(Letter of शाक्य अमरेश सिंह कुशवाहा to Home Minister Rajnath Singh About Babasaheb Ambedkar )
आदरणीय राजनाथ सिंह जी,
"यदि बाबा साहब भीमराव आंबेडकर होते तो देश छोड़कर नहीं जाते।" जब से आपकी यह मारक पंक्ति सुनी है तब से सोच रहा हूं कि बाबा साहब होते तो और क्या क्या करते। आपने ठीक कहा, जब वे तब नहीं गए जब उनके समाज को तालाब से पानी तक पीने नहीं दिया गया, तो अब कैसे चले जाते। हम सब भूल गए कि यह बाबा साहब का संविधानवाद है कि जाति के नाम पर वंचित और प्रताड़ित किए जाने के बाद भी इतना बड़ा दलित समाज संविधान को ही अपनी मुक्ति का रास्ता मानता है। यह संविधान की सामाजिक स्वीकृति का सबसे बड़ा उदाहरण है। दलित राजनीतिक चेतना में संविधान धर्म नहीं है, बल्कि उसके होने का प्रमाण है।
खैर मैं यह सोच रहा हूं कि बाबा साहब होते तो और क्या क्या करते। इसी हिसाब से मैंने एक सूची तैयार की है।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो सौ चुनाव हार जाते पर कभी अपने विरोधी को नहीं कहते कि पाकिस्तान भेज दिए जाओगे। अपनी जान दे देते मगर किसी कमज़ोर क्षण में भी नहीं कहते कि खान-पान पर बहुसंख्यकवाद का फ़ैसला स्वीकार करो वरना पाकिस्तान भेज दिए जाओगे।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि मेरी भक्ति करो। मुझे हीरो की तरह पूजो। वो साफ साफ कहते कि भक्ति से आत्मा की मुक्ति हो सकती है, मगर राजनीति में भक्ति से तानाशाही पैदा होती है और राजनीति का पतन होता है। बाबा साहब कभी व्यक्तिपूजा का समर्थन नहीं करते। ये और बात है कि उनकी भी व्यक्तिपूजा और नायक वंदना होने लगी है।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि धर्म या धर्मग्रंथ की सत्ता राज्य या राजनीति पर थोपी जाए। उन्होंने तो कहा था कि ग्रंथों की सत्ता समाप्त होगी तभी आधुनिक भारत का निर्माण हो सकेगा।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि तार्किकता पर भावुकता हावी हो। वे बुद्धिजीवी वर्ग से भी उम्मीद करते थे कि भावुकता और ख़ुमारी से परे होकर समाज को दिशा दें, क्योंकि समाज को यह बुद्धिजीवियों के छोटे से समूह से ही मिलती है।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि देश छोड़कर मत जाओ। जरूर कहते कि नए अवसरों की तलाश ही एक नागरिक का आर्थिक कर्तव्य है। इसलिए कोलंबिया जाओ और कैलिफ़ोर्निया जाओ। उन्होंने कहा भी है कि इतिहास गवाह है कि जब भी नैतिकता और आर्थिकता में टकराव होता है, आर्थिकता जीत जाती है। जो देश छोड़कर एनआरआई राष्ट्रवादी बने घूम रहे हैं वो इसके सबसे बडे प्रमाण हैं। उन्होंने देश के प्रति कोरी नैतिकता और भावुकता का त्याग कर पलायन किया और अपना भला किया।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि पत्नी को परिवार संभालना चाहिए। क्या पहनना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने कहा था कि पति पत्नी के बीच एक दोस्त के जैसा संबंध होना चाहिए।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि हिन्दू राष्ट्र होना चाहिए। भारत हिन्दुओं का है। जो हिन्दू हित की बात करेगा वही देश पर राज करेगा। वे जरूर ऐसे नारों के ख़िलाफ़ बोलते। खुलकर बोलते।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो कभी नहीं कहते कि किस विरोधी का बहिष्कार करो। जैसा कि कुछ अज्ञानी उत्साही जमात ने आमिर खान के संदर्भ में उनकी फ़िल्मों और स्नैपडील के बहिष्कार का एलान कर किया है। डॉक्टर आंबेडकर आंख मिलाकर बोल देते कि यही छुआछूत है। यही बहुसंख्यक होने का अहंकार या बहुसंख्यक बनने का स्वभाव है।
यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते तो जैसे ही यह कहते कि धर्म और धर्मग्रंथों की सर्वोच्चता समाप्त होनी चाहिए। हिन्दुत्व में किसी का व्यक्तिगत विकास हो ही नहीं सकता। इसमें समानता की संभावना ही नहीं है। बाबा साहब ने हिंदुत्व का इस्तमाल नहीं किया है। अंग्रेजी के हिन्दुइज्म का किया है। उन्होंने संविधान की प्रस्तावना में सेकुलर नहीं लिखा तो हिन्दुत्व भी नहीं लिखा। बाबा साहब ने हिन्दू धर्म का त्याग कर दिया, लेकिन समाज में कभी धर्म की भूमिका को नकारा नहीं। आश्चर्य है कि संसद में उनकी इतनी चर्चा हुई, मगर धर्म को लेकर उनके विचारों पर कुछ नहीं कहा गया। शायद वक़्ता डर गए होंगे।
गृहमंत्री जी, आप भी जानते हैं कि आज बाबा साहब आंबेडकर होते और हिन्दू धर्म की खुली आलोचना करते तो उनके साथ क्या होता। लोग लाठी लेकर उनके घर पर हमला कर देते। ट्वीटर पर उन्हें सिकुलर कहा जाता। नेता कहते कि डॉक्टर आंबेडकर को आस्था का ख़्याल करना चाहिए था। ट्विटर पर हैशटैग चलता avoid Ambedkar । बाबा साहब तो देश छोड़कर नहीं जाते मगर उन्हें पाकिस्तान भेजने वाले बहुत आ जाते। आप भी जानते हैं वो कौन लोग हैं जो पाकिस्तान भेजने की ट्रैवल एजेंसी चलाते हैं! न्यूज चैनलों पर एंकर उन्हें देशद्रोही बता रहे होते।
क्या यह अच्छा नहीं है कि आज बाबा साहब भीमराव आंबेडकर नहीं हैं। उनके नहीं होने से ही तो किसी भी आस्था की औकात संविधान से ज्यादा की हो जाती है। किसी भी धर्म से जुड़े संगठन धर्म के आधार पर देशभक्ति का प्रमाण पत्र बांटने लगते हैं। व्यक्तिपूजा हो रही है। भीड़ देखकर प्रशासन संविधान भूल जाता है और धर्म और जाति की आलोचना पर कोई किसी को गोली मार देता है।
पर आपके बयान से एक नई संभावना पैदा हुई है। बाबा आदम के ज़माने से निबंध लेखन का एक सनातन विषय रहा है। यदि मैं प्रधानमंत्री होता। आपके भाषण से ही आइडिया आया कि छात्रों से नए निबंध लिखने को कहा जाए। यदि मैं डॉक्टर आंबेडकर होता या यदि बाबा साहब भीम राव आंबेडकर होते।
आशा है कि आप मेरे पत्र को पढ़कर आंबेडकर भाव से स्वागत करेंगे। मुस्कुरायेंगे। आंबेडकर भाव वो भाव है जो भावुकता की जगह तार्किकता को प्रमुख मानता है।
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