डॉ भीमराव अम्बेडकर का वह काम है : बराबरी वाले समाज की स्थापना करना। पढ़िए पूरा लेख और जानिए कि कैसे इस काम को पूरा करेगा आर्थिक रूप से मजबूत समाज।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपने जीवन में आर्थिक विषमताओं से जूझते हुए भारत के पिछड़े और शोषित लोगों के उत्थान के कार्य पूरे किए। अपने जीवनकाल में उन्हें बहुत बार ऐसी कठिन आर्थिक परिस्थितियों से जूझना पड़ा जिनकी वजह से उन्हें कई बार अपने कई सामाजिक और राजनैतिक कार्यों को रोकना पड़ा। बेशक बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर उन विषम आर्थिक परिस्थितियों से भी जूझते रहे, परन्तु फिर भी उन्होंने अपने कामों का कारवां कभी नहीं रोका। वह विषम आर्थिक परिस्थिति में भी अपने कारवां को बढ़ाते रहे और पिछड़े और शोषित समाज के अधिकारों, सम्मान और सुरक्षा के लिए निरंतर प्रयत्नरत रहे और अपने प्रयत्नों में सफल भी रहे। परन्तु फिर भी अपने जीवन में कई बार उन्होंने इस बात का अफ़सोस किया कि उनके और उनकी संस्थानों के पास उतना धन नहीं था जितना कि उन लोगों के पास था जो शोषण करते थे और अपने राजनैतिक और धार्मिक संस्थानों को चला रहे थे। धन की कमी को बाबा साहेब अक्सर कहा करते थे और अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी उनकी यह चिंता थी।
अपने जीवन के अंतिम कुछ दिनों में भी बाबा साहेब को इसी बात की चिंता थी कि उनकी संस्थानों के पास धन की कमी है। बिमारी की हालत में भी वह चंद हज़ार रुपयों को अपनी पार्टी के बैंक खाते में जमा करवाना चाहते थे जिससे कि उनके बाद भी पार्टी का काम चलता रहे। लोगों से मिले धन को उन्होंने कभी अपना नहीं समझा और न ही वह कभी गलत तरीके से कमाए धन पर अपनी नज़र रखते थे। वह एक सच्चे ईमानदार व्यक्ति थे और अपने गरीब लोगों के धन को बहुमूल्य मानते थे। परन्तु उस समय उनके अनुयाईयों के पास धन अधिक मात्रा में नहीं था और उनके बाद न ही तो उनके अनुयायी धन के सही स्रोत्र ही पैदा कर पाए और न ही धन को संचय कर पाए जिसकी वजह से उनके जाने के बाद आज भी उनके कार्य रुके पड़े हैं और धन की वह व्यवस्था नहीं बन पाई है जिससे कि उनके कार्यों को आगे बढ़ा कर पूरा किया जा सके।
डॉ. अम्बेडकर के कार्यों को पूरा करने के लिए एक ऐसे सामाजिक ढाँचे को खड़ा करने की जरुरत है जो बराबरी और न्याय में विशवास रखता हो। एक ऐसा सामाजिक ढांचा जहाँ लोग चरित्रवान हों, जहाँ ईमानदारी, सच्चाई और मानवता व्याप्त हो। एक ऐसा सामाजिक ढांचा जो जातीपति न मानता हो और आर्थिक रूप से कमजोरों को उठाने के निरंतर प्रयास करनेवाला हो। एक ऐसा समाज जहाँ मानवीय भावना इतनी मजबूत हो कि उस ढाँचे के लोग एक दूसरे को मारने-काटने या लूटने की जगह, एक दूसरे की भलाई की बाते सोचें।