Thursday, January 7, 2016

हिन्दू समाज में रहते हुए किसी भी प्रकार का विरोध नहीं कर सकते

आज मैं जब वंचित समाज की नई व पुरानी पीढी से मुखातिब होता हूँ तो एक जैसी ही पीड़ा सुनने को मिलती है | पुरानी पीढी रोटी की जद्दोजहद में कुछ शिक्षा हाँसिल करके जैसे तैसे करके थोड़ा सा आगे बढे कुछ वहीं के वहीं यथास्थिति में रहे | जो आगे बढे वो स्वर्ण वर्ग की अनुकम्पा के सहारे | जैसे ही ये लोग आगे निकले इनको हाथों हाथ धर्म के चंगुल में फँसा लिया गया | ये लोग न ही तो कभी अम्बेडकर साहब को जान सके और न ही उस विचारधारा को अपना सके जो उन्हे मानसिक दासता से मुक्त कर पाती | कारण यह कि अम्बेकरवादी विचारधारा का पूरे देश से ही सफाया करने की कोशिश की गई |शिशु केवल वही सीखता है जैसा कि उसे बाल्यावस्था में सिखाया जाता है | हमारा समाज अभी घुटनों के बल चलना भी नहीं सीखा था कि उसकी conditioning शुरू हो गई | उनके स्वाभिमान की हत्या कर दी गई | जिन जिन मूलनिवासी वर्ग के महापुरूषों ने स्वाभिमान की अलख जगाने का प्रयत्न किया उनके हर प्रयास को विफल करने की भरसक कोशिश हुई | नतीजा यह निकला की उनके विचारों को मुख्यधारा से अलग रखा गया | उनके विचारों को समकालिक व वर्तमान  शिक्षा में स्थान ही नहीं दिया गया और इसका परिणाम यह निकला कि पूरा समाज न केवल उनके विचारों से ही वंचित रहा अपितु सम्पूर्ण विकास बाधित हो गया | उन्हे केवल ब्रह्मा ,विष्णु , महेश , राम , कृष्ण , सीता , राधा , दुर्गा इत्यादि काल्पनिक देवी देवताओं का भय दिखा कर उनके हीे बतलाये मार्ग पर चलने के लिए तैयार कर लिया गया | जो अत्यन्त दयनीय अवस्था में थे उन्होने स्वाभाविक रूप से अपने उन्ही लोगों का अनुसरण किया जो पूरी तरह से उनकी गिरफ्त में आ चुके थे |   एक उदाहरण देना चाहुँगा कि आज भी बिना किसी तार्किकता का प्रयोग किये जब भी वंचित समाज का कोई व्यक्ति किसी हिन्दू धर्म के प्रतिष्ठान के सामने से गुजरता है तो वह अपने आपको सबसे बड़ा धार्मिक व्यक्ति होने का ढोंग करता है  | हाथ जोड़ता है , शीश झुकाता है और मन ही मन कुछ बड़बड़ाता है लगता है जैसे ईश्वर साक्षात सामने खड़े हैं | कोई ब्राह्मण यदि राह में मिल जाए तो अति विनम्रता का परिचय दिया जाता है विशेष प्रकार के शब्दों का प्रयोग करके उसके दिल में स्थान बनाने की कौशिश की जाती है | कितने अपाहिज बना दिये गए कभी अहसास ही नहीं हो पाया | उस अपमान को भी नियती मान कर स्वीकार कर लिया गया | ऐसा लगता मानों ब्राह्मण जाति में पैदा होना ही ईश्वर के बेहद करीब होना होता है | अगर किसी को ईश्वर की प्राप्ति करनी है तो इन बिचोलियों के बिना असम्भव है | बहुत सारे लोग कहते हैं कि बाबा साहब ने कहा कि उन्हे समाज के पढे लिखे लोगों ने धोखा दिया | सही है लेकिन इसके पीछे कारण यह है कि उनकी conditioning इस तरह से की गई है कि वे हिन्दू समाज में रहते हुए किसी भी प्रकार का विरोध नहीं कर सकते अन्यथा एक तो पहले ही से उनकी दशा खराब है मलेच्छ होने का तमगा तो उन्हे मिल ही चुका है अब धर्म विरुद्ध आचरण न जाने कौनसी मुसीबत खड़ी कर दे | ऊपर से यह भय की साथ स्वयं के समाज के लोग भी नहीं देंगे | 
जाएँ तो जाएँ कहाँ ? 
क्रमश: ...........
जय भीम 🙏🙏🙏
डॉ. दीपक

No comments:

Post a Comment