Tuesday, January 5, 2016

कोरेगांव की महार क्रांति (1जनवरी 1818)

#######-------------🎯🎯🎯🎯🎯🎯 कोरेगांव की महार क्रांति
(1जनवरी 1818)
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संसार के इतिहास में पहली बार हमारे पुरखों द्वारा
एक ऐसा घमासान युद्ध लड़ा गया, जिसमेेें बाप और बेटा एक साथ जंग लड़े और जंग जीती  है।

 🎯 कोरेगांव का परिचय: 
 
     कोरेगांव महाराष्ट्र प्रदेश के अन्तर्गत पूना जनपद की शिरूर तहसील में पूना नगर रोड़ पर भीमा नदी के किनारे बसा हुआ एक छोटा सा गांव है, इस गांव को नदी के किनारे बसा होने के कारण ही इसको भीमाकोरे गांव कहते हैं।इस गांव से गुजरने वाली नदी को भीमा नदी कहते हैं। इस गांव की पूना शहर से दूरी 16 मील है।

🎯पेशवाई शासकों का अमानवीय अत्याचार:

   इनके शासन में अछूतों पर   अमानवीय अत्यारों की बाढ थी।
1: "पेशवाओं
( ब्राह्मणों) के शासन काल में यदि कोई सवर्ण हिन्दू सड़क पर चल रहा हो तो वहां अछूत को चलने की आज्ञा नहीं होती थी ताकि उसकी छाया से वह हिन्दू भ्रष्ट न हो जाय।   अछूत को अपनी कलाई या गले में निशान के तौर पर  एक काला डोरा बांधना पडंता था। ताकि हिन्दू भूल से स्पर्श न कर बैठे।"
2: "पेशवाओं की राजधानी पूना में अछूतों के लिए राजाज्ञा थी कि वे कमर में झाडू बांधकर चलें।चलने से भूमि पर   उसके पैरों के जो चिन्ह बनें उनको उस झाडू से मिटाते जायें, ताकि कोई हिन्दू उन पद चिन्हों पर पैर रखने से अपवित्र न हो जाय। पूना में अछूतों को गले में मिट्टी की हाड़ी लटका कर चलना पड़ता था ताकि उसको थूकना हो तो उसमें थूके। क्योंकि भूमि पर थूकने से यदि उसके थूक से किसी हिन्दू का पांव पड़ गया तो वह अपवित्र हो जायेगा।"
     पेशवाओं के घोर   अत्याचारों के कारण महारों में अन्दर ही अन्दर असन्तोष व्याप्त था।वे पेशवाओं से इन जुल्मों का बदला लेने के लिए मौके की तलाश में थे।जब महारों का स्वाभिमान जागा,तब पूना के आस-पास के महार लोग पूना आकर  अंग्रेजों की सेना में भर्ती हुए।इसी का प्रतिफल कोरेगांव की लडाई का गौरवशाली इतिहास है।

