मेरे कुछ बंधु और बहनें बुरा न मानें परंतु इस बात को समझें - अनुसूचित जाती, जनजाति और अल्पसंख्यकों पर अत्याचार के विरोध प्रदर्शनों को जल्द ही कांग्रेस और उसकी सहयोगी कोम्युनिस्ट द्वारा हाईजैक (चुरा) कर लिया जाता है। यही गुजरात के ऊना में भी हुआ। आज नए-नए नेता उभारे जा रहे हैं क्योंकि उनको इन संस्थाओं का स्पोर्ट (सहयोग) है। यह नेता इन संस्थाओं के एजंट होते हैं जो पहले तो अकेले होते हैं पर बाद में जमसमूह बना कर उन्हें इन संस्थाओं के हाथों बेच देते हैं। पंद्रह अगस्त की ऊना रैली से भी यही बातें उभर कर आ रही है कि मंच कांग्रेसियों के हाथों में था और साथ में कोम्युनिस्ट थे। ऐसे में असली मुद्दा समाप्त हो जाता है और नकली मुद्दे बना दिए जाते हैं जिससे कि राजनैतिक फायदे पहुंचे। और फिर इन पार्टियों के राज में भी अत्याचार जारी रहता है। कांग्रेस के शासनकाल में अधिक छात्रों ने आत्महत्या की पर तब राहुल गाँधी को याद नहीं आया। केरल में बौद्ध धर्मांतरण पर बानी फिल्म को बैन कर दिया गया पर तब कोम्युनिस्ट चुप रहे। उधर पश्चिम बंगाल दशकों से कोयुनिस्ट पार्टी और अब तृणमूल जैसी ऐसी पार्टियों के हाथों में है जिन्हें कृत्रिम ब्राह्मण, बेनर्जी, चटर्जी आदि चलाते हैं और मूलनिवासियों का दमन करते हैं। मैंने उन्हें कृत्रिम इसलिए बोला है क्योंकि वह ब्राह्मणों द्वारा मूलनिवासी भारतीय महिलाओं का शोषण करके बनाए गए हैं जिस प्रकार यूरोपियन लोगों ने ऑस्ट्रेलिया में वहां की मूलनिवासी महिलाओं को शोषण करके एक नई प्रजाति बनाई। इसलिए इस बात को समझने की आवश्यकता है कि इन सबमें कहीं मुद्दे की बात समाप्त न हो जाए। मैं कई बार कह चुका हूँ कि भावनात्मक बहाव में बहना सही नहीं। डॉ. भिमराव आंबेडकर ने अधिनायकवाद (किसी को हीरो बना कर पूजा करना) के लिए मना किया है पर उन्हीं की शिक्षाओं को तो लोग पढ़ते नहीं और कांग्रेस और कोम्युनिस्टों द्वारा खड़े किए गए नए अधिनायकों (हीरो) के पीछे भागने लगते हैं। इसी प्रकार लोग सरकारी अफसरों के पीछे भागते हैं और उन्हें भी किसी अधिनायक (हीरो) की संज्ञा दे देते हैं, फिर भले ही उन्होंने समाज के लिए काम काम किया हो पर समाज से लिया ज्यादा हो। इसलिए मैं बार-बार यही दोहराता हूँ कि अधिनायकवाद बंद करें। मुद्दे की बात करें। भेड़ की खाल में भेड़ियों को पहचाने। और भूले नहीं कि कोई किसी भी जाती का हो डॉ आंबेडकर की मूवमेंट को धोखा बहुतों ने दिया है। इसलिए सतर्क रहें। केवल मुद्दे की बात करें। सांस्कृतिक और धार्मिक क्रांति पर ज़ोर दें। अपने संगठनों का विस्तार करें। डॉ आंबेडकर के विचारों को आगे ले कर जाएं। एक हीरो के पीछे भागना बंद करें। आप जितना किसी के पीछे भागेंगे वो आपको उतना ही लूटेगा/लुटेगी। आज मुद्दा यह होना चाहिए था कि गाय काटने पर लगा बैन (प्रतिबन्ध) हटा देना चाहिए और सरकार द्वारा खड़े किए गए गाय बचाने वाले कमिशनों को समाप्त कर देना चाहिए जो गौ रक्षकों को सरकारी मदद करते हैं। पर मुद्दा बन गया कि पांच एकड़ ज़मीन चाहिए। आज मुद्दा यह होना चाहिए था कि इस संसार के उन सात सौ करोड़ लोगों की तरह हमें भी यह अधिकार होना चाहिए कि हम किसी भी पशु को पाल सके और काट कर खा या व्यापार कर सकें। पर मुद्दा बन गया कि उनको नहीं उठाएंगे अर्थात उनसे व्यवसाय नहीं करेंगे। भारत के कई राज्यों से गाय के काटने पर प्रतिबन्ध लगने के बाद करोड़ों अनुसूचित जाती / जनजाति / पिछड़े वर्ग और अलप संख्यक लोग न केवल बेरोजगार ही हो गए बल्कि जो आर्थिक रूप से सक्षम थे वह भी निर्धन हो गए। इसका फायदा हुआ हिन्दू बनिया को जो रेगसीन से ले कर प्लास्टिक तक चमड़े की जगह इस्तेमाल करने लगा। भारत के सुप्रीम कोर्ट ने भी चमड़े के काम पर बड़ी चोट पहुंचाई यह कह कर कि उससे प्रदूषण फैलता है। पर क्या प्लास्टिक और अन्य पॉलिमर जिन्हें चमड़े की जगह इस्तेमाल किया गया उनसे प्रदूषण नहीं फैला? ब्राह्मणवाद की इस साजिश के शिकार हुए अनुसूचित जाती / जनजाति / पिछड़े वर्ग और अलप संख्यक लोगों ने तो मांस बेचना तक बंद कर दिया जो कि एक अच्छा व्यवसाय था। ऐसा माना जाता है कि गाय का मांस खाने से ही अछूतों (अनुसूचित जाती) में शारीरिक बल था। अंग्रेजों ने भी उन्हें अपनी सैना में भर्ती किया था क्योंकि उस समय गाय का मांस का सेवन करने से शारीरिक बल के साथ उनकी कद-काठी भी लंबी थी। ऐसी अनगिनत बातें हैं जिन्हें आपको समझने की जरुरत है। आपका मुद्दा क्या है, और वह किनके हाथों में है? आपको अधिनायक नहीं न्याय चाहिए। आपको मंच पर नेता नहीं, सही दिशा चाहिए। आपको चोला या झोला दिखा कर बेवकूफ बनने वाले नहीं बल्कि सूट-बूट वाले बुद्धिजीवी आंबेडकर और चाहिए। आपको जातपात या आरक्षण का लाभ दिखा कर मंत्री बननेवाले नहीं बल्कि आपको मानसिक रूप से उन्नत करने वाले चाहिए। आप किसी के पीछे भागना बंद करें। सम्मान करें डॉ आंबेडकर का जिन्होंने अधिनायकवाद का विरोध किया है। किसी की बातों में न आएं। अपनी बुद्धि एवं विवेक से काम लें। - जय भीम - निखिल सबलानिया
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