Tuesday, January 5, 2016

कनिष्क के काल में बौद्ध धर्म ने उसी प्रकार उन्नति की जिस प्रकार सम्राट अशोक के काल में

कनिष्क के काल में बौद्ध धर्म ने उसी प्रकार उन्नति की जिस प्रकार सम्राट अशोक के काल में

कुषाण मौर्य काल में भारत आने वाले प्रमुख विदेशी जातियों में से एक थी ,और यह लोग मूलतः मध्य एशिया "यू ची " जाति की एक शाखा थी ,चीन के प्रसिद्ध इतिहास कार सु मा चीन के अनुसार यह जाती दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में पश्चिम चीन में निवास करते थे ,कुई शुआंग राज्य पर इनका अधिकार था ,लगभग 163 ईसा पूर्व में इन पर हिंग नू कबीले ने आक्रमण कर दिया था ,और इनके राजा यु ची को मार दिया ,और यह लोगो ने अपनी विधवा रानी के नेतृत्व में वु सुन प्रदेश पर अधिकार कर लिया सरदारिया से ताहिया पहुंचे ,ताहिया और बैक्टीरिया सोग्दियाना पर उन्होंने आक्रमण कर दिया जहा हिन्दी यूनानियों लोग राज करते थे ,और उन्हें जीत लिया किन- ची को अपनी राजधानी बनाया
206-220ई तक कुषाणों का इतिहास चीनी ग्रन्थ हान शू या तथा हाउ हान शू में मिलता है ,इस ग्रन्थ के अनुसार चु ची की एक शाखा सोग्दियाना पहुचने से पूर्व अपनी बड़ी शाखा से अलग हो कर तिब्बत की और चली गयी ,शेष पांच शाखाओं कुई शुआंग या कुषाण ,हीउ यी शुअांग्मी ,सितुं और तुमी को उनके एक सरदार क्यू क्यू कियो या कुजुल कडफाइसिस कुई शुआंग या कुषाण समाज की अध्क्षता में संघटित कर सम्राट बन गया

कुजुल कडफ़ाइसिस ने 15-65 ई तक राज किया और सचधर्मनिष्ट अभिलेख के अनुसार इस का धर्म शैव या बौद्ध था ,इस के बाद विम कदफिसस शासक बना जो कुजुल कडफ़ाइसिस का बेटा था और उस का काल 65 -78ई तक रहा और यह शैव मत को मानता था

इसके अतिरिक्त बौद्ध अनुश्रुति में भी कनिष्क को बहुत महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। बौद्ध धर्म में उसका स्थान अशोक से कुछ ही कम है। जिस प्रकार अशोक के संरक्षण में बौद्ध धर्म की बहुत उन्नति हुई, वैसे ही कनिष्क के समय में भी हुई।

इस के बाद सम्राट कनिष्क राजा बने कनिष्क को कुषाण वंश का तीसरा शासक माना जाता था किन्तु राबाटक शिलालेख के बाद यह चौथा शासक साबित होता है। संदेह नहीं कि कनिष्क कुषाण वंश का महानतम शासक था। उसके ही कारण कुषाण वंश का भारत के सांस्कृतिक एवं राजनीतिक इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान है। उसका राज्यारोहण काल संदिग्ध है। 100 ई. से 127 ई. तक इसे कहीं पर भी रखा जा सकता है, किन्तु सम्भावना यह भी मानी गई थी कि तथाकथित शक संवत, जो 78 ई. में आरम्भ हुआ माना जाता है, कनिष्क के राज्यारोहण की तिथि हो सकती है। कनिष्क के राज्यारोहण के समय कुषाण साम्राज्य में अफ़ग़ानिस्तान, सिंध का भाग, बैक्ट्रिया एवं पार्थिया के प्रदेश सम्मिलित थे। कनिष्क ने भारत में अपना राज्य मगध तक विस्तृत कर दिया।

किंवदंतियों के अनुसार कनिष्ठक पाटलिपुत्र पर आक्रमण कर अश्वघोष नामक कवि तथा बौद्ध दार्शनिक को अपने साथ ले गया था और उसी के प्रभाव में आकर सम्राट् की बौद्ध धर्म की ओर प्रवृत्ति हुई और उन्होंने बुद्ध धर्म अपना लिया ,इस से पहले वे मुख्य रूप से मिहिर (सूर्य) के उपासक थे। सूर्य का एक पर्यायवाची 'मिहिर' है,

