[कृपया ध्यान दें – यह लेख मुख्य: रूप से उस विचारधारा के लोगो पर
पर केन्द्रित हैजो जन्मआधारित जातिगत भेदभाव का पक्ष लेते हैं.
इसीलिए सभी लोगों से प्रार्थनाहै कि
हमारी समीक्षा को केवल इस घृणास्पद
प्रथा और ऐसी घृणास्पद प्रथा के सरंक्षक, पोषक
और समर्थकों के सन्दर्भ में देखा जाए न कि किसी
व्यक्ति, समाज और जाति के सन्दर्भ में. अग्निवीर हर
किस्म के जातिवाद को आतंकवाद का सबसे ख़राब और घृणित रूप मानता
है और ऐसी घृणास्पद प्रथा के सरंक्षक, पोषक और
समर्थकों को दस्यु. बाकी हम सब लोग, चाहे वो इंसान
के द्वारा स्वार्थवश बनाई गयी तथाकथित
छोटी जाति या ऊंची जाति का हो, एक परिवार,
एक जाति, एक नस्ल के ही हैं. हम अपने पाठकों से
निवेदन करते हैं कि वो ये न समझेंकि इस लेख को वैदिक विचारधारा
"वसुधैव कुटुम्बकम" के विपरीत
किसीव्यक्ति या वर्ग विशेष के लिए लिखा गया है. ]
जाति प्रथा से जुड़े हुए कुछ ऐसे तथ्य जिनके बारे में हमें पता होना
चाहिए और जिनके बारे में हम सोचें:
कृपया इसे लेख को आप हमारी श्रृंखला
की एक कड़ी के रूप में ही
पढ़े और विशेषत: लेख,
ब्राह्मण कौन है ?
जाति प्रथा के बारे में सबसे हँसी की बात ये
है कि जन्म आधारित जातिप्रथा अस्पष्ट और निराधार कथाओं पर
आधारित हैं. आज ऐसा कोई भी तरीका मौजूद
नहीं जिससे इस बात का पता चल सके कि आज के
तथाकथित ब्राह्मणों के पूर्वज भी वास्तविक ब्राह्मण
ही थे. विभिन्न गोत्र और ऋषि नाम को जोड़ने के बाद
भी आज कोई भी तरीका मौजूद
नहीं है जिससे कि उनके दावे की परख
की जा सके.
जैसे हम पहले भी काफी उदाहरण दे
चुके हैं की वैदिक समय / प्राचीन भारत में
एक वर्ण का आदमी अपना वर्ण बदल सकता था. कृपया
पढ़ें;
अगर हम ये कहें कि आज का ब्राह्मण [जाति / जन्म आधारित ]
शूद्र से भी ख़राब है क्योंकि ब्राह्मण 1000 साल
पहले चंडाल के घर में पैदा हुआ था, हमारे इस दावे को नकारने का
साहस कोई भला कैसे कर सकता है ? अगर आप ये कहें कि ये
ब्राह्मण परिवार भरद्वाज गोत्र का है तो हम इस दावे
की परख के लिए उसके DNA टेस्ट की
मांग करेंगे. और किसी DNA टेस्ट के अभाव में तथाकथित
ऊँची जाति का दावा करना कुछ और नहीं
मानसिक दिवालियापन और खोखला दावा ही है.
क्षत्रिय कौन है ?
ऐसा माना जाता है कि परशुराम ने जमीन से कई बार
सभी क्षत्रियों का सफाया कर डाला था. स्वाभाविक तौर पर
इसीलिए आज के क्षत्रिय और कुछ भी
हों पर जन्म के क्षत्रिय नहीं हो सकते!
अगर हम राजपूतों की वंशावली देखें ये
सभी इन तीन वंशों से सम्बन्ध रखने का
दावा करते हैं – 1. सूर्यवंशी जो कि सूर्य / सूरज से
निकले, 2. चंद्रवंशी जो कि चंद्रमा / चाँद से निकले, और
3. अग्निकुल जो कि अग्नि से निकले. बहुत ही
सीधी सी बात है कि इनमे में
से कोई भी सूर्य / सूरज या चंद्रमा / चाँद से
जमीन पर नहीं आया. अग्निकुल विचार
की उत्पत्ति भी अभी
अभी ही की है. किवदंतियों /
कहानियों के हिसाब से अग्निकुल की उत्पत्ति / जन्म
आग से उस समय हुआ जब परशुराम ने सभी
क्षत्रियों / राजपूतों का जमीन से सफाया कर दिया था.
