चर्च ने 1481 और 1808 के बीच लगभग 32,000 लोगों को जिंदा जला दिया. इनमें से ज्यादातर वे थे, जो चर्च के फैलाए अंधविश्वास के खिलाफ थे, विज्ञान की बात कर रहे थे, चर्च के दबदबे को विचार के स्तर पर चुनौती दे रहे थे. (प्रोफेसर जॉन विलियम ड्रेपर, हिस्ट्री ऑफ द कन्फ्लिक्ट बिटविन रिलीजन एंड साइंस, पेज नंबर- 278.) पश्चिम में विज्ञान, धर्म और आस्था से टकराकर और इसकी कीमत चुकाकर आगे बढ़ा.
चर्च ने आखिरकार अपनी हार मानी. जिस चौराहे पर ब्रूनो को चर्च ने जलाकर मार डाला था, वहीं चर्च की पहल पर आज ब्रूनो की मूर्ति लगी है.
भारत में ज्ञान और धर्म एक ही बिरादरी के कंट्रोल में रहा और तथाकथित वैज्ञानिकों ने माथे पर तिलक और सिर पर चुटिया धारण कर ली. जनेऊ तो उनके पास था ही. यहां सारा संचित ज्ञान इस काम में कुछ हो गया कि बहुसंख्य लोगों को कैसे कंट्रोल किया जाए.
भारत में धर्म और विज्ञान का कभी टकराव नहीं हुआ. इसलिए भारत में न तो औद्योगिक क्रांति मुमकिन थी और न ही वैज्ञानिक क्रांति या अनुसंधान. ये उपग्रह छोड़ने से पहले उसकी सफलता के लिए, तिरुपति में पूजा करने वाली जमात है.
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