विद्या की देवी सरस्वती नहीं
सावित्रीबाई फुले है।
मुझे आश्चर्य होता है की शुद्र समाज के
लोग (मराठा, रेड्डी, खम्मा, जाट,
वन्नियार, नायर), पिछड़ी जात (ओ. बी.
सी.) और अनुसूचित जाती और जनजाति के
कुछ लोग सरस्वती को विद्या की देवी
समझते है और पूजते है। ये सभी लोग इतना
नहीं जानते के वोह देवी उनकी नहीं है, अगर
होती तो आप को गुलाम कभी न होने देती
ना ही आपको अनपढ़ रखती और ना ही
आपका पतन होता। लेकिन अशिक्षा के
वजह से हमारे बहुजन, मूलनिवासी लोगों के
भेजे में ये बात नहीं घुसती।विद्या की इस
देवी सरस्वती ने कौन सा बड़ा ग्रन्थ
लिखा है? कौन सा विद्यालयस्थापित
किया है? क्या किया है इसने विद्या
यानी की शिक्षा के प्रसार के लिए? अगर
ये सरस्वती विद्या की देवी होती तो
बहोत सारे वैज्ञानिक आविष्कार पश्चिम
के देशों में ही क्यों हो गए? क्यों नहीं
सरस्वती की कृपा से भारत देश में जिन्दगी
बदल देने वाला आविष्कार नहीं हुआ? हवाई
जहाज, फ़ोन, कंप्यूटर, टीवी, रेल बिजली,इस
सभी का आविष्कार पश्चिम के देशो में ही
क्यों? अगर वाकई ये देवी सरस्वती शिक्षा
की देवी होती तो आज भारत देश के पचास
करोड़ से भी ज्यादा आबादी शिक्षा से
वंचित न रहती।
हम लोगों के लिए शिक्षा की देवी
महात्मा फुलेजीकी पत्नी सावित्रीबाई
फुले है, जिन्होंने सर्वप्रथम हम लोगोके लिए
शिक्षा के द्वार खोल दिए। उन्होंने हम
लोगों के लिए हरामी ब्राह्मणों की
गालिया सेहन की, रक्तपिपासु ब्राह्मण
जात के लोग उनको पत्थर मारते थे , गोबर,
कीचड़ फ़ेंक के मारते थे फिर भी उन्होंने हम
लोगों केलिए सब कुछ सेह लिया।
सावित्रीबाई फुलेजी अपने साथ पहनने के
लिए अतिरिक्त कपडे लेके घर से निकलती
थी, क्यों की अगर कीचड़ से कपडे ख़राब
होते तो वो हम लोगो को पढ़ा नहीं
सकती थी, इसीलिए अपने साथ एक
अतिरिक्प्त कपडा रख लेती थी। हम
लोगो के लिए शिक्षा की देवी सरस्वती
नहीं बल्कि सावित्रीबाई फुले और है।
इसीलिए मेरे भाई
बहनों अपने लोगो को पहचानो, उनका
इतिहास पढो और ब्राह्मणवाद से पैदा
हुयी इस देवी सरस्वती की असलियत
पहचानो। बाकी आप कीमर्जी।
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