Sunday, January 10, 2016

क्या दलित हिन्दू है ?

क्या दलित हिन्दू है ?
साथियों हिन्दू धर्म मे दलितों की गिनती इंसान तो छोडिए जानवरों मे भी नही होती ।
जानवर तो पूजा का पात्र है, उसका मल मूत्र भी आस्था का प्रतीक है, लेकिन दलित को छूना भी पाप है, दलित अछूत है ।
लोग अपने घरों मे तमाम जानवर रखते हैं, जैसे गाय, भैंस, बकरी , ।
कितना आत्मीय व्यवहार रखते हैं इन जानवरों से। इनको अपने ही थाल मे जूठन आदि खिलाते हैं, अपनी ही बाल्टियों मे पानी पिलाते हैं। फिर उन्हें धुलकर रख लेते हैं।
बाद मे खुद इस्तेमाल करते हैं।इन्हीं बर्तनों मे खाते हैं, इन्ही बाल्टियों मे पानी पीते हैं।लेकिन अगर यही बर्तन, यही बाल्टी दलित छू ले तो उसे घर से बाहर कर देते हैं ।
मतलब दलित जानवर से भी गया गुजरा है ।इतना सब होने पर दलित किस मुँह से कह सकता है कि वह हिन्दू है।
दोस्तों दलित तो हिन्दू धर्म की चतुष्वर्णीय व्यवस्था मे भी नही आता ।
इसको पंचम वर्ण के नाम से जानते हैं ।कुछ लोग गलती से दलित को शूद्र कहते हैं, लेकिन दलित शूद्रों की श्रेणी मे नही आता।
दलित शूद्र भी नही है ।ये इससे बाहर है ।दलित को अछूत समझा जाता है ।
दोस्तों दलित अपने घर पर सवर्णों के आने पर अपनी चारपाई पर भी नही बैठ सकता ।
सोचिए घर हमारा ,चारपाई हमारी ,इसको बनाने वाला हमारा ,लेकिन हम सवर्णों के आने पर अपनी चारपाई पर नही बैठ सकते।
ये कैसा धर्म है, कैसी इंसानियत है ?
दलितों को हमेशा गांव से बाहर बसने के लिए बाध्य किया गया ।
दलितों का घर गांव मे दक्षिण दिशा मे रखा गया
सवर्णों का मानना था कि हवा दक्षिण दिशा से कम चलती है, दलित गंदा होता है , इसलिए हवा इसे छूकर हमे गंदा न करे, इसे(दलित)को दक्षिण मे बसने के लिए मजबूर करो
दलित हिन्दू धर्म के किसी त्योहार मे उनके यहां शामिल नही हो सकता ।
हिन्दू के किसी कार्यक्रम मे इसको शामिल होने की इजाजत नही है ।मंदिर नही जा सकता, जायेगा तो पीटा जायेगा ।इनकी चारपाई पर नही बैठ सकता ।इनके बीच मे खाना नही खा सकता ।
इतनी बडी अश्पृश्यता।
क्या दशा है हमारी हिन्दू समाज मे ?
किसी बुद्धिजीवी ने कहा है कि अगर अष्पृश्यता पाप नही है तो दुनिया मे कुछ भी पाप नही है ।
अष्पृश्यता पाप ही नही महापाप है, जो हिन्दू बडे शान से करता है ।
बाबा साहेब ने कहा है कि दलितों को जानवर से भी नीचा दर्जा देना ,यह साबित करता है कि दलित और चाहे जो कुछ भी हो सकता है, लेकिन हिन्दू नही हो सकता ।
अगर ये हिन्दू होता तो कभी भी इस के साथ जानवरों से बदतर व्यवहार नही होता ।
बाबा साहेब ने कहा है कि "हिन्दू धर्म मे दलितों की स्थिति गुलामों से भी बद्तर है ।क्योंकि गुलामों के मालिक उन्हें छूते हैं, इनके हाथ का बना खाते हैं ।लेकिन हिन्दू धर्म मे दलितो को छूना भी पाप है ।"
इलेक्शन मे दलित वोटों को प्रभावित किया जाता है ।
दलित बहन बेटियों की अस्मत लूटी जाती है ।इतना सब होने पर दलित किस मुंह से कह सकता है कि वह हिन्दू है।