बहुत से राजपूत वंशों में आज भी ऐसा शक / भ्रम है
कि उनकी उत्पत्ति / जन्म; सूर्यवंशी,
चंद्रवंशी, अग्निकुल इन वंशो में से किस वंश से हुई
है.
स्वाभाविक तौर से इन दंतकथाओं का जिक्र / वर्णन किसी
भी प्राचीन वैदिक पुस्तक / ग्रन्थ में
नही मिलता. जिसका सीधा सीधा
मतलब ये हुआ कि जिन लोगों ने शौर्य / सेना का पेशा अपनाया वो लोग
ही समय समय पर राजपूत के नाम से जाने गए.
ऊँची जाति के लोग चंडाल हो सकते हैं
अगर तथाकथित ऊँची जाति के लोग ये दावा कर सकते हैं
कि दूसरे आदमी तथाकथित छोटी जाति के हैं
तो हम भी ये दावा कर सकते हैं कि ये तथाकथित
छोटी जाति के लोग ही असली
ब्रह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हैं. और ये ऊँची जाति
के लोग असल में चांडालों की औलादें हैं जिन्होंने
शताब्दियों पहले सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था और सारा इतिहास मिटा /
बदल दिया था. आज के उपलब्ध इतिहास को अगर हम इन कुछ
तथाकथित ऊँची जाति के लोगों की उत्पत्ति /
जन्म की चमत्कारी कहानियों के सन्दर्भ
में देखें तो हमारे दावे की और भी पुष्टि हो
जाती है.
अबअगर किसी जन्मगत ब्राह्मणवादी को
हमारी ऊपर लिखी बातों से
बेईज्ज़ती महसूस होती है तो उसका
भीकिसी आदमी को तथाकथित
छोटी जाति का कहना अगर ज्यादा नहीं
तोकम बेईज्ज़ती की बात नहीं
है.
हम लोगों में से म्लेच्छकौन है ?
इतिहास से साफ़ साफ़ पता लगता है कि यूनानी, हूण,
शक, मंगोल आदि इनके सत्ता पर काबिज़ होने के समय में
भारतीय समाज में सम्मिलित होते रहे हैं. इनमे से कुछों
ने तो लम्बे समय तक भारत के कुछ हिस्सों पर राज भी
किया है और इसीलिए आज ये बता पाना बहुत मुश्किल
है कि हममे से कौन यूनानी, हूण, शक, मंगोल आदि
आदि हैं! ये सारी बातें वैदिक विचारधारा – एक मानवता –
एक जाति से पूरी तरह से मेल खाती है
लेकिन जन्म आधारित जातिप्रथा को पूरी तरह से उखाड़
देती हैं क्योंकि उन लोगो के लिए म्लेच्छ इन तथाकथित 4
जातियों से भी निम्न हैं.
जाति निर्धारण के तरीके की खोज में
आप ये बात तो भूल ही जाओ कि क्या वेदों ने जातिप्रथा
को सहारा दिया है या फिर नकारा है ? ये सारी बातें दूसरे
दर्जे की हैं. जैसा कि हम सब देख चुके हैं कि असल
में "वेद" तो जन्म आधारित जातिप्रथा और लिंग भेद के ख्याल के
ही खिलाफ हैं. कृपया देखें
. इन सारी बातों से भी ज्यादा
जरूरी बात ये है कि हमारे में से किसी के
पास भी ऐसा कोई तरीका नहीं
है कि हम सिर्फ वंशावली के आधार पर ये निश्चित कर
सकें कि वेदों कि उत्पत्ति के समय से हममे से कौन
ऊँची जाति का है और कौन
नीची जाति का. अगर हम लोगों के स्वयं
घोषित और खोखले दावों की बातों को छोड़ दें तो
किसी भी व्यक्ति के जाति के दावों को
विचारणीय रूप से देखने का कोई भी कारण
हमारे पास नहीं है.
