Tuesday, May 7, 2019

क्या डॉ. आंबेडकर जी ज़िंदा हैं ?

क्या आपको लगता है कि डॉ. भीमराव आंबेडकर जी अभी भी ज़िंदा है ? क्या आपने कभी यह सुना है ? क्या आपको कभी ऐसा लगा है ? क्या आपको डॉ. आंबेडकर जी की आहट सुनाई दी है ? क्या आपको डॉ. आंबेडकर जी एक मिथक लगते हैं ? क्या डॉ. आंबेडकर जी कल्पनाओं से परे के व्यक्ति लगते हैं?






















कुछ दिनों पहले किसी से मुलाकात हुई। उन्होंने कहा कि मुझे ऐसा लगता है कि मानो डॉ. आंबेडकर जी कोई कल्पनाओं से परे के है क्योंकि उन में आज भी जातिवाद से लड़ने का वो साहस नहीं है जो डॉ. आंबेडकर जी में आज से सौ वर्षों पहले था। उनकी यह बात मेरी संवेदनाओं को छू गई। मुझे नज़र आने लगे डॉ. आंबेडकर जी के वह पुतले जो जगह-जगह खड़े हैं, डॉ. आंबेडकर जी के वह चित्र जो हर जगह लगे हैं। पर फिर भी वे उस व्यक्ति को डॉ. आंबेडकर जी का बोध नहीं करा पाए। फिर भी वे मूर्तियां और वे चित्र उस व्यक्ति तक डॉ. आंबेडकर जी की वह चेतना नहीं पहुंचा पाए। या मैं कहूंगा कि वे डॉ. आंबेडकर जी को पूरी तरह से ज़िंदा नहीं रख पाए। मूर्तियां और चित्र इस बात का एहसास कराते हैं कि डॉ. आंबेडकर जी जैसे कोई व्यक्ति थे। पर वे उन से परिचय नहीं करवाते। वे रूप को तो जीवित रखते हैं पर चेतना को नहीं। तो बात आती है कि क्या डॉ. आंबेडकर जी ज़िंदा है ?
दो दिन पहले मैं बहुत दुखी था। पिछले कुछ वर्षों से मैंने कुछ पुस्तकें लिखी हैं और डॉ. आंबेडकर जी की कुछ पुस्तकों का सरल हिंदी में अनुवाद किया है। पैसों के आभाव के कारण मैं उन्हें प्रकाशित नहीं कर पा रहा। इस पर लोग कहते हैं कि डॉ. आंबेडकर जी को बेचते हो और लोगों को लूटते तो। मेरे मुंह पर कहे तो पूछूं कि बताओ कितना लूटा और कितनी हवेलियां खड़ी की ? पर डॉ. आंबेडकर जी की दो बातें मेरा हाल बयां करती है। एक तो उन्होंने कहा था कि समाज सुधारक का जीवन नर्क बन जाता है। और दूसरा उन्होंने कहा था कि मेरे अपनों ने ही धोखा दिया। मैं इन दोनों बातों का ही साक्षी हूँ। यह भगवान बुद्ध की शिक्षा है जिसकी वजह से मैं बचा हुआ हूँ और अपने प्रेरणा स्रोत डॉ. आंबेडकर जी से प्रेरणा पा कर खड़ा हूँ। इन वर्षों में मुझे एक-दो सवर्णों से ही बुरा सुनने को मिला जबकि ज्यादातर कोई दलित ही मेरे बारे में उटपटांग लिख या बोल रहा होता है। इस से मुझे बहुत दुख होता है। कुछ लोग इन कार्यों को समझते हैं तो वह एक बुझते दिये में तेल के समान होते हैं।
मैं यह सब अपनी आपबीती बताने के लिए नहीं लिख रहा हूँ। मैं यह इसलिए बता रहा हूँ कि आज जब मेरा यह हाल है तो सोचिए कि डॉ. आंबेडकर जी ने किन हालातों में हमारे लिए संघर्ष किया होगा। एक तरफ उनके पुत्र मर रहे थे और दूसरी तरफ वे विदेश में अपनी करोड़ों अछूत संतानों के लिए पुस्तकें पढ़ रहे थे। तब ज़रूर आज के जैसे दलित रहे होंगे, और यक़ीनन तब वे बहुत मात्रा में होंगे, जो यह सोचते या ताना देते होंगे कि 'अरे आंबेडकर यहाँ तुम्हारे बच्चे मर रहे हैं और तुम लन्दन में बैठ कर किताबे पढ़ रहे हो।" कुछ होंगे कि कहेंगे कि अरे किताबों से क्या मिलता है ? क्या ऐसी सोच से मनुष्य का कल्याण होता है ?
