Wednesday, January 6, 2016

सत्यनारायण बड़े हैं या न्यूटन ?

एक बार की बात है । फिजिक्स की क्लास थी और हमारे  प्रोफेसर उस दिन बहुत देरी से आये । सामान्यत: हम लोग अध्यापकों से कक्षा में न आने का कारण नहीं पूछते थे क्योंकिj यह नियमों के विरुद्ध था और क्लास न होने की स्थिति में कॉलेज की कैंटीन में बैठने का जो आनन्द था उसका कोई विकल्प ही नहीं था सो हम लोगों ने कुछ नहीं पूछा । लेकिन प्रोफेसर साहब ने खुद ही बताया " आज मेरे यहाँ सत्यनारायण की कथा थी सो मैं  लेट हो गया ।अब हम लोग कल न्यूटन को पढेंगे । हमें उनकी देर से आने की सफाई से कुछ लेना देना नहीं  था । सत्यनारायण की कथा के प्रति भी हमारा कोइ दुराग्रह नहीं था ,  सभी के यहाँ होती थी और हम सभी बचपन से सत्यनारायण के प्रति आदर भाव रखते थे और कथा में शामिल होते थे इसलिये कि  उसमें बाँटा जाने वाला हलुए का या पंजीरी का प्रसाद अत्यंत स्वादिष्ट होता था । 

फिर भी मुझे एक शरारत सूझी और मैं  पूछ ही बैठा " सर सत्यनारायण बड़े हैं या न्यूटन ? " सर ने कहा " मैं कुछ समझा नहीं । " मैंने कहा सर सत्यनारायण  की कथा में एक नाव के डूब जाने का ज़िक्र है जो प्रसाद खाने से ऊपर आ जाती है । " सर बोले " तो ? " मैंने कहा सर आपने बताया था कि न्यूटन ने कहा है जब तक किसी स्थिर वस्तु या चलित वस्तु पर बाहरी बल का प्रयोग न किया जाये न तो वह अपने स्थान से हटती है न ही गतिमान होती है । तो कथा में नाव प्रसाद खाने से ऊपर आ जाती है ,न्यूटन के हिसाब से तो नहीं आनी चाहिये । " सर कुछ सोच में पड़ गए  फिर कहा..  हाँ हो सकता है .. लेकिन कहानी में तो ऐसा होता ही है ।" मैंने कहा " सर साफ साफ बताइये आप कहेंगे तो हम न्यूटन को सही मानेंगे या सत्यनारायण को सही मानेंगे ।" सर कुछ देर सोचते रहे फिर उन्होंने  कहा " देखो भई न्यूटन भी अपनी जगह ठीक है और सत्यनारायण भी .. चलो भागो यहाँ से मुझे दूसरी क्लास लेने जाना है ।"

बहर हाल उस दिन तो हम लोग हँसते हँसते चले गए  । प्रोफ़ेसर साहब ने भी हमारा सवाल टाल  दिया । वैसे भी उनका दोष नहीं था , बचपन से ही घरों में सत्यनारायण की कथा सुनाई जाती है जिसमे एक कथा में अनेक कथाएं होती हैं । बहुत सारे लोग भक्तिभाव से कथा सुनते हैं । बचपन से यह कथा सुनने वाले बड़े होकर भी उन चमत्कारों में विश्वास करते हैं । विज्ञान में अलग बातें पढ़ते हैं , और धर्मग्रंथों में अलग बातें पढ़ते हैं  । दोनों बातों पर समान रूप से  विश्वास भी करते हैं  । विज्ञान उनका प्रोफेशन होता है और धर्म उनका जीवन । 

सत्यनारायण की कथा के बारे में बाद में अन्द्धश्रद्धा निर्मूलन समिति नागपुर के एक कार्यकर्त्ता एड्वोकेट गणेश हलकारे  ने बताया कि सन 1934 में इसी तरह का एक प्रश्न बाल ठाकरे के पिता श्री प्रबोधनकार ठाकरे जी ने पंडितों से किया था । उनकी काफ़ी प्रगतिशील सोच थी । उन दिनों  अंग्रेजो की शायद कोई लूसीतनिया नामकी नाव समुद्र  में डूब गई थी और उन्होंने पंडितों को  चैलेंज किया था कि अगर सत्यनारायण करवाने से ही नाव ऊपर आ जाती है तो वे सवा लाख सत्यनारायण करवाने को तैयार हैं ।

अब आप समझ गए होंगे कि मानव मस्तिष्क की यह दोहरी प्रणाली आधुनिक मनुष्यों के मस्तिष्क में किस तरह काम करती है

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