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के उस कार्य, उस सामाजिक ढाँचे को खड़ा करने के कार्यों को आगे बढ़ाना अपनेआप में एक विशाल कार्य है। उस विशाल कार्य में आते हैं अनगिनत कार्य। सामाजिक शिक्षा, राजनैतिक शिक्षा, बौद्ध धम्म की शिक्षा, मानवता की शिक्षा और शिक्षा के साथ-साथ राजनैतिक, सामाजिक और धम्म के संस्थाओं को खड़ा करना, जो पहले से ही खड़े हैं उन्हें विकसित करना और भविष्य के लिए उनको सुरक्षित करना। यह सारे काम करने के लिए भावना, दृढ़ संकल्प, मेहनत और शिक्षा के साथ जो बहुत महत्वपूर्ण पर्याय की आवश्यकता है वह है धन। और धन को उपलब्ध करा सकते हैं ऐसी धनी लोग जो डॉ. अम्बेडकर के कार्यों को पूरा करने के लिए दृढ़ संकल्प हों। और वह धनी लोग उसी सामाजिक ढाँचे से ही आ सकते हैं जिस ढाँचे के लिए डॉ. अम्बेडकर काम कर रहे थे। परन्तु उस ढाँचे में आज भी उतने धनी और संपन्न लोग नहीं हैं जो कि इतना धन उपलब्ध करा सकें जिससे कि डॉ. अम्बेडकर के कार्यों को पूरा किया जा सके। डॉ. अम्बेडकर शिक्षा, नौकरियों और सामाजिक न्याय की व्यवस्था तो संविधान के माध्यम से उपलब्ध करा गए थे पर शायद वह कुछ और वर्ष रहते तो धन की व्यवस्था भी कर देते।
पर आज हमें उनके कार्यों को पूरा करना है और उनका वह कार्य जो शायद वह अपने और कुछ वर्षों में करते, कि धन की व्यवस्था करते, उस कार्य को आज हमें पूरा करना है। हमें धन, धनी, धनी बनने वाले और धनी बनाने वाले लोगों की जरुरत है। धन की शिक्षा, व्यवसाय की शिक्षा और उस शिक्षा पर चलते हुए धन संचय और धन के स्रोत्र पैदा करना एक ऐसा बड़ा कार्य है जिस पर उन अनगिनत लोगों का भविष्य टिका है जो आज एक दमनकारी सामाजिक ढाँचे में फंसे हुए हैं। आज से सौ वर्षों पहले जो लोग उस दमनकारी ढांचे में फंसे थे आज उनकी एक पीढ़ी ऐसी बन चुकी है जो डॉ. अम्बेडकर की दिलाई सुविधा से शिक्षित और नौकरीपेशा बन चुकी है। परन्तु अभी भी इस पीढ़ी में धन की वह शक्ति नहीं है जिससे कि यह डॉ. अम्बेडकर के कार्यों को पूरा कर पाएं। और साथ ही नौकरीपेशा होने की वजह से इन्हें वह शिक्षा और अनुभव प्राप्त नहीं हो पाता जो व्यवसाय (बिज़नेस) और निवेश ( इन्वेस्टमेंट ) करने वालों को होता है। इसलिए आज इस पीढ़ी के लिए जरुरत है कि वह अपनी और शिक्षाओं के साथ धन की शिक्षा भी लें। वह यह शिक्षा भी लें कि धन कैसे बनाया जाता है और कैसे बढ़ाया जाता है। धन को बनाना और बढ़ाना कोई तिगड़म ( ट्रिक ) नहीं है बल्कि एक शिक्षा है जो कि अनुभव के साथ बढ़ती और विकसित होती है। जीवन में हर सफल काम को करने के लिए उस काम की शिक्षा की आवश्यकता होती है और इसीलिए धन को बनाने और बढ़ाने के लिए भी इसकी शिक्षा की आवश्यकता है।
यह अफ़सोस का विषय है कि धन को बनाने और बढ़ाने की शिक्षा न स्कूलों में और न ही कालेजों में ही मिल पाती है। यह शिक्षा कुछ अनुभवी लोग ही जानते हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी से व्यवसाय करते आ रहे हैं। और सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक विषमता झेलने वाले लोगों में तो यह शिक्षा न के बराबर ही है। एक तो व्यवसाय और निवेश से चंद लोग ही जुड़े हैं, दूसरे, धन की शिक्षा भी नहीं है, इन सबके मिश्रण से एक ऐसा अज्ञान सामाजिक ढांचा खड़ा होता है जहाँ "निर्भरता और असहायता" लोगों की जनसंख्या के साथ और अधिक बढ़ती जाती है। वह लोग जो धन के लिए नौकरियां पाने के लिए धनी लोगों पर निर्भर होते हैं और यह निर्भरता पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ती ही जाती है और फिर वही लोग असहाय होते हैं क्योंकि वह धन की शिक्षा और उसके अभाव में धन बनाने और बढ़ाने के स्रोत्र नहीं पैदा कर पाते। तो कल तक जो लोग डॉ. अम्बेडकर की दिलाई सुविधाओं के अभाव में अपने उत्थान के कार्यों को करने में असमर्थ थे, वहीं उनकी नई पीढ़ी जो आज थोड़े सम्मानजनक और अधिकारपूर्ण जिंदगियों को जी रही हैं, वह भी धन के अभाव में अपने पूर्वजों की तरह निर्भर और असहाय ही हैं और वह कार्य जो उनके पूर्वजों ने शुरू किए थे उन्हें आगे बढ़ाने में असक्षम हैं।