सम्राट कनिष्क के काल में कनिष्क के संरक्षण में बौद्ध धर्म की चौथी संगीति (महासभा) उसके शासन काल में हुई। कनिष्क ने जब बौद्ध धर्म का अध्ययन शुरू किया, तो उसने अनुभव किया कि उसके विविध सम्प्रदायों में बहुत मतभेद है। धर्म के सिद्धांतों के स्पष्टीकरण के लिए यह आवश्यक है, कि प्रमुख विद्वान एक स्थान पर एकत्र हों, और सत्य सिद्धांतों का निर्णय करें। इसलिए कनिष्क ने काश्मीर के कुण्डल वन विहार में एक महासभा का आयोजन किया, जिसमें 500 प्रसिद्ध बौद्ध विद्वान सम्मिलित हुए। अश्वघोष के गुरु आचार्य वसुमित्र और पार्श्व इनके प्रधान थे। वसुमित्र को महासभा का अध्यक्ष नियत किया गया। महासभा में एकत्र विद्वानों ने बौद्ध धर्म के सिद्धांतों को स्पष्ट करने और विविध सम्प्रदायों के विरोध को दूर करने के लिए 'महाविभाषा' नाम का एक विशाल ग्रंथ तैयार किया। यह ग्रंथ बौद्ध त्रिपिटक के भाष्य के रूप में था। यह ग्रंथ संस्कृत भाषा में था और इसे ताम्रपत्रों पर उत्कीर्ण कराया गया था। ये ताम्रपत्र एक विशाल स्तूप में सुरक्षित रूप से रख दिए गए थे। यह स्तूप कहाँ पर था, यह अभी तक ज्ञात नहीं हो सका है। यदि कभी इस स्तूप का पता चल सका, और इसमें ताम्रपत्र उपलब्ध हो गए, तो निःसन्देह कनिष्क के बौद्ध धर्म सम्बन्धी कार्य पर उनसे बहुत अधिक प्रकाश पड़ेगा। 'महाविभाषा' का चीनी संस्करण इस समय उपलब्ध है।

इस के अलावा मथुरा और गन्धरा मूर्ति कला को भी बड़ा प्रोत्साहन दिया ,सम्राट कनिष्क के काल में ही बौद्ध धर्म भारत से निकल कर चीन और दक्षिण - पूर्व एशिया में फैला और इस का श्रेय कनिष्क को ही दिया जाना चाहिए की उन्होंने बुद्ध धर्म के प्रकाश से पुरे दक्षिण - पूर्व एशिया को रोशन कर दिया ,उनके काल में बोहत से बुद्ध स्तूप बने लेकीन अभी मिले स्तुपो ने उनका प्रसिद्ध स्तूप है पेशावर के पास मिला कनिष्का स्तूप उनके काल में बौद्ध धर्म ने उसी प्रकार उन्नति की जिस प्रकार सम्राट अशोक के काल में उन के समय में बौद्ध धर्म इराक ,ईरान और पूरे चीन और दक्षिण - पूर्व एशिया में फैला ,सम्राट कनिष्क के समय ने बुद्ध को उन्होंने अपने सिक्को पर भी आंकित करवाया ,और पुरे राज्य में हज़ारो बौद्ध स्तुपो का निर्माण करवाया ,जिस आज भी उनके प्रभाव वाले क्षेत्र में देखा जा सकता है

आज भी पाकिस्तान और अफगानिस्तान या भारत के पंजाब और हरियाणा में पाये जाने वाले ज्यादा तर बौद्ध स्मारक कनिष्क काल के ही है ,इन में से ज्यादा तर स्मारक तबाह हो गए है ,क्यों की पंजाब के रस्ते भारत पर बहुत विदेशी आक्रमण हुए और आक्रमकारी  इन सब स्मारकों को तबाह करते हुए ही आगे बढ़ाते थे ,लेकीन इन के निशान आज भी इन इलाको में देखे जा सकते है ,इस के अलावा गांधार और मथुरा काला में बुद्ध की मुर्तिया भी सम्राट कनिष्का का ही योगदान है ,उन की राजधानी पेशावर और मथुरा थी 

आज सम्राट कनिष्क के वंशज भारत में गुर्जर के नाम से जाने जाते हैअगर हम गुर्जर शब्द को चीनी भाषा में लिखेंगे को सम्राट कनिष्क के कबीले "यू ची "का नाम बनेगा ,जो गुर्जर या यू ची का संस्कृत में बिगाड़ा हुआ रूप है

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