🌻 नमो बुध्दाय 🌻
सुप्रभात--- आपका मगंल हो
शरद पूर्णिमा का समय था..बुद्ध एक गाँव से अपने शिष्य आनंद और स्वास्ति के साथ निकल रहे थे..अचानक एक व्यक्ति आया और बुद्ध से पूछ दिया.."तथागत..क्या ईश्वर है"?
बुद्ध ने पूछा "तुम्हें क्या लगता है?
आदमी सर झुकाया और धीरे से कहा" तथागत मुझे तो लगता है.. ईश्वर है" बुद्ध आनंद कि तरफ देखकर मुस्कराये और धीरे से कहा..."बिलकुल गलत लगता है तुम्हें"..इस अस्तित्व में ईश्वर जैसी कोई चीज नहीं"
आदमी हाथ जोड़ा और चला गया...
बुद्ध गाँव की पगडंडी पर आगे बढ़े.आह वही दिव्य स्वरूप..तेजोमयी शरीर.जो देखता अपलक देखता रह जाता...गाँव गाँव शोर हो जाता..बुद्ध आ रहे हैं.....
गाँव से निकलते ही एक और आदमी आया...और पूछा.."तथागत.मैं कई दिन से परेशान हूँ..मुझे लगता है कि ईश्वर और भगवान की बातें महज बकवास हैं"
बुद्ध हंसे.. आनंद स्वास्ति कि तरफ देखकर मुस्कराया..बुद्ध ने बड़े प्रेम से कहा..."मूर्ख तुम्हें बिल्कुल गलत लगता है..इस अस्तित्व में सिर्फ ईश्वर ही है और कुछ नहीं"
जरा देखो तो..आँख बन्द करो तो..खोजो तो एक बार"
इस जबाब को सुनकर आनंद और स्वस्ति आश्चर्य में पड़ गए...एक ही सवाल और दो जबाब..
दूसरे दिन कि बात है.... एक गाँव के बाहर रात्रि विश्राम हेतु बुद्ध रुके हुए हैं...आज तो स्वास्ति और आनंद भी थक गए...कितना पैदल चलना पड़ता है रोज....भोजन के लिए भिक्षा मांगनी पड़ती है..
तभी अचानक एक घबराये हुए आदमी का प्रवेश हुआ..वो बुद्ध के पास आया और जोर से कहा..."तथागत..क्या ईश्वर है? या नही है?..मैं परेशान हूँ.मैं खोज रहा हूँ...मार्गदर्शन करें"?
कहतें हैं इस तीसरे आदमी के सवाल पर बुद्ध चुप हो गए कुछ न बोले.... देर तक चुप रहे..मौन हो गए..आँख बन्द कर लिए..
लेकिन आनंद और स्वास्ति के आश्वर्य का ठिकाना न रहा....एक जैसे तीन सवाल और अलग अलग जबाब.. बुद्ध की ये चुप्पी हैरान कर गयी...
व्यक्ति के जाते ही..आनंद से रहा न गया..वो पूछ बैठा " तथागत..कल से लेकर आज तक तीन व्यक्ति एक ही तरह के सवाल लेकर मिले...लेकिन मैं हैरान हूँ कि आपने तीनों का अलग अलग जबाब दिया.मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा...
बुद्ध मुस्कराये..और स्वास्ति कि तरफ देखकर कहा.."आनंद..जो पहला व्यक्ति आया था..उसने मान लिया था कि ईश्वर है...मैं उसकी मान्यता को मिटा देना चाहता था...कि वो खोजना शुरू करे..ईश्वर है ये मानकर बैठ न जाय..वो सत्य तक पहुंचे.."
दूसरे व्यक्ति ने भी मान लिया था कि ईश्वर कि बातें कोरी हैं..मैंने उसके धारणा को भी मिटा दिया..ताकि वो भी खोजे कि ईश्वर है या नहीं...और तीसरा व्यक्ति अभी संशय में था..खोज रहा था..मैं मौन रह गया..वहां मौन रह जाना उचित था...
देखो आनंद इस संसार में कुछ भी मानने वाले लोग जानने से चूक जातें हैं. उनका विकास रुक जाता है जिनका स्वयं का कोई बोध नहीं होता....वो सत्य क्या है कभी नही जान पाते...
जान वही पाता है वो निरंतर खोज रहा..आनंद जानने कि यात्रा मुश्किल है.मानना आसान है....मानने में कोई खर्च नही. कोई परिश्रम।नही...कोई कह दिया..समझा दिया..मान लिया...लेकिन मानकर रुक जाने वाले लोग इस संसार के सबसे अभागे प्राणी हैं...आनंद..बोध के बिना ज्ञान व्यर्थ है"।
(आर.पी.एस.हरित,बामसेफ)
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