तो मैं दुखी मन से यह सोच रहा था कि मेरा लघु उपन्यास 'दलित की गली' मेरा जीवन है, मेरे अनुभव हैं, जो आने वाले समय में जाने चाहिए और आने वाली पीढ़ियों को हमारे साथ किए अत्याचारों और षडयंत्रों का पता चलना चाहिए। फिर मुझे याद आए डॉ. आंबेडकर जी। शायद वह भी अपनी पुस्तकें लिखते समय यही सोचते होंगे कि मेरी आने वाली पीढ़ी को यह सब पता चलना चाहिए। पर क्या आज उस पीढ़ी को उनके विचारों की कद्र है ? क्या आज वह पीढ़ी जो किसी सुविधा वाली जगह पर आरक्षण का कॉलम भरना नहीं भूलती, उसे डॉ. आंबेडकर जी की कद्र है ? वे करोड़ों जो किसी अनजान देवता को पूजते हैं उन्होंने कभी उस डॉ. आंबेडकर जी को महसूस करना चाहा जिनकी वजह से आज उनकी ज़िन्दगी संवरी है ? क्या यह पीढ़ी डॉ. आंबेडकर जी को जानती है ? क्या यह पीढ़ी डॉ. आंबेडकर जी से मिली है ? क्या यह पीढ़ी डॉ. आंबेडकर जी की चेतना से अवगत है ?
मुझे लगा था कि मेरी पुस्तक मेरा जीवन है। ऐसे ही डॉ. आंबेडकर जी की पुस्तकें उनका जीवन है। किसी व्यक्ति को हम केवल शरीर से ही नहीं जानते। शरीर एक जरिया होता है उसके मन और विचारों जो जानने का। पर उस व्यक्ति की असली चेतना उसके विचारों में ही होती है। किसी की अनुपस्थिति में भी हम उसके विचारों से वशीभूत हो जाते हैं। सात समंदर पार किसी व्यक्ति से हम ऐसे प्रेरित हो जाते हैं कि हमारा पूरा जीवन ही बदल जाता है। एकलव्य को द्रोणाचार्य का शरीर नहीं मिला पर वह उनकी चेतना से ही प्रयास करके धनुर्धर बन गया।
एकलव्य की कहानी तो बहुत लोगों ने सुनी होगी और बहुत से लोग द्रोणाचर्य को कोसते भी होंगे। पर ऐसे लोगों ने कभी यह सोचा है कि उनके लिए डॉ. आंबेडकर जो अपनी शिक्षा अपनी पुस्तकों, लेखों और भाषणों के रूप में छोड़ कर चले गए, क्या उन्होंने वह अब तक ग्रहण किए। ऐसे लोग द्रोणाचार्य को कोसेंगे, वे मुझे भी कोसेंगे, क्योंकि कोसना ही उनका स्वभाव बन गया है, और मैंने ऐसे भी दलित देखे हैं जो डॉ. आंबेडकर जी की वजह से शिक्षा, नौकरियां और समानता के अधिकार पाने के बाद इतने प्रबुद्ध हो जाते हैं कि डॉ. आंबेडकर जी को भी कोसते हैं। क्योंकि उन्हें जो सहूलियतें मिल रही हैं वे किसी और के परिश्रम और संघर्ष का परिणाम है। यदि ऐसे लोगों ने परिश्रम और संघर्ष किया होता तो उन्हें पता चलता कि समाज को बुद्धिजीवी बनाने और उनके लिए कार्य करना क्या होता है और किन कठनाइयों से भरा होता है। ऐसे लोग यह तो कहेंगे कि समाज के काम में पैसे क्यों चाहिए पर इनमें यह कहने का साहस नहीं है कि समाज के काम करनेवाले के पास ही अधिक धन होना चाहिए जिस से कि वह समाज के काम और अच्छे से कर पाए। ऐसे लोग किसी मुर्दे के सामान हैं, जिस में न चेतना है और न चेतना पाने का साहस।

