हम संविधान निर्माता हैं
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न हम हैं कोई जानवर
न हम कोई विधाता हैं
न हम कोई अत्याचारी
हम संविधान निर्माता हैं ।
कई सदी से रहते आये
हम इसी देश के वासी हैं
रहने लायक इसे बनाया
हम यहाँ के मूलनिवासी हैं ।
अपने कठिन परिश्रम से
हमने यह देश बनाया है
बाद में जितने बर्बर आये
इस धरती को लुटवाया है ।
मानवता का खण्डन करके
चार वर्ण उपजाया है
ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य ऊंच हैं
शूद्र को नीच बताया है ।
शूद्र को बांटा छूत अछूत में
इनमें भी भेद कराया है
किया हजारों टुकड़े इनके
जाति में जाति बनाया है ।
जाति जाति में भेद बताकर
आपस में लड़वाया है
सीधे साधे लोगों को
यह ब्राह्मण मूर्ख बनाया है ।
भाग्य और भगवान का धंधा
अपना खूब चलाया है
रचा काल्पनिक देवी देवता
अपनी पूजा करवाया है ।
बना के किस्म किस्म के मन्दिर
देवी देवता बैठाया है
मिले मुफ्त का खाना पानी
अपना जुगाड़ करवाया है ।
शिक्षा सम्पत्ति और सुरक्षा
सब पर अधिकार जमाया है
धर्म तुम्हारा सेवा करना
यह शूद्रों को बतलाया है ।
बना पुजारी मन्दिर का वह
उसे स्वर्ग का द्वार बताया है
धर्म का डर पैदा करके
वह जनता को लुटवाया है ।
अपनी मेहनत की रोटी को
दलित नहीं खा पाया है
ब्राह्मण बैठा मन्दिर द्वारे
बिन मेहनत हलुआ खाया है ।
मान शान सम्मान दलित का
ब्राह्मण नष्ट कराया है
मांगा यदि अधिकार कभी तो
उल्टे गाली पाया है ।
कई सदी तक दास बनाकर
सेवा अपनी करवाया है
कोई नहीं पूछ थी इसकी
वह अछूत कहलाया है ।
नहीं कोई कानून देश में
अपनी मर्जी मनवाया है
कैसे चलेगा यह समाज
एक मनुस्मृति रचवाया है ।
चरम हुआ है अत्याचार का
चहुंदिश हाहाकार हुआ
मानव की मानवता जागी
पैदा एक महार हुआ ।
भीमराव नाम था उसका
वह ब्राह्मण को ललकारा है
भेदभाव अब बन्द करो तुम
इस ब्राह्मण को धिक्कारा है ।
रोक न पाये ब्राह्मण उनको
वह असली पंडित कहलाया है
लिखा अकेले संविधान को
सबको अधिकार दिलाया है ।
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