अगर वह हिन्दू होता तो क्या उसके साथ यह सब होता ?
दलितों को मारना पीटना, इनके घर जलाये जाना , यह साबित करता है कि दलित हिन्दू नही है और न ही हिन्दू धर्म दलितों का धर्म ही है
वरना अपने सहधर्मी के साथ कोई ऐसा व्यवहार नही करता ।
मुस्लिमों को पानी पी पीकर कोसने वाला हिन्दू उनके यहां खानपान मे , उनके यहां रिश्तेदारी करने मे कोई परहेज नही करता ।
जबकि दलित अपने आप को हिन्दू कहता है, फिर भी उसके साथ यह भेदभाव है ।
अंग्रेज ईसाईयों ने भारत को गुलाम बनाया , देश के लोगों को तमाम यातनाएं दी।लेकिन इन्हीं अंग्रेज ईसाईयों के साथ हिन्दू अपनी बेटी व्याहने मे गर्व महसूस करता है , शान समझता है ।
लेकिन अपने सहधर्मी(दलितों)के साथ इतना बडा भेदभाव रखता है।
ये कैसा हिन्दू है, जो विदेशी आक्रान्ताओं के साथ रिश्ता रखता है, अपने ही रक्त मांस, अपने ही सहधर्मीयों के साथ परहेज करता है ।
दोस्तों हिन्दूओं से जितना दूर है मुसलमान या ईसाई,
दलित हिन्दूओं से इनसे भी ज्यादा दूर है ।
इस सुधरे हुए समय मे भी हमारी परछांई से परहेज किया जाता है ।
लोगों का मानना रहा कि जब सब शिक्षित हो जायेंगे, जागरूक हो जायेंगे तो दलितों के साथ समानता का व्यवहार होने लगेगा , सब कुछ ठीक हो जाएगा ।लेकिन आज जो सवर्ण जितना ज्यादा शिक्षित है, वह उतना ही बडा दलित विरोधी है ।
आज दलित मंदिर जा रहा है , पूजा कर रहा है, व्रत रख रहा है ।लेकिन हिन्दू धर्म मे उसकी स्थिति सुअर से अच्छी नही है ।
सुअर को ( "वाराह", विष्णु के अवतार मे) पूजा भी जाता है।
लेकिन अंधभक्त दलित यह समझ नही रहा है ।
बाबा साहेब ने कहा है कि "हिन्दू संस्कृति मे दो चीजों की बेहद कमी है, एक समानता ,दूसरे भाईचारा की"।
जिनसे इंसान के बीच मे समरसता, अपनापन, आत्मीय संबंध बनता है ।
वह तत्व ही हिन्दू धर्म से गायब है ।
दलितों के गले मे हांडी बांधना, शिक्षा से वंचित रखना , आज के डेट मे भी जगह जगह दलित प्रताडना, इनकी हत्या करना , घर जलाना, मारना पीटना, इनकी अस्मत लूटना, जहां मानवता कराह दे , क्या साबित करता है ?
दोस्तों इतना सब होने पर दलित किस मुँह से कह सकता है कि वह हिन्दू है ?
हिन्दू अल्पसंख्यक होने के डर से दलितों को हिन्दू बताता है,
मुसलमानो से लडवाने के लिए दलित को हिन्दू बताता है,
वोट लेने के लिए दलित को हिन्दू बताता है,
वरना तो दलित जानवर भी नही है ।
दोस्तों दलित के साथ वह होता है, जो जानवर के साथ भी नही होता ।
"दोस्तो यही सब वजह है गुलामी की ,
यही वजह है धर्म परिवर्तन की ।"
इतनी यातना , इतनी प्रताडना, इतनी असमानता , इतनी अमानवीयता दलितों के साथ
यह सब होने पर यह प्रश्न बार बार उठता है कि -
'क्या दलित हिन्दू है ?'
'क्या दलित हिन्दू हो सकता है?'
'क्या हिन्दू धर्म दलितों का धर्म हो सकता है ?'
दोस्तों बाबा साहेब का यह कथन बिलकुल सही है कि -
"दलित कुछ भी हो सकता है, लेकिन हिन्दू नही सकता ।"
जय भीम ,
नमो बुद्धाय।

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