इसलिए अगर वेदजन्म आधारित जातिप्रथा को उचित मानते तो वेदों में
हमें किसी व्यक्ति की जाति निर्धारण करने
का भरोसेमंद तरीका भी मिलना चाहिए था.
ऐसे किसी भरोसेमंद तरीके की
गैरहाजिरी में जन्म आधारित जातिप्रथा के दावे औंधे मुंह
गिर पड़ते हैं.
इसी वज़ह से ज्यादा से ज्यादा कोई भी
आदमी सिर्फ ये बहस कर सकता है कि हो सकता है
की वेदों की उत्पत्ति के समय पर जातिप्रथा
प्रसांगिक रही हो, पर आज की
तारीख में जातिप्रथा का कोई भी मतलब
नहीं रह जाता.
हालाँकि हमारा विचार ये है कि, जो कि सिर्फ वैदिक विचारधारा और तर्क
पर आधारित है, जातिप्रथा कभी भी प्रसांगिक
रही ही नहीं और जातिप्रथा
वैदिक विचारधारा को बिगाड़ कर दिखाया जाना वाला रूप है. और ये विकृति
हमारे समाज को सबसे महंगी विकृति साबित हुई जिसने
कि हमसे हमारा सारा का सारा गर्व, शक्ति और भविष्य
छीन लिया है.
नाम में क्या रखा है ?
कृपया ये बात भी ध्यान में रखें की गोत्र
प्रयोग करने की प्रथा सिर्फ कुछ ही
शताब्दियों पुरानी है. आपको किसी
भी प्राचीन साहित्य में 'राम
सूर्यवंशी' और 'कृष्ण यादव' जैसे शब्द
नहीं मिलेंगे. आज के समय में भी एक
बहुत बड़ी गिनती के लोगों ने अपने गाँव, पेशा
और शहर के ऊपर अपना गोत्र रख लिया है. दक्षिण भारत के लोग
मूलत: अपने पिता के नाम के साथ अपने गाँव आदि का नाम प्रयोग करते
हैं. आज की तारीख में शायद
ही ऐसे कोई गोत्र हैं जो वेदों की उत्पत्ति
के समय से चले आ रहे हों.
प्राचीन समाज गोत्र के प्रयोग को हमेशा
ही हतोत्साहितकिया करता था. उस समय लोगों
की इज्ज़त सिर्फ उनके गुण, कर्म और स्वाभाव को
देखकर की जाती थी न कि
उनकी जन्म लेने की मोहर पर. ना तो लोगों
को किसी जाति प्रमाण पत्र की जरूरत
थी और ना ही लोगों का दूर दराज़
की जगहों पर जाने में मनाही
थी जैसा कि हिन्दुओं के दुर्भाग्य के दिनों में हुआ करता
था. इसीलिए किसी की जाति
की पुष्टि करने के लिए किसी के पास कोई
भी तरीका ही
नहीं था . किसी आदमी
की प्रतिभा / गुण ही उसकी
एकमात्र जाति हुआ करती थी. हाँ ये
भी सच है कि कुछ स्वार्थी लोगों
की वज़ह से समय के साथ साथ विकृतियाँ
आती चली गयीं. और आज
हम देखते हैं कि राजनीति और बॉलीवुड
भी जातिगत हो चुके हैं. और इसमें कोई भी
शक की गुंजाईश नहीं है कि
स्वार्थी लोगों की वज़ह से ही
दुष्टता से भरी इस जातिप्रथा को मजबूती
मिली. इन सबके बावजूद जातिप्रथा की
नींव और पुष्टि हमेशा से ही पूर्णरूप से
गलत रही है.
अगर कोई भी ये दावा करता है कि शर्मा ब्राहमणों के
द्वारा प्रयोग किया जाने वाला गोत्र है, तो यह विवादास्पत है क्योंकि
महाभारत और रामायण के काल में लोग इसका अनिवार्य रूप से प्रयोग
करते थे, इस बात का कोई प्रमाण नहीं. तो हम ज्यादा
से ज्यादा ये मान सकते हैं कि हम किसी को
भी शर्मा ब्राह्मण सिर्फ इसीलिए मानते हैं
क्योंकि वो लोग शर्मा ब्राह्मण गोत्र का प्रयोग करते हैं. ये
भी हो सकता है कि उसके दादा और पड़दादा ने
भी शर्मा ब्राह्मण गोत्र का प्रयोग किया हो. लेकिन
अगर एक चंडाल भी शर्मा ब्राह्मण गोत्र का प्रयोग
करने लगता है और उसकी औलादें भी ऐसा
ही करती हैं तो फिर आप ये कैसे बता
सकते हो कि वो आदमी चंडाल है या फिर ब्राह्मण?
