बौद्ध संगीतिया
प्रथम बौद्ध संगीति' का आयोजन (483BC)
'प्रथम बौद्ध संगीति' का आयोजन 483 ई.पू. में राजगृह (आधुनिक राजगिरि), बिहार की 'सप्तपर्णि गुफ़ा' में किया गया था। तथागत गौतम बुद्ध के महापरिनिर्वाण के तुरंत बाद ही इस संगीति का आयोजन हुआ था। इसमें बौद्ध स्थविरों (थेरों) ने भाग लिया और तथागत बुद्ध के प्रमुख शिष्य महाकाश्यप ने उसकी अध्यक्षता की। चूँकि तथागत बुद्ध ने अपनी शिक्षाओं को लिपिबद्ध नहीं किया था, इसीलिए प्रथम संगीति में उनके तीन शिष्यों-'महापण्डित महाकाश्यप', सबसे वयोवृद्ध 'उपालि' तथा सबसे प्रिय शिष्य 'आनन्द' ने उनकी शिक्षाओं का संगायन किया।
▶द्वितीय बौद्ध संगीति (383 BC)
एक शताब्दी बाद बुद्धोपदिष्ट कुछ विनय-नियमों के सम्बन्ध में भिक्षुओं में विवाद उत्पन्न हो जाने पर वैशाली में दूसरी संगीति हुई। इस संगीति में विनय-नियमों को कठोर बनाया गया और जो बुद्धोपदिष्ट शिक्षाएँ अलिखित रूप में प्रचलित थीं, उनमें संशोधन किया गया।
▶तृतीय बौद्ध संगीति (249 BC)
बौद्ध अनुश्रुतियों के अनुसार बुद्ध के परिनिर्वाण के 236 वर्ष बाद सम्राट अशोक के संरक्षण में तृतीय संगीति 249 ईसा पूर्व में पाटलीपुत्र में हुई थी। इसकी अध्यक्षता प्रसिद्ध बौद्ध ग्रन्थ 'कथावत्थु' के रचयिता तिस्स मोग्गलीपुत्र ने की थी। विश्वास किया जाता है कि इस संगीति में त्रिपिटक को अन्तिम रूप प्रदान किया गया। यदि इसे सही मान लिया जाए कि अशोक ने अपना सारनाथ वाला स्तम्भ लेख इस संगीति के बाद उत्कीर्ण कराया था, तब यह मानना उचित होगा, कि इस संगीति के निर्णयों को इतने अधिक बौद्ध भिक्षु-भिक्षुणियों ने स्वीकार नहीं किया कि अशोक को धमकी देनी पड़ी कि संघ में फूट डालने वालों को कड़ा दण्ड दिया जायेगा।
चतुर्थ बौद्ध संगीति में थोड़ा मतभेद है क्यों की इस समय तक बौद्ध सम्प्रदय में दरार पड़ चुकी थी और बौद्ध हीनयान और महायान सम्प्रदाय में बट चुके थे।
▶चतुर्थ बौद्ध संगीति (थेरावदा )
1 शताब्दी ईसा पूर्व में श्रीलंका में आयोजित किया गया था जिस में पहली बार त्रिपिटक को ताड़ के पत्तों पर लिखा गया था। इस का कारण यह था की उस साल श्रीलंका में आकाल पड़ा था और बहुत से बौद्ध भिक्षु भूख के कारण मर रहे थे और उन्हें त्रिपिटक के उपदेशो का अपने साथ खत्म हो जाने का खतरा महसुस हुआ और उन्होंने त्रिपिटक को लिख कर संरक्षित करने का फैसला लिया गया क्यों की इस से पहले त्रिपिटक को मुह -जुबानी याद रखा जाता था औरइस संगीति में त्रिपिटक को ताड़ के पत्तों पर पहली बार लिखा गया । चतुर्थ बौद्ध संगीति (थेरावदा ) का आयोजन तम्बपन्नी ( श्रीलंका ) में राजा वत्तागमनी ( 103-77 ईसा पूर्व) के संरक्षण में किया गया। यह थेरावदा बौद्ध सम्प्रदाय की बौद्ध संगीति थी।
▶चतुर्थ बौद्ध संगीति (महायान)
चतुर्थ और अंतिम बौद्ध संगीति कुषाण सम्राट कनिष्क के शासनकाल (लगभग 120-144 ई.) में हुई। यह संगीति कश्मीर के 'कुण्डल वन' में आयोजित की गई थी। इस संगीति के अध्यक्ष वसुमित्र एवं उपाध्यक्ष अश्वघोष थे। अश्वघोष कनिष्क का राजकवि था। इसी संगीति में बौद्ध धर्म दो शाखाओं हीनयान और महायान में विभाजित हो गया।
हुएनसांग के मतानुसार सम्राट कनिष्क की संरक्षता तथा आदेशानुसार इस संगीति में 500 बौद्ध विद्वानों ने भाग लिया और त्रिपिटक का पुन: संकलन व संस्करण हुआ। इसके समय से बौद्ध ग्रंथों के लिए पाली भाषा का प्रयोग हुआ और महायान बौद्ध संप्रदाय का भी प्रादुर्भाव हुआ। इस संगीति में नागार्जुन भी शामिल हुए थे। इसी संगीति में तीनों पिटकों पर टीकायें लिखी गईं, जिनको 'महाविभाषा' नाम की पुस्तक में संकलित किया गया। इस पुस्तक को बौद्ध धर्म का 'विश्वकोष' भी कहा जाता है।
▶पांचवी बौद्ध संगीति
पांचवा बौद्ध परिषद राजा मिन्दन के संरक्षण में वर्ष 1871 में बर्मा के मांडले, में आयोजित की गई थी। इस परिषद् की अध्यक्षता जगरभिवामसा, नारिन्धाभीधजा और सुमंगल्समी ने की थी। इस परिषद के दौरान, 729 पत्थरों के ऊपर बौद्ध शिक्षाओं को उकेरा गया था।छठी बौद्ध परिषदछठी बौद्ध परिषद बर्मा के काबा ऐ यांगून में 1954 में आयोजित की गई थी। इस परिषद् को बर्मा सरकार का संरक्षण मिला था। इस परिषद् की अध्यक्षता बर्मा के प्रधानमंत्री यू नू ने की थी। इस परिषद का आयोजन बौद्ध धर्म के 2500 वर्ष पूरे होने की स्मृति में किया गया था।
▶ छठवीं बौद्ध संगीति
आधुनिक काल में छठी उल्लेखनीय बौद्ध परिषद का आयोजन गौतम बुद्ध की 2500वीं पुण्य तिथि के अवसर पर मई, 1954 से मई, 1958 के बीच यांगून (रंगून) में किया गया था। इस बैठक में म्यांमार (बर्मा), भारत, श्रीलंका, नेपाल, कंबोडिया, थाइलैंड, लाओस और पाकिस्तान के भिक्षु-समूह द्वारा समस्त पालि थेरवाद विधि ग्रंथों की समीक्षा तथा पाठ किया गया।
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