तो धन की शिक्षा के लिए जरुरी है कि उसकी शिक्षा ली जाए। उस शिक्षा को लेने के लिए जरुरी है कि उस शिक्षा से जुड़े शिक्षाविदों से ज्ञान प्राप्त किया जाए और साथ ही वह कार्य किए जाएं जिससे कि धन को बनाना और बढ़ाना सीख सकें। व्यवसाय और निवेश दो ऐसे तरीके हैं जिनसे कि धन बनाने और बढ़ाने के स्रोत्रों को पैदा किया जाता है। यदि इनकी शिक्षा ली जाए तो वह कार्य किए जा सकते हैं जिससे कि वह सामाजिक ढांचा खड़ा किया जा सके जिसके लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर समस्त जीवनभर प्रयत्ननशील रहे। परन्तु धन के अभाव में वह अपने कार्यों को और विस्तृत रूप नहीं दे पाए जो विस्तृत रूप शोषण करने वाले लोग दे पाते थे क्योंकि शोषण करने वालों के पास न केवल धन बहुत अधिक मात्रा में ही था बल्कि उनकी नज़रें केवल और केवल धन और धन के स्रोत्रों पर ही टिकी रहती थीं। आज भी उसी शोषण करने वालों की पीढ़ियों के द्वारा ही समस्त सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक, न्यायिक, व्यावसायिक, शैक्षिक, सुरक्षा और संचार की संस्थाएं चल रही हैं। इन सब व्यवस्थाओं पर अपना वर्चस्व कायम कर गैरबराबरी वाले ढाँचे को ज्यों-का-त्यों रखा जाता है और यदि उस ढाँचे को गिराने की कोशिश की जाती है तो उस चुनौती को भी चपलता और चालाकी से समाप्त कर दिया जाता है। इसलिए जरुरत है उस पर्याय को पाने की जिससे कि डॉ. अम्बेडकर के बराबरी वाले कार्यों को मजबूत और विस्तृत किया जाए। और उसके लिए जरुरी है कि धन, धनी और धन के स्रोत्र बनाने वाली शिक्षा का अध्यन्न और प्रचार किया जाए।
यदि आप भी धन की शिक्षा लेना चाहते हैं तो आप हमारी सात पुस्तकों का सैट जरूर पढ़ें। मेरा यह लेख पढ़, सुन या देख कर यह न समझें कि यह कोई व्यवसाय का प्रचार है, यह प्रचार है शिक्षा का, उस शिक्षा का, जिसकी सबसे ज्यादा जरुरत, गरीब, शोषित व कमजोर लोगों को होती है। जीवन में सबसे बहुमूल्य है समय, इसलिए यदि आप यह पुस्तकें खरीद भी लें परन्तु यदि आप इन्हें पढ़ने और इनकी सीख पर अमल करने में अपना समय नहीं लगाते तो आपकी सबसे बड़ी हानि होती है क्योंकि आप धन लगा कर भी समय नहीं दे पाए और यह शिक्षा पाने का अवसर जीवन में गँवा दिया। इसलिए जरुरी है कि आप अपने समय का सदुपयोग करें और इस शिक्षा को ग्रहण करने में अपना समय लगाएं। हो सकता हो कि आप में वह गुण उत्पन्न हो जाएं जिनसे कि आप धन को बनाना और बढ़ाना सीख सके और फिर डॉ. भीमराव अम्बेडकर के कार्यों को और विकसित और विस्तारित कर पाएं। - निखिल सबलानिया
व्यवसाय एवं निवेश सीखने वाली पुस्तकें आप फोन करके आर्डर करें म. 8527533051 (WhatsApp), L. 011-23744243, (Rs 2000, 7 Books).
No comments:
Post a Comment