जलियां वाला हत्याकांड का सच :
जलियां वाला काण्ड के बारे में जो बताया गया या जो बताया जाता है, वह सत्य नहीं है. हमें बताया गया- "रौलेट एक्ट का विरोध करने के लिए एक सभा हो रही थी, जिसमें जनरल डायर नामक एक अँग्रेज ऑफिसर ने अकारण उस सभा में उपस्थित भीड़ पर गोलियाँ चलवा दी थी."
परन्तु हकीकत में ये मींटिग न तो स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा थी और न इसका संबंध अंग्रेजी शासन या रौल्ट एक्ट का विरोध करना था.
ये मीटिंग प्रथम विश्व युद्ध से जिन्दा बचे पंजाब के अछूत सैनिकों ने दरबार साहब के जत्थेदारों के छुआछूत और जातिवादी रवैये को उजागर करने के लिये बुलायी गयी थी.
1918 में प्रथम विश्व युद्ध समाप्त हुआ. इस युद्ध में अंग्रेजी सेना की तरफ से पंजाब के बहुत से सैनिकों को भी युद्ध में भेजा गया था. प्रथम विश्व युद्ध के खत्म होने पर जो अछूत जिन्दा बच गये थे, वे 1919 में पंजाब वापिस लौट आये. उन्होंने सोचा, हमारी जान बची है, गुरू का धन्यवाद करना चाहिये.
वे लोग इकट्ठा होकर दरबार साहब अमृतसर स्वर्ण मन्दिर गये, मगर उनको अन्दर नहीं जाने दिया गया, उनका अपमान किया गया, उनको गालियां दी गयीं. वे वापिस आये. उन्होने फैसला किया कि एक बैठक बुलायेंगे, और लोगों को बतायेंगे कि उनको दरबार साहब में नहीं घुसने दिया गया. उन्होंने 13 अप्रैल 1919, बैशाखी के दिन जलियां वाला बाग में अपनी मीटिंग रखी, जिसमें करीब पांच हजार लोगों ने भाग लिया. जब मींटिंग चल रही थी, जनरल डायर को मिसगाइड करके जत्थेदार करूर सिंह (जो सिमरजीत सिंह मान और अवतार राना के परिवार से थे) ने मीटिंग में शामिल लोंगों पर गोली चलवाई थी, जिसमें हजारों लोगों की जान गयी और कई हजार लोग घायल हुये थे.
इतना ही नहीं हत्याकांड के बाद जनरल डायर को दरबार साहब बुलाकर सम्मान दिया गया, सरोपा दिया गया, उसको पार्टी दी गयी.
totally fake
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