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सादर प्रणाम
साथियों ,
आजकल कुछ कथाकथित विद्वान एवं मिट्टी के शेर चारों तरफ़ चिल्लाते /चीखते घूम रहे हैं कि आरक्षण समाप्त होना चाहिये इससे प्रतिभा का हनन हो रहा है ,आरक्षण का आधार जाति नहीं आर्थिक होना चाहिये ?इस आरक्षण रूपी जंजीर के बाँधने से गधे धोड़ों से आगे रेस में निकल रहे हैं ,जो बहुत बड़ा ही अन्याय है !-
तो मित्रों प्रश्न बहुत बड़ा है इसलिये इसके प्रत्येक खंड पर विचार किया जाना चाहिये !-:
मेरा इस विषय में कहना है कि आरक्षण कोई महज सात दशक पुराना नहीं ,जिसकी शुरुआत 1947के बाद मानी जाती है !यदि कुछ लोग ऐसा मानते हैं तो निसंदेह वह बहुत बड़े बेवक़ूफ़ और अज्ञान हैं !इसलिये इस विषय पर बोलने से पहले उन्हे ठीक से भारत के इतिहास का अध्ययन करलेना चाहिये !
आरक्षण बहुत पुराना है जिसकी जड़ भारतीय इतिहास में 5 हजार वर्ष पूर्व तक जाती हैं ,जिसे "मनु "जैसे पाखंडी और मनुष्यता के दुश्मनों ने लागू क्या !ऐसे धूर्त और मक्कारो ने भारतीय जनमानस को पहले वर्गों में बाँटा तत्पश्चात आरक्षण का प्रावधान किया !ब्राह्ममण के लिये 100%शिक्षा में आरक्षण ,क्षत्रियों के लिये युद्ध शिक्षा व शासन में 100%आरक्षण ,वैश्य के लिये व्यापार में शतप्रतिशत आरक्षण और चौथे एवं अंतिम वर्ग को इन तीनो वर्गों की सेवा यानी गुलामी का आरक्षण !
दोस्तो यह आरक्षण सन् 1947ई .तक यथावत एवं उसके बाद थोड़े से बदलाव के साथ अनवरत रुप से आज भी जारी है !लेकिन मजे की बात ये कि इन 5हजार वर्षोके दौरान इस खुली गुंडा-गर्दी के खिलाफ़ किसी भी विद्वान ने आवाज़ उठाने की हिमाकत नहीं की ?जिस चौथे वर्ग ने इन तीनो आरक्षित वर्गों की पाँच हजार वर्ष तक गुलामी की ,इनके मरे हुए पशुओं को ढोया ,इनके कपड़े साफ़ किये ,इनके खेतों की जुताई की ,इनके लिये शीतल जल हेतु मिट्टी के घड़े तैय्यार किये ,इनके विश्राम हेतु चारपाई तैय्यार की ,यहाँ तक कि इनके मलमूत्रों को सिर पर ढोया ! तब इस अत्याचार के खिलाफ़ किसी समाज सुधार का ध्यान क्यों नहीं गया ?और आज स्वतंत्र भारत में उनके जीवन में सुधार एवं उनन्यन व समृद्धि हेतु संविधान में कुछ थोड़े बहुत प्रावधान क्या किये इनके लिये आफत आगई ?ये विरोध पर उतारू हो गये ? तुमको शर्म भी नहीं आती ?अरे बईमानों ये आरक्षण की अवधारणा हमारी नहीं ,अपितु तुम्हारे कथाकथित मनीषियों की थी जो किसी भी कीमत पर इसे बनाये रखना चाहते हैं ? तुम गधे और घोड़े की बात करते हो ?जंजीर बाँधने की बात करते हो ?तो सुनो ये जंजीर बाँधने का काम भी ,तुम्हारी षणयंत्रकरी योजनाओं का ही हिस्सा है ,अन्यथा आरक्षण का पुजारी महा भारत का द्रोणाचार्य एकलब्य जैसे वीर के हाथ का अँगूठा छल से काट कर ,एक घोड़े के पैरों में जंजीर बाँध कर ,उस अर्जुन जैसे गधे को आगे नहीं करता ? ऐसी प्रपंच युक्त एवं षणयंत्रकरी योजनाओं से इतिहास भरा पड़ा है !और बात करते हो जंजीरों की ,बात करते हो अन्याय की तुन्हे लज्जा नहीं आती ?"थू " तुम्हारी इस घिनौनी एवं घृणित दकियानूसी सोच पर !ये छल और प्रपंच तो तुम और तुम्हारे देवता ही कर सकते हैं !जो रात में ब्रह्म मुहूर्त के दौरान जब किसी स्त्री का पति स्नान के लिये बाहर जाता है ,तो इनके देवताअँधेरे का लाभ उठाकर उस स्त्री के छद्द्म पति के रुप में उसके साथ धोखा कर जाते हैं ,उसके साथ सम्भोग कर जाते हैं ,और उसके पति के आने से पूर्व नदारद भी हो जाते हैं ,जब तुम्हारे देवताओं का ये हाल रहा है तो तुम जैसे साधारण लोगों की क्या हालात होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है ?अरे जितना नीच काम आपके देवता करते थे उतना तो गुण्डे और बदमाश भी नहीं कर सकते करते ?जिन्हे अपनी योग्यता का सही से आंकलन नहीं वो दूसरों को गधा बताने का प्रयास करते हैं ?
