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रामदेव बाबा और दलित समाज
मैं बात कर रहा हूँ, बाबा रामदेव की जिसे राजस्थान,गुजरात, मध्यपृदेश, के लोग लोकदेवता कहते हैं और कई राज्यो के दलित इन्हें अपना देवता पालनहार मुक्तिदाता भक्तो के भीरू और कई रूपों में पूजते है । दलित आदिवासी पिछड़े लोग वैसे तो कई देवी -देवता को पूजते हैं लेकिन बाबा रामदेव का स्थान सबसे ऊपर है ।
गत दौ सौ वर्षों में दलित समाज रामदेव मंदिर बनवाने , रूणिचा रामदेव की पैदल फेरी, पूजा पाठ, भजन जागरण आदि में जितना पैसा, समय ओर बुध्दि खर्च की है उसका लेखा - जोखा किया जाए तो आश्चर्य जनक तस्वीर सामने आयेगी ।
600 सो वर्ष पहले शायर मेघवाल के घर पैदा हुए जो कि अजमल ने अपने घर चोरी से मंगवा लिया ।
वर्तमान में रामदेवरा का क्या स्वरूप है यह सब जानते हैं ।
एक रोचक व दलितो से जुड़ा महत्वपूर्ण आर्थिक पहलू हैं ।
जबसे मैने होश संभाला आंखो के सामने रामदेव मंदिर ही देखा ।
अपनी किस्मत को चमकाने के लिए खूब भभूत लगाई ।
मैं तो क्या हर मौहल्लेवासी विपदा के समय रामदेव की चौंखट पर धोक देता था ।
लेकिन जो मांगा वह कभी नही मिला ।
आखिर महामानव बाबा साहेब , बुध्द व कबीर के उजाले के सम्पर्क में आया तो सारा मंद बुध्दी का अंधेरा मिट गया ओर एक वैकल्पिक सोच का रास्ता मिला जो सांईस पर आधारीत था ।
सच्चाई जो भी है रामदेव ने अछुतों से मेलमिलाप ज्यादा रखा और छूआछूत के खिलाफ आवाज उठाकर स्वर्ण बिरादरी से नाराजगी ली । इससे बढकर उन्होने कोई काम नही किया ।
वे न तो कृष्ण के अवतार थे, न कोई आलौकिक चमत्कारी शक्ति थे ।
जीवित समाधी लेना भी एक विवादित विषय हैं ।
मैने एक जगह यह भी पढा है कि उन्होने समाधी नही ली बल्कि हो सकता हे उनके विरोधियों ने हत्या कर गाड़ दिया ओर बाद में जीवित समाधी का किस्सा बनाकर देवता बना दिया ओर कमाई शुरू कर दी ।
उफनते दूध को ठण्डा करना भेरू राक्स को मारना , भंवर भाणेज को जीवित करना , मक्का से हवा में कटोरे मंगवाना ; समाधी के बाद हरजी भाटी को दर्शन देना आदि किस्से मनगढत हैं ।
इनके कोई सबूत नही हैं ।
इतिहास पर गौर करें तो पाऐंगे कि हरजी भाटी उस समय पैदा ही नही हुआ था ।
कुल मिलाकर धर्म के नाम पर भोली दलित समाज को लूटने के लिए यह किस्से गढे गये हैं। क्योंकि उस समय हमारा कोई देवता नही था । बाकी भगवान के मंदिर में स्वर्ण घुसने नही देते थे इसलिए दलितो ने रामदेव को अपना लिया और गली मौहल्लों को कच्चे - पक्के मंदिर से भर दिया ।
आज हालात यह हे की राजस्थान व आस पास के कई राज्यो के दलित लोग अंधविश्वास के मारे रामदेव के पीछे बरबाद हो रहे हैं ।
वे एक समाज सुधारक थे लेकिन उनके विचार को नजर अंदाज कर उन्हे देवता बनादिया और अपनी गाढी कमाई का पैसा रामदेव के नाम पर बनाये हुए जाल मैं फंसे जा रहे हैं ।
मजेदार बात यह कि स्वयं राजपूत समाज इन्हे अपना देवता नही मानते है क्योकि वो दलित थे लेकिन रामदेरा मंदिर पर होने वाली कमाई तंवर वंशज राजपूत डकार रहे हैं न पैसे का कोई हिसाब न कोई सरकार की दखल और न ही दलित समाज कि ओर से सवाल ।
राजपूतों के अलावा अन्य स्वर्ण लोग भी रामदेव को ज्यादा तवज्जों नही देते ओर आज भी रामदेव को ढेडो के देवता कहकर पूकारते हैं ।
मेने सम्पूर्ण दलित समाज को बाबा रामदेव की पूजा पाठ के कारण आर्थिक सामाजिक व अध्यन की दृष्टी से बर्बाद होते देखा है ।
आज दलित अपने लिए सामुदायक भवन नही बना सकते लेकिन रामदेव मंदिर चांदी से बनवाते है ।
रामदेव कि वजह से मेने दलित समाज को आगे बढने से रूकते हुए देखा हैं ।
दलित लोग काम धन्धा छोडकर रामदेव पेदल फेरी में महिनोः बरबाद कर देतै हैं ओर अन्य स्वर्ण लोग अपने धन्धे पर ध्यान देते हैं ।
ओर जब यह लोग वापस आते आते है तो पेर सूजे हुए कंकालनुमा शरीर तथा कई बिमारियाँ लेकर आते हैं ।
रामदेवरा मंदिर के आस -पास माहोल किसी नरक के समान होता हैं ।
चारों और गंदगी, अव्यस्थित भीड़, कोढियों की भरमार, मनचलों कि फौज, ढोंगी साधूसंतों के अखाड़े के माहोल में यहाँ किसी को आध्यात्मिक शांति कैसे मिल सकती हैं ।
वही किचड़ भरे तालाब में न जाने कितने लोग मरते हैः ।
रामदेव दर्शन के लिए रेलगाडियाँ नरक बन जाती हैं जीपों टैक्टरों से सड़क दुर्घटना में हर साल जितनी मोते होती हैं उनसे बचकर विकास की ओर बढे लेकिन दलित समाज फंसता जा रहा हैं ।
आज हमें रामदेव की तरह समाज में छूआछूत के खिलाफ आवाज उठाने कि हैं ।
हमें देवी- देवता कि बजाय महामानव बाबा साहेब व भगवान बुध्द के अदर्शों को अपनाना चाहिए ।
हमारी मुक्ती का मार्ग मंदिर की ओर नही हैं बल्कि मुक्ति अच्छि पढाई , रोजगार व उच्च विचार में हैं ।
नास्तिकवाद कि कलम से
अम्बेडकर वादी
।।जय भीम ।।
।। नमो बुध्दाय ।।
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