Thursday, January 21, 2016

उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र पार्ट-5, 7, 8

उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र पार्ट-5

नुक़्त-ए-पर्दाज़ी से इज़लफो को क्या
शेर से बज्जाजो, नद् दाफो को क्या
                         मीर तक़ी मीर

नुक़्त-ए-पर्दाज़ी=किसी पॉइंट की आलोचना
इज़लाफ़ो=जिल्फ़ का बहुबचन इज़लाफ,का बहुबचन।अरबी में इसे जमा-उल-जमा(बहुबचन का बहुबचन) कहते हैं।
जिल्फ़= नीच,असभ्य। इस्लामी फिक़्ह(विधि) में अज़लाफ़ कुछ ख़ास जातियो को कहते है। भारत सरकार के obc की लिस्ट में ज़्यादातर अज़लाफ जातियां हैं।
बज्जाज= कपड़ा बेचने वाले
नाद् दाफ़ = रूई धुन ने वाले, धुनिया मंसूरी

अर्थात:-
मीर तक़ी मीर कहते है कि साहित्य(अदब) की आलोचना करना सिर्फ अशराफ* लोगो का काम है। उसे नीच और असभ्य लोग क्या जाने, शेर को समझना बज्जाज और धुनिओ के बस का नहीं है।
* शरीफ{अच्छा, बड़ा} का बहुबचन,मुस्लिम उच्च वर्ग 
               फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी

उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र पार्ट-7

   मैं असल का ख़ास सोमनाथी
   हैं आबा मेरे लातीये मानाती
          है फलसफा आब व गिल में
          पिन्हा  है  रेशहा-ए-दिल में
   तू सैयद, हाशिम की औलाद
   मेरे कफ व खाल ब्रह्मननिज़ाद
                  अल्लामा इक़बाल

शब्दार्थ/ पेश-ए-मंज़र(पृष्टभूमि)-:

सोमनाथी=सोमनाथ मंदिर का पुजारी
आबा=पूर्वज
लातिये मनाती= लात और मनात के पुजारी,
मक्का के ये दो बहुत मशहूर देवता थें।असल में अरबी में इन्हें ला और मना उच्चारण(pronounce) करते है दरअसल अरबी ज़बान में वाक्य(जुमले) के आखिर में आने वाले शब्द(लफ्ज़)का "ते" साइलेंट हो जाता है और जब उस लफ्ज़ को नाउन(संज्ञा,इस्म) के तोर पे भी इस्तेमाल करते है तब भी "ते"साइलेंट हो जाता है और उसे "हे" लिखते है।जैसे सुरा जो सूरत है और  सुन्नत जो सुन्ना है।
फलसफा=फिलोसॉफी,दर्शन
आब=पानी
गिल=मिट्टी
पिन्हा=पेवस्त,deeply rooted
रेशा=महीन धागा
रेशाहा-ए-दिल= दिल को बनाने वाले मांस(अज़ला) के महीन धागे
सैयद=लफ़ज़ी माना(शाब्दिक अर्थ) सरदार, पेशवा, और बड़ा के होते हैं। लेकिन अपने को सैयद कहने वाले विदेशी मुस्लिम आक्रांता(हमलावर)  का ये दावा है कि वो हज़रात मुहम्मद की बेटी फातिमा के वंशज है।
हाशिम=हज़रत मुहम्मद के परदादा
कफ= हाथ की हथेली, पैर का तलवा
ख़ाल= स्किन, शरीर की चमड़ी
निज़ाद= असल, नसब,lineage, जाति।

विदेशी आक्रमणकारी मुस्लिमो द्वारा अपनी श्रेष्ठता(बड़प्पन) के बखान से आहत(ज़ख़्मी, injured) होकर अल्लामा इक़बाल ने अपनी जाति श्रेष्ठता(बड़प्पन) को साबित करते हुए खुद को सनातनी ब्राह्मण बताया।

अर्थात:-
अल्लामा इक़बाल कहते है कि असल में, मैं तो सोमनाथ के मंदिर का पुजारी हूँ। मेरे बाप दादा(मेरे पूर्वज) तो ला और मना देवता के पुजारी थे।
मैं तो फ़लसफ़ा के मिट्टी पानी से बना हूँ जो मेरे दिल की गहराईयो में धसा हुआ है।
फिर आगे कहते है कि अगर तू सैयद है तो होगा हाशिम की नस्ल(जाति) का, जिसका तुझे दावा है,मुझे उस से क्या?, मैं भी किसी से कम थोड़े ना हूँ, मेरे भी हाथ पैर की चमड़ी ब्राह्मणों की तरह सवर्ण(खुशरंग) है मैं भी ब्राह्मण जाति का हूँ।
               फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी
 सीनियर असिस्टेंट प्रोफेसर यूनानी मेडिसिन

उर्दू अदब का जातिवादी चरित्र पार्ट-8

यूँ तो सैयद भी हो मिर्ज़ा भी हो अफ़ग़ान भी हो
तुम  सभी कुछ  हो,  बताओ  मुसलमान भी हो
                           अल्लामा इक़बाल
पश-ए-मंज़र:-

मिर्ज़ा= मुग़ल अपने नाम के पहलेे मिर्ज़ा और नाम के बाद में बेग लिखते हैं।
अफ़ग़ान= अफगानिस्तान का रहने वाला

विदेशी आक्रमणकारी मुस्लिमो के बार बार के अपनी श्रेष्ठता(बड़प्पन) के बखान ने खिन्न(irritate, तंग) होकर अल्लामा इक़बाल उनको इस्लाम के मसावात की याद दिला कर शर्म दिलाते हुए कहते है।

अर्थात:- अल्लामा कहते है कि चलो मैं मान भी  लूँ कि तुम सैयद भी हो मुग़ल भी हो और ऊँची जाति के अफ़ग़ान भी हो, लेकिन इस्लाम में तो  इस बड़प्पन की कोई हैसियत नहीं और तुम फिर कैसे मुसलमान हो कि अपनी नस्ली (जातिगत) बड़प्पन का बखान दिन रात करते रहते हो। और बड़े शान से अपने नाम के आगे पीछे सैयद मिर्ज़ा जैसे जातिसूचक शब्द(नस्ली बड़प्पन की रौब डालने वाले अलक़ाब) का इस्तेमाल करते हो क्या तुम्हे शर्म नहीं आती?

नोट:- वो अलग बात है कि इस्लाम में "कुफु" के नाम पे सारा ऊँच नीच शामिल किया गया है। इस्लाम फिक़्ह(विधि) में नसब व नस्ल (जातिगत) के बड़प्पन को आधार मान कर शादी बियाह करने का हुक्म दिया गया है। देखे इस्लामी फिक़्ह(विधि)में वर्णित अध्याय "निकाह" का पाठ "कुफु"।
                फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी
सीनियर असिस्टेंट प्रोफेसर यूनानी मेडिसिन


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