षा में पढता था, , 
तो उस समय गाँव में सत्य नारायण की पूजा बहुत होती थी। 
🎈 हमने पूजा की पोल खोलने की ठानी।
 मैंने एक मित्र को प्लानिंग के साथ पूजा में बिठाया। पंडितजी ने गोबर के गणेश बनाकर मित्र को कहा कि गणेशजी पर पानी प्राछन्न करो।
🎈 मेरे मित्र ने कहा कि यह तो गाय का गोबर है लेकिन आप गणेश कह रहे हैं।  यह गलत है।
⛳ पंडितजी ने कहा मान लो गणेशजी हैं। 
🎈मित्र ने कहा कैसे मान ले ?❓ 
⛳पंडित जी ने कहा अरे भाई मै कहता हूँ मान लो।
🎈 मित्र ने कहा ठीक है। पूजा शुरू हुई । पूजा में पंडितजी ने तमाम उदहारण देकर बताया की जिसने सत्य नारायण की पूजा की उसे लाभ हुआ जिसने नहीं सुनी उसे नुकसान हुआ।
🎈 मेरे मित्र ने कहा पंडित जी आपने बताया जिसने सुनी उसे फायदा हुआ, जिसने नहीं सुनी उसे नुकसान हुआ लेकिन वह कथा/मन्त्र क्या है। 

⛳पंडितजी निरुत्तर।
खैर कथा समाप्त होने के बाद मेरे 

🎈मित्र ने उसी गोबर गणेश को उठाया और उसे गोल-गोल करके पेड़ा (मिठाई) का आकार देकर ,,,,,, पंडित जी से कहा यह लो पंडितजी प्रसाद के रूप में पेड़ा खाओ। 
⛳पंडितजी ने कहा यह तो गोबर है इसे कैसे खाऊ।

🎈 मित्र ने कहा मान लो पेड़ा है। 
⛳पंडितजी ने कहा ऐसे कैसे मान लूँ।

🎈 मित्र ने कहा मै कह रहा हूँ मान लो। 
⛳पंडितजी ने कहा क्यों ? 

🎈मित्र ने कहा आपने मुझे गोबर को गणेश मानने के लिए कहा,  मैंने मान लिया, फिर आप क्यों नहीं मानोंगे।

⛳ पंडितजी की सिट्टी पिट्टी गुम। थैला लेकर भागने लगे।

 हम लोगों ने उनकी साईकिल पकड़ी और कहा ठीक है यह नहीं खाओगे तो जो प्रसाद (गुड चना की दाल) बना है उसे तो खा लो।
 ⛳पंडितजी ने थैली देकर कहा कि इसमें दे दो। हम लोगों ने कहा कि प्रसाद मेरे साथ आप भी खाओ। उन्होंने नही खाया और पूछने पर कहा कि मै "आपके घर का प्रसाद " नही खा सकता। 

🎈हमने पूछा क्यों ? वही उत्तर आप नीच जाति के हो। फिर मैंने पूंछा अभी आपने कथा में कहा था कि जिसने प्रसाद का तिरस्कार किया उसका सर्वनाश हो गया था, लेकिन आप ही प्रसाद का तिरस्कार कर रहे हैं।
 हम लोगो को यहाँ मुर्ख बनाने आते हो क्या ?❓
⛳ पंडितजी साईकिल छोडकर भागने लगे। हमने पूंछा अच्छा यह तो बताते जाओ की जो हर बार बचा हुआ प्रसाद ले जाते थे उसका क्या करते थे ?❓ 
⛳पंडितजी यह कहते हुए भाग गए कि वह प्रसाद मेरे जानवर खाते हैं।

साथियों मेरा अनुरोध है किसी बात को मानने से पहले जानो। जो प्रसाद आप खाते हो , वाही प्रसाद उनके जानवर खाते हैं अर्थात आपकी गिनती उनकी निगाह में जानवरों के समान है।  मानसिक गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ दो। उनकी निगाह में जानवरों के समान है। 

सोंचों और सत्य नारायण कथा सुनना बंद करो।

 मानसिक गुलामी की बेड़ियाँ तोड़ दो।
जय भीम🙏

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