आपको सिर्फ और सिर्फ हमारे दावों पर ही भरोसा करना
पड़ेगा. कोई भी तथाकथित जातिगत ब्राह्मण यह बात
नहीं करता कि वो असल में एक चंडाल के वंश से
भी हो सकता है, क्योंकि सिर्फ ब्राहमणहोने से उसे
इतने विशेष अधिकार और खास फायदे मिले हुए हैं.
मध्य युग के बाहरी हमले
पश्चिम और मध्य एशिया के उन्मादी
कबीलों के द्वारा हजार साल के हमलों से शहरों के
शहरों ने बलात्कार का मंज़र देखा. भारत के इस सबसे काले और
अन्धकार भरे काल में स्त्रियाँ ही हमेशा से हमलों का
मुख्य निशाना रही हैं. जब भी कासिम,
तैमूर, ग़ज़नी और गौरी जैसे लुटेरों ने हमला
किया तो इन्होने ये सुनिश्चित किया कि एक भी घर ऐसा ना
हो की जिसकी स्त्रियों का उसके सिपाहियों
ने बलात्कार ना किया हो. खुद दिल्ली को ही
कई बार लूटा और बर्बाद किया गया. उत्तर और पश्चमी
भारत का मध्य एशिया से आने वाला रास्ता इस अत्याचार को सदियों से
झेलता रहा है. भगवान् करे कि ऐसे बुरे दिन किसी
भी समाज को ना देखने पड़ें. लेकिन हमारे पूर्वजों ने तो
इसके साक्षात् दर्शन किये हैं. अब आप ही बताइए कि
ऐसे पीड़ित व्यक्तियों के बच्चों को तथाकथित जातिप्रथा के
हिसाब से "जाति से बहिष्कृत" लोगों के सिवाय और क्या नाम दे सकते
हैं ? लेकिन तसल्ली कि बात ये है कि ऐसी
कोई बात नहीं है.
हमारे ऋषियों को ये पता था कि विषम हालातों में स्त्रियाँ
ही ज्यादा असुरक्षित होती हैं.
इसीलिए उन्होंने "मनु स्मृति" में कहा कि " एक
स्त्री चाहे कितनी भी पतित
हो, अगर उसका पति उत्कृष्ट है तो वो भी उत्कृष्ट बन
सकती है. लेकिन पति को हमेशा ही ये
सुनिश्चित करना चाहिए कि वो पतित ना हो.
ये ही वो आदेश था जिसने पुरुषों को स्त्रियों
की गरिमा की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया
और भगवन ना करे, अगर फिर से कुछ ऐसा होता है तो पुरुष फिर से
ऐसी स्त्री को अपना लेंगे और अपने एक
नए जीवन की शुरुआत करेंगे. विधवाएं दुबारा
से शादी करेंगी और बलात्कार
की शिकार पीड़ित स्त्रियों का घर बस पायेगा.
अगर ऐसा ना हुआ होता तो हमलावरों के कुछ हमलों के बाद से
हम "जाति से बहिष्कृत" लोगों का समाज बन चुके होते.
निश्चित तौर से, उसके बाद वाले काल में स्त्री गरिमा और
धर्म के नाम पर विधवा और बलात्कार की शिकार स्त्रियों
के पास सिर्फ मौत, यातना और वेश्यावृति का ही रास्ता
बचा. इस बेवकूफी ने हमें पहले से भी
ज्यादा नपुंसक बना दिया.
कुछ जन्म आधारित तथाकथित ऊँची-जातियों के ठेकेदार
इस बात को उचित ठहरा सकते हैं कि बलात्कार की
शिकार स्त्रियाँ ही "जाति से बहिष्कृत" हो
जाती हैं. अगर ऐसा है तो हम सिर्फ इतना
ही कहेंगे कि ये विकृति की हद्द है.
बाकी अगले भाग में...
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