*** जानो और जागो ***
"जिसकी जितनी संख्या भारी,
उसकी उतनी हिस्सेदारी"
*** देश का 80 करोड़ ओबीसी अब जाग गया है.***
** भारत में लोकतंत्र लागू है पर इन 68 वर्ष में सरकारों ने यहां ब्राह्मणतंत्र स्थापित कर लिया है, ये रहे सबूत **
(1) राष्ट्रपति - प्रणव मुखर्जी - ब्राह्मण
(2) प्रधानमंत्री - नरेंद्र मोदी - बनिया
(3) ग्रहमंत्री - राजनाथ सिंह - ठाकुर
(4) विदेशमंत्री - सुषमा स्वराज - ब्राह्मण
(5) वित्तमंत्री - अरूण जेटली - ब्राह्मण
(6) रक्षामंत्री - मनोहर पारीकर - ब्राह्मण
(7) सड़क एवं परिवाहन मंत्री - नितिन गडकरी - ब्राह्मण
(8) महिला एवं बालविकास मंत्री - मेनका गांधी - ब्राह्मण
(9) लोकसभा स्पीकर - सुमित्रा महाजन - ब्राह्मण
(10) प्रधानमंत्री के मुख्यसचिव - न्रपेंद्र मिश्रा - ब्राह्मण
(11) राष्ट्रपति कार्यालय में कुल 49 अधिकारी काम करते है. जिनमें ओबीसी के होने थे 32, जबकि है केवल 0. सामान्य के होने थे 7, जबकि है 49.
(12) प्रधानमंत्री कार्यालय में कुल 53 अधिकारी काम करते है, जिनमें ओबीसी के होने थे 34, जबकि हैं केवल 0. सामान्य के होने थे 8, जबकि है 53.
(13) विदेशी दूतावास में कुल 140 अधिकारी काम करते हैं, जिनमें ओबीसी के होने थे 91, जबकि है केवल 0, सामान्य के होने थे 21 , जबकि है 140.
(14) भारत सरकार में कुल 84 सचिव हैं, जिनमें ओबीसी के होने थे 55, जबकि है केवल 0. सामान्य के होने थे 13 , जबकि है 84.
(15) भारत सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल में कुल 27 मंत्री हैं. जिनमें ओबीसी के होने थे 18 , जबकि है केवल 1, सामान्य के होने थे 4, जबकि है 20.
टाप 10 मंत्रीयों में सो एक भी ओबीसी नहीं.
(16) भारत में कुल 4657 आई.ए.एस. हैं. जिनमें ओबीसी के होने थे 3027, जबकि हैं केवल 655. सामान्य के होने थे 699, जबकि है 2993.
(17) देश के 18 राज्यों के हाईकोर्ट में कुल 481 जज हैं, जिनमें ओबीसी के होने थे 313, जबकि हैं केवल 36. सामान्य जाति को होने थे 72, जबकि है 426.
(18) मध्यप्रदेश के हाईकोर्ट में कुल 30 जज हैं. जिनमें से ओबीसी के होने थे 20, जबकि है केवल 0. सामान्य जाति के होने थे 5 , जबकि है 30.
(19) भारत के सुप्रीम कोर्ट में कुल 23 जज हैं. जिनमें ओबीसी के होने थे 15, जबकि हैं केवल 0. सामान्य जाति के होना थे 3, जबकि हैं 23.
(20) भारत के 46 विश्वविद्यालयों में कुल 108 कुलपति हैं . जिनमें ओबीसी के होने थे 70, जबकि है केवल 0. सामान्य के होने थे 16, जबकि है 108
(21) बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU ) में कुल 670 प्रोफेसर हैं, जिनमें ओबीसी के होने थे 435, जबकि हैं केवल 0. सामान्य जाति के होने थे 100, जबकि हैं 670.
(22) दिल्ली विश्वविद्यालय ( DU) में कुल 249 प्रोफेसर हैं. जिनमें ओबीसी के होने थे 162, जबकि हैं केवल 0. सामान्य जाति के होने थे 37, जबकि हैं 249.
(23) जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) में कुल 470 प्रोफेसर हैं. जिनमें से ओबीसी के होने थे 305, जबकि हैं केवल 2. सामान्य जाति के होने थे 70, जबकि हैं 426.
(24) आई.आई.एम. लखनऊ में कुल 40 प्रोफेसर हैं, जिनमें से ओबीसी के होने थे 26, जबकि हैं केवल 1. सामान्य जाति के होने थे 6, जबकि है 30.
(25) भारत सरकार के कार्मिक मंञालय की रिपोर्ट 13 फरवरी 2012 के अनुसार दिनांक 01/12/10 तक विभिन्न वर्गों की नौकरी में संख्या और प्रतिनिधित्व निम्न है.
प्रथम श्रेणी में :-
वर्ग. संख्या आरक्षण
सामान्य (15%) - 75.5%,
ओबीसी (65%) - 8.4%
द्वितीय श्रेणी में :-
सामान्य (15%) - 72.2%,
ओबीसी (65%) - 6.1%
तीसरी श्रेणी में :-
सामान्य (15%) - 61.9%
ओबीसी (65%) - 14.8%
चतुर्थ श्रेणी में :-
सामान्य (15%) - 59%
ओबीसी (65%) - 15.2%
(26) देश के उद्योग जगत की विभिन्न कंपनियों के बोर्ड मेम्बरों की स्थिति निम्न हैं.
Gen -15% - है -92.6%
Sc/St-22%-है -3.5%
OBC- 65% - है-3.8%
(27) म.प्र. की विधानसभा की कुल 230 सीटों में से:-
वर्ग. संख्या आरक्षण
Sc - 15% - सीटें- 35
St - 20% - सीटें- 47
OBC- 65% - सीटें- 00
(28) भारत की लोकसभा में कुल 543 सीटें हैं, जिनमें :-
Sc - 15% - सीटें - 84
St - 7.5% - सीटें-47
Obc -65% -सीटें- 00
(29) देश में आरक्षण की स्थिति :-
वर्ग. संख्या आरक्षण
Sc - 15% - 15%
St - 7.5% - 7.5%
Obc- 65% - 27%
ओबीसी के आरक्षण में क्रीमीलेयर लगाया है जो कि पूर्णयता असंवैधानिक है.
(30) मध्यप्रदेश में वर्तमान में आरक्षण की स्थिति :-
वर्ग. संख्या आरक्षण
एससी - 16% - 16%
एसटी - 20% - 20%
ओबीसी- 65% - 14%
जबकि ओबीसी को केरल में 40%, बिहार में 34%, कर्नाटका में 32% और महाराष्ट्रा में 32% आरक्षण है.
(31) सवर्णों का नौकरी में 79% हिस्सा होने के बाद भी हाल ही में राजस्थान हाईकोर्ट ने संविधान के विरूद्ध जाकर उन्हे 14% आरक्षण दिया है.
(33) संविधान द्वारा गठित मंडल कमीशन ने ओबीसी के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण दिया, परन्तु सुप्रीमकोर्ट ने 16 नबम्वर 1992 को फैसला देकर उस पर रोक लगा कर ओबीसी के साथ धोका किया है.
(33) हाल ही में गुजरात, राजस्थान और उ.प्र. हाईकोर्ट ने तथा सुप्रीमकोर्ट ने आरक्षण के संबंध में संविधान के विरूद्ध फैसले दिये हैं. इससे लगता है कि लोकतंत्र , संविधान और आरक्षण बड़े खतरे में है.
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