यही नहीं धरम के नाम पर आज भी ब्राह्मणों का 100%आरक्षण है ,मंडलेश्वर ,महा मंडलेश्वर ,पीठाधीस्वर एवं शंकराचार्य जैसे धार्मिक पदों पर सिर्फ़ और सिर्फ़ ब्राह्मण ही विराजित होते हैं ,पर ये आरक्षण किसी को दिखाई नहीं देता क्यों ?क्या चमार ,धोबी ,पासी ,वर्मा ,यादव आदि इसके योग्य नहीं या फ़िर इन जातियों का काम सिर्फ़ ब्राह्मणों की जूतियाँ उठाना मात्र् है ?
आज भारत के मंदिरों से 80 हजार करोड़ सालाना होने वाली आय को आरक्षित ब्राह्मण ही डकार जाता है ये आरक्षण किसी को दिखाई नहीं देता ?
यदि बात की जाती है जातिगत आरक्षण की तो ये जातियां बनाई किसने उसने जो आज भी इसके नाम पर पग-पग पर अपमानित होता है ?या उसने जो इसके नाम पर अपनी झूठी श्रेष्ठता केआधार पर हजारों सालों से मुफ्त की रोटियाँ तोडता आया है ?ए आरक्षण कोई खैरात में नहीं मिला है उस खून पसीने की कमाई का एक छोटा सा हिस्सा है जिसे तुम जैसे तुच्छ सोच वाले इंसानों ने दबा कर रखा है जिसकी दम पर आज गधे और घोड़े की बात करते हो ?
आज तमाम आंकड़े बताते हैं कि भारत में महज 5%लोगों के पास उसकी कुल सम्पत्ति का 95%हिस्सा है और 95%लोगों के पास मातृ 5%!ए 5%वही लोग हैं जो आरक्षण का विरोध करते है?उसे समाप्त करने की वकालत करते हैं ?आरक्षण को समाप्त करने से पहले उस 95%सम्पदा का बँटवारा होना चाहिये जिसे 5%लोग दबाये बैठे हैं ?आरक्षण को समाप्त करने से पहले "आर्थिक जातिगत "जनगणना होनी चाहिये ?आरक्षण समाप्त करने से पहले ये बताना होगा कि विदेशों में जमा काला धन किस जाती के लोगों का है ?आरक्षण समाप्त करने से पहले देश में घोटले बाज नेताओं की जाती का खुलासा करना होगा जिससे पता तो चले कि आरक्षण का विरोध करने वाले देश का कितना भला चाहते हैं ?आरक्षण समाप्त करने से पहले नाम के पीछे से सर नेम हटाना पड़ेगा ?और आरक्षण समाप्त करने से पहले उच्च जातियों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध स्थापित करने होंगे ,जातिवाद को जड़से समाप्त करना होगा ?
आरक्षण विरोधी अपने आप को ज्यादा काबिल समझते हैं तो जब इस देश को हुण ,कुषाण ,मंगोल ,यूनान ,तुर्क ,मुगल और अंगेजों ने बारी -बारी से गुलाम बनाया ,तब इनकी काबिलियत क्या घास चरने गयी थी ?
मैं दावे के साथ कहता हूँ कि यदि आरक्षण विरोधियों की सुविधायें आरक्षण समर्थको के बराबर करदी जायें तो घोड़े के बात तो छोड़ो इनकी औकात सूअर जितनी भी नहीं रहेगी ?
आरक्षण समाप्त करने से पहले हर जगह शिक्षा ,स्वास्थ्य ,सड़क ,रेल,बेंक एवं विधुत का राष्ट्रीयकरण करना होगा ?हर जगह से निजीकरण समाप्त करना होगा ?आरक्षण समाप्त करने से पहले जल ज़मीन और जायदाद का बँटवारा भारत की जनता में समान रुप से करना होगा ?
यदि इससे पहले आरक्षण समाप्त हुआ तो सारा भारत निसंदेह ग्रह युद्ध की आग में दहक उठेगा !और तब उस युद्द को नियंत्रित करने के लिये भारत को नहीं बल्कि संयुक्त राष्ट्र संघ को कर्फ्यू लगाना पड़ेगा ,जिसकी जिम्बेदार स्वम भारत सरकार होंगी ?
परंतु फिलहाल ऐसा हम होने नहीं देंगे ,क्योंकि हमें अपने देश से प्रेम है !!
धन्यवाद !
दीपक कुमार (एडवोकेट)
आज़मगढ़।।
कृपया इस मेसेज को अधिक से अधिक फैलायें ताकि आरक्षण का विरोध करने वालों की समझ में आये कि आरक्षण का लाभ कौन ले रहा है !और उनके प्रश्न का सही जवाब भी उन्हे मिल सके !!
मित्र थोड़ा सा परिवर्तन कीजिये ये पांच हजार सालों से ब्राह्मण वाद नहीं है सातवीं शताब्दी तक तो देश बौद्ध मय था इसका वर्णन ह्वेनसांग ने दिया है और और जो यह ब्राह्मण मानसिक अपंग जात का खेल शुरू हुआ है वह 10 वीं शताब्दी के बाद से ही शुरू हुआ है। ब्राह्मण मानसिक अपंग इरानी है इसलिए अवेस्ता से संस्कृत के शब्द मिलते हैं। मुगलों के समय में जातिवाद पैदा हुआ है
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