🎯कोरेगांव की लडा़ई का गौरवशाली इतिहास:
   अंग्रेजों की बम्बई नेटिव इंफैंट्री
(महारों की पैदल फौज) फौज अपनी योजना के अनुसार 31दिसम्बर 1817 ई. की रात को कैप्टन स्टाटन शिरूर गांव से पूना के लिए अपनी फौज के साथ निकला। उस समय उनकी फौज "सेकेंड बटालियन फसर्ट रेजीमेंट" में मात्र 500 महार थे। 260 घुड़सवार और 25 तोप चालक थे। उन दिनों भयंकर सर्दियों के दिन थे। यह फौज 31दिसम्बर 1817 ई.की रात में 25 मील पैदल चलकर दूसरे दिन प्रात: 8 बजे कोरेगांव भीमा नदी के एक किनारे जा  पहुंची।
1जनवरी सन 1818 ई.को बम्बई की नेटिव इंफैन्टरी फौज( पैदल सेना) अंग्रेज कैप्टन स्टाटन के नेत्रत्व में नदी के एक तरफ थी।
दूसरी तरफ बाजीराव की विशाल फौज दो सेनापतियों रावबाजी और बापू गोखले के नेत्रत्व लगभग 28 हजार  सैनिकों के साथ जिसमें दो हजार अरब सैनिक भी थे,सभी नदी के दूसरे किनारे पार काफी दूर-दूर तक फैले हुए थे।"1जनवरी सन 1818को प्रात:9.30
बजे युद्ध शुरू हुआ।
 भूखे-थके
 महार अपने सम्मान के लिए बिजली की गति से लड़े। अपनी वीरता और बुद्धि बल से 'करो या मरो' का संकल्प के साथ समय-समय पर ब्यूह रचना बदल कर बड़ी कड़ाई के साथ उन्होंने पेशवा सेना का मुकाबला किया।युद्ध चल रहा था। कैप्टन स्टाटन ने पेशवाओं की विशाल सेना को देखते हुएअपनी सेना को पीछे हटने के लिए याचना की। महार सेना ने अपने कैप्टन के आदेश की कठोर शब्दों में भर्तसना करते हुए कहा हमारी सेना पेशवाओं से लड़कर ही मरेगी किन्तु उनके सामने आत्म समर्पण नहीं करेगी, न ही पीछे हटेगी,हम पेशवाओं को पराजित किए बिना नहीं हटेंगे।मर जायेंगे।यह महारों का आपसे वादा है।" महार सेना अल्पतम में होते हुए भी पेशवा सेनिकों पर टूट पड़े, तबाई मच गयी।लड़ाई निर्णायक मोड पर थी। पेशवा सेना एक-एक कदम पीछे हट रही थी। लगभग सांय 6 बजे महार सैनिक नदी के दूसरे किनारे पेशवाओं को खदेड़ते-खदेड़ते पहुंच गये और पेशवा फौज लगभग 9 बजे मैदान छोड़कर भागने लगी। इस लड़ाई में मुख्य सेनापति रावबाजी भी मैदान छोड़ कर भाग गया परन्तु दूसरा सेनापति बापू गोखले को भी मैदान छोड़कर भागते हुए को महारों ने पकड़ कर मार गिराया।इस प्रकार लड़ाई एक दिन और   उसी रात लगभग 9.30 बजे लगातार 12 घंटे तक लड़ी गयी जिसमें महारों ने अपनी शूरता और वीरता का परिचय देकर विजय हांसिल की।महारों की   इस विजय ने इतिहास में जुल्म करने वाले पेशवाओं के पेशवाई शासन का हमेशा के लिए खात्मा कर दिया। भारतीय इतिहास की यह घटना मूलनिवासियों के लिए एक अनूठी मिशाल बनकर हमेशा ऊर्जा प्रदान करती रहेगी।
🎯कोरेगांव का क्रान्ति स्तम्भ:
   कोरेगांव के मैदान में जिन महार सैनिकों ने वीरता से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त किया।उनकी याद में अंग्रेजों ने   उनके सम्मान में सन 1822 ई.में कोरेगांव में भीमा नदी के किनारे काले पत्थरों का क्रान्ति स्तम्भ का निर्माण किया। सन 1822  ई. में बना यह स्तम्भ आज भी महारों की वीरता की गौरव गाथा गा रहा है।महारों की वीरता के प्रतीक के रूप में अंग्रेजों ने जो विजय स्तम्भ बनवाया है, वहां उन्होंने महारों की वीरता के सम्बन्ध में अंग्रेजों ने स्तुति युक्त वाक्य लिखा-
 "One of the pr0udest  traimphs of the British Army in the eat  "ब्रिटिश सेना को पूरब के देशों में जो कई प्रकार की जीत हांसिल हुई उनमें यह अदभुत जीत है।
  इस स्तम्भ को हर साल 1 जनवरी को देश की सेना अभिवादन करने जाती थी। इसे सर्व प्रथम "महार स्तम्भ" के नाम से सम्बोधित किया जाता था। बाद में इसे विजय या फिर "जय स्तम्भ" के नाम से जाना गया।आज इसे क्रान्ति स्तम्भ के नाम से पुकारा जाता है, जो सही दृष्टि में ऐतिहासिक क्रान्ति स्तम्भ है।
   यह स्तम्भ 25 गज लम्बे 6गज चौडे और 6गज  ऊंचे एक प्लेट फार्म पर स्थापित 30 गज   ऊंचा है तथा जैसे-जैसे ऊपर जायेगा ,उसकी चौड़ाई कम होती जायेगी। जिसको सुरक्षा की दृष्टि से लोहे की ग्रिल से कवर किया गया है।
 इस लड़ाई में पेशवाओं की हार हुई और महार सैनिकों के दमखम की वजय से अंग्रेज विजयी हुए।कोरे गांव के युद्ध में 20 महार सैनिक   और 5  अफसर शहीद हुए। शहीद हुए महारों के नाम,  उनके सम्मान में बनाये गये स्मारक(स्तम्मभ) पर  अंकित हैं। जो इस प्रकार हैं-
1:गोपनाक मोठेनाक
2:शमनाक येशनाक
3:भागनाक हरनाक
4:अबनाक  काननाक
5:गननाक  बालनाक
6:बालनाक  घोंड़नाक
7:रूपनाक  लखनाक
8:बीटनाक  रामनाक
9:बटिनाक  धाननाक
10:राजनाक  गणनाक
11:बापनाक  हबनाक
12:रेनाक  जाननाक
13:सजनाक  यसनाक
14:गणनाक  धरमनाक
15:देवनाक    अनाक
16:गोपालनाक  बालनाक
17:हरनाक  हरिनाक
18जेठनाक  दीनाक
19:गननाक  लखनाक 
     इस लड़ाई में महारों का नेत्रत्व करने वालों के नाम निम्न थे-
रतननाक
जाननाक
और भकनाक   आदि
इनके नामों के आगे सूबेदार, जमादार, हवलदार  और तोपखाना आदि उनके पदों का नाम लिखा है।
 इस संग्राम में जख्मी हुए योद्धाओं के नाम निम्न प्रकार हैं-
1:जाननाक
2:हरिनाक
3:भीकनाक
4:रतननाक
5:धननाक
 आज भी महार रेजीमेंट के सैनिकों बैरी कैप पर कोरेगांव की लड़ाई की याद में बनाए इस स्तम्भ की निशानी को अंकित किया गया है।
 बाबासाहेब डा. आम्बेडकर हर साल 1जनवरी को अपने शहीद हुए पूर्वजों को श्रद्धार्पण करने कोरेगांव जाते थे। आज   इस पवित्र स्मारक पर लाखों की संख्या में लोग  अपने पुरखों को श्रद्धा सुमन  अर्पित करने आते हैं।

सन्दर्भ: कोरेगांवकी महार क्रान्ति.

🌷 सबका मंगल हो 🌷

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