Tuesday, January 5, 2016

85 साल पहले, डा. आम्बेडकर ने...

85 साल पहले, डा. आम्बेडकर ने रात्रि के 9 बजे हिन्दू भारत का तानाबाना बुनने वाली मनुस्मृति-मनु के कानून के दहन संस्कार का नेतृत्व किया था। वह क्रिसमस का दिन था। 25 दिसंबर, 1927। लपटों ने अंधेरे आकाश में उजाला फैला दिया था। कुछ लोगों कहना है की आम्बेडकर ने ब्राहमणों की इस पुस्तक को सार्वजनिक रूप से नष्ट करने का निर्णय आखिरी क्षणों में लिया था, यह जल्दी में किया गया दहन था। कुछ लोग इसे आम्बेडकर के जीवन की गैर-महत्वपूर्ण घटना भी बताते हैं। इन बातों में कोई दम नहीं है। यह कार्यकर्म एक से नए साल की पूर्व संध्या पर जलाई जाने वाली बॉनफायर था, जिसमें एक बूढ़े व्यक्ति का पुतला जलाया जाता है। यह बूढ़ा व्यक्ति प्रतीत होता है पुराने साल का जो नए साल को जगह दे रहा है।  सन् 1938 में डॉ. आम्बेडकर ने टीवी परवटे को दिए गए एक साक्षात्कार में कहा था मनुस्मृति दहन हमने जानते-बुझते किया था। हमने यह इसलिए किया था क्योंकी हम मनुस्मृति को उस अन्याय का प्रतीक मानते हैं जो सदियों से हमारे साथ हो रहा है। उसकी शिक्षाओं के कारण हमें घोर गरीबी में जीना पड़ रहा है। इसलिए हमने अपना सब कुछ दांव पर लगाकर, अपनी जान हथेली पर रखकर यह काम किया (राइटिंग एंड स्पीचिज ऑफ डॉ. बाबा साहब इतिहास दिसंबर, २०१२) उस इतिहास निर्मात्री क्रिसमस की रात सभी कार्यकर्ताओं ने पांच पवित्र संकल्प लिए। manusmriti-dahan-divas1. मैं जन्म-आधारित चतुर्वर्ण में विश्वास नहीं रखता। 2. मैं जातिगत भेदभाव में विश्वास नहीं रखता। 3. मैं विश्वास करता हूं की अछूत प्रथा, हिन्दू धर्म का कलंक है और मैं अपनी पूरी ईमानदारी और क्षमता से उसे समूल नष्ट करने की कोशिश करूँगा l  4. यह मानते हुए की कोई छोटा-बड़ा नहीं है, मैं खानपान के मामले में, कम से कम हिन्दुओं के बीच, किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करूँगा l  5. मैं विश्वास करता हूँ की मंदिरों, पानी के स़्त्रोतों, स्कूलों और अन्य सुविधाओं पर बराबर का अधिकार है।  छ:ह लोगों ने दो दिन की मेहनत से सभा के लिए पंडाल बनाया था। पंडाल के नीचे गडढा खोदा गया था, जिसकी गहराई छह इंच थी और लम्बाई व चौड़ाई डेढ़-डेढ़ फीट। इसमें चंदन की लकड़ी के टुकड़े भरे हुए थे। गड्ढे के चारों कोनों पर खंभे गाड़े गए थे। तीन ओर बैनर टंगे थे। क्रिसमस कार्ड की तरह झूल रहे इन बैनरों पर लिखा था – मनुस्मृति दहन भूमि।  – ब्राहम्णवाद को दफनाओ। – छुआछूत को नष्ट करो ।  वे क्या सोच रहे थे ? उस समय डा. आम्बेडकर के दिमाग में क्या चल रहा था ? सन् 1927 का वह क्रिसमस भारत के लिए आज भी क्यों महत्वपूर्ण है ?  आम्बेडकर के लिए स्मृति साहित्य और विशेषकर मनुस्मृति…जन्म न की योग्यता को व्यक्ति की समाज में भूमिका का निर्धारक बनाता था, शूद्रों को गुलामों का दर्जा देता था और महिलाओं को गुमनामी की जिंदगी देता था। (रॉड्रिग्स, इसेन्शियल राइटिंग्स ऑफ बीआर आम्बेडकर, ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2002, 24)। इस संबंध में उनके लेखन से लिए गए डा. आम्बेडकर के प्रासंगिक विचार निम्नानुसार हैं: 1. मनुस्मृति : जला डालो  * ऐसा लग सकता है की मैं भारत को कानून देने वाले मनु की अनावश्यक रूप से कटु आलोचना कर रहा हूं। परंतु मैं जानता हूं की मैं अपनी पूरी ताकत लगा दूं तब भी मैं उनके भूत को नहीं मार सक ता। वे बिना शरीर की आत्मा की तरह जीवित हैं और आज भी उनकी बात सुनी जाती है और मुझे भय है की वे बहुत लंबे समय तक जीवित रहेंगे।

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