खैर, तो बात डॉ. आंबेडकर जी के ज़िंदा रहने की थी। मेरे पास यदि उनके विचार नहीं होते तो वह एक मिथक बन जाते।आज उनके विचार ऐसे हैं मानों मैं साक्षात डॉ. आंबेडकर जी से मिल रहा हूँ। हाँ डॉ. आंबेडकर जी ज़िंदा हैं। और मैं उनसे मिलता हूँ जब मैं उन्हें पढ़ता हूँ। उनके विचार ही मुझे मेरे बाबा साहिब डॉ. आंबेडकर जी के साक्षात्कार करवाते हैं। वो मेरे लिए कल्पना, मिथक, किवदंती नहीं हैं। वो मेरे मेरी चेतना में हैं जो मुझे उनके विचारों से मिली है। 


तो आप भी यदि उनकी पुस्तकें पढ़ना चाहते हैं तो हम से संपर्क करें। यह लेख डॉ. आंबेडकर जी की चेतना जगाने और उनकी पुस्तकें बेचने के लिए है। केवल बेचना ही ध्येय नहीं है। बेचने के लिए तो कई चीज़ें हैं या पैसे कमाने के लिए नौकरी भी है। अपने दिमाग से संकुचित विचार निकालिए। डॉ. आंबेडकर जी को पढ़िए, पढ़िए और बस पढ़िए। उनके लेख आपके लिए हैं। आपकी पीढ़ियों के लिए हैं। अपने पिता के श्राद्ध पर तो आपने हज़ारों खर्च किए होंगे या कर भी सकते हैं। पर डॉ. आंबेडकर जी ने तो आपको सब कुछ दिया है। फिर उनसे क्यों नहीं मिलते ? उन्हें क्यों नहीं पढ़ते ? क्यों उनकी चेतना तक नहीं पहुँचते ? उनसे मिलिए। उनकी चेतना से मिलिए। उनको पढ़िए। तब ही आप एक सच्चे भीम सैनिक बन पाएंगे। 
जय भीम
निखिल सबलानिया






















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बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर जीवन और चिंतन - भाग 1 से 9.
भाग - 1: डॉ. आंबेडकर जी के परिवार, बचपन और शिक्षा के बारे में।
भाग - 2: डॉ. आंबेडकर जी के द्वारा शुरू किए गए अख़बारों और संस्थाओं के बारे में।
भाग - 3: डॉ. आंबेडकर जी के द्वारा किए गए सत्याग्रहों के बारे में।
भाग - 4: डॉ. आंबेडकर जी के गोलमेज परिषद में उपस्थित होने और उनके परिषद में कहे कथनों के बारे में।
भाग - 5: पूना पैक्ट, डॉ. आंबेडकर जी के संयुक्त संसदीय कमेटी और सामाजिक सुधार के कार्य।
भाग - 6: डॉ. आंबेडकर जी के धर्मांतरण संबंधी व अन्य आंदोलनों के बारे में।
भाग - 7: डॉ. आंबेडकर जी के मज़दूर वर्गों के और रेलवे कर्मचारियों के लिए किए गए कार्यों के बारे में।
भाग - 8: डॉ. आंबेडकर जी के राजनैतिक जीवन और राजनैतिक पदों, दक्षिण भारत के दौरों की जानकारी, अस्पृश्यों की सेना में भागीदारी और गाँधी-जिन्ना टकराव के बारे में।
भाग - 9: डॉ. आंबेडकर जी के कांग्रेस केविरोध, स्वतंत्रता पश्चात् एवं संविधान निर्माण में किए गए कार्यों के बारे में।
बाबा साहेब जी के जीवन काल में ही प्रकाशित। हिंदी पाठकों के लिए विशेष रूप से मराठी से हिंदी में अनुवादित किया गया। लेखक चांगदेव भवानराव खैरमोड़े जी की डॉ. आंबेडकर जी पर अनुपम कृतियां। डॉ. भीमराव आंबेडकर जी के जीवन और विचारों का सबसे विस्तृत और विश्वसनीय संकलन नौ खण्डों में। साथ में : डॉ आंबेडकर जी की विस्तृत जीवनी - युग पुरुष बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर, उनकी पुस्तक अछूत और ईसाई धर्म, दीक्षा समारोह में दिया उनका भाषण, उनकी संक्षिप्त जीवनी बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर जी की अमर कथा और पुस्तक भारत में बौद्ध धम्म का पतन क्यों और कैसे भी हैं। यदि केवल नौ खंड लेते हैं तो डाक सहित मूल्य ₹ रु 3000. अतिरिक्त पांच पुस्तकों के साथ डाक सहित मूल्य ₹ 3500.


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