Sunday, January 10, 2016

जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती वो अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकती

जो कौम अपना इतिहास नहीं जानती वो अपने भविष्य का निर्माण नहीं कर सकती
- Babasaheb Dr Ambedkar

जानिए मूलनिवासी महारथी का गौरवशाली इतिहास

आज़ादी के लिए नाजाने कितने भारत माँ के लाल बलिदान हो गए , पर दुर्भागय से आज उनका कोई नाम बी नहीं जानता ..... 

टंट्या भील जिसने अंग्रेजो से लोहा लिया ,उनके विरोध आवाज़ उठाई , वह उन हजारो क्रान्तिकारीयो में एक थे जिन्होंने अंग्रेज़ो को छट्टी का ढूढ याद दिला दिया था ....

टंट्या भील का जिसे टंट्या मामा या कहे भारत का रॉबिनहुड बी कहा जाता है .... का जन्म Madya pradesh के Nimad क्षेत्र में 1844 को हुआ ...

टंट्या के जीवन में बदलाव तब आया जब अंग्रेज़ो ने 1857 में अत्याचारो की सारी सीमाएं लांग दी ....

और तब टंट्या ने अंग्रेजो के खिलाफ जंग छेड़ दी ...

1874 में उन्हें पहली बार जेल की सलाखों के पीछे डाल दिया गया ....

एक साल की जेल के बाद तो टंट्या के अंदर की चिंगारी शोला बन चुकी थी और फिर टंट्या मामा ने अपना काम और जोरो शोरो से शुरू कर दिया ......

टंट्या ने अनेको बार अंग्रेजो की खजाना लेती हुई ट्रेन को लूटा , और फिर उन खजाने को गरीबो और ज़रूरतमंदों में बाँट देते थे । 1878 में फिर उन्हें जेल डाला गया पर वो वहा से तीन ही दिन के अंदर भाग निकले ...

टंट्या को गोरिला लड़ाई , भाला चलाना, चाकू चलाने में महारत हासिल थी , इसके इलावा मामा को बन्दूक चलने में भी महारत हासिल थी ....

टंट्या भील ने अंग्रेजो ने नाक के नीचे से कई बार चलती ट्रेन से खजाना लूटा , कई बार उन्हें जेल डाला गया पर हर बार वो भागने में कामयाब रहे ...

टंट्या के इन्ही कारनामो से वो पुरे भारत में प्रसिद्ध हुए और उन्हें टंट्या मामा का नाम मिला ... लोग उन्हें मामा के कर पुकारते थे ....

तक़रीबन 20 साल की कड़ी मुशक्कत के बाद टंट्या भील को पकड़ा गया ... 

टंट्या मामा के पकडे जाने की खबर अंग्रेजी अख़बार न्यू यॉर्क टाइम्स new york times में छपी जिसमे उन्हें ROBINHOOD OF INDIA के नाम से 10 नवंबर 1889 में प्रसारित किया गया था ...

indore के जेल में उन्हें अनेको यातनाऐं दी गयी ,

और फिर उन्हें 19 oct. 1889 को फांसी की सजा दे दी गयी .... अंग्रेजी सरकार को इतना डर था की आज तक ये पता नहीं चल पाया की उन्हें फांसी कब और कहा दी गयी ..... 

कहा जाता है उन्हें पातालपानी रेलवे स्टेशन खंडवा रूट पर उनकी बॉडी को फेंक दिया गया था ... उसी जगा टंट्या मामा की समाधी बनी हुई है

वहा आज भी जब कोई ट्रेन वहाँ से गुजरती है तो मामा को श्रदांजलि के लिए ट्रेन को 2 मिनट के लिए ट्रेन को रोका जाता है ....
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टंट्या मामा पर 2 फ़िल्म बी बन चुकी है 

1988 में DO WAQT KI ROTI 
2012 में TANTYA BHIL जिसे पांच भाषा में प्रसारित किया गया .

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