इस देश में तीन वर्ण हैं , जिन्हें सवर्ण कहा जाता है ।
स + वर्ण = सवर्ण अर्थात वर्ण सहित
चौथा शूद्र है जिसका कोई वर्ण नहीं ।
1. ब्राह्मण
2.क्षत्रिय
3.वैश्य
और
4. शूद्र - (ओबीसी , एससी, एसटी)
�पहला ब्राह्मण वर्ण में कोई जाति नहीं । केवल गोत्र है , जिनमें आपस में शादी विवाह में कोई रुकावट नहीं।
�दूसरे वर्ण क्षत्रिय में कोई जाति नहीं , केवल गौत्र है , जिनमें आपस में शादी विवाह में कोई रुकावट नहीं ।
�इसी प्रकार तीसरा वर्ण वैश्य ।
आपस में इनमें भी कोई जाति व्यवस्था नहीं , केवल गौत्र हैं ,जैसे अग्रवाल , बंसल , कंसल, गुप्ता , गोयल आदि । इनमें भी आपस में शादी विवाह में कोई रुकावट नहीं ।
�चौथा नम्बर पर आते हैं शूद्र जो ब्रह्मा के पैरों से पैदा हुए बताये जाते हैं हिन्दू शास्त्र और ग्रंथों के अनुसार।
माँ की कोख का कोई जिक्र नहीं ?
शूद में जाति ,
जाति में गोत्र ,
गोत्र भी 1000 , - 2000 नहीं बल्कि लाखों में ।
� और जातियां ?
वह भी सैकड़ों नहीं , हजारों में ?
6743
�यथा
गूजर , पटेल , पाटीदार , अहीर , यादव , लौधा , किसान , लुहार , कुम्हार , सैनी , माली , कश्यप , कहार ,कुर्मी , चूहड़ा ( बाल्मीकि ) , चमार , तेली , तमौली , नाई ,धौबी , जाधव , जाट , जाटव ,धींवर , महार ,
और अनेकों हजारों जातियां हैं ?
�इनमें अन्तरजातीय शादी विवाह की बात दूर , संग बैठकर आपस में बात करना भी मुंगेरीलाल के सपने जैसा है।
�1950 के बाद , वर्तमान परिवेश में आपसी घृणा में कमी तो आयी है ,परंतु आपसी सामंजस्य , प्रेम और प्यार का अभाव यथावत विद्यमान है ।
इन्हीं शूद्रों को हिन्दू शास्त्रों में सेवा करने के लिए जिम्मेदारी सौंपी गयी है।
साहित्य समाज का दर्पण है । सम्बत् 1680 से पहले नारी तथा शूद्रों को बेरहमी से प्रताड़ित किया जाता था ,जो बाद में भी जारी रहा । इसी लिए तुलसीदास की रचनाओं में इनकी प्रताड़ना का स्पष्ट विवरण मिलता हैं :
ढोल गवांर शूद्र पशु नारी
ये सब ताड़न के अधिकारी।
वर्ग व्यवस्था तो हो सकती है परन्तु वर्ण एवं जाति व्यवस्था दुनिया के किसी देश में नहीं है ,अलावा भारत या इससे विभाजित देश ।
और यह व्यवस्था बनाई उन्होंने जो स्वयं को भारत में असुरक्षित समझते थे ।
" विदेशी आर्यंस. " यही अार्य ही सवर्ण है !
*जय मूलनिवासी*
D.D.Solanki
Yuva Bhim Sena Gujarat
President
9099509661
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