Monday, January 11, 2016

अम्बेड़करवाद

अम्बेड़करवाद-
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आओ जाने और समझे
बाबा साहब के संघर्ष और उनके द्वारा
लिखे गये संविधान से पहले हमारे बाप
दादा और हमारी पीढियां कहाँ, कैसे और
किन हालातों में रहते थे
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1 : हम लोग कच्चे घरों में, तम्बूओं में,
झोपडियो में अमीरों की हदों से हट कर
रहते थे
2 : धर्म प्रथा, जाति प्रथा, सति प्रथा,
छूत प्रथा, रीति रिवाज, संस्कृति,
परंपराओं और अमीरों के अपने ही बनाए गए
कायदे कानून के हम गुलाम थे
3 : अच्छा खाना, अच्छा पहनना, बडे लोगों
की बराबरी करना, अपने हक के लिए लडना,
और पढाई करने का हमें कोई भी हक नहीं था
4 : हमारे वैद्य ( डाक्टर ), धर्म गुरु और हमारी
पंचायतें भी अलग होती थी
5 : अमीर - गरीब, छोटे - बडे, ऊंच - नीच , और
जातिवाद की दीवारें होती थी
6 : हम औरों के टुकडों पर पलने वाले थे
7 : हमारा अपना कुछ भी वजूद नहीं था
8 : समाज में हमारा आदर, सम्मान, इज्जत,
नाम और पहचान कुछ भी नहीं था
9 : हमें मनहूस समझा जाता था
10 : हमारी औरतों से मनचाही मनमानी
और बदसलूकीया की जाती थी
11 : हमें गुलाम बना कर खरीदा और बेचा
जाता था
12 : हमें हदों और पाबंदियों में रखा जाता
था
13 : जाति और धर्म के नाम पर हमें आपस में
ही लडाया जाता था
14 : हमारे पास किसी भी प्रकार का
कोई भी अधिकार नहीं था
15 : कुछ भी करने से पहले हमें इजाजत लेनी
होती थी
16 : ऊंची आवाज उठाना, आंखें उठाना, और
ऊंचा सिर उठाना हमारे लिये पाप था
17 : हमारे एकता के संगठनों को विद्रोही
समझा जाता था
18 : अपने मतलब के लिए हमें मोहरा बनाया
जाता था
19 : हम कमजोर, लाचार, असहाय, अनपढ,
गरीब , बे-घर और बे- सहारा थे
20 : हमें दलितों में गिना जाता था
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21 : कोई भी हम से दोस्ती या
रिश्तेदारी नहीं बनाना पसंद नहीं करता
था
22 : हमें नीच और तुच्छ समझा जाता था
23 : हमें बडे लोगों की गंदगी साफ करने के
लिए इस्तेमाल किया जाता था
24 : बिना वजह हमें दोषी करार देकर सजायें
दी जाती थी
25 : कठपुतलियों की तरह हमें नचाया
जाता था
26 : अत्याचार, अन्याय, शोषण और जुल्म
सहना हमारी आदत थी
27 : क्योकि कहीं भी हमारी कोई भी
सुनवाई नहीं होती थी
28 : हम दर-ब-दर भटकते रहते थे
29 : मौत और नरक से भी बदतर थी हमारी
जिन्दगियां , हमारे घर और हमारे परिवार
30 : जहां आशा की कोई भी किरण नहीं
थी
31: जहाँ हम गुलामों की तरह जीवन
बीताते थे।
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ऐसे था हमारे बाप दादाओ का बीता हुआ
कल...
लेकिन आज जो परिवर्तन हुआ है वह बाबा
साहब के कारण हुआ है ।
यही है "अम्बेडकरवाद" !
बाबा साहब के विचारों से अंजान और
समाज से दूरी बनाए रखने वालों लोगों पर,
ऊपर लिखी हुई बातें आज भी लागू है वो
भी सिर्फ ब्राहमणों द्वारा रचित
जाति-प्रथा के कारण ।
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फैसला अब आपके हाथों में है कि आप बाबा
साहब और गौतम बुद्ध के विचारों को
अपनाना चाहते है।
या फिर! इन विदेशियों के बनाए हुये धर्म के
कीचड़ मे अपना और अपने बच्चों का भविष्य
आज भी लपेटना चाहते है।
जय भीम जय भारत
: ए भारत के गरीबों, 
दलितों व शोषितों ...!
- तुम्हारी मुक्ति का मार्ग धर्मशास्त्र व मंदिर नही है बल्कि तुम्हारा उद्धार उच्च शिक्षा, व्यवसायी बनाने वाले रोजगार तथा उच्च आचरण व नैतिकता में निहित है | 
- तीर्थयात्रा, व्रत, पूजा-पाठ व कर्मकांडों में कीमती समय बर्बाद मत करों | 
- धर्मग्रंथों का अखण्ड पाठ करने, यज्ञों में आहुति देने व मन्दिरों में माथा टेकने से तुम्हारी दासता दूर नही होगी, तुम्हारे गले में पड़ी तुलसी की माला गरीबी से मुक्ति नही दिलाएगी | - काल्पनिक देवी-देवताओं की मूर्तियों के आगे नाक रगड़ने से तुम्हारी भुखमरी, दरिद्रता व गुलामी दूर नही होगी |
- अपने पुरखों की तरह तुम भी चिथड़े मत लपेटो, दड़बे जैसे घरों में मत रहो और इलाज के अभाव में तड़फ-तड़फ कर जान मत गंवाओ | 
- भाग्य व ईश्वर के भरोसे मत रहो, तुम्हें अपना उद्धार खुद ही करना है | - धर्म मनुष्य के लिए है मनुष्य धर्म के लिए नही और जो धर्म तुम्हें इन्सान नही समझता वह धर्म नहीं अधर्म का बोझ है | जहाँ ऊँच और नीच की व्यवस्था है | वह धर्म नही, गुलाम बनाये रखने की साजिश है | 
___ डॉ.भीमराव अम